Gujarat Board GSEB Hindi Textbook Std 9 Solutions Kshitij Chapter 14 चंद्र गहना से लौटती बेर Textbook Exercise Important Questions and Answers, Notes Pdf.
GSEB Std 9 Hindi Textbook Solutions Kshitij Chapter 14 चंद्र गहना से लौटती बेर
Std 9 GSEB Hindi Solutions चंद्र गहना से लौटती बेर Textbook Questions and Answers
प्रश्न-अभ्यास
प्रश्न 1.
‘इस विजन में … अधिक है’ – पंक्तियों में नगरीय संस्कृति के प्रति कवि का क्या आक्रोश है और क्यों ?
उत्तर :
‘इस विजन में … अधिक है’ – इन पंक्तियों के द्वारा कवि ने शहरी स्वार्थपूर्ण संबंधों पर प्रहार किया है। कवि के अनुसार शहरी संबंध व्यापारिक होते हैं। वे आपसी प्रेमभाव के बदले पैसों को अधिक महत्त्व देते हैं। जिसके पीछे मूल कारण है, उनका प्रकृति से दूर रहना। उनके विपरीत जो लोग प्रकृति की गोद में रहते हैं वे आपसी प्रेम को महत्त्व देते है। इसीलिए कवि ने गाँव की जमीन को प्यार के मामले में अधिक उपजाऊ माना है।
प्रश्न 2.
सरसों को ‘सयानी’ कहकर कवि क्या कहना चाहता होगा?
उत्तर :
सरसों की तुलना में चना, अलसी आदि छोटे हैं। सरसों में पीले फूल भी आ गए हैं। कवि को लगता है कि वह हाथ पीले कर ब्याह-मंडप में जाने को तैयार है, यही सब देखकर कवि सरसों को सयानी कहना चाहता है।
प्रश्न 3.
अलसी के मनोभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
कवि ने अलसी को एक सुंदर नायिका के रूप में चित्रित किया है। यह बड़ी हठीली है। उसका शरीर पतला और कमर लचकदार है। वह अपने सिर पर नीले फूल लगाकर प्रेमातुर हो रही है कि उसे जो स्पर्श करेगा उसको वह अपना हृदय दे देगी अर्थात उससे प्रेम करेगी।
प्रश्न 4.
अलसी के लिए ‘हठीली’ विशेषण का प्रयोग क्यों किया गया है ?
उत्तर :
कवि ने अलसी के लिए ‘हठीली’ विशेषण का प्रयोग इसलिए किया है कि पहली बात तो वह हठपूर्वक चने के पास उग आई है। दूसरी बात यह कि वह शरीर से दुबली-पतली है, हवा के हर झोके के साथ झुक जाती है। परन्तु फिर वह तुरंत खड़ी हो जाती है। तीसरी बात उसने हठ कर रखा है कि वह अपना दिल उसे ही देगी जो उसके सिर पर लगे नीले फूल को छुएगा।
प्रश्न 5.
‘चाँदी का बड़ा-सा गोल खंभा’ में कवि की किस सूक्ष्म कल्पना का आभास मिलता है ?
उत्तर :
तालाब के स्वच्छ पानी में जब सूर्य की किरणें पड़ती हैं तो वे गोल और लंबवत् चमक उत्पन्न करती हैं। जिसे देखने पर चाँदी का बड़ा-सा गोल खंभा प्रतीत होता है। इस तरह, किरणों में खंभे की कल्पना करना में कवि की सूक्ष्म कल्पनाशक्ति का आभास मिलता है।
प्रश्न 6.
कविता के आधार पर ‘हरे चने’ का सौन्दर्य अपने शब्दों में चित्रित कीजिए।
उत्तर :
कवि ने चने के पौधों का मानयीकरण किया है। हरे चने का ठिगना-सा है। उसके सिर पर गुलाबी फूल है। जिसे देखकर लगता है कि उसने सिर पर गुलाबी पगड़ी बाँधी है और सज-धजकर दूल्हा बना खड़ा है।
प्रश्न 7.
कवि ने प्रकृति का मानवीकरण कहाँ-कहाँ किया है ?
उत्तर :
कविता में कवि ने कई पंक्तियों में मानवीकरण किया है। जैसे –
प्रश्न 8.
कविता में से उन पंक्तियों को ढूँढ़िए, जिनमें निम्नलिखित भाव व्यंजित हो रहा है –
और चारों तरफ सूखी और उजाड़ जमीन है लेकिन वहाँ भी तोते का मधुर स्वर मन को स्पंदित कर रहा है।
उत्तर :
चित्रकूट की अनगढ़ चौड़ी
कम ऊँची-ऊँची पहाड़ियाँ
दूर दिशाओं तक फैली हैं।
बाँझ भूमि पर
इधर-उधर रीवा के पेड़
काँटेदार कुरूप खड़े हैं।
सुन पड़ता है
मीठा-मीठा रस टपकाता
सुम्गे का स्वर
टें टें टें टें;
रचना और अभिव्यक्ति
प्रश्न 9.
‘और सरसों की न पूछो’ – इस उक्ति में बात को कहने का एक खास अंदाज है। हम इस प्रकार की शैली का प्रयोग कब और क्यों करते हैं ?
उत्तर :
किसी बात को प्रभावपूर्ण ढंग से कहने या किसी की प्रशंसा आदि के लिए इस नकार का प्रयोग किया जाता है। जैसे, हिमालय पर ठंड की बात मत पूछो। हमारे सैनिकों की बहादुरी की न पूछो।
प्रश्न 10.
काले माथे और सफेद पंखोंबाली चिड़िया आपकी दृष्टि में किस प्रकार के व्यक्तित्व का प्रतीक हो सकती है ?
उत्तर :
काले माथे और सफेद पंखोंवाली चिड़िया सफेदपोश नेता के व्यक्तित्व का प्रतीक हो सकती है, जो परोपकार और समाजसेवा की तो बात करता हो परन्तु अपने शिकार पर भी नजर रखता है और अवसर मिलते ही अपना काम कर जाता है।
भाषा-अध्ययन
प्रश्न 11.
बीते बराबर, ठिगना, मरठा, आदि सामान्य बोलचाल के शब्द हैं, लेकिन कविता में इन्हीं से सौन्दर्य उभरा है और कविता सहज बन पड़ी है। कविता में आए ऐसे ही अन्य शब्दों की सूची बनाइए।
उत्तर :
लचीली, हठीली, सयानी, चकमकाता, चट, झपाटे, चटुल, लहरियाँ, अनगढ़, सुग्गा, जुगुल जोड़ी, टें 2 टें, टिरटों-टिरटों, चुप्पे चुप्पे आदि।
प्रश्न 12.
कविता को पढ़ते समय कुछ मुहावरे मानस-पटल पर उभर आते हैं, उन्हें लिखिए और अपने वाक्यों में प्रयुक्त कीजिए।
उत्तर :
1. सिर चढ़ाना (बढ़ावा देना)
किसी को इतना सिर मत चढ़ाओ कि आगे चलकर वह आपके लिए मुसीबत बन जाए।
2. हृदय का दान देना (समर्पित होना)
मधूलिका तो पहले ही अरुण को हृदय का दान दे चुकी थी।
3. हाथ पीले करना (ब्याह करना)
भारत में आज भी कम उम्र में बहुत-सी लड़कियों के हाथ पीले कर दिए जाते हैं।
4. हृदय चीरना (दुःख पहुँचाना)
किसी की कठोर बातों ने विधवा का हृदय चीर डाला।
5. प्यास बुझाना (तृप्त होना)
प्रवास में हमने झरने के जल से अपनी प्यास बुझाई।
6. झपाटे मारना (अचानक टूट पड़ना)
बाज पक्षी आसमान से अपने शिकार को देखता रहता है और मौका पाते ही झपाटे मारकर उठा ले जाता है।
GSEB Solutions Class 9 Hindi चंद्र गहना से लौटती बेर Important Questions and Answers
अतिरिक्त प्रश्न
प्रश्न 1.
चने ने किसकी पगड़ी बाँध रखी है ?
उत्तर :
चने ने गुलाबी फूलों की पगड़ी बाँध रखी है, जिससे उसकी सुंदरता बढ़ गई है।
प्रश्न 2.
अलसी अपने हृदय का दान किसे करना चाहती है ?
उत्तर :
अलसी अपने हृदय का दान उसे करना चाहती है, जो उसके सिर पर लगे फूल को स्पर्श करेगा।
प्रश्न 3.
कवि को स्वयंवर-सा क्यों प्रतीत हो रहा है ?
उत्तर :
कवि खेत की मेड़ पर बैठा जब चारों तरफ नज़र दौड़ाता है तो देखता है कि सरसों, चना, अलसी की फसलें सज-धजकर खड़ी है। चना अपने सिर लाल साफा बाँधे दूल्हे की तरह खड़ा है। अलसी सिर पर फूलों का शृंगार किए हुए हैं। सरसों हाथ पीले करके ब्याह-मंडप में बैठी है। फागुन फाग गा रहा है, जिसे देखकर कवि को स्वयंवर-सा प्रतीत हो रहा है।
प्रश्न 4.
तालाब के किनारे पत्थर क्या कर रहे हैं ?
उत्तर :
तालाब के किनारे पत्थर पड़े है। हवा से पानी में उठनेवाली छोटी-छोटी लहरें पत्थरों को स्पर्श कर रही हैं, जिसे देखकर लगता है कि पत्थर तालाब के किनारे चुपचाप पानी पी रहे हैं।
प्रश्न 5.
चिड़िया आकाश में कब उड़ जाती है ?
उत्तर :
चिड़िया मछली की फिराक में पानी की सतह से कुछ ऊँचाई पर उड़ती रहती है। मछली के दिखाई देते ही चिड़िया झपट्टा मारकर मछली को चोंच में दबा लेती है, इस तरह शिकार करने के बाद चिड़िया आकाश में उड़ जाती है।
प्रश्न 6.
सारसों को देखते ही कवि के मन में क्या भाव पैदा हुआ ?
उत्तर :
सारसों को देखते ही कवि का मन करता है कि वह सारस के साथ उड़कर वहाँ पहुँच जाए, जहाँ यह जुगल जोड़ी रहती हैं और परस्पर प्रेम की बातें करती है। कवि छिपकर उनकी प्रेम-कहानी सुनना चाहता है।
भावार्थ और अर्थबोधन संबंधी प्रश्न
1. देख आया चंद्र गहना।
देखता हूँ दृश्य अब मैं
मेड़ पर इस खेत की बैठा अकेला।
एक बीते के बराबर
यह हरा ठिगना चना,
बाँधे मुरैठा शीश पर
छोटे गुलाबी फूल का,
सज कर खड़ा है।
भावार्थ : कवि चंद्र गहना नामक स्थान से लौट रहा है। लौटते समय वह एक खेत की मेड़ पर अकेले बैठ जाता है। वह आसपास की फसलों का मोहक सौंदर्य देखने लगता है। वह देखता है कि सामने खेत में चने का एक ठिगना पौधा अपने सिर पर छोटे से गुलाबी फूल की पगड़ी बाँधकर सज-धजकर खड़ा है।
प्रश्न 1.
चन्द्र गहना से लौटते समय कवि कहाँ रूका और क्यों ?
उत्तर :
चंद्र गहना से लौटते समय कवि हरे-भरे खेतों की मेड़ पर अकेले बैठ गया और आस-पास बिखरे प्राकृतिक सौंदर्य को देखकर आनंद लेने लगा।
प्रश्न 2.
चने का पौधा कैसा है ?
उत्तर :
चने का पौधा ठिगना और हरे रंग का है। उसके सिर पर गलाबी के फूल हैं।
प्रश्न 3.
चने के पौधे को देखकर कवि के मन में क्या कल्पना जगी ?
उत्तर :
चने के पौधे को देखकर कवि कल्पना करता है कि उसने सिर पर गुलाबी रंग की पगड़ी पहन ली है और वह शादी में जाने को तैयार है।
प्रश्न 4.
‘छोटे गुलाबी फूल का, सज कर खड़ा है।’ में कौन-सा अलंकार है ?
उत्तर :
‘छोटे गुलाबी फूल का सज कर खड़ा है’ में मानवीकरण अलंकार है।
2. पास ही मिल कर उगी है
बीच में अलसी हठीली
देह की पतली, कमर की है लचीली,
नील फूले फूल को सिर पर चढ़ा कर
कह रही है, जो छुए यह
हृदय का दान उसको।
भावार्थ : खेत में चने के बगल में ही अलसी भी उग आई है। जिसे देखकर ऐसा लगता है कि जैसे चने की बगल में हठ करके उगी है। वह दुबली-पतली और लचकदार कमरवाली है। उसने बालों में नीले फूल लगा रख्खे हैं। वह कह रही है कि जो उस फूल को छुएगा उसे वह अपना हृदय दान देगी। यहाँ सुंदरी अलसी एक प्रेमातुर नायिका के रूप में है।
प्रश्न 1.
अलसी का पौधा कैसा होता है ?
उत्तर :
अलसी (तीसी) का पौधा पतला, चने की अपेक्षा कुछ लंबा पतला, शाखा रहित तथा लचकदार होता है। .
प्रश्न 2.
अलसी को हठीली क्यों कहा गया है ?
उत्तर :
अलसी को हठीली इसलिए कहा गया है कि अक्सर वह चने के साथ बोई जाती है। चने से कुछ लम्बी होने से ऐसा लगता है कि जैसे बलपूर्वक उग आई है। वह लचकदार होने से झुककर तुरंत सीधी हो जाती है।
प्रश्न 3.
अलसी को देखकर कवि ने क्या कल्पना की ?
उत्तर :
अलसी को देखकर कवि को लगा कि जैसे वह एक दुबली-पतली शरीरवाली खूबसूरत नायिका हो। जिसकी कमर अत्यंत लचकदार है। जो चने को एक के रूप में अपनी ओर आकर्षित कर रही है।
प्रश्न 4.
अलसी कहाँ उगी है, और क्या कह रही है ?
उत्तर :
अलसी चने के पौधे के पास उससे एकदम सटकर उगी है। वह सज-धजकर कह रही है कि मेरे सिर पर लगे इन नीले फूलों को जो छुएगा उसे वह अपना हृदय दान देगी।।
प्रश्न 5.
हृदय का दान उसको’ में कौन-सा अलंकार है ?
उत्तर :
‘दूं हृदय का दान उसको’ में मानवीकरण अलंकार है। यहाँ अलसी को जीवंत मानव की तरह चित्रित किया गया है।
3. और सरसों की न पूछो –
हो गई सबसे सयानी,
हाथ पीले कर लिए हैं
व्याह-मंडप में पधारी
फाग गाता मास फागुन
आ गया है आज जैसे।
देखता हूँ मैं : स्वयंवर हो रहा है,
प्रकृति का अनुराग-अंचल हिल रहा है
इस विजन में,
दूर व्यापारिक नगर से
प्रेम की प्रिय भूमि उपजाऊ अधिक है।
भावार्थ : कवि कहता है कि सरसों की तो बात ही मत पूछो। वह सबसे सयानी हो गई है। उसने अपने हाथ पीले करवा लिए हैं और ब्याह के मंडप में बैठ गई है। ऐसा लगता है कि होली के गीत गाता हुआ फागुन भी विवाहोत्सव में शामिल हो गया है। यह सब देखकर लगता है कि जैसे किसी का स्वयंवर हो रहा है। इस स्वयंवर में प्रकृति अपने प्यार का आँचल हिला रही है। वैसे तो यह एकदम निर्जन स्थान है। लेकिन भीड़-भाड़वाले व्यापारिक नगरों से अधिक प्रेम यहाँ देखने को मिल रहा है। यहाँ मनुष्य की तो बात मत पूछो, पेड़-पौधे भी प्यार करते हैं।
प्रश्न 1.
किसे सयानी कहा गया है, और क्यों ?
उत्तर :
सरसों को सयानी कहा गया है क्योंकि अन्य फसलों की तुलना में सरसों थोड़ा पहले तैयार हो जाती है। सरसों पर पीले फूल जल्दी आ गए हैं, जिन्हें देखकर लगता है कि वह किशोरावस्था पार कर चुकी है। विवाह योग्य हो गई है।
प्रश्न 2.
काव्यांश में किस ऋतु और माह का वर्णन है ?
उत्तर :
काव्यांश में वसंत ऋतु और फाल्गुन महीने का वर्णन है।।
प्रश्न 3.
‘देखता हूँ मैं : स्वयंवर हो रहा’ कवि ऐसा किस आधार पर कहता है ?
उत्तर :
कवि देखता है कि सरसों, अलसी, चना की फसलें सज-धजकर खड़ी हैं। चने ने अपने सिर पर लाल साफा बाँध लिया है। अलसी सिर पर नीले फूल लगाए हुए है। सरसों अपने हाथ पीले करके ब्याह मंडप में बैठी है। फागुन होली के गीत गा रहा है। इस तरह, इस समूचे वातावरण को देखकर कवि को लगता की स्वयंवर हो रहा है।
प्रश्न 4.
नगरीय संस्कृति के प्रति कवि ने क्या आक्रोश व्यक्त किया है ?।
उत्तर :
नगरीय संस्कृति के प्रति कवि आक्रोश व्यक्त करता हुआ कहता है कि शहरी संबंध व्यापारिक होते हैं। शहरों की अपेक्षा गाँव की जमीन प्यार के मामले में अधिक उपजाऊ है।
प्रश्न 5.
‘ब्याह-मंडप में पधारी’ में कौन-सा अलंकार है ?
उत्तर :
‘ब्याह-मंडप में पधारी’ में मानयीकरण अलंकार है क्योंकि यहाँ ‘सरसों ब्याह के मंडप आई’ ऐसा कहकर उसे जीवंत मानव का रूप दिया गया है।
4. और पैरों के तले है एक पोखर,
उठ रहीं इसमें लहरियाँ,
नील तल में जो उगी है घास भूरी
ले रही वह भी लहरियाँ।
एक चाँदी का बड़ा-सा गोल खंभा
आँख को है चकमकाता।
हैं कई पत्थर किनारे
पी रहे चुपचाप पानी,
प्यास जाने कब बुझेगी !
भावार्थ : कवि कहता है कि वहीं खेत के पास में एक छोटा-सा तालाब है, जिसमें छोटी-छोटी लहरें उठ रही है। तालाब की नीली तली में भूरी-भूरी घास उग आई है। लहरों के साथ घास भी लहरा रही हैं। उस पानी में सूर्य की परछाई चमक रही है, जिससे आँखें चौंधिया रही हैं। वह परछाईं चाँदी के एक बड़े से खंभे की तरह दिखाई दे रही है। तालाब के किनारे पड़े छोटे-छोटे पत्थर इस तरह चुपचाप पानी पी रहे हैं जैसे उनकी प्यास कभी न बुझनेवाली हो
प्रश्न 1.
भूरी घास कहाँ उगी हुई हैं ?
उत्तर :
भूरी घास तालाब की तली में उगी हुई हैं।
प्रश्न 2.
कवि की आँखें क्यों चौंधिया रही हैं ?
उत्तर :
सूर्य की परछाई तालाब में पड़ रही है। पानी के चमकने से परछाई गोलखंभे-सी प्रतीत हो रही हैं, जिसकी तरफ देखने से कवि की आँखें चौंधिया रही हैं।
प्रश्न 3.
‘प्यास जाने कब बुझेगी’ का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
तालाब के किनारे अनेक पत्थर पड़े हुए हैं। जो तालाब में उठनेवाली छोटी-छोटी लहरों को स्पर्श करते हैं। उसे देखकर कवि को लगता है कि जैसे वे पानी पी रहे हों। वह सोचता है कि इन पत्थरों की प्यास पता नहीं कब बुझेगी, क्योंकि वे इसी तरह लंबे समय से पानी पी रहे हैं।
प्रश्न 4.
तालाब का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
कवि जिस खेत की मेड़ पर बैठा है वहीं पास में एक छोटा-सा तालाब है। उसके स्वच्छ पानी में हवा के झोंकों के साथ छोटी छोटी लहरें उठ रही हैं। तालाब के नीले तल में भूरी-भूरी उगी हैं, वे भी लहरों के साथ लहरा रही हैं। पानी में सूर्य का प्रतिबिंब बन रहा है, जो चाँदी के खंभे जैसा दिखाई दे रहा है।
प्रश्न 5.
‘हैं कई पत्थर किनारे
पी रहे चुपचाप पानी’ में कौन-सा अलंकार है ?
उत्तर :
‘हैं कई पत्थर किनारे
पी रहे चुपचाप पानी’ में मानयीकरण अलंकार है।
5. चुप खड़ा बगुला डुबाए टाँग जल में,
देखते ही मीन चंचल
ध्यान-निद्रा त्यागता है,
चट दबा कर चोंच में
नीचे गले के डालता है !
एक काले माथ वाली चतुर चिड़िया
श्वेत पंखों के झपाटे मार फौरन
टूट पड़ती है भरे जल के हृदय पर
एक उजली चदुल मछली
चोंच पीली में दबा कर
दूर उड़ती है गगन में !
भावार्थ : तालाब में एक किनारे पानी में बगुला ध्यान मग्न खड़ा है, परन्तु जैसे ही कोई चंचल मछली उसे दिखाई देती है यह त्याग देता है। वह चट से उसे चोंच में दबाकर गले के नीचे उतार लेता है। तभी कवि एक काले माथेवाली चालाक चिड़िया देखता है, जिसके पंख सफेद हैं। वह पानी की सतह पर झपट्टा मारती है और एक चमकदार चंचल मछली को अपनी पीली ! चोंच में दबाकर आसमान में उड़ जाती है।
प्रश्न 1.
बगुला ध्यान-निद्रा कब त्यागता है ?
उत्तर :
बगुला तालाब में ध्यान-निद्रा में खड़ा रहता है। परन्तु जैसे ही उसे कोई मछली दिखाई देती है, वह ध्यान-निद्रा त्याग कर उसकी चोंच में दबा लेता है।
प्रश्न 2.
काले माथेवाली चिड़िया किस तरह शिकार करती है ?
उत्तर :
काले माथेवाली चिड़िया पानी की सतह से कुछ ऊँचाई पर मँडराती रहती है। वह जैसे ही जल में किसी मछली को देखती है कि बड़ी चतुराई से मछली पर झपट्टा मारती है और उसे अपनी चोंच में दबाकर आसमान में उड़ जाती है।
प्रश्न 3.
बगुला किस तरह खड़ा है और क्यों ?
उत्तर :
बगुला एक तपस्वी की तरह खड़ा है। जैसे ही कोई मछली उसके नजदीक आती है, वह उस मछली को चोंच में दबाकर गले के नीचे उतार लेता है।
प्रश्न 4.
काले माथेवाली चिड़िया और बगुला के शिकार के तरीके में क्या भिन्नता है ?
उत्तर :
काले माथेवाली चिड़िया पानी की सतह से कुछ ऊँचाई पर मछली की फिराक में मँडराती रहती है। मछली देखते ही पानी में ही मछली पर टूट पड़ती है और उसे चोंच में दबाकर आकाश में उड़ जाती है। बगुला तालाब में ध्यान लगाकर खड़ा रहता है। उसे मछली का इंतजार रहता है। जैसे ही कोई मछली उसके नजदीक आती है, वह अपनी ध्यान निद्रा को त्यागकर मछली को चोंच में दबा लेता है और फिर गले के नीचे उतार लेता है।
प्रश्न 5.
काव्यांश में प्रयुक्त मुहावरे बताइए।
उत्तर :
काव्यांश में ‘गले में डालना’ और ‘झपट्टा मारना’ – ये दो मुहावरे प्रयुक्त हुए हैं।
6. औ’ यहीं से
भूमि ऊँची है जहाँ से
रेल की पटरी गई है।
ट्रेन का टाइम नहीं है।
मैं यहाँ स्वच्छंद हूँ,
जाना नहीं है।
चित्रकूट की अनहगढ़ चौड़ी
कम ऊँची-ऊँची पाड़ियाँ
दूर दिशाओं तक फैली हैं।
बाँझ भूमि पर
इधर-उधर रीवा के पेड़
काँटेदार कुरुप खड़े हैं।
भावार्थ : कवि कहता है कि वह जहाँ बैठा है, वहीं से कुछ दूरी पर जमीन ऊँची है। सामने ऊँची जमीन से रेल की पटरी गई है। लेकिन अभी ट्रेन के आने-जाने का समय नहीं है। उसे कहीं जाने की जल्दी भी नहीं है। इसलिए वहाँ के प्राकृतिक दृश्य को देखने के लिए वह एकदम स्वतंत्र है अर्थात् उसके पास समय ही समय है। उसे कोई जल्दबाजी नहीं है। उसके सामने टेढ़ी-मेढ़ी, बेडौल और कम ऊँचाईवाली चित्रकूट की पहाड़ियाँ दूर-दूर तक फैली हुई हैं। यह बंजरभूमि है। वहाँ रीवाँ के कॉटेदार पेड़ हैं, जो कोई सुंदर दृश्य प्रस्तुत नहीं कर रहे हैं अर्थात् इन पेड़ों में कोई आकर्षण नहीं है।
प्रश्न 1.
रेल की पटरी कहाँ से गई है ?
उत्तर :
कवि जहाँ खेत की मेड़ पर बैठा है, वहीं से कुछ दूरी पर जमीन ऊँची है। उसी ऊँची जमीन से रेल की पटरी गई है।
प्रश्न 2.
‘ट्रेन का टाइम नहीं है’ – कवि ऐसा क्यों कहता है ?
उत्तर :
‘ट्रेन का टाइम नहीं है’ – कवि ऐसा इसलिए कहता है कि अभी किसी ट्रेन के आने का समय नहीं है।
प्रश्न 3.
बाँझ भूमि पर कैसे पेड़ उगे हैं, क्यों ?
उत्तर :
बाँझ भूमि से तात्पर्य बंजर जमीन से है, जिस जमीन पर कोई हरे-भरे या फलदार वृक्ष नहीं उगते हैं। इसमें कैंटीली झाड़ियों और छोटे-छोटे बबूल के अलावा कुछ नहीं उगता है। इसीलिए दूर-दूर इसी तरह के वृक्ष दिखाई दे रहे हैं।
प्रश्न 4.
चित्रकूट की पहाड़ियों की क्या विशेषता है ?
उत्तर :
चित्रकट की पहाड़ियाँ ऊबड़-खाबड़, टेढ़ी-मेढ़ी और कम ऊँचाईवाली हैं। ये दूर-दूर तक फैली हुई हैं। इन पर रीवा के कांटेदार वृक्ष हैं। अन्य कोई हरे-भरे या फलदार वृक्ष नहीं हैं, इन कारणों से ये पहाड़ियाँ बड़ी कुरूप नजर आती हैं।
प्रश्न 5.
काव्यांश में प्रयुक्त विदेशी शब्द बताइए।
उत्तर :
काव्यांश में ‘रेल’, ‘ट्रेन’ और ‘टाइम’ जैसे अंग्रेजी (विदेशी) शब्द हैं।
7. सुन पड़ता है
मीठा-मीठा रस टपकाता
सुग्गे का स्वर
टें टें टें टें;
सुन पड़ता है
वनस्थली का हृदय चीरता,
उठता-गिरता,
सारस का स्वर
टिरटों टिरटों;
मन होता है –
उड़ जाऊँ मैं
पर फैलाए सारस के संग
जहाँ जुगुल जोड़ी रहती है
हरे खेत में,
सच्ची प्रेम-कहानी सुन लूँ
चुप्पे-चुप्पे।
भावार्थ : कवि को तोते का मीठा स्वर सुनाई पड़ता है। यह आवाज उसे प्रिय लगती है। दूसरी ओर से उसे सारस की टिरटोंटिरटों की आवाज सुनाई देती है। सारस की यह आवाज जंगल के सीने को चीरते हुए निकल जाती है। उसकी यह आवाज कभी तेज हो जाती है तो कभी धीमी। कवि का मन करता है कि वह सारस के साथ पंख फैलाकर उड़ जाए। कवि उड़कर उस जगह पहुँचना चाहता है जहाँ हरे-भरे खेतों के बीच यह युगल जोड़ी रहती है और आपस में प्रेम की बातें करती है। यहाँ दबे पाँव जाकर कविं उनकी सच्ची प्रेम कहानी सुनना चाहता है।
प्रश्न 1.
कवि को तोते का स्वर कैसा लगता है ?
उत्तर :
कवि को तोने का स्वर कर्णप्रिय लगता है।
प्रश्न 2.
सारस के स्वर की क्या विशेषता है ?
उत्तर :
सारस टिरटों-टिरटों के स्वर में बोलता है। उसकी आवाज जंगल को चीरती हुई दूर से आ रही है, जो कभी तेज हो जाती है तो कभी धीमी। सारस की आवाज बड़ी मोहक है।
प्रश्न 3.
सारस की आवाज सुनकर कवि की क्या इच्छा होती है ?
उत्तर :
सारस की आवाज सुनकर कवि की इच्छा होती है कि वह सारस के साथ उड़कर वहाँ चला जाए जहाँ यह जुगल जोड़ी रहती है।
प्रश्न 4.
कवि किसकी प्रेम-कहानी सुनना चाहता है ?
उत्तर :
कवि सारस की प्रेम-कहानी सुनना चाहता है।
प्रश्न 5.
सारस की जुगल जोड़ी कहाँ रहती है ?
उत्तर :
सारस की जुगल जोड़ी वनस्थली से दूर कहीं हरे-भरे खेतों के बीच रहती है।
चंद्र गहना से लौटती बेर Summary in Hindi
केदारनाथ अग्रवाल का जन्म बाँदा जिले के कमासिन नामक गाँव में हुआ था । प्रयाग और आगरा से बी.ए., एल.एल.बी, तक की शिक्षा प्राप्त करके बाँदा में वकालत करते रहे । हिन्दी के प्रसिद्ध प्रगतिवादी कवियों में अग्रवालजी का नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है । नई कविता के कवियों में भी केदारनाथ का नाम शीर्ष पंक्ति में आता है । सर्वहारा वर्ग के प्रति सहानुभूति और वर्गविहीन समाज की स्थापना का स्वर इनके काव्य में सर्वत्र सुनाई देता है ।
अग्रवालजी की कविताओं में कहीं भी बनावटीपन, कृत्रिमता या अनावश्यक अलंकारों की चकाचौंध नहीं है । आपने मुक्त छंद और गीतिछंद का सफलतापूर्वक प्रयोग किया है । आपका शब्दचयन बड़ा सटीक और भावों की बिम्बात्मक अभिव्यक्ति अनायास ही हमारा ध्यानाकर्षित करते हैं । प्रकृति के प्रति उत्कट प्रेम एवं सौंदर्य चेतना का अनूठा संगम आपकी रचनाओं में दृष्टिगोचर होता है । आपकी रचनाओं में ‘नींद के बादल’, ‘अपूर्वा’, ‘युग की गंगा’, ‘लोक और परलोक’, ‘फूल नहीं रंग बोलते हैं’ आदि का समावेश होता है ।
कविता-परिचय :
प्रस्तुत कविता में कवि का प्रकृति के प्रति गहरा अनुराग व्यक्त हुआ है । वह चंद्र गहना नामक स्थान से लौट रहा है । लौटते समय कवि का किसान मन खेतों के सहज सौन्दर्य पर आकर्षित हो उठता है । चना, अलसी, सरसों आदि के पौधे, गुलाबी फूल, सुंदर तालाब, तालाब किनारे के पत्थर, बगुला और सारस पक्षी – ये सब कवि का मन मोह लेते हैं । इस कविता में कवि की उस सृजनात्मक कल्पना की अभिव्यक्ति है जो साधारण चीजों में भी असाधारण सौंदर्य देखती है और उस सौन्दर्य को शहरी विकास की तीव्र गति से बचाए रखना चाहती है । यहाँ प्रकृति और संस्कृति की एकता व्यक्त हुई है ।
शब्दार्थ-टिप्पण :
- मेड़ – खेतों के बीच आने-जाने का रास्ता
- बीते के बराबर – छोटा-सा, एक बालिश्त (बिता) जो एक वयस्क हाथ के अंगूठे से छोटी अँगुली तक की लंबाई का एक नाप (लगभग 22.5 सेमी)
- ठिगना – नाटा, छोटे कदवाला
- मुरैठा – पगड़ी
- अलसी – एक तिलहनी पौधा, तीसी
- हटीली – जिद्दी
- सयानी – युवा, चतुर
- हाथ पीले कर – विवाह के लिए हल्दी लगाकर
- फाग – फागुन महीने में, होली के आसपास गाया जानेवाला लोकगीत
- अनुराग – प्रेम
- विजन – निर्जन, सुनसान
- पोनर – छोटा तालाब
- चकमकाना – चकाचौंध पैदा करना
- चट – तुरंत
- मीन – मछली
- झपाटे मारना – झपटना
- फौरन – तुरंत
- जल के ह्रदय पर – पानी की सतह पर
- चटुल – चंचल, चालाक
- उजली – सफेद, चमकदार
- स्वच्छंद – स्वतंत्र, मुक्त
- अनगढ़ – ऊबड़-खाबड़
- बाँझ – अनुपजाऊ
- रीवा – एक पेड़ जो कुछ-कुछ बबूल के पेड़ से मिलता है
- सुग्गा – तोता
- जुगुल – युगल, जोड़ा
- चुप्पे-चुप्पे – छिपकर