Gujarat Board GSEB Hindi Textbook Std 9 Solutions Kshitij Chapter 8 एक कुत्ता और एक मैना Textbook Exercise Important Questions and Answers, Notes Pdf.
GSEB Std 9 Hindi Textbook Solutions Kshitij Chapter 8 एक कुत्ता और एक मैना
Std 9 GSEB Hindi Solutions एक कुत्ता और एक मैना Textbook Questions and Answers
प्रश्न-अभ्यास
प्रश्न 1.
गुरुदेव ने शांतिनिकेतन को छोड़कर कहीं और रहने का मन क्यों बनाया ?
उत्तर :
गुरुदेव ने शांतिनिकेतन को छोड़कर कहीं और रहने का मन बनाया क्योंकि उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं था। शांतिनिकेतन में हमेशा उनसे मिलने आनेवाले दर्शनार्थियों की भीड़ लगी रहती थी। इसलिए उन्हें आराम नहीं मिल पाता था। वे एकाकी रहना चाहते थे, जहाँ उन्हें कोई परेशान न कर सके। प्रकृति के सानिध्य में रहना चाहते थे। इसलिए गुरुदेव शांतिनिकेतन को छोड़कर श्रीनिकेतन के तिसरे मंजिले पर आकर रहने लगे।।
प्रश्न 2.
‘मूक प्राणी मनुष्य से कम संवेदनशील नहीं होते।’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
मूक प्राणी मनुष्य से भी अधिक संवेदनशील होते हैं। एक कुत्ता और एक मैना निबंध में हमने यही देखा। कुत्ता गुरुदेव के सानिध्य और उनका प्रेम प्राप्त करने के लिए दो मील दूर अनजान रास्ता तय करके यहाँ आ पहुँचा। और गुरुदेव का प्यारभरा स्पर्श पाकर उसका रोम-रोम आनंदित हो उठा। इसी प्रकार जब गुरुदेव का चिताभस्म आश्रम में लाया गया तब भी यह कहीं से आकर उस चिताभस्मवाले कलश के पास बैठ गया और उत्तरायण (भवन का नाम) तक साथ में गया। अपने स्नेहदाता के प्रति समर्पित वह कुत्ता वास्तव में मानवीय संवेदनाओं का परिचय देता है।
प्रश्न 3.
गुरुदेव द्वारा मैना को लक्ष्य करके लिखी कविता के मर्म को लेखक कब समझ पाया ?
उत्तर :
गुरुदेव ने लेखक को पहली बार मैना को दिखाते हुए कहा कि “देखते हो, यह यूथभ्रष्ट है। रोज फुदकती है यहीं आकर। मुझे इसकी चाल में एक करुणभाव दिखाई देता है। इससे पहले लेखक का मानना था कि मैना करुणभाव दिखानेवाला पक्षी है ही नहीं। वह तो दूसरों पर अनुकंपा ही दिखाया करती है। लेखक ने साक्षात् मैना को देखा तब वह कविता के मर्म को समझ पाया।
प्रश्न 4.
प्रस्तुत पाठ एक निबंध है। निबंध गद्य-साहित्य की उत्कृष्ट विधा है, जिसमें लेखक अपने भावों और विचारों को कलात्मक और लालित्यपूर्ण शैली में अभिव्यक्त करता है। इस निबंध में उपर्युक्त विशेषताएँ कहाँ झलकती हैं किन्हीं चार का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
निबंध गद्य-साहित्य की उत्कृष्ट विधा है, जिसमें लेखक अपने भावों और विचारों को कलात्मक और लालित्यपूर्ण शैली में अभिव्यक्त करता है। ‘एक कुत्ता तथा एक मैना’ निबंध में अनेक जगहों पर लेखक की इस सिद्धहस्तता के प्रमाण हैं – उदाहरण दृष्टव्य हैं –
1. मेरा अनुमान था कि मैना करुण भाव दिखानेवाला पक्षी है ही नहीं वह दूसरों पर अनुकंपा ही दिखाया करती है।
2. पति-पत्नी जब कोई एक तिनका लेकर सूराख में रखते हैं तो उनके भाव देखने लायक होते है। पत्नी देवी का तो क्या
कहना।
3. पत्नी – लेकिन फिर भी इनको तो इतना खयाल होना चाहिए कि यह हमारा प्राइवेट घर है।
पति – आदमी जो हैं, इतनी अकल कहाँ ?
पत्नि – जाने भी दो।
4. जब मैं इस कविता को पढ़ता हूँ तो उस मैना की करुण मूर्ति अत्यंत साफ होकर सामने आ जाती है। कैसे मैंने देखकर भी नहीं देखा और किस प्रकार कवि की आँखें उस बेचारी के मर्मस्थल तक पहुँच गई, सोचता हूँ तो हैरान हो रहता हूँ।
प्रश्न 5.
आशय स्पष्ट कीजिए –
इस प्रकार कवि की मर्मभेदी दृष्टि ने इस भाषाहीन प्राणी की करुण दृष्टि के भीतर उस विशाल मानव-सत्य को देखा है, जो मनुष्य, मनुष्य के अंदर भी नहीं देख पाता।
उत्तर :
अन्यों की तुलना में कवि अधिक संवेदनशील होता है। गुरुदेव ने यह जान लिया था कि कुत्ते के पीठ पर मात्र उनके स्पर्श से ही वह आनंदित हो उठता है, ठीक उसी प्रकार लंगड़ी मैना के भावों को देखकर गुरुदेव ने उसके भीतर के मर्म को पहचान लिया था। जो लेखक को बिलकुल भी पता नहीं था। मूक प्राणियों में भी मनुष्य के जैसी संवेदनाएँ होती हैं यह वही पहचान सकता है जिसकी मर्मभेदी दृष्टि हो।
गुरुदेव हर भाषाहीन प्राणी के मर्म को पहचान लेते थे, चाहे वह कुत्ता हो या मैना या फूल पत्ति। आज मनुष्य अत्यंत संवेदनहीन हो गया है जो मनुष्य को देखकर उनके दुःखों का पता नहीं लगा पाता। किन्तु गुरुदेव यानी कवि की मर्मभेदी दृष्टि भाषाहीन प्राणी की करुण दृष्टि को पहचान लेती है।
रचना और अभिव्यक्ति
प्रश्न 6.
पशु-पक्षियों से प्रेम इस पाठ की मूल संवेदना है। अपने अनुभव के आधार पर किसी प्रसंग से जड़ी रोचक घटना को कलात्मक शैली में लिखिए।
उत्तर :
छात्र अपने जीवन में पशु-पक्षियों से जुड़ी किसी घटना का अपने अनुभव के आधार पर स्वयं वर्णन करेंगे जो कलात्मक शैली में लिखा हो।
भाषा-अध्ययन
प्रश्न 7.
गुरुदेव जरा मुस्करा दिए।
मैं जब यह कविता पढ़ता हूँ।
ऊपर दिए गए वाक्यों में एक वाक्य में अकर्मक क्रिया है और दूसरे में सकर्मक। इस पाठ को ध्यानपूर्वक पढ़कर सकर्मक और अकर्मकवाले चार-चार वाक्य छाँटिए।
क. सकर्मक क्रियावाले वाक्य –
- एक दिन हमने सपरिवार उनके दर्शन की ठानी।
- कई दिनों से उन्हें देखा नहीं था।
- वह आँखें मूंदकर अपने रोम-रोम से स्नेह-रस का अनुभव करने लगा।
- गुरुदेव ने उसकी पीठ पर हाथ फेरा।
ख. अकर्मक क्रियावाले वाक्य –
- एक दूसरी बार सबेरे मैं गुरुदेव के पास उपस्थित था।
- उस समय एक लंगड़ी मैना फुदक रही थी।
- रोज फुदकती ठीक यहीं आकर।
- चढ़ जाती है बरामदे में।
प्रश्न 8.
निम्नलिखित वाक्यों में कर्म के आधार पर क्रिया के भेद बताइए –
(क) मीना कहानी सुनाती है।
(ख) अभिनव सो रहा है।
(ग) गाय घास खाती है।
(घ) मोहन ने भाई को गेंद दी।
(ड) लड़कियाँ रोने लगीं।
उत्तर :
वाक्य – क्रिया भेद
(क) मीना कहानी सुनाती है। – सकर्मक क्रिया
(ख) अभिनव सो रहा है। – अकर्मक क्रिया
(ग) गाय घास खाती है। – सकर्मक क्रिया
(घ) मोहन ने भाई को गेंद दी। – सकर्मक क्रिया
(ड) लड़कियाँ रोने लगीं। – अकर्मक क्रिया
प्रश्न 9.
नीचे पाठ में से शब्द-युग्मों के कुछ उदाहरण दिए गए हैं; जैसे –
समय – असमय अवस्था – अनवस्था
इन शब्दों में अ या अन् लगाकर नया शब्द बनाया गया है।
पाठ में से कुछ शब्द चुनिए तथा उनमें अ या अन् उपसर्ग लगाकर नए शब्द बनाइए।
उत्तर :
i. अ’ उपसर्ग वाले शब्द –
- निर्णय – अनिर्णय
- भद्र – अभद्र
- पुस्तकीय – अपुस्तकीय
- प्रचलित – अप्रचलित
- स्वीकृति – अस्वीकृति
- प्रत्यक्ष – अप्रत्यक्ष
- परिचय – अपरिचय
- नियमित – अनियमित
- विश्वास – अविश्वास
- अव्याकुलता – व्याकुलता
- बोध – अबोध
- शांत – अशांत
- सहज – असहज
- करुण – अकरुण
- प्रत्यक्ष – अप्रत्यक्ष
- मूल्य – अमूल्य
- कुशल – अकुशल
- चैतन्य – अचैतन्य
- भाव – अभाव
- हैतुक – अहैतुक
ii. अन् उपसर्गवाले शब्द –
- उपस्थित – अनुपस्थित
- उपयोग – अनुपयोग
- अवस्था – अनवस्था
- उद्देश्य – अनुद्देश्य
- आहत – अनाहत
GSEB Solutions Class 9 Hindi एक कुत्ता और एक मैना Important Questions and Answers
अतिरिक्त लघूत्तरी प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
गुरुदेव कैसे दर्शनार्थियों से डरते थे ? क्यों ?
उत्तर :
गुरुदेव उन दर्शनार्थियों से डरते थे जो समय-असमय, स्थान-अस्थान, अवस्था-अनवस्था की एकदम परवाह नहीं करते थे और रोकते रहने पर भी आ ही जाते थे। क्योंकि वे गुरुदेव की सुविधा का तनिक भी ध्यान नहीं रखते थे, उनसे देर तक बातें किया करते थे। उनकी दृष्टता से गुरुदेव को परेशानी होती थी।
प्रश्न 2.
एक दिन लेखक और उनके परिवार ने कहाँ जाने की ठानी ? क्यों ?
उत्तर :
एक दिन लेखक और उनके परिवार ने गुरुदेव का दर्शन करने की ठानी। लेखक गुरुदेव से मिलना चाहते थे। छुट्टियाँ थीं उस समय आश्रम के अधिकांश लोग बाहर चले गये थे। अतः लेखक गुरुदेव का कुशल-क्षेम पूछने के लिए श्रीनिकेतन गये।
प्रश्न 3.
श्रीनिकेतन गुरुदेव को सुविधाजनक क्यों लगा ?
उत्तर :
श्रीनिकेतन में गुरुदेव अकेले रहते थे। वहाँ शांतिनिकेतन की तरह भीड़-भाड़ नहीं होती थी। वे वहाँ बड़े आनंद से रहते थे। प्रकृति के सानिध्य में अपना समय व्यतीत करते थे। इसलिए गुरुदेव को श्रीनिकेतन सुविधाजनक लगा।
प्रश्न 4.
अचानक कुत्ते के आ जाने पर गुरुदेव को कैसा लगा और क्यों ?
उत्तर :
श्रीनिकेतन में अचानक कुत्ते के आ जाने पर गुरुदेव को आश्चर्य हुआ क्योंकि यह कुत्ता शांतिनिकेतन में रहता था और बिना किसी के रास्ता दिखाए वह दो मील का रास्ता काटकर स्वयं आ गया।
प्रश्न 5.
कुत्ता गुरुदेव के पास क्यों आया ?
उत्तर :
कुत्ता गुरुदेव को अपना स्नेह-दाता मानता था। गुरुदेव के हाथ का स्पर्श पाते ही उसका रोम-रोम आनंदित हो उठता था। अतः यह अपने स्वामी के हाथ का स्पर्श, प्यार पाने के लिए कुत्ता वहाँ आ गया।
प्रश्न 6.
वाक्यहीन प्राणीलोक में कुत्ता कैसा जीव है ?
उत्तर :
वाक्यहीन प्राणीलोक में कुत्ता एकमात्र ऐसा जीव हैं जो अच्छा-बुरा सबको भेदकर सम्पूर्ण मनुष्य को देख सका है, उस आनंद को देख सका है, जिसे प्राण दिया जा सकता है, जिसमें अहैतुक प्रेम ढाल दिया जा सकता है, जिसकी चेतना असीम चैतन्य लोक में राह दिखा सकती है।
प्रश्न 7.
गुरुदेव द्वारा लिखी गई कविता पढ़कर लेखक के सामने कौन-सी घटना साकार हो उठती है ?
उत्तर :
लेखक जब भी गुरुदेव द्वारा लिखी कविता पढ़ते हैं तब उनके सामने श्रीनिकेतन के तितल्ले पर कुत्तेवाली घटना साकार हो उठती है, कि किस तरह से वह कुत्ता दो मील चलकर अपने स्नेह-दाता से मिलने आ गया था और गुरुदेव का स्पर्श पाकर उसका रोम-रोम स्नेह-रस से आनंदित हो उठा था।
प्रश्न 8.
चिताभस्म के आने पर कुत्ते ने अपनी संवेदना कैसे व्यक्त की ?
उत्तर :
गुरुदेव का चिताभस्म को जब आश्रम में लाया गया तब सहज बोध के बल पर वह कुत्ता आश्रम के द्वार तक आया और चिताभस्म के साथ अन्यान्य आश्रमवासियों के साथ गंभीर भाव से उत्तरायण तक गया। वह कुछ समय चिताभस्म के कलश के पास भी बैठकर अपने स्नेह-दाता का सांनिध्य प्राप्त करता रहा।
प्रश्न 9.
गुरुदेव ने लंगड़ी मैना के विषय में क्या कहा ?
उत्तर :
गुरुदेव ने लंगड़ी मैना के विषय में कहा “यह यूथभ्रष्ट है। रोज फुदकती है, ठीक यहीं आकर। मुझे इसकी चाल में करुण भाव दिखाई देता है।”
अतिरिक्त दीर्घ उत्तरी प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
गुरुदेव प्रकृति, पशु-पक्षी से विशेष लगाव रखते थे। एक कुत्ता और एक मैना पाठ के आधार पर उत्तर लिखिए।
अथवा
गुरुदेव के प्रकृति प्रेम को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
गुरुदेव प्रकृति से बेहद प्रेम करते थे। बगीचे से टहलते हुए वे एक-एक फूल पत्तियों को देखते जाते थे। प्रकृति में होनेवाली हर गतिविधियों का ख्याल रखते थे। कुछ समय से कीए आश्रम में नहीं थे, यह गुरुदेव को पता था, लेखक और उनके साथी इस बात से अनभिज्ञ थे। श्रीनिकेतन में एकांत के समय वे अस्तगामी सूर्य की किरणों को देखने में मग्न रहते थे।
गुरुदेव का पशु-पक्षी प्रेम भी अद्भुत था। शांतिनिकेतन में गुरुदेव के स्नेह का भागी वह कुत्ता श्रीनिकेतन में उन्हें खोजते-खोजते आ पहुँचा। गुरुदेव ने अपने इस कुत्ते पर आरोग्य में एक कविता भी लिखी है। मैना पक्षी के भीतर छिपे करुण भाव को भी गुरुदेव ने अपनी मर्मभेदी दृष्टि से परख लिया। उस पर भी गुरुदेव ने कविता लिस्नी है। अतः हम कह सकते हैं कि गुरुदेव प्रकृति से, पशु-पक्षियों से बेहद प्रेम करते थे।
प्रश्न 2.
‘मैना दूसरों पर अनुकंपा ही दिखाया करती है।’ ऐसा लेखक ने क्यों कहा है ?
उत्तर :
लेखक जिस नये मकान में रहते थे, वहाँ के मकान के निर्माताओं ने दीवारों में चारों ओर एक-एक सुराणा छोड़ रखी है। इस सुराख्न में एक मैना दम्पत्ति नियमित भाव से प्रतिवर्ष गृहस्थी जमाया करते थे, ये तिनके और कपड़ों का अंबार लगा देते थे। पति-पत्नी जब कोई एक तिनका लेकर सुराख्न में रखते थे तो उनके भाव देखने लायक होते थे। वे नाना प्रकार की मधुर और विजयोद्घोषी वाणी में गाना शुरू कर देते थे। लेखक के परिवारवालों की वे तनिक भी परवाह नहीं करते। दोनों के नाचगान और आनंद-नृत्य से सारा मकाम मुखरित हो उठता था। मैना का ऐसा मुखरित स्वभाव देखकर ही लेखक ने कहा कि मैना दूसरों पर अनुकंपा दिखाया करती है।
प्रश्न 3.
कौओं के संबंध में लेखक को किस नये तथ्य का ज्ञान हुआ और कैसे ?
उत्तर :
लेखक एक दिन गुरुदेव के साथ बगीचे में टहल रहे थे। उनके साथ एक अध्यापक भी थे। गुरुदेव एक-एक फूल पत्ते को ध्यान से देखते हुए अध्यापक महोदय से बातें करते जा रहे थे। तभी उन्होंने पूछा कि आश्रम के कौए क्या हो गये ? उनकी आवाज़ सुनाई नहीं देती है। उस वक्त न तो लेखक को या न उनके साथी अध्यापक को इस तथ्य का ज्ञान था कि कौए आश्रम में नहीं है। लेखक का मानना था कि कौआ सर्वव्यापक पक्षी है। अचानक उस दिन मालूम हुआ कि ये भले मानस भी कभीकभी प्रयास को चले जाते हैं या चले जाने के लिए बाध्य होते है। सप्ताह भर के बाद आश्रम में बहुत से कौए दिखाई दिए।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दिए गये विकल्पों में से चुनकर लिखिए :
प्रश्न 1.
लोहे की चक्करदार सीढ़ियों पर चढ़ना गुरुदेव के लिए क्यों असंभव था ?
(क) सीढ़ियाँ एकदम सीधी थी।
(ख) सीढ़ियाँ लोहे की थी।
(ग) गुरुदेव वृद्ध और क्षीणवपु थे।
(घ) गुरुदेव चल नहीं सकते थे।
उत्तर :
(ग) गुरुदेव वृद्ध और क्षीणवपु थे।
प्रश्न 2.
शुरू-शुरू में लेखक गुरुदेव से कौन-सी भाषा में बात करते थे ?
(क) उड़िया भाषा में
(ख) बांग्ला भाषा में
(ग) हिन्दी भाषा में
(घ) संस्कृत भाषा में
उत्तर :
(ख) बांग्ला भाषा में
प्रश्न 3.
कैसे दर्शनार्थियों से गुरुदेव डरते थे ?
(क) समय पर आनेवाले
(ख) समय-असमय, अवस्था-अनवस्था की परवाह किए बिना आनेवाले
(ग) समय निश्चित करके आनेवाले
(घ) बताकर आनेवाले
उत्तर :
(ख) समय-असमय, अवस्था-अनवस्था की परवाह किए बिना आनेवाले।
प्रश्न 4.
कुत्ता गुरुदेव के पास स्तब्ध होकर आसन के पास कब तक बैठा रहता था ?
(क) जब तक गुरुदेव अपने हाथों के स्पर्श से उसका संग नहीं स्वीकार लेते।
(ख) जब तक उसे कुछ खाने को नहीं दे देते।
(ग) जब तक उसे वहाँ से जाने को नहीं कहते।..
(घ) जब तक गुरुदेव भोजन न कर लेते।
उत्तर :
(क) जब तक गुरुदेव अपने हाथों के स्पर्श से उसका संग नहीं स्वीकार लेते।।
अर्थबोध पर आधारित प्रश्न
आज से कई वर्ष पहले गुरुदेव के मन में आया कि शांतिनिकेतन को छोड़कर कहीं अन्यत्र जाएँ। स्वास्थ्य बहुत अच्छा नहीं था। शायद इसलिए, या पता नहीं क्यों, तै पाया कि वे श्रीनिकेतन के पुराने तिमंजिले मकान में कुछ दिन रहें। शायद मौज में आकर ही उन्होंने यह निर्णय किया हो। वे सबसे ऊपर के तल्ले में रहने लगे। उन दिनों ऊपर तक पहुँचने के लिए लोहे की चक्करदार सीढ़ियाँ थीं, और वृद्ध और क्षीणवपु रविन्द्रनाथ के लिए उस पर चढ़ सकना असंभव था। फिर भी बड़ी कठिनाई से उन्हें वहाँ ले जाया जा.सका।
प्रश्न 1.
गुरुदेव शांतिनिकेतन छोड़कर क्यों जाना चाहते थे ?
उत्तर :
गुरुदेव का स्वास्थ्य ठीक नहीं था। शांतिनिकेतन में उनसे मिलने आनेवालों की भीड़ रहती थी। संभवतः इसीलिए वे कुछ समय के लिए शांतिनिकेतन छोड़कर जाना चाहते थे।
प्रश्न 2.
गुरुदेव को श्रीनिकेतन के तीसरे तल्ले तक ले जाने में कठिनाई क्यों हुई ?
उत्तर :
श्रीनिकेतन में ऊपर चढ़ने के लिए लोहे की घुमावदार सीढ़ियाँ थी। गुरुदेव का शरीर क्षीण हो गया था। घुमावदार सीढ़ियों पर अकेले चढ़ना संभव नहीं था इसलिए उन्हें तीसरे तल्ले तक ले जाने में कठिनाई हुई।
प्रश्न 3.
‘तिमंजिला’ शब्द का सामासिक विग्रह करके प्रकार बताइए।
उत्तर :
तीन मंजिलों का समाहर – द्विगु समास।
उन दिनों छुट्टियाँ थी। आश्रम के अधिकांश लोग बाहर चले गए थे। एक दिन हमने सपरिवार उनके ‘दर्शन’ की ठानी। दर्शन को मैं जो यहाँ विशेष रूप से दर्शनीय बनाकर लिख रहा हूँ, उसका कारण यह है कि गुरुदेव के पास जब कभी मैं जाता था तो. प्रायः वे यह कहकर मुस्करा देते थे कि ‘दर्शनार्थी हैं क्या ?’ शुरू-शुरू में मैं उनसे ऐसी बांग्ला में बात करता था, जो वस्तुतः हिन्दी-मुहावरों का अनुवाद हुआ करती थी।
किसी बाहर के अतिथि को जब मैं उनके पास ले जाता था तो कहा करता था, ‘एक भद्न लोक आपनार दर्शनेर जन्य ऐसे छेन।’ यह बात हिन्दी में जितनी प्रचलित है, उतनी बॉम्ला में नहीं। इसलिए गुरुदेय जरा मुस्करा देते थे। बाद में मुझे मालूम हुआ कि मेरी यह भाषा बहुत अधिक पुस्तकीय है।
प्रश्न 1.
दर्शन को दर्शनीय बनाकर लिखने का क्या कारण है ?
उत्तर :
दर्शन को दर्शनीय बनाकर लिखने का यह कारण है कि जब लेखक गुरुदेव के पास कभी-कभी जाते थे तो प्रायः वे यह कहकर मुस्करा देते थे कि दर्शनार्थी हैं क्या ?
प्रश्न 2.
लेखक गुरुदेव से किस भाषा में बात करते थे ? उस भाषा की क्या विशेषता है ?
उत्तर :
लेखक गुरुदेव से बांग्ला भाषा में बात करते थे। उन्हें बांग्ला बहुत अच्छी तरह से नहीं आती थी, यह वस्तुतः हिन्दी मुहावरों का अनुवाद हुआ करती थी। उनकी यह भाषा पुस्तकीय भाषा थी।
प्रश्न 3.
‘दर्शनीय’ और ‘पुस्तकीय’ में कौन-सा प्रत्यय लगा है ?
उत्तर :
‘ईय’ प्रत्यय। दोनों शब्दों में ईय प्रत्यय लगा है।
गुरुदेव वहाँ बड़े आनंद में थे। अकेले रहते थे। भीड़-भाड़ उतनी नहीं होती थी, जितनी शांतिनिकेतन में। जब हम लोग ऊपर गए तो गुरुदेव बाहर एक कुर्सी पर चुपचाप बैठे अस्तगामी सूर्य की ओर ध्यानस्तिमित नयनों से देख रहे थे। हम लोगों को देखकर मुस्कराए, बच्चों से जरा छेड़छाड़ की, कुशल प्रश्न पूछे और फिर चूप हो रहे।
ठीक उसी समय उनका कुत्ता धीरे-धीरे ऊपर आया और उनके पैरों के पास खड़ा होकर पूँछ हिलाने लगा। गुरुदेव ने उसकी पीठ पर हाथ फेरा। वह आँखें मूंदकर अपने रोम-रोम से उस स्नेह-रस का अनुभव करने लगा। गुरुदेव ने हम लोगों की ओर देखकर कहा, “देखा तुमने, यह आ गए। कैसे इन्हें मालूम हुआ कि मैं यहाँ हूँ, आश्चर्य है ! और देखो, कितनी परितृप्ति इनके चेहरे पर दिखाई दे रही है।”
प्रश्न 1.
लेखक जब गुरुदेव से मिलने गये तब ये क्या कर रहे थे ?
उत्तर :
लेखक जब गुरुदेव से मिलने गये तब वे अस्तगामी सूर्य की ओर ध्यान-स्तिमित नयनों से देख रहे थे।
प्रश्न 2.
लेखक के आने पर गुरुदेव ने क्या प्रतिक्रिया दी ?
उत्तर :
लेखक के आने पर गुरुदेव मुस्कुराए, बच्चों से छेड़-छाड़ की, कुशल प्रश्न पूछे और फिर चुप हो गये।
प्रश्न 3.
गुरुदेव ने किसकी पीठ पर हाथ फेरा और उसका क्या परिणाम हुआ ?
उत्तर :
गुरुदेव ने कुत्ते की पीठ पर हाथ फेरा और इसी के साथ वह आँखें मूंदकर अपने रोम-रोम से उस स्नेह-रस का अनुभव करने
लगा।
प्रश्न 4.
‘ठीक उसी समय उनका कुत्ता धीरे-धीरे ऊपर आया’। वाक्य में क्रियाविशेषण छाँटिये।
उत्तर :
धीरे-धीरे क्रिया विशेषण है।
हम लोग उस कुत्ते के आनंद को देखने लगे। किसी ने उसे राह नहीं दिखाई थी, न उसे यह बताया था कि उसके स्नेह-दाता यहाँ से दो मील दूर हैं और फिर भी वह पहुँच गया। इसी कुत्ते को लक्ष्य करके उन्होंने ‘आरोग्य’ में इस भाव की एक कविता लिखी थी – ‘प्रतिदिन प्रातःकाल यह भक्त कुत्ता स्तब्ध होकर आसन के पास तब तक बैठा रहता है, जब तक अपने हाथों के स्पर्श से मैं इसका संग नहीं स्वीकार करता।
इतनी-सी स्वीकृति पाकर ही उसके अंग-अंग में आनंद का प्रवाह बह उठता है। इस वाक्यहीन प्राणिलोक में सिर्फ यही एक जीव अच्छा-बुरा सबको भेदकर संपूर्ण मनुष्य को देख सका है। उस आनंद को देख्न सका है, जिसे प्राण दिया जा सकता है, जिसमें अहैतुक प्रेम ढाल दिया जा सकता है, जिसकी चेतना असीम चैतन्य लोक में राह दिखा सकती है।
प्रश्न 1.
कुत्ता क्यों आनंदित हो उठता था ? इसके लिए वह क्या करता था ?
उत्तर :
गुरुदेव का प्यार भरा स्पर्श पाकर कुत्ता आनंदित हो उठता था। यह प्यार भरा स्पर्श पाने के लिए वह कई घण्टों गुरुदेव के। पास बैठा रहता था।
प्रश्न 2.
स्नेहदाता कौन है ? कुत्ता उनका स्नेह पाने के लिए कहाँ आ पहुँचा ?
उत्तर :
स्वयं गुरुदेव कुत्ते के स्नेहदाता हैं। कुत्ता उनका स्नेह पाने के लिए शांतिनिकेतन से श्रीनिकेतन अपने आप आ गया।
प्रश्न 3.
‘प्रतिदिन’ समास का कौन-सा प्रकार है ?
उत्तर :
प्रतिदिन अव्ययीभाव समास है।
मैं जब यह कविता पढ़ता हूँ तब मेरे सामने श्रीनिकेतन के तितल्ले पर की वह घटना प्रत्यक्ष-सी हो जाती है। वह आँख मूंदकर अपरिसीम आनंद, वह ‘मूक हृदय का प्राणपण आत्मनिवेदन’ मूर्तिमान हो जाता है। उस दिन मेरे लिए वह एक छोटी-सी घटना थी, आज वह विश्व की अनेक महिमाशाली घटनाओं की श्रेणी में बैठ गई है।
एक आश्चर्य की बात और इस प्रसंग में उल्लेख की जा सकती है। जब गुरुदेव का चिताभस्म कलकत्ते (कोलकाता) से आश्रम में लाया गया, उस समय भी न जाने किस सहज बोथ के बल पर वह कुत्ता आश्रम के द्वार तक आया और चिताभस्म के साथ अन्यान्य आश्रमवासियों के साथ शांत गंभीर भाव से उत्तरायण तक गया। आचार्य क्षितिमोहन सेन सबके आगे थे। उन्होंने मुड़ो बताया कि वह चिताभस्म के कत्नश के पास थोड़ी देर चुपचाप बैठा भी रहा।
प्रश्न 1.
कविता पढ़ने पर लेखक के सामने कौन-सी घटना प्रत्यक्ष हो उठती है ?
उत्तर :
गुरुदेव ने अपने कुत्ते की भक्ति पर एक कविता लिखी है। लेखक जब उसे पढ़ते हैं तो उन्हें उस से संबंधित घटना उनकी आँखों के समक्ष साकार हो उठती है। किस तरह कुत्ता उनको खोजते हुए शांतिनिकेतन से श्रीनिकेतन आ पहुँचता है और गुरुदेव के हाथ का स्पर्श पाते ही उसका रोम-रोम आनंदित हो उठता है।
प्रश्न 2.
गुरुदेव का चिताभस्म आने पर कुत्ते ने क्या किया ?
उत्तर :
गुरुदेव का चिताभस्म जब आश्रम में लाया गया तब न जाने वह कुत्ता कहाँ से आ गया और सहज बोध के बल पर वह कुत्ता आश्रम के द्वार तक आया और चिताभस्म के साथ अन्यान्य आश्रमवासियों के साथ शांत गंभीर भाव से उत्तरायण तक गया। वह गुरुदेव के चिताभस्म – कलश के पास भी थोड़ी देर बैठा रहा।
प्रश्न 3.
‘आत्मनिवेदन’ और ‘चिताभस्म’ का सामासिक विग्रह कीजिए।
उत्तर :
आत्मनिवेदन का सामासिक विग्रह है – आत्मा का निवेदन
चिताभस्म का सामासिक विग्रह है – चिता का भस्म।
मैं चुपचाप सुनता जा रहा था। गुरुदेव ने बातचीत के सिलसिले में एक बार कहा, “अच्छा साहब, आश्रम के कौए क्या हो गए ? उनकी आवाज़ सुनाई ही नहीं देती ?” न तो मेरे साथी उन अध्यापक महाशय को यह खबर थी और न मुझे ही।
बाद में मैंने लक्ष्य किया कि सचमुच कई दिनों से आश्रम में कौए नहीं दिख रहे हैं। मैंने तब तक कौओं को सर्वव्यापक पक्षी ही समझ रखा था। अचानक उस दिन मालूम हुआ कि ये भले आदमी भी कभी-कभी प्रवास को चले जाते हैं या चले जाने को बाध्य होते हैं। एक लेखक ने कौओं की आधुनिक साहित्यिकों से उपमा दी है, क्योंकि इनका मोटो है ‘मिसचिफ फार मिसचिफ सेक’ (शरारत के लिए ही शरारत)। तो क्या कौओं का प्रवास भी किसी शरारत के उद्देश्य से ही था ? प्रायः एक सप्ताह के बाद बहुत कौए दिखाई दिए।
प्रश्न 1.
अध्यापक महाशय और लेखक को किस बात की खबर न थी ?
उत्तर :
अध्यापक महाशय और लेखक को इस बात की खबर ही न थी कि आश्रम में कौए नहीं हैं। जब गुरुदेव ने पूछा कि आश्चम के कौए क्या हो गये तब उनका ध्यान इस ओर गया।
प्रश्न 2.
कौए के विषय में लेखक की क्या धारणा थी ? उसकी धारणा में क्या कोई बदलाव आया ?
उत्तर :
कौए के विषय में लेखक की यह धारणा थी कि कौआ सर्वव्यापी पक्षी है। उसकी धारणा में बदलाय यह आया कि ये भी कभी-कभी प्रयास पर चले जाते हैं, या जाने के लिए बाध्य होते हैं।
प्रश्न 3.
‘आधुनिक’ तथा ‘उद्देश्य’ शब्द का विलोम शब्द लिखिए।
उत्तर :
आधुनिक × प्राचीन
उद्देश्य × निरुद्देश्य
गुरुदेव ने अगर कह न दिया होता तो मुझे उसका करुण-भाय एकदम नहीं दिखता। मेरा अनुमान था कि मैना करुण भाव दिखानेवाला पक्षी है ही नहीं। वह दूसरों पर अनुकंपा ही दिखाया करती है। तीन-चार वर्ष से मैं एक नए मकान में रहने लगा हूँ मकान के निर्माताओं ने दीवारों में चारों ओर एक-एक सुराख्न छोड़ रही है। यह कोई आधुनिक वैज्ञानिक खतरे का समाधान होगा। सो, एक मैना-दंपत्ति नियमित भाव से प्रतिवर्ष यहाँ गृहस्थी जमाया करते हैं, तिनके और चिथड़ों का अंबार लगा देते हैं। भलेमानस गोबर के टुकड़े तक ले आना नहीं भूलते। हैरान होकर हम सुराणों में ईंटें भर देते हैं, परंतु चे खाली बची जगह का भी उपयोग कर लेते हैं।
प्रश्न 1.
मैना के विषय में लेखक का क्या अनुमान था ? क्यों ?
उत्तर :
मैना के विषय में लेखक का यह अनुमान था कि मैना करुण भाव दिखानेवाला पक्षी है ही नहीं। क्योंकि वह दूसरों पर अनुकंपा ‘दिखाया करती है।
प्रश्न 2.
मैना दंपत्ति कहाँ प्रतिवर्ष अपनी गृहस्थी जमाया करते हैं ?
उत्तर :
लेखक एक नये मकान में रहने गये थे। मकान के निर्माताओं ने दीवारों के चारों ओर एक-एक सुरान छोड़ रखी है। उसी में मैना दंपत्ति अपनी गृहस्थी जमाया करते थे।
प्रश्न 3.
लेखक और उनका परिवार मैना दंपत्ति से क्यों परेशान हो उठते हैं ?
उत्तर :
मैना दंपत्ति ने लेखक के घर के दीवारों में हुए छेद में अपना डेरा जमाया था। थे उसमें तिनके व चीथड़ों का अंबार लगा देते थे। वे गोबर के टुकड़े तक ले आते थे। इसलिए लेखक के परिवार के लोग मैना दंपत्ति से परेशान हो उठते थे।।
सो, इस प्रकार की मैना कभी करुण हो सकती है, यह मेरा विश्वास ही नहीं था। गुरुदेव की बात पर मैंने ध्यान से देखा तो मालूम हुआ कि सचमुच ही उसके मुख पर एक करुण भाव है। शायह यह विधुर पति था, जो पिछली स्वयंवर-सभा के युद्ध में आहत और परास्त हो गया था। या विधवा पत्नी है, जो पिछले बिड़ाल के आक्रमण के समय पति को खोकर युद्ध में ईषत् चोट खाकर एकांत विहार कर रही है। हाय, क्यों इसकी ऐसी दशा है ! शायद इसी मैना को लक्ष्य करके गुरुदेव ने बाद में एक कविता लिखी थी।
प्रश्न 1.
गुरुदेव की बात को ध्यान से देखने पर लेखक को क्या मालूम हुआ ?
उत्तर :
गुरुदेव की बात को ध्यान से देखने पर लेखक को मालूम हुआ कि सचमुच ही मैना के मुख पर एक करुण भाव है। मैना कभी करुण हो सकती है इसका लेखक को विश्वास नहीं था।
प्रश्न 2.
मैना के मुख पर करुण भाव होने के पीछे क्या कारण हो सकता है ?
उत्तर :
लेखक ने मैना के मुख पर करुण भाव होने के पीछे यह कारण माना है कि या तो वह मैना विधुर पति है, जो पिछली स्वयंवर सभा के युद्ध में आहत और परास्त हो गया था। या विधवा पत्नी है, जो पिछले बिड़ाल के आक्रमण के समय पति को खोकर युद्ध में ईषत् चोट खाकर एकांत विहार कर रही है। इस कारण मैना के चेहरे पर करुण भाष है।
प्रश्न 3.
विलोम शब्द लिखिए :
1. विधुर
2. विश्वास
उत्तर :
विलोम शब्द है :
1. विधवा × सधया
2. विश्वास × अविश्वास
एक कुत्ता और एक मैना Summary in Hindi
द्विवेदी जी का जन्म सन् 1907 ई. में उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के दुबे का छपरा नामक गाँव में हुआ था। उन्होंने बनारस तथा पंजाब विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के प्रोफेसर के रूप में कार्य किया। वे शांतिनिकेतन के हिन्दी भवन के निर्देशक भी रहे। उनके समग्र साहित्य पर इतिहास, संस्कृति एवं दर्शन के गहन अध्ययन की छाप है। उनके व्यक्तित्व के कई पहलू हैं। उन्होंने काशी में साहित्य, ज्योतिष और संस्कृत का अध्ययन कर आचार्य की उपाधि प्राप्त की थी।
द्विवेदी जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी साहित्यकार है। वे शुक्लोत्तर युग के एक श्रेष्ठ निबंधकार, उपन्यासकार, समालोचक, इतिहासलेखक और प्रखर शोधार्थी के रूप में जाने जाते हैं। अशोक के फूल, कल्पलता, विचार प्रवाह और कुटज उनके निबंध संग्रह हैं। बाणभट्ट की आत्मकथा, अनामदास का पोथा, पुनर्नवा और चारुचंद्रलेख उनके महत्त्वपूर्ण उपन्यास हैं। ‘हिन्दी साहित्य की भूमिका’ तथा ‘कबीर’ इतिहास और आलोचना विषयक उत्कृष्ट ग्रंथ हैं। उनकी मृत्यु सन् 1979 ई. में हुई थी।
द्विवेदी जी ने साहित्य की अनेक विद्याओं में सर्वश्रेष्ठ रचनाएँ प्रदान की हैं। इनके ललित निबंध उल्लेखनीय हैं। गंभीर व जटिल दर्शनप्रधान बातों को सहज व सरल भाषा में प्रस्तुत करना इनकी विशेषता है। अपनी संस्कृतनिष्ट हिन्दी के द्वारा शारख-जान, परंपरा के बोध और लोकजीवन के अनुभव का चित्रण बखूबी किया है।
प्रस्तुत पाठ ‘एक कुत्ता और एक मैना’ के माध्यम से गुरुदेव का पशु-पक्षियों के प्रति मानवीय प्रेम प्रकट करता है। इसमें पशुपक्षियों द्वारा प्राप्त प्रेम, भक्ति, विनोद, करुणा जैसे मानवीय भावों की भी अभिव्यक्ति हुई है। लेखक ने गुरुदेव के साथ बिताये अपने सुखद पलों को भी साझा किया। इस निबंध द्वारा गुरुदेव के पशु-पक्षियों के प्रेम की एक झलक मिलती हैं। पशु-पक्षियों में भी मानवीय गुण होते हैं, कुत्ता और मैना की गुरुदेव के प्रति संवेदनाएँ इस बात का प्रमाण देती हैं।
पाठ का सार :
गुरुदेव का शांतिनिकेतन छोड़ श्रीनिकेतन में आना :
लेखक हजारी प्रसाद द्विवेदी के मुताबिक शांतिनिकेतन में रह रहे गुरुदेव को शांतिनिकेतन छोड़कर कहीं और रहने का विचार आया। संभवतः उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं था इसलिए उन्होंने ऐसा सोचा हो। वे श्रीनिकेतन के तीसरे तल्ले पर आकर रहने लगे। गुरुदेव का स्वास्थ्य ठीक न होने के कारण उन्हें लोहे की घुमावदार सीढ़ियों के सहारे बमुश्किल चढ़ाया गया।
अवकाश में गुरुदेव से लेखक की मुलाकात :
उन दिनों शांतिनिकेतन में छुट्टियाँ थीं। आश्रम के अधिकांश लोग बाहर चले गये थे। एक दिन लेखाक सपरिवार उनके घर मुलाकात करने पहुँच गये। गुरुदेव प्रायः यह कहकर मुस्कुरा देते थे कि दर्शनार्थी हैं क्या ? लेखक उस समय जो बांग्ला भाषा में बोलते थे वह पुस्तकीय भाषा होती थी। लेखक जब गुरुदेव के समक्ष असमय पहुँचते तो वे कहते कि दर्शनार्थी लेकर आए हो क्या ? गुरुदेव असमय पहुँचनेवाली दर्शनार्थी से थोड़ा परेशान हो उठते थे। हमारे यहाँ के लोग दूसरों के समय-असमय, स्थान-अस्थान, अवस्था-अनवस्था की परवाह नहीं करते।
श्रीनिकेतन में गुरुदेव और उनका कुत्ता :
गुरुदेव श्रीनिकेतन में बड़े आनंद से अकेले रहते थे। जब लेखक उनसे मिलने गया तो वे अस्तगामी सूर्य की ओर ध्यान स्तिमित नयनों से देख रहे थे। लेखक और उनके परिवार को देखकर ये मुस्कराए, कुशल-क्षेम पूछा और फिर चुप हो गये। ठीक उसी समय उनका कुत्ता धीरे-धीरे ऊपर आया और उनके पैरों के पास खड़ा होकर पूँछ हिलाने लगा। गुरुदेव ने उसकी पीठ पर हाथ फेरा और वह आँखें मूंदकर अपने रोम-रोम में उस स्नेह-रस का अनुभव करने लगा।
गुरुदेव के स्नेह का सद्भागी कुत्ता :
शांतिनिकेतन में रहनेवाला कुत्ता गुरुदेव को खोजते-खोजते श्रीनिकेतन आ पहुँचा था। किसीने उसको राह नहीं दिखाई थी। इस कुत्ते को लक्ष्य करके गुरुदेव ने ‘आरोग्य’ में कविता लिखी थी। जिसका भाव यह था कि ‘प्रतिदिन प्रातःकाल यह कुत्ता सब्ध होकर तब तक बैठा रहता था जब तक गुरुदेव अपने हाथों का स्पर्श देकर उसका संग स्वीकार नहीं करते थे।’ इस प्राणिलोक में कुत्ता ही संपूर्ण मनुष्य को देख सकता है। इसके मूक हृदय का प्राणमय आत्मनिवेदन अपनी दीनता बताता रहता है। लेखक कहते हैं कि इसकी भाषाहीन दृष्टि की करुण व्याकुलता मुझे इस सृष्टि में मनुष्य का सच्चा परिचय देती हैं।
अन्त समय में भी कुत्ते ने निभाया साथ :
जब गुरुदेव का चिताभस्म कलकत्ते से शांतिनिकेतन आश्रम में लाया गया, उस समय भी यह कुत्ता न जाने किस सहज बोध के बल पर वह कुत्ता आश्रम के द्वार तक आया और चिताभस्म के साथ अन्य आश्रमवासियों के साथ शांत गंभीर भाव से उत्तरायण तक गया। वह कुत्ता चिताभस्म के कलश के पास थोड़ी देर बैठा रहा।
एक अन्य अविस्मरणीय घटना :
यह घटना उन दिनों की है जब लेखक नये-नये शांतिनिकेतन में आये थे। वे एक अन्य अध्यापक के साथ बगीचे में टहल रहे थे। गुरुदेव एक-एक फूल पत्ते को ध्यान से देखते जाते थे। तभी उन्होंने पूछा कि यहाँ के कौऔं को क्या हो गया ? उनकी आवाज सुनाई ही नहीं देती ? तब लेखक और अध्यापक महाशय को इस बात का बोध हुआ कि सच में कौए नहीं दिख रहे हैं। तब लेखक को पता चला कि कौए भी कभी-कभी प्रवास पर चले जाते हैं। एकाध सप्ताह के बाद वे कौए वापस आ गये।
गुरुदेव की दृष्टि करुण मैना पर :
अन्य एक बार लेखक सवेरे गुरुदेव के पास थे। उस समय एक लंगड़ी मैना फुदक रही थी। गुरुदेव ने कहा “देखते हो, यह यूथभ्रष्ट है। रोज फुदकती है, ठीक यहीं आकर। मुझे इसकी चाल में करुणभाव दिखाई देता है। लेखक कहते हैं कि यदि यह बात गुरुदेव ने नहीं बताई होती तो मुझे पता ही नहीं चलता। लेखक का अनुमान था कि मैना करुणभाव दिखानेवाला पक्षी नहीं है। वह दूसरों पर अनुकंपा ही दिखाया करती है। तीन वर्ष पूर्व लेखक जिस मकान में रहते थें वहाँ भी मैना दम्पत्ति का निवास था, अपनी कोलाहल से उन्होंने उस मकान को गुलजार किया था। गुरुदेव ने जिन मैना का वर्णन किया है या तो वह विधुर पति था या विधवा पत्नी, जो पिछले बिड़ाल के आक्रमण के समय पति/पत्नी को खोकर युद्ध में ईषत् चोट खाकर एकांत में बिहार कर रही थी। उस मैना को लक्ष्य में करके गुरुदेव ने एक कविता लिखी थी।
गुरुदेव द्वारा मैना पर लिखी गई कविता :
गुरुदेव ने इस मैना पर जो कविता लिखी इसका सार कुछ इस प्रकार है -“उस मैना को क्या हो गया है, यही सोचता हूँ। क्यों वह दल से अलग होकर रहती है ? पहले दिन देखा था सेमर के पेड़ के नीचे मेरे बगीचे में। जान पड़ा जैसे एक पैर से लैंगड़ा रही हो।
उसके बाद उसे रोज सवेरे देखता हूँ – संगीहीन होकर कीड़ों का शिकार करती फिरती है, मुझसे जरा भी नहीं डरती। क्यों है ऐसी दशा इसकी ? आदि।’ लेखक जब भी इस कविता को पढ़ते हैं उस मैना की करुणमूर्ति अत्यंत साफ होकर सामने आ जाती है। लेखक को मैना में करुण भाव नजर नहीं आया। जबकि गुरुदेव ने मैना के मर्म को जान लिया। यह फर्क था गुरुदेव और लेखक में।
शब्दार्थ व टिप्पणी
- अन्यत्र – कहीं और
- तिमंजिले – तीसरा तल
- क्षीणवपु – कमजोर शरीरवाला
- भद्र – सभ्य; पढ़ा लिखा,
- प्रचलित – प्रसिद्ध,
- दर्शनीय – दर्शन करने योग्य,
- प्रगल्भ – ठीठ,
- भीत-भीत – डरे-डरे,
- अस्तगामी – डूबने की राह पर,
- ध्यान-स्तिमित – ध्यान में डूबे हुए,
- कुशल – हाल-चाल,
- छेड़छाड़ – मजाक-मस्ती,
- परितृप्ति – पूर्ण रूप से संतोष का भाव,
- स्नेह-दाता – स्नेह का दान करनेवाला,
- स्तब्ध – हतप्रद,
- प्राणिलोक – मनुष्य लोक,
- मूक – अबोल; मौन,
- आविष्कार – खोज,
- सृष्टि – संसार,
- मर्मभेदी – मर्म को जाननेवाला,
- तितल्ले – तीन तल्ला; तीन मंजिला,
- चिताभस्म – जलाने के बाद प्राप्त राख,
- कलश – घड़ा,
- धृष्ट – मुहजोर; ठीठ,
- मूर्तिमान – साकार,
- महिमाशाली – महान,
- उत्तरायण – सूर्य का मकर रेखा से उत्तर की ओर प्रस्थान करना,
- सिलसिला – क्रम,
- सर्वव्यापक – हर जगह होनेवाला,
- प्रवास – कुछ समय के लिए यात्रा पर जाना,
- मोटो – उद्देश्य,
- उपस्थित – मौजूद,
- यूथभ्रष्ट – अपने समूह से विलग,
- अनुकंपा – कृपा,
- समाधान – हल,
- दंपत्ति – पति-पत्नी,
- अंबार – ढेर,
- फटकारना – झाड़ देना,
- विजयोद्घोषी – जीत का नारा लगाते हुए,
- गान . – गीत गाना,
- हारहारोत – हवा के कारण बास के पत्तों के हिलने से उत्पन्न आवाज़।