Gujarat Board GSEB Std 10 Hindi Textbook Solutions Kshitij Chapter 16 नौबतखाने में इबादत Textbook Exercise Important Questions and Answers, Notes Pdf.
GSEB Std 10 Hindi Textbook Solutions Kshitij Chapter 16 नौबतखाने में इबादत
GSEB Class 10 Hindi Solutions नौबतखाने में इबादत Textbook Questions and Answers
प्रश्न-अभ्यास
प्रश्न 1.
शहनाई की दुनिया में डुमराँव को क्यों याद किया जाता हैं ?
उत्तर :
शहनाई की दुनिया में डुमराँव को इसलिए याद किया जाता है क्योंकि शहनाई के प्रसिद्ध वादक उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ का जन्म इसी डुमरांव गाँव
में हुआ था। इसके अलावा शहनाई में उपयोगी की जानेवाली रीड, नटकट इसी गांव और सोन नदी के आसपास मिलती है। इस तरह शहनाई और
डुमराँव एकदूसरे के पूरक हैं।
प्रश्न 2.
बिस्मिल्ला खाँ को शहनाई की मंगलध्वनि का नायक क्यों कहा गया है ?
उत्तर :
बिस्मिल्ला खां को शहनाई की मंगलध्वनि का नायक कहा गया है क्योंकि इनकी शहनाई से सदा मंगलध्वनि ही निकली, कभी भी अमंगल स्वर नहीं
निकला। शहनाई को सदैव मांगलिक अवसरों पर बजाया जाता है। उन्होंने सामान्य मांगलिक कार्यों से लेकर अनेक सुप्रसिद्ध मांगलिक कार्यों में शहनाई बजाई है।
प्रश्न 3.
सुपिर-वाद्यों से क्या अभिप्राय है? शहनाई को सुषिर-वाद्यों में ‘शाह’ की उपाधि क्यों दी गई होगी?
उत्तर :
वैदिक इतिहास में शहनाई का कोई उल्लेख नहीं मिलता है, इसे संगीत शास्त्रों के अन्तर्गत सुषिर-वाद्यों में गिना जाता है। सुषिर-वाद्य यानी फूककर बजाए जानेवाले वाद्य । ऐसे वाद्य जिनमें नाड़ी होती है उन्हें अरब में ‘नय’ बोलते हैं जबकि शाहनय अर्थात् शहनाई को सुषिर-वाद्यों में शाह की उपाधि दी गई है।
प्रश्न 4.
आशय स्पष्ट कीजिए :
क. ‘फटा सुर न बखो । लुंगिया का क्या है, आज फटी है, तो कल सी जाएगी।’
उत्तर :
क शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ खुदा से प्रार्थना करते हैं कि खुदा उन्हें फटा अर्थात् बेसुरा सुर न दे। एक बार सुर बिगड़ गया, फट गया तो उनकी पहचान चली जाएगी । लुंगी यदि फट जाए तो उसे सिलकर उपयोग में लाया जा सकता है किन्तु एक बार सुर खराब होने पर शहनाई वादन में कमी रह जाएगी । बिस्मिल्ला खाँ को यह बरदाश्त नहीं । इसीलिए वे खुदा से सुर को बनाए रखने की मांग करते
ख. ‘मेरे मालिक सुर बख्श दे । सुर में वह तासीर पैदा कर कि आँखों से सच्चे मोती की तरह अनगढ़ आँसू निकल आएँ ।’
उत्तर :
ख. उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ पाँचों वक्त की नमाज के बाद सजदे करते हैं कि खुदा उनके सुर को इतना प्रभावशाली और करुणास्पर्शी बना दें कि जिसे सुनकर श्रोताओं की आँखों से भावनाओं के सच्चे मोती उनकी आँखों से झलक पड़े। उनके सुर को सुनने के बाद श्रोताओं के हृदयरूपी सागर से आंसूओं के सच्चे मोती झलक पड़े अर्थात् सारे श्रोता भाव-विभोर होकर रो पड़े।
प्रश्न 5.
काशी में हो रहे कौन-से परिवर्तन बिस्मिल्ला खां को व्यथित करते थे ?
उत्तर :
काशी की लुप्त होती परंपराएँ खाँ साहब को व्यथित करती थी। वे अपने बीते दिनों को याद करते हुए कहते हैं कि सन् 2000 में पक्का महाल (काशी विश्वनाथ से लगा हुआ) से मलाई बरफ बेचनेवाले जा चुके हैं। खाँ साहब को इसकी कमी खलती थी। वे शिद्दत से महसूस करते थे कि देशी घी में भी शुद्धता नहीं रही । गायकों के मन में संगितियों के लिए कोई आदर नहीं रहा। कोई भी घंटों अभ्यास नहीं करता । साम्प्रदायिक सद्भावना कम होती जा रही है। चैती, कजली और अद्व का जमाना चला गया।
प्रश्न 6.
पाठ में आए किन प्रसंगों के आधार पर कह सकते हैं कि
क. बिस्मिाला खां मिली-जुली संस्कृति के प्रतीक थे।
उत्तर :
क. उस्ताद बिस्मिल्ला खां हिन्दु और मुस्लिम दोनों ही संस्कृति के प्रतीक थे। वे मुस्लिम होकर भी काशी विश्वनाथ मंदिर और बालाजी मंदिर के प्रति अपार श्रद्धा रखते थे । वे इन दोनों स्थलों पर शहनाई बजाते थे। काशी से बाहर कोई कार्यक्रम में शरीक होते तो थोड़ी देर काशी विश्वनाथ मंदिर और बालाजी मंदिर की ओर मुखकर के शहनाई बजाते थे। वे अपने धर्म के प्रति भी समर्पित थे । मुहर्रम के दिनों में वे शहनाई नहीं बजाते थे न किसी कार्यक्रम में शरीक होते थे। वे आठवीं के दिन दालमंडी में फातमान के करीब आठ किलोमीटर दूरी तक पैदल रोते हुए नोहा बजाते थे।
ख. वे वास्तविक अर्थों में सच्चे इंसान थे।
उत्तर :
ख. बिस्मिल्ला खाँ भारत रत्न सहित कई पुरस्कारों से सम्मानित थे । वे काशी में रहते हुए कई परम्पराओं का निर्वाह करते थे। चाहे वह परम्परा
किसी भी सम्प्रदाय का हो, कजली हो, चैती हों या अदब । वे सभी परम्पराओं का आदर करते हुए सामान्य से अति सामान्य व्यक्ति की तरह जीवन व्यतित करते थे। अपनी उपलब्धियों पर उन्हें घमंड नहीं था । फटी लुंगी पहनने में शर्म नहीं महसूस करते थे। बल्कि वे खुदा से
सच्चे सुर के लिए सजदे करते थे। इन्हीं प्रसंगों के आधार पर हम कह सकते हैं कि वे वास्तविक अर्थों में एक सच्चे इंसान थे।
प्रश्न 7.
बिस्मिल्ला खां के जीवन से जुड़ी उन घटनाओं और व्यक्तियों का अशेख करें जिन्होंने उनकी संगीत साधना को समृद्ध किया?
उत्तर :
बिस्मिल्ला खाँ की संगीत साधना को समृद्ध करने में कई व्यक्तियों का योगदान रहा । वे निम्नलिखित हैं –
1. दोनों बहने : वे रियाज के लिए जिस रास्ते से जाते थे उस रास्ते में दो गायिका बहनों का घर पड़ता था बतूलन बाई और रसूलन बाई । उनके द्वारा गाई गई ठुमरी, टप्पो दादरा आदि को सुनकर उनके मन में संगीत के प्रति रूचि उत्पन्न हुई।
2. नाना व उनके मामा : खाँ साहब के नाना प्रसिद्ध शहनाई वादक थे। वे छिपकर उन्हें सुनते थे और अपने नाना के वहाँ से जाने के बाद उनकी वाली शहनाई को ढूँढ़ते थे, जो नाना के बजाने पर मीठी धून छेड़ती थी। उनके दोनों मामा सादिक हुसैन और अलीबख्श वे भी शहनाई वादक थे। उनसे ही उन्हें शहनाई बजाने की प्रेरणा मिली।
3. कुलसम की कचौड़ी: कुलसुम की कचौड़ी में भी बिस्मिल्ला खां को संगीत के स्वर सुनाई देते थे। कुलसुम जब कलकलाते देशी घी में कचौड़ी तलने के लिए डालती तो उसमें से छत्र की आवाज निकलती थी। इस आवाज में उन्हें संगीत के सारे आरोह-अवरोह दिखाई देते थे।
रचना और अभिव्यक्ति :
प्रश्न 8.
बिस्मिल्ला खां के व्यक्तित्त्व की कौन-कौन सी विशेषताओं ने आपको प्रभावित किया ?
उत्तर :
बिस्मिल्ला खाँ के व्यक्तित्व की अनेक विशेषताएं हैं, मुझे जिस विशेषताओं ने प्रभावित किया वे निम्नलिखित है
- सादा जीवन : बिस्मिल्ला खाँ भारत के सर्वोच्च सम्मान व कई अन्य पुरस्कारों से अलंकृत होते हुए भी एक सामान्य व्यक्ति की तरह जीवन जीते थे। वे फटी हुई लंगी पहनते थे और कोई भी उनसे मिलने आता तो वे उसी लंगी में, उससे भेंट-मुलाकात करते थे।
- उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ इतनी प्रसिद्धि के बावजूद अपने पाँचों वक्त की नमाज में सच्चे सुर के लिए प्रार्थना करते थे।
- उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ हिन्दू और मुस्लिम दोनों संस्कृतियों के संगम थे। वे मुहर्रम में भी अपार श्रद्धा रखते तो काशी विश्वनाथ मंदिर व
बालाजी मंदिर के प्रति उतनी ही श्रद्धा रखते थे। काशी को वे जन्नत मानते थे। शहनाई और काशी को कभी न छोड़ने के लिए कहते थे। - उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ अथक परिश्रम करते थे। शहनाई मे अंत तक सर्वोच्च बने रहने के लिए वे अपने पाँचों वक्त की नमाज में सच्चे सुर की मांग करते थे और लगातार रियाज करते थे।
प्रश्न 9.
मुहर्रम से बिस्मिल्ला खाँ के जुड़ाव को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
बिस्मिल्ला खाँ अपने धर्म के प्रति समर्पित व्यक्ति थे । मुहर्रम के दिनों में वे शहनाई नहीं बजाते थे। जब मुहर्रम आता था, जिसमें शिया मुसलमान हजरत इमामहुसैन और उनके वंशजों के प्रति पूरा 10 दिन का शोक मनाते थे। उस समय वे शहनाई नहीं बजाते थे। न ही किसी संगीत के कार्यक्रम में शरीक होते थे। मुहर्रम के आठवें दिन उनके लिए विशेष महत्त्वपूर्ण था। उस दिन खा साहब खड़े होकर शहनाई बजाते थे व दालमंडी में फातमान के करीब आठ किलोमीटर की दूरी तक पैदल रोते हुए नोहा बजाते जाते थे। यो मुहर्रम का दिन खाँ साहब के लिए विशेष महत्त्वपूर्ण है।
प्रश्न 10.
बिस्मिाला खां कला के अनन्य उपासक थे, तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर :
बिस्मिल्ला खाँ कला के सच्चे उपासक थे। वे शहनाई बजाने में निपुण थे। वे कला को साधना मानते थे। उन्हें जीवन में एक ही जुनून था, एक ही धुन थीं, खुदा से सच्चा सुर पाने की प्रार्थना करते थे। पाँचों वक्त की नमाज में वे अच्छे सुर को पाने की प्रार्थना करते थे। नमाज के बाद में सजदे में गिड़गिड़ाते हुए अच्छे सुर की मांग करते थे । सदैव रियाज करते थे। उन्होंने अपने पहनावे या अन्य भौतिक वस्तुओं पर ध्यान नहीं दिया। उनके अनुसार लुंगी फटी हो तो चलेगा पर फटा सुर नहीं । इसलिए हम कह सकते हैं कि बिस्मिल्ला खाँ कला के अनन्य उपासक थे।
भाषा-अध्ययन :
प्रश्न 11.
निम्नलिखित मिश्र वाक्यों के उपवाक्य छाँटकर भेद भी लिखिए :
(क) यह जरूर है कि शहनाई और डुमराव एक-दूसरे के लिए उपयोगी है।
(ख) रोड अंदर से पोली होती है जिसके सहारे शहनाई को फूंका जाता है।
(ग) रोड नरकट से बनाई जाती है जो डुमराँव में मुख्यतः सोन नदी के किनारे पाई जाती है।
(घ) उनको यकीन है, कभी खुदा यूँ ही उन पर महेरबान होगा।
(ङ) हिरन अपनी ही मशक से परेशान पूरे जंगल में उस वरदान को खोजता है जिसकी गमक उसी में समाई है।
(च) खाँ साहब की सबसे बड़ी देन हमें यही है कि पूरे अस्सी बरस उन्होंने संगीत को संपूर्णतया व एकाधिकार से सीखने की जिजीविषा को अपने भीतर जिंदा रखा।
उत्तर :
(क) उपवाक्य : शहनाई और डुमराँव एक-दूसरे के लिए उपयोगी हैं । भेद : संज्ञा उपवाक्य
(ख) उपवाक्य : जिसके सहारे शहनाई को फेंका जाता है। भेद : विशेषण उपवाक्य
(ग) जो डुमराव में मुख्यतः सोन नदी के किनारों पर पाई जाती है। भेद : विशेषण उपवाक्य
(घ) कभी खुदा उन पर यूँ ही महेरबान होगा। भेद : संज्ञा उपवाक्य
(ङ) उपवाक्य : जिसको गमक उसी में समाई है। भेद : विशेषण उपवाक्य
(च) उपवाक्य : पूरे अस्सी वर्ष उन्होंने संगीत को संपूर्णता व एकाधिकार से सीखने की जिजीविषा को अपने भीतर जिन्दा रखा । भेद : संज्ञा उपवाक्य
प्रश्न 12.
निम्नलिखित वाक्यों को मिश्र वाक्यों में बदलिए –
(क) इसी बालसुलभ हसी में कई यादें बंद हैं।
(ख) काशी में संगीत आयोजन की एक प्राचीन व अद्भुत परम्परा है।
(ग) धत् । पगली ! ई भारतरत्न हमको शहनाइया पे मिला है, लुंगया पे नाहीं।
(घ) काशी का नायाब हीरा हमेशा से दो कौमों को एक होकर आपस में भाईचारे के साथ रहने की प्रेरणा देता रहा।
उत्तर :
(क) यह ऐसी बालसुलभ हंसी है जिसमें कई यादें बंद हैं।
(ख) काशी में जो संगीत समारोह आयोजित होते हैं, उनकी एक प्राचीन एवं अद्भुत परंपरा है।
(ग) धत् पगली ई जो भारत रत्न मिला है, वह शहनाई पर मिला है, लुंगिया पर नहीं।
(घ) काशी का वह नायाब हीरा है जो हमेशा से दो कौमों को एक होकर आपस में भाईचारे के साथ रहने की प्रेरणा देता रहा है।
Hindi Digest Std 10 GSEB नौबतखाने में इबादत Important Questions and Answers
पाठेत्तर सक्रियता
सूचना
20 दिसम्बर, 2018
प्रश्न 1.
संगीत समारोह हेतु :
उत्तर :
सभी छात्रों व अध्यापकों को सूचित किया जाता है कि हमारे विद्यालय में दिनांक 1 जनवरी, 2019 को सुप्रसिद्ध शहनाई वादक बिस्मिल्ला खाँ के
शहनाई वादन का आयोजन किया गया है। इस संगीत समारोह में आप सभी सादर आमंत्रित हैं। विद्यालय परिसर में यथा समय पहुँच कर अपनी जगह सुनिश्चित करें।
स्थान : विद्यालय परिसर
समय : सांय 7 बजे
दिनांक : ! जनवरी, 2019
आयोजक
प्राधानाचार्य
प्रश्न 2.
आप अपने मनपसंद संगीतकार के बारे में एक अनुच्छेद लिखिए।
उत्तर :
ए. आर. रहमान का नाम आज संगीतकारों में सबसे ऊपर है। वे दक्षिण भारतीय हैं और तमिल, तेलुगु, मलयालम और कन्नड़ की फिल्मों में संगीत देते हैं। इन्होंने पिछले दशक में भारत और भारत से बाहर खूब प्रसिद्धि बटोरी है। अपने संगीत पर रहमान कई पुरस्कारों से सम्मानित हो चुके है। रहमान के कई गाने हिन्दी फिल्मों में भी चर्चित रहे हैं। मेरे मनपसन्द संगीतकार ए. आर. रहमान हैं।
प्रश्न 3.
हमारे साहित्य, कला, संगीत और नृत्य को समृद्ध करने में काशी (आज के वाराणसी) के योगदान पर चर्चा कीजिए।
उत्तर :
हमारे साहित्य, कला, संगीत और नृत्य को समृद्ध करने में काशी का महत्त्वपूर्ण योगदान है। काशी का बनारस हिंदु विश्वविद्यालय का साहित्य व शिक्षा के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान है। इस विश्व विद्यालय की पहचान पूरे विश्व में हैं। इसे बच्चू के नाम से जाना जाता है। बिस्मिल्ला खां जैसा प्रसिद्ध शहनाई वादक भी काशी की ही उपज हैं।
उनके जैसा शहनाई वादक विश्व में बेजोड़ हैं। कला व संगीत को समृद्ध करने में इनका महत्त्वपूर्ण योगदान है। विश्वनाथ व बालाजी का मंदिर भी प्रसिद्ध है। काशी का धार्मिक व आध्यात्मिक दोनों तरह से महत्त्वपूर्ण है। बनारस की बनारसी साड़ी का भी कोई जवाब नहीं । विभिन्न रंगों और बेजोड़ कलाकारी के कारण ये साड़ियाँ विश्वभर में प्रसिद्ध हैं।
प्रश्न 4.
काशी का नाम आते ही हमारी आंखों के सामने काशी की बहुत-सी चीजें उभरने लगती हैं, वे कौन-कौन सी हैं ?
उत्तर :
काशी का नाम आते ही हमारी आँखों के सामने काशी की निम्नलिखित चीजें उभरने लगती है
- काशी हिन्दु विश्वविद्यालय
- काशी यानी बनारस की साड़ी
- बनारसी एक्का
- काशी विश्वनाथ मंदिर
- बालाजी मंदिर
- उत्साद बिस्मिल्ला खाँ की शहनाई
- गंगा नदी का घाट (मणिकर्णिका घाट)
अतिरिक्त प्रश्नोत्तर
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो-तीन वाक्य में लिखिए :
प्रश्न 1.
बिस्मिल्ला खाँ को संगीत की प्रेरणा कहाँ से मिली ?
उत्तर :
बिस्मिल्ला खाँ जब छोटे थे तब रियाज करने बालाजी मंदिर जाते थे। रास्ते में रसूलन और बतूलन दोनों बहनों का घर था, वे बहुत अच्छा गाती थीं। इन्हीं दोनों बहनों से खाँ साहब को संगीत की प्रेरणा मिली।
प्रश्न 2.
बिस्मिल्ला खां के मामा कौन थे और वे क्या करते थे ?
उत्तर :
बिस्मिल्ला खाँ के मामा जाने माने शहनाई वादक थे। वे विभिन्न रियासतों के दरबार में शहनाई बजाने का कार्य करते थे।
प्रश्न 3.
डुमरांव गांव की क्या खासियत है?
उत्तर :
शहनाई बजाने में जिस रीड (नरकट) का इस्तेमाल होता है वह रीड डुमराँव गाँव व उसके आस-पास के क्षेत्र में पाई जाती है। इसी नरकट से शहनाई जैसा वाद्य बनता है। यही डुमराँव गाँव की खासियत है।
प्रश्न 4.
बिस्मिल्ला खाँ के परिवार के विषय में जानकारी दीजिए।
उत्तर :
बिस्मिल्ला खाँ के माता व पिता का नाम मिट्ठन और पैगंबरबख्श खाँ है। इनके परदादा सलार हुसैन खाँ डुमराँव के निवासी थे । खाँ साहब का जन्म यहीं हुआ था। 5-6 वर्ष की उम्र में ये अपने ननिहाल आ गए थे जहाँ इनके नाना व दोनों मामा प्रसिद्ध शहनाई वादक थे।
प्रश्न 5.
बिस्मिल्ला खाँ की तुलना हिरन से क्यों की गई हैं ?
उत्तर :
हिरन अपनी ही महक से परेशान पूरे जंगल में उसको खोजता है उसी प्रकार बिस्मिल्ला खाँ को सुरों की पूरी जानकारी होने पर भी यही सोचते आए हैं कि सातों सुरों को बरतने की तमीज उन्हें अभी तक नहीं आई, और सजदे में वे खुदा से सुर मांगते हैं। इसलिए विस्मिल्ला खाँ की तुलना हिरन से की गई है।
प्रश्न 6.
नया तिलस्म गढ़ने से क्या आशय है ?
उत्तर :
नया तिलस्म गढ़ने से आशय है – किसी अज्ञात शक्ति की शरण में जाने के पश्चात् स्वयं को मानसिक चिंताओं से मुक्त करके अपने लिए नई योजना बनाना । अपने भविष्य को सुनहरा करने के लिए जादुई स्वप्न देखना । ऐसी कल्पना करना जो जादुई प्रभाव से भरी हो।
प्रश्न 7.
मुहर्रम के समय शिया मुसलमान क्या करते हैं?
उत्तर :
मुहर्रम के समय शिया मुसलमान हजरत इमाम हुसैन एवं उनके कुछ वंशजों के प्रति अजादारी (शोक) मनाते हैं। पूरे दस दिन का शोक । इस अवसर पर वे किसी संगीत समारोह में भाग नहीं लेते।
प्रश्न 8.
बिस्मिल्ला खाँ का नाम किस मुस्लिम पर्व से जुड़ा है ? क्यों ?
उत्तर :
बिस्मिल्ला खाँ का नाम मुहर्रम मुस्लिम पर्व से जुड़ा है। इस समय खाँ साहब किसी समारोह में शरीक नहीं होते । दस दिन के शोक में आठवाँ दिन बहुत महत्त्वपूर्ण है। इस दिन खाँ साहब खड़े होकर शहनाई बजाते हैं और दालमंडी में फातमान के पास करीब आठ किलोमीटर पैदल रोते हुए, नोहा बजाते जाते हैं।
प्रश्न 9.
बिस्मिाला खां के मामा शहनाई बजाते समय सम पर आते तब अमीरुद्दीन क्या करता था ?
उत्तर :
जब अमीरुद्दीन छोटा था तब उसे यह नहीं मालूम था कि दाद वाह करके दी जाती है, सिर हिलाकर दी जाती है। उसके मामा शहनाई बजाते समय सम पर आते थे तो अमीरुद्दीन धड़ से एक पत्थर जमीन पर मारता था।
प्रश्न 10.
बचपन में खां साहब को किसका शौक था? उस शौक को पूरा करने के लिए क्या करते थे?
उत्तर :
बचपन में खाँ साहब को फिल्म देखने का शौक था। उस समय धर्ड क्लास के लिए छह पैसे का टिकट मिलता था। ये दो पैसे मामा से, दो पैसे मौसी से तथा दो पैसे नानी से लेकर घंटों लाइन में लगकर टिकट लेते थे और सुलोचना की फिल्म देखते थे।
प्रश्न 11.
चार साल का अमीरुद्दीन किसकी शहनाई खोजता था ? क्यों ?
उत्तर :
चार साल का अमीरुद्दीन भीड़ में अपने नाना की शहनाई खोजता था। एक-एक करके वह कई शहनाई खारिज कर देता था। उसके नाना की शहनाई से मीठी आवाज निकलती थी। इसलिए वह अपने नाना की शहनाई खोजता था।
प्रश्न 12.
काशी में हनुमान जयंति के अवसर पर क्या किया जाता है ?
उत्तर :
काशी में हनुमान जयंति के अवसर पर पांच दिनों तक शास्त्रीय एवं उपशास्त्रीय गायन-वादन की उत्कृष्ट सभा का आयोजन होता है। इसमें बिस्मिल्ला खाँ अवश्य उपस्थित रहते हैं।
प्रश्न 13.
‘ये बिस्मिल्ला खा है।’ से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
‘ये बिस्मिल्ला खाँ है’ से तात्पर्य है बिस्मिल्ला खाँ को शहनाई । शहनाई का तात्पर्य है बिस्मिल्ला खाँ का हाथ अर्थात् बिस्मिल्ला खां के हाथों से बजाई जानेवाली शहनाई से निकलनेवाली जादुई आवाज।
प्रश्न 14.
खाँ साहब की शिष्या ने उन्हें क्या सलाह दी ?
उत्तर :
खाँ साहब की शिष्या ने उन्हें यह सलाह दी की आपको प्रतिष्ठित भारतरत्न मिल चुका है। अत: आप फटी तहमद (लुंगी) न पहने । अच्छा नहीं लगता । जब भी कोई आता है आप इसी फटी तहमद में सबसे मिलते हैं।
दीर्घउत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
बिस्मिल्ला खाँ की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा
बिस्मिल्ला खाँ के चरित्र की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
बिस्मिल्ला खाँ के चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएं है –
सादा जीवन, उच्च विचार : शहनाई वादक के रूप में विख्यात बिस्मिल्ला खाँ का जीवन सादगी से भरा था। वे फटी लुंगी पहनने में जरा भी संकोच नहीं करते थे। इतनी उपलब्धियों के बावजूद भी वे अपने को सामान्य मानव समझते थे।
धार्मिक उदारता : बिस्मिल्ला खाँ अपने धर्म के प्रति पूर्णतः समर्पित थे। वे पाँचों वक्त की नमाज अदा करते थे। दूसरी ओर उनकी आस्था हिन्दु धर्म के प्रति भी रही है। विश्वनाथ बालाजी, संकटमोचन आदि मंदिरों में पूर्ण आस्था रखते थे। अत: वे दोनों धर्म के प्रति उदार थे।
कला के पुजारी : बिस्मिल्ला खाँ शहनाई वादक थे। वे कला के पुजारी थे। पाँचों वक्त की नमाज के बाद वे सजदे में अपने खुदा से सच्चे सुर की माँग करते थे। उन्हें फटी लुंगी मंजूर थी परन्तु फटा सुर नहीं। अत: वे कला के पुजारी थे।
धन के पक्के : बिस्मिल्ला खाँ धुन के पक्के थे। एक बार तय किया कि सुलोचना की फिल्म देखनी है, तो वे अपनी मौसी, नानी, मामा से पैसे लेकर फिल्म देखने चले जाते थे। नाना की मीठीवाली शहनाई को खोजने के लिए कई व ढेरों शहनाई को बजाकर देखते थे। धुन के पक्के होने के गुण ने ही उन्हें प्रख्यात शहनाई वादक बना दिया।
खाने के शौकीन : बिस्मिल्ला खाँ खाने के बड़े शौकीन थे। कुलसुम की कचौड़ी, पक्का महाल की मलाई बरफ, जलेबी आदि खाँ साहब को बहुत पसन्द थी । वे खाने के बड़े शौकीन थे। उन्हें कुलसुम की कचौड़ी में भी संगीत के सुर सुनाई देते थे।
प्रश्न 2.
बिस्मिल्ला खाँ को किसकी कमी खलती है ? पाठ के आधार पर बताइए।
उत्तर :
काशी, पक्का महाल से मलाई बरफ बेचनेवाले जा चुके हैं। खा साहब को इसकी कमी खलती है। पहले की तरह देशी घी में तली हुई कचौड़ी जलेबी नहीं मिलती। खाँ साहब को इसकी कमी खलती है। अब संगतियों के लिए गायकों के मन में कोई आदर नहीं रहा । खां साहब इसके लिए अफसोस करते हैं।
आज के समय में कोई गायक घंटों रियाज नहीं करता, कजली, चैती और अदब का वह जमना अब नहीं रहा । खाँ साहब को इसकी कमी खलती है। काशी पक्का महाल से मलाई बरफ गया, संगीत, साहित्य और अदब की बहुत सारी परंपराएं लुप्त हो गई। एक सच्चे सुर साधक और सामाजिक की भांति बिस्मिल्ला खाँ साहब को इन सब की कमी खलती है।
प्रश्न 3.
बिस्मिल्ला खां का पूरा परिवार शहनाई के प्रति समर्पित था । कैसे ?
उत्तर :
बिस्मिल्ला खाँ का पूरा परिवार शहनाई के प्रति समर्पित था इसमें कोई दो राय नहीं । बिस्मिल्ला खाँ के परदादा शहनाई के उस्ताद थे । ननिहाल में उनके नाना बहुत मधुर शहनाई बजाते थे। उनके दोनों मामा सादिक हुसैन और अलीबख्श देश के जाने-माने शहनाई वादक थे। स्वयं बिस्मिल्ला खाँ ने अपना पूरा जीवन शहनाई बजाने व सच्चे सुर की तलाश में निकाल दिया।
इनके नाना व मामा काशी विश्वनाथ के मंदिर व बालाजी के मंदिर में शहनाई बजाने जाते थे। इनके पूरे परिवार के लोग शहनाई बजाने में उस्ताद थे। अत: हम कह सकते हैं कि बिस्मिल्ला खाँ का पूरा परिवार शहनाई के प्रति समर्पित था।
प्रश्न 4.
‘मजहब के प्रति समर्पित बिस्मिल्ला खां की श्रद्धा काशी विश्वनाथ के प्रति भी अपार है।’ इस कथन के आलोक में अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तरः
बिस्मिल्ला खाँ अपने धर्म के प्रति समर्पित हैं । मुहर्रम के समय वे दस दिन का शोक मनाते हैं और आठवें दिन की महिमा अत्यधिक है। वे इन दिनों किसी समारोह में भाग नहीं लेते थे। दूसरी ओर काशी विश्वनाथ के प्रति भी उनकी श्रद्धा अपार थी । वे सुबह उठकर काशी विश्वनाथ मंदिर में शहनाई बजाते थे। गंगा स्नान करते थे और बालाजी के पास रियाज करते थे।
जब भी वे काशी से बाहर रहते तब विश्वनाथ व बालाजी मंदिर की दिशा की ओर मुंह करके बैठते थे। ये इस बात की पुष्टि करता है कि बिस्मिल्ला खाँ की श्रद्धा काशी विश्वनाथ के प्रति अपार है। ये हिन्दु और मुसलमान दोनों के बीच सेतु का कार्य करते थे। दोनों संस्कृतियों को सम्मान देते थे। अतः बिस्मिल्ला खाँ मुस्लिम व हिन्दु दोनों धर्म के प्रति श्रद्धा रखते थे।
अतिलघुत्तरी प्रश्न (विकल्प सहित)
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दिए गए विकल्पों में से सही उत्तर चुनकर लिखिए।
प्रश्न 1.
उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ के बचपन का नाम क्या था?
(क) अलीबख्श
(ख) शम्सुद्दीन
(ग) सादिक हुसैन
(घ) अमीरुद्दीन
उत्तर :
(घ) अमीरुद्दीन
प्रश्न 2.
अमीरुद्दीन का जन्म कहाँ हुआ था?
(क) डुमराँव
(ख) सोन नदी के पास
(ग) बिहार
(घ) काशी
उत्तर :
(क) डुमरांव गाँव में
प्रश्न 3.
नटकट, रीड मुख्यत: कहाँ पाई जाती हैं ?
(क) गंगा नदी के किनारे
(ख) जमुना नदी के किनारे
(ग) सोन नदी के किनारे
(घ) क्षिप्रा नदी के किनारे
उत्तर :
(ग) सोन नदी के किनारे
प्रश्न 4.
शहनाई वादक बिस्मिल्ला खाँ कितने बरस से सुर की मांग कर रहे हैं?
(क) नब्बे बरस
(ख) अस्सी बरस
(ग) सत्तर बरस
(घ) पचास बरस
उत्तर :
(ख) अस्सी बरस
प्रश्न 5.
बिस्मिल्ला खाँ की पसंदीदा हीरोइन कौन थी ?
(क) सुलोचना
(ख) कुलसुम
(ग) रसूलन
(घ) बतूलन
उत्तर :
(क) सुलोचना
प्रश्न 6.
अमीरुद्दीन को बालाजी मंदिर में शहनाई बजाने के लिए कितना मेहनताना मिलता था ?
(क) चार आना
(ख) आठ आना
(ग) एक रुपया
(घ) बारह आना
उत्तर :
(ख) आठ आना
प्रश्न 7.
खाँ साहब शहनाई बजाते समय दूसरी रीड का इस्तेमाल क्यों करते हैं ?
(क) बेसुरी आवाज निकलने के कारण
(ख) शहनाई न बजने के कारण
(ग) शहनाई फट जाने के कारण
(घ) शहनाई की रीड अंदर से गीली होने के कारण
उत्तर :
(घ) शहनाई की रोड अंदर से गीली होने के कारण
प्रश्न 8.
बिस्मिल्ला खाँ का निधन कब हुआ?
(क) 21 अगस्त, 2005
(ख) 21 अगस्त, 2004
(ग) 21 अगस्त, 2006
(घ) 21 अगस्त, 2007
उत्तर :
(ग) 21 अगस्त, 2006
अर्थबोध संबंधी प्रश्न
1. अमीरुद्दीन अभी सिर्फ छः साल का है और बड़ा भाई शम्सुद्दीन नौ साल का। अमीरुद्दीन को पता नहीं है कि राग किस चिड़िया को कहते हैं। और ये लोग हैं मामूजान वगैरह जो बात-बात पर भीमपलासी और मुलतानी कहते रहते हैं। क्या वाजिब मतलब हो सकता है इन शब्दों का, इस लिहाज से अभी उम्र नहीं है अमीरुद्दीन की, जान सके इन भारी शब्दों का वजन कितना होगा।
गोया, इतना जरूर है कि अमीरुद्दीन व शम्सुद्दीन के मामाद्वय सादिक हुसैन तथा अलीबख्श देश के जाने-माने शहनाई वादक हैं। विभिन्न रियासतों के दरबार में बजाने जाते रहते है। रोज़नामचे में बालाजी का मंदिर सबसे ऊपर आता है। हर दिन की शुरुआत वहीं ड्योढ़ी पर होती है।
मंदिर के विग्रहों को पता नहीं कितनी समझ है, जो रोज बदल-बदलकर मुलतानी, कल्याण ललित और कभी भैरव रागों को सुनते रहते हैं। ये खानदानी पेशा है अलीबखा के घर का। उनके अब्बाजान भी यहीं ड्योढ़ी पर शहनाई बजाते रहते हैं।
प्रश्न 1.
अमीरुद्दीन कौन है ?
उत्तर :
अमौरुद्दीन उस्ताद बिस्मिाला खाँ के बचपन का नाम हैं। बिस्मिल्ला खाँ ही अमीरुद्दीन है, एक प्रसिद्ध शहनाई वादक।
प्रश्न 2.
अमीरुद्दीन के मामा क्या करते हैं ?
उत्तर :
अमीरुद्दीन के मामा सादिक हुसैन और अलीबख्श विभिन्न रियासतों के दरबार में शहनाई बजाते हैं। ये दोनों देश के जाने-माने शहनाई वादक हैं।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द लिखिए ।
- देश
- राग।
उत्तर :
विलोम शब्द :
- देश × विदेश
- राग × विराग
2. अमीरुद्दीन का जन्म डुमरांव, बिहार के एक संगीत प्रेमी परिवार में हुआ है। 5-6 वर्ष डुमरांव में बिताकर वह नाना के घर, ननिहाल काशी में आ गया है। डुमरांव का इतिहास में कोई स्थान बनता हो, ऐसा नहीं लगा कभी भी। पर यह जरूर है कि शहनाई और डुमरांव एक-दूसरे के लिए उपयोगी है। शहनाई बजाने के लिए रीड का प्रयोग होता है।
रीड अंदर से पोली होती है जिसके सहारे शहनाई को फूंका जाता है। रीड, नरकट (एक प्रकार की घास) से बनाई जाती है जो डुमरांव में मुख्यतः सोन नदी के किनारों पर पाई जाती है। इतनी ही महत्ता है इस समय डुमरांव की जिसके कारण शहनाई जैसा वाद्य बजता है। फिर अमीरुद्दीन जो हम सबके प्रिय हैं, अपने उस्ताद बिस्मिल्ला खां साहब हैं। उनका जन्म-स्थान भी डुमराँव ही है। इनके परदादा उस्ताद सलार हुसैन खाँ डुमराँव निवासी थे । बिस्मिल्ला खाँ उस्ताद पैगंबरबख्श खां और मिट्ठन के छोटे साहबजादे हैं।
प्रश्न 1.
शहनाई और डुमराँव एकदूसरे के पूरक किस तरह हैं ?
उत्तर :
डुमराँव गाँव के आसपास सोननदी के किनारों पर नरकट रीड पाई जाती है। इस रोड का इस्तेमाल शहनाई में किया जाता है। इसलिए शहनाई और डुमरांव एकदूसरे के पूरक हैं।
प्रश्न 2.
रीड या नरकट क्या हैं ? इसका इस्तेमाल किसमें किया जाता है ?
उत्तर :
रीड या नरकट एक प्रकार का घास है। इसका इस्तेमाल करके शहनाई जैसा वाद्य बनाया जाता है।
प्रश्न 3.
बिस्मिल्ला खाँ के माता-पिता का नाम क्या है ?
उत्तर :
बिस्मिल्ला खां के पिता का नाम उस्ताद पैगंबरबख्श और माँ का नाम मिट्ठन था।
प्रश्न 4.
‘उपयोगी’ शब्द में से उपसर्ग व प्रत्यय अलग कीजिए।
उत्तर :
‘उप’ उपसर्ग तथा ‘ई’ प्रत्यय है।
3. अमीरुद्दीन की उम्र अभी 14 साल है। मसलन बिस्मिल्ला खाँ की उम्र अभी 14 साल है। वही काशी है। वही पुराना बालाजी का मंदिर जहाँ बिस्मिल्ला खाँ को नौबतखाने रियाज के लिए जाना पड़ता है। मगर एक रास्ता है बालाजी मंदिर तक जाने का । यह रास्ता रसूलनबाई और बतूलनबाई के यहां से होकर जाता है। इस रास्ते से अमीरुद्दीन को जाना अच्छा लगता है।
इस रास्ते न जाने कितने तरह के बोल-बनाव कभी ठुमरी, कभी टप्पे, कभी दादरा के मार्फत ड्योढ़ी तक पहुंचते रहते हैं। रसूलन और बतूलन जब गाती हैं तब अमीरुद्दीन को खुशी मिलती है। अपने ढेरों साक्षात्कारों में बिस्मिल्ला खां साहब ने स्वीकार किया है कि उन्हें अपने जीवन के आरंभिक दिनों में संगीत के प्रति आसक्ति इन्हीं गायिका बहिनों को सुनकर मिली है। एक प्रकार से उनकी अबोध उम्र में अनुभव की स्लेट पर संगीत प्रेरणा की वर्णमाला रसूलनबाई और बतूलनबाई ने उकेरी है।
प्रश्न 1.
बिस्मिल्ला खां नौबतखाने क्यों जाया करते थे ?
उत्तर :
बिस्मिल्ला खां नौबत खाने रियाज करने जाया करते थे।
प्रश्न 2.
बिस्मिाला खां ने अपने साक्षात्कारों में क्या स्वीकार किया है?
उत्तर :
बिस्मिल्ला खाँ ने अपने देरों साक्षात्कारों में स्वीकार किया है कि उन्हें अपने जीवन के आरंभिक दिनों में संगीत के प्रति आसक्ति रसूलन और बतुलन गायिका बहनों को सुनकर मिली है।
प्रश्न 3.
बालाजी मंदिर जाने का रास्ता अमीरुद्दीन को क्यों अच्छा लगता है ?
उत्तर :
बालाजी मंदिर जाने के रास्ते में दोनों गायिका बहनों का घर पड़ता है। इसलिए बालाजी मंदिर जाने का रास्ता अमीरुद्दीन को अच्छा लगता है।
प्रश्न 4.
‘आसक्ति’ का विलोम शब्द लिखिए।
उत्तर :
आसक्ति का विलोम शब्द है विरक्ति।
4. बिस्मिाला खाँ और शहनाई के साथ जिस एक मुस्लिम पर्व का नाम जुड़ा हुआ है वह मुहर्रम है । मुहर्रम का महीना वह होता है जिसमें शिया मुसलमान हज़रत इमाम हुसैन एवं उनके कुछ वंशजों के प्रति अज़ादारी (शोक मनाना) मनाते है। पूरे दस दिनों का शोक । वे बताते हैं कि उनके खानदान का कोई व्यक्ति मुहर्रम के दिनों में न तो शहनाई बजाता है, न ही किसी संगीत के कार्यक्रम में शिरकत ही करता है।
आठवीं तारीख उनके लिए खास महत्व की है। इस दिन खाँ साहब खड़े होकर शहनाई बजाते हैं व दालमंडी में फातमान के करीब आठ किलोमीटर की दूरी तक पैदल रोते हुए, नौहा बजाते जाते है। इस दिन कोई राग नहीं बजता । राग-रागिनियों की अदायगी का निषेध है, इस दिन ।
प्रश्न 1.
बिस्मिल्ला खां के साथ किस पर्व का नाम जुड़ा है?
उत्तर :
बिस्मिल्ला खां के साथ मुहर्रम पर्व का नाम जुड़ा है।
प्रश्न 2.
मुहर्रम के महीने में शिया मुसलमान क्या करते हैं ?
उत्तर :
मुहर्रम के महीने में शिया मुसलमान हजरत इमाम हुसैन एवं उनके कुछ वंशजों के प्रति शोक मनाते है। पूरे दस दिनों का शोक मनाते हैं।
प्रश्न 3.
मुहर्रम की आठवीं तारीख बिस्मिल्ला खां के लिए क्यों महत्त्वपूर्ण हैं?
उत्तर :
मुहर्रम की आठवीं तारीख बिस्मिल्ला खाँ के लिए खास हैं। वे इस दिन खड़े होकर शहनाई बजाते हैं और दालमंडी में फातमान के करीब आठ किलोमीटर की दूरी तक पैदल रोते हुए. नोहा बजाते जाते हैं।
5. इधर सुलोचना की नयी फ़िल्म सिनेमाहाल में आई और उधर अमीरुद्दीन अपनी कमाई लेकर चला फिल्म देखने जो बालाजी मंदिर पर रोज़ शहनाई बजाने से उसे मिलती थी। एक अठन्नी मेहनताना । उस पर यह शौक जबरदस्त कि सुलोचना की कोई नयी फिल्म न छूटे और कुलसुम की देशी घी वाली दुकान । वहाँ की संगीतमय कचौड़ी।
संगीतमय कचौड़ी इस तरह क्योंकि कुलसुम जब कलकलाते घी में कचौड़ी डालती थी, उस समय छन से उठनेवाली आवाज़ में उन्हें सारे आरोह-अवरोह दिख जाते थे। राम जाने, कितनों ने ऐसी कचौड़ी खाई होंगी। मगर इतना तय है कि अपने खां साहब रियाजी और स्वादी दोनों रहे हैं और इस बात में कोई शक नहीं कि दादा की मीठी शहनाई उनके हाथ लग चुकी है।
प्रश्न 1.
अमीरुद्दीन को पैसे कहाँ से मिलते थे?
उत्तर :
अमीरुद्दीन रोज बालाजी मंदिर में शहनाई बजाने जाते थे। उन्हें शहनाई बजाने का मेहनताना मिलता था अठन्नी । वहीं से उन्हें पैसे मिलते थे।
प्रश्न 2.
लेखक ने कचौड़ी को संगीतमय क्यों कहा हैं ?
उत्तर :
लेखक ने कचौड़ी को संगीतमय इसलिए कहा है क्योंकि कुलसुम जब कलकलाते घी में कचौड़ी डालती थी, उस समय छन से उठनेवाली आवाज में उन्हें सारे आरोह-अवरोह दिखते थे।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित के विलोम शब्द लिखिए –
- देशी
- आरोह
उत्तर :
विलोम शब्द है –
- देशी × विदेशी
- आरोह × अवरोह
6. काशी में संगीत आयोजन की एक प्राचीन एवं अद्भुत परंपरा है। यह आयोजन पिछले कई बरसों से संकचमोचन मंदिर में होता आया है। यह मंदिर शहर के दक्षिण में लंका पर स्थित है व हनुमान जयंती के अवसर पर यहाँ पाँच दिनों तक शास्त्रीय एवं उपशास्त्रीय गायन-वादन की उत्कृष्ट सभा होती है। इसमें बिस्मिल्ला खां अवश्य रहते हैं।
अपने मजहब के प्रति अत्यधिक समर्पित उस्ताद बिस्मिल्ला खां की श्रद्धा काशी विश्वनाथ जी के प्रति भी अपार है। वे जब भी काशी से बाहर रहते हैं तब विश्वनाथ व बालाजी मंदिर की दिशा की ओर मुंह करके बैठते है, थोड़ी देर ही सही, मगर उसी ओर शहनाई का प्याला घुमा दिया जाता है और भीतर की आस्था रीड के माध्यम से बजती है। खां साहब की एक रीड 15 से 20 मिनट के अंदर गीली हो जाती है तब वे दूसरी रीड का इस्तेमाल कर लिया करते हैं।
प्रश्न 1.
काशी में हनुमानजयंति के अवसर पर संगीत सभा के आयोजन में क्या होता है ?
उत्तर :
काशी में हनुमानजयंति के अवसर पर संगीत सभा में शास्त्रीय और उपशास्त्रीय संगीत का आयोजन होता है। यह कार्यक्रम पाँच दिन तक चलता है। इस कार्यक्रम में बिस्मिल्ला खां अवश्य होते हैं।
प्रश्न 2.
बिस्मिाया खां बालाजी एवं विश्वनाथ के प्रति आस्था कैसे प्रकट करते थे?
उत्तर :
विस्मिल्ला खां की आस्था बालाजी मंदिर व विश्वनाथ के प्रति अपार है। वे जब भी काशी से बाहर होते है, तब विश्वनाथ व बालाजी की ओर मुंह करके बैठते हैं और थोड़ी देर उसी ओर मुंह करके शहनाई बजाते थे। इस प्रकार वे अपनी आस्था प्रकट करते थे।
प्रश्न 3.
‘काशी में संगीत आयोजन की एक प्राचीन एवं अद्भुत परंपरा है।’ में वाक्य का कौन-सा प्रकार है?
उत्तर :
सरल वाक्य है।
7. काशी संस्कृति की पाठशाला है। शास्त्रों में आनंदकानन के नाम से प्रतिष्ठित काशी में कलाधर हनुमान व नृत्य-विश्वनाथ है। काशी में बिस्मिल्ला खाँ हैं। काशी में हजारों सालों का इतिहास है जिसमें पंडित कंठे महाराज हैं, विद्याधरी हैं, बड़े रामदास जी हैं, मौजुद्दीन खां है व इन रसिकों से उपकृत होनेवाला अपार जन-समूह है।
यह एक अलग काशी है जिसकी अलग तहजीब है, अपनी घोली और अपने विशिष्ट लोग हैं। इनके अपने उत्सव हैं, अपना गम । अपना सेहरा बन्ना और अपना नौहा । आप यहाँ संगीत को भक्ति से, भक्ति को किसी भी धर्म के कलाकार से, कजरी को चैती से, विश्वनाथ को विशालाक्षी से, बिस्मिल्ला खाँ को गंगाद्वार से अलग करके नहीं देख सकते ।
प्रश्न 1.
काशा का सस्कृति का पाठशाला क्या कहा गया है?
उत्तर :
काशी में हिन्दु के साथ-साथ मुस्लिम दोनों ही धर्म के लोग आपस में मिलजुल कर रहते हैं। दोनों संस्कृतियों को फलने-फूलने का अवसर मिला हैं। विभिन्न धर्मों के लोग सौहार्दपूर्ण रहते है। काशी के लोग विशिष्ट हैं। इसलिए काशी को संस्कृति की पाठशाला कहा गया है।
प्रश्न 2.
काशी किन लोगों के कारण प्रसिद्ध है ?
उत्तर :
काशी में कलाधर हनुमान, काशी विश्वनाथ का प्रसिद्ध मंदिर होने के साथ-साथ पंडित कंठे महाराज, विद्याधरी, बड़े रामदास, मौजुद्दीन खाँ के साथ-साथ अपार रसिक जन समूह है। इन्हीं सबके कारण काशी प्रसिद्ध है।
प्रश्न 3.
‘पाठशाला’ तथा ‘गंगाद्वार’ सामासिक शब्दों का विग्रह कीजिए तथा उसके प्रकार बताइए।
उत्तर :
समास :
- पाठशाला – पाठ के लिए शाला – तत्पुरुष समास
- गंगाद्वार – गंगा का द्वार – तत्पुरुष समास
8. अकसर समारोहों एवं उत्सवों में दुनिया कहती है ये बिस्मिाला खाँ हैं । बिस्मिल्ला खाँ का मतलब-बिस्मिल्ला खां की शहनाई । शहनाई का तात्पर्य बिस्मिल्ला खाँ का हाथ । हाथ से आशय इतना भर कि बिस्मिल्ला खाँ की फूंक और शहनाई की जादुई आवाज़ का असर हमारे सिर चढ़कर बोलने .” लगता है। शहनाई में सरगम भरा है। खां साहब को ताल मालूम है, राग मालूम है। ऐसा नहीं कि बेताले जाएगे। शहनाई में सात सुर लेकर निकल पड़े। शहनाई में परवरदिगार गंगा मइया, उस्ताद की नसीहत लेकर उतर पड़े।
दुनिया कहती-सुबहान अल्लाह तिस पर बिस्मिल्ला खां कहते हैं – अलहमलिल्लाह । छोटी-छोटी उपज से मिलकर एक बड़ा आकार बनता है। शहनाई का करतब शुरू होने लगता है। बिस्मिल्ला खां का संसार सुरीला होना शुरू हुआ। फूंक में अजान की तासीर उतरती चली आई। देखते-देखते शहनाई डेढ़ सतक के साज से दो सतक का साज बन, साजों की कतार में सरताज हो गई। अमीरुद्दीन की शहनाई गूंज उठी। उस फकीर की दुआ लगी जिसने अमीरुद्दीन से कहा था – ‘बजा, बजा।’
प्रश्न 1.
समारोहों व उत्सवों में बिस्मिल्ला खां का क्या अर्थ हैं ?
उत्तर :
समारोहों व उत्सवों में बिस्मिल्ला खाँ का अर्थ उनकी शहनाई से है। शहनाई का तात्पर्य बिस्मिल्ला खां का हाथ और हाथ से आशय इतना कि बिस्मिल्ला खाँ की फूंक और फिर शहनाई की जादुई आवाज, जिसे सुन लोग मंत्रमुग्ध हो जाते हैं।
प्रश्न 2.
बिस्मिल्ला खाँ के सुरीले संसार में किसका योगदान है ?
उत्तर :
बिस्मिल्ला खाँ के सुरीले संसार में परवरदिगार, गंगा मैया, उस्ताद की नसीहत तथा उनकी फूंक में अजान की तासीर इन सबके कारण उनकी
शहनाई की आवाज़ सुरीली होती चली गई। उनकी सुरीली शहनाई में इन सभी का योगदान है।
प्रश्न 3.
‘अलहमदुलिल्लाह’ का अर्थ बताइए।
उत्तर :
‘अलहमदुलिल्लाह’ का अर्थ है ‘तमाम तारीफ ईश्वर के लिए।’
प्रश्न 4.
खां साहब को शहनाई के विषय में क्या मालुम है?
उत्तर :
खां साहब को सात सुरों की जानकारी है, उन्हें ताल व राग मालूम है । वे कभी बेताल या बेसुरा शहनाई नहीं बजाते हैं।
9. सन् 2000 की बात है। पक्का महाल (काशी विश्वनाथ से लगा हुआ अधिकतम इलाका) से मलाई बरफ़ बेचनेवाले जा चुके हैं। खां साहब को इसकी कमी खलती है। अब देशी घी में वह बात कहां और कहाँ वह कचौड़ी-जलेबी। खां साहब को बड़ी शिद्दत से कमी खलती है। अब संगतियों के लिए गायकों के मन में कोई आदर नहीं रहा। खां साहब अफसोस जताते हैं। अब घंटों रियाज़ को कौन पूछता है ? हैरान हैं बिस्मिल्ला खाँ । कहाँ वह कजली, चैती और अदब का जमाना?
सचमुच हैरान करती है काशी-पका महाल से जैसे मलाई बरफ गया, संगीत, साहित्य और अदब की बहुत सारी परंपराएं लुप्त हो गई। एक सच्चे सुर साधक और सामाजिक की भांति बिस्मिल्ला खां साहब को इन सबकी कमी खलती है। काशी में जिस तरह बाबा विश्वनाथ और बिस्मिल्ला खां एक-दूसरे के पूरक रहे हैं, उसी तरह मुहर्रम-ताजिया और होली-अबीर, गुलाल की गंगा-जमुनी संस्कृति भी एक-दूसरे के पूरक रहे हैं।
अभी जल्दी ही बहुत कुछ इतिहास बन चुका है। अभी आगे बहुत कुछ इतिहास बन जाएगा। फिर भी कुछ बचा है जो सिर्फ काशी में है। काशी आज भी संगीत के स्वर पर जगती और उसी की थापों पर सोती है। काशी में मरण भी मंगल माना गया है। काशी आनंदकानन है। सबसे बड़ी बात है कि काशी के पास उस्ताद बिस्मिल्ला खां जैसा लय और सुर की तमीज सिखानेवाला नायाब हीरा रहा है जो हमेशा से दो कौमों को एक होने व आपस में भाईचारे के साथ रहने की प्रेरणा देता रहा।
प्रश्न 1.
खां साहब को किसकी कमी खलती हैं ?
उत्तर :
काशी से मलाई बरफ गया, संगीत, साहित्य और अदब की बहुत सारी परंपराएं लुप्त हो गईं। एक सच्चे सुर साधक और सामाजिक की भाति खाँ साहब को इन सबकी कमी खलती है।
प्रश्न 2.
काशी में हिन्दु-मुस्लिम दोनों एकदूसरे के पूरक किस प्रकार हैं?
उत्तर :
काशी में हिन्दु-मुस्लिम दोनों एकदूसरे के पूरक हैं। बाबा विश्वनाथ और बिस्मिल्ला खाँ एकदूसरे के पूरक हैं तो मुहर्रम-ताजिया और होली-अबीर, गुलाल की गंगा-जमुनी संस्कृति एकदूसरे के पूरक हैं। दोनों धर्म के लोग एकदूसरे की संस्कृति को अपनाने के कारण काशी में हिन्दु-मुस्लिम एकदूसरे के पूरक हैं।
प्रश्न 3.
काशी के लिए सबसे बड़ी बात क्या हैं ?
उत्तर :
काशी के लिए सबसे बड़ी बात है उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ जैसा लय और सुर की तमीज सिखानेवाला नायाब हीरा है जो हमेशा दो कौमों को एक होने व आपस में भाईचारे के साथ रहने की प्रेरणा देता रहा है।
प्रश्न 4.
‘समाज’ व ‘इतिहास’ शब्द से विशेषण बनाइए।
उत्तर :
समाज का विशेषण है सामाजिक व इतिहास का विशेषण है ऐतिहासिक।
सविग्रह समास भेद बताइए:
- गलत-गलत = एकदम गलत – अव्ययीभाव समास
- महामानव = ढेर सारे मनुष्य – कर्मधारय समास
- हिंदू-मुस्लिम = हिंदू और मुस्लिम – द्वंद्व समास
- सप्तर्षि = सात ऋषियों का समुच्चय – द्विगु समास
- आत्म-विनाश = आत्म (स्वयं) का विनाश – तत्पुरुष समास
- पददलित = पद से दलित (कुचले गए) – तत्पुरुष समास
- यथोचित = यथा (जैसा) उचित हो – अव्ययीभाव समास
- सुलोचना = स सु (सुंदर) लोचनोंवाली – कर्मधारय समास
- आध्यात्मिक सभ्यता = आत्मा से संबंधित सभ्यता – तत्पुरुष समास
- घर-घर = का हर घर – अव्ययीभाव समास
- गमना-गमन = गमन और आगमन – द्वंद्व समास
- अनायास = बिना आयास (प्रयत्न) के – तत्पुरुष समास
- शीतोष्ण = शीत और उष्ण – द्वंद्व समास
- माता-पिता = माता और पिता – द्वंद्व समास
- भाग्यविधाता = भाग्य का विधाता (बनानेवाला) – तत्पुरुष समास
- रक्षणीय = रक्षण करने के योग्य – तत्पुरुष समास
- सूई-धागे = सूई और धागे – द्वंद्व समास
संधि विच्छेद कीजिए :
- शीतोष्ण = शीत + उष्ण
- ज्ञानेप्सा = ज्ञान + इप्सा
- पुरस्कर्ता = पुरः + कर्ता
- गुरुत्वाकर्षण = गुरुत्व + आकर्षण
भाववाचक संज्ञा बनाइए :
- सभ्य – सभ्यता
- ऊष्ण – उष्णता
- रक्षणीय – रक्षा
- आध्यात्मिक – अध्यात्म
- उत्साही – उत्साह
- भयंकर – भय
- लालची – लालच
- चोर – चोरी
नौबतखाने में इबादत Summary in Hindi
लेखक- परिचय :
यतीन्द्र मिश्र का जन्म सन् 1977 में अयोध्या उत्तर प्रदेश में हुआ। लखनऊ विश्वविद्यालय से इन्होंने हिन्दी में एम.ए. किया। यतीन्द्रजी स्वतंत्र लेखनकार्य के साथ-साथ पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन कर रहे हैं। ‘सहित’ पत्रिका इसमें प्रमुख हैं । सन् 1999 में साहित्य व कलाओं का संवर्धन व अनुशीलन के लिए एक सांस्कृतिक न्यास ‘विमला देवी फाउन्डेशन’ का संचालन कर रहे हैं।
यतीन्द्र मुख्य रूप से कवि के रूप में जाने जाते हैं। ड्योढ़ी पर आलाप’, ‘यदाकदा’, ‘अयोध्या तथा अन्य कविताएं इनके प्रमुख काव्य संग्रह है। इन्होंने संगीत पर आधारित तीन पुस्तकों का सम्पादन भी किया है। यतीन्द्रजी को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है, जिनमें ऋतुराज सम्मान, राजीव गांधी एकता पुरस्कार, भारतभूषण अग्रवाल स्मृति पुरस्कार, युवा पुरस्कार व रजा पुरस्कार प्रमुख हैं।
प्रस्तुत पाठ ‘नौबतखाने में इबादत’ प्रसिद्ध शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ पर आधारित एक व्यक्ति चित्र है। यतीन्द्र मिश्र ने इस व्यक्ति चित्र में बिस्मिल्ला खाँ के बचपन के दिनों से लेकर मृत्युपर्यन्त तक की घटनाओं को रोचकशैली में वर्णन किया है। उनकी रूची, उनकी संगीत साधना, उनके संस्मरणों को बड़े ही रोचक अंदाज में बया किया है। एक संगीत साधक जो मुस्लिम होते हुए भी हिन्दु धर्म में कितनी आस्था रखता है उसका नमूनन उदाहरण बिस्मिल्ला खा हैं।
पाठ का सार (भाव) :
बिस्मिल्ला खाँ का बचपन : उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ के बचपन का नाम अमीरुद्दीन है। जब ये छ साल के थे तब अपने मामा सादिक हुसैन और ‘अलीबख्श के पास रहने आ गए थे। अमीरुद्दीन से तीन साल बड़े उनके भाई थे जिनका नाम शमसुद्दीन था। इनके दोनों मामा प्रसिद्ध शहनाई वादक थे। बालाजी मंदिर से ये अपने शहनाई बजाने की शुरूआत करते थे। यह इनका खानदानी पेशा था। अमीरुद्दीन के नाना भी शहनाई बजाया करते थे।
अमीरुद्दीन का परिचय : अमीरुद्दीन का जन्म डमराँव, बिहार के एक संगीत प्रेमी परिवार में हुआ। वे 5-6 वर्ष गाँव में व्यतित कर वह अपने ननिहाल काशी में आ जाता है। वैसे तो डुमरांव गाँव का इतिहास में कोई स्थान नहीं है किन्तु शहनाई के लिए जिस जिम रीड (बाँस, नरकट) की जरूरत होती है वह मुख्यत: डुमराँव गाँव का । डुमराँव गाँव का महत्त्व यहाँ इसलिए है कि प्रसिद्ध शहनाई वादक का जन्म इसी गाँव में हुआ है। इनके परदादा उस्ताद सलार हुसैन खाँ डुमराव निवासी थे।
नौबतखाने में रियाज़ : 14 वर्ष की उम्र में अमीरूद्दीन को बालाजी मंदिर के पास नौबतखाने में रियाज के लिए जाना पड़ता है। बालाजी मंदिर जाने के रास्ते में रसूलनबाई और बतूलनबाई का घर पड़ता है। इस रास्ते से अमीरूद्दीन को जाना अच्छा लगता है। ये दोनों बहनें गाना गाती हैं जिनका गाना सुनना अमीरूद्दीन को अच्छा लगता है। अपने कई साक्षात्कारों में बिस्मिल्ला खाँ यह बात कबूल चुके हैं कि अपने जीवन के आरंभिक दिनों में संगीत के प्रति आसक्ति इन्हीं दोनों बहनों को सुनकर हुई है।
शहनाई का इतिहास : वैदिक इतिहास में शहनाई का कोई उल्लेख नहीं है। इसे ‘सुबिर-वाद्यों में गिना जाता है। सोलहवीं शताब्दी के उतरार्ध में तानसेन द्वारा रची गई बंदिश में शहनाई, मुरली, वंशी, शृंगी और मुरछंग आदि का वर्णन है। अवधी पारंपरिक लोकगीतों एवं चैती में शहनाई का उल्लेख बार-बार मिलता है। मांगलिक विधि-विधानों के समय इसे बजाया जाता है। यह दक्षिण भारत के मंगलवाद्य ‘नागस्वरम्’ की तरह शहनाई प्रभाती की मंगल ध्वनि का संपूरक है।
सच्चे सर की मांग : उस्ताद बिस्मिल्ला खां अस्सी बरस से सच्चे सूर की मांग कर रहे हैं। अस्सी बरस की पाँचों वक्तवाली नमाज इसी सूर को पाने की प्रार्थना में खर्च हो जाती है। लाखों सजदे, इसी एक सच्चे सूर की इबादत में खुदा के आगे झुकते हैं। वे नमाज के बाद सजदे में गिड़गिड़ाते हैं। अपने खुदा से सच्चे सूर की मांग करते हैं। अस्सी बरस से बिस्मिल्ला खाँ यही सोचते आये हैं कि सातों सूरों को बरतने की तमीज़ उन्हें सलीके से अभी तक क्यों नहीं आई।
बिस्मिल्ला खा और मुहर्रम : बिस्मिल्ला खाँ और शहनाई के साथ मुहर्रम का पर्वन जुड़ा है। मुहर्रम के समय शिया मुसलमान हजरत इमाम हुसैन एवं उनके वंशजों के प्रति शोक मनाते हैं। इन दिनों बिस्मिल्ला खाँ के खानदान में भाग नहीं लेते। ‘आठवीं’ तारीख उनके लिए खास महत्त्व की है। इस दिन खाँ साहब खड़े होकर शहनाई बजाते हैं व दालमंडी फातमान के करीब आठ किलोमीटर की दूरी तक पैदल रोते हुए, नोहा बजाते है। इन दिनों कोई राग नहीं बजता।
जवानी के दिनों की यादें : कभी-कभी उस्ताद सकून के क्षणों में अपनी जवानी के दिनों को याद करते हैं। उन्हें अपना रियाज़ कम, उन दिनों का जुनून अधिक याद आता है। वे उस समय पक्का महाली की कुलसुम हलवाइन की कचौड़ीवाला दुकान, गीताबाली और सुलोचना को याद करते हैं। सुलोचना उनकी पसंदीदा हिरोईन थी।
वे याद करते हैं कि जब वे चार साल के थे तो अपने नाना को शहनाई बजाते हुए छिपकर सुनते है, उनके चले जाने पर उनकी शहनाई ढूंढकर बजाते थे। फिल्म देखने का जुनून रहता था। थर्ड क्लास का टिकट छह पैसे का मिलता था और दो-दो पैसे मामू, मौसी और नानी से लेकर घंटों लाइन में लगकर टिकट हासिल करते । सुलोचना की कोई भी फिल्म देखे बिना नहीं छोड़ते और कुलसुम की देशी घीवाली कचौड़ी खाना नहीं छूटती थी।
काशी विश्वनाथ के प्रति बहुत श्रद्धा : काशी में परंपरा के अनुसार हनुमान जयंती पर विशेष आयोजन होता है। यहाँ पाँच दिनों तक गायन-वादन की उत्कृष्ट सभा होती है। इसमें बिस्मिल्ला खाँ अवश्य शामिल होते थे। अपने मजहब के प्रति समर्पित उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ की श्रद्धा काशी विश्वनाथ के प्रति भी अपार थीं। वे जब भी काशी से बाहर रहते थे तब विश्वनाथ व बालाजी मंदिर की दिशा की ओर मुंह करके बैठते थे। थोड़ी देर शहनाई का प्याला उसी ओर घुमा दिया जाता था।
अक्सर वे कहा करते थे काशी छोड़कर कहाँ जाएँ। गंगा मइया, बाबा विश्वनाथ, बालाजी का मंदिर सब कुछ तो यहा है। हमारे खानदान की कई पुश्तों ने यहां शहनाई बजाई है। हमारे नानाजी बालाजी मंदिर में प्रतिष्ठित शहनाईबाज रह चुके हैं। मरते दमतक न यह शहनाई छूटेगी न यह काशी। उनके लिए शहनाई और काशी से बढ़कर कोई जन्नत नहीं है।
काशी-संस्कृति की पहचान : काशी संस्कृति की पाठशाला है। शास्त्रों में आनंदकानन के नाम से प्रतिष्ठित । काशी में कलाधर हनुमान व नृत्यविश्वनाथ हैं। काशी में बिस्मिल्ला खाँ हैं। काशी में हजारों सालों का इतिहास है। जिसमें पंडित कंठे महाराज हैं, विद्याधरी हैं, बड़े रामदास जी हैं, मौजुद्दीन खाँ है व इन रसीकों से उपकृत होनेवाला अपार जन समूह है।
यह एक अलग काशी है, जिसकी तबज़ीब अलग है, अपनी बोली और अपने विशिष्ट लोग हैं। उनके अपने उत्सव हैं, अपना गम। अपना सेहरावना और अपना नोहा । आप यहाँ संगीत को भक्ति से, भक्ति को किसी भी धर्म के कलाकार से, कजरी को चैती से, विश्वनाथ को विशालाक्षी से, बिस्मिल्ला खां को गंगाद्वार से अलग करके नहीं देख सकते।
उस्ताद बिस्मिल्ला व शहनाई : एकदूसरे के पूरक : अक्सर समारोहों उत्सवों में दुनिया कहती ये बिस्मिल्ला खाँ हैं, बिस्मिल्ला खाँ का मतलब बिस्मिल्ला खां की शहनाई है। एक दिन किसी शिष्या ने डरते-डरते खां साहब को टोका, ‘बाबा ! आप यह क्या करते हैं, इतनी प्रतिष्ठा है आपकी । अब तो आपको भारतरत्न भी मिल चुका हैं, यह फटी तहमद न पहना करें। अच्छा नहीं लगता, जब कोई भी आता है, आप इसी फटी तहमद में सबसे मिलते हैं।’ खाँ साहब मुस्कुराए ।
लाड से भरकर बोले, ‘धत् ! पगली ! ई भारत रत्न हमको शहनईया वे मिला है, लुंगिया पे नाहीं । तुम लोगों की तरह बनावसिंगार देखते रहते तो उमर ही बीत जाती, हो चुकती शहनाई । तब क्या खाक रियाज़ हो पाता? ठीक है बिटिया, आगे से नहीं पहनेंगे, मगर इतना बताए देते हैं कि मालिक से यही दुआ है, ‘फटा सुर न बख्शे’ लुंगिया का क्या है, आज फटी है, तो कल सी जाएगी।’
बिस्मिल्ला खां की चिंता : काशी से मलाई बरफ बेचनेवाले जा चुके हैं। अब देशी घी की कचौड़ियां नहीं रही। संगतियों के लिए गायकों के मन में कोई आदर नहीं रहा । घंटों रियाज़ को अब कौन पूछता है ? कजली, चैती और अदब का जमाना नहीं रहा है। धीरे-धीरे सारी परंपरायें लुप्त हो रही हैं। बनते-बिगड़ते इतिहास में जो कुछ बचा है, वह काशी में है। काशी आज भी संगीत के स्वर पर जगती है, और उसी की धापों पर सोती है। काशी में मरण भी मंगल माना गया है। काशी आनंदकानन है। काशी दो कौमों को एक होने व आपस में भाईचारे के साथ रहने की प्रेरणा देता रहा है।
बिस्मिल्ला खां संगीत के नायक : भारतरत्न से लेकर इस देश के ढेरों विश्वविद्यालयों की मानद उपाधियों से अलंकृत व संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार एवं पद्मविभूषण जैसे सम्मानों से नहीं, बल्कि अपनी अजेय संगीत यात्रा के लिए बिस्मिल्ला खाँ साहब भविष्य में हमेशा संगीत के नायक बने रहेंगे। नब्बे वर्ष की भरी-पूरी आयु में 21 अगस्त, 2006 को संगीत रसिकों की हार्दिक सभा में बिदा हुए खां साहब की सबसे बड़ी देन हमें यही है कि पूरे अस्सी वर्ष उन्होंने संगीत की सम्पूर्णता व एकाधिकार से सीखने की जिजीविशा को अपने भीतर जिंदा रखा।
शब्दार्थ व टिप्पण :
- ड्योढी – दहलीज
- नौबतखाना – प्रवेश द्वारा के ऊपर मंगल ध्वनि बजाने का स्थान
- रियाज़ – अभ्यास
- मार्फत – द्वारा
- बाजिब – उचित
- रियासत – जागीरदारी
- रोजनामचा – दैनिक कार्यों का लेखा
- पेशा – व्यवसाय
- मसलन् – उदाहरण के रूप में
- आसक्ति – प्रेम, लगाव
- सम्पूरक – पूर्ण करनेवाला
- सजदा – माथा टेकना
- मुराद – इच्छा
- इबादत – उपासना
- तासीर – प्रभाव, असर
- शिरकत करना – शामिल होना
- निषेध – रोक, बंदिश
- शहादत – बलिदान
- नैसर्गिक – प्राकृतिक
- महेनताना – पारिश्रमिक
- आरोह-अवरोह – उतार-चढ़ाव
- श्रुति – शब्द, ध्वनि
- ऊहापोह – उलझन, अनिश्चितता
- उत्कृष्ट – श्रेष्ठ
- मजहब – धर्म
- अपार – अधिक
- पुश्तें – पौढ़ीयाँ
- जन्नत – स्वर्ग
- परवरदिगार – ईश्वर
- नसीहत – उपदेश
- तिलिस्म – जादू
- गमक – खूश्बू,
- अजादारी – दुःख मनाना
- बदस्तर – कायदे से, तरीके से
- दाद – शाबाशी
- अलहमलिशह – तमाम तरीफ ईश्वर के लिए।
मुहावरों के अर्थ:
- आंखे चमकना – खुश होना।
- हाथ लगना – संपर्क होना, स्पर्श होना ।
- सिर चढ़कर बोलना – अपने आप भेद खुलना।
वाक्य प्रयोग :
- परीक्षा में अव्वल आने की खबर सुनते ही शीला की आखे चमक उठीं।
- महाशय आपका हाथ लगते ही मेरा काम हो जाएगा।
- जीवन के अंतिम दिनों में रामेश्वर के सारे पाप सिर चढ़कर बोलने लगा था।