GSEB Solutions Class 9 Hindi Chapter 4 कर्ण का जीवन-दर्शन

   

Gujarat Board GSEB Hindi Textbook Std 9 Solutions Chapter 4 कर्ण का जीवन-दर्शन Textbook Exercise Important Questions and Answers, Notes Pdf.

GSEB Std 9 Hindi Textbook Solutions Chapter 4 कर्ण का जीवन-दर्शन

Std 9 GSEB Hindi Solutions कर्ण का जीवन-दर्शन Textbook Questions and Answers

स्वाध्याय

1. ऊँचे स्वर में पढ़िए और वाक्य में प्रयोग कीजिए :

प्रश्न 1.

  1. अत्यल्प – …………..
  2. चाकचिक्य – …………..
  3. कनकाभ – …………..
  4. तपःक्षीण – …………..
  5. क्लेश – …………..
  6. झंझावात – …………..
  7. फणिबंध – …………..

उत्तर :

  1. अत्यल्प – बहुत थोड़ा वाक्य : सांसारिक भोग-बिलास अत्यल्प सुख देते हैं।
  2. चाकधिक्य – चमक, चका-चौंध वाक्य : देहाती मित्र मुंबई की चाकचिक्य पर मुग्ध हो गया।
  3. कनकाभ – सुनहले वाक्य : राजमहल के कनकाभ शिखर हमारा ध्यान आकृष्ट कर रहे थे।
  4. तपःक्षीण – प्रभावहीन वाक्य : शाप के प्रभाव से मुनि तुरंत तपःक्षीण हो गए।
  5. क्लेश – कष्ट, वेदना वाक्य : पुत्र के अनुचित व्यवहार से पिता को बड़ा क्लेश हुआ।
  6. झंझावात – तूफान वाक्य : बर्फीले झंझावातों में भी हमारे सैनिक देश की रक्षा करने में डटे हुए हैं।
  7. फणिबंध – नागपाश वाक्य : पता नहीं, संकट के इस फणिबंध से हमें कौन छुडाएगा?

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2. संक्षेप में उत्तर दीजिए :

प्रश्न 1.
विभव से क्या प्राप्त होता है?
उत्तर :
वैभव से मनुष्य को ढेर सारी चिन्ताएँ और थोड़ी-सी हंसी-खुशी प्राप्त होती है। इसके अतिरिक्त उसे चमक-दमक दिखाने का अवसर और क्षणिक भोग-विलास प्राप्त होता है।

प्रश्न 2.
धन-संपत्ति किस लिए है?
उत्तर :
धन-संपत्ति परोपकार के लिए है।

प्रश्न 3.
समृद्धि-सुख के अधीन मानव का क्या होता है?
उत्तर :
सुख-समृद्धि के अधीन मानव का तेज-प्रभाव दिन-प्रतिदिन क्षीण होता जाता है और उसकी दुर्दशा होती है।

प्रश्न 4.
फणिबंध कौन छुड़ाते हैं?
उत्तर :
फणिबंध से गरुड़ जैसे साहसी और वीर पुरुष ही छुड़ाते हैं।

3. निम्नलिखित पंक्तियों का भावार्थ लिखिए :

प्रश्न 1.
वैभव-विलास की चाह नहीं, अपनी कोई परवाह नहीं,
बस यहीं चाहता हूँ केवल, दान की देव सरिता निर्मल,
करतल से झरती रहे. सदा,
निर्धन को भरती रहे. सदा।
उत्तर :
कर्ण श्रीकृष्ण से कहता है कि हे केशव! आप मुझे राज्य देने का प्रलोभन दे रहे हैं, परंतु मैं वैभव-विलास का जीवन पसंद नहीं करता। मुझे अपनी कोई चिंता नहीं है। मुझे दान देने में रुचि है। इसलिए मैं केवल यही चाहता हूँ कि मैं गरीबों को हमेशा दान देता रहूं और उनके दुःख दूर करता रहूँ।

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प्रश्न 2.
मैं गरुड़, कृष्ण ! मैं पक्षिराज, सिर पर न चाहिए मुझे ताज,
दुर्योधन पर है. विपद धोर, सकता न किसी विध उसे छोड,
रणखेत पाटना है. मुझको,
अहि.पाश काटना है. मुझको।
उत्तर :
कर्ण श्रीकृष्ण से कहता है कि इस समय मेरी स्थिति गरुड़ पक्षी के समान है। मुझे राजमुकुट नहीं पहनना है। इस समय दुर्योधन भारी संकट में है। युद्धरूपी नागपाश ने उसे जकड़ रखा है। मुझे दुर्योधन के इस नागपाश को काटना है-दुर्योधन को बुद्ध में विजय दिलाना है। मुझे गरुड़ की तरह अपना दायित्व निभाना है।

4. टिप्पणी लिखिए :

प्रश्न 1.
कर्ण की अभिलाषा
उत्तर :
कर्ण दानी पुरुष है। वह प्रतिदिन जरूरतमंद लोगों को दान देता है। उसे राज्य पाने की इच्छा नहीं है। वैभव पाकर भोग-विलास में जीना उसके स्वभाव के विरुद्ध है। वह दयालु और उदार वृत्ति का है। गरीबों के प्रति उसके मन में करुणा है। उसकी यही अभिलाषा है कि वह अपनी दानवृत्ति से निर्धनों का दुःख दूर करता रहे।

प्रश्न 2.
कर्ण का मित्रधर्म
उत्तर :
कर्ण का जीवन अन्याय और अपमान से भरा हुआ था। एक दुर्योधन ने ही उसे सम्मान दिया और उसे अपना मित्र बनाया। कर्ण दुर्योधन के इस उपकार को कभी नहीं भूल पाया। महाभारत का युद्ध शुरू होने से पहले श्रीकृष्ण उसे पांडवपक्ष में लेने गए। उन्होंने उसे राज्य देने का प्रलोभन भी दिया। परंतु कर्ण ने उनका प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया। उसने दुर्योधन का साथ छोड़ने से स्पष्ट इनकार कर दिया। इस प्रकार कर्ण ने दुर्योधन के प्रति अपने मित्र-धर्म का पालन किया।

5. विरोधी शब्द लिखिए :

प्रश्न 1.

  1. निर्मल
  2. निर्धन
  3. प्रभूत
  4. कोमल
  5. अमृत

उत्तर :

  1. मलीन
  2. धनवान
  3. कम
  4. कठोर
  5. विष

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6. निम्नलिखित शब्दों के समानार्थी शब्द कोष्ठक में से ढूँढकर उन शब्दों का वाक्य में प्रयोग कीजिए:

प्रश्न 1.

  1. सुखोपभोग
  2. हथेली
  3. प्रचूर
  4. दरज
  5. आँधी
  6. पानी
  7. गरल
  8. चट्टान

GSEB Solutions Class 9 Hindi Chapter 4 कर्ण का जीवन-दर्शन 1
उत्तर :
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  1. सुखोपभोग – विलास
  2. हथेली – करतल
  3. प्रचुर – प्रभूत
  4. दरज – दरार
  5. आंधी – अंधड़
  6. पानी – वारि
  7. गरल – विष
  8. चट्टान – शैल

वाक्य-प्रयोग:

  1. राजा सदा विलास में डूबा रहता था।
  2. बच्चे का करतल देखकर ज्योतिषी ने उसका भविष्य बता दिया।
  3. वह गाँव में रहता था, पर उसके पास प्रभूत संपत्ति थी।
  4. गरुड़ पहाड़ों की दरार में निवास करता है।
  5. सारी रात अंधड़ ने कहर मचा दिया।
  6. सदा स्वच्छ वारि पीना चाहिए।
  7. देखते ही देखते साँप का विष बच्चे के शरीर में फैल गया।
  8. शैल से उस पार झरना था।

7. अंदाज अपना-अपना : अपना मत स्पष्ट कीजिए :

प्रश्न 1.
यदि कोई जरूरतमंद इन्सान आपसे मदद माँगे तो आप क्या करते?
उत्तर :
यदि कोई जरूरतमंद इन्सान मुझसे मदद मांगे तो पहले मैं उसकी जरूरत के बारे में पूगा। यदि मुझे उसकी जरूरत सच्ची लगी तो मैं अवश्य उसकी मदद करूंगा। मदद करने में यदि दूसरों के सहयोग की आवश्यकता हुई तो उनका सहयोग भी लेने में में संकोच नहीं करूंगा।

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प्रश्न 2.
आपको पता चले कि आपका दोस्त संकट में फँसा हुआ है तो आप क्या करेंगे?
उत्तर :
संकट में पड़े हुए मित्र की मदद करना मेरा कर्तव्य है। इस कर्तव्य का पालन करके ही में मित्र-धर्म को निभा सकता है, अपने आपको सच्चा दोस्त साबित कर सकता हूँ। इसलिए संकट में पड़े हुए मित्र को संकट से छुड़ाने में मैं कोई कसर न रडूंगा।

प्रश्न 3.
आपके पास जरूरत से ज्यादा धन-संपत्ति है, तो क्या करोंगे?
उत्तर :
अपने पास जरूरत से ज्यादा धन-संपत्ति होने पर मैं उसका उपयोग परोपकार में करूंगा। मैं अनाथआश्रम में वहाँ के जरूरतमंदों को उनकी जरूरी चीजें खरीदकर ला दंगा। प्यासों के लिए प्याऊ बनवाऊँगा और गरीबों को अन्नदान दूंगा। इस प्रकार अपने पास जरूरत से ज्यादा धन-संपत्ति होने पर मैं उसका उपयोग दूसरों के दुःख दूर करने में करूंगा।

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निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर पांच-छ: वाक्यों में लिखिए :

प्रश्न 1.
कर्ण को राज्य की इच्छा क्यों नहीं है?
उत्तर :
कर्ण त्यागी और दानी पुरुष है। वैभव-विलास में उसकी रुचि नहीं है। राज्य मिलने पर सिर पर अनेक चिंताएं सवार हो जाती हैं। बस थोड़े समय के लिए हंसी-खुशी, चमक-दमक और भोग-विलास की सामग्री उपलब्ध हो जाती है। कर्ण इन क्षणभंगुर वस्तुओं को तुच्छ समझता है। इसलिए उसे राज्य की इच्छा नहीं है।

प्रश्न 2.
दानी पुरुषों का स्वभाव कैसा होता है?
उत्तर :
दानी पुरुष धन-दौलत को संग्रह करने की वस्तु नहीं मानते। वे अपना धन दूसरों को बांटने में ही रुचि रखते हैं। वे अपनी बहुमूल्य वस्तुएँ दूसरों को देने में संकोच नहीं करते। वे किसी से कुछ लेते नहीं। वे दूसरों को देने में सुख का अनभुव करते हैं। इस प्रकार दानी पुरुषों का स्वभाव दयालु और उदार होता है।

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प्रश्न 3.
कर्ण गरुड़ को अपना आदर्श क्यों मानता है? अथवा कर्ण स्वयं को गरुड़ क्यों मानता है?
उत्तर :
गरुड़ कबूतरों की तरह महलों के सुनहले शिखरों में रहना पसंद नहीं करता। वह पहाड़ों या चट्टानों की दरारों में रहता है। नागपाश से छुड़ाने की शक्ति गरुड़ में ही होती है। कर्ण का स्वभाव भी गरुड़ के समान है। राजपाट और वैभव-विलास को वह पसंद नहीं करता। वह मित्र दुर्योधन को युद्ध के नागपाश से छुड़ाना चाहता है। इस प्रकार गरुड जैसा स्वभाव होने के कारण कर्ण उसे अपना आदर्श मानता है।

प्रश्न 4.
सुख-समृद्धि के अधीन रहनेवाले मनुष्य की क्या दशा होती है?
उत्तर :
सुख-समृद्धि के अधीन रहने से मनुष्य धीरे-धीरे अपना प्रभाव खो देता है। राजपाट, राजमुकुट और मणिमय सिंहासन उसका तेज हर लेते हैं। उसकी वैभव पाने की लालसा प्रतिदिन बढ़ती जाती है। परंतु यही लालसा अंत में उसका विनाश करती है। इस प्रकार सुख-समृद्धि के अधीन रहनेवाले मनुष्य की अंत में दुर्दशा होती है।

प्रश्न 5.
कैसा व्यक्ति पुरुष नहीं कहला सकता?
उत्तर :
चाँदनी रात का आनंद लेनेवाला और फूलों की छाया में पलनेवाला व्यक्ति सांसारिक दृष्टि से भाग्यवान होता है, ऐश-आराम का जीवन उसे सुंदर-कोमल बना देता है, परंतु ऐसे व्यक्ति में साहस और पौरुष नहीं होता। पौरुष पाने के लिए कष्टों का अमृत पीना पड़ता है, आंधी और धूप सहन करनी पड़ती है। संघर्षों में जी कर विघ्नों पर विजय पानेवाला व्यक्ति हो पुरुष कहलाता है।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो-तीन वाक्यों में लिखिए :

प्रश्न 1.
गरुड कहाँ रहता है?
उत्तर :
गरुड़ पहाड़ों में निवास करता है। चट्टानों की फटी दरारें ही उसका घर होती हैं।

प्रश्न 2.
परोपकारी मनुष्य क्या करते हैं?
उत्तर :
परोपकारी मनुष्य धन का कभी संग्रह नहीं करते। वे अपने धन को जरूरतमंद लोगों में बांट देते हैं।

प्रश्न 3.
कर्ण दुर्योधन का साथ क्यों नहीं छोड़ सकता?
उत्तर :
दुर्योधन के सामने युद्ध का घोर संकट है। इसलिए सच्या मित्र होने के कारण कर्ण आपत्ति के समय उसका साथ नहीं छोड़ सकता।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-एक वाक्य में लिखिए :

प्रश्न 1.
कर्ण की एकमात्र इच्छा क्या है?
उत्तर :
कर्ण की एकमात्र इच्छा है कि उसके हाथों से सदा दान की निर्मल सरिता बहती रहे और निर्धनों के दुःख हरती रहे।

प्रश्न 2.
किस तरह के लोग कंचन का भार नहीं होते?
उत्तर :
कर्ण जैसे दानी पुरुष कंचन का भार नहीं ढोते।

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प्रश्न 3.
कर्ण स्वयं को किसके समान बताता है?
उत्तर :
कणं स्वयं को पक्षिराज गरुड़ के समान बताता है।

प्रश्न 4.
कर्ण को कौन-सा अहिपाश काटना है?
उत्तर :
कर्ण को दुर्योधन पर आई विपत्तिरूपी अहिपाश काटना है।

प्रश्न 5.
वैभव-हेतु ललचाने का क्या परिणाम होता है?
उत्तर :
वैभव-हेतु ललचाने का यह परिणाम होता है कि वह लालच ही मनुष्य को नष्ट कर देता है।

प्रश्न 6.
दानी पुरुषों का स्वभाव कैसा होता है?
उत्तर :
दानी पुरुषों का स्वभाव दयालु और उदार होता है।

विभाग 1 : पालाक्षी

सही विकल्प चुनकर रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए :

प्रश्न 1.

  1. सांसारिक सुख भोगने की इच्छा ………….. की नहीं थी। (कर्ण, दुर्योधन)
  2. राज्य से प्राप्त …………. मनुष्य साथ नहीं ले जाता। (पुरस्कार, वैभव)
  3. कर्ण के आदर्शवाले मनुष्य ………… का भार नहीं होते। (कंकड़, कंचन)
  4. दान की देव सरिता निर्मल, करतल से ……….. रहे सदा। (झरती, खाली)
  5. गरुड़ ………….. में नहीं होता। (जंगलों, महलों)

उत्तर :

  1. कर्ण
  2. वैभव
  3. कंचन
  4. झरती
  5. महलों

निम्नलिखित विधान ‘सही’ हैं या ‘गनत’ यह बताइए :

प्रश्न 1.

  1. कर्ण त्यागी और दानी पुरुष था।
  2. कर्ण सर्प के समान है।
  3. परोपकारी मनुष्य धन का संग्रह करते हैं।
  4. धन-संपत्ति परोपकार के लिए नहीं होती।

उत्तर :

  1. सही
  2. गलत
  3. गलत
  4. गलत

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-एक शब्द में लिखिए :

प्रश्न 1.

  1. कर्ण किसे तुच्छ प्रलोभन बता रहा है?
  2. राजमहलों की चोटियाँ किसका घर बनती हैं?
  3. मनुष्य के तेज को कौन हर लेता है?
  4. गरुड़ किसके बन्धन से छुटकारा दिलाते हैं?

उत्तर :

  1. राज्य को
  2. कबूतरों का
  3. सुख-समृद्धि
  4. साँप के

निम्नलिखित प्रश्नों के साथ दिए गए विकल्पों में सही विकल्प चुनकर उत्तर लिखिए :

प्रश्न 1.
मुझ-से मनुष्य जो होते हैं, ………… का भार न ढोते हैं।
A. यौवन
B. सपनों
C. कंचन
D. अपनों
उत्तर :
C. कंचन

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प्रश्न 2.
प्रासादों के कनकाभ शिखर, होते …………. के ही घर।
A. सुंदरियों
B. कबूतरों
C. आँसुओं
D. गरुड़ों
उत्तर :
B. कबूतरों

प्रश्न 3.
गरुड़ कहाँ नहीं होता है?
A. महलों में
B. घोंसलों में
C. पहाड़ों में
D. जंगलों में
उत्तर :
A. महलों में

प्रश्न 4.
नर विभव-हेतु ………… है।
A. पछताता
B. मदमाता
C.निर्माता
D. ललचाता
उत्तर :
D. ललचाता

प्रश्न 5.
……….. पाटना है मुझको, अहिपाश काटना है मुझको।
A. मैदान
B. आकाश
C. रणखेत
D. रणभूमि
उत्तर :
C. रणखेत

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विभाग 2 : व्याकरणलक्षी

निम्नलिखित शब्दों के पर्यायवाची शब्द लिखिए :

प्रश्न 1.

  1. विलास
  2. करतल
  3. तुच्छ
  4. प्रचुर
  5. दरज
  6. प्रासाद
  7. शिखर
  8. आंधी
  9. वारि
  10. विष
  11. शैल
  12. अयन
  13. कोमल
  14. भुजंग
  15. आतप

उत्तर :

  1. सुखोपभोग
  2. हथेली
  3. क्षुद्र
  4. प्रभूत
  5. दरार
  6. राजमहल
  7. चोटी
  8. अंधड़
  9. पानी
  10. गरल
  11. चट्टान
  12. गमन
  13. मृदु
  14. सर्प
  15. धूप

निम्नलिखित शब्दों के विरोधी शब्द लिखिए :

प्रश्न 1.

  1. शिखर
  2. तुच्छ
  3. अल्प
  4. बिखेरना

उत्तर :

  1. तलहटी
  2. महान
  3. अधिक
  4. बटोरना

निम्नलिखित शब्दों का संधि-विग्रह करके लिखिए :

प्रश्न 1.

  1. अत्यल्प
  2. सुखोपभोग
  3. परोपकार
  4. सिंहासन
  5. निर्मल
  6. कनकाभ

उत्तर :

  1. अत्यल्प = अति + अल्प
  2. सुखोपभोग = सुख + उपभोग
  3. परोपकार = पर + उपकार
  4. सिंहासन = सिंह + आसन
  5. निर्मल = निर् + मल
  6. कनकाभ = कनक + आभ

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निम्नलिखित प्रत्येक वाक्य में से विशेषण पहचानकर लिखिए :

प्रश्न 1.

  1. विलासी राजा प्रजा के प्रति ध्यान नहीं देता था।
  2. हमारे राज्य में स्वर्णिम गुजरात योजना के अंतर्गत कई कार्यक्रम होते हैं।
  3. झंझावाती हवा में गरीबों के झोंपड़े नष्ट हो गए।
  4. समृद्ध देश की यह निशानी होती है कि उसमें सभी लोग सुखी होते हैं।
  5. धन-वैभव को ही अग्रिमता देनेवाले लोग तुच्छ हैं।

उत्तर :

  1. विलासी
  2. स्वर्णिम
  3. झंझावाती
  4. समृद्ध
  5. तुच्छ

निम्नलिखित प्रत्येक वाक्य में से कर्तृवाचक संज्ञा पहचानकर लिखिए :

प्रश्न 1.

  1. आजकल लोकप्रतिनिधि सेवक की भूमिका कम ही अदा करते हैं।
  2. कभी-कभी संपत्ति का भोगी उसका मालिक नहीं होता।
  3. भयंकर स्वप्नों को देखकर व्यक्ति की नींद उड़ जाती है।
  4. सुनार ने स्वर्ण से अति प्राचीन कलात्मक मूर्तियाँ बनाई।

उत्तर :

  1. सेवक
  2. भोगी
  3. भयंकर
  4. सुनार

निम्नलिखित शब्दसमूह के लिए एक शब्द लिखिए :

प्रश्न 1.

  1. मंदिर या पहाड़ का सबसे ऊंचा भाग
  2. कनक जैसी आभावाला
  3. रेखा की तरह अवकाश
  4. जिसका तेज (तप) क्षीण हो गया है
  5. फणिधर नाग का बंधन
  6. पक्षियों में राजा

उत्तर :

  1. शिखर
  2. कनकाभ
  3. दरार
  4. तपःक्षीण
  5. फणिपाश
  6. पक्षिराज

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निम्नलिखित शब्दों के उपसर्ग पहचानकर लिखिए :

प्रश्न 1.

  1. प्रयत्न
  2. प्रलोभन
  3. प्रभूत
  4. निर्मल
  5. अत्यल्प
  6. प्रभाव
  7. निर्धन
  8. अमृत
  9. अतिरिक्त
  10. प्रतिदिन
  11. दुर्दशा
  12. प्रचुर
  13. विजय
  14. परोपकार

उत्तर :

  1. प्रयत्न – प्र + यत्न
  2. प्रलोभन – प्र + लोभन
  3. प्रभूत – प्र+ भूत
  4. निर्मल – नि: (निस) + मल
  5. अत्यल्प – अति + अल्प
  6. प्रभाव – प्र + भाव
  7. निधन – निः + धन
  8. अमृत – अ + मृत
  9. अतिरिक्त – अति + रिक्त
  10. प्रतिदिन – प्रति + दिन
  11. दुर्दशा – दुः (दुस) + दशा
  12. प्रचुर – प्र + चुर
  13. विजय – वि + जय
  14. परोपकार – पर + उपकार

निम्नलिखित शब्दों के प्रत्यय पहचानकर लिखिए :

प्रश्न 1.

  1. सांसारिक
  2. सेवक
  3. भयंकर
  4. प्रभावहीन
  5. स्वर्णिम
  6. शीतलता
  7. मणिमय
  8. क्षणिक
  9. ज़रूरतमंद
  10. दयालु
  11. आवश्यकता
  12. बर्फीला
  13. समृद्धि
  14. विलासी
  15. झंझावाती

उत्तर :

  1. सांसारिक – संसार + इक
  2. सेवक – सेवा + क
  3. भयंकर – भय + कर
  4. प्रभावहीन – प्रभाव + हीन
  5. स्वर्णिम – स्वर्ण + इम
  6. शीतलता – शीतल + ता
  7. मणिमय – मणि + मय
  8. क्षणिक – क्षण + इक
  9. ज़रूरतमंद – ज़रूरत + मंद
  10. दयालु – दया + लु
  11. आवश्यकता – आवश्यक + ता
  12. बर्फीला – बर्फ + ईला
  13. समृद्धि – समृद्ध + इ
  14. विलासी – विलास + ई
  15. झंझावाती – झंझावात + ई

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कर्ण का जीवन-दर्शन Summary in Gujarati

ગુજરાતી ભાવાર્થ :

કર્ણ શ્રીકૃષ્ણને કહે છે કે, મને ધન-દોલત અને સાંસારિક સુખોપભોગની ઇચ્છા નથી. હું મારા જીવનની પરવાહ કરતો નથી. મારી તો ફક્ત એ જ ઇચ્છા છે કે, મારા હાથથી દાનની પવિત્ર નદી હંમેશાં વહેતી રહે અને નિર્ધનને સુખી કરતી રહે.

હે કેશવ, જે રાજ્યોનું આપ મને પ્રલોભન આપી રહ્યા છો એ તો બહુ તુચ્છ વસ્તુ છે. વૈભવને પ્રાપ્ત કરીને મનુષ્ય શું મેળવે છે? વૈભવ પ્રાપ્ત કરીને તેને પુષ્કળ ચિંતાઓ પ્રાપ્ત થાય છે, જરા જેટલી ખુશી મળે છે, થોડીઘણી ચમકદમક અને થોડા વખત માટે સુખોપભોગ પ્રાપ્ત થાય છે. આ બધી વસ્તુઓ તેણે અહીં જ છોડી દેવી પડે છે અને ખાલી હાથે જ અહીંથી જવું પડે છે.

કર્ણ શ્રીકૃષ્ણને કહે છે કે, તેના જેવા મનુષ્ય સોનાનો ભાર સહન કરતા નથી – સુખ-વૈભવમાં જીવન વિતાવતા નથી. તેઓ લોકોમાં વહેંચી દેવા માટે જ ધન પ્રાપ્ત કરે છે. એમની બહુમૂલ્ય વસ્તુઓ લોકોમાં વહેંચી દેવા માટે જ હોય છે. તેઓ સંસારમાંથી કશું લઈ જતા નથી. પોતાના હૃદયનું દાન જ કરે છે. અર્થાત્ દુઃખી લોકો પર દયા કરે છે.

સોના જેવા ચમકતા રાજમહેલોનાં શિખરો કબૂતરોનું જ ઘર બને છે. ગરુડ પક્ષી કદી મહેલમાં રહેતાં નથી અને એ સોનેરી પથારી પર સૂતાં નથી. તેમના નિવાસ પહાડોમાં જ હોય છે. પહાડો પર પડેલી તિરાડો જ તેમનું ઘર બને છે.

ધન-દોલતના સુખનો ગુલામ બનીને મનુષ્ય પોતાનાં તપ-તેજ ખોઈ બેસે છે. રાજપદ, મુગટ અને મણિજડિત સિંહાસન મનુષ્યના તેજને હરી લે છે અને તેને પ્રભાવવિહોણો બનાવી દે છે. મનુષ્ય ધનસંપત્તિ પામવા લલચાય છે, પણ એ ધનસંપત્તિ જ એને નષ્ટ કરી દે છે.

ચાંદની અને ફૂલોની છાયામાં ઊછરીને મનુષ્ય સુંદર અને કોમળ ભલે બની જાય, પરંતુ કષ્ટોનું અમૃત સહન કર્યા વિના, તડકો અને આંધીને સહ્યા વિના તે પુરુષ કહેવાતો નથી કે વિપ્નોને પાર કરી શકતો નથી.

જે આંધી-તોફાનોમાં ઊડે છે, ઝરણાંનું પાણી પીએ છે, આખું આકાશ જેમનું ઘર છે અને ઝેરી સાપ જ જેમનું ભોજન છે, એવા ગરુડ જ સાપના બંધનથી છુટકારો અપાવે છે અને ધરતીના હૃદયને શીતળતા આપે છે.

હે કૃષ્ણ! હું એવું જ ગરુડપક્ષી છું, મને પોતાના મસ્તક પર મુગટની જરૂર નથી. આ સમયે દુર્યોધન ભયંકર વિપત્તિમાં ફસાયેલો છે. હું કોઈ રીતે તેને છોડી શકું નહિ. મારે તો યુદ્ધક્ષેત્રમાં ઊતરવું છે અને દુર્યોધનના નાગપાશને કાપવો છે.

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कर्ण का जीवन-दर्शन Summary in English

Karna says to Shrikrishna, “I don’t want to have wealth and worldly happiness. I don’t care for my life. I have only desire that the holy river of donation should always flow from my hand and make the poor happy.”

O Keshav, the states for which you are giving temptation is very useless for me. What does a person get after collecting wealth? After collecting wealth he does not get anything except a lot of worries. He gets a little shining happiness for sometime. But he has to leave all the things here and has to go empty hand.

Karna says to Shrikrishna. “The persons like him cannot bear the burden of gold-do not live a luxurious Itfe. They collect wealth to distribute it among the people. They have valuable things to distribute among the people. They do not carry anything with them from the world. They donate their heart means they have mercy for the poor people.”

The tops of the shining golden palaces become the residents of doves. The eagles never live in a palace and sleep on the golden bed. They have their residents in mountains. The cracks in mountains are their residents.

A man loses his bright-light by becoming the slave of wealth. The kingdom, the crown and the throne studed with diamond takes away the brightness of a man and makes him powerless. Man tempts to collect wealth, but the wealth destroys him.

The man may be beautiful and soft by living in moonlight and flowers, but without suffering from troubles, heat and storm he cannot be called ‘man’ and he cannot poss through troubles.

The eagle which flies in storm, drinks water of a stream, whose house is the sky and whose meal is poisonous snake can only make a person free from the bondage of a snake and cools the heart of the earth.

O Krishna! I am such an eagle. I need not to have crown on my head. This time Duryodhana is in a great trouble. I can’t leave him alone any way. I want to go to the battlefield and cut the strong grip of Duryodhana.

GSEB Solutions Class 9 Hindi Chapter 4 कर्ण का जीवन-दर्शन

कर्ण का जीवन-दर्शन Summary in Hindi

विषय-प्रवेश :

कर्ण कुंती का पुत्र था। पांडवों में वह ज्येष्ठ भी था और श्रेष्ठ भी था। उसकी मित्रता दुर्योधन से हुई। अन्याय और अपमान से भरे कर्ण के जीवन में दुर्योधन ने सदा उसका साथ दिया। कर्ण दुर्योधन के इस उपकार को कभी नहीं भूल सका। कर्ण कुशल योद्धा था। महाभारत युद्ध से पहले श्रीकृष्ण ने उसे पांडवों के पक्ष में लाने का प्रयत्न किया। उन्होंने उसे राज्य देने का प्रलोभन दिया, परंतु कर्ण मे दुर्योधन का साथ छोड़ने से इनकार कर दिया। ‘रश्मिरथी’ खंडकाव्य से लिए गए इस अंश में कर्ण की महानता के दर्शन होते है।

कविता का सार :

कर्ण की इच्छा : कर्ण दानी है। उसे सांसारिक सुखों की परवाह नहीं है। उसकी यही इच्छा है कि वह गरीबों को सदा दान देता रहे।
राज्य पाने की लालसा नहीं : कर्ण राज्य को तुच्छ और क्षणभंगुर समझता है। राजा बनकर मिलनेवाले सुखोपभोगों में उसकी रुचि नहीं है। उसके अनुसार धन का उपयोग तो परोपकार में करना चाहिए।

गरुड़ को अपना आदर्श मानना : कर्ण का आदर्श गरुड़ पक्षी है, जो महल में रहना पसंद नहीं करता। गरुड़ पहाड़ों पर ही रहता है। महलों के शिखर तो कबूतरों के घर होते हैं। कर्ण मानता है कि कष्टों और संघर्षों में रहकर ही मनुष्य महान बनता है। वही लोगों को सुखी बना सकता है।

GSEB Solutions Class 9 Hindi Chapter 4 कर्ण का जीवन-दर्शन

कविता का अर्थ :

“वैभव-विलास …….. सदा।”

कर्ण श्रीकृष्ण से कहता है कि उसे धन-दौलत और सांसारिक सुख भोगने की इच्छा नहीं है। वह अपने जीवन की परवाह नहीं करता। उसकी बस यही इच्छा है कि उसके हाथों से दान की पवित्र नदी सदा बहती रहे और निर्धनों को सुखी बनाती रहे।

“तुच्छ है, राज्य ……… ले जाना है।”

हे केशव, जिस राज्य का आप मुझे प्रलोभन दे रहे हैं, वह तो बहुत तुच्छ वस्तु है। वैभव पाकर मनुष्य को क्या मिलता है? वैभव पाकर उसे ढेर सारी चिंताएं और नाममात्र की हंसी-खुशी मिलती है। थोडी-बहुत चमक-दमक और थोड़े समय के लिए सुखोपभोग मिल जाता है। पर ये सारी चीजें उसे यहीं छोड़ देनी पड़ती हैं और खाली हाथ ही यहाँ से जाना पड़ता है।

“मुझ-से ……. देते हैं।”

कर्ण श्रीकृष्ण से कहता है कि ‘हे कृष्ण’ उसके जैसे मनुष्य सोने का भार नहीं होते – सुख-वैभव का जीवन नहीं बिताते। वे लोगों में बाँटने के लिए ही धन की प्राप्ति करते हैं। उनकी बहुमूल्य वस्तुएं लोगों में बाँट देने के लिए ही होती हैं। वे संसार से कभी कुछ नहीं लेते। अपने हृदय का दान ही करते हैं – दुखियों पर दया करते हैं।

“प्रासादों के …… दरारों में।”

सोने जैसी चमक-दमकवाले राजमहलों की चोटियाँ कबूतरों के ही घर बनती हैं। गरुड़ पक्षी कभी महल में नहीं होता। वह स्वर्णिम बिछौने पर नहीं सोता। उसका निवास तो पहाड़ों में ही होता है। पहाड़ों की फटी दरारें ही उसका घर बनती हैं।

“होकर समद्धि-सुख …… खाता है।”

धन-दौलत के सुख का गुलाम बनकर मनुष्य अपना तपतेज खो देता है। राजपद, मुकुट और मणियों से जड़े हुए सिंहासन मनष्य के तेज को हर लेते हैं-उसे प्रभावहीन बना देते हैं। मनुष्य धन-संपत्ति पाने के लिए ललचाता है, पर यही धन-संपत्ति उसे नष्ट कर देती है।

“चाँदनी ……… हिला सकता।”

चाँदनी और फूलों की छाया (अत्यंत सुख-सुविधा) में पलकर मनुष्य सुंदर और कोमल भले बन जाए, परंतु कष्टों का अमृत पिए बिना, धूप और आंधी सहे बिना न वह पुरुष कहला सकता है और न विघ्नों को पार कर सकता है।

“उड़ते जो …….. जुड़ाते हैं।”

जो आँधी-तूफानों में उड़ते हैं, प्रपातों (झरनों) का पानी पीते हैं, सारा आकाश जिनका घर है और विषैले साँप ही जिनका भोजन है, ऐसे गरुड़ ही सांप के बंधन से छुटकारा दिलाते हैं और धरती के हृदय को शीतलता देते हैं।

“मैं गरुड़ …… मुझको।”

है कृष्ण| मैं ऐसा ही गरुड पक्षी हूँ। मुझे अपने सिर पर मुकुट नहीं चाहिए। इस समय दुर्योधन भयंकर विपत्ति में फंसा हुआ है। मैं किसी भी तरह उसे छोड़ नहीं सकता। मुझे तो युद्धक्षेत्र में उतरना है और दुर्योधन के नागपाश को काटना है।

GSEB Solutions Class 9 Hindi Chapter 4 कर्ण का जीवन-दर्शन

कर्ण का जीवन-दर्शन शब्दार्थ :

  1. वैभव – धन-दौलत।
  2. विलास – सुखोपभोग।
  3. परवाह – चिन्ता।
  4. सरिता – नदी।
  5. निर्मल – स्वच्छ, पवित्र।
  6. करतल – हथेली।
  7. तुच्छ – क्षुद्र, निकृष्ट।
  8. केशव – कृष्ण।
  9. नर – मनुष्य।
  10. प्रभूत – अधिक, प्रचुर।
  11. अत्यल्प – बहुत थोड़ा।
  12. हास – हंसी-खुशी।
  13. चाकचिक्य – चमक, चका-चौध।
  14. गंवाना – खोना।
  15. कंचन – सोना।
  16. बिखराना – बांटना।
  17. रतन – रत्ना
  18. प्रासाद – राजमहल।
  19. कनकाभ – सुनहले।
  20. शिखर – चोटी, ऊँचा भाग।
  21. शैल – पर्वत, चट्टान।
  22. दरार – रेखा की तरह अवकाश।
  23. अधीन – दास, सेवक, गुलाम।
  24. तपःक्षीण – प्रभावहीन।
  25. सत्ता – राजपाट।
  26. तेज हरण – प्रभाव नष्ट करना, कान्ति दूर करना।
  27. क्लेश – कष्ट, वेदना।
  28. आतप – तेज, धूप।
  29. अंधड़ – आँधी।
  30. झंझावात – तूफान।
  31. वारि – पानी।
  32. प्रपात – झरना।
  33. अयन – घर (गमन)।
  34. भुजंग – विषैला सांप।
  35. फणिबंध – नागपाश।
  36. पक्षिराज – गरुड़।
  37. विपद – आपत्ति।
  38. घोर – भयंकर।
  39. रणखेत – युद्ध का मैदान।
  40. अहिपाश – नागपाश।

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