GSEB Class 11 Hindi Vyakaran दृश्य काव्य (1st Language)

Gujarat Board GSEB Solutions Class 11 Hindi Vyakaran दृश्य काव्य (1st Language) Questions and Answers, Notes Pdf.

GSEB Std 11 Hindi Vyakaran दृश्य काव्य (1st Language)

दृश्य काव्य परिचय :
दृश्य साहित्य के अंतर्गत ‘नाटक’ मात्र को समाविष्ट किया गया है। यह गद्य, पद्य या चम्पू किसी में भी हो सकता है। नाटक के साथ एकांकी, गीतिनाट्य, काव्यनाटिका, नृत्यनाटिका, संगीतनाटिका आदि दृश्य काव्य के प्रमुख स्वरूप हैं।

GSEB Class 11 Hindi Vyakaran दृश्य काव्य (1st Language)

नाटक

1. संक्षिप्त उत्तर दीजिए :

प्रश्न 1.
काव्य के प्रमुख कितने भेद हैं?
उत्तर :
काव्य के प्रमुख दो भेद हैं : श्रव्यकाव्य और दृश्यकाव्य। केवल सुनकर या पढ़कर जिसका आनंद लिया जा सकता है वह श्रव्यकाव्य है, जैसे – कविता, कहानी, उपन्यास आदि। जिस काव्य का आनंद विशेषत: मंच पर पात्रों के अभिनय के द्वारा देखकर भी लिया जा सकता है उसे दृश्य काव्य कहा जाता है, जैसे – नाटक (अपने भेदोपभेद सहित)।

प्रश्न 2.
अन्य विधाओं की तुलना में नाटक की विशेषता क्या है?
उत्तर :
अन्य साहित्य-विधाओं में लेखक घटनाओं, पात्रों और कथ्य या उद्देश्य के सम्बन्ध में अपना मत प्रस्तुत करने के लिए स्वतंत्र होता है, जबकि नाटककार को यह स्वतंत्रता नहीं होती। नाटक में तो केवल पात्रों के संवादों के द्वारा ही घटनाओं और चरित्रों का विकास सिद्ध किया जाता है। संवाद तो अन्य कथाप्रधान विधाओं में भी होते हैं किन्तु नाटक के लिए तो संवाद मेरुदण्ड के समान हैं।

प्रश्न 3.
नाटक के कितने तत्त्व होते हैं? कौन-कौन से?
उत्तर :
नाटक के प्रमुख 7 तत्त्व माने गए हैं –

  1. कथावस्तु,
  2. पात्र और चरित्र-चित्रण,
  3. संवाद और भाषाशैली,
  4. देश-काल और वातावरण,
  5. अभिनेयता,
  6. उद्देश्य और
  7. रंगनिर्देश।

GSEB Class 11 Hindi Vyakaran दृश्य काव्य (1st Language)

प्रश्न 4.
नाटक में कथावस्तु के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
नाटक की मूल कथा को कथावस्तु कहते हैं। नायक से सम्बन्धित मूल कथा ‘आधिकारिक कथा’ और उसकी सहायक बनकर आनेवाली कथाओं को ‘प्रासंगिक कथाएँ’ कहते हैं। प्रासंगिक कथाएँ भी दो प्रकार की होती हैं – पताका और प्रकरी। आदि से अंत तक चलनेवाली कथा ‘पताका’ और मध्य से अंत तक चलनेवाली कथा ‘प्रकरी’ कहलाती है।

कुशल नाटककार कथा के भाववाही अंश को मंच पर दर्शनीय और वर्णनात्मक अंशों को संवादों के द्वारा सूच्य और श्रवणीय बनाता है। इसीलिए रंगमंच की दृष्टि से कथावस्तु के दो प्रकार होते हैं – सूच्यांश और दृश्यांश।

प्रश्न 5.
नाटक में पात्र और चरित्र-चित्रण। महत्त्व स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
पात्रों (Characters) के अभाव में किसी भी कथा-साहित्य की रचना असंभव है। फिर नाटक तो दृश्यकाव्य होने से पात्रों पर ही पूर्णतः निर्भर है। नाटक में विविध पात्रों के संघर्ष और द्वन्द्व से उनका चरित्र-चित्रण करता है। नाटक का प्रधान पात्र नायक कहलाता है और ‘नायक’ की प्रेमिका-पत्नी ही ‘नायिका’ कहलाती है।

नायक के कुछ गुणों का निर्देश किया गया है – विनीत, मधुर, त्यागी, दक्ष, मधुरभाषी, शुचि, बुद्धिमान, प्रज्ञावान, स्मृतिसंपन्न, उत्साही, कलावान, स्वाभिमानी शूर, दृढ़ और तेजस्वी। भरत मुनि के अनुसार नायिका के चार भेद है – दिव्या, नृपत्वी, कुलस्त्री और गणिका। वैसे कुछ आचार्यों ने नायिका के तीन भेद किये हैं – स्वकीया, परकीया और अन्या।

GSEB Class 11 Hindi Vyakaran दृश्य काव्य (1st Language)

प्रश्न 6.
नाटक में संवाद और भाषा-शैली का महत्त्व स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
नाटक में संवाद या कथोपकथन के दो प्रयोजन होते हैं –

  • कथानक को गति देना और
  • पात्रों का चरित्र-चित्रण करना।

संवाद पात्रों के स्तर और स्थिति तथा परिस्थितियों के अनुरूप होना आवश्यक है। नाटक में संवाद मुख्यत: तीन प्रकार के होते हैं – स्वगतोक्ति, एकालाप और आकाशभाषित। संवादों की भाषा सरल-सुबोध और व्यंजक होनी चाहिए तभी उसमें रोचकता और सजीवता आ सकेगी। आजकल नाटक में विविध शैलियाँ – आविष्कृत हुई है। जैसे – गीतिनाट्य शैली, नुक्कड़ नाटक शैली, भड़ई, भवाई, यात्रा आदि।

प्रश्न 7.
नाटक में देश-काल और वातावरण का क्या महत्त्व है?
उत्तर :
नाटक के पात्रों के कार्य-कलाप एक निश्चित देश-काल में आकार ग्रहण करते हैं। अत: कथावस्तु और पात्रों को प्रभावशाली बनाने के लिए देश-काल का स्वाभाविक चित्रण अनिवार्य है। देश-काल के अंतर्गत पात्रों की वेश-भूषा, रोति-रिवाज के युगानुरूप चित्रण के साथ-साथ तत्कालीन जीवन-मूल्यों, आदर्शों और मान्यताओं-आस्थाओं का स्वाभाविक निरुपण भी जरूरी है।

GSEB Class 11 Hindi Vyakaran दृश्य काव्य (1st Language)

प्रश्न 8.
नाटक में अभिनेयता का महत्त्व स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
नाटक मंच की वस्तु है। जिस नाटक में अभिनेयता का गुण नहीं, उसका सफल मंचन असंभव होता है और ऐसे नाटक विफल माने जाते हैं। यही कारण है कि नाटक में मंचन के साथ रंगकर्मी और निर्देशक आदि का भी अनिवार्य सम्बन्ध होता है।

प्रश्न 9.
नाटक के ‘उद्देश्य’ तत्त्व का क्या महत्त्व है?
उत्तर :
वैसे तो नाटक में उद्देश्य विविध तत्त्वों के संयोजन की रचनात्मक परिणति है, किन्तु प्रत्येक नाटक का कोई न कोई प्रत्यक्ष या परोक्ष जीवन-संदेश तो होता ही है, हाँ शर्त यह है कि यह उद्देश्य नाटक पर आरोपित न होकर उसकी रचना में व्याप्त होना चाहिए।

प्रश्न 10.
रंगनिर्देश से क्या अभिप्राय है?
उत्तर :
नाटक के मंचन हेतु अभिनेताओं को कब क्या करना है, इसके लिए दिए गए निर्देश रंग निर्देश कहलाते हैं।

GSEB Class 11 Hindi Vyakaran दृश्य काव्य (1st Language)

प्रश्न 11.
नाटक के अतिरिक्त दृश्य काव्य की अन्य विधाएँ कौन-सी हैं?
उत्तर :
नाटक के अतिरिक्त एकांकी नाटक, गीतिनाट्य, काव्यनाटक, नृत्य-संगीत रूपक आदि दृश्य साहित्य की अन्य विधाएँ है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *