Gujarat Board GSEB Solutions Class 10 Hindi Rachana निबंध-लेखन Questions and Answers, Notes Pdf.
GSEB Std 10 Hindi Rachana निबंध-लेखन
प्रश्नपत्र में निबंध का प्रश्न सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण होता है।
प्रश्नपत्र में दो से तीन विषय दिए जाते हैं। इन विषयों के साथ मुद्दे (Points) भी दिए जाते हैं। इनमें से किसी एक विषय पर लगभग 150 शब्दों में निबंध लिखने के लिए कहा जाता है।
निबंध लिखते समय ध्यान में रखने योग्य बातें :
- दिए हुए विषयों में से कोई भी एक विषय चुन लीजिए। उसके साथ दिए हुए संकेतों पर सोचिए।
- निबंध का प्रारंभ विषय से संबंधित, आकर्षक और स्वाभाविक होना चाहिए। निबंध किसी कहावत, चुटकुले या कविता की पंक्ति के उद्धरण से प्रारंभ किया जा सकता है।
- निबंध के मध्य भाग के मुद्दों को इस प्रकार लिखना चाहिए, जिससे विषय का प्रतिपादन हो सके। निबंध लिखते समय विषयांतर न हो, इसका ध्यान रहे। एक ही बात बार-बार या घुमा-फिराकर कहने से बचना चाहिए।
- निबंध का अंत आकर्षक, स्पष्ट, संक्षिप्त और हृदयस्पर्शी होना चाहिए।
- निबंध के भिन्न-भिन्न मुद्दों के लिए अलग-अलग परिच्छेद लिखने चाहिए। मुद्दों के महत्त्व के अनुसार ही उनका विस्तार करें।
- आलंकारिक भाषा एवं मुहावरों और कहावतों के उचित प्रयोग से निबंध का सौंदर्य बढ़ता है।
- वाक्य छोटे, स्पष्ट और अर्थपूर्ण होने चाहिए। शब्दों की वर्तनी (જોડણી) का भी ख्याल रखना चाहिए। विरामचिनों का उचित स्थान पर प्रयोग अवश्य करें। निबंध की भाषा शुद्ध, सरल और मुहावरेदार हो।
निबंध-लेखन के नमूने
निम्नलिखित प्रत्येक विषय पर 150 शब्दों में निबंध लिखिए :
प्रश्न 1.
मेरा प्रिय अध्यापक
[परिचय – आज के अध्यापकों से तुलना – ज्ञान-भंडार और पढ़ाने का ढंग – खेल-कूद आदि में दिलचस्पी – स्नेहपूर्ण व्यवहार-आदर्श जीवन]
उत्तर :
अपने छात्र-जीवन में मुझे अनेक अध्यापकों का स्नेह तथा मार्गदर्शन मिला है, लेकिन इन सबमें आचार्यजी मेरे प्रिय अध्यापक रहे हैं।
आज के कई अध्यापक अपने पद को केवल अर्थप्राप्ति का साधन मानते हैं और विद्यार्थियों के सामने किताबों के पन्ने पलट देने को ही पढ़ाना समझते हैं। सच्चे ज्ञानदान और चरित्र-निर्माण से उन्हें कोई मतलब ही नहीं। लेकिन आचार्यजी अध्यापक-पद के गौरव और उसकी जिम्मेदारी को भलीभांति समझते हैं और अपने कर्तव्यों का पूर्ण रूप से पालन करते हैं।
आचार्यजी बड़े विद्वान हैं। उनका ज्ञान-भंडार अथाह है। वैसे तो वे अंग्रेजी और हिंदी के अध्यापक हैं, लेकिन विज्ञान और गणितशास्त्र में भी उनकी रुचि कम नहीं है। अंग्रेजी व्याकरण वे इस प्रकार समझाते हैं
कि सारी बातें कक्षा में ही कंठस्थ हो जाती हैं। हिन्दी भाषा पर उनका पूर्ण अधिकार है। कोई भी विद्यार्थी अपनी शंका, बिना किसी भय और हिचकिचाहट के, उनके सामने रख सकता है और उसका समाधान प्राप्त कर सकता है।
आचार्यजी खेल-कूद में भी खुब रुचि रखते हैं। वे विद्यार्थियों के साथ खेल में भाग लेते हैं। नाटक, चर्चा-गोष्ठी, चित्र-स्पर्धा, निबंधप्रतियोगिता आदि में वे विद्यार्थियों का मार्गदर्शन करते हैं और उन्हें समय समय पर विविध क्षेत्रों में प्रगति करने के लिए प्रोत्साहित करते रहते हैं। आचार्यजी कक्षा को एक परिवार मानते हैं।
उन्हें कुद्ध होते कभी किसी ने नहीं देखा, फिर भी अनुशासन के वे चुस्त हिमायती हैं। पढ़ाई में कमजोर छात्रों पर उनकी ममतामयी दृष्टि रहती है। परीक्षा में अनुत्तीर्ण छात्रों को वे स्नेह से ढाढ़स बंधाते हैं। सचमुच, सभी छात्र उनमें एक प्यारभरे पिता के दर्शन करते हैं। आचार्यजी बड़े निरभिमानी हैं। उनकी वाणी बहुत मधुर है। उनके चेहरे से सदा प्रसन्नता और प्रतिभा झलकती है। उनके रहनसहन और वेशभूषा से सादगी प्रकट होती है। झूठ, लोभ, रिश्वत, ईष्यां आदि बुराइयों से तो वे कोसों दूर हैं। यदि ऐसे आचार्यजी मेरे प्रिय अध्यापक हों, तो इसमें आश्चर्य ही क्या!
प्रश्न 2.
मेरा भारत महान
अथवा
[परिचय-संस्कृति -लोग, आर्थिक स्थिति, महत्ता, सुवर्णभूमि – भव्य इतिहास -स्वाधीनता और उज्वल भविष्य]
उत्तर :
जिसके स्वातंत्र्य-संग्राम की अमर गाथा संसार के इतिहास में स्वर्णाक्षरों से लिखी गई है, ऐसा महान भारत हमारा देश है। नगाधिराज हिमालय इसके उत्तर में मुकुटमणि की तरह शोभायमान है। दक्षिण में हिन्द महासागर इसके चरण-प्रक्षालन कर रहा है। इस देश के पूर्व में बंगाल का उपसागर और पश्चिम में अरब सागर हैं। हमारे देश में गंगा, यमुना आदि नदियों की मधुमय धाराएँ निरंतर बहती रहती हैं। भारत की संस्कृति बहुत प्राचीन, भव्य और श्रेष्ठ है। संसार का आचार-विचार, व्यापार-व्यवहार, ज्ञान-विज्ञान आदि की शिक्षा-दीक्षा भारत से ही मिली है। क्षमा, उदारता और करुणा की त्रिवेणी इसी देश में सबसे पहले बहीं है। संयम, त्याग, अहिंसा और विश्वबंधुत्व सदा भारतीय जीवन के आदर्श रहे हैं।
हमारा देश कभी सांप्रदायिक या संकुचित नहीं रहा। इसीलिए इस देश में अनेक जातियों और धर्म पनपते हैं। अनेक प्रांत होते हुए भी समस्त भारत एक राष्ट्र है। संपूर्ण देश की बागडोर संघ सरकार के हाथ में है। भारतीय संस्कृति एवं जीवनदर्शन अनन्य एकरूपता है। कृषिप्रधान होते हुए भी वह औद्योगिक और व्यापारिक दृष्टि से अच्छी तरक्की कर रहा है।
मुंबई, दिल्ली, चेन्नई, कोलकाता, अहमदाबाद आदि इसके औद्योगिक केंद्र हैं। अजंता की गुफाएं, दक्षिण के मंदिर, आगरा का ताजमहल, दिल्ली का कुतुबमिनार, सांची का स्तूप आदि कला के उत्तम नमूने इसी देश में हैं। मर्यादापुरुषोत्तम राम, भगवान श्रीकृष्ण और करुणानिधि बुद्ध ने यही अवतार लिया था। कबीर, नानक, नरसिंह, ज्ञानेश्वर, तुकाराम आदि भारत के महान संत थे। अशोक और चंद्रगुप्त, शिवाजी और राणा प्रताप जैसे नरवीर इसी देश में पैदा हुए थे।
राष्ट्रपिता बापू, लोहपुरुष सरदार पटेल, वीर सुभाष और शांतिदूत जवाहर तथा लालबहादुर शास्त्री जैसे नररत्नों ने भारतमाता की कीर्ति में चार चांद लगा दिए हैं। सी. वी. रामन, जगदीशचंद्र बोस जैसे वैज्ञानिकों तथा योगी अरविंद और विवेकानंद जैसे विचारकों के कारण भारत का मस्तक आज भी संसार में ऊंचा है। व्यास, वाल्मीकि, कालिदास, टैगोर जैसे महाकवियों ने विश्व प्रतिभाओं के बीच में स्थान पाया है। भारत के वेदग्रंथों की गणना संसार के श्रेष्ठ एवं प्राचीनतम साहित्य में होती है।
अंग्रेजों ने भारत को वर्षों तक गुलाम बनाए रखा, लेकिन वे भारतवासियों के स्वतंत्रता-प्रेम को दबा न सके। अंत में भारतवासियों ने अहिंसक राज्यक्रांति से पूर्ण स्वतंत्रता लेकर ही चैन की सांस ली। आज हमारा देश विश्वशांति और मानवता का प्रहरी है। इसका भूतकाल गौरवपूर्ण, वर्तमान प्रगतिशील और भविष्य उज्ज्वल है, इसलिए हमारा देश हमें प्राणों से भी अधिक प्यारा है।
प्रश्न 3.
विज्ञान – वरदान या अभिशाप?
विज्ञान का युग -बिजली का जादू-यातायात और समाचारसंबंधी सुविधाएं – मनोरंजन, चिकित्सा आदि क्षेत्रों में -बुद्धसंबंधी आविष्कार -विज्ञान का उज्वल भविष्य]
उत्तर :
आज का युग विज्ञान के आविष्कारों और सिद्धियों का युग है।
बिजली की खोज विज्ञान की एक बहुत बड़ी सिद्धि है। विजली आज हमारा भोजन पकाती है, कमरा बुहारती है, पंखा चलाती है, प्रकाश देती है। अनेक कल-कारखाने उसी की शक्ति से चलते हैं। सचमुच, बिजली का आविष्कार आज के युग में कल्पवृक्ष सिद्ध हुआ है।
विज्ञान के यातायात-संबंधी आविष्कारों ने विश्व को एकदम छोटा बना दिया है। रेल, मोटर, जलपोत और हवाई जहाजों के जरिए आज हम सैकड़ों किलोमीटर की यात्रा बात ही बात में पूरी कर सकते हैं। समाचार या संवादवहन-संबंधी वैज्ञानिक आविष्कार भी अद्भुत हैं। टेलीफोन की करामात किससे छिपी है? और बेतार के तार (वायरलेस), संगणक आदि के द्वारा पलभर में विश्व के किसी भी कोने में समाचार भेजे जा सकते हैं।
मनोरंजन के क्षेत्र में विज्ञान की देन महत्त्वपूर्ण है। सिनेमा विज्ञान ३ की अनुपम देन है। इसका उपयोग रेडियो की भांति मनोरंजन के साथ शिक्षा के लिए भी होता है। दूरदर्शन द्वारा देश-विदेश के दृश्यों को हम देख सकते हैं। वीडियो द्वारा तो हम घर पर ही जब चाहे तब मनपसंद फिल्म या अन्य कार्यक्रम देख सकते हैं।
चिकित्सा के क्षेत्र में वैज्ञानिक चमत्कारों ने आमूल परिवर्तन कर दिया है। आज अंधे को आँख मिल सकती है, जरूरत पड़ने पर कृत्रिम अंग भी बैठाए जा सकते हैं। एक्स-रे द्वारा शरीर के भीतरी भागों की छान-बौन और इलाज संभव हो गया है। विज्ञान द्वारा अनेक असाध्य रोग भी साध्य हो गए हैं। नए नए प्रकार के हल, ट्रैक्टर, काटने-छोटने के यंत्र आदि विज्ञान के कृषि-विषयक आविष्कार हैं। विज्ञान के अन्य चमत्कारों में मुद्रणयंत्र मुख्य है। ज्ञान के प्रचार और प्रसार में इससे बहुत सहायता मिली है। सचमुच, विज्ञान । मनुष्य के लिए एक वरदान सिद्ध हुआ है।
विज्ञान के युद्ध-विषयक विविध अस्त्र-शस्त्रों के आविष्कारों ने विज्ञान को अभिशाप बना दिया है। परमाणु-बम और हाइड्रोजन बम भी विज्ञान की ही देन हैं। मनुष्यमात्र को नामशेष कर देनेवाली विषैली गैस भी विज्ञान के द्वारा खोजी गई है।
सचमुच, विज्ञान की सिद्धियाँ अदभुत हैं। विज्ञान मानव-जाति के लिए वरदान सिद्ध हो सकता है, केवल शर्त इतनी है कि उसका उपयोग मानव-हित के लिए ही किया जाए।
प्रश्न 4.
यदि मैं वैज्ञानिक होता …
[विज्ञान का युग -विज्ञान की शिक्षा और खोजें – कुछ विशेष खोजें -विशिष्ट सेवा – मेरा आदर्श – उपसंहार]
उत्तर :
आज का युग विज्ञान का युग है। जीवन के हर क्षेत्र में विज्ञान का बोलबाला है। जब मैं अपने चारों तरफ विज्ञान के अनोखे करिश्मे देखता हूँ तो मेरे मन में यह इच्छा होती है, काश! मैं भी वैज्ञानिक होता!
वैज्ञानिक होना कोई मामूली बात नहीं है। इसके लिए वैज्ञानिक। दृष्टिकोण और विज्ञान की ऊंची शिक्षा जरूरी है। सबसे पहले विज्ञान के क्षेत्र में कैची डिग्री लेकर मैं अपनी प्रयोगशाला खोलता। अपनी प्रयोगशाला में में उन चीजों के बारे में संशोधन-कार्य करता, जिनकी हमारे देश को बहुत जरूरत है। हमारे देश को सस्ती लेकिन कारगर मशीनों, दवाइयों, खेती के लिए नए-नए औजारों आदि की बहुत जरूरत है। बाहर से आनेवाली चीजें इतनी महंगी हैं कि साधारण आदमी उन्हें खरीद नहीं सकता। यदि मैं वैज्ञानिक होता तो मेरा यही प्रयत्न रहता कि सभी चीजें देश में ही बनें और सब लोग उनका आसानी से लाभ उठा सकें।
वैज्ञानिक बनकर मैं यह खोजने में लग जाता कि समुद्र का जल पेय जल कैसे बनाया जाए, समुद्री जल से विद्युत कैसे बनाई जाए, सूर्य की गर्मी से सस्ती ऊर्जा कैसे प्राप्त की जाए। इसके साथ ही मैं कैन्सर का सफल इलाज खोज निकालने के लिए लगातार कोशिश करता। एक वैज्ञानिक के रूप में मैं वैज्ञानिक संगठनों की स्थापना करता। आम जनता में विज्ञान के प्रति समझदारी और अभिरुचि बढ़ाने के लिए ₹ मैं प्रदर्शनी और चर्चा-सभाओं का आयोजन करता। विज्ञान के अध्ययन को प्रोत्साहन देने के लिए मैं हर संभव प्रयत्न करता। मैं नवयुवकों की बुद्धि और शक्ति का सदुपयोग करता और उन्हें वैज्ञानिक बनने की प्रेरणा देता।
एक वैज्ञानिक के रूप में मुझे चाहे जितनी भी सफलता मिलती, लेकिन मैं यह कभी नहीं भूलता कि मैं सबसे पहले एक मनुष्य है, फिर वैज्ञानिक! मेरी खोजें सारी मानवता के हित के लिए होती। आज जैसे मार्कोनी, न्यूटन, एडीसन, मैडम क्यूरी, लुई पाश्चर आदि की खोजों का लाभ सारा संसार उठा रहा है, वैसे ही मेरी अपनी खोजों द्वारा दुनिया को खुशहाल होती देखकर फूला नहीं समाता।
कितना अच्छा हो यदि मैं एक सफल वैज्ञानिक बन पाऊ!
प्रश्न 5.
यदि मैं शिक्षामंत्री होता …
[शिक्षामंत्री बनना एक सौभाग्य – सस्ती और उपयोगी शिक्षा – उचित माध्यम – पाठ्यपुस्तक एवं शिक्षा प्रणाली में सुधार -अन्य सुधार।
उत्तर :
जीवन में शिक्षा का बहुत महत्त्व है। अच्छी शिक्षा-प्रणाली पर ही समाज और राष्ट्र की उन्नति का आधार है। यदि मैं शिक्षामंत्री होता तो राष्ट्र की सेवा का यह अवसर पाकर स्वयं को परम भाग्यशाली मानता।
यदि मैं शिक्षामंत्री होता तो आज की शिक्षा को अधिक-से-अधिक उपयोगी और सार्थक बनाने का प्रयत्न करता। आज की खर्चीली शिक्षा पाकर और बड़ी डिग्रियां लेने के बावजूद भी बेकारी के शिकार युवकों को देखकर मुझे बड़ा दुःख होता है। शिक्षामंत्री बनने पर मेरा प्रयत्न ऐसी शिक्षा-प्रणाली विकसित करने पर होता जिसमें आजीविका प्राप्ति के लिए युवकों को मारा-मारा न फिरना पड़े। इसलिए मैं शिक्षण में टेकनिकल और औद्योगिक शिक्षा को प्रधानता देता।
में शिक्षा के माध्यम के लिए मातृभाषा को उपयुक्त मानता। मेरा प्रयत्न रहता कि उच्च शिक्षा भी मातृभाषा के माध्यम से ही दी जाए। परंतु आज अंग्रेजी भाषा के महत्त्व को देखकर मैं उसे भी उचित स्थान देता। मैं ऐसी पाठ्यपुस्तकें तैयार करवाता जिनकी भाषा सरल और रोचक हो और उनकी रचना राष्ट्रीय भावनाओं तथा भारतीय संस्कृति के आदर्शों के अनुसार हो।
शिक्षामंत्री बनने पर मैं ‘डोनेशन’ या ‘डिपॉजिट’ जैसी प्रथाओं को हटा देता। मैं महाविद्यालयों में फैशन परस्ती की प्रवृत्ति पर भी अंकुश लगाने का प्रयत्न करता। काश! शिक्षामंत्री बनकर मुझे राष्ट्रसेवा करने और सपने साकार करने का अवसर मिले।
प्रश्न 6.
निरक्षरता – एक अभिशाप
निरक्षरता का अर्थ -आज की दुनिया में निरक्षर व्यक्ति की स्थिति – भारत में निरक्षरता -निरक्षरता से देश को हानि -निरक्षरतानिवारण के उपाय -निरक्षरता से मुक्त भारत का स्वप्न]
उत्तर :
निरक्षरता का अर्थ है- अक्षरज्ञान का न होना। अक्षरज्ञान के बिना व्यक्ति पढ़-लिख नहीं सकता। इसलिए अनपढ़ व्यक्ति को निरक्षर कहा जाता है। आज की दुनिया में तो ज्ञान-विज्ञान का बोलबाला है। साहित्य, कला, विज्ञान, इतिहास, धर्म आदि की बढ़िया-से-बढ़िया पुस्तकें आसानी से उपलब्ध हैं। लेकिन अशिक्षित व्यक्ति के लिए तो ‘काला अक्षर भैंस बराबर’ है। वह पुस्तकों में संचित अनमोल ज्ञान का लाभ नहीं उठा सकता। अखबार और पत्र-पत्रिकाएँ न पढ़ पाने से देश-विदेश में हो रहे परिवर्तनों की उसे सही जानकारी नहीं होती। और तो और, वह न किसी को पत्र लिख सकता है, न किसी का पत्र पढ़ सकता है। लिखने-पढ़ने के मामले में उसे हमेशा दूसरों का मुंह ताकना पड़ता है। ‘विद्याविहीनो नरः पशुः’ की उक्ति उसके लिए खरी उतरती है।
यह खेद की बात है कि भारत में आज भी साक्षरता की तुलना में निरक्षरता का परिमाण कई गुना ज्यादा है। हमारे देश के लाखों गांव आज भी अशिक्षा के अंधकार में जी रहे हैं। अनपढ़ किसानों को खेती की आधुनिक पद्धतियों की पर्याप्त जानकारी नहीं है। शहरों में निरक्षर मजदूर पशुओं की तरह पेट पाल रहे हैं। देश के अधिकांश नागरिक जब निरक्षरता से पीड़ित हों, तब देश की वास्तविक प्रगति की कल्पना कैसे की जा सकती है?
निरक्षरता के होते हुए देशवासियों में राष्ट्रीयता का प्रबल भाव जाग्रत नहीं हो सकता। लोगों में विचारशक्ति का समुचित विकास नहीं हो सकता। सरकारी अधिकारी भी उसका शोषण करते हैं। अनपढ़ समाज को हर जगह ठोकरें खानी पड़ती हैं। अपने अधिकारों और कर्तव्यों का उचित ज्ञान न होने से अशिक्षित लोग कभी आदर्श नागरिक नहीं बन सकते।
निरक्षरता के अभिशाप से लोगों को मुक्ति दिलाने के लिए सरकार और कई सामाजिक संस्थाएं भरसक प्रयत्न कर रही हैं। फिर भी समय की मांग है कि निरक्षरता-निवारण के लिए विशेष प्रयत्न किए जाएं। गांव-गाँव आदर्श विद्यालयों की स्थापना हो। प्रौढ़ शिक्षा के वर्गों का सही संचालन किया जाए। माध्यमिक स्तर तक निःशुल्क शिक्षण दिया जाए। गाँव गाँव में पुस्तकालय और वाचनालय शुरू किए जाएं। समय-समय पर साक्षरता अभियान चलाये जाएं। शिक्षण-सामग्री उचित मूल्य पर उपलब्ध कराई जाए।
वह कौन-सा दिन होगा जब भारत का जन-गण निरक्षरता के अभिशाप से मुक्त होगा और यहाँ के धूलभरे हीरे भी अपनी चमक दिखा सकेंगे?
प्रश्न 7.
मेरी पाठशाला का स्नेह-संमेलन
[परिचय अथवा तैयारी -विविध कार्यक्रम – प्रतियोगिताएं -नाटक पुरस्कार वितरण आदि-उत्सव का महत्त्व
उत्तर :
दिनांक 9, 10 और 11 जनवरी को मेरी पाठशाला में बड़ी धूमधाम से स्नेह-संमेलन मनाया गया। पाठशाला की सफाई की गई थी और दीवारों तथा कमरों को सजाया गया था। मेजों और कुर्सियों पर वार्निश लगाई गई थी। सारा भवन बिजली के तोरणों, फूलों की मालाओं और पताकाओं के कारण बड़ा मनोहर लगता था। पाठशाला के प्रवेशद्वार की शोभा अनोखी थी।
स्नेह-संमेलन का प्रारंभ खेल की प्रतियोगिताओं से हुआ। सर्वप्रथम 100 मीटर की दौड़ प्रारंभ हुई। फिर धीरे और तेज साइकिल चलाने – की स्पर्धा हुई। धीरे साइकिल चलाने के प्रयास में कई खिलाड़ी गिर पड़े। दर्शकों में हंसी की लहर दौड़ गई। फिर बच्चों की कुर्सी-दौड़ और जलेबी-दौड़ हुई। कबड्डी और रस्साकसी की प्रतियोगिताएं देखकर लोग बहुत खुश हुए।
दूसरे दिन के कार्यक्रम की शुरुआत वादविवाद प्रतियोगिता से हुई। वादविवाद का विषय था, ‘परीक्षाएं होनी चाहिए या नहीं?’ पाठशाला के सबसे शरारती विद्यार्थी रामचंद्र पाठक की निराली वक्तृत्व-शैली ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। दोपहर को निबंध स्पर्धा और शाम को कवि-संमेलन का कार्यक्रम रखा गया था। मैं भी निबंध स्पर्धा में शामिल हुआ। कवि-संमेलन में हिंदी के कई प्रसिद्ध कवियों ने भाग लिया। शहर के सभी प्रतिष्ठित सज्वन हमारी पाठशाला में पधारे। कवि-संमेलन पूरी तरह सफल रहा।
स्नेह-संमेलन के अंतिम दिन महाकवि कालिदास की अमर कृति ‘अभिज्ञानशाकुंतल’ के चतुर्थ अंक का अभिनय किया गया। फिर शिक्षामंत्री के हाथों चित्र-प्रदर्शनी का उद्घाटन हुआ। चित्र-प्रदर्शनी में प्रकृति, इतिहास, भूगोल, साहित्य आदि से संबंधित कई मनोहर चित्र रखे गए थे। लोगों ने इस प्रदर्शनी को बड़े चाव से देखा और उसकी बहुत प्रशंसा की। इसके बाद नगरपालिका के अध्यक्ष के हाथों विजेताओं को पुरस्कार दिए गए। अंत में हमारे प्रधानाचार्यजी ने आभार-प्रदर्शन किया और स्नेह-संमेलन का कार्यक्रम पूरा हुआ।
इस प्रकार हमारे स्कूल का वार्षिकोत्सव बड़ी शान से मनाया गया। इस उत्सव से सभी छात्रों और अध्यापकों में उत्साह की लहर दौड़ गई। नए साल के लिए उनके हौसले बढ़ गए। कई दिनों तक हम अपने इस स्नेह-संमेलन की चर्चा करते रहे।
प्रश्न 8.
प्रदूषण – एक विकट समस्या
[चारों ओर प्रदूषण ही प्रदूषण – प्रदूषण के प्रकार -प्रदूषण के कारण – प्रदूषण के दुष्परिणाम – प्रदूषण कम करने के उपाय-संदेश
उत्तर :
आज हम प्रदूषण की दुनिया में जी रहे हैं। जल, स्थल और आकाश पर प्रदूषण के दैत्य ने अपना अधिकार जमा लिया है। सर्वत्र प्रदूषण के कारण हमारा जीवन एक भयावह चक्रव्यूह में फैसकर रह गया है।
प्रदूषण बहुमुखी दैत्य है। वह वायु-प्रदूषण, जल-प्रदूषण और ध्वनिप्रदूषण के रूप में अपनी जी. लपलपा रहा है। हम दूषित वायुमंडल में सांस ले रहे हैं। पीने के लिए लोगों को स्वच्छ, निर्मल जल नहीं मिल रहा है। दूषित जल और जंतुनाशक दवाओं के कारण अनाज की फसलें भी दूषित हो रही हैं। आधुनिक यंत्रों का शोर हमारे कानों के परदे फाड़ रहा है। प्रदूषण के इन विविध रूपों ने इस सुंदर सृष्टि के अस्तित्व पर ही प्रश्नचिहन लगा दिया है।
प्रदूषण की इस विकट समस्या के मूल में औद्योगिक क्रांति और बढ़ती हुई आबादी है। मिलों, कारखानों और वाहनों से निकलनेवाला धुआँ वातावरण को विषैला बना रहा है। गैस प्लांटों से गैस रिसने की दुर्घटनाएं पर्यावरण को खौफनाक बना रही हैं। औद्योगिक संस्थानों से निकलनेवाला रासायनिक कूड़ा-कचरा तथा शहर की गटरों का पानी नदियों, झीलों तथा समुद्रों के पानी में विष घोल रहा है। रेलगाड़ियों, विमानों, मोटरों के हार्न; रेडियो, दूरदर्शन तथा लाउड स्पीकरों से निकलनेवाली ध्वनियाँ ध्वनि।
प्रदूषण को बढ़ा रही हैं। खेल-कॉमेट्रियाँ, पटाखे तथा बम-विस्फोट भी ध्वनि प्रदूषण की वृद्धि में सहयोग दे रहे हैं। शहरों की गंदी झोपड़पट्टियाँ, मशीनीकरण की बढ़ती प्रवृत्ति और वनों तथा वृक्षों का बेतहाशा विनाश प्रदूषण के मुख्य कारण हैं।
हर तरह का प्रदूषण जीवन का शत्रु है। वायु-प्रदूषण के कारण वायुमडल में कार्बन डायऑक्साइड की मात्रा बढ़ती जा रही है। इससे पृथ्वी के पर्यावरण के ऊपर रहनेवाला ओझोन गॅस का सुरक्षा-चक्र बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। पृथ्वी पर के तापमान के अनियमित होने से प्रातुओं का परिवर्तन-चक भी गड़बड़ा रहा है। वायु तथा जल के प्रदूषण से तरह-तरह के घातक रोग फैल रहे हैं। खेती की पैदावार नष्ट हो रही है। धरती का उपजाऊपन घट रहा है। ध्वनि प्रदूषण के कारण मानव बहरेपन, अनिद्रा, रक्तचाप तथा मानसिक रोगों का शिकार बन रहा है।
प्रदूषण से पूरी तरह मुक्त होना संभव नहीं है, पर उसे कम अवश्य किया जा सकता है। इसके लिए लोगों में जागरूकता पैदा करनी होगी। वनों के विनाश को रोकना होगा और वृक्षारोपण की प्रवृत्ति में तेजी लानी 3 होगी। यदि हम समझदारी से काम लें, जनसंख्या का वृद्धि-दर कम कर सकें और यंत्रों के उपयोग पर अंकुश रखें तो प्रदूषण की समस्या से बहुत है हद तक निपट सकते हैं।
यदि मानवजाति सुख-शांति से जीना चाहती है, तो उसे प्रदूषण के : विषधरों को पिटारी में बंद करना ही होगा।
प्रश्न 9.
भ्रष्टाचार – शिक्षा का कैन्सर
[भ्रष्टाचार की व्यापकता -शिक्षा-क्षेत्र में भ्रष्टाचार से – खतरा -विभिन्न रूप-दुष्परिणाम -रोकने का उपाय – मुक्ति जरूरी।
उत्तर :
दुनिया में फूल हैं, तो काँटे भी हैं, उजाला है, तो अंधेरा भी है, सुख है तो दु:ख भी है। उसी तरह सदाचार है, तो दुराचार भी है। भ्रष्टाचार दुराचार का ही एक रूप है। हमारे देश में तो कोई ऐसा क्षेत्र नहीं जो भ्रष्टाचार से मुक्त हो। भ्रष्टाचार का कैन्सर शिक्षा जगत के स्वास्थ्य को चौपट करने में लगा हुआ है।
शिक्षा-जगत सरस्वती देवी का पवित्र क्षेत्र है। सरस्वती कला-साहित्य और ज्ञान-विज्ञान की देवी है – शक्ति है। वह निर्मल स्वभाववाली है। वह बौद्धिक जड़ता के अंधकार को दूर करती है। शिक्षा क्षेत्र से ही प्रतिभा और योग्यता के दीप आलोकित होते हैं। इसी क्षेत्र से राष्ट्र को योग्य शिक्षक, लेखक, डॉक्टर, वैज्ञानिक, इंजीनियर, प्रशासक और कार्यकुशल व्यक्ति मिलते हैं। आदर्श नागरिकता की जड़ें भी शिक्षा क्षेत्र में ही हैं। राष्ट्र के विकास की नीव शिक्षा क्षेत्र ही है। इसलिए इस क्षेत्र में भ्रष्टाचार का होना देश के लिए भीषण खतरा है। भ्रष्टाचार से सड़ रहा शिक्षा-क्षेत्र राष्ट्र को कभी सुनहरा भविष्य नहीं दे सकता।
भ्रष्टाचार एक मायावी दानव है। वह अनेक रूप धारण कर सकता है। शिक्षा-जगत में कहीं वह डोनेशन के रूप में हैं, कहीं शाला-भवन की मरम्मत के रूप में है। कहीं वह छात्रों को उत्तीर्ण करने के लिए रिश्वत के रूप में है। कहीं-कहीं विश्व-विद्यालयों के भ्रष्ट कर्मचारी नकली उत्तीर्ण-प्रमाण-पत्र छपवाकर बेचते हैं। रुपयों के बल पर परीक्षा से पहले ही प्रश्नपत्र विद्यार्थियों के हाथ में चले जाते हैं! धन के बल पर जीरो मनोरंजन के क्षेत्र में, ज्ञान-विज्ञान, टैक्नोलॉजी के क्षेत्र में मोबाइल ने क्रांति कर दी है।
जो व्यक्ति जब मन चाहे तब अपना मनपसंद मनोरंजक कार्यक्रम देख सकता है, विद्यार्थी अपने अभ्यास संबंधी ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। अपने विषय से संबंधित विडियो-ऑडियो की मदद से आगे बढ़ सकते हैं। गृहिणियाँ अपनी मनपसंद रसोई सीख सकती है या दूसरों को भी सिखा सकती है। विभिन्न प्रकार की कलाओं को सिखा-सिखाया जा सकता है। अपने मनपसंद क्षेत्र में आगे बढ़ा जा सकता है। अपने व्यापार को दिन दूना रात चौगुना बढ़ाया जा सकता है। करोड़ो लोगों तक अपने वेपार का इस्तहार पहुंचाया जा सकता है। प्रेमियों के लिए तो मोबाइल फोन काल्पनिक स्वर्ग है।
यदि किसी की तबीयत अचानक खराब होती है तो एमरजेंसी में एम्ब्युलन्स, डॉक्टर, पुलिस को बुलाया जा सकता है। मोबाइल के कैमरे से फोटो लेकर सुरक्षित सबूत बनाया जा सकता हैं। बैंकिंग क्षेत्र के लिए मोबाइल फोन वरदान है। कैसलैस इकॉनोमी बनायी जा सकती है। बैठे-बैठे किसी को भी पैसों का भुगतान किया जा सकता है या पैसा अपने अकाउन्ट में मंगवाया जा सकता है। यदि आप अनजानी जगह पर रास्ता भूल गए हैं तो GPS सिस्टम आपको रास्ता दिखा देती है। ऐसे तो अनेको लाभ आप मोबाइल फोन से पा सकते हैं। इसीलिए तो मोबाइल फोन वरदान कहलाता है।
मोबाइल फोन अभिशाप भी है। इससे निकलनेवाली रेडिएशन से स्वास्थ्य खराब हो सकता है। शारीरिक-मानसिक हानि पहुंच सकती है। वाहन चलाते समय मोबाइल फोन का उपयोग करने से दुर्घटनाएं होती हैं, तब यह जानलेवा बन सकता है। किसी महत्त्वपूर्ण मिटिंग या कार्य में बैठे हो तब आपका मोबाइल फोन कॉल आपका ध्यान भटका सकता है। मोबाइल फोन के कारण विद्यार्थी पढ़ाई में कम ध्यान देते हैं। मोबाइल फोन पर विविध एप के कारण, गेम के कारण अधिकतर विद्यार्थी अपना भविष्य बिगाड़ रहे हैं।
अश्लील विडियो-फिल्में देखकर बच्चों पर अत्याचार, बलात्कार जैसे दूषण समाज में बढ़ते ही जा रहे हैं। इसी मोबाइल फोन के नकारात्मक उपयोग ने चोरी, लूटफाट जैसे अन्य कई दूषणों को बढ़ावा दिया है। मोबाइल फोन के माध्यम से अफवाहे बड़ी तेज़ी से फैलती है, जिस में लड़ाई-दंगे होने की संभावनाएँ बढ़ जाती है। मोबाइल फोन के सोशियल मिडिया से लाखों लोगों से जुड़कर भी इन्सान अकेला होता जा रहा है। मानसिक संतुलन बिगड़ता जा रहा है। आंखों पर इसका बहुत ही बुरा प्रभाव पड़ रहा है।
सार सार को गहि रहे थोथा दिये उड़ाय’ कहावत के अनुसार यदि हम मोबाइल फोन का विवेकानुसार उपयोग करेंगे तो यह वरदान साबित हो सकता है और इस अलादीन के चिराग से आप दुनिया मुट्ठी में कर सकते हो। पानेवाला भी हीरो बन जाता है। शिक्षा-संस्थानों के धन-लोलुप अधिकारी अपनी जेबें भरने का कोई-न-कोई भ्रष्ट तरीका निकाल ही लेते हैं। शिक्षा में फैला हुआ यह भ्रष्टाचार आज राष्ट्र और समाज की जड़ें खोखली कर रहा है। भ्रष्टाचार के बल पर अयोग्य व्यक्ति उच्च पद प्राप्त कर रहे हैं।
नकली प्रमाण-पत्रों के सहारे नीम-हकीम अपने शानदार दवाखाने खोलकर अच्छी कमाई कर रहे हैं। नकली प्रमाण-पत्र प्रस्तुत करके कच्ची शिक्षावाले अध्यापक अनैतिक मार्गों से धन कमा रहे हैं। शिक्षा में व्याप्त भ्रष्टाचार के कारण देश में बगुलाभगतों की फौज तैयार हो रही है और आज़ादी की आधी सदी बीतने के बावजूद हमारा देश पिछड़े हुए देशों की सूची में शामिल है! शिक्षा क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार को रोकने के लिए कड़े अनुशासन और नियंत्रण की आवश्यकता है। कम-से-कम अयोग्य व्यक्तियों को बढ़ावा नहीं मिलना चाहिए ।
डोनेशन बंद होना चाहिए । योग्य, दक्ष एवं प्रतिभाशाली व्यक्तियों को इस क्षेत्र में आगे आने का मौका मिलना चाहिए। शिक्षकों को उचित वेतन मिलने पर वे अनैतिक ढंग से कमाई करना बंद कर सकते हैं। इस क्षेत्र में अपराध करनेवालों को कड़ा दंड मिलना चाहिए। समाज को भी शिक्षा-क्षेत्र को भष्टाचार से मुक्त करने में सहयोग देना चाहिए।
शिक्षा में भ्रष्टाचार करना राष्ट्र की नींव को कमजोर करना है। कमजोर नींव पर राष्ट्रीय विकास की इमारत कैसे खड़ी हो सकती है? यदि इस स्वतंत्र देश को स्वस्थ रखकर प्रगति के पथ पर बढ़ना है, तो इसे भ्रष्टाचार के कैन्सर से मुक्त करना ही होगा। इसके लिए उपयुक्त शल्यक्रिया करने में ही बुद्धिमानी है।
प्रश्न 10.
वृक्ष ही जीवन है
[वृक्ष – मनुष्य के लिए – वृक्षारोपण एक पुण्यकार्य-वृक्षारोपण के लाभ-वैज्ञानिक और भौगोलिक दृष्टि से महत्व – उपसंहार ]
उत्तर :
वृक्ष सदा से ही मनुष्य के मित्र रहे हैं। वे प्रकृति की उपकार- भावना को प्रकट करते हैं। उनसे मनुष्य को बहुत कुछ मिलता है। वे मानव-जीवन के आवश्यक अंग हैं। इसीलिए प्राचीन काल से हमारे यहाँ ‘वृक्षारोपण’ की बड़ी महिमा रही है। देश में वृक्षों की अधिकता, देश के सुख, सौभाग्य और समृद्धि की निशानी है।
वृक्षारोपण को एक पुण्यकार्य माना गया है। एक वृक्ष लगाना और उसका संरक्षण करना उतना ही महत्त्वपूर्ण है, जितना किसी संतान को गोद लेना और उसका पालनपोषण तथा विकास करना। अग्निपुराण में तो कहा गया है कि जो व्यक्ति वृक्ष लगाता है वह अपने तीस हजार पितरों का उद्धार करता है।
वृक्षारोपण से मनुष्य को अनेक लाभ मिलते हैं। वृक्षों के फलनेफूलने से सूने स्थान भी सुंदर बन जाते हैं। वृक्षों की हरियाली मन को प्रसन्न करती है। उनकी शीतल छाया गर्मी की दोपहर में सुख-शांति देती है। उनके फूल-फल तथा पत्ते-लकड़ी हमारे लिए बहुत उपयोगी होते हैं। वृक्षों से कागज, दियासलाई आदि बनाने की कच्ची सामग्री, गोंद, भाँति-भाँति की जड़ीबूटियाँ और तेलों की प्राप्ति होती है।
वैज्ञानिक और भौगोलिक दृष्टि से भी वृक्षारोपण बहुत महत्त्वपूर्ण है। वृक्षों से वायुमंडल शीतल और शुद्ध बनता है। शुद्ध हवा लोगों को स्वस्थ बनाती है। वृक्षों के आकर्षण से बादल वर्षा करते हैं और अकाल का भय दूर होता है। खेतों के चारों ओर वृक्ष लगाने से वर्षा में उनकी मिट्टी का संरक्षण होता है और अनाज का उत्पादन बढ़ता है। नदी के किनारे वृक्ष लगाने से उसके किनारों का कटाव रुकता है।
सड़कों के किनारे वृक्ष लगाने से उनकी शोभा बढ़ती है और पथिकों को छाया मिलती है। सचमुच, वृक्षारोपण हमारा एक सामाजिक कर्तव्य है। वह जीवन को स्वस्थ, सुंदर और सुखी बनाने की एक योजना है। प्रति वर्ष वनमहोत्सव मनाकर हमें इस योजना में जरूर सहयोग देना चाहिए। यह खुशी की बात है कि आज हम वृक्षारोपण के महत्त्व को समझने लगे हैं। आज शहरों में ‘वृक्ष लगाओ’ सप्ताह मनाए जाते हैं। नगरपालिकाएं भी वृक्षारोपण के कार्यक्रम को प्रोत्साहन दे रही हैं। स्व. प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के जन्मदिवस पर भी वृक्षारोपण करने की परंपरा चल पड़ी है और अधिकाधिक वृक्ष लगानेवाले व्यक्ति या संस्था को ‘वृक्ष-मित्र’ पुरस्कार भी दिया जाता है।
इसमें संदेह नहीं कि देश में हरेभरे वृक्ष जितने अधिक होंगे, देश का जीवन भी उतना ही हराभरा होगा। इसलिए हमें वृक्षारोपण की प्रवृत्ति को उत्साहपूर्वक अपनाना चाहिए।
प्रश्न 11.
मोबाइल फोन वरदान या अभिशाप
[प्रस्तावना -आधुनिक जीवन में मोबाइल का स्थान -ज्ञान, मनोरंजन, खेल, संपर्क का श्रेष्ठ माध्यम – सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक रूप से लाभदायी – व्यापारियों के लिए वरदान – सदउपयोग हो तो अनादीन का विराग – मोबाइल फोन के कई दुरुपयोग – उपसंहार]
उत्तर :
आज का युग मोबाइल फोन का युग है। मोबाइल फोन से इन्सान ने मानो दुनिया की अपनी मुट्ठी में कर लिया है। अमीर हो या गरीब सबके पास अपनी-अपनी हैसियत के हिसाब से मोबाइल होते हैं। आज के युग में सबसे उपयोगी है मोबाइल फोन। मोबाइल फोन छोटा-सा चमत्कारिक यंत्र है जिसे आसानी से जेब में रखा जा सकता है।
प्रत्येक सिक्के के दो पहलू होते हैं, वैसे ही मोबाइल फोन के भी दो पहलू है, वह वरदान तो हैं ही साथ में अभिशाप भी है। यह जिदगी बनाता है तो बिगाड़ता भी है। हमारी विवेकबुद्धि के अनुसार उसका प्रयोग करना सही होगा। मोबाइल फोन आज के युग में अलादीन का चिराग है। मोबाइल फोन के अनगिनत लाभ है। मोबाइल फोन संदेशाव्यवहार का सर्वश्रेष्ठ साधन है। अत्यंत तेज़ी से संदेश पहुंचाता है। ध्वनि संदेश हो या लेखनसंदेश।
अब तो मोबाइल फोन के जरिये विडियो-कॉल, कॉन्फरन्स भी की जा सकती है। कारोना महामारी के समय तो लाखों लोगों ने मोबाइल फोन से अपना कामकाज किया। मोबाइल ने लाखों नौकरियां बचाई। मोबाइल की मेमरी के कारण वह एक साथ हजारों फोन नंबर सुरक्षित रख सकता है। मोबाइल आने के कारण ‘पेपरलैस’ कार्य होता जा रहा है जिससे पर्यावरणिय सुरक्षा बंद रही है। कागज़ का कम उपयोग होगा तो पेड़ भी कम कटेंगे।
प्रश्न 12.
स्त्री सशक्तिकरण
प्रस्तावना -प्राचीन भारत में स्त्रियों का स्थान -हमारी सांस्कृतिक परंपरा-पुराने जमाने के कुरिवाज-आज समाज में स्त्रियों की स्थिति -स्त्रियों के विशेष गुण -हमारा कर्तव्य – उपसंहार]
उत्तर :
हमारे शास्त्रों में कहा गया है ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्रः देवताः।’ अर्थात् जहाँ नारियों की पूजा की जाती है, सम्मान किया जाता है वहाँ देवता प्रसन्न होते हैं, वहाँ देवों का वास होता है। इस पंक्ति का विस्तृत अर्थ है। नारियों को जहाँ आगे बढ़ने के अवसर दिये जाते हैं, वहाँ समृद्धि आती है।
“स्त्री सशक्तिकरण’ का अर्थ नारी की क्षमता से है जिससे उसमें योग्यता आ जाती है कि वो अपने जीवन से जुड़े सभी निर्णय स्वयं ले सके। हम ऐसे समाज की कामना करते हैं जहाँ परिवार की नारी को परिवार और समाज वह अवसर दे, जहाँ वह अपने व्यक्तित्व के निर्माण के लिए आवश्यक सारे निर्णय स्वयं ले सके। महिला प्रगति के लिए जब अपने कदम आगे बढ़ा लेती है तो उसका परिवार आगे बढ़ता है, परिवार आगे बढ़ता है तो समाज आगे बढ़ता है, राष्ट्र आगे बढ़ता है।
भारतीय समाज में महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए हमें उनके अधिकारों-हितों का हनन करनेवाले सभी दानवीय कुरिवाजों को मारना होगा। जैसे दहेज प्रथा, अशिक्षा, यौन-शोषण, भ्रूण-हत्या, असमानता, मानव तस्करी, वैश्यावृत्ति, लैंगिक भेदभाव और ऐसे ही अन्य कुरिवाज। दहेजप्रथा जैसे कुरिवाजों से समाज में नारी का अवमूल्यन होता है, उसे चीज समजा जाता है। गरीब-मध्यमवर्गीय परिवार में लड़कियाँ बोझ बन जाती है। याचनानुसार दहेज न देने में पग-पग पर नारी को प्रताड़ित करके उसे अनेक मानसिक-शारीरिक यातनाएं दी जाती हैं। यहाँ तक की उसे जिंदा जला दिया जाता है या आत्महत्या के लिए मजबूर कर दिया जाता है।
इसी कारण भूण-हत्या को प्रोत्साहन मिलता है। इसीसे लैंगिक-भेदभाव बढ़ता है। लैंगिक भेदभाव से नारियों को सामाजिक, शैक्षणिक, आर्थिक बैमनस्य झेलना पड़ता है। भारत के संविधान ने नारी को समानता का मूलभूत अधिकार दिया है। मानवतावादी मूल्यों एवम् बंधारणीय अधिकारों को उजागर करने के लिए इन कुरिवाजों को संपूर्ण रूप से प्रतिबंधित करके ही नारी का सशक्तिकरण किया जा सकता है।
नारी सशक्तिकरण के लिए जन्म से ही नारी को प्रोत्साहित करना चाहिए। उसको संस्कार, शिक्षा से परिष्कृत करना चाहिए। लड़कियों को बचपन से ही शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, आर्थिक रूप से सशक्त करना आवश्यक है। बच्चियों की बेहतर शिक्षा पर बचपन से ही आवश्यक ध्यान दिया जाए। बालिकाओं को कुपोषण से बचाया जाए। सरकार के द्वारा भी इस संबंध में अनेक कदम उठाए गए हैं। आज की पिछडे विस्तारों में अशिक्षा, असुरक्षा और गरीबी के कारण बाल-विवाह कर दिया जाता है। छोटी उस में बच्चे पैदा होने के कारण जच्चा-बच्चा दोनों को ही खतरा रहता है। महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए उनके खिलाफ होनेवाले दुर्व्यवहार, लैंगिक भेदभाव, बालविवाह, सामाजिक अलगाव, घरेलू हिंसा आदि को रोकना अनिवार्य है। अनेक कायदों द्वारा दूषणों को प्रतिबंधित कर दिया गया है।
हमारे देश का इतिहास वीरांगनाओं की वीरगाथाओं से भरा है। इसी धरती पर अनेक बुद्धिजीवी महिलाओंने जन्म लिया है। विश्व का शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र हो जो नारियों ने सर न किया हो। एवरेस्ट की उँचाइयाँ भी उसके मनोबल का सामना नहीं कर पाई। भारतीय नारी के सशक्तिकरण को कोई नहीं रोक सकता। आवश्यकता है नारी के प्रति सबकी सोच बदलने की।