Gujarat Board GSEB Hindi Textbook Std 9 Solutions Kshitij Chapter 1 दो बैलों की कथा Textbook Exercise Important Questions and Answers, Notes Pdf.
GSEB Std 9 Hindi Textbook Solutions Kshitij Chapter 1 दो बैलों की कथा
Std 9 GSEB Hindi Solutions दो बैलों की कथा Textbook Questions and Answers
प्रश्न-अभ्यास
प्रश्न 1.
कांजीहौस में पशुओं की हाजिरी क्यों ली जाती होगी?
उत्तर :
कांजीहौस में पशुओं की हाजिरी लेने के कई कारण हो सकते हैं। इससे यह पता चल सकता है कि कोई पशु बीमार तो नहीं है, कोई पशु मर तो नहीं गया, ताकि उसे वहाँ से हटवाया जा सके। समूह में हिंसा करनेवाले पशुओं की अलग से व्यवस्था हो सके, कौन-से पशु नीलामी के योग्य हैं, उनकी निश्चित संख्या का पता चल सके इसलिए कांजीहौस में पशुओं की हाजिरी ली जाती होगी।
प्रश्न 2.
छोटी बच्ची को बैलों के प्रति प्रेम क्यों उमड़ आया ?
उत्तर :
छोटी बच्ची और दोनों बैल समदुखिया थे। छोटी बच्ची की माँ नहीं थी। सौतेली माँ उस पर अत्याचार करती थी दूसरी ओर दोनों बैल अपने मूल मालिक से दूर थे। गया उन पर अत्याचार करता था। छोटी बच्ची दयालु प्रकृति की थी। बैलों की दुर्दशा को देख उसका मन उसके प्रति प्रेम से भर गया और वह इसी कारण शाम को दो रोटियाँ उन्हें खिलाया करती थी।
प्रश्न 3.
कहानी में बैलों के माध्यम से कौन-कौन से नीति-विषयक मूल्य उभर कर आये हैं ?
उत्तर :
प्रेमचंद ने अपनी कहानी दो बैलों की कथा के जरिए अनेक नीति-विषयक मूल्यों का वर्णन किया है। कहानी के प्रारंभ में दोनों मित्रों की मित्रता देखते ही बनती है। साथ-साथ खाते-पीते हैं। जब एक संकट में होता है दूसरा अपनी जान बचाने की जगह अपने साथी मित्र का साथ देता है। दोनों बैल ध्यान रखते हैं कि खेत में जोताई करते समय दूसरों के कंधों पर ज्यादा भार न हो।
कांजीहौस में बहुत से जानवर बंदी बना दिए गये थे। दोनों ने मिल कर दीवार को गिरा दिया और असंख्य जानवरों को बचा लिया। यहाँ पर प्रेमचंद ने परोपकार की भावना का वर्णन किया है। कहानी में बालिका भी निःस्वार्थ भाव से दोनों को रोटियाँ खिलाती हैं तब उसकी सौतेली माँ और गया के साथ वे बुरा व्यवहार नहीं करते। नारी पर हमला करना वे अनुचित समझते हैं।
चाहे पशु हो या मनुष्य स्वतंत्रता सभी को अच्छी लगती है। इसलिए कांजीहौस में बंदी किए जाने पर दोनों बैल आजाद होने के लिये प्रयासरत रहते हैं और अंततः स्वतंत्र हो जाते हैं। अपने मालिक के प्रति स्नेह व्यक्त करते हैं। इस प्रकार इस कहानी में लेखक प्रेमचंद ने कई नीतिविषयक मूल्यों की स्थापना की है।
प्रश्न 4.
प्रस्तुत कहानी में प्रेमचंद ने गधे की किन स्वभावगत विशेषताओं के आधार पर उसके प्रति रूड़ अर्थ (मूर्ख) का प्रयोग न कर किस नए अर्थ की ओर संकेत किया है ?
उत्तर :
गधा सभी प्राणियों में सबसे सीधा जानवर है। उसके इसी सीधेपन के कारण उसे बुद्धिहीन समझा जाता है। उसके चेहरे पर कभी हर्ष और विषाद की रेखा नहीं आती, न कभी असंतोष की भावना। वह हर हाल में एक जैसा ही रहता है। गधे के इसी गुण के कारण लेखक ने रूढ़ अर्थ ‘मूर्ख’ का प्रयोग न कर ऋषिमुनियों के गुणों से उनकी तुलना करते हैं। जैसे ऋषिमुनि सुख-दुःख, हानि-लाभ किसी भी दशा वे एक सरीखे रहते हैं।
गधा भी कुछ इसी प्रकार का प्राणी होने के नाते लेखक ने उन्हें सर्वथा नवीन अर्थ में प्रयुक्त किया है। ऋषि-मुनियों के जितने गुण हैं वे सभी गुण उनमें पराकाष्ठा को पहुँच गये हैं। यों गधे में ऋषि-मुनियों के गुण के कारण उनकी तुलना लेखक ने ऋषि-मुनियों से की है जो अपने आप में सर्वथा नए अर्थ की ओर संकेत है।
प्रश्न 5.
किन घटनाओं से पता चलता है कि हीरा और मोती में गहरी दोस्ती थी ?
उत्तर :
दो बैलों की कथा पाठ में अनेक प्रसंग आये हैं जिनसे हमें पता चलता है कि हीरा और मोती में गहरी दोस्ती थी। दोनों बैल एकदूसरे को चाटकर तथा सूंघकर एकदूसरे के प्रति अपना प्रेम व्यक्त करते थे। हल में जोते जाने के बाद दोनों बैलों की कोशिश यही रहती कि ज्यादा से ज्यादा भार अपने कंधे पर रहे।
गया ने जब हीरा की पिटाई की तो मोती को अपने मित्र का पिटना अच्छा नहीं लगा और वह हल लेकर भागने लगा जिससे हल जोत हुआ सब टूट गए। साँड़ को सामने देख भागने के बदले दोनों ने संगठित होकर उस पर हमला किया परिणामस्वरूप सांड़ घायल होकर भाग गया। यों दोनों ने सूझबूझ से कामकर एकदूसरे को बचाने की कोशिश की। मटर के खेत में मोती पकड़ा गया। चाहता तो हीरा भाग सकता था किन्तु दोनों की दोस्ती बड़ी गहरी थी।
भागने के बजाय हीरा भी मोती के साथ बंधक बना और कांजीहौस में डाल दिए गये। कांजीहौस में हीरा को मोटी रस्सियों से बाँध दिया गया उस समय भी मोती को अन्य पशुओं के साथ भागने का मौका होने पर भी उसने अपने मित्र का साथ दिया। इस तरह हम कह सकते हैं कि हीरा और मोती में गहरी मित्रता थी।
प्रश्न 6.
लेकिन औरत जात पर सींग चलाना मना है, यह भूल जाते हो। हीरा के इस कथन के माध्यम से स्त्री के प्रति प्रेमचंद के दृष्टिकोण को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
प्रेमचंद ने अपने कथासाहित्य में सर्वत्र नारी के प्रति सम्मान प्रकट किया है यद्यपि उस समय में समाज में नारियों की स्थिति बड़ी भयावह थी। मोती ने लड़की की सौतेली माँ पर जब वार करने की बात कही तब प्रेमचंद ने हीरा द्वारा यह कथन ‘लेकिन औरत जात पर सींग चलाना मना है, यह भूल जाते हो।’ कहलवाकर नारी के प्रति सम्मान की भावना को प्रकट किया है।
प्रायः पुरुषप्रधान समाज में नारियों की स्थिति उस समय ठीक नहीं थी। यों स्त्रियों पर वार करना एक प्रकार से कायरता है। समाज के नियमों के अनुसार भी स्त्रियों को मारना पीटना उचित नहीं। लेखक स्त्रियों की प्रताड़ना का विरोध करते हुए नारी के प्रति सम्मान की भावना व्यक्त करते हैं।
प्रश्न 7.
किसान जीवनवाले समाज में पशु और मनुष्य के आपसी संबंधों को कहानी में किस तरह व्यक्त किया गया है ?
उत्तर :
आदिकाल से ही पशु और मनुष्य का संबंध घनिष्ट और अटूट रहा है। पहले खेती के कार्य तथा कहीं आवागमन के लिए मनुष्य पशुओं का ही सहारा लेता था। दूध आदि भी उसे पशुओं से ही प्राप्त होते हैं। इसलिए मनुष्य इनको पालता था। पालने के कारण मनुष्य और पशुओं में प्रेम हो जाया करता था। दो बैलों की कथा में हमने देखा कि हीरा मोती को अपने मालिक के यहाँ मरना कबूल है किन्तु गया के साथ जाना उन्हें तनिक भी नहीं सुहाता।
हीरा और मोती झूरी काछी के यहाँ रहकर खेती से संबंधित सभी कार्य को पूरी निष्ठा के साथ करते हैं। वे अपने मालिक के प्रति वफादार हैं। कांजीहौस से नीलामी के बाद दढ़ियल द्वारा खरीद लिए जाते हैं, पर जैसे ही परिचित रास्ता मिल जाता है ये अपने मालिक के घर पहुँच जाते हैं। मालिक का साथ मिलने पर मोती ने दढ़ियल का पीछाकर उसे गाँव से बाहर निकाल दिया। यों मनुष्य और पशु के साथ साथ रहने पर उन्हें एकदूसरे से स्नेह हो जाता है। वे भी अपने मालिक के प्रति प्रेम, निष्ठा की भावना प्रकट करते हैं।
प्रश्न 8.
‘इतना तो हो ही गया कि नौ-दस प्राणियों की जान बच गई। वे सब तो आशीर्वाद देंगे’ – मोती के इस कथन के आलोक में उसकी विशेषताएँ बताइए।
उत्तर :
पशु या मनुष्य जीवन का कोई मूल्य नहीं यदि वह किसी के काम न आ सके। मोती पशु होकर परोपकार का कार्य करता है। उसे अपनी जान की परवाह नहीं यदि दढ़ियल द्वारा उसकी मौत भी हो जाती है तो उसकी यह परवाह नहीं करता। अपने इस जीवन से उसे संतोष है कि कम से कम कुछ प्राणियों को बचा पाया है। वे उसे आशीर्वाद तो देंगे।
मोती विद्रोही स्वभाव का होने पर भी परोपकार का कार्य करता हैं जो उसके चरित्र की सबसे बड़ी विशेषता है। वह एक सच्चा मित्र है। आवश्यकता पड़ने पर अपने मित्र का साथ देता है। भागने का अवसर होने पर भी नहीं भागता। वह अपने मित्र हीरा का साथ नहीं छोड़ता। वह बहुत साहसी और पराक्रमी है। साँड़ को देखकर डरकर भागने की बजाय उससे भिड़ता है और दोनों मित्र मिलकर उसे घायल कर देते हैं।
यो मोती के पात्र द्वारा प्रेमचंद ने एक आदर्श व्यक्ति के गुणों को दर्शाना चाहा है। कहानी में पात्र चाहे कोई भी हो प्रेमचंद अपने आदर्श को नहीं छोड़ते। यह मोती के इस द्वारा फलीभूत होता है।
प्रश्न 9.
आशय स्पष्ट कीजिए :
क. अवश्य ही उनमें ऐसी गुप्त शक्ति थी, जिससे जीवों में श्रेष्ठता का दावा करनेवाले मनुष्य भी वंचित है।
उत्तर :
प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से प्रेमचंद कहना चाहते हैं कि सभी जीवों में मनुष्य सर्वश्रेष्ठ जीव होने का दावा करता है। किन्तु जो गुण हीरा और मोती में थे चे गुण मनुष्य में नहीं है। हीरा और मोती गहरे मित्र थे। वे बिना कुछ कहे एकदूसरे के मनोभावों को अच्छी तरह से जान लेते हैं। यह गुप्त शक्ति उनके पास थी। मनुष्य के पास ऐसी गुप्त शक्ति नहीं है जो बिना कहे, दूसरे मनुष्य के मनोभावों को जान सके। स्वतंत्रता के लिए संघर्ष, मैत्री के लिए कुर्बान होने की भावना तथा संतोष आदि हीरा-मोती को एक उत्तम व्यक्ति की तरह प्रस्तुत करते हैं।
ख. ‘उस एक रोटी से उनकी भूख तो क्या शांत होती; पर दोनों के हृदय को मानो भोजन मिल गया।’
उत्तर :
हीरा और मोती को गया के घर बहुत काम करना पड़ता था। किन्तु खाने में उन्हें सूखा भूसा ही दिया जाता था। अपने घर पर उन्हें भूसा के साथ खली, चोकर आदि भी दिया जाता। यहाँ वे मन मसोस कर रह जाते। बैलों के ऊपर हो रहे अत्याचार को बालिका समा गई और रात में उनको रोज एक-एक रोटी खिला जाया करती।
इससे हीरा और मोती की भूख्न तृप्त नहीं होती थी फिर भी स्नेह के कारण जो उन्हें रोटी प्राप्त होती थी वह सारी थकान मिटा देती थी। बालिका द्वारा प्राप्त स्नेह से वे अभिभूत हो उठते थे और उसी स्नेह से उनका पेट भर जाता था। स्नेह में बहुत ताकत होती है। यही ताकत दोनों बैलों को बालिका द्वारा दी जानेवाली रोटी से प्राप्त होती थी और उनका जीवन बसर हो रहा था।
प्रश्न 10.
गया ने हीरा-मोती को दोनों बार सूखा भूसा खाने के लिए दिया क्योंकि –
(क) गया पराये बैलों पर अधिक खर्च नहीं करना चाहता था।
(ख) गरीबी के कारण खली आदि खरीदना उसके बस की बात न थी।
(ग) वह हीरा-मोती के व्यवहार से दुखी था।
(घ) उसे खली आदि सामग्री की जानकारी नहीं थी।
(सही उत्तर के आगे (✓) का निशान लगाइए ‘1)
उत्तर :
(ग) वह हीरा-मोती के व्यवहार से दुखी था। (✓)
रचना और अभिव्यक्ति
प्रश्न 11.
हीरा और मोती ने शोषण के खिलाफ आवाज उठाई लेकिन उसके लिए प्रताड़ना भी सही। हीरा-मोती की इस प्रक्रिया पर तर्क सहित अपने विचार प्रकट करें।
उत्तर :
हीरा और मोती दोनों ही आजादी के पक्षधर हैं। वे अपने मालिक के यहाँ रहने को तैयार है पर गया के यहाँ उन्हें रहना कतई पसन्द नहीं। वे प्रतिकार करते हैं तो उन्हें बुरी तरह मारा-पीटा जाता है। इसके बाद दोनों बैल कांजीहौस में बंद कर दिये जाते हैं। वहाँ उनकी स्थिति बड़ी दयनीय थी। वहाँ उन्हें चारा-पानी कुछ नहीं दिया जाता था। उस समय हीरा के मन में विद्रोह की ज्वाला दहक उठी और दोनों भागने के लिए दीवार तोड़ते हैं। किन्तु चौकीदार उन्हें देख लेता है और हीरा को बुरी तरह से पीटता है तथा मोटी-सी रस्सी में बाँध देता है।
हीरा के अन्दर अभी भी विद्रोह की ज्वाला दहक रही थी। उसका कहना था कि इस प्रकार घुट-घुटकर जीवन जीने से अच्छा है किसी की जान बचाकर मरना। मोती जोर लगाकर दीवार तोड़ देता है। वहाँ पर अधमरे पशु एक-एक कर चले जाते हैं। किन्तु हीरा को छोड़ कर मोती नहीं जा पाता। दोनों एकदूसरे का साथ संकट की घड़ी में नहीं छोड़ते किन्तु मोती की खूब मरम्मत होती है और उसे भी मोटी रस्सी से बाँध दिया जाता है। यों दोनों शोषण के खिलाफ आवाज तो उठाते हैं किन्तु बदले में उन्हें बहुत कष्ट सहना पड़ता है। उन्हें प्रताड़ना सहनी पड़ती है। किन्तु यही प्रताड़ना उन्हें आजादी की ओर ले जाती है।
प्रश्न 12.
क्या आपको लगता है कि यह कहानी आजादी की लड़ाई की ओर भी संकेत करती है ?
उत्तर :
हाँ, बिलकुल। यह कहानी आजादी की लड़ाई की ओर संकेत करती है। दोनों बैलों को गुलामी का जीवन पसन्द नहीं। जैसे हमारे भारतीय नागरिकों ने अंग्रेजों के खिलाफ आवाज़ उठाई। संगठित होकर हमने अंग्रेजों का बहिष्कार किया। सैंकड़ों लोगों को अंग्रेजों से प्रताड़ित होना पड़ा। किन्तु यही संघर्ष हमें आजादी की ओर ले जाता है। हीरा और मोती दोनों बैल पहले तो गया से पीछा छुड़ाने के लिए संघर्ष करते हैं, फिर साँड़ से युद्ध करते हैं, कांजीहौस में तो वे गुलामी की बेड़ी को तोड़ने का प्रयास करते हैं और अन्त में अपने मूल मालिक झूरी के पास पहुंच जाते हैं। यों यह कहानी भी आजादी की लड़ाई की ओर संकेत करती है।
प्रश्न 13.
भाषा-अध्ययन
बस इतना ही काफी है
फिर मैं भी जोर लगाता हूँ।
‘ही’, ‘भी’ वाक्य में किसी बात पर जोर देने का काम कर रहे हैं। ऐसे शब्दों को निपात कहते हैं। कहानी में से पाँच ऐसे। वाक्य छाँटिए, जिनमें निपात का प्रयोग हुआ हो।
उत्तर :
निपातयुक्त पाँच वाक्य –
‘ही’ निपात –
- एक ही विजय ने उसे संसार की सभ्य जातियों में गण्य बना दिया।
- नाद में खली-भूसा पड़ जाने के बाद वे दोनों साथ उठते, साथ नाद में मुँह डालते और साथ ही बैठते थे।
- प्रेमालिंगन और चुंबन का यह दृश्य बड़ा ही मनोहर था।
- मालकिन मुझे मार ही डालेगी।
- आहत सम्मान की व्यथा तो थी ही, उस पर मिला सूखा भूसा।
‘भी’ निपात –
- कुत्ता भी बहुत गरीब जानवर है।
- लेकिन गधे का एक छोटा भाई और भी है, जो उससे कम ही गधा है, और वह है बैल।
- जिस अर्थ में हम गधे का प्रयोग करते हैं, कुछ उसी से मिलते-जुलते अर्थ में ‘बछिया के ताऊ’ का भी प्रयोग करते हैं।
- एक मुँह हटा लेता तो दूसरा भी हटा लेता।
- झूरी उन्हें फूल की छड़ी से भी न छूता था।
प्रश्न 14.
रचना के आधार पर वाक्य भेद बताइए तथा उपवाक्य छाँटकर उसके भी भेद लिखिए :
क. दीवार का गिरना था कि अधमरे-से पड़े हुए सभी जानवर चेत उठे।
उत्तर :
वाक्यभेद – मिश्रवाक्य
प्रधान वाक्य – दीवार का गिरना था।
संज्ञा उपवाक्य (आश्रित) – अधमरे-से पड़े हुए सभी जानयर चेत उठे।
ख. सहसा एक दढ़ियल आदमी, जिसकी आँखें लाल थीं और मुद्रा अत्यंत कठोर, आया।
उत्तर :
वाक्यभेद – मिश्र वाक्य
प्रधानवाक्य – सहसा एक दढ़ियल आदमी आया।
आश्रित विशेषण उपवाक्य – जिसकी आँखें लाल थीं और मुद्रा एकदम कठोर।
ग. हीरा ने कहा – गया के घर से नाहक भागे।
उत्तर :
वाक्यभेद – मिश्र वाक्य
प्रधान वाक्य – हीरा ने कहा
आश्रित संज्ञा उपवाक्य – गया के घर से नाहक ‘भागे।
घ. मैं बेचूंगा, तो बिकेंगे।
उत्तर :
वाक्य भेद – मिश्र वाक्य
प्रधान वाक्य – बिकेंगे।
आश्रित क्रियाविशेषण उपवाक्य – मैं बेचूँगा, तो
ङ. अगर वह मुझे पकड़ता, तो मैं उसे बेमारे न छोड़ता।
उत्तर :
वाक्य भेद – मिश्र वाक्य
प्रधान वाक्य – तो मैं बे-मारे न छोड़ता। आश्रित क्रियाविशेषण उपवाक्य – अगर वह मुझे पकड़ता। गद्यांश को पढ़कर नीचे पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिजिए – दुर्योधन – बड़े निठुर हो युधिष्ठिर ! मरणोन्मुख भाई से दुराव करते तुम्हारा हृदय नहीं पसीजता। कुछ क्षणों में ही मैं इस लोक से परे पहुँच जाऊँगा।
मेरे सम्मुख यदि तुम सत्य स्वीकार कर भी लोगे तो तुम्हारे राजत्य को कोई हानि न पहुँचेगी (कराहता है) पर नहीं, मैं भूल गया, तुम तो अपने शत्रु की इस विकल मृत्यु पर प्रसन्न हो रहे होंगे। आज वह हुआ जो तुम चाहते थे, और जो मैं नहीं चाहता था। मैंने अपने सम्पूर्ण जीवन का एक-एक पल तुम्हारी महत्त्वाकांक्षा की टकराहट से बचने में लगाया। परन्तु मेरे सारे प्रयत्न निष्फल हुए, वह देखो, वह अन्धेरा बढ़ा आ रहा है।
प्रश्न 15.
कहानी में जगह-जगह मुहावरों का प्रयोग हुआ है। कोई पाँच मुहावरे छाँटिए और उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए।
पाठेतर सक्रियता
प्रश्न 1.
पशु-पक्षियों से संबंधित अन्य रचनाएँ ढूँढकर पढ़िए और कक्षा में चर्चा कीजिए।
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आशय स्पष्ट कीजिए।
प्रश्न 1.
‘उसके चेहरे पर एक विषाद स्थायी रूप से छाया रहता है।’
उत्तर :
उपर्युक्त पंक्ति के माध्यम से लेखक प्रेमचंद ने गधे की विशेषता का वर्णन किया है। संसार के सभी पशु-पक्षी अपने जीवन में आनेवाले हर्ष-विषाद को अभिव्यक्त करते हैं, किन्तु गधा एक ऐसा प्राणी है, जो हर हाल में एक जैसा रहता है। उसके चेहरे पर न तो खुशी का भाव दिखाई देता है न दुख का, न असंतोष का बस एक विषाद का रंग स्थायी रूप से उसके चेहरे पर छाया रहता है। सुख-दुःख, लाभ-हानि किसी भी दशा में उसके चेहरे के हाव-भाव को किसी ने बदलते नहीं देखा। इसीलिए प्रेमचंदजी ने उसकी तुलना ऋषि-मुनियों से की है।
प्रश्न 2.
‘झूरी इन्हें फूल की छड़ी से भी न छूता था। उसकी टिटकार पर दोनों उड़ने लगते थे।’
उत्तर :
प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से लेखक कहना चाहते हैं कि हीरा और मोती दोनों अपने मालिक के वफादार थे। जी-तोड़ मेहनत करते थे। शाम को खाने में भूसा के साथ खली, चोकर आदि भी दिया जाता। वे बड़े स्नेह के साथ खाते थे। झूरी कभी इन बैलों को मारता नहीं था अपितु स्नेह करता था। झूरी की एक आवाज पर दोनों बैल काम के लिए तत्पर रहते थे। उनकी चाल में फूर्ति आ जाती थी। वे अपने मालिक का काम बड़ी निष्ठा और लगन से करते थे।
प्रश्न 3.
‘प्रेमालिंगन और चुंबन का वह दृश्य बड़ा ही मनोहर था।।
उत्तर :
झूरी ने अपने दोनों बैलों को खेती का काम करवाने के लिए अपने साले गया को दे दिया। बैलों ने समझा कि उसके मालिक ने उन्हें बेच दिया है। रात को जब सभी लोग सो गए तब वे पगहा तुड़ाकर वापस आ गये। झूरी सुबह दोनों बैलों को चरनी पर देखा तो बड़ा खुश हो गया। बैल भी अपने मालिक को देखकर खुश हो गए। हीरा, मोती और झूरी अपने प्रेम को व्यक्त करने के लिए एकदूसरे को आलिंगन और चुंबन देने लगे। वास्तव में यह दृश्य बड़ा ही मनोहर था। हीरा और मोती अपने मालिक को तथा झूरी अपने बेलों को पाकर बहुत प्रसन्न हुए और आलिंगन तथा चुंबन से अपने प्रेम को अभिव्यक्त किया।
प्रश्न 4.
‘प्रतिक्षण उनकी चाल तेज होने लगी। सारी थकान, सारी दुर्बलता गायब हो गई।’
उत्तर :
हीरा और मोती नीलामी के बाद दढ़ियल के साथ चलने लगे। दोनों भय के मारे काँप रहे थे। अचानक उन्हें लगा कि जिस राह ये जा रहे हैं ये तो परिचित है। वही खेत, वही बाग, वही गाँव दिखाई देने लगे। अपने इलाके में आते ही हीरा और मोती की चाल तेज हो गई। उनकी सारी थकान मिट गई और दुर्बलता भी गायब हो गई। अर्थात् अपने घर की राह मिल जाने पर दोनों बैलों ने राहत की साँस ली। दढ़ियल से पीछा छुड़ाने के लिए वे शीघ्र अपने घर की ओर तेज कदमों से चलने लगे। अपने मालिक के घर का रास्ता मिलते ही उनकी सारी दुर्बलता खत्म हो गई।
अतिरिक्त प्रश्नोत्तर
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो-तीन वाक्यों में लिखिए :
प्रश्न 1.
आदमी को गधे की संज्ञा क्यों दी जाती है ?
उत्तर :
जानवरों में गधा सबसे ज्यादा बुद्धिहीन प्राणी माना जाता है। इसी प्रकार मनुष्यों में जो पहले दरजे का बेवकूफ होता है, उसे प्रतीकात्मक रूप से गधे की संज्ञा दी जाती है।
प्रश्न 2.
हीरा और मोती गया के साथ क्यों नहीं जाना चाहते थे ?
उत्तर :
हीरा और मोती अपने मालिक से बहुत प्यार करते थे। उन्हें लगा कि उनके मालिक ने उन्हें गया के हाथों बेच दिया है। इसलिए वे गया के साथ जाना नहीं चाहते थे।
प्रश्न 3.
नये स्थान पर दोनों बैलों ने क्या महसूस किया ?
उत्तर :
अपने नये स्थान यानी गया के घर पहुँचने के बाद दोनों बैलों का दिल भारी हो रहा था, दोनों ने नाँद में मुँह न लगाया, उन्हें यह महसूस हो रहा था कि जिस घर को उन्होंने अपना समझा व उनसे छूट गया था। नया घर, नये गाँव, नये आदमी सब उन्हें बेगाने लगते थे।
प्रश्न 4.
गया के घर से भागकर आये दोनों बैलों के प्रति बालकों ने क्या प्रतिक्रिया दी ?
उत्तर :
गया के घर से भागकर लौट आये दोनों बैलों का बालसभा ने तालियाँ बजाकर स्वागत किया तथा उनमें से किसी एक बालक ने कहा – ‘ऐसे बैल किसी के पास न होंगे।’ तो दूसरे ने कहा – ‘इतनी दूर से दोनों अकेले चले आये।’ तीसरे ने कहा – ‘वे उस जनम के आदमी है।’
प्रश्न 5.
झूरी की पत्नी दोनों बैलों को देखकर क्यों कुपित हो गई ?।
उत्तर :
दोनों बैल दूरी की पत्नी के भाई के घर अर्थात् उसके मायके खेतों का काम करने गये थे। दूसरे दिन ही वे बिना काम किए आ गये तो झूरी की पत्नी इन बैलों को देखकर क्रोधित हो उठी।
प्रश्न 6.
छोटी बालिका कौन थी ? उसे बैलों के साथ आत्मीयता क्यों हो गई ?
उत्तर :
छोटी बालिका भेरो की लड़की थी। उसकी माँ नहीं थी। सौतेली माँ उसे बहुत मारा पीटा करती थी। बैलों के साथ गया अत्याचार करता था। यह देखकर उसकी आत्मीयता बैलों से हो गई थी।
प्रश्न 7.
लड़की ने दोनों बैलों की सहायता कैसे की?
उत्तर :
लड़की यह जान चुकी थी कि अगली सुबह दोनों बैलों को नाथा जाएगा। इसलिए जब उसने देखा कि दोनों बैल रस्सी तोड़ने के लिए दाँतों से चबा रहे हैं तब उसने रस्सी खोल दी। इस प्रकार उसने दोनों बैलों की सहायता की।
प्रश्न 8.
गया के घर से आजाद होने पर दोनों बैलों ने क्या किया ?
उत्तर :
गया के घर से आजाद होने पर दोनों बैलों ने राहत की साँस ली रास्ते में। यहाँ से भाग निकले। मटर के खेत में चरने लगे। आजादी से उछल-कूद करने लगे। दोनों ने एकदूसरे से सींग मिलाकर ढकेलने लगे। आजादी की खुशी प्रगट करने लगे।
प्रश्न 9.
कांजीहौस का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
कांजीहौस में अनाथ मवेशियों को रखा जाता था। यहाँ बंदी पशुओं को पानी के सिवा कुछ नहीं दिया जाता था। कांजीहीस में बंद सभी पशु अधमरे हो गये थे। यहीं से बाद में उनकी नीलामी की जानी थी। वहाँ की दीवारे कच्ची मिट्टी से बनी थीं।
प्रश्न 10.
कांजीहौस में बंद जानवरों को दोनों बैलों ने कैसे बचाया ?
उत्तर :
कांजीहौस की दीवार कच्ची थी। हीरा ने सींग मारकर दीवार के ऊपरी हिस्से को तोड़ दिया। बाद में चौकीदार ने उसे बंदी बना दिया। एक मोटे रस्से से उसे बाँध दिया। उसके बाद मोती ने जोर-आजमाईश करके शेष दीवार को गिरा दी। उसमें कैदी सभी जानवर एक-एक करके भाग गये। मोती ने गधों को वहाँ से धक्का मारकर बाहर निकाला। यों दोनों बैलों ने मिलकर कांजीहौस में कैदी जानवरों को आजाद करवाने में अपना योगदान दिया।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
गया को दोनों बैलों ने कैसे परेशान किया ?
उत्तर :
झूरी ने एक बार दोनों बैलों को ससुराल भेज दिया। गया उन्हें लेने आया था। बैलों ने समझा कि मालिक ने हमें बेच दिया है तो उन्हें बड़ी ठेस पहुँची। गया को रास्ते में दोनों ने खूब परेशान किया। गया पीछे से हाँकता तो दोनों दाएँ-बाएँ भागते, पगहिया पकड़कर आगे से खींचता तो दोनों पीछे से जोर लगाते। गया उन्हें मारता तो दोनों सींग नीचे करके हुँकारते।
नयी जगह जाकर दोनों ने कुछ खाया-पीया नहीं। रात को जब सभी सो गये तो दोनों पगहा छुड़ाकर फिर अपने मूल मालिक झूरी के घर आ पहुँचे। दूसरी बार जब गया उन्हें अपने घर ले गया और खेतों में काम करवाना चाहा तब गया मारते-मारते थक गया किन्तु दोनों ने पाँव नहीं उठाया। इस प्रकार दोनों बैलों ने गया को खूब परेशान किया।
प्रश्न 2.
मोती का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर :
मोती झूरी काछी का बैल है। वह पछाई जाति का ऊँचे कद का है। हीरा के साथ उसकी घनिष्ठ मित्रता है। मोती स्वभाव से उग्र था किन्तु हीरा दयालु प्रकृति का था। वह अपने मालिक की सेवा करने के लिए सदैव तत्पर रहता था। मोती अत्याचार को सहन नहीं करता था। जब जरूरत पड़ती तो वह अत्याचार का खुलकर विरोध करता है। गया ने हीरा की नाक पर जब डंडा मारा तो, मोती का गुस्सा काबू के बाहर हो गया, वह हल लेकर भागा। जिसके कारण, हल, रस्सी, जोत सब टूट गये।
हीरा को कोई कष्ट पहुँचाये वह मोती बरदास्त नहीं कर सकता। संकट में मित्र की मदद करना मोती के चरित्र की सबसे बड़ी विशेषता है। मोती में परोपकार की भावना भी है। कांजीहौस में बंदी जानवरों को आजाद कराने में उसकी अहम् भूमिका रही। यो मोती एक सच्चा मित्र है, कांजीहौस में जब हीरा की रस्सी नहीं खुलती तो अन्य जानवरों के साथ भागने के बजाय संकट की घड़ी में अपने मित्र का साथ देता है। मोती के चरित्र में अनेक मानवीय संवेदनाएँ भरी पड़ी है। वह उग्र, दयालु, परोपकारी एवं सच्चा मित्र है।
प्रश्न 3.
हीरा और मोती दोनों में से कौन अधिक सहनशील है ? उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर :
हीरा और मोती दोनों बैलों में से हीरा अधिक सहनशील है। ऐसे कई अवसर आये हैं, जब हीरा ने सहनशीलता से काम लिया है। मोती जब मालकिन को उठाकर फेंकने की बात करता है तब हीरा मोती को समझाता है कि ‘औरत जात पर सींग चलाना मना है।’ गया के घर से आजाद होने पर जब उछल-कूद कर रहे थे तब मोती ने हीरा को कई कदम पीछे ठेल दिया।
यहाँ तक कि हीरा खाई में गिर गया। उसे क्रोध तो बहुत आया किन्तु सहनशील होने के कारण उसने मोती से बदला नहीं लिया और फिर मोती से मिल गया। साँड़ को घायल करने के बाद हीरा ने मोती को समझाया कि गिरे हुए बैरी पर सींग न चलाना चाहिए। मोती को संकट में फंसा देख हीरा भी उसके पास आ जाता है। दोनों को कांजीहौस में बंद कर दिया जाता है। हीरा मोती का वहाँ ढाँढस बंधयाता है कि इतनी जल्दी हिम्मत न हारो। दीवार को तोड़ने की शुरुआत भी हीरा ही करता है।
चौकीदार उसे देख लेता है और मोटी रस्सी से उसे बाँध देता है। दढ़ियल के साथ जाते समय परिचित मार्ग के आने पर मोती दढ़ियल को मारने के लिए कहता है उस समय भी हीरा मना करता है और थान पर चलने के लिए कहता है। उपरोक्त घटनाओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि हीरा मोती से अधिक सहनशील था।
प्रश्न 4.
‘दो बैलों की कथा के आधार पर सिद्ध कीजिए कि एकता में बल है।’
उत्तर :
दो बैलों की कथा मुंशी प्रेमचंद द्वारा रचित कहानी है। इस पाठ में ऐसे कई प्रसंग आये हैं, जिनमें दोनों बैलों ने एकजुट होकर सामने आई स्थिति का सामना किया है। उसमें विजयी भी हुए। गया जब पहली बार उन्हें अपने घर ले जाता है तो दोनों ने मिलकर उसे खूब परेशान किया। आपसी सूझबूझ से दोनों रात्रि में यहाँ से भाग आये। अपने से भारी भरकम शक्तिशाली साँड़ को पराजित करते हैं।
साँड़ से बचना मुश्किल था किन्तु दोनों ने सलाह कि यदि साँड़ एक पर यार करें तो दूसरे को उसके पेट में सींग मारना है। यह एकता ही परिणाम है। दोनों बैल आपसी समझ और संगठित होकर साँड़ को भी घायल करने में सफल हो जाते हैं। यह भी एकता है। कांजीहौस में दोनों बैलों ने मिलकर दीवार तोड़ दी। यहाँ के अन्य पशुओं को भी आजाद करवा दिया। दढ़ियल को भी अपनी सूझबूझ से भगा दिया था। यों दोनों मित्रों ने आनेवाली हर मुसीबत का सामना मिलजुलकर किया और उसमें विजयी भी हुए। इस प्रकार दो बैलों की कथा यह सिद्ध करती है कि एकता में बल है।
प्रश्न 5.
‘दो बैलों की कथा के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि जानवरों में भी मानवीय संवेदनाएँ होती है।’
उत्तर :
जानवरों में भी मानवीय संवेदनाएँ होती हैं। कई प्रसंगों पर वे मनुष्य की तरह ही व्यवहार करते हैं। मनुष्य जब जानवरों को पालते हैं तो ये अपने मालिक के प्रति वफादार हो जाते हैं। उनकी मानवीय संवेदनाएँ दिन-प्रतिदिन के व्यवहार में व्यक्त होने लगती हैं। हीरा और मोती कई वर्षों से साथ में रहते-रहते उनमें भाईचारा हो गया था। दोनों की मित्रता बहुत घनिष्ट थी। एकदूसरे को सूंघ-चाटकर आपसी प्रेम व्यक्त करते थे।
वे गया के साथ नहीं जाना चाहते। अपने मालिक के यहाँ मरने के तैयार हैं। वे बालिका के पिता को चोट इसलिए नहीं पहुँचाना चाहते क्योंकि वह अनाथ हो जाएगी। वे उसके रोटी के मोल को अच्छी तरह जानते थे। नारी जाति के प्रति भी बैलों के अंदर सम्मान की भावना है। स्त्री पर वार करना वे कायरता समझते हैं। अपने जातिबंधु को गुलामी से मुक्त करवाने का साहसपूर्ण कार्य करते हैं।
विपत्ति के समय में एकदूसरे का साथ न छोड़कर सच्चे मित्र का उदाहरण बनते हैं। अपने मालिक के घर पहुँचते ही दढ़ियल को गाँव से बाहर खदेड़ देते हैं। यों पूरी कहानी में दोनों बैलों ने इस प्रकार व्यवहार किया है जैसे कोई मनुष्य करता हो। यों जानवरों में भी मानवीय संवेदनाएँ होती हैं।
बहुविकल्पी उत्तर
प्रश्न 1.
साँड़ को देखकर दोनों बैलों ने क्या निश्चय किया ?
(क) उस पर दोनों जने एक साथ चोट करें।
(ख) दोनों जन जान बचाकर भाग जाये।
(ग) उससे आरजू और विनती करेंगे।
(घ) दोनों मल्लयुद्ध करें।।
उत्तर :
(क) उस पर दोनों जने एक साथ चोट करें।
प्रश्न 2.
गया के घर दोनों बैलों के विषय में क्या सलाह हो रही थी ?
(क) बैलों को उनके घर जाने दिया जाय।
(ख) बैलों को आजाद कर दिया जाय।
(ग) इनकी नाकों में नाथ डाल दी जाय।
(घ) बैलों की खूब मरम्मत की जाय।
उत्तर :
(ग) इनकी नाकों में नाथ डाल दी जाय।
प्रश्न 3.
साँड़ को घायल करने के बाद दोनों बैलों ने साँड़ को क्या किया ?
(क) उसे जान से मार दिया।
(ख) उसे छोड़ दिया।
(ग) दूर तक पीछा करने के बाद जब वह वेहम होकर गिर पड़ा तब दोनों ने उसे छोड़ दिया।
(घ) उससे दोस्ती कर ली।
उत्तर :
(ख) उसे छोड़ दिया।
प्रश्न 4.
हीरा का उजड्डुपन देखकर चौकीदार ने क्या किया ?
(क) उसने उसको छोड़ दिया।
(ख) उसे कई डंडे रसीद किए और मोटी-सी रस्सी से बाँध दिया।
(ग) वहाँ से भाग खड़ा हुआ।
(घ) ऊपरी अधिकारी को सूचित किया।
उत्तर :
(ख) उसे कई डंडे रसीद किए और मोटी-सी रस्सी से बाँध दिया।
प्रश्न 5.
अधमरे-से पड़े हुए सभी जानवर चेत उठे, क्योंकि
(क) चौकीदार उन सबके लिए खाना लाया था।
(ख) दोनों बैलों ने मिलकर दीवार गिरा दी थी।
(ग) उन्हें लगा कि दीवार गिर गई है और अब वे मुक्त हो सकते हैं।
(घ) वहाँ चारों ओर रोशनी फैल गई थी।
उत्तर :
(ग) उन्हें लगा कि दीवार गिर गई है और अब ये मुक्त हो सकते हैं।
प्रश्न 6.
भय के मारे दोनों बैल गिरते-पड़ते भागे जाते थे क्योंकि
(क) दढ़ियल चाल धीमी होने पर जोर से इंडा जमा देता था।
(ख) उन्हें रास्ते का बिलकुल भी ज्ञान न था।
(ग) वे दढ़ियल के साथ जाना नहीं चाहते थे।
(घ) ये परिचित रास्ते पर आ गये थे।
उत्तर :
(क) चाल धीमी होने पर दढ़ियल जोर से डंडा जमा देता था।
मेरे जीवन की अन्तिम साँझ।
प्रश्न 1.
मैं इस लोक के परे पहुँच जाऊँगा दुर्योधन ने ऐसा क्यों कहा ?
उत्तर :
दुर्योधन मरणोन्मुख था और इस दुनिया से परलोक में जा रहा है इसलिए दुर्योधन ने ऐसा कहा।
प्रश्न 2.
किसके राजत्व को कोई हानि नहीं होगी ?
उत्तर :
युधिष्ठिर के राजत्व को कोई हानि नहीं होगी।
प्रश्न 3.
दुर्योधन किसकी महत्त्वाकांक्षा की टकराहट से बचने में लगाया ?
उत्तर :
दुर्योधन युधिष्ठिर की महत्त्वाकांक्षा की टकराहट से बचने में लगाया।
प्रश्न 4.
दुर्योधन के सारे प्रयत्नों का क्या परिणाम आया ?
उत्तर :
दुर्योधन के सारे प्रयत्न व्यर्थ गए।
प्रश्न 5.
दुर्योधन की मृत्यु पर कौन प्रसन्न होगा ?
उत्तर :
दुर्योधन की मृत्यु पर युधिष्ठिर प्रसन्न होगा।
अति लघूत्तरी प्रश्न (विकल्प सहित)
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दिए गये विकल्पों में से सही उत्तर चुनकर लिखिए :
प्रश्न 1.
जानवरों में सबसे बुद्धिहीन प्राणी किसे माना जाता है ?
(क) गाय
(ख) बैल
(ग) कुत्ता
(घ) गधा
उत्तर :
(घ) गधा
प्रश्न 2.
झूरी काठी के दोनों बैल किस जाति के थे ?
(क) पछाई
(ख) पूरबी
(ग) दखिनी
(घ) जरसी
उत्तर :
(क) पछाई जाति
प्रश्न 3.
झूरी की पत्नी किसको देखकर जल उठी ?
(क) अतिथि को
(ख) पड़ौसी को
(ग) दुश्मन को
(घ) दोनों बैलों को
उत्तर :
(घ) दोनों बैलों को
प्रश्न 4.
साँड को किस बात का तजुरबा नहीं था ?
(क) चारा खाने का
(ख) खेत में लोटने का
(ग) संगठित शत्रुओं से लड़ने का
(घ) भागने का
उत्तर :
संगठित शत्रुओं से लड़ने का
प्रश्न 5.
कांजीहौस में जानवरों की हाजिरी लेने कौन आया ?
(क) अफसर
(ख) गाँव का आदमी
(ग) पुलिस
(घ) चौकीदार
उत्तर :
(घ) चौकीदार
अर्थबोध – संबंधी प्रश्न
सुख-दुख, हानि-लाभ, किसी भी दशा में उसे बदलते नहीं देखा। ऋषियों – मुनियों के जितने गुण हैं वे सभी उसमें पराकाष्ठा को पहुँच गए हैं; पर आदमी उसे बेवकूफ कहता है। सद्गुणों का इतना अनादर कहीं नहीं देखा। कदाचित सीधापन संसार के लिए उपयुक्त नहीं है। देखिए न, भारतवासियों की अफ्रीका में क्या दुर्दशा हो रही है ? क्यों अमरीका में उन्हें घुसने नहीं दिया जाता ? बेचारे शराब नहीं पीते, चार पैसे कुसमय के लिए बचाकर रखते हैं, जी तोड़कर काम करते हैं, किसी से लड़ाईझगड़ा नहीं करते, चार बातें सुनकर गम खा जोते हैं फिर भी बदनाम हैं। कहा जाता है, वे जीवन के आदर्श को नीचा करते हैं। अगर वे भी ईट का जवाब पत्थर से देना सीख जाते तो शायद।
प्रश्न 1.
ऋषि मुनियों के गुण किसमें पाये जाते है ?
उत्तर :
ऋषि मुनियों के गुण गधे में पाये जाते हैं।
प्रश्न 2.
भारतवासियों की दुर्दशा क्यों हो रही है ?
उत्तर :
भारतवासी पूरी दुनिया में सबसे सीधे हैं। उनके सीधेपन के कारण लोग उन्हें परेशान करने में कोई कसर नहीं छोड़ते। उन्हें अफ्रीका और अमरीका में घूमने नहीं दिया जाता।
प्रश्न 3.
भारतवासियों की क्या विशेषता है ?
उत्तर :
भारतवासी जी-तोड़ मेहनत करते हैं, किसी से लड़ाई झगड़ा नहीं करते। चार बातें सुनकर गम खा जाते हैं। सहिष्णु तथा सहनशील हैं।
प्रश्न 4.
इंट का जवाब पत्थर से देना मुहावरे का वाक्य में प्रयोग कीजिए।
उत्तर :
राणा प्रताप के सैनिकों ने मुगल सेना को ईंट का जवाब पत्थर से दिया।
दोनों आमने-सामने या आस-पास बैठे हुए एक-दूसरे से मूक-भाषा में विचार-विनिमय करते थे। एकदूसरे के मन की बात कैसे समझ जाता था, हम नहीं कह सकते। अवश्य ही उनमें कोई ऐसी गुप्त शक्ति थी, जिससे जीवों में श्रेष्ठता का दावा करने वाला मनुष्य वंचित है। दोनों एक-दूसरे को चाटकर और सूंघकर अपना प्रेम प्रकट करते, कभी-कभी दोनों सींग भी मिला लिया करते थे – विग्रह के नाते से नहीं, केवल विनोद के भाव से, आत्मीयता के भाव से, जैसे दोस्तों में घनिष्ठता होते ही धोल-धप्पा होने लगता है।
इसके बिना दोस्ती कुछ फुसफुसी, कुछ हलकी-सी रहती है, जिस पर ज्यादा विश्वास नहीं किया जा सकता। जिस वक्त ये दोनों बैल हल या गाड़ी में जोत दिए जाते और गरदन हिला-हिलाकर चलते, उस वक्त हर एक की यही चेष्टा होती थी कि ज़्यादा-से-ज्यादा बोझ मेरी ही गरदन पर रहे। दिन-भर के बाद दोपहर या संध्या को दोनों खुलते, तो एक-दूसरे को चाट-चूटकर अपनी थकान मिटा लिया करते। नाँद में खली-भूसा पड़ जाने के बाद दोनों साथ उठते, साथ नाँद में मुँह डालते और साथ ही बैठते थे। एक मुँह हटा लेता तो दूसरा भी हटा लेता था।
प्रश्न 1.
दोनों बैल किस भाषा में विचार-विनिमय करते थे ?
उत्तर :
दोनों बैल मूकभाषा में विचार-विनिमय करते थे।
प्रश्न 2.
हीरा और मोती अपना प्रेम कैसे प्रकट करते थे ?
उत्तर :
हीरा और मोती दोनों में गजब की मित्रता थी। दोनों एक दूसरे को चाटकर, सूंघकर और कभी सींग मिलाकर अपना प्रेम प्रकट करते थे।
प्रश्न 3.
हल में जुतने के बाद दोनों बैलों की क्या चेष्टा रहती ?
उत्तर :
हल में जुतने के बाद दोनों बैलों की यही चेष्टा रहती कि ज्यादा से ज्यादा बोझ अपने कंधों पर रहे। ताकि साथी मित्र पर भार कम हो।
प्रश्न 4.
घनिष्ठता और श्रेष्ठता शब्द में से प्रत्यय अलग कीजिए।
उत्तर :
घनिष्ठ + ता तथा श्रेष्ठ + ता।
झूरी प्रात:काल सोकर उठा, तो देखा कि दोनों बैल चरनी पर खड़े हैं। दोनों की गरदनों में आधा-आधा गराँव लटक रहा है। घुटने तक पाँव कीचड़ से भरे हैं और दोनों की आँखों में विद्रोहमय स्नेह झलक रहा है। झूरी बैलों को देखकर स्नेह से गद्गद हो गया। दौड़कर उन्हें गले लगा लिया। प्रेमालिंगन और चुंबन का वह दृश्य बड़ा ही मनोहर था। घर और गाँव के लड़के जमा हो गए और तालियाँ बजा-बजाकर उनका स्वागत करने लगे। गाँव के इतिहास में यह घटना अभूतपूर्व न होने पर भी महत्त्वपूर्ण थी। बाल-सभा ने निश्चय किया, दोनों पशु-वीरों को अभिनंदन-पत्र देना चाहिए। कोई अपने घर से रोटियाँ लाया, कोई गुड़, कोई चोकर, कोई भूसी।
प्रश्न 1.
प्रातःकाल झूरी ने क्या देखा ?
उत्तर :
प्रातःकाल उठकर झूरी ने देखा कि दोनों बैल चरनी पर खड़े हैं। दोनों की गरदन में आधा-आधा गराँव लटक रहा है तथा घुटने तक पाँव कीचड़ से सने हैं।
प्रश्न 2.
बाल सभा ने दोनों बैलों का स्वागत कैसे किया ?
उत्तर :
दोनों बैलों को आया देख बालसभा ने तालियाँ बजाकर उनका स्वागत किया। फिर अपने- अपने घरों से कोई रोटियाँ, कोई गुड़, कोई चोकर तो कोई भूसी लाकर दोनों बैलों को खिलाया।
प्रश्न 3.
बैलों को देखकर झूरी ने क्या किया ?
उत्तर :
बैलों को देखकर झूरी स्नेह से गद्गद हो गया। दौड़कर उन्हें गले से लगा लिया। तीनों ने एकदूसरे को आलिंगन और चुंबन
दिया।
प्रश्न 4.
प्रेमालिंगन तथा स्वागत शब्द का संधि विच्छेद कीजिए।
उत्तर :
प्रेमालिंगन → प्रेम + आलिंगन, स्वागत – सु + आगत।
दोनों मित्रों को जीवन में पहली बार ऐसा साबिका पड़ा कि सारा दिन बीत गया और खाने को एक तिनका भी न मिला। समझ ही में न आता था, यह कैसा स्वामी है। इससे तो गया फिर भी अच्छा था। यहाँ कई भैंसें थीं, कई बकरियाँ, कई घोड़े, कई गधे पर किसी के सामने चारा न था, सब ज़मीन पर मुरदों की तरह पड़े थे। कई तो इतने कमज़ोर हो गए थे कि खड़े भी न हो सकते थे।
सारा दिन दोनों मित्र फाटक की ओर टकटकी लगाए ताकते रहे; पर कोई चारा लेकर आता न दिखाई दिया। तब दोनों ने दीवार की नमकीन मिट्टी चाटनी शुरू की, पर इससे क्या तृप्ति होती ? रात को भी जब कुछ भोजन न मिला, तो हीरा के दिल में विद्रोह की ज्वाला दहक उठी। मोती से बोला – अब तो नहीं रहा जाता मोती!
प्रश्न 1.
दोनों मित्रों को जीवन में पहलीबार सारा दिन कैसा पड़ा ?
उत्तर :
दोनों मित्रों को जीवन में पहली बार सारा दिन बीत जाने पर भी एक तिनका नसीब न हुआ।
प्रश्न 2.
कांजीहौस में पशुओं की क्या दशा थी ?
उत्तर :
कांजीहौस में सारे पशु मुरदों की भाँति पड़े रहते थे। कई तो इतने कमजोर हो गये थे कि खड़े भी न हो सकते थे।
प्रश्न 3.
चारा न मिलने पर दोनों मित्रों ने क्या किया ?
उत्तर :
चारा न मिलने पर दोनों मित्रों ने दीवार की नोना (नमकीन) मिट्टी चाटनी शुरू की। पर इससे उनकी भूख शांत नहीं हुई।
प्रश्न 4.
तृप्ति तथा विद्रोह शब्द का विलोम शब्द लिखिए।
उत्तर :
तृप्ति × अतृप्ति
विद्रोह × समर्थन।
एक सप्ताह तक दोनों मित्र वहाँ बँधे पड़े रहे। किसी ने चारे का एक तृण भी न डाला। हाँ, एक बार पानी दिखा दिया जाता था। यही उनका आधार था। दोनों इतने दुर्बल हो गए थे कि उठा तक न जाता था, ठठरियाँ निकल आई थीं। एक दिन बाड़े के सामने डुग्गी बजने लगी और दोपहर होते-होते वहाँ पचास-साठ आदमी जमा हो गए। तब दोनों मित्र निकाले गए और उनकी देखभाल होने लगी। लोग आ-आकर उसकी सूरत देखते और मन फीका करके चले जाते। ऐसे मृतक बैलों का कौन खरीदार होता ?
प्रश्न 1.
दोनों बैल एक सप्ताह तक कहाँ थे ?
उत्तर :
दोनों बैल एक सप्ताह तक कांजीहौस में बंधे रहे।
प्रश्न 2.
नीलामी के लिए आये आदमियों ने इन बैलों को क्यों नहीं खरीदा ?
उत्तर :
कांजीहौस में बैलों को खाने के लिए चारा-पानी नहीं दिया जाता था। इसलिए ये बैल अत्यंत कमजोर हो गये थे। उनकी ठठरियाँ निकल आई थी। आदमियों को लगा होगा कि इन बैलों से कोई काम न हो सकेगा इसलिए उन्होंने नहीं खरीदा।
प्रश्न 3.
कांजीहौस के सामने एक दिन डुग्गी क्यों बजने लगी ?
उत्तर :
दोनों बैलों की नीलामी करनी थी। लोग उसे खरीदने के लिए आये लोगों को इस नीलामी के बारे में पता चले, इसलिए वहाँ डुग्गी बजने लगी थी।
प्रश्न 4.
सप्ताह और दोपहर का सामासिक विग्रह करके प्रकार लिखिए :
उत्तर :
सप्ताह → सात दिनों का समाहार – द्विगु समास
दोपहर → दो पहरों का समाहार – द्विगु समास
नीलाम हो जाने के बाद दोनों मित्र उस दढ़ियल के साथ चले। दोनों की बोटी-बोटी काँप रही थी। बेचारे पाँव तक न उठा सकते थे, पर भय के मारे गिरते-पड़ते भागे जाते थे; क्योंकि वह ज़रा भी चाल धीमी हो जाने पर ज़ोर से डंडा जमा देता था। राह में गाय-बैलों का एक रेवड़ हरे-हरे हार में चरता नज़र आया। सभी जानवर प्रसन्न थे, चिकने, चपल। कोई उछलता था, कोई आनंद से बैठा पागुर करता था।
कितना सुखी जीवन था इनका; पर कितने स्वार्थी हैं सब। किसी को चिंता नहीं कि उनके दो भाई बधिक के हाथ पड़े कैसे दुखी हैं। सहसा दोनों को ऐसा मालूम हुआ कि यह परिचित राह है। हाँ, इसी रास्ते से गया उन्हें ले गया था। यही खेत, वही बाग, वही गाँव मिलने लगे। प्रतिक्षण उनकी चाल तेज़ होने लगी। सारी थकान, सारी दुर्बलता गायब हो गई। आह ? यह लो ! अपना ही हार आ गया। इसी कुएँ पर हम पुर चलाने आया करते थे, यही कुआँ है।
प्रश्न 1.
दोनों बैल डर के मारे क्यों काँप रहे थे ?
उत्तर :
दोनों बैलों की चाल ज़रा-सी धीमी पड़ने पर दढ़ियल उन्हें जोर से डंडा जमा देता था इसलिए डर के मारे दोनों बैल काँप रहे थे। दढ़ियल को देखकर उन्हें ऐसा लगा कि वह उन्हें कसाईखाने ले जा रहा है।
प्रश्न 2.
राह में गाय-बैलों का झुण्ड क्या करता था ?
उत्तर :
राह में गाय-बैलों के झुण्ड हरी-हरी घास चरते थे। कोई प्रसन्न था, कोई उछलता था, कोई आनंद से बैठकर पागुर करता था। बड़ा सुखमय जीवन था उन सभी का।
प्रश्न 3.
सहसा दोनों बैलों को कैसे मालूम हुआ कि यह रास्ता परिचित है ? उसका क्या परिणाम हुआ ?
उत्तर :
सहसा दोनों बैलों को इस तरह मालूम हुआ कि यह परिचित राह है क्योंकि इसी रास्ते से गया उन्हें ले गया था। वही ख्नेत, वही बाग, यही गाँव मिलने। उसका यह परिणाम हुआ कि प्रतिक्षण उनकी चाल तेज हो गई और सारी दुर्बलता गायब हो गई।
प्रश्न 4.
रेवड़ तथा पागुर शब्द का अर्थ लिखिए।
उत्तर :
रेवड़ – समूह
पागुर – जुगाली
दो बैलों की कथा Summary in Hindi
युग प्रवर्तक साहित्यकार मुंशी प्रेमचंदजी का जन्म वाराणसी के निकट लमही नामक गाँव में हुआ था। इनका बचपन का नाम धनपतराय था। पाँच वर्ष की उम्र में माता का और चौदह वर्ष की उम्र में पिता का अवसान हो जाने के कारण अनेक अभावों के बीच जिन्दगी की लड़ाई उन्होंने अकेले ही लड़ी। स्वाधीनता आंदोलन में शरीक होने के कारण उन्होंने सरकारी नौकरी तक छोड़ दी और अपना पूरा समय लेखन के लिए समर्पित कर दिया।
प्रेमचंदजी ने एक दर्जन से भी अधिक उपन्यास और तीन सौ से भी अधिक कहानियाँ लिखकर हिन्दी कथा साहित्य को एक नई दिशा दी। वे स्वयं गाँव में जन्में और पले-पढ़े थे, अतः भारतीय ग्राम जीयन ने सुख-दुख, शोषण-उत्पीड़न की यथार्थ तस्वीर अपनी कथाकृतियों में अंकित करने में सफल हुए। भारतीय जन-जीवन की प्रायः सभी समस्याओं का संवेदनापूर्ण चित्रण उनकी कृतियों में हुआ है।
इसलिए उन्हें समस्या मूलक कथाकार कहा गया। उनकी कहानियाँ ‘मानसरोवर’ के आठ भागों में संकलित हैं। सेवासदन, प्रेमाश्रम, कर्मभूमि, रंगभूमि, निर्मला, राबन और गोदान उनके प्रमुख उपन्यास हैं। उनकी भाषा पात्र, प्रसंग और परियेश के अनुसार, सरल-सहज एवं मुहावरेदार होती है। बोलचाल की हिन्दी तथा उर्दू का उसमें सुमेल है।
प्रस्तुत कहानी प्रेमचंद की श्रेष्ठ कहानियों में से एक है। इस कहानी के माध्यम से प्रेमचंदजी ने मालिक और पशुओं के भावात्मक संबंध को अभिव्यक्त किया है। अपने मालिक से अलग होने के बाद दोनों बैल गुलामी का जीवन जीते हैं। गुलामी पशुओं को भी स्वीकार नहीं। अतः दोनों बैल स्वतंत्र होने का संघर्ष करते हैं, असफल होते हैं, किन्तु बार-बार के प्रयास से अततः दोनों कामयाब हो जाते हैं। यह कहानी अंग्रेजों से स्वतंत्र होने की भावना की ओर भी इंगित करती है।
पाठ का सार :
जानवरों में सबसे सीधा प्राणी गधा :
प्रेमचंद के अनुसार समस्त प्राणियों में गधा सबसे सीधा और बेवकूफ प्राणी माना जाता है। उसके सीधेपन के कारण ही लोग उसे बुद्धिहीन समझते हैं। गाय सींग मारती हैं, ब्याई हुई गाय तो सिंहनी का रूप धारण करती है। कुत्ता भी बहुत गरीब जानवर है। लेकिन यह भी कभी-कभी अपने क्रोध को व्यक्त करता है। लेकिन गधा कभी क्रोध नहीं करता।
उसको जितना मारो, चाहे जैसी खराब, सड़ी घास सामने डाल दो उसके चेहरे पर कभी असंतोष दिखाई नहीं देगा। न कभी वह खुश होता है न उसके चेहरे पर कभी विषाद की रेखा दिखाई देती है। हर ऋतु और हर समय यह एक जैसा होता है। उसमें ऋषि-मुनियों के गुण होते हैं। लेकिन मनुष्य उसे बेवकूफ कहता है।
गधे का एक छोटा भाई है बैल। जिस अर्थ में हम गधे का प्रयोग करते हैं, उसके मिलते-जुलते अर्थ में हम बैल का प्रयोग करते हैं, किन्तु कभी-कभी बैल मारता है, असंतोष प्रकट करता है। इसलिए उसका स्थान गधे के बाद ही आता है।
हीरामोती दो बैलों की जोड़ी:
कृषक झूरी के पास दो बैल थे जिनका नाम हीरा और मोती था। दोनों पछाई जाति के थे। देखने में सुंदर, काम में सतर्क और हृष्टपुष्ट थे। काफी वर्षों से साथ में रहने के कारण दोनों में दोस्ती हो गई थी। मूक-भाषा में दोनों वार्तालाप करते थे। दोनों एकदूसरे के मन की बात समझ जाते थे। ये दोनों कभी एकदूसरे को चाटकर कभी सूंघकर अपना प्रेम प्रकट करते थे।
तो कभीकभी विनोदभाव से सिंग भी मिला लिया करते थे। दोनों मित्रों में बड़ी घनिष्ठता थी। जब दोनों बैलों को हल या गाड़ी में जोता जाता तो दोनों की कोशिश ये होती कि ज्यादा भार अपनी गरदन पर हो। दिनभर काम करने के बाद दोपहर या संध्या को उन्हें खोला जाता था। एकदूसरे को चाटकर अपनी थकान मिटा लिया करते थे। दोनों एक साथ खाते और एक के न खाने पर दूसरा भी अपना मुँह हटा लेता।
झूरी की ससुराल में दोनों बैल :
एक बार झरी ने खेतों में काम करने के लिए दोनों बैलों को अपनी ससुराल भेज दिया। बैलों ने समझा कि उन्हें बेच दिया गया है। उन्हें यह अच्छा नहीं लगा। दोनों बैलों ने झूरी के साले गया की नाक में दम ला दिया। दोनों कभी दायें-बाये भागते तो कभी गया आगे से पगहिया पकड़ता तो दोनों पीछे से जोर लगाते। गया उन्हें मारता तो दोनों सींग नीचे करके हुँकारते। यदि ईश्वर ने उन्हें वाणी दी होती तो दोनों झूरी से पूछते कि उन्होंने ऐसा क्यों किया ? हमने तो तुम्हारी सेवा में कोई कसर न बाकी रखी थी। जो कुछ तुमने खिलाया हमने खा लिया, हमने कोई शिकायत नहीं की फिर तुमने हमें इस जालिम के हाथों क्यों बेच दिया ?
संध्या के समय दोनों बैल अपने नये स्थान पर पहुँचे। दिनभर के भूखे थे पर दोनों ने नाद में मुँह नहीं लगाया। उन्हें नया घर, नया आदमी सब बेगाने लगते थे। दोनों ने सलाह की और रात को जब सभी सो गए तो रस्सी तुड़ाकर वहाँ से भाग निकले। झूरी ने प्रातःकाल देख्ना कि दोनों बैल चरनी पर खड़े है तो उन्हें देखकर गद्गद हो गया। किन्तु झूरी की पत्नी को यह अच्छा नहीं लगा।
गाँव की बाल-मंडली ने दोनों बैलों के इस कारनामे की बड़ी प्रशंसा की। कोई अपने घर से रोटियाँ लाया, कोई गुड़, कोई चोकर, कोई भूसी। झूरी की पत्नी ने दोनों बैलों को नमकहराम होने का आरोप लगाया और निश्चय किया कि सूखे भूसे के सिवा कुछ खाने को नहीं देगी। बैलों को खली, आदि नहीं मिला, उन्हें खाना आज नीरस प्रतीत हुआ।
अगले दिन झूरी का साला गया फिर आया और दोनों को गाड़ी में जोतकर ले गया। दो चार बार मोती ने गाड़ी को खाई में गिराना चाहा, किन्तु हीरा ने संभाल लिया। दोनों बैलों को गया ने रास्ते में खूब मारा और घर लाकर सूखा भोजन दे दिया। उसने बैलों को हल में जोता पर दोनों ने पाँच नहीं उठाया। वह मारते मारते थक गया। दोनों ने एक बार फिर भागने की चेष्टा की किन्तु रस्सी की वजह से पकड़ में आ गये। दोनों मित्र आपस में बातें करते थे कि बैल का जन्म लिया है तो मार सहनी ही पड़ेगी।
गया के घर पर एक लड़की थी, जो उन्हें दो रोटियाँ दे जाती थी। दोनों बैलों को उससे आत्मीयता हो गई थी। अन्ततः इस गुलामी भरे जीवन से छुटकारा पाने के लिए दोनों ने फिर प्रयास किया। अबकी बार, लड़की ने गाँठे खोल दी। दोनों बैल यहाँ से फिर भाग निकले। गया ने उनका पीछा किया किन्तु वे दोनों वहाँ से भाग निकले खेत में मटर की फसल से दोनों ने अपना पेट भरा। मस्त होकर दोनों उछलने कूदने लगे।
साँड़ से मुकाबला और कांजीहौस में बंदी :
दोनों बैलों ने देखा कि एक साँड़ उनकी तरफ चला आ रहा है। साँड़ से बचना मुश्किल था। दोनों ने निश्चय किया कि मिलकर वार करेंगे। एक को सांड़ मारेगा तो दूसरा वार करेगा। यो साँड़ एकबार हीरा का अंत करने के लिए वार करने आया तभी बगल से आकर मोती ने उसके पेट में सींग भोंक दिया यो साँड़ बेचारा घायल होकर वहाँ से भागा।
दोनों मित्र नशे में चूर थे। और आपस में वार्तालाप करने लगे कि बैरी को ऐसे सींग न मारना चाहिए। सामने मटर का ख्नेत था। हीरा के मना करने पर भी मोती उसमें घुस गया। अभी दो ही ग्रास खाये थे कि दो आदमी लाठी लेकर दौड़ पड़े और दोनों मित्र को पकड़ लिया। हीरा मेंड़ पर था वह निकल गया लेकिन मोती सींचे हुए खेत के भीतर कीचड़ में फँस गया। हीरा ने देखा साथी संकट में है तो लौट आया। इस प्रकार दोनों बंदी बना लिए गये और कांजीहौस में बंदकर दिए गये।
कांजीहौस में गुलामी और संघर्ष की कथा :
दोनों मित्रों के जीवन में पहली बार ऐसा हुआ कि खाने को एक तिनका न मिला। अब उन्हें गया अच्छा लगा, कम से कम वह रुखा-सूखा खाना तो देता था। यहाँ अन्य कई जानवर थे जो मुरदे की तरह पड़े थे। दोनों मित्र चारे के लिए टकटकी लगाये रहते परन्तु यहाँ कोई उनकी देखभाल करनेवाला नहीं था। भोजन न मिलने पर हीरा के भीतर विद्रोह की ज्वाला भड़क उठी। दोनों यहाँ से बाहर निकलने का उपाय सोचने लगे। दीवार कच्ची थी।
हीरा ने अपने नुकीले सींग दीवार में गड़ा दिए और मिट्टी का एक भाग निकल आया तो हीरा का साहस बढ़ा। दौड़-दौड़कर दीवार पर चोंट की। थोड़ी-थोड़ी मिट्टी गिरने लगी। उसी समय कांजीहीस का चौकीदार जानवरों की हाजिरी लेने आया। हीरा का उजड्डपन देखकर उसने कई डंडे मारे और मोटी रस्सी से बाँध दिया। मोती ने कहा कि आखिर मार खाई, क्या मिला।
किन्तु हीरा ने हिम्मत न हारी, चाहे कितने भी बंधन पड़ते जाएँ, प्रयास करना वह न छोड़ेगा। उसने मोती से कहा यों भी मरना ही है। परन्तु सोचो यदि दीवार टूट जाती तो कइयों की जाने बच जाती। मोती ने साहस करके रात्रि के समय पुनः दीवार पर वार करना शुरू किया। दो घंटे की जोर आजमाईश के बाद दीवार ऊपर से लगभग एक हाथ नीचे गिर गई। प्रयास से दीवार गिर गई और अधमरे से हुए सभी जानवर चेत उठे। घोड़ियां, बकरियाँ, भैंसें, सब एक-एक करके निकल पड़े। किन्तु गधे तो जाने का नाम नहीं ले रहे थे। किसी तरह मोती ने उन्हें यहाँ से भगाया।
मोती अपने मित्र की रस्सी तोड़ने में लगा हुआ था हीरा ने उसे भाग जाने को कहा किन्तु मोती अपने मित्र को यूँ संकट में छोड़कर भागना नहीं चाहता था। जो होगा दोनों साथ-साथ भोगेंगे। भोर होते ही चौकीदार और कर्मचारियों में खलबली मच गई। मोती को बहुत मारा गया और मोटी रस्सी से बाँध दिया गया। कई दिनों तक खाने को तिनका तक न मिला। दोनों बैल दुर्बल हो गये।
बैलों की नीलामी तथा घर वापसी :
एक दिन बाड़े के सामने डुग्गी बजने लगी और दोपहर होते-होते वहाँ बहुत से आदमी एकत्रित हो गये। कमजोर पड़ने के कारण उनका कोई खरीदार न मिला। एक दढ़ियल आदमी, जिसकी आँखें लाल थीं और मुद्रा कठोर, उसने उन्हें टटोलकर देखा। दोनों मित्रों को समझते देर न लगी कि यह दढ़ियल कौन है। बैलों को विश्वास है कि ईश्वर उन्हें जरूर बचायेगा।
नीलामी होने के बाद दोनों बैल दढ़ियल के साथ चलने लगे। दोनों डर के मारे काँप रहे थे। भय के मारे गिरते-पड़ते भाग रहे थे। सहसा दोनों को ऐसा मालूम हुआ कि यह परिचित राह है। इसी रास्ते से गया उनको ले गया था। अब उनकी सारी दुर्बलता गायब हो गई। अपने घर की राह देख दोनों प्रसन्न चित्त हो गये। दोनों उन्मत्त होकर घर की तरफ दौड़े।
दोनों दौड़कर अपने थान पर आ गये। दढ़ियल भी पीछे-पीछे आया। बैलों को देखकर झूरी दौड़कर आया और उन्हें गले से लगा लिया। दोनों मित्रों की आँखों से आनंद के आँसू गिरने लगे। झूरी ने दढ़ियल को धमकाया और कहा कि बैल मेरे हैं। नीलामी करने का अधिकार सिर्फ मुझे है। दढ़ियल बैलों को जबरदस्ती पकड़ना चाहा तभी मोती ने सींग चला दिया।
मोती दढ़ियल को गाँव के बाहर भगाकर ही रूका। दढ़ियल धमकियाँ दे रहा था, गाली बक रहा था। मोती विजयी सूर की भाँति उसका रास्ता रोके खड़ा था। गाँव के लोग तमाशा देखते थे और हँसते थे। दढ़ियल चला गया। थोड़ी देर में नांदों में खली-भूसा, चोकर दाना भर दिया गया। दोनों मित्र खाने लगे। झूरी दोनों को प्यार से सहला रहा था। मालकिन ने आकर दोनों के माथे चूम लिए। यों दोनों बैल अपने घर वापस आ गये। यदि हीरा, मोती ने संघर्ष नहीं किया होता तो वे गुलाम होते या फिर जान से हाथ धो बैठते।
मुहावरों का अर्थ लिखिए
- ईंट का जवाब पत्थर से देना – कड़ा प्रतिरोध करना
- बछिया का ताऊ – महा मूर्ख होना
- दाँतों पसीना आना – बहुत ज्यादा परेशान होना
- कसर न उठा रखना – अपनी तरफ से पूरा प्रयास करना
- कनखियों से देखना – तिरछी नजर से देखना
- सोता पड़ना – सभी लोगों का सो जाना
- गद्गद होना – अत्यधिक प्रसन्न होना
- मजा चखाना – बदला लेना
- आँखें न उठाना – देखने की कोशिश न करना
- दिल ऐंठकर रह जाना – बदला न ले पाना
- टाल जाना – मना कर देना
- जान से हाथ धोना – जान गंवाना, मरना
- नौ दो ग्यारह होना – भाग जाना
- जान हथेली पर लेना – जान को जोखिम में डालना
- अकड़ निकलना – घमण्ड तोड़ना
- बोटी-बोटी काँपना – अत्यधिक भयभीत होना
- ज्वाला दहक उठना – क्रोध बहुत अधिक बढ़ जाना
- गिरते-पड़ते भागना – किसी तरह से जल्दी-जल्दी भागना
- खबर लेना – बुरा भला कहना, किसी को पीटना
मुहावरों का वाक्य प्रयोग
- इंट से ईंट बजा देना – अबकी बार यदि युद्ध हुआ तो भारत पाकिस्तान की ईट से ईंट बजा देगा।
- बछिया का ताऊ – पुलिस ने अनिकेत पर बेकार में चोरी का आरोप लगाया है, वह तो बछिया का ताऊ है।
- दाँतों पसीना आना – चार महीने तक अंतरिक्ष यान में रहकर भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों के दाँतों पसीने आ गये।
- कसर न उठा रखना – अपने बेटे की पढ़ाई में रमेश ने कोई कसर न उठा रखी थी फिर भी उनका बेटा फेल हो गया।
- कनखियों से देखना – सास की चिकनी-चुपड़ी बातों को सुनकर बहू कनखियों से देखने लगी।
- सोता पड़ना – बिजली आने के पहले तो गाँवों में रात के नौ बजते-बजते सोता पड़ जाता था।
- गद्गद् होना – अपने बेटे को प्रथम स्थान आने पर माता-पिता गद्गद् हो गए।
- मजा चखाना – पुलिस ने सुधीर को चोरी करने के आरोप में जेल का मजा चखा दिया।
- आँखें न उठाना – चोरी के आरोप में पकड़ जाने पर रमन ने किसी के सामने आँखें न उठाई।
- दिल ऐंठकर रह जाना – दो टीमों के बीच चल रहे मैच में हमारी टीम जीतने के नजदीक थी, तभी एकाएक भारी वर्षा होने के कारण मैच को
- रद्द कर दिया गया, तब हमारा दिल ऐंठकर रह गया।
- टाल जाना – जब भी मैं आकाश को हिन्दी परियोजना के विषय में पूछती हूँ, वह टाल जाता है।
- जान से हाथ धोना – भारत-पाक सीमा पर अनेक सैनिकों ने युद्ध में जान से हाथ धो बैठे।
- नौ-दो ग्यारह होना – पुलिस के आने से पहले चोर नौ-दो ग्यारह हो गये।
- जान हथेली पर रखना – सैनिक जान हथेली पर रखकर देश की रक्षा करता है।
- अकड़ निकलना – धंधे में बहुत नुकसान होने के कारण अवधेश की सारी अकड़ निकल गई।
- बोटी-बोटी काँपना – पुलिस को अपने घर आते देख रेशमा की बोटी-बोटी काँपने लगी।
- ज्याला दहक उठना – राघव के दिल में अपने बेटे के हत्यारे से बदला लेने की ज्याला धधक रही है।
- गिरते-पड़ते भागना – दुर्घटना की खबर सुनते ही रफीकभाई और उनकी पत्नी गिरते-पड़ते दुर्घटना स्थल पर पहुँचे।
- खबर लेना – तुम अपनी मनमानी करके चले जाओगे, कुलदीप आएगा तो मेरी खबर लेगा।
शब्दार्थ – टिप्पण
- निरापद – सुरक्षित
- अनायास – अचानक, एकाएक
- कुलेल – किल्लोल
- पराकाष्ठा – चरमसीमा
- बेवकूफ – मूर्ख
- कदाचित – शायद, संभवतः
- पछाई – पश्चिम की ओर का
- चौकस – सचेत, कसा हुआ
- विचार-विनिमय – विचारों का आदान-प्रदान
- वंचित – ठगा हुआ, खाली
- धौल-धप्पा – छूकर आघात पहुँचाना, मारपीट
- खली – तेल की तलछट
- पगहिया – पशुओं के गले में बाँधी जानेवाली रस्सी
- चाकरी – नौकरी
- कसर – कमी, न्यूनता
- कबूल – स्वीकार
- नाँद – पशुओं को चारा खाने के लिये बनाया गया बड़ा-सा मिट्टी का बरतन
- पगहा – पशुओं को बाँधने की रस्सी
- गराँव – दोहरी रस्सी जो गले से बाँधी जाती है
- चरनी – चारा खाने की जगह
- अभूतपूर्व – जो पहले न हुआ हो
- चोकर – गेहूँ का छिलका
- समर्थन – अनुमोदन
- आक्षेप – आरोप
- ताकीद – चेतावनी
- खली – तेल आदि की तलछट
- टिटकार – टिक टिक की ध्वनि करना, आवाज
- जुआ – पशु को पशुओं पर रखी जाती हैं
- तेवर – क्रोधपूर्ण दृष्टि
- मसलहत – उचित, हितकर
- बरकत – बढ़ती, वृद्धि
- सहसा – अचानक
- आफत – मुसीबत, तकलीफ
- हड़बड़ाना – जल्दी करना, आतुर होना
- बेतहाशा – बिना सोचे समझे
- व्याकुल – बैचेन, परेशान
- ठेलना – धक्का देना
- आरजू – निवेदन, प्रार्थना
- रगेदना – भगाना, खदेड़ना
- जोखिम – खतरा
- तजरबा – अनुभव
- उस्ताद – प्रवीण, गुरु
- कांजीहौस – मवेशीखाना, पशुओं को रख्नने का स्थान
- ज्वाला – आग
- दहकना – जलना
- उजहुपन – बेहूदगी, असभ्य व्यवहार
- रसीद – प्राप्ति, पहुँच
- बूते – बल
- परवाह – फिक्र
- प्रतिद्धन्दी – दुश्मन, शत्रु
- जोर-आजमाईश – प्रयत्न, बार-बार प्रयास
- चेत उठना – होश में आना
- विपत्ति – आफत
- मरम्मत – पिटाई
- तृण – तिनका
- ठटरियाँ – हड्डियाँ, कंकाल
- डुग्गी – चौड़े मुँह वाला बाजा
- मृतक – मरे
- दढ़ियल – दाढ़ीवाला
- गोदकर – चुभाकर, गड़ाकर
- अंतज्ञान – भीतरी ज्ञान
- टटोलना – छूकर पता लगाना
- नाहक – बेकार
- रेवड़ – झुण्ड, समूह
- पागुर – जुगाली
- बधिक – बध करनेवाला, जल्लाद
- नगीच – पास, नजदीक
- थान – वह जगह जहाँ पशु बाँधे जाते हैं
- मवेशीखाना – मवेशियों के रहने का स्थान
- पशुबंदी गृह – कांजीहाउस
- अख्तियार – अधिकार
- उछाह – उत्साह, हौसला।