GSEB Class 11 Hindi Vyakaran अलंकार-विवेचन (1st Language)

   

Gujarat Board GSEB Solutions Class 11 Hindi Vyakaran अलंकार-विवेचन (1st Language) Questions and Answers, Notes Pdf.

GSEB Std 11 Hindi Vyakaran अलंकार-विवेचन (1st Language)

1. निम्नलिखित प्रश्नों के संक्षिप्त उत्तर दीजिए :

प्रश्न 1.
अलंकार किसे कहते हैं?
उत्तर :
अलंकार ऐसे उपादान हैं, जो काव्य की शोभा में वृद्धि करने के साथ-साथ भावाभिव्यक्ति एवं भावग्रहण में भी सहायक सिद्ध होते हैं।

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प्रश्न 2.
अलंकार का व्युत्पत्तिपरक अर्थ क्या है?
उत्तर :
अलंकार शब्द की व्युत्पत्ति ‘अलम्’ धातु से हुई है। ‘अलम्’ के तीन अर्थ होते हैं – सजाना, रोकना तथा पर्याप्त होना। साहित्य की दृष्टि से भी अलंकार शब्द ये तीनों भाव प्रकट करता है :

  • जिससे काव्य में सौंदर्य उत्पन्न होता है, वह अलंकार है।
  • वह सौंदर्य ऐसा हो कि कहना पड़े कि इससे अधिक ओर क्या कहा जा सकता है।
  • अलंकार से काव्य में पूर्णता आती है।

प्रश्न 3.
कवि सुमित्रानंदन पंत के मत से अलंकार क्या हैं?
उत्तर :
सुमित्रानंदन पंत के शब्दों में – “अलंकार केवल वाणी की सजावट के लिए नहीं, वे वाणी की अभिव्यक्ति के विशेष द्वार हैं। भाषा की पुष्टि के लिए, राग की परिपूर्णता के लिए आवश्यक उपादान हैं। वे वाणी के आचार, व्यवहार और नीति हैं।”

प्रश्न 4.
काव्य में अलंकार की स्थिति क्या है?
उत्तर :
अलंकार काव्य का आवश्यक उपादान तो हैं, किन्तु अनिवार्य तत्त्व नहीं।

प्रश्न 5.
अलंकार के मुख्य भेद कौन-कौन से हैं?
उत्तर :
साहित्य के मूल तत्त्वों – शब्द और अर्थ के आधार पर अलंकार के भी दो मुख्य भेद किए जाते हैं –

  • शब्दालंकार और
  • अर्थालंकार।

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प्रश्न 6.
शब्दालंकार किसे कहते हैं? उसके मुख्य भेदों के नाम बताइए।
उत्तर :
शब्द के सौंदर्य की वृद्धि करनेवाले तथा उसे संपूर्ण बनानेवाले तत्त्व शब्दालंकार हैं। शब्दालंकार के मुख्य चार भेद हैं –

  • अनुप्रास,
  • यमक,
  • श्लेष तथा
  • वक्रोक्ति।

प्रश्न 7.
अर्थालंकार किसे कहते हैं? उसके मुख्य भेद कौन-से हैं?
उत्तर :
जहाँ काव्य में चमत्कार अर्थगत होता है, वहाँ अर्थालंकार होता है। इसमें किसी शब्द विशेष के कारण चमत्कार नहीं रहता, उसके स्थान पर यदि दूसरा समानार्थी शब्द रख दिया जाय, तो भी अलंकार बना रहेगा। वास्तव में अलंकार भाव या अर्थ प्रकाशन की विभिन्न शैलियाँ हैं, अतः इनकी कोई निश्चित संख्या नहीं मानी गई है। ये अलंकार जिस प्रकार के चमत्कार पर आधारित होते हैं, उसके आधार पर इनके भेद इस प्रकार किए जा सकते हैं –

  • साम्यमूलक : साम्य रूप और गुण से संबंधित होते हैं; जैसे – उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, भ्रम, संदेह आदि।
  • वैषम्य या विरोधमूलक : असंगति, विषम, विरोधाभास आदि।
  • श्रृंखला या क्रममूलक : कारणमाला, एकावली, सार आदि।
  • न्यायमूलक : यथासंख्य, काव्यलिंग, तद्गुण, लोकोक्ति आदि।
  • कार्य-कारण संबंधमूलक : विभावना, हेतूत्प्रेक्षा, अतिशयोक्ति आदि।
  • निषेधमूलक : व्यतिरेक, अपह्नति, विनोक्ति आदि।
  • गूढार्थ-प्रतीतिमूलक : समासोक्ति, पर्यायोक्ति, व्याजस्तुति, व्याजनिंदा, सूक्ष्म, मुद्रा आदि।

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प्रश्न 8.
सादृश्यमूलक अलंकारों में कौन-कौन से तत्त्व रहते हैं?
उत्तर :
सादृश्यमूलक अलंकारों में चार तत्त्व रहते हैं :

  • उपमेय
  • उपमान
  • साधारण धर्म
  • वाचक शब्द

1. उपमेय – इसे प्रस्तुत भी कहते हैं। जिसकी समानता बतानी हो, वह उपमेय है।।
2. उपमान – इसे अप्रस्तुत भी कहते हैं। जिससे समानता बताई जाय, वह उपमान है।
3. साधारण धर्म – उपमेय और उपमान में जो गुण समान हों, वे साधारण धर्म हैं।
4. वाचक शब्द – जिन शब्दों के द्वारा समानता दिखाई जाए, वे वाचक शब्द हैं।

प्रश्न 9.
निम्नलिखित अलंकारों का परिचय सोदाहरण दीजिए।
(1) अनुप्रास,
(2) श्लेष,
(3) यमक,
(4) वक्रोक्ति,
(5) उपमा,
(6) रूपक,
(7) उत्प्रेक्षा,
(8) संदेह,
(9) विरोधाभास और
(10) मानवीकरण।
उत्तर :
(1) अनुप्रास : समान व्यंजनों के दोहराने से जब काव्य में लालित्य और लय उत्पन्न होता है, तब अनुप्रास अलंकार होता है; जैसे –

तरनि तनूजा तरु तमाल तरुवर बहु छाये।
यहाँ ‘त’ वर्ण चार बार दोहराया गया है।

(2) श्लेष : श्लेष की गणना दोनों प्रकार (शब्दालंकार, अर्थालंकार) के अलंकारों में की जाती है। जहाँ काव्य में किसी ऐसे शब्द का प्रयोग हो जिससे एक से अधिक अर्थ निकलते हों, वहाँ पर श्लेष अलंकार होता है; जैसे –

चिरजीवौ जोटी जुरै क्यों न सनेह गंभीर।
को घटि वे वृषभानुजा ने हलधर के वीर।।
यहाँ वृषभानुजा तथा हलधर में श्लेष है।

(3) यमक : जहाँ किसी शब्द की भिन्न अर्थों में अनेक बार आवृत्ति होती है, वहाँ ‘यमक’ नामक शब्दालंकार होता है; जैसे –

तो पर वारौं उरबसी, सुनु राधिके सुजान।
तो मोहन के उर बसी, है उरबसी समान।।
यहाँ उरबसी की तीनों भिन्न अर्थों में आवृत्ति हुई है।

  • उर्वशी (अप्सरा)
  • उर में बसी
  • उर्वशी (अप्सरा)

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(4) वक्रोक्ति : जहाँ श्लेषार्थी शब्द से अथवा काकु (कण्ठ की विशेष ध्वनि) के कारण प्रत्यक्ष अर्थ के स्थान पर दूसरा अर्थ कल्पित किया जाय, वहाँ वक्रोक्ति होती है; जैसे –

  • एक कबूतर देख हाथ में पूछा कहाँ अपर है?
    उसने कहा अपर कैसा? वह उड़ गया सपर है। (श्लेष, वक्रोक्ति)
    पहले ‘अपर’ का अर्थ ‘दूसरा’ तथा दूसरे ‘अपर’ का अर्थ बिना पर (पंख) के है।
  • मैं सुकुमारि नाथ बन जोगू। तुमहिं उचित तप मो कहँ भोगू।। (काकु वक्रोक्ति)

(5) उपमा : जहाँ एक वस्तु की रूप-गुण संबंधी विशेषता स्पष्ट करने के लिए उसकी तुलना दूसरी परिचित वस्तु से (जिसकी विशेषताएँ 2 अधिक प्रत्यक्ष है) की जाती है, वहाँ उपमालंकार होता है। उपमा के चार अंग हैं – उपमेय, उपमान, वाचक और साधारण धर्म। उदा. –

पीपर पात सरिस मन डोला।

यह ‘पूर्णोपमा’ है। यहाँ ‘मन’ उपमेय, ‘पात’ उपमान, सरिस वाचक शब्द तथा ‘डोलना’ साधारण धर्म है। उपमा के किन्हीं अंगों – के लुप्त होने पर ‘लुप्तोपमा’ अलंकार होता है।

(6) रूपक : जब उपमेय (प्रस्तुत) पर उपमान (अप्रस्तुत) का अभेद आरोप होता है, तब रूपक अलंकार होता है; जैसे –
चरणकमल बंदौं हरिराई।

यहाँ ‘चरण’ पर ‘कमल’ का अभेद आरोप है। अतः यहाँ रूपक अलंकार है। रूपक के अनेक उपभेद हैं।

(7) उत्प्रेक्षा : जहाँ पर उपमेय की उत्कृष्ट उपमान के रूप में संभावना या कल्पना की जाए, वहाँ उत्प्रेक्षालंकार होता है; जैसे –

सोहत ओढ़े पीत पर, स्याम सलोने गात।
मनों नीलमणि सैल पर, आतप पर्यो प्रभात।।

(8) संदेह : किसी वस्तु को देखकर जहाँ साम्य के कारण दूसरी वस्तु का संशय हो जाता है, पर निश्चय नहीं होता, वहाँ संदेह अलंकार होता है। कि, क्या, या, धौं, किधौं अथवा आदि इसके वाचक शब्द हैं।

संदेह अलंकार का उदाहरण –

है उदित पूर्णेन्दु वह या किसी,
कामिनी के बदन की छिटकी छटा।
मिट गया संदेह क्षणभर बाद ही
पानकर संगीत की स्वर माधुरी।
यहाँ संदेह अलंकार है।

(9) विरोधाभास : जहाँ विरोध न होने पर भी विरोध की प्रतीति हो, वहाँ विरोधाभास अलंकार होता है; जैसे
तुम मांसहीन, तुम रक्तहीन, हे अस्थिशेष, तुम अस्थिहीन।

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यहाँ ‘महात्मा गांधी’ का वर्णन है। किसी मनुष्य को मांसहीन, रक्तहीन, अस्थिहीन कहने से विरोध प्रतीत होता है, पर विरोध है – नहीं।

(10) मानवीकरण : जहाँ प्रकृति या जड़ पदार्थों में मानवीय गुणों का आरोप करके उनकी चेष्टाओं का चेतन के समान चित्रण किया जाए, वहाँ मानवीकरण अलंकार होता है; जैसे –

कहो कौन हो दमयंती-सी, तुम तरु के नीचे सोई
हाय ! तुम्हे भी छोड़ गया अलि, क्या नल-सा निष्ठुर कोई।

यहाँ ‘छाया’ को दमयंती जानकर पेड़ के नीचे उसके सोने की चेष्टा (जो कि मानवीय चेष्टा है।) का चित्रण होने से मानवीकरण अलंकार है।

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