GSEB Solutions Class 11 Sanskrit Chapter 13 हनूमद् भीमसेनयोः संवादः

Gujarat Board GSEB Solutions Class 11 Sanskrit Chapter 13 हनूमद् भीमसेनयोः संवादः Textbook Exercise Questions and Answers, Notes Pdf.

Gujarat Board Textbook Solutions Class 11 Sanskrit Chapter 13 हनूमद् भीमसेनयोः संवादः

GSEB Solutions Class 11 Sanskrit हनूमद् भीमसेनयोः संवादः Textbook Questions and Answers

हनूमद् भीमसेनयोः संवादः Test

1. अधोलिखितेभ्यः विकल्पेभ्यः समुचितम् उत्तरं चिनुत :

પ્રશ્ન 1.
भीमसेनस्य पन्थानं कः अधितिष्ठिति ?
(क) वनराजः
(ख) शाखामृगः
(ग) गजराजः
(घ) सिंहशिशुः
उत्तर :
(ख) शाखामृगः

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પ્રશ્ન 2.
कस्य चेष्टितेन काननभुवां संक्षोभः जायते ?
(क) वानरस्य
(ख) युधिष्ठिरस्य
(ग) भीमस्य
(घ) समुद्रस्य
उत्तर :
(ग) भीमस्य

પ્રશ્ન 3.
कीदृशो युधिष्ठिरः काननम् अधिवसति ?
(क) जितशत्रुः
(ख) जितराज्य:
(ग) हतशत्रुः
(घ) हृतराज्यः
उत्तर :
(घ) हृतराज्यः

પ્રશ્ન 4.
पुरा काले हनूमता किं लयितम् ?
(क) पृथिवी
(ख) अरण्यम्
(ग) हिमालयः
(घ) समुद्रः
उत्तर :
(घ) समुद्रः

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2. एकेन वाक्येन संस्कृतभाषया उत्तरत :

પ્રશ્ન 1.
वनचराणां संक्षोभहेतुः किम् अस्ति?
उत्तर :
भीमसेनस्य वनप्रवेशकारणात् तस्यं चेष्टाः वनचराणां संक्षोभ हेतुः अस्ति।

પ્રશ્ન 2.
वनचरा: कथं वृत्तिं कल्पयन्ति?
उत्तर :
वनचरा: फलैः द्रुमैः वृत्तिं कल्पयन्ति।

પ્રશ્ન 3.
कः पौरवपारिजात: अस्ति?
उत्तर :
युधिष्ठिरः पौरव पारिजातः अस्ति।

પ્રશ્ન 4.
हनूमान् कस्य अग्रजन्मा?
उत्तर :
हनूमान् भीमसेनस्य अग्रजन्मा अस्ति।

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3. Explain with reference to context :

1. अहो धाय॑म् वानरस्य।

सन्दर्भ : प्रस्तुत पंक्ति पाठ्यपुस्तक ‘हनुमद् भीमसेनयोः संवादः’ नामक पाठ से ली गई है। पाठ की विषय-वस्तु दक्षिण भारत में तेरहवीं शताब्दी के समीप जन्मे विश्वनाथ कवि-रचित सौगन्धिका हरणे नामक एकांकी व्यायोग से ली गई है। सौगन्धिकाहरण नामक रुपक व्यायोग के अनुसार द्रौपदी की सौगन्धिका नामक पुष्पों को प्राप्त करने की इच्छा की पूर्ति हेतु मार्ग में जब भीमसेन किसी वन में प्रवेश करते हैं तब हनुमान से उनका मिलन होता है।

हनुमान से साक्षात्कार होने पर भीम एवं हनूमान दोनों के मध्य मधुर संवाद होता है। वन में हनूमान, भीमसेन का मार्ग अवरुद्ध करते हैं तथा अपरिचित होने के कारण भीमसेन वानरों के इस व्यवहार से आश्चर्य चकित होते हैं। भीमसेन के दर्शन से हर्षान्वित हनुमान अपने हर्षाश्रु एवं रोमांच को छिपाते हुए भीमसेन से कहते हैं वन में तुम्हारी चेष्टाओं से संक्षोभ हो रहा है।

तब एक वानर के द्वारा भीमसेन जैसे वीर पर इस प्रकार का आक्षेप करने पर भीमसेन स्वयं से ही मन में कहते हैं – ‘अहो धाय॑म् वानरस्य’ – अरे वानर की धृष्टता। एक वानर भीमकाय विशालवक्षस्थल महान् भुजाओंवाले वीर को स्पष्ट रूप से वन में प्रवेश करने पर उनके द्वारा की चेष्टाओं के परिणाम-स्वरूप वन में संक्षोभ उत्पन्न करने का आरोप लगाता है तब भीम को वानर के उस कृत्य पर मन में हँसते हुए कहते हैं इस वानर की धृष्टता देखिए जो मुझे रोक रहा है।

हनूमान इतना कहने पर भी रुकते नहीं हैं आगे और भी कहते हैं कि वे भीमसेन को अपराधी होते हुए भी नीति का वर्णन करते हुए अनीति से रोकते हैं। इस प्रकार हनूमान के निडर, स्पष्टवक्ता नैतिक-कर्मानुरक्ति, प्रेम आदि उदात्त चारित्रिक गुणों की अभिव्यक्ति उनके द्वारा कहे गए इस वाक्य से होती है।

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2. तदेषां परत: पीडा युज्यते किमुपेक्षितम्।

सन्दर्भ प्रश्न 1 के अनुसार प्रथम दो गद्यांश

जब भीमसेन वन में प्रवेश करते हैं तब मार्ग में हनूमान उनका मार्ग अवरुद्ध करते हैं। वन में भीमसेन के प्रवेश से उत्पन्न संक्षोभ हनूमान के लिए असह्य होता है। हनूमान भीमसेन को संबोधित करते हुए कहते हैं कि वन उनके अर्थात् वनवासियों के लिए वृक्षों से फलों आदि से उनकी वृत्ति का निर्माण करते है अत: कोई उन वनों को हानि नहीं पहुंचा सकता है।

जब कोई अन्य उन वनों को किसी भी प्रकार की हानि पहुँचाने का प्रयत्न करे तो वह अनुचित है तथा वह दण्डनीय भी है। उपर्युक्त वचन के अनुसार हनूमान भीमसेन से कहते हैं परोपकारी वन को किसी अन्य के द्वारा पहुँचाई गई पीडा क्या उपेक्षा के योग्य हैं? आशय यह है कि वनों के संरक्षण हेतु प्रत्येक व्यक्ति को जाग्रत रहना चाहिए। वनों को हानि पहुँचानेवाले प्रत्येक व्यक्ति को रोका जाना चाहिए।

इस कथन से हनूमान के दृष्टिकोण से व्यक्ति को संपूर्ण प्रकृति का संरक्षण करने का प्रयत्न करना चाहिए। तथा हनूमान के समान प्रकृति-प्रेम प्रकट करते हुए उसके संरक्षण के कार्य को ही ‘राम’-काज मानना चाहिए तथा उसे हानि पहुँचानेवाले तत्त्वों को समझाना चाहिए।

3. अये वयमरण्यचारिणः। कुतो नाम शौर्यमस्मासु।

सन्दर्भ : प्रश्न 1 के अनुसार प्रथम दो गद्यांश।

भीमसेन के वन में प्रवेश करने पर हनूमान के द्वारा नैतिक कर्तव्य समझाने एवं उन्हें अनीति से रोकने पर भीमसेन हनूमान से कहते हैं कि वे उक्ति-प्रयुक्तियों से उन्हें (भीमसेन को) एक शूरवीर की भाँति छल रहे हैं। भीमसेन के द्वारा इस प्रकार कहने पर हनूमान भीमसेन से कहते हैं कि, वे वनवासी है। उनमें शौर्य कहाँ? महावीर एवं परं पराक्रमशाली होने पर भी हनूमान की वाणी अत्यन्त विनय एवं विवेकपूर्ण है।

हनूमान कहते हैं कि वीर तो वे भीमसेन हैं। यदि वे वीर नहीं तो और कितने वीर हैं इस धरातल पर? यदि यह धृष्टता उनके द्वारा की गई होती तो सुशोभित होती अर्थात् उन्हें उपयुक्त-अपेक्षित पाठ पढ़ाया जाता। यद्यपि भीमसेन के द्वारा वन में संक्षोभ उत्पन्न किया गया है तथापि उनके द्वारा अतिथि के रूप में एकबार किए गए अतिक्रमण को सहन किया जा सकता है।

इस प्रकार उनके वक्तव्य से चारित्रिक उत्कृष्टता प्रकट होती है तथा सभी सामान्यजनों को एक प्रेरणा भी प्राप्त होती है। मानवमात्र को यह सीखना चाहिए कि हर प्रकार के अहंकार से मुक्त होकर वैभवशाली समृद्धिशाली होते हुए भी अत्यन्त विनयी एवं विवेकी होना चाहिए।

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4. पर्यायपदानि लिखत।

पर्यायपदानि –

  • शाखामृगः = कपिः, वानरः, प्लवङ्गमः।
  • काननम् = वनम्, अरण्यम्, अटवी, विपिनम्, कान्तारः
  • निपुणः = कुशलः, दक्षः, चतुरः
  • द्रुमः = वृक्षः, पादपः, तरुः
  • चेतः = मनः
  • वपुः = शरीरम्, देहः, कायः

5. Answer the following questions in two or three sentences in your mother tongue :

Question 1.
Why does Bhimsen feel that the monkey in his way is extraordinary?
उत्तर :
भीमसेन को मार्ग में मिला वानर अभूतपूर्व लगा क्योंकि भीमसेन जैसे वीर, बलशाली को देखने पर भी वानर बिना किसी घबराहट के पूर्ववत् स्थिर ही बैठा रहा। प्रकृति के अनुसार वानर भयभीत होकर भाग जाते हैं। अतः वानर को धैर्यपूर्वक निश्चल होकर बैठा हुआ देखकर भीमसेन को उनका यह व्यवहार अभूतपूर्व लगा।

Question 2.
Why does Hanuman stop Bhima ?
उत्तर :
भीमसेन के वन में प्रवेश करने पर संक्षोभ उत्पन्न होता है अत: भीमसेन को उसका दोष दिखाने के लिए एवं पुन: ऐसा न करने के लिए समझाने हेतु हनुमान भीमसेन को रोकते हैं।

Question 3.
What does Bhima say when Hanuman asks his introduction ?
उत्तर :
हनुमान के द्वारा भीम का परिचय पूछने पर भीमसेन ने कहा कि वे क्षत्रिय हैं तथा हनुमान के द्वारा विस्तृत रुप से परिचय देने के लिए कहा गया तब उन्होंने त्रिभुवन-विदित अपने अग्रज पौरव-पारिजात, अजातशत्रु युधिष्ठिर का उल्लेख करते हुए परोक्ष रूप से अपना परिचय देते है।।

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Question 4.
Hearing what about Yudhishthira Bhima feels sorry?
उत्तर :
हनुमान के परिचय पूछने पर भीमसेन ने त्रिभुवन-विख्यात पौरव-पारिजात अपने अग्रज अजातशत्रु – युधिष्ठिर का उल्लेख करते हैं, तब हनुमान कहते हैं कि वे युधिष्ठिर को जानते हैं जो शत्रुओं के अत्यधिक बल से परास्त होकर वन में निवास कर रहे हैं तथा जिनके राज्य पर शत्रुओं ने अधिकार कर लिया है। युधिष्ठिर के विषय में इस प्रकार की बात सुनकर भीमसेन को दुःख का अनुभव हुआ।

Question 5.
What does Hanuman do when Bhima askshim to (move) remove his tail?
उत्तर :
जब भीमसेन हनुमान को पूँछ हटा लेने के लिए कहते हैं तब वे अपने वास्तविक स्वरूप में आकर अपना परिचय देते हुए कहते हैं कि वे भीमसेन के अग्रजन्मा हनुमान हैं तथा वे प्रेम-पूर्वक भीमसेन का आलिंगन करते हैं।

6. Write an analytical note on:

(1) अजातशत्रुः
(2) पौरवपारिजातः
उत्तर :
अजातशत्रु: पौरवपारिजात :
पांडुपुत्र युधिष्ठिर धर्मराज के रूप में विख्यात है। उनका एक नाम अजातशत्रु भी है। युधिष्ठिर के मन में सभी के प्रति मित्रता का भाव था। किसी के प्रति उनके मन में शत्रुभाव नहीं था। युधिष्ठिर के हृदय में किसी के भी प्रति द्वेष नहीं था।

कौरव पक्ष के दुर्योधन का वर्तन अत्यन्त खराब था तथापि वे दुर्योधन को अपना अनुज भाई ही मानते थे तथा पितादृक (भातृवत्) व्यवहारार्थ सदैव तत्पर रहते थे। इन सभी कारणों से उनका कोई शत्रु नहीं था। यह मान्यता लोक-मानस में दृढ़ होती गई तथा इस आधार से वे अजातशत्रु के रूप में प्रसिद्ध हुए।

7. Write a critical note on:

Question 1.
Characterisation of Bhima
उत्तर :
हनुमद् भीमसेनयोः संवादः नामक पाठ के आधार पर भीमसेन की चारित्रिक उत्कृष्टता को सर्व रूपों में देखा जा सकता है। भीमसेन का देह-सौष्ठव एक वीर की भाँति शक्तिशाली है। उनकी महान् भुजाएँ एवं विशाल वक्षस्थल इस बात का परिचायक है कि वे क्षत्रिय है।

शरीर से बलशाली एवं महापराक्रमी होते हुए भी भीमसेन विनम्र हैं। भीमसेन मृदुभाषी है। साथ ही भीमसेन धैर्यवान हैं। मृदुभाषी एवं धैर्य से युक्त उनका व्यक्तित्व उनके उत्तम-कुल में उत्पन्न होने का परिचायक है। शूरवीर के लिए उपयुक्त वाणी और विनम्रता के साथ-साथ निडरता का गुण भी भीमसेन में विद्यमान है।

हनुमान के द्वारा वन में भीमसेन को संक्षोभ के विषय में पूछने पर वे स्वयं से कहते हैं – ‘अरे, इस वानर की धृष्टता।’ तत्पश्चात् वे पुनः हनुमान से पूछते है ‘यदि ऐसा ही है तो फिर ये घबराहट क्यों?’ ‘किमत्र संरम्भः।’ इस प्रकार भीमसेन में एक आदर्श मानववत् सर्वविध गुण विद्यमान है।

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Question 2.
Pecularities of the Character of Hanuman.
उत्तर :
हनुमान के चरित्र की विशेषताएँ :
हनूमद् भीमसेनयोः संवादः नामक पाठ के अनुसार हनुमान की कई चारित्रिक विशेषताओं का ज्ञान होता है। हनुमान प्रेम की प्रत्यक्ष मूर्ति है। प्रथम बार जब वे भीमसेन को देखते हैं बाह्य रूप से कठोर होकर भीमसेन का मार्ग रोकते है किन्तु भीमसेन को देखते ही हर्षाश्रु प्रवाहित होने लगते हैं तथा उनके देह में रोमाञ्च होने लगता है।

किन्तु वे इसे कुशलतापूर्वक छिपाने का प्रयत्न करते हैं। वे कहते हैं –

‘किञ्चास्य दर्शनमदोत्थितमक्षिबाष्यम्
शक्नोमि न स्थगयितुं पुलकं च गात्रे।।

अर्थात् ‘इसके दर्शन की प्रसन्नता से उत्पन्न हर्षाश्रु एवं रोमांच को मैं रोक नहीं सकता हूँ। इस प्रकार कहते हुए वे अपने हृदय के भावों को छिपाने का प्रयत्न करते है। हनुमान स्वयं को गुप्त रूप में रखते हुए भीमसेन के व्यवहार का अवलोकन करना चाहते हैं अत: भीमसेन के वन में प्रवेश करने पर उत्पन्न हुए संक्षोभ के लिए दोषी मानते हैं।

इस प्रकार हनुमान के चरित्र में हमें वन एवं वन्य जीवों के प्रति प्रेम का दर्शन होता है साथ ही उनकी कर्तव्यनिष्ठा का दर्शन भी होता है। वे भीमसेन को अनीति के मार्ग से रोकते हैं एवं भीमसेन को नैतिकता के मार्ग का वर्णन भी करते हैं। हनुमान की वाक्पटुता का भी हमें यहाँ दर्शन होता है।

हनुमान की वाक्पटुता से प्रभावित होकर भीमसेन कहते हैं कि एक शूरवीर की भाँति उक्ति-प्रयुक्तियों से वे उन्हें छल रहे हैं। वीर एवं पराक्रमी होते हुए भी उनमें अत्यन्त विनयपूर्ण व्यवहार का दर्शन होता है।

‘वयमरण्यचारिण: / कुतो नाम शौर्यभस्मासु’

अर्थात् ‘हम वनवासी है। हममें शौर्य कहाँ से?’ इस उक्ति से उनमें विनम्रता का दर्शन होता है। हनुमान भीमसेन से उनका परिचय पूछने की कला भी अत्यन्त मनोहर है। किन्तु जब भी भीमसेन कहते हैं कि वे पूर्व में हनुमान के समुद्र की भाँति उनकी पूँछ लाँधकर चले जाएँगे।

तब हनुमान का धैर्य समाप्त हो जाता है। हृदय के अपार प्रेम के वशीभूत होकर वे स्वयं को भीमसेन के सम्मुख वास्तविक रुप में प्रकट करते हैं। तथा स्वपरिचय देकर स्वयं को भीमसेन का अग्रजन्मा कहते हुए स्वयं का आलिंगन कर उनका चिर मनोरथ पूर्ण करने के लिए कहते हैं।

इस प्रकार उनके चरित्र में वीरोचित विभिन्न रूपों का दर्शन होता है।

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8. Write, finding out from the list of the names given below, who speaks the following sentences. (हनूमान्, भीम:)
उत्तर :

  1. अये, शाखामृगः कोऽपि पन्थानमधितिष्ठति। (भीमसेन)
  2. अहो, धाय॑म् वानरस्य। (भीमसेन)
  3. ननु भोः क्षत्रियोऽहम्। (भीमसेन)
  4. भद्र, व्यपदेशतोऽवगन्तुं भवन्तमुत्कण्ठते मे चेतः। (हनुमान)
  5. विकृष्यतां पुच्छः। (भीमसेन)
  6. आगच्छ गाढमालिङ्ग्य चिरनिबद्धं मे मनोरथं पूरय। (हनुमान)
  7. अपि जानासि पौरवपारिजातम् अजातशत्रुः इति त्रिभुवनविदितं युधिष्ठिरम्। (भीमसेन)
  8. अहह शान्तं पापम् शान्तं पापम्। (भीमसेन)
  9. भोः साधु-निपुणोऽसि, यदुक्तिः क्षमारूपेण परिणमिता। (भीमसेन)
  10. किमत्र भवतः संरम्भः। (भीमसेन)
  11. आः कथं शूर इव भवानपि उक्ति – प्रयुक्तिभिः अस्मान् अतिसन्धत्ते। (भीमसेन)

Sanskrit Digest Std 11 GSEB नाट्यमेतन्मया कृतम् Additional Questions and Answers

हनूमद् भीमसेनयोः संवादः स्वाध्याय

1. अधोलिखितेभ्य: विकल्पेभ्य: समुचितम् उत्तरं चिनुत :

પ્રશ્ન 1.
हनूमान् कस्य अग्रजन्मा?
(क) भीमसेनस्य
(ख) हनूमतः
(ग) शाखामृगस्य
(घ) गजराजस्य
उत्तर :
(क) भीमसेनस्य

પ્રશ્ન 2.
भरतकुलप्रसूतः कः?
(क) हनूमान्
(ख) भीमसेनः
(ग) शाखामृगः
(घ) कपिः
उत्तर :
(ख) भीमसेनः

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પ્રશ્ન 3.
कस्य चेत: धैर्यात् न विभ्रष्टम्?
(क) हनूमतः
(ख) भरतस्य
(ग) युधिष्ठिरस्य
(घ) भीमसेनस्य
उत्तर :
(घ) भीमसेनस्य

પ્રશ્ન 4.
भीमसेनः कम् आलिङ्गितः।।
(क) हनूमन्तम्
(ख) वनराजम्
(ग) युधिष्ठिरम्
(घ) भरतम्
उत्तर :
(क) हनूमन्तम्

પ્રશ્ન 5.
भीमसेनस्य नाम अवगन्तुम् कस्य चेत: उत्कण्ठते।
(क) भरतस्य
(ख) युधिष्ठिरस्य
(ग) हनूमतः
(घ) ऐतेषु एकस्य अपि न
उत्तर :
(ग) हनूमतः

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પ્રશ્ન 6.
किमनेन ज्ञातार एवैतदपि ……………………………………………।
(क) जानाति
(ख) जानीतः
(ग) जानन्ति
(घ) जानामि।
उत्तर :
(घ) जानामि।

પ્રશ્ન 7.
दुर्नयतः भीमसेनं नयम् विवृण्वन् कः वारयति?
(क) हनूमान्
(ख) युधिष्ठिरः
(ग) शूराः
(घ) वृक्षः
उत्तर :
(क) हनूमान्

પ્રશ્ન 8.
कः उक्ति-प्रयुक्तिभिः शूरइव अति सन्धत्ते?
(क) भरतः
(ख) युधिष्ठिरः
(ग) भीमसेनः
(घ) हनूमान
उत्तर :
(घ) हनूमान

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2. एकेन वाक्येन संस्कृतभाषया उत्तरत।

પ્રશ્ન 1.
भीमसेनः केन नियम्यते?
उत्तर :
भीमसेनः हनूमता नियम्यते।

પ્રશ્ન 2.
हनूमान् नयं विवृण्वन् दुर्नयत: कं वारयति?
उत्तर :
हनूमान् नयं विवृण्वन् दुर्नयतः भीमसेनं वारयति।

પ્રશ્ન 3.
का गात्रे पुलकं स्थगयितुं न शक्नोति?
उत्तर :
हनूमान गात्रे पुलकं स्थगयितुं न शक्नोति।

પ્રશ્ન 4.
क: भीमसेनं उक्ति-प्रयक्तिभिः सन्धत्ते?
उत्तर :
हनूमान भीमसेनं उक्ति-प्रयुक्तिभिः सन्धत्ते।

પ્રશ્ન 5.
कौ परस्परम् आलिङ्गत:?
उत्तर :
उभौ हनूमान भीमसेनौ परस्पर आलिङ्गतः।

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પ્રશ્ન 6.
हनमत: चेतः कस्य नाम अवगन्तम उत्कण्ठते?
उत्तर :
हनूमतः चेत: भीमसेनस्य नाम अवगन्तुम् उत्कण्ठते।

हनूमद् भीमसेनयोः संवादः Summary in Hindi

सन्दर्भ : दक्षिण भारत के प्रसिद्ध नगर वारंगल में ईसवी सन् की तेरहवी शताब्दी के आस-पास जन्मे विश्वनाथ कवि-रचित सौगन्धिकाहरण एकांकी व्यायोग है। व्यायोग प्रकार के रूपक में स्त्रीपात्र नहीं होते हैं तथा यदि होते हैं तो अत्यल्प मात्रा में होते हैं। पुरुष-पात्र अनेक होते हैं।

नायक प्रख्यात होता है तथा वह कोई राजर्षि या दिव्य-पुरुष होता है। मुख्य रस के रूप में वीर रस होता है। इस प्रकार नाट्य-शास्त्रीय ग्रन्थों में व्यायोग नामक रूपक के जो लक्षण दर्शाए हैं उनके अनुरूप यह सौगन्धिकाहरण नामक रूपक एक व्यायोग है।

इसकी कथावस्तु अत्यन्त अल्प है। द्रौपदी को कहीं से अचानक सौगन्धिका नामक पुष्प मिल जाता है। उसके रूप एवं सुगन्ध को देखकर द्रौपदी को ऐसे अन्य पुष्प प्राप्त करने की इच्छा जाग्रत होती है। भीम द्रौपदी की इस कामना की पूर्ति हेतु तत्पर होते हैं।

मार्ग में वे एक प्रगाढ वन में प्रवेश करते हैं। इस वन में हनुमान (संस्कृत में हनु (पुं.) एवं हनू (स्त्री.) दो शब्द हैं तथा दोनों शब्द प्रयुक्त होते हैं।) रहते हैं। यहाँ दोनों का मिलन होता है। हनुमान तो भीम को पहिचान लेते हैं परंतु भीमसेन हनुमान को नहीं पहिचान सकते थे। दोनों के बीच मधुर वाग्युद्ध होता है।

इस पाठ में हनुमान एवं भीमसेन के मध्य हुए हास्यप्रेरक संवाद के दृश्य को मूल-ग्रन्थ से सम्पादित करके यहाँ प्रस्तुत किया गया है।

हनूमद् भीमसेनयोः संवादः शब्दार्थ

अग्रे = आगे। निरूप्य = देखकर – नि + रूप् + ल्यप् – सम्बंधक भूत कृदन्त। शाखामृगः = बन्दर – पर्याय शब्द – वानरः कपिः। पन्थानम् = मार्ग को – पथिन् – द्वितीया विभक्ति, एकवचन। अधितिष्ठति = खड़ा रहता है – अधि + स्था धातु, वर्तमानकाल, अन्य पुरुष, एकवचन। अदृष्टपूर्वः = प्रथम बार देखा हुआ, जिसे पूर्व में कदापि न देखा हो वह। प्लवङ्गमेषु = बंदरों में। असम्भ्रान्तनिश्चला = घबराहट के बिना (रहित) स्थिर। आसिका = बैठक।

हेतुः = कारण। निर्वर्ण्य = ध्यानपूर्वक देखकर। दर्शनमहोत्थितम् = दर्शन – देखने की प्रसन्नता से उत्पन्न। अक्षिवाष्पम् = आँखों के आँसू। स्थगयितुम् = स्थगित करने हेतु। पुलकम् = रोमांच। अवतिष्ठे = खड़ा रहूँगा। उपगूहितम् = छिपाने के लिए। अज्ञातपूर्वसम्बन्धः = पूर्व में अज्ञात संबंध अज्ञातपूर्वः चासौ सम्बन्धः कर्म. समास। वक्ष्यति = कहेगा। तिर्यञ्चः = प्राणी का। अवष्टम्भ = धृष्टता, घमंड। ससंरम्भम् = उग्रता के साथ, घबराहट के साथ।

संक्षोभः = संक्षोभः = अस्थिरता, हलचल, चांचल्य। काननभुवाम् = वनप्रदेश का। धाय॑म् = धृष्टता। संरम्भः = घबराहट। अमूनि = ये सब – अदस् नपुं. शब्द का प्रथमा विभक्ति बहुवचन। कल्पयन्ति = बनाते हैं, रचते हैं – कल्प धातु, वर्तमान काल, अन्य पुरुष, बहुवचन। द्रुमैः = वृक्षों से – युज्येत = योग्य रहे – युज् धातु, विधिलिङ्, अन्य पुरुष, एकवचन। उपेक्षितुम् = उपेक्षा करने हेतु, अवगणना करने के लिए। नियम्यसे = रोक रहा है, नियन्त्रित कर रहा है, रोका जा रहा है। वारयामि = रोकता हूँ – वार् धातु, वर्तमान काल, उत्तम पुरुष, एकवचन।

GSEB Solutions Class 11 Sanskrit Chapter 13 हनूमद् भीमसेनयोः संवादः

नियन्ता = नियन्त्रक, रोकने वाला – नियन्तृ प्रथमा विभक्ति, एकवचन। नयम् = नीति को। विवृण्वन् = प्रकट करते हुए | दुर्नयत: = अनीति से। प्रत्युत – तब भी। अवजानन् = जानते हुए। परुषम् = कठोर। उक्तिप्रयुक्तिभिः – उक्तियों एवं प्रयुक्तियों के द्वारा – उक्ति: च प्रत्युक्तिः, च ताभिः – इतरेतर द्वन्द्व। अतिसन्धत्ते = छल करता है, चालाकी करता है – अति + सम् + धा धातु, वर्तमान काल, अन्य पुरुष, एकवचन। अरण्यचारिणः = वन में विचरण करनेवाले। क्षितौ = पृथ्वी में। अनिभृतिः = साहस, धृष्टता। उपागतवत: = पास आए हुए को। अतिक्रमः = अतिक्रमण, मर्यादाभंग।

सोढव्यः = सहन करने योग्य। निपुणः = होशियार – पर्याय शब्द – कुशलः, दक्षः, चतुरः। परिणमिता = बदल – परिवर्तित हो चुकी है। भरतकुलप्रसूतः = राजा भरत के कुल में उत्पन्न। वचोभिः = वाणी से। अवस्कन्दितस्य = आक्रमण-कर्ता का। प्रकृतिसुलभात् = प्राकृतिक रूप से सुलभ (धैर्य) से। विभ्रष्टम् = विचलित हुआ। वचोभिः = वाणी से। चेत: = मन। ईदृक्प्रभावः = ऐसे प्रभाव वाला, प्रभावशाली, ईहक् चासौ प्रभावः – कर्मधारय। अभिधेयम् = कहने योग्य। महाभुजेन = महान् – विशाल भुजाओंवाले के। आयतवक्षसा = विशाल वक्षस्थल – (छाती) वाले। वपुषा = शरीर के द्वारा पर्याय शब्द – शरीरम्, कायः, देहः, तनुः। निवेद्यते = निवेदन किया जाता है। एतावता = इतने से। प्रतिपद्यते = प्रतिपादित ज्ञात हो जाता है।

व्यपदेशत: – नाम से। अवगन्तुम् = जानने के लिए – अव + गम् धातु + तुमुन् – हेत्वर्थक कृदन्त। उत्कण्ठते = उत्कंठा – इच्छा होना – उत् + कण्ठ धातु – वर्तमान काल, अन्य पुरुष, एकवचन। पौरवपारिजातम् = पौरव-वंश में पारिजात (जैसे) को। अजातशत्रुः = जिसका कोई शत्रु न जन्मा हो वह – न जातः शत्रुः यस्य सः – बहुव्रीहि समास – युधिष्ठिर को त्रिभुवन विदितम् = तीनों लोकों में विदित – जाना हुआ – त्रिभुवनेषु विदितम् – सप्तमी तत्पुरुष समास। विदितम् = विद् + क्त – कर्मणि भूत कृदन्त = जाना हुआ, जान लिया गया, ज्ञात। निर्जित्य = पराजित होकर – निर् + जि धातु + ल्यप् – संबंधक भूतकृदन्त। हृतराज्यः = जिसका राज्य छीन लिया गया है वह – हृतं राज्यं यस्य सः – बहुप्रं बहुव्रीहि समास। काननम् = वन।

भुवि = भू – स्त्री. शब्द, सप्तमी विभक्ति, एकवचन। पृथ्वी पर। मीलित: = मिला – मील धातु + क्त – कर्मणि भूतकृदन्त। कान्तारवास: – वन में निवास – कान्तारे वासः – सप्तमी तत्पुरुष समास। ज्ञापकतां गतः = जानकारी में आ गया। ज्ञातारः = जाननेवाले। महताम् = महान लोगों का। अमीषाम् = इनका – अदस् – सर्वनाम शब्द – पुल्लिंग, षष्ठी विभक्ति, बहुवचन। पतन्ति = आ जाए अथवा आ जाते हैं। सन्तः = सज्जन – सत् – पुं. शब्द, प्रथमा विभक्ति, बहुवचन। तेषाम् अन्यतमेन = उनमें से कोई एक। भवितव्यम् = होना चाहिए। गमनोद्योगम् = जाने का उपक्रम – गमनस्य उद्योगम् – षष्ठी तत्पुरुष समास। अभिनीय – अभिनय करके – अभि + नी धातु + ल्यप् – सम्बन्धक भूतकृदन्त। अतिकाल: = अतिरिक्त – अधिक समय।

GSEB Solutions Class 11 Sanskrit Chapter 13 हनूमद् भीमसेनयोः संवादः

अतिपात्यते = बिताया (व्यतीत) किया जा रहा है – अति + पत् धातु, प्रेरणार्थक – कर्मणि प्रयोग, वर्तमान काल, अन्य पुरुष, एकवचन। विकृष्यताम् = हटा लें, दूर कर लें। विलय = उलांघ कर के – वि + लङ्घ धातु + ल्यप् – सम्बन्धक भूतकृदन्त। प्रकाशयितुम् = प्रकट करने हेतु – प्र + काश् धातु (प्रेरणार्थक)। तुमुन् – हेत्वर्थक कृदन्त। अग्रजन्मा = अग्रज, बड़ा भाई – अग्रे जन्म यस्य सः – बहुव्रीहि समास। परिरभ्य – भेंट कर के, आलिंगन करके – परि + रभ् धातु + ल्यप् – सम्बन्धक भूत कृदन्त। चिरनिबद्धम् = चिर काल (लंबे समय) से बँधा हुआ – चिरेण निबद्धम् – तृतीया तत्पुरुष समास।

अनुवाद:
भीमसेन : (आगे देखकर) अरे कोई वानर मार्ग में बैठा है। आश्चर्य, आश्चर्य। (विस्मय के साथ) अच्छा, वानरों में यह पूर्व में कभी देखा नहीं गया कि देखते हुए भी बिना किसी घबराहट के स्थिर नहीं बैठक है। (उसी प्रकार स्थिर रूप से बैठा है।) इस धैर्य का कारण क्या है यह मैं नहीं जानता हूँ। तब यह क्या है? (यह कैसा व्यवहार है?)

हनूमान : (स्वयं को देखकर) और इसे देखने की प्रसन्नता से उत्पन्न अश्रु को और देह पर रोमांच को मैं रोक नहीं सकता हूँ। अथवा कुछ काल ठहरता हूँ। ठहरना ही उचित है, छिपाना नहीं। पूर्व में ज्ञात न हो जो संबंध वह, यह (जो संबंध पूर्ण में जाना न गया हो वह यह भीमसेन) मुझे क्या कहेगा?

भीमसेन : इस प्राणी के आगे इसकी धृष्टता भी मेरे हृदय का अपहरण कर रही है।
हनूमान : (भीम से उग्रतापूर्वक) अरे ! क्या तुम्हारी चेष्टा से इस वन में यह हलचल (अस्थिरता) हुई है।

भीमसेन : हाँ और क्या? (आश्चर्य के साथ, स्वयं से) अरे इस वानर की धृष्टता। (उच्च स्तर से, वानर से) यह आपकी घबराहट क्यों है?
हनूमान : ये वन वृक्षों और फलों से हमारे लिए वृत्ति (आहारादि) का निर्माण करते हैं, तो क्या इनकी से की गई पीड़ा की उपेक्षा की जानी चाहिए?

भीमसेन : इससे क्या?
हनूमान : इस कारण ही तुम्हें मेरे द्वारा रोका जा रहा है।

भीमसेन : अरे वानर कैसे इस वीर का नियन्ता (हो सकता) है।
हनूमान : (हँस कर) अपराधी होते हुए भी तुम्हें नीति को प्रकट करते हुए अनीति से रोकता हूँ। तथापि तुम यह जानते हुए भी कठोर वचन क्यों कह रहे हो?

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भीमसेन : अरे कैसे शूर की भाँति आप भी उक्तियों – प्रयुक्तियों से हमें छल रहे हो।
हनूमान : अरे, हम वन में विचरण करनेवाले (वनवासी) हैं। हम में शौर्य कहाँ से? (हँस करके) अरे, यदि तुम शूरवीर नहीं हो, (तो) इस पृथ्वी पर कितने शूरवीर है यदि यह धृष्टता उन्होंने (प्रकट) की होती तो सुशोभित होती। ठीक है। हमारे देश में पधारे हुए आप अतिथि का एकबार अतिक्रमण भी सहन कर लिया जाना चाहिए।

भीमसेन : (हँसकर) अरे, अच्छा, तुम बहुत निपुण हो जो तुमने उक्ति को क्षमा के रूप में परिवर्तित कर दी है।
हनूमान : (स्वयं से) अच्छा है। सत्य ही यह भरतकुल में उत्पन्न बालक है, सुकोमल वचनों से आक्रमणकर्ता के प्रति भी जिसका चित्त प्रकृति से सुलभ धैर्य से विचलित नहीं हुआ। (उच्च स्वर से) श्रीमान ऐसे प्रभावशाली आप कौन है?

भीमसेन : अरे, निश्चित रूप से मैं क्षत्रिय हूँ।
हनूमान : अरे, आपका नाम क्या है? क्या यह (कि आप क्षत्रिय है।) महान भुजाओं, विशाल वक्षस्थल एवं आपके देह से प्रकट नहीं होता है।

भीमसेन : (स्वयं से) यह कपि प्रवीण है, इतने से (स्पष्ट) ज्ञात नहीं होता है।
हनूमान : श्रीमान्, मेरे चित्त में आपको नाम से जानने की उत्कंठा हो रही है?

भीमसेन : क्या आप पौरव वंश के पारिजात त्रिभुवन-विदित अजातशत्रु युधिष्ठिर को जानते हैं?।
हनूमान : जानते हैं। क्या यह जिनका राज्य छीन लिया गया है, जो शत्रुओं के अत्यधिक बल से परास्त होकर वन में रहते

भीमसेन : शान्त हो पाप, शान्त हो पाप उन गुणों से विख्यात प्रभाव पृथ्वी में कहीं मिल गया है, वनवासी (वन में निवास करनेवाले) ही इनका (युधिष्ठिर का) परिचय बन गई है। ठीक है इससे क्या? जाननेवाले यह भी जानते हैं।
हनूमान : पाण्डवों में आपका क्या नाम है?

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भीमसेन – इन महान लोगों के पक्ष में मैं एक नहीं हूँ, सज्जन नाम के पक्ष नहीं आते है।
हनूमान : (स्वयं से) सत्य ही इस प्रकार (उच्च स्वर से) तब उनमें से आप एक हो होंगे।

भीमसेन : यहाँ क्या अधिकता से। (जाने के लिए तत्पर होने का नाटक करके) बहुत अधिक समय मैंने यहाँ बिताया है। पूँछ हटा लीजिए। अन्यथा पूर्व में हनुमान के समुद्र लाँधने की भाँति मैं तुम्हें लाँध कर जाता हूँ।
हनूमान : (स्वयं से) यह अवसर स्वयं को प्रकट करने के लिए है। (सहर्ष) बालक मैं यह हनूमान तुम्हारा अग्रजन्मा (पूर्व में जन्म लेनेवाला) आओ गाढालिंगन करके मेरा चिर प्रतीक्षित मनोरथ पूर्ण करो। (दोनों परस्पर गाढालिंगन करते हैं।)

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