Gujarat Board GSEB Solutions Class 10 Hindi Vyakaran छंद (1st Language) Questions and Answers, Notes Pdf.
GSEB Std 10 Hindi Vyakaran छंद विवेचन (1st Language)
1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
प्रश्न 1.
छंद किसे कहते हैं ?
उत्तर :
जब कोई उक्ति किसी विशेष लय, मात्रा या वर्ण योजना में बँध जाती है, तो उसे छंद कहते हैं। यति, गति और लय से समन्वित पद्य का रूप छंद हैं।
प्रश्न 2.
छंद के मुख्य घटक कौन-कौन से हैं ?
उत्तर :
‘यति’, ‘गति’ और ‘लय’ छंद के मुख्य घटक हैं। यति का अर्थ है सकना और गति यति का विलोम है। छंद में यति और गति एक साथ रहती – हैं। इनके समन्वय से छंद में उत्पन्न होनेवाला गुण लय है।
प्रश्न 3.
छंद के मुख्य दो भेद कौन-से हैं ?
उत्तर :
छंद के दो मुख्य वर्ग हैं :
- मात्रिक छंद और
- वर्णिक छंद
प्रश्न 4.
मात्रा से आप क्या समझते हैं ? उदाहरण दीजिए।
उत्तर :
किसी भी वर्ण के उच्चारण में लगनेवाले समय को मात्रा कहते हैं। उच्चारण अक्षरों का होता है। वर्ण प्रायः दो प्रकार के होते हैं : लघु और गुरु। अ, र, उ, ऋयुक्त व्यंजन तथा स्वतंत्र व्यंजन अक्षर माने जाते हैं, इनकी मात्रा लघु (1) होती है। गुरु दीर्घ अक्षर को कहते हैं। आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ स्वरयुक्त व्यंजन की मात्रा (ऽ) गुरु होती है। इसे दो मात्रा गितने हैं।
प्रश्न 5.
संयुक्ताक्षर, अनुस्वार या विसर्गयुक्त शब्द में मात्रा कैसे गिनते हैं ?
उत्तर :
संयुक्ताक्षर निसर्ग के ठीक पहले का वर्ण दीर्घ हो जाता है; जैसे – भक्त = ऽ। प्रायः – ऽऽ। वसंत = ।। यदि अनुस्वार के स्थान पर चंद्र बिन्दु हो, तो वह लघु ही रहेगा; जैसे – हँसी – ।ऽ। किसी हलंत व्यंजन के ठीक पहले का वर्ण भी गुरु माना जाएगा; जैसे – श्रीमन् = ऽऽ न् में स्वर नहीं – है अतः न् की मात्रा म के साथ जुड़कर ‘मन्’ दीर्घ (ऽ) गिना जाएगा।
प्रश्न 6.
‘गण’ कितने वर्गों का समूह होता है ? गणों की कुल संख्या कितनी है ?
उत्तर :
‘गण’ तीन वर्गों के समूह हैं। ‘गणों’ की कुल संख्या 8 है।
प्रश्न 7.
‘गणसूत्र’ को समझाइए।
उत्तर :
‘यमाताराजभानसलगम्’ को गणसूत्र कहा जाता है। अंतिम म् हल है अतः उसके ठीक पहले का ग दीर्घ (ऽ) गिना जाता है। गणों का नाम और परिचय इस प्रकार है
प्रमुख छंदों का परिचय : वर्णिक छंद :
(1) सवैया-छंद समूह :
सवैया वर्णवृत है। उसमें चार समान चरण होते हैं। प्रत्येक चरण में 22 से 26 तक वर्ण होते हैं। किसी एक ही ‘गण’ की सात या आठ बार आवृत्ति होती है। एक उदाहरण देखिए :
ऽ। ।ऽ। ।ऽ। ।ऽ।। ऽ। ऽ।। ऽऽ = 33 वर्ण
सेस महेस गनेस दिनेस सुरेसहुँ जाहि निरंतर गावै,
जाहि अनादि अनन्त अखण्ड अछेद अभेद सुबेद बतावै।
नारद ते सुक व्यास रहे पचिहारे तऊ पुनि पार न पावै,
ताहि अहीर कि छोहरिया छछिया भरि छाछपै नाच नचावै।।
इस सवैया के प्रत्येक चरण में 23-23 वर्ण हैं, जिसमें सात भ गण और अंत में दो गुरुवर्ण हैं। यह मत्तगयंद या मालती सवैया है। मंदारमाला, मदिरा, दुर्मिल, तथा किरीट आदि सवैया के अन्य प्रमुख भेद हैं।
(2) कवित्त :
जिन वर्णवृत्तों में प्रति चरण छब्बीस से अधिक अक्षर हों उसे दंडक कहा जाता है। दण्डक समचतुष्पदी होते हैं। दंडक के दो प्रमुख उपभेद हैं – साधारण दंडक और मुक्तक दण्डक। मुक्तक दण्डक को ही कवित्त कहते हैं। इसमें केवल वर्णों की गणना की जाती है, चरण में ‘गणों’ का विधान नहीं होता। कवित्त के कई उपभेद हैं।
जैसे –
घनाक्षरी, रूप घनाक्षरी, देव घनाक्षरी आदि।
घनाक्षरी कवित्त का एक उदाहरण देखिए :
ऽ।। ।ऽ। ऽ। ऽऽ। ।। ऽऽ ।। ऽ।। ।ऽ ।ऽ = 31 वर्ण
सुंदर सुजान पर, मंद मुस्कान पर, बाँसुरी की तान पर, बैरन ठगी रहैं;
मूरति विशाल पर, कांचन-सी माल पर, हंसन-सी चाल पर, खोटन खगी रहै।
यहाँ प्रत्येक चरण में 31 वर्ण हैं। आठ, आठ, आठ और सात वर्णों पर यति है। हिन्दी कवित्तों में 16, 15 वर्णों पर भी यति होती है।
मात्रिक छंद :
प्रश्न :
निम्नलिखित छंदो के लक्षण सोदाहरण लिखिए :
(1) दोहा
(2) सोरठा
(3) चौपाई
(4) रोला
(5) बरवै
उत्तर :
(1) दोहा :
यह अर्द्ध सममात्रिक छंद हैं। इसके पहले और तीसरे चरण में 13-13 और दूसरे तथा चौथे चरण में 11-11 मात्राएँ होती हैं। चरण के अंत में लघु होना चाहिए। पहले, तीसरे चरण के आरंभ में ‘ज गण’ नहीं होने चाहिए।
॥॥ ॥ऽ ऽ।ऽ = 13 ऽ। ।।। ऽ ऽ। = 11 = 24
उदा. :
रहिमन चुपवै बैठिए, देखि दिनन को फेर।
जब नीके दिन आइहैं, बनत न लगिहैं बेर।
(2) सोरठा :
यह भी अर्द्ध सममात्रिक छंद हैं। इसके पहले और तीसरे चरण में 11-11 तथा दूसरे और चौथे चरण में 13-13 मात्राएँ होती हैं। तुक पहले, तीसरे चरण के अंत में होती है; अर्थात् यह दोहे का उलटा होता है।
ऽ। ऽऽ ।।ऽ। = 11 ।। ।। ।।। । ऽ। 1ऽ = 13 = 24
उदा. :
जानि गौरी अनुकूल, सिम हिय हरब न जात कहि।
मंजुल मंगल मूल, बाम अंग फरकन लगे।
(3) चौपाई :
यह सममात्रिक छंद है। इसके चार चरणों में से प्रत्येक चरण में सोलह-सोलह मात्राएँ होती हैं। दो चरणों को अर्धाली कहते हैं। प्रत्येक चरण के अंत में गुरु होना जरूरी है।
3 + 3 + 5 + 5 = 16; 3 + 3 + 5 + 5 = 16
ऽ। ।।। ।।ऽ। ।ऽऽ ।ऽ ।।। ऽ ।।। ऽऽ
उदा. :
संत हृदय नवनीत समाना। कहा कविन्ह पै कहत न जाना।
निज परिताप द्रवै नवनीता। पर-दुख द्रवहि संत पुनीता।।
(4) रोला :
यह भी सममात्रिक छंद है। इसके चार चरणों में से प्रत्येक में चौबीस मात्राएँ होती हैं। 11 तथा 13 मात्रा पर यदि आती है, अंत में दो लघु या एक गुरु वर्ण आता है।
॥। ।ऽऽ ।। ।ऽ। । ।।। ।।ऽऽ = 24
उदा. :
तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए,
झूके कूल सो जल परसन हित मनहु सुहाए।
किधौं मुकुट में लखत उझकि सब निज-निज शोभा
कै प्रनवत जल जानि, परम पावन फल लोभा॥
(5) बरबै :
यह अर्द्ध सममात्रिक छंद है। इसके पहले और तीसरे चरण में 12-12 तथा दूसरे और चौथे चरण में 7-7 मात्राएँ होती हैं। दूसरे और चौथे चरण के अंत में ‘ज गण’ अथवा ‘त गण’ का प्रयोग होता है।
।।। ।ऽ ऽ ।। ।। = 12; ऽ ।।ऽ। = 7 = 19
उदा. :
अवधि शिला का उर पर, था गुरुभार।
तिल-तिल काट रही थी, दृग जलधार।।
यहाँ दूसरे और चौथे चरण में ‘ज गण’ (।ऽ।) हैं।