Gujarat Board GSEB Solutions Class 11 Sanskrit Chapter 15 ननु वर्णितोऽसि Textbook Exercise Questions and Answers, Notes Pdf.
Gujarat Board Textbook Solutions Class 11 Sanskrit Chapter 15 ननु वर्णितोऽसि
GSEB Solutions Class 11 Sanskrit ननु वर्णितोऽसि Textbook Questions and Answers
ननु वर्णितोऽसि Exercise
1. अधोलिखितेभ्यः विकल्पेभ्यः समुचितम् उत्तरं चिनुत :
પ્રશ્ન 1.
चेटी कस्य मुखं कालीकरोति ?
(क) नायकस्य
(ख) नायिकायाः
(ग) विदूषकस्य
(घ) मर्कटस्य
उत्तर :
(ग) विदूषकस्य
પ્રશ્ન 2.
कस्य वृक्षस्य पल्लवरसेन चेटी विदूषकस्य मुखं वर्णयति ?
(क) चन्दनस्य
(ख) तमालस्य
(ग) पिप्पलस्य
(घ) कुरबकस्य
उत्तर :
(ख) तमालस्य
પ્રશ્ન 3.
विदूषकः आत्मानं कीदृशं मन्यते ?
(क) चतुरम्
(ख) दर्शनीयम्
(ग) मूढम्
(घ) चपलम्
उत्तर :
(ख) दर्शनीयम्
પ્રશ્ન 4.
यदा चेटी विदूषकं वर्णयति तदा स कीदृशः तिष्ठति ?
(क) प्रसन्नः
(ख) कुपितः
(ग) निमीलिताक्षः
(घ) सन्तप्तः
उत्तर :
(ग) निमीलिताक्षः
2. Explain with reference to context :
પ્રશ્ન 1.
एतत्ते मुखं नन्दनोद्यानम्, अन्यत् केवलं वनम्।
उत्तर :
सन्दर्भ : प्रस्तुत पंक्ति पाठ्यपुस्तक के ‘ननु वर्णितोऽसि’ नामक पाठ से ली गई है। यह पाठ संस्कृत कवि एवं सम्राट हर्षवर्धन कृत ‘नागानन्दम्’ नामक नाटक के तृतीय अंक से संपादित कर प्रस्तुत किया गया है। इस पाठ में प्रदत्त नाट्यांश की घटना के अनुसार उपर्युक्त उद्गार नायिका मलयवती के मुख-सौंदर्य का वर्णन करते हुए नायक व्यक्त करता है।
कुसुमाकर नामक उद्यान में उपस्थित नायक, नायिका एवं चेटी विदूषक के साथ विद्याधरों की मधुपान-गोष्ठी का दर्शन करते हुए तमाल-वीथिका में प्रवेश करते हैं। शरदऋतु के संताप से संतप्त नायिका को देखकर वे स्फटिक की शिला पर बैठते हैं तथा इस समय नायक नायिका के मुख-सौंदर्य का वर्णन करते हैं। आतप से संतप्त नायिका को प्रसन्न करने हेतु नायक नायिका मलयवती के मुख की तुलना इन्द्र के उपवन नन्दन-वन से करते हैं।
इतना ही नहीं, नायक यह कहते हैं कि नायिका मलयवती का मुख ही नन्दन-वन है। एक अन्य – अर्थ के अनुसार यह भी कहा जा सकता है कि नायिका का मुख ही आनन्द प्रदान करनेवाला उपवन अर्थात् नन्दन-वन है। नायक इतना कहने पर ही अपने वाक्य को पूर्ण नहीं करता है प्रत्युत साथ ही यह भी कहता हैं कि इसके अतिरिक्त अन्यत्र सर्वत्र वन ही वन है।
अर्थात् नायिका इस भूमण्डल पर सौंदर्य की एक मात्र प्रतिमा के रूप में विद्यमान है। यहाँ इस वाक्य के द्वारा नायक की वाक्पटुता का भी अभिज्ञान होता है।
પ્રશ્ન 2.
अस्माकमपि मध्ये दर्शनीयो जनोऽस्त्येव।
उत्तर :
सन्दर्भ : प्रथम प्रश्न के अनुसार – उपर्युक्त वाक्य विदूषक कहता है। नागानन्द नामक नाटक के नायक जीमूतवाहन, नायिका मलयवती, चेटी एवं विदूषक विद्याधरों की मदिरा-पान गोष्ठी को देखने के लिए तमालवीथिका से जाते हुए स्फटिक की शिला पर बैठते हैं।
इस समय नायक, नायिका के मुख-सौंदर्य की प्रशंसा करता है। नायक के द्वारा नायिका की सुंदरता की प्रशंसा को सुनकर नायिका की दासी चतुरिका ने विदूषक को इंगित करते हुए कहा ‘सुना तुमने, राजकुमारी की प्रशंसा किस प्रकार की जा रही है ?’
दासी विदूषक को यह समझाना चाहती है कि वह भी उसकी (दासी की) प्रशंसा करे, किन्तु विदूषक यह समझ नहीं पा रहा था। विदूषक, दासी के द्वारा किए गए इशारे को समझ नहीं पाता है किन्तु साथ में उपर्युक्त वाक्य कहता है।
इस वाक्य का अर्थ है – ‘हमारे मध्य भी एक सुन्दर व्यक्ति है, लेकिन ईर्ष्यावश कोई उसका वर्णन नहीं करता है।’ इस वाक्य को कहकर वह चाहता है कि राजकुमारी की भाँति कोई उसके रूप की प्रशंसा करे।
इस प्रकार विदूषक के मन्द बुद्धि होने का परिचायक है साथ ही इस कारण संस्कृत-नाटकों में हास्य-रस का वर्णन किया जाता है।
પ્રશ્ન 3.
आर्य, अहं त्वां वर्णयामि।
उत्तर :
सन्दर्भ प्रथम प्रश्न के अनुसार।।
यह कथन चेटी की अभिव्यक्ति है। स्फटिक के शिला खंड पर बैठे हुए नायक, जीमूतवाहन नायिका मलयवती के सौंदर्य का वर्णन करता है। नायिका के सौंदर्य का प्रशस्ति-गान सुनकर चेटी चतुरिका भी चाहती है कि विदूषक आत्रेय उसके सौंदर्य का बखान करे किन्तु विदूषक चेटी के अभिप्राय को समझने में असमर्थ रहे। चेटी के द्वारा यह कहने पर भी कि ‘देखो, राजकुमारी का वर्णन किस प्रकार किया जा रहा है ?’
विदूषक कहता है : ‘हाँ चेटी, वास्तविक रूप से यहाँ एक और सुन्दर व्यक्ति और भी है किन्तु लोग ईर्ष्यावश उसका वर्णन नहीं करते हैं।’ विदूषक के इस प्रकार कहने पर स्वभाव से चतुर एवं चंचल चेटी चतुरिका उपर्युक्त वाक्य कहती है – ‘आर्य, अहं त्वां वर्णयामि।’
अर्थात् ‘हे आर्य, मैं आपका वर्णन करती हूँ।’ यह कहकर विदूषक का वर्णन करने के लिए वह उसे नेत्र बन्द करने के लिए कहती है क्योंकि विदूषक का निद्रातुर नेत्र बन्द किए हुए मुख उसे और अधिक सुन्दर लग रहा था।
विदूषक चेटी की बात का विश्वास कर नेत्र बन्द करता है तथा उस समय वह तमाल-पत्र के श्याम रस से भोले भाले विदूषक का मुख काला कर देती हैं क्योंकि संस्कृत में ‘वर्णयामि’ शब्द का एक अन्य अर्थ होता है रंग करना या रंग भरना। इस अर्थ के अनुसार वह उसे रंग देती है।
इस प्रकार इस कथन के द्वारा चतुरिका का यथा-नाम तथा गुण प्रकट होता है।
પ્રશ્ન 4.
एवमेकाकिनी चिरं भव।
उत्तर :
सन्दर्भ पूर्ववत् –
अनुवाद : इस प्रकार चिर काल तक अकेली रहो। यह कथन पाठ्यपुस्तक में प्रदत्त नाट्यांश का अन्तिम वाक्य है। चेटी चतुरिका इस वाक्य को कहकर विदूषक को प्रसन्न करने के लिए उसके पीछे जाती है। चेटी के द्वारा विदूषक का मुख काला करने पर जब उसे सत्य का ज्ञान होता है तब वह क्रोधित होकर वहाँ से निकल जाता है। विदूषक को जाते हुए देखकर चेटी कहती है। वास्तविक रूप से आर्य अत्रिय क्रोधित हो चुके हैं।
इस प्रकार कहकर क्रोधातुर विदूषक को मनाने हेतु चेटी उसके पीछे जाने के लिए जैसे ही तत्पर होती है उसी समय नायिका मलयवती उसे कहती है, ‘अरे सखी चतुरिका, इस प्रकार मुझे अकेले छोड़कर कहाँ जा रही हो।
तब नायक की ओर इंगित करते हुए चेटी चतुरिका नायिका से कहती है ‘इस प्रकार तुम चिर-काल तक एकाकिनी रहो।’ इस कथन के द्वारा भी चेटी की वाक्पटुता का अभिज्ञान होता है तथा व्यावहारिक कौशल्य का परिचय भी होता है।
नायिका नवविवाहिता है तथा वह नववधू नायक के साथ चिर-काल-पर्यन्त रहे यह अपेक्षित भी है। अत: मन्द हास्य के साथ वह यह वाक्य कहकर विदूषक के पीछे उसे मनाने के लिए चली जाती है।
3. Answer the following questions in your mother tongue:
Question 1.
What reason does the clown give for coming late?
उत्तर :
विदूषक विलम्ब से आने का कारण बताते हुए कहता है कि, वह विवाह के मंगल-महोत्सव में सम्मिलित विद्याधरों की सिद्ध जनों के साथ मद्य-पान गोष्ठी को देखने के कौतुहल से वहाँ परिभ्रमण करते हुए विलम्ब हुआ था।
Question 2.
How does Jimutavahana praise the face of Malayavati?
उत्तर :
मलयवती के मुख सौंदर्य की प्रशंसा करते हुए जीमूतवाहन कहता है कि मलयवती के कपोलों की गौर कान्ति से मलयवती के मुख ने चन्द्र को जीत लिया है तथा अब धूप में लाल होकर कमल को भी जीतना चाहता हैं।
Question 3.
How does the maid ask Vidushaka to sit when she describes his face?
उत्तर :
विदूषक के मुख का वर्णन करते समय दासी उसे नेत्र बन्द करके बैठने के लिए कहती है।
Question 4.
How does the maid servant describe Vidushaka’s face?
उत्तर :
दासी तमाल-पत्रों के रस से अपने हाथ काले कर के विदूषक के मुख को काला कर देती है। यहाँ वर्णन शब्द से तात्पर्य है रंग करना। इस प्रकार तमाल-पत्र के श्याम रस से चेटी, विदूषक का मुख काला करती है अर्थात् इस भाँति वह विदूषक के मुख का वर्णन करती है।
Question 5.
What does Vidushaka say knowing that his face is black?
उत्तर :
स्वयं का मुख काला है, यह जानकर विदूषक क्रोधित होकर कहता है, ‘हे दासी की पुत्री ! यह राज परिवार है। मैं तेरा क्या करूँ ?’ यह कहकर वह नायक की ओर देखकर पुनः कहता है कि उन दोनों की उपस्थिति में उसे मूर्ख बनाया गया अतः उसके वहाँ रहने से क्या प्रयोजन ? वह कहीं अन्यत्र चला जाएगा यह कहकर विदूषक वहाँ से चला जाता है।
4. Select the name of the character who speaks the sentence given and write. (विदूषकः, जीमूतवाहनः, चेटी)
- जयतु भवान्। स्वस्ति भवत्यै।
- प्रिये, इह उपविशामः।
- एतत्ते मुखं नन्दनोद्यानम्, अन्यत् केवलं वनम्।
- आर्य, अहं त्वां वर्णयामि।
- सत्यं खलु कुपितो मे आर्यः आत्रेयः।
- एवमेकाकिनी चिरं भव।
- कथं मामेकाकिनीमुज्झित्वा गच्छसि।
- जीवापितोऽस्मि। तत्करोतु भवती प्रसादम्।
- वयस्य चिरादायातः।
- श्रुतंत्वया भर्तृदारिका कथं वर्णयते ?
उत्तराणि :
- जयतु भवान्। स्वस्ति भवत्यै। – विदूषक:
- प्रिये, इह उपविशामः। – जीमूतवाहन
- एतत्ते मुखं नन्दनोद्यानम्, अन्यत् केवलं वनम्। – जीमूतवाहन
- आर्य, अहंत्वां वर्णयामि। – चेटी
- सत्यं खलु कुपितो मे आर्यः आत्रेयः। – चेटी
- एवमेकाकिनी चिरं भव। – चेटी
- कथं मामेकाकिनीमुज्झित्वा गच्छसि। – नायिका
- जीवापितोऽस्मि। तत्करोतु भवती प्रसादम्। – विदूषक
- तदिह स्फटिकशिलातले उपविशतु। – विदूषक
- वयस्य, चिरादायातः। – जीमूतवाहन
- श्रुतं त्वया भर्तृदारिका कथं वर्ण्यते। – चेटी
5. Write a critical note on:
Question 1.
Humour depicted in the lesson
उत्तर :
पाठ में अभिव्यक्त हास्य रस :
संस्कृत नाटकों में विषय की गंभीरता के साथ-साथ दर्शकों की मनःस्थिति करुण-दुःखद या किसी गंभीर विषयों से परिवर्तित करने के लिए नाटक के मध्य हास्य रस का विधान किया गया है। संस्कृत नाटकों में हास्य-रस कीउत्पत्ति के लिए विदूषक नामक पात्र का सर्जन किया है।
विदूषक की वेशभूषा भी विशिष्ट प्रकार की होती है तथा उसे मन्द-बुद्धि दर्शाया जाता है। अतः विदूषक मन्दबुद्धि होने के कारण अन्य पात्रों के द्वारा कही गई बात या विषय को न समझ पाने के कारण वहाँ हास्य उत्पन्न होता है। यहाँ ‘ननुवर्णितोऽसि’ नामक पाठ में जब नायक जीमूतवाहन, नायिका मलयवती के सौन्दर्य का प्रशस्तिगान करता है तब वहाँ उपस्थित चेटी, विदूषक को इंगित करके कहती है, ‘सुना आपने, राजकुमारी का वर्णन किस प्रकार किया जाता है ?’
चेटी विदूषक को यह समझाने का प्रयत्न करती है कि जिस प्रकार नायक, नायिका का वर्णन करता है उसी प्रकार वह उसकी प्रशंसा भी करे। किन्तु विदूषक, चेटी के इन मनोभावों को समझने में असमर्थ रहता है तथा वह कहता है कि, ‘यहाँ उपस्थित जनों में से एक अन्य सुन्दर व्यक्ति भी है किन्तु ईर्ष्यावश कोई उसका वर्णन नहीं करता है।’
यहाँ विदूषक चेटी के सौंदर्य की प्रशंसा तो नहीं करता है किन्तु चाहता यह है कि कोई अन्य उसके सौंदर्य का वर्णन करे।। स्वभाव से चंचल एवं चतुर चेटी चतुरिका विदूषक की कामना पूर्ण करने के लिए कहती है, ‘आर्य, मैं तुम्हारा वर्णन करती हूँ।’ चेटी की बात सुनकर विदूषक प्रसन्न हो जाता है।
अवसर का लाभ उठाते हुए चेटी विदूषक से कहती है कि वे नेत्र बन्द कर के बैठे क्योंकि चेटी को विदूषक विवाह में जागरण के कारण निद्रातुर, नेत्र बन्द किए हुए सुन्दर लग रहे थे। अतः विदूषक का वर्णन करने के लिए चेटी उसे नेत्र बन्द कर बैठने के लिए कहती है।
यहाँ वर्णयामि शब्द के दो अर्थ विनोद उत्पन्न करते है। वर्णयामि का एक अर्थ है वर्णन करना तथा द्वितीय अर्थ हैं रंग करना, रंगना या रंग भरना। जैसे ही विदूषक नेत्र बन्द करते है चेटी तमाल-पत्रों को निचोडकर उनके श्याम रस से विदूषक का मुख काला कर देती है अर्थात् चेटी विदूषक के मुख का वर्णन तमाल-पत्रों के काले रस से करती है।
इस प्रकार चेटी का चतुराईपूर्वक विदूषक के मुख को काला करने की प्रवृत्ति हास्योत्पादक है। यह घटना हास्य का सर्जन करती है।
Question 2.
Cheti’s friend with clown
उत्तर :
चेटी के द्वारा किया गया विदूषक का उपहास।
नवपरिणित वरवधू नायक जीमूतवाहन एवं नायिका मलयवती स्फटिक की शिला पर बैठते हैं। उनके साथ चेटी चतुरिका एवं विदूषक आत्रेय भी वहाँ उपस्थित हैं। नायिका को प्रसन्न करने के लिए नायक जीमूतवाहन नायिका के लावण्य की प्रशंसा करता है।
यह सुनकर चेटी चाहती है कि विदूषक भी उसकी प्रशंसा करे अतः वह विदूषक को तद्-अनुसार करने हेतु इंगित करती है। चेटी के आशय को समझने में असमर्थ विदूषक चाहता है कि कोई उसके स्वयं के सौंदर्य का वर्णन करे।
चेटी उसकी मनोकामना पूर्ण करने हेतु कहकर उसका वर्णन करने के लिए उसे नेत्र बन्द कर बैठने के लिए कहती है। जब तक वह नेत्र बन्द करके बैठता है, चेटी तमाल-पत्र के श्याम-वर्ण के रस से विदूषक का मुख काला करती है।
यहाँ वर्णन शब्द के द्वितीय अर्थ रंग करना या रंगना को ग्रहण करके चेटी विदूषक का मुख काला करके उसका उपहास करती है।
Sanskrit Digest Std 11 GSEB ननु वर्णितोऽसि Additional Questions and Answers
ननु वर्णितोऽसि स्वाध्याय
1. अधोलिखितेभ्य: विकल्पेभ्यः समुचितम् उत्तरं चिनुत्।
પ્રશ્ન 1.
कुसुमाकरोद्याने कति जनाः उपस्थिताः सन्ति ?
(क) त्रयः
(ख) चत्वारः
(ग) पञ्च
(घ) द्वौ
उत्तर :
(क) त्रयः
પ્રશ્ન 2.
विद्याधराः मधुनि कुत्र पिबन्ति ?
(क) तमालतरुच्छासु
(ख) चन्दनतरुच्छायासु
(ग) वटतरुच्छायासु
(घ) पिप्पलस्य छायासु
उत्तर :
(ख) चन्दनतरुच्छायासु
પ્રશ્ન 3.
विद्याधराः केन सार्धं मधूनि पिबन्ति।
(क) विदूषकेन
(ख) जीमूतवाहनेन
(ग) चितुरिकया
(घ) सिद्धैः
उत्तर :
(घ) सिद्धैः
પ્રશ્ન 4.
नायिकायाः मुखम् अधुना किम् जेतुम् ईहते ?
(क) कमलम्
(ख) नन्दनोद्यानम्
(ग) तमालरसम्
(घ) शशिनम्
उत्तर :
(क) कमलम्
પ્રશ્ન 5.
आत्रेयः इति कस्य नाम ?
(क) नायकस्य
(ख) विदूषकस्य
(ग) चेट्याः
(घ) मनायिकाया:
उत्तर :
(ख) विदूषकस्य
પ્રશ્ન 6.
सर्वे कुत्र उपविशन्ति ?
(क) चन्दनतरुच्छायासु
(ख) शिलातले
(ग) वटच्छायासु
(घ) स्फटिक शिलातले
उत्तर :
(घ) स्फटिक शिलातले
પ્રશ્ન 7.
विद्याधराः चन्दनतरुच्छायासु किं पिबन्ति ?
(क) जलम्
(ख) मधूनि
(ग) तमालपल्लवरसम्
(घ) दुग्धम्
उत्तर :
(ख) मधूनि
પ્રશ્ન 8.
नायिकायाः मुखेन किं जितम् ?
(क) शशी
(ख) तमालपल्लवम्
(घ) कमलम्
उत्तर :
(क) शशी
3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर मातृभाषा में लिखिए।
પ્રશ્ન 1.
कुसुमाकर – उद्यान में कौन-कौन उपस्थित था ?
उत्तर :
कुसुमाकर – उद्यान में जीमूतवाहन मलयवती, एवं चेटी तीन जन उपस्थित थे।
પ્રશ્ન 2.
विद्याधर सिद्धजनों के साथ चन्दन-वृक्ष की छाया में क्या कर रहे हैं ?
उत्तर :
चन्दन-वृक्ष की छाया में विद्याधर सिद्धजनों के साथ मद्य-पान कर रहे हैं।
પ્રશ્ન 3.
नायक एवं नायिका कहाँ बैठते हैं ? तथा क्यों ?
उत्तर :
नायक, नायिका एवं चेटी विदूषक के साथ विद्याधरों की मद्यपान-गोष्ठी देखने के लिए जाते हैं। मार्ग में तमालवीथिका तक चलते चलते शरदऋतु के संताप से संतप्त नायिका को देखकर सभी स्फटिक की शिला पर बैठते है। नायिका के संताप को दूर करने वे सभी स्फटिक की शिला पर बैठकर विश्राम करते हैं।
ननु वर्णितोऽसि Summary in Hindi
ननु वर्णितोऽसि सन्दर्भ :
यह पाठ कवि एवं सम्राट हर्षवर्धन लिखित ‘नागानन्दम्’ नामक नाटक से लिया गया है। सम्राट हर्षवर्धन का कालखंड ई.स. की सातवीं शताब्दी है। सम्राट के रूप में उन्होंने अपने प्रासाद में अनेक कवियों को आश्रय प्रदान किया था। उनके राज्याश्रय में दो कवि बाण एवं मयूर सुप्रसिद्ध थे।
सम्राट एवं कवि हृदय हर्षवर्धन ने विश्व को नागानन्द, रत्नावली एवं प्रियदर्शिका-तीन नाट्यकृतियों का अनुपम उपहार प्रदान किया है। यह माना जाता है कि हर्षवर्धन ने स्वकाल खंड में दो विशाल धर्म-परिषदों का आयोजन किया गया था।
एक धर्म-परिषद प्रयाग में तथा दूसरी कन्नौज (कान्यकुब्ज) में आयोजित की गई थी। इस धर्म-परिषद के अवसर पर नागानन्द एवं प्रियदर्शिका दो नाट्यकृतियों का रंगमंच पर मंचन किया था।
इस पाठ में प्रदत्त पाठ्यांश ‘नागानन्दम्’ नामक नाटक के तृतीय-अंक से संपादित कर प्रस्तुत किया गया है। यहाँ हास्य-रस से युक्त एक प्रसंग का वर्णन किया गया है। यहाँ श्लेष अलंकार का चमत्कार हास्य को उत्पन्न करता है। नाटक की कथावस्तु के अनुसार नाटक का नायक जीमूतवाहन है तथा वह विद्याधरों का राजा है। नाटक की नायिका सिद्ध जाति की कन्या मलयवती है। नायक एवं नायिका प्रणयाकर्षण से आबद्ध है।
एकबार नायक अपने मित्र विदूषक तथा नायिका अपनी सखी चेटी के साथ तमाल-वीथिका में बैठे थे। इस अवसर पर नायक शरद ऋतु के ताप में खिन्न नायिका के मुख की शोभा का वर्णन करता है। यह देखकर व्यंग्य करते हुए विदूषक कहता है कि, “मैं स्वयं दर्शनीय हूँ, सुंदर हूँ किन्तु ईर्ष्यावश कोई इसका वर्णन नहीं करता है।
विदूषक के इस प्रकार कहने पर नायिका की सखी चेटी कहती है, ‘मैं आपका वर्णन करूँगी’ यह कहकर वह उसका वर्णन करने हेतु तत्पर होती है।
चेटी के कथन में श्लेष अलंकार का सुन्दर प्रयोग किया गया है। यहाँ वर्णयामि का एक अर्थ है, ‘मैं वर्णन करता हूँ या करती हूँ।’ तथा द्वितीय अर्थ है, ‘मैं रंगता हूँ – या रंग भरता हूँ या रंग-युक्त (रंगीन) करता हूँ।’
विदूषक प्रथम अर्थ में (मैं वर्णन करती हूँ।) ग्रहण कर प्रसन्नता का अनुभव करता है तथा चेटी दूसरे अर्थ के अनुसार तमाल-पत्र के रस से विदूषक का मुख काला कर देती है। इस प्रकार यह घटना हास्य का कारण बन जाती है। यह प्रसंग अत्यंत सरल एवं निर्दोष हास्य उत्पन्न करता है।
ननु वर्णितोऽसि शब्दार्थ
उपसृत्य = पास जाकर – उप + सृ धातु + ल्यप् प्रत्यय – संबंधक – भूत-कृदन्त। स्वस्ति भवत्यै = आपका (श्रीमती का) कल्याण हो। (यहाँ स्वस्ति अव्यय का प्रयोग है। स्वस्ति अव्यय के साथ चतुर्थी विभक्ति का प्रयोग होता है अतः भवत्यै शब्द में चतुर्थी विभक्ति का प्रयोग किया गया है। भवती – स्त्रीलिंग – चतुर्थी विभक्ति, एकवचन। वयस्य = हे मित्र ! – संबोधन एकवचन का प्रयोग है। विवाह – मङ्गलमहोत्सवे = विवाहरूपी मंगल महोत्सव में – विवाह – मङ्गलस्य महोत्सवः – षष्ठी तत्पुरुष समास। विद्याधराणाम् = विद्याधरों का – विद्याधर एक प्रकार की अर्ध-दिव्य जाति है। आपानकदर्शनकौतुहलेन = मद्यपान – गोष्ठी देखने के कौतुहल से – ‘आपानकस्य दर्शनम् – षष्ठी तत्पुरुष समास, आपानकदर्शनात् कौतुहलम् – पञ्चमी तत्पुरुष समास।
एतावती वेलां = इस समय तक, इतना समय। प्रेक्षताम् = देखिए – प्र + ईक्ष् धातु आज्ञार्थ, अन्यपुरुष, एकवचन। समन्तात् = चारों ओर – यह एक अव्ययपद हो। चन्दनतरूच्छासु = चन्दन वृक्ष की छाया में – चन्दनतरोः छाया-तासु इति-षष्ठी-तत्पुरुष समास। सिद्धजनैः = सिद्धजनों से – सिद्ध एक प्रकार की अर्धदिव्य जाति है। मधूनि = मधु, मदिरा, मद्य – नपुंसक उकारान्त शब्द, प्रथमा विभक्ति, बहुवचन। तदेहि = तो चल या (चलो या आओ) – आ + इ धातु, आज्ञार्थ, मध्यम पुरुष, एकवचन। तमालवीथिका = तमालवृक्ष की दो पंक्तियों के मध्य का मार्ग।
शरत्सन्तापनेदितम् = शरद् ऋतु के ताप से खिन्न या तप्त – शरदः सन्तापः – षष्ठी तत्पुरुष समास, शरत्सन्तापेन खेदितम् – तृतीया तत्पुरुष समास। लक्ष्यते = दिखाई देता है – लक्ष् धातु, वर्तमान काल, अन्य पुरुष, एकवचन। सम्यक् उपलक्षितम् = अच्छी तरह देखा हुआ। शशिनम् = चन्द्र को – शशिन् द्वितीया विभक्ति एकवचन। कपोलयोः = दोनों गालों का। तापानुरक्तम् = ताप-धूप से लाल हो चुके – तापेन अनुरक्तम् – तृतीया – तत्पुरुष समास। ईहते = इच्छा करता है, चाहता है। परिख्नेदिता = अत्यंत दुःखी हो चुकी – परि + खिद् धातु – प्रेरणार्थक + क्त प्रत्यय – कर्मणि भूतकृदन्त।
नन्दनोद्यानम् = इन्द्र का उपवन, उद्यान। निर्दिश्य = निर्देश करके – निर् + दिश् धातु + ल्यम् – संबंधक भूत कृदन्त। भर्तृ दारिका = राजकुमारी। उदह = तुम धारण करो – उत् + वह धातु, आज्ञार्थ, मध्यम पुरुष, एकवचन। मत्सरेण = ईर्ष्या। वर्णयति = वर्णन करता है – वर्ण धातु, वर्तमान काल, अन्य पुरुष, एकवचन, इस क्रिया का एक अन्य अर्थ है – रंगता है, रंगीन करता है। जीवापित: = जीवन-दान दिया – जीव् धातु (प्रेरणार्थक) क्त प्रत्यय – कर्मणि भूत कृदन्त। कपिलमर्कटाकारः = लाल रंग के बंदर जैसे आकारवाला – कपिलमर्कटस्य आकारः इव आकारः यस्य सः – बहुव्रीहि समास।
निद्रायमाण: = सोता हुआ – निद्रा संज्ञा-पद से निर्मित, निद्राय – नामधातु का वर्तमान कृदन्त। निमीलिताक्षः = बंद नेत्रोंवाला – निमीलिते अक्षिणी यस्य सः – बहुव्रीहि समास। नीलरसतुल्येन = सघन श्याम (काला) रस जैसा, – नीलरसेन तुल्यः, तेन – तृतीया तत्पुरुष समास। तमाल – पल्लवरसेन = तमाल – वृक्ष की कोपलों के रस से – तमालपल्लवानां रसः तेन – षष्ठी तत्पुरुष समास। कालीकरिष्यामि = काला करूँगा या काला करूँगी – काल + च्ची प्रत्यय + कृ धातु, भविष्य काल, प्रथम पुरुष, एकवचन। निष्पीडनम् = कुचलना, रगडना, निचोडना। नाट्यति = अभिनय करता है।
नट् धातु, वर्तमान काल, अन्य पुरुष, एकवचन। अस्मासु तिष्ठत्सु = हमारे होते हुए, हमारी उपस्थिति में – सति सप्तमी का प्रयोग। कालीकरोति – काला करता है – काल + च्ची + कृ धातु + वर्तमान काल, अन्य पुरुष, एकवचन। वर्णित: असि = वर्ण धातु + क्त प्रत्यय – कर्मणि भूतकृदन्त = तुम्हें रंग दिया गया है, तुम्हारा वर्णन कर दिया गया है। प्रमृज्य = पौंछकर के, स्वच्छ कर के – प्र + मृष् + ल्यप् – सम्बन्धक भूतकृदन्त। दण्डकाष्ठम् = लकड़ी के डंडे (दंड) को। उद्यम्य = उठा करके – उत् + यम् + ल्यप् संबंधक भूतकृदन्त।
दास्या: पुत्रि – द्वे दुष्ट कन्या – संस्कृत नाटकों में स्त्री-पात्र के प्रति क्रोध प्रकट करने के लिए, तिरस्कार करने हेतु इस शब्द का प्रयोग किया जाता है। खलीकृतः = अपमानित किया, मूर्ख बनाया – खल + च्ची + कृ धातु + क्त – कर्मणि भूत कृदन्त। हजे = हे सखी, अली – संबोधन। उज्झित्वा = त्याग करके – उज्झ् + क्त्वा – सम्बन्धक भूत कृदन्त। उद्दिश्य = उद्देश्य कर के – उद् + दिश् + ल्यप् – संबंधक भूत कृदन्त।
ननु वर्णितोऽसि अनुवाद :
(कुसुमाकर (पुष्पों के) उद्यान में जीमूत-वाहन, मलयवती और चेटी तीनों उपस्थित हैं। अब वहाँ विदूषक आत्रेय प्रवेश करता है।)
विदूषक : (पास जाकर) आपकी जय हो। आपका कल्याण हो।
नायक : मित्र, विलम्ब से आए हो।
विदूषक : अरे मित्र, शीघ्र ही आया हूँ। किन्तु विवाहमंगल महोत्सव में सम्मिलित विद्याधरों की मद्यपान (गोष्ठी) को देखने के कौतुहल से परिभ्रमण करते हुए इतने विलम्ब से आया हूँ। तब प्रिय मित्र भी यह (मद्य-पान-गोष्ठी का) अवलोकन करे।
नायक : जैसा आप कहते हैं। (चारों ओर देखकर) मित्र, देखो, देखो। ये विद्याधर चन्दन वृक्ष की छाया में सिद्ध-जनों के साथ मद्य-पान कर रहे हैं। तब चलें। हम भी तमाल-वीथिका की ओर गमन करते हैं। (सभी परिक्रमा करते हैं।)
विदूषक : निश्चित रूप से यह तमालवीथिका है और यह आपका मुख शरद ऋतु के ताप से खिन्न दिखाई दे रहा है। तब यहाँ स्फटिक की शिला पर बैठिए।
नायक : मित्र, समुचित अवलोकन किया है। यह प्रिया का मुख कपोलों की कान्ति से चन्द्रमा को जीत कर ताप से रक्त वर्ण होकर निश्चय ही अब कमल को जीतना चाहता है। (मलयवती को हाथ से पकड़कर) प्रिये, यहाँ बैठते हैं। (सभी बैठते हैं।)
नायक : (नायिका के मुख को देखते हुए) प्रिये, हमारे द्वारा तुम्हें व्यर्थ ही कष्ट दिया गया है। यह तुम्हारा मुख नन्दन-वन है इसके अतिरिक्त सर्वत्र वन हैं।
चेटी : (सस्मित विदूषक क निर्देश करके) सुना तुमने, राजकुमारी का वर्णन किस प्रकार किया जा रहा है।
विदूषक : चतुरिका, इस प्रकार तुम गर्व मत करो। हमारे मध्य भी एक दर्शनीय जन है ही। केवल मत्सर के कारण कोई उसका वर्णन नहीं करता है।
चेटी : (सस्मित) आर्य, मैं तुम्हारा वर्णन करती हूँ।
विदूषक : (सहर्ष) तुमने मुझे जीवनदान दिया है। तब आप कृपा करें। जिससे यह पुनः न कहे कि तुम (ऐसे) इस प्रकार के हो, (वैसे) उस प्रकार के हो या लाल रंग के बंदर जैसे आकारवाले हो।
चेटी : आर्य, मैंने विवाह के जागरण से निद्रातुर नेत्र बंद किए हुए तुम्हारा सुन्दर रूप देखा है। अतः उसी प्रकार बैठिए जिससे मैं वर्णन करूँ।
विदूषक : (वैसा ही करता है।)
चेटी : (स्वयं से) जब तक ये नेत्र बन्द करके बैठे हैं तब तक तमालपत्र के काले रस में इसका मुख काला करती हूँ। (वह खड़े होकर तमाल-पत्रों को ग्रहण करने एवं निचोडने का अभिनय करती है। नायक और नायिका विदूषक को देखते हैं।)
नायक : मित्र, निश्चय ही तुम धन्य हो। बैठे हुए हम लोगों में से तुम्हारा ही वर्णन किया जा रहा है।
चेटी : (तमाल के रस से विदूषक का मुख काला करती है।)
नायिका : (नायक के मुख को देखकर स्मित करती है।)
विदूषक : दासी क्या किया तुमने ?
चेटी : निश्चय ही तुम्हारा वर्णन (यहाँ वर्णित शब्द का आशय रंग से हैं – तुम्हारा वर्णन अर्थात् तुम्हें रंग दिया गया है।) ही किया गया है।
विदूषक : (हाथ से मुख को पौंछकर (साफकर) हाथ को देखकर रोषपूर्वक डण्डा उठा करके) अरे दासी की पुत्री, यह राज परिवार है। मैं तुम्हारा क्या करूँ – (नायक को निर्दिष्ट कर के) अरे, तुम दोनों के सामने ही दासी की पुत्री के द्वारा मुझे छला गया। तब मेरे यहाँ होने से क्या (लाभ) ? तब कहीं अन्यत्र जाऊँगा। (चला जाता है।)
चेटी : निश्चय ही सत्य रूप से मेरे आर्य आत्रेय कुपित हो गए हैं। तब तो उनके पास जाकर प्रसन्न करूँगी। (जाना चाहती है।)
नायिका : सखी चतुरिका ! मुझे अकेली छोड़कर कैसे जा रही हो ?
चेटी : (नायक की ओर इंगित करके सस्मित) इस प्रकार से चिरकाल तक अकेली ही रहो। (बाहर चली जाती है।)