GSEB Solutions Class 9 Hindi Kshitij Chapter 13 ग्राम श्री

   

Gujarat Board GSEB Hindi Textbook Std 9 Solutions Kshitij Chapter 13 ग्राम श्री Textbook Exercise Important Questions and Answers, Notes Pdf.

GSEB Std 9 Hindi Textbook Solutions Kshitij Chapter 13 ग्राम श्री

Std 9 GSEB Hindi Solutions ग्राम श्री Textbook Questions and Answers

प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न 1.
कवि ने गाँव को ‘हरता जन मन’ क्यों कहा है ?
उत्तर :
कवि ने गाँव को ‘हरता जन मन’ इसलिए कहा है कि गाँव की सुंदरता अद्भुत है। गाँव में चारों ओर खेतों में दूर-दूर तक हरियाली फैली हुई है। मखमली हरियाली पर जब धूप पड़ती है तो वह हँसती हुई नजर आती है। खेतों में गेहूँ, जौ, अरहर, सनई तथा सरसों की फसलें लहरा रही हैं। उनके रंग-बिरंगे फूलों पर भिन्न-भिन्न रंग की तितलियाँ मंडरा रही हैं।

वृक्षों फूलफल आ गए हैं, जिनसे सारा वातावरण गमक रहा है। खेतों में आलू, गोभी, बैंगन, मूली आदि सब्जियाँ उगी हुई हैं। गंगा किनारे तरबूजों की खेती, तालाब में तैरते पक्षी, ऊँगली की कंघी से कलंगी संवारते करते बगुले गाँव की सुंदरता में वृद्धि कर रहे हैं। हरा-भरा गाँव मरकत (पन्ना रत्न) के समान सुंदर है।

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प्रश्न 2.
कविता में किस मौसम के सौन्दर्य का वर्णन है ?
उत्तर :
कविता में शिशिर और वसंत ऋतु का वर्णन है। इसी ऋतु में ढाक और पीपल के पत्ते गिरने लगते हैं। आम के पेड़ों में मंजरियाँ फूटने लगती हैं। खेतों में मटर, सेम, अलसी के फूलने-फलने का समय होता है। इसी समय लगभग हर जगह फूल खिलने लगते हैं। फूलों पर तितलियाँ मँडराने लगती हैं। सब्जियों में आलू, गोभी, बैंगन, पालक, धनिया आदि और फलों में जामुन, आम, अमरूद, कटहल आदि दिखाई देने लगते हैं।

प्रश्न 3.
गाँव को ‘मरकत डिब्बे सा खुला’ क्यों कहा गया है ?
उत्तर :
गाँव को ‘मरकत डिब्बे सा खुला’ कहा गया है क्योंकि गाँव हरा-भरा है। नाना प्रकार के वृक्षों और फसलों से लहरा रहा है। जगह-जगह रंग-बिरंगे फूल, फूलों पर उड़ती तितलियाँ, बल खाती नदी, कंघी करते बगुले आदि सौन्दर्ययुक्त विविधताओं से भरा है। इस तरह, हरा-भरा और चमकदार गाँव दूर से मरकत के खुले डिब्बे-सा प्रतीत होता है।

प्रश्न 4.
अरहर और सनई के ख्नेत कवि को कैसे दिखाई देते हैं ?
उत्तर :
अरहर और सनई में फलियाँ लग गई है । सनई की फलियाँ पककर सुनहरी हो गई हैं । जब हवा चलती है तब उन फलियों से हल्की-हल्की आवाज आती है । जिसे सुनकर कवि को लगता है कि पृथ्वी ने अपनी कमर में करधनी पहन रखी है । उस करधनी में लगे धुंघरुओं से यह आवाज आ रही है ।

प्रश्न 5.
भाव स्पष्ट कीजिए –
क. बालू के साँपों से अंकित गंगा की सतरंगी रेती
उत्तर :
भाव : गंगा के किनारे फैली रेत पर जब सूर्य प्रकाश पड़ता है तो प्रकाश विभाजन के कारण वह रेत रंग-बिरंगी नजर आती है । पानी की लहरों और हवा के कारण जो टेढ़ी-मेढ़ी रेखाएँ बन गई हैं, वे साँपों के रेंगने से बने निशान जैसी लग रही हैं ।

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ख. हँसमुख हरियाली हिम-आतप सुख से अलसाए-से सोए
उत्तर :
भाव : सर्दी की नर्म और कोमल धूप में हरियाली चमक रही है, ऐसा लग रहा है जैसे कि हरियाली हँस रही है । सर्दी की धूप भी खिली-खिली है, जिससे ऐसा भी लगता है कि धूप और हरियाली दोनों ही एक-दूसरे से मिलकर सोए हुए हैं।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित पंक्तियों में कौन-सा अलंकार है ?
तिनकों के हरे-भरे तन पर
हिल हरित रुधिर है रहा झलक
उत्तर :

  1. ‘हरे-हरे’ में पुनरुक्ति अलंकार है, कारण कि ‘हरे’ शब्द का पुनरावर्तन हुआ है ।
  2. ‘हिल हरित रुधिर में’ में ‘ह’ वर्ण की आवृत्ति से अनुप्रास और ‘हरित रुधिर’ में विरोधाभास अलंकार है ।
  3. ‘तिनकों के तन पर’ में तिनकों को जीवंत मानव की तरह चित्रित किया गया है, अत: मानवीकरण अलंकार है ।

प्रश्न 7.
इस कविता में जिस गाँव का चित्रण हुआ है वह भारत के किस भू-भाग पर स्थित है ?
उत्तर :
कविता में गंगा किनारे मैदानी प्रदेश में स्थित किसी गाँषं का चित्रण है ।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 8.
भाव और भाषा की दृष्टि से ‘ग्रामश्री’ आपको यह कविता कैसी लगी ? उसका वर्णन अपने शब्दों में कीजिए ।
उत्तर :
‘ग्राम श्री’ कविता पंत जी ने गाँव की प्राकृतिक शोभा का मनोहारी चित्र खींचा है । खेतों में लहलहाती फसलें उन पर पड़नेवाली सूर्य की किरणें, नीले आकाश का पृथ्वी पर झुकना और इसे देखकर स्वयं पृथ्वी का रोमांचित होना, मटर के पौधों की हरीहरी छिम्मियाँ, जंगल में फूली झरबेरी, गंगा के तट की रेत के सौंदर्य का चित्रण कवि ने विभिन्न अलंकारों के उपयोग से किया है।

ऋतु-परिवर्तन का सूक्ष्म आलेखन और प्रत्येक ऋतु में होनेवाली सब्जियों का वैविध्य चित्रित हुआ है । भाषा की दृष्टि से पर निष्ठित खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है जो तत्सम बहुज्ञ तथा सामासिक पदों से मुक्त है । भाषा प्रवाहमयी और मधुर है जिसमें अनुप्रास, रूपक तथा मानवीकरण आदि अलंकारों का प्रयोग किया गया है ।

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प्रश्न 9.
आप जहाँ रहते हैं उस इलाके के किसी मौसम विशेष के सौंदर्य को कविता या गद्य में वर्णित कीजिए ।
उत्तर :
विद्यार्थी स्वयं करें ।

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अतिरिक्त प्रश्न

प्रश्न 1.
हरियाली का सौन्दर्य किसके कारण बढ़ रहा है ?
उत्तर :
हरियाली का सौंदर्य सूर्य की कोमल किरणों के कारण बढ़ रहा है।

प्रश्न 2.
‘श्यामल भूतल पर झुका हुआ नभ का चिर निर्मल नील फलक’ का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
हरियाली से ढकी होने के कारण हरी-भरी और श्यामल रंगवाली धरती पर विस्तृत नीले रंग का आसमान झुका हुआ है।

प्रश्न 3.
‘तैलाक्त गंध’ का अर्थ समझाइए।
उत्तर :
‘तैलाक्त गंध’ का अर्थ है – सरसों के तेल वाली खुश्बू। सरसों में फूल और फलियाँ आ गई हैं। चारों तरफ सरसों के तेलवाली गंध फैल रही है।

प्रश्न 4.
रजत-स्वर्ण मंजरियाँ किन्हें कहा गया है ?
उत्तर :
रजत-स्वर्ण मंजरियाँ आम के बौर को कहा गया है, जिनमें फल आनेवाले हैं।

प्रश्न 5.
टमाटर के लिए किन विशेषणों का प्रयोग किया गया है ?
उत्तर :
टमाटर के लिए ‘मखमली’ और ‘लाल’ विशेषणों का प्रयोग किया गया है।

प्रश्न 6.
गंगा के तट पर किसकी खेती की गई है ?
उत्तर :
गंगा के तट पर तरबूजों की खेती की गई है।

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प्रश्न 7.
रंग-बिरंगी तितलियाँ कहाँ घूम रही हैं ?
उत्तर :
रंग-बिरंगी तितलियाँ भिन्न-भिन्न रंग के फूलों पर घूम रही हैं।

प्रश्न 8.
‘अब रजत-स्वर्ण मंजरियों से’ में कौन-सा अलंकार है ?
उत्तर :
‘अब रजत-स्वर्ण मंजरियों से’ में रूपक अलंकार है।

भावार्थ और अर्थबोधन संबंधी प्रश्न

1. फैली खेतों में दूर तलक
मखमल की कोमल हरियाली,
लिपटीं जिससे रवि की किरणें
चाँदी की सी उजली जाली !
– तिनकों के हरे हरे तन पर
हिल हरित रुधिर है रहा झलक,
श्यामल भू तल पर झुका हुआ
नभ का चिर निर्मल नील फलक !

भावार्थ : गाँव की प्राकृतिक सुषमा और समृद्धि का मनोहारी वर्णन करते हुए कवि कहते हैं कि गाँव के खेतों में दूर-दूर तक मखमली कोमल हरियाली फैली हुई है। उस पर जब सूरज की किरणें पड़ती हैं तो लगता है कि जैसे चाँदी की जाली बिछी हुई है। जब हरे-हरे तिनके हिलते हैं तो ऐसा लगता है कि जैसे उनमें हरा रक्त बह रहा हो। हरी-भरी धरती पर फैला आसमान मानो धरती को बाहों में भरने के लिए झुका हुआ है।

प्रश्न 1.
हरियाली को मखमली क्यों कहा गया है ?
उत्तर :
गाँव के खेतों में हरी-भरी फसलें लहरा रही हैं। उनके तने और पत्तियाँ एकदम कोमल हैं इसीलिए कवि ने हरियाली को मखमली कहा है।

प्रश्न 2.
हरियाली पर फैली सूरज की किरणें कैसी लग रही है ?
उत्तर :
हरियाली पर फैली सूरज की किरणें उस पर लिपटी चाँदी की जाली जैसी सफेद लग रही हैं।

प्रश्न 3.
भूतल पर कौन झुका हुआ है ?
उत्तर :
भूतल पर नीला आसमान झुका हुआ है।

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प्रश्न 4.
हरियाली का सौन्दर्य किसके कारण बढ़ रहा है और क्यों ?
उत्तर :
हरियाली का सौन्दर्य सूर्य के कारण बढ़ रहा है। दूर-दूर तक मखमल जैसी कोमल हरियाली फैली हुई है। उस मखमली हरियाली पर जब सूर्य की किरणें पड़ती हैं तो ऐसा लगता है कि चाँदी की सफेद जाली हो।

प्रश्न 5.
स्वच्छ आसमान को देखकर कवि क्या कल्पना करता है ?
उत्तर :
स्वच्छ आसमान को देखकर कवि को लगता है कि नीला आसमान मानो धरती को बाहों में भरने के लिए झुका हुआ है।

प्रश्न 6.
‘चाँदी की सी उजली जाली’ में कौन-सा अलंकार है ?
उत्तर :
‘चाँदी की सी उजली जाली’ में उपमा अलंकार है।

2. रोमांचित सी लगती वसुधा
आई जौ गेहूँ में बाली,
अरहर सनई की सोने की
किंकिणियाँ हैं शोभाशाली !
उड़ती भीनी तैलाक्त गंध
फूली सरसों पीली पीली,
लो, हरित धरा से झाँक रही
नीलम की कलि, तीसी नीली !

भावार्थ : कवि कहते हैं कि जौ और गेहूँ में बालियाँ आ जाने से धरती खुशी और रोमांच से भर गई है। अरहर और सनई में फलियाँ लग गई हैं, वे पक कर सुनहली हो गई हैं, हिलने पर उनमें से मधुर ध्वनि निकलती है। ऐसा लगता है कि धरती की करधनी में लगे घुघरूँ हों, जो बजकर रोमांच को बढ़ा रहे हैं। चारों ओर सरसों के फूल हैं, जो समूचे वातावरण में अपनी तैलीय गंध बिखेर रहे हैं। इसी समय हरी-भरी धरती से अलसी के नीले फूल नीलम पत्थर के नगीने की तरह दिखाई दे रहे हैं।

प्रश्न 1.
वसुधा रोमांचित सी क्यों लगती है ?
उत्तर :
वसुधा पर इस समय गेहूँ और जौ में बालियाँ लग गई हैं। अरहर और सनई की फलियाँ पककर दानेदार हो गई हैं जो हर हवा के झोंके पर करधनी में लगे धुंघरूओं की तरह बजती हैं। हर दिशा में सरसों के पीले-पीले फूल नजर आ रहे हैं, जो समूचे वातावरण में अपनी तैलीय गंध बिखेर रहे हैं। इस तरह, अपना ऐसा सौन्दर्य देखकर वसुधा रोमांचित-सी लग रही है।

प्रश्न 2.
अरहर और सनई खेत कवि को कैसे दिखाई देते हैं ?
उत्तर :
अरहर और सनई की फसलों में लगी फलियाँ अब पककर सुनहली हो गई है। उनमें दाने पुष्ट हो गए हैं। हवा के हर छोके। के साथ करधनी में लगे धुंघरुओं की तरह बजते हैं। इस तरह, अरहर और सनई के खेत के कारण पृथ्वी का रोमांच प्रदर्शित हो रहा है।

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प्रश्न 3.
सरसों का वातावरण पर क्या प्रभाव पड़ा है ?
उत्तर :
समूची धरती सरसों के पीले-पीले फूलों से सुशोभित हो रही है। उन सरसों के पीले फूलों से तैलीय गंध निकल रही है, जिसने वातावरण को सुगंधित और मादक बना दिया है।

प्रश्न 4.
‘तीसी नीली’ से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर :
तीसी के पौधे छोटे होते हैं और उनके फूल नीले होते है। हरी-भरी धरती के बीच उनके नीले-नीले फूलों को देखकर लगता है कि जैसे वे छोटे-छोटे नीलम पत्थर के नगीने हों।

प्रश्न 5.
काव्यांश में किन फसलों का उल्लेख किया गया है ?
उत्तर :
काव्यांश में गेहूँ, जौ, अरहर, सनई, सरसों और तीसी की फसल का उल्लेख किया गया है।

3. रंग रंग के फूलों में रिलमिल
हँस रही सखियाँ मटर खड़ी,
मखमली पेटियों सी लटकीं
छीमियाँ, छिपाए बीज लड़ी !
फिरती हैं रंग रंग की तितली
‘रंग रंग के फूलों पर सुंदर,
फूले फिरते हैं फूल स्वयं
उड़ उड़ वृंतों से वृंतों पर !

भावार्थ : कवि कहते हैं कि खेतों में रंग-बिरंगे फूल खिल उठे हैं। बैंगनी और सफेद फूलोंवाली मटर को देखकर ऐसा लगता है कि मटर सजियों के साथ हँस रही हों। दूसरी तरफ उनमें सुनहली फलियाँ भी लटक रही है, जिसे देखकर लगता है कि वे मखमली पेटियों में किसी रत्न को छिपाए हुए हैं। रंग-बिरंगी तितलियाँ भाँति-भाँति के सुंदर फूलों पर उड़ रही हैं। हवा के झोंके से जब फूल एक डाली से दूसरी डाली को छूते है तो लगता है कि वे खुशी से फूले नहीं समा रहे हैं।

प्रश्न 1.
मटर के पौधे कैसे नजर आ रहे हैं ?
उत्तर :
मटर के पौधों पर रंग-बिरंगे फूल आ गए हैं। उन मखमली पेटियों की तरह फलियाँ लटक रही हैं। इस तरह, वे बेहद खूब नज़र आ रहे हैं।

प्रश्न 2.
मटर की फलियों की तुलना किससे की गई है, और क्यों ?
उत्तर :
मटर की फलियों की तुलना कवि ने मखमली पेटियों से की है। ये फलियाँ मखमल के समान कोमल हैं।

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प्रश्न 3.
मटर के पौधे हँसते हुए क्यों दिखाई दे रहे हैं ?
उत्तर :
मटर के पौधों में भिन्न-भिन्न रंग के फूल खिल गए हैं। जिन्हें देखकर कवि को लगता है कि मटर के पौधे हँस रहे हैं।

प्रश्न 4.
तितलियों और फूलों में क्या समानता है ?
उत्तर :
तितलियाँ रंग-बिरंगी हैं, फूल भी उसी तरह रंग-बिरंगे हैं। तेज हवा के झोंके के साथ जब फूल एक डाली से दूसरी डाली को छूते हैं तो तितलियों के समान ही खुशी से उड़ते हुए प्रतीत होते हैं।

प्रश्न 5.
उपमा अलंकार का एक उदाहरण लिजिए।
उत्तर :
‘मखमली पेटियों सी लटकी छीमियाँ, छिपाए बीज लड़ी !’ उपर्युक्त पंक्तियों में “छीमियों’ की तुलना ‘मखमली पेटी’ से की गई है, अतः यहाँ उपमा अलंकार है।

5. अब रजत स्वर्ण मंजरियों से
लद गई आम्र तरु की डाली,
झर रहे ढाक, पीपल के दल,
हो उठी कोकिला मतवाली !
महके कटहल, मुकुलित जामुन,
जंगल में झरबेरी झुली,
फूले आडू, नींबू, दाडिम,
आलू, गोभी, बैंगन, मूली !

भावार्थ : कवि कहते हैं कि आम के पेड़ की डालियाँ सोने-चाँदी की मंजरियों से लद गई हैं। ढाक और पीपल के पत्ते गिरने लगे हैं। कोयल वसंत ऋतु की मादकता में मतवाली हो गई है। अर्थात् आम डालियों पर बैठकर कूकने लगी है। कटहल के पेड़ों और जामुन के अधखिले फूलों से सारा वातावरण महक उठा है। जंगल में झरबेरी की झाड़ियाँ फूलों से लदकर लटक गई हैं। आड़ के पेड़ में फूल आ गए हैं, नीबू और अनार फलों से लद गए है। खेतों में आलू, गोभी, बैंगन, मूली आदि सब्जियाँ लहलहा रही हैं।

प्रश्न 1.
आम के पेड़ का सौन्दर्य कैसा है ?
उत्तर :
आम के पेड़ पर सोने-चाँदी जैसी चमकदार मंजरियाँ आ गई हैं, जिनसे खुश्बू निकल रही है। कोयल कूक कूककर मतवाली
हो गई है। इस तरह, आम का पेड़ बेहद सुंदर लग रहा है।

प्रश्न 2.
ढाक और पीपल के वृक्ष कैसे हो गए हैं ?
उत्तर :
ढाक और पीपल के वृक्ष के पत्ते गिर रहे है। उनमें एक तरफ पत्ते गिर रहे हैं तो दूसरी तरफ नए पत्ते आ रहे हैं।

प्रश्न 3.
किन पेड़ों के फूल से वातावरण सुगंधित हो गया है ?
उत्तर :
आम, करहल, जामुन, झरबेरी, आड़, नींबू, अनार आदि के पेड़ों के फूल से वातावरण सुगंधित हो गया है।

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प्रश्न 4.
कवि ने किन सब्जियों का उल्लेख किया है ?
उत्तर :
कवि ने आलू, गोभी, बैंगन, मूली आदि सब्जियों का उल्लेख किया है।

प्रश्न 5.
‘जंगल में झरबेरी झूली’ में कौन-सा अलंकार है ?
उत्तर :
‘जंगल में हारबेरी झूली’ में ‘झ’ वर्ण की आवृत्ति होने से अनुप्रास अलंकार है।

5. पीले मीठे अमरूदों में
अब लाल लाल चित्तियाँ पड़ी,
पक गए सुनहले मधुर बेर,
अँवली से तरु की डाल जड़ी !
लहलह पालक, महमह धनिया,
लौकी औ’ सेम फलीं,
फैली मखमली टमाटर हुए लाल,
मिरचों की बड़ी हरी थैली !

भावार्थ : कवि कहते हैं कि अमरूद पककर पीले और मीठे हो गए हैं। उन पर लाल-लाल चित्तियाँ (धब्बे) पड़ गए हैं। मीठे बेर पककर सुनहरे हो गए हैं। आँवले से लदी पेड़ की डालियाँ ऐसे लगती हैं जैसे उन पर सितारे जड़ दिए गए हों। लौकी और सेम की लताएँ जमीन पर फैल गई हैं और उनमें फल लग गए हैं। टमाटर मखमल की तरह लाल हो गए हैं। मिर्ची के गुच्छे बड़ी-सी हरी थैली जैसे दिख रहे हैं।

प्रश्न 1.
अमरूद पककर कैसे हो गए हैं ?
उत्तर :
अमरूद पककर पीले और लाल चित्तियोंवाले हो गए हैं।

प्रश्न 2.
बेर के फल में क्या परिवर्तन आ गया है ?
उत्तर :
बेर के फल पककर मीठे हो गए हैं। उनका रंग सुनहरा हो गया है।

प्रश्न 3.
आँवला का पेड़ कैसा दिखाई दे रहा है ?
उत्तर :
आँवला का पेड़ छोटे-छोटे अनगिनत फलों से लद गया है। उसकी डालियाँ बड़ी खूबसूरत लग रही हैं। ऐसा लगता है कि जैसे आँवले की डालियों पर सितारे जड़ दिए गए हों।

प्रश्न 4.
टमाटर किसकी तरह लाल हो गए हैं ?
उत्तर :
टमाटर मखमल की तरह लाल हो गए हैं।

प्रश्न 5.
‘मिरचों की बड़ी हरी थैली’ का क्या अभिप्राय है ?
उत्तर :
कवि यहाँ मिरचों को बड़ी हरी थैली जैसा कह रहा है। सामान्यतः मिचों की बात करते ही हमारा ध्यान उनके लम्बे आकार की तरफ ही जाता है, परन्तु कवि यहाँ बड़े-बड़े आकारवाले शिमला मिर्च की बात कर रहा है, जो पौधों से लटकती हुई थैली की तरह दिखाई देते हैं।

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प्रश्न 6.
काव्यांश में किस भाषा का प्रयोग हुआ है ?
उत्तर :
काव्यांश में तत्सम युक्त खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।

6. बालू के साँपों से अंकित
गंगा की सतरंगी रेती
सुंदर लगती सरपत छाई
तट पर तरबूजों की खेती;
अँगुली की कंघी से बगुले
कलँगी संवारते हैं कोई,
तिरते जल में सुरवाब, पुलिन पर
मगरौठी रहती सोई !

भावार्थ : कवि कहते हैं कि गंगा के किनारे सतरंगी रेत पर बनी टेढ़ी-मेढ़ी लकीरें देखकर लगता है जैसे वे लकीरें साँपों के आनेजाने से बनी हों। नदी किनारे पर तरबूजों की खेती और रखवाली के लिए बनाई गई सरपत की झोपड़ियों बड़ी सुंदर लग रही हैं। तट पर पानी में खड़े बगुले सिर खुजला रहे हैं, जिसे देखकर लगता है कि वे अपनी अंगुली से अपनी कलँगी में कंघी कर रहे हैं। पानी में सुरखाब तैर रहे हैं और किनारे पर मुरगाबी (मगरौठी) नामक पक्षी सोई हुई है।

प्रश्न 1.
गंगा की रेती को सतरंगी क्यों कहा गया है ?
उत्तर :
गंगा की रेती सूर्यप्रकाश में चमकती है और प्रकाश विभाजन के कारण रंग-बिरंगी दिखाई देती है इसीलिए गंगा की रेती को सतरंगी कहा गया है।

प्रश्न 2.
बालू पर साँपों के चलने से बने निशान जैसे क्यों दिखाई दे रहे हैं ?
उत्तर :
बालू पर पानी की लहरों से टेढ़े-मेढ़े निशान बन जाते हैं, उन टेढ़ी-मेढ़ी रेखाओं को देख्नने से लगता है कि जैसे ये साँपों के चलने से बनी हों।

प्रश्न 3.
पानी में खड़े बगुले क्या कर रहे हैं ?
उत्तर :
पानी में खड़े बगुले पैर से सिर खुजला रहे हैं, ऐसा लगता है जैसे बालों में कंधी कर रहे हों।

प्रश्न 4.
कौन-सा पक्षी तट पर सोया पड़ा है ?
उत्तर :
मगरौठी (गुरगाबी) पक्षी तट पर सोई पड़ी है।

प्रश्न 5.
‘बालू के साँपों से अंकित’ में कौन-सा अलंकार है ?
उत्तर :
‘बालू के साँपों से अंकित’ में उपमा अलंकार है।

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7. हंसमुख हरियाली हिम-आतप
सुन से अलसाए-से सोए,
भीगी अँधियाली में निशि की
तारक स्वप्नों में से खोए
मरकत डिब्बे सा खुला ग्राम
जिस पर नीलम नभ आच्छादन
निरुपम हिमांत में स्निग्ध शांत
निज शोभा से हरता जन मन !

भावार्थ : कवि गाँव की सुंदरता का वर्णन करते हुए कहते हैं कि हरियाली पर सर्दी की धूप पड़ती है तो लगता है कि हरियाली हँस रही है। सर्दी की धूप चमकते ही लगता है कि हरियाली अलसाकर सो गई है। ओस से रात भीग चुकी हैं। चारों की चमक फीकी पड़ गई है, वे सपनों में खोए-से लगते हैं। सुंदर गाँव पन्ना नामक मोतियों से भरे खुले डिब्बे के समान प्रतीत हो रहा है, जिस पर नीला आसमान छाया हुआ है। सर्दी के अंत के साथ एक कोमल सुखद शांति छाई हुई है। गाँव अपने मोहक सौन्दर्य से लोगों का मन अपनी ओर खींच रहा है।

प्रश्न 1.
हरियाली को हँसमुख्न क्यों कहा गया है ?
उत्तर :
हरियाली पर जाड़े की नर्म धूप पड़ रही है, जिससे हरियाली चमक रही है। संभवतः यही देखकर कवि ने हरियाली को हँसमुख
कहा है।

प्रश्न 2.
भींगी हरियाली से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
भींगी हरियाली से तात्पर्य ठंडी की रात में पड़नेवाली ‘ओस’ से है जिसकी वजह से अंधेरा भीगा हुआ लगता है।

प्रश्न 3.
तारों भरी रात का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
ठंडी की रात है। चन्द्रमा के न निकलने से गहरा अंधकार है। तारे आकाश में जगमगा रहे हैं। इस ओस से भीगी रात में तारे सपनों में खोए से लग रहे हैं।

प्रश्न 4.
‘मरकत का डिब्बा’ किसे कहा गया है ?
उत्तर :
‘मरकत का डिब्बा’ गाँव की धरती को कहा गया है।

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प्रश्न 5.
जन-मन को कौन आकर्षित कर रहा है ?
उत्तर :
जन-मन को हरा-भरा सुंदर गाँव आकर्षित कर रहा है।

प्रश्न 6.
‘तारक स्वप्नों में से खोए’ में कौन-सा अलंकार है ?
उत्तर :
‘तारक स्वप्नों में से खोए’ में मानवीकरण अलंकार है। यहाँ ‘तारों’ को जीवंत मानव की तरह स्वप्न देखते बताया गया है।

कविता :

नीलाम्बर परिधान हरित पट पर सुंदर है,
सूर्य-चंद्र युग मुकुट मेखला रत्नाकर हैं।
नदियाँ प्रेम-प्रवाह, फूल तारे मंडल हैं,
बंदीजन खग-वृंद, शेषफल सिंहासन है
करते अभिषेक पयोद हैं, बलिहारी इस देश की
हे मातृभूमि ! तू सत्य ही सगुण मूर्ति सर्वेश की।
जिसके रज में लोट-लोटकर बड़े हुए हैं।
घुटनों के बल सरक-सरक कर खड़े हुए है,
परम हंस सम बाल्यकाल में सब सुख पाये,
जिसके कारण ‘धूल भरे हीरे’ कहलाए।
हम खेल-कूदे हर्षयुत, जिसकी प्यारी गोद में
हे मातृभूमि ! तुझको निरख, मग्न क्यों न हो मोद मोद में !
निर्मल तेरा नीर अमृत के सम उत्तम है,
शीतल मंद सुगंध पवन हर लेता श्रम है,
षट्ऋतुओं का विविध दृश्य युत अद्भुत क्रम है,
शुचि सुधा सींचता रात में, तुम पर चंद्रकाश है
हे मातृभूमि ! दिन में तरणि करता तम का नाश है।

उपर्युक्त काव्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए

प्रश्न 1.
काव्यांश में ‘हरित पट’ किसे कहा गया है ?
उत्तर :
काव्यांश में हरित पट हरी-भरी फसलोंवाली धरती को कहा गया है।

प्रश्न 2.
‘बलिहारी इस देश की’ – कवि ऐसा क्यों कहता है ?
उत्तर :
कवि अपनी सुंदर मातृभूमि से प्यार करता है, जो साक्षात् ईश्वर का रूप है। इसलिए कवि कहता है कि बलिहारी इस देश की।

प्रश्न 3.
कवि ने मातृभूमि का सिंहासन किसे बताया है ?
उत्तर :
कवि ने मातृभूमि का सिंहासन शेषनाग के फन को बताया है।

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प्रश्न 4.
कवि ने निर्मल जल को किसके सदृश बताया है ?
उत्तर :
कवि ने निर्मल जल को अमृत सदृश बताया है।

प्रश्न 5.
‘हे मातृभूमि ! तू सत्य ही सगुण मूर्ति सर्वेश की’ में कौन-सा अलंकार है ?
उत्तर :
‘हे मातृभूमि ! तू सत्य ही सगुण मूर्ति सर्वेश की’ में ‘स’ वर्ण की आवृत्ति होने से अनुप्रास अलंकार है।

ग्राम श्री Summary in Hindi

प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानन्दन पंत का जन्म प्रकृति के प्रांगण – अल्मोड़ा जिले के कौसानी नामक गाँव में हुआ था। उनके जन्म के साथ ही उनकी माताजी की मृत्यु हो जाने से वे मातृ-वात्सल्य से सदैव वंचित रहे। प्रकृति की गोद में ही पंत पले बड़े। उनकी आरंभिक शिक्षा कौसानी और अल्मोड़ा में हुई। तत्पश्चात् वाराणसी और प्रयाग में विद्याभ्यास किया।

सन् 1921 में वे महात्मा गाँधी के साथ असहयोग आंदोलन में सक्रिय रूप से जुड़ गये और पढ़ाई छोड़ दी। पंत ने घर पर ही संस्कृत, बंगला तथा अंग्रेजी भाषा एवं साहित्य का अध्ययन किया। इन भाषाओं एवं साहित्य पर पंत का समानाधिकार था। काव्य के प्रति उनका रुझान अपने बाल्यकाल से ही था।

पंत प्रकृति के चतुर चितेरे के रूप में हिन्दी साहित्य में प्रसिद्ध है। इसीलिए उन्हें प्रकृति का सुकुमार कवि कहा गया है। उनकी कविताओं में प्रकृति के विविधरंगी चित्र उभरकर आये हैं। समय के प्रवाह के साथ-साथ पंत की कविताएँ नया मोड़ लेती रहीं। पंत की काव्य-यात्रा छायावाद से आरंभ होकर प्रगतिवाद और अंत में अध्यात्म की ओर उन्मुख हुई।

वैसे वे गाँधीवाद और अरविंद दर्शन से भी प्रभावित थे, किन्तु प्रकृति अंत तक उनकी सहचरी बनी रहीं। पंत ने ‘रूपाभ’ पत्रिका का कुशल संपादन किया और ‘आकाशवाणी’ के साथ भी जुड़े रहे। पंत की कविता की भाषा सरल और सुकुमार शब्दावली से परिपूर्ण है। –

पंत की रचनाएँ हैं – ‘पल्लव’, ‘गुंजन’, ‘ग्रंथि’, ‘वीणा’, ‘युगान्त’, ‘युगवाणी’, ‘ग्राम्या’, ‘स्वर्ण किरण’, ‘स्वर्णधूलि’, ‘कला और बूढ़ा चाँद’, ‘लोकायतन’, ‘चिदम्बरा’। भारत सरकार ने इन्हें ‘पद्मभूषण’ से सम्मानित किया। ‘कला और बूढ़ा चाँद’ पर इन्हें साहित्य अकादमी सम्मान, ‘लोकायतन’ पर ‘सोवियत लैण्ड नेहरू सम्मान’ तथा ‘चिदम्बरा’ पर इन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला। पंतजी ने नाटक और उपन्यास भी लिखे हैं।

कविता परिचय :

‘ग्राम श्री’ कविता में पंत ने गाँव की प्राकृतिक सुषमा और समृद्धि का मनोहारी वर्णन किया है। खेतों में दूर तक फैली लहलहाती फसलें, फल-फूलों से लदी पेड़ों की डालियाँ, फूलों पर मँडराती तितलियाँ, गंगा की सुंदर रेती, पानी में क्रीडा करते पक्षी आदि कवि को रोमांचित करते हैं। उसी रोमांच को कविता स्वरूप कवि ने व्यक्त किया है।

GSEB Solutions Class 9 Hindi Kshitij Chapter 13 ग्राम श्री

शब्दार्थ-टिप्पण :

  • तलक – तक
  • उजली – सफेद
  • तन – शरीर
  • रूधिर – रक्त
  • श्यामल – हरी-भरी
  • चिर – सदा
  • निर्मल – स्वच्छ
  • फलक – पट, बाजू
  • रोमांचित – प्रसन्न
  • वसुधा – पृथ्वी
  • सनई – एक पौधा जिसकी छाल के रेशे से रस्सी बनाई जाती है
  • किंकिणी – करधनी
  • भीनी – हल्की-हल्की
  • तैलाक्त – तेल युक्त
  • तीसी – अलसी
  • रिलमिल – मिली-जुली
  • छीमियाँ – फलियाँ
  • लड़ी – शंखला
  • फिरती – उड़ती, घूमती
  • वृत – डंठल
  • रजत – चाँदी
  • स्वर्ण – सोना
  • मंजरी – आम का बौर
  • तरु – पेड़
  • ढाक – पलाश
  • टेसू, दल – पत्ते
  • मुकुलित – अधखिला
  • आडू – शफ़तालू, आरुक
  • चित्तियाँ – निशान, धब्बे
  • अँवली – छोटा आँवला
  • लहलह – लहर, हिलोर
  • महमह – महकता हुआ
  • सरपत – सरकंडा, बड़ी तथा लंबी घास
  • छाई – बनाई हुई
  • सुरखाच – चक्रवाक पक्षी
  • पुलिन – किनारा
  • मगरीठी – मुरग़ावी, जल कुक्कुट (पक्षी)
  • हिम-आतप – सर्दी की धूप
  • तारक – तारे
  • मरकत – पन्ना नामक रत्न
  • नीलम – नीले रंग के पत्थर
  • निरुपम – अनोखा
  • हिमांत – सर्दी की समाप्ति
  • स्निग्ध – कोमल
  • मरकत – पन्ना (एक रत्न – पत्थर)

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