GSEB Solutions Class 10 Hindi Kshitij Chapter 6 यह दंतुरित मुसकान, फसल

Gujarat Board GSEB Std 10 Hindi Textbook Solutions Kshitij Chapter 6 यह दंतुरित मुसकान, फसल Textbook Exercise Important Questions and Answers, Notes Pdf.

GSEB Std 10 Hindi Textbook Solutions Kshitij Chapter 6 यह दंतुरित मुसकान, फसल

GSEB Class 10 Hindi Solutions यह दंतुरित मुसकान, फसल Textbook Questions and Answers

प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न 1.
‘वह दंतुरित मुसकान’ कविता के आधार पर शिशु की मुसकान के प्रभाव का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
शिशु की दंतुरित मुसकान को देख कर कवि के उदासीन, गंभीर चेहरे पर प्रसन्नता दौड़ जाती है। कवि को लगता है कि यह मुसकान मृतक समान व्यक्ति को भी सजीव बना सकती है। शिशु के स्पर्श से पाषाण हृदयी व्यक्ति भी पिघलकर स्नेह से प्लावित हो सकता है। शिशु का स्पर्श पाकर बाँस और बबूल जैसे शुष्क और कंटीली वनस्पति से भी शेफालिका जैसे फूल झरने लगते है।

प्रश्न 2.
शिशु और बड़े व्यक्ति की मुसकान में क्या अंतर है?
उत्तर :
शिशु की मुसकान स्वाभाविक, सहज और निश्छल होती है, अपनापन, मधुरता होती है। वह स्नेहसिक्त होती है। इसके विपरीत बड़े व्यक्ति की मुसकान में कृत्रिमता होती है। उसमें स्वार्थ की गंध होती है। उसमें सहजता नहीं होती। अपनत्व का अभाव होता है। बड़ों की मुसकान रुचि, काल पर निर्भर करती है।

प्रश्न 3.
कवि ने बच्चे की मुसकान के सौंदर्य को किन-किन बिंबों के माध्यम से व्यक्त किया है ?
उत्तर :
कवि ने बच्चे की मुसकान के सौंदर्य का चित्रण करने के लिए चार प्रमुख बिंबों का उपयोग किया है

  1. मुसकान देखकर उदासीन, मृतक समान व्यक्ति का प्रफुल्लित होना
  2. झोपड़ी में कमल खिलना
  3. पाषाण का पिघलकर जल बनना और
  4. बाँस और बबूल के पेड़ से भी फूलों को झरते हुए देखना।

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प्रश्न 4.
भाव स्पष्ट कीजिए :
क. छोड़कर तालाब मेरी झोपड़ी में खिल रहे जलजात ।
भावार्थः शिशु की दंतुरित मुसकान देखकर कवि भावुक हो जाता है। उसे लगता है कि खिला हुआ कमल का फूल तालाब छोड़कर उसकी झोपड़ी में आ गया है।

ख. छू गया तुमसे कि झरने लगे शेफालिका के फूल बांस या कि बबूल ?
भावार्थ: कवि कहता है बालक की दंतुरित मुसकान का स्पर्श बांस-बबूल जैसे शुष्क हृदयवाले व्यक्ति को भी प्रफुल्लित कर देता है और उसके मुंह पर भी मुसकान खिल उठती है।

Hindi Digest Std 10 GSEB यह दंतुरित मुसकान, फसल Important Questions and Answers

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

प्रश्न 1.
मुसकान के लिए कवि ने दंतुरित’ विशेषण का उपयोग क्यों किया होगा ?
उत्तर :
शिशु की उम्र लगभग छ: से आठ माह की ही होगी। उसके मुंह में दो-चार छोटे-छोटे दाँत (दंतुली) निकल आए होंगे और जब शिशु मुसकुराता होगा तब वे दाँत दिखाई दे जाते होंगे, संभवतः इसी कारण कवि ने मुसकान को दंतुरित कहा है।

प्रश्न 2.
शिशु की मुसकान देखकर कवि को क्या लगता है?
उत्तर :
कवि के अनुसार शिशु की दंतुरित मुसकान मृतक समान पुरुष के हृदय में भी प्राणों का संचार कर.प्राणवान बना देगी।

प्रश्न 3.
बच्चे का धूल-धूसरित शरीर कवि को कैसा लगता है ?
उत्तर :
कवि को बच्चे का धूल-धूसरित शरीर ऐसा लगता है मानो कमल है जो सरोवर को छोड़कर झोपड़ी में खिला है।

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प्रश्न 4.
शिशु के स्पर्श से प्राकृतिक वस्तुओं में क्या-क्या परिवर्तन महसूस होता है ?
उत्तर :
कवि को लगता है कि शिशु के कोमल शरीर का स्पर्श पाकर कठोर पत्थर भी पिघलकर जल बन गया होगा। बास जैसे शुष्क तथा बबूल जैसे कटीले पेड़ों में भी शिशु के स्पर्श से शेफालिका के फूल झरने लगते हैं।

प्रश्न 5.
कवि ने शिशु और उसकी मां का धन्य क्यों कहा है ?
उत्तर :
कवि शिशु को देखकर, उसकी दंतुरित मुसकान देखकर अत्यधिक खुश है और अपनी इस खुशी का कारण शिशु को बताते हुए कहता है कि यदि तुम्हारी माँ न होती तो तुम्हारा अस्तित्व न होता । न तो तुम मेरी खुशी का कारण बनते । इसलिए कवि ने शिशु और मां दोनों को धन्य कहा है।

प्रश्न 6.
कवि ने शिशु से स्वयं को ‘इतर’ तथा ‘अन्य’ क्यों कहा है ?
उत्तर :
कवि ने शिशु से स्वयं को ‘इतर’ तथा ‘अन्य’ इसलिए कहा है कि प्रवासी होने के कारण वह पिता के दायित्व का निर्वाह नहीं कर सका है, ऐसी स्थिति शिशु पिता के स्नेह से वंचित रहा। मानो प्रायश्चित स्वरूप कवि अपने आपको ‘इतर’ तथा ‘अन्य’ कह रहा है।

प्रश्न 7.
कवि शिशु से आंख फेर लेने की अनुमति क्यों मांगता है?
उत्तर :
शिशु कवि की ओर अपलक ताक रहा था। कवि को लगता है कि शिशु ताकते ताकते थक गया है। उसे पहचानने का प्रयास करके थक गया है। कवि को लगता है कि वह यदि अपनी आंखें घुमा लेगा तो शिशु का ताकना रुक जाएगा, उसके आँखों की थकान दूर हो जाएगी। अतः शिशु से स्वयं की आँखें फेर लेने की अनुमति मांगता हुआ लगता है।

प्रश्न 8.
कवि ने अपने आपको चिर प्रवासी क्यों कहा है?
उत्तर :
कवि स्वभाव से घुमकड़ है और लगातार प्रवास में रहता है, यदा-कदा घर आता है। घर भी अधिक दिनों तक टिक नहीं पाता, इस कारण कवि
ने स्वयं को चिर प्रवासी कहा है।

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प्रश्न 9.
किसकी उंगलिया शिशु को मधुपर्क कराती रही हैं और क्यों ?
उत्तर :
मां की उंगलिया शिशु को मधुपर्क कराती रही हैं क्योंकि पिता तो सदैव प्रवास में ही रहता था।

प्रश्न 10.
कवि ने स्वयं को अतिथि क्यों कहा है?
उत्तर :
निरंतर प्रवास में होने से कवि कभी-कभी कुछ दिन के लिए घर आता है। शिशु से वह पहली बार मिल रहा है। उसके आने की कोई तिथि तय नहीं है, इसलिए वह अपने आपको अतिथि कह रहा है।

प्रश्न 11.
कवि को शिशु की मुसकान कब और अधिक सुंदर लगती है ?
उत्तर :
शिशु प्रवासी पिता (कवि) को कुछ पहचाने लगा है, इसलिए वह बीच-बीच में कवि को तिरछी दृष्टि से ताक लेता है। जब कवि से उसकी आँख मिलती है तब शिशु अपने नन्हें दांतों से मुसकुरा देता है। तब वह दंतुरित मुस्कान कवि को और अधिक सुंदर लगती है।

प्रश्न 12.
कवि ने फसल को नदियों के जल का जादु क्यों कहा है?
उत्तर :
नदियों के जल से सिंचित होकर ही फसल उगती है, बढ़ती है और तैयार होती है। जल के अभाव में फसल अस्तित्व में ही नहीं आ सकती। जल पाकर फसल का तैयार होना किसी जादू से, चमत्कार से कम नहीं है।

प्रश्न 13.
‘हार्थों के स्पर्श’ से कवि का क्या आशय है?
उत्तर :
‘हाथों के स्पर्श’ की गरिमा से कवि का आशय उन लाखों-करोड़ों, किसानों, मजदूरों के शारीरिक श्रम से है जो खेती में जमीन की जुताई-बुबाई से लेकर निराई-सिंचाई, कटाई आदि में शामिल रहे हैं।

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प्रश्न 14.
फसल को मिट्टी का गुणधर्म क्यों कहा गया है?
उत्तर :
धूप और हवा, नदियों का जल और परिश्रम के बाद भी बिना मिट्टी के फसल की कल्पना तक नहीं की जा सकती। साथ ही हर फसल के लिए अलग तरह की मिट्टी की आवश्यकता होती है। इसलिए फसल को मिट्टी का गुणधर्म कहा गया है।

प्रश्न 15.
फसल को नदियों के जल का जादू क्यों कहा गया है?
उत्तर :
फसल की सिंचाई के लिए नदियों का जल विभिन्न रीतियों से प्रयोग किया जाता है, जिससे फसल विकसित होकर समय पर तैयार होती है, पकती है। बिना जल के फसल का होना लगभग असंभव हो जाता है। इसलिए फसलों को नदी का जादू कहा है।

प्रश्न 16.
फसल के लिए हवा तथा सूर्य-किरणों का महत्त्व समझाइए।
उत्तर :
बीज के अंकुरण के उचित ताप तथा हवा (श्वसन के लिए) भी जरूरी है। फसल की वृद्धि में वनस्पति द्वारा तैयार किए गए कार्बोहाइड्रेट सहायक होते हैं। बिना हवा के यह संभव नहीं हो सकता। ताप उसे सूर्यकिरणों से ही मिलता है। इस तरह फसल के पकने में भी हवा तथा सूर्यप्रकाश की महत्त्वपूर्ण भूमिका है।

प्रश्न 17.
‘हाथों के स्पर्श की गरिमा’ का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
हालांकि फसल के उत्पादन के लिए मिट्टी, जल, ताप, वायु और बीज जरूरी हैं फिर भी वह मनुष्य के हार्थों के परिश्रम के बिना संभव नहीं है। तमाम यंत्रों, सुविधाओं का विनियोग श्रमिकों किसानों के द्वारा ही होता है। जिनके बिना फसल का होना नामुमकिन है। उसके इसी श्रम को ‘हाथों के स्पर्श की गरिमा’ कहा है।

प्रश्न 18.
फसल कविता का प्रतिपाद्य संक्षेप में लिखिए।
उत्तर :
कवि ने फसल के तैयार होने में हवा, पानी, ताप जैसे प्राकृतिक संसाधनों तथा किसान की मेहनत को कारणभूत माना है। यानी फसल किसान के श्रम तथा प्राकृतिक संसाधनों के विनियोग का परिणाम है। मिट्टी की अलग-अलग तासीर, जलवायु (हवा-ताप-पानी) की भिन्नता और कृषकश्रमिक के हाथों का श्रम ही फसल के रूप में हमें मिलता है। कविता में प्राकृतिक संसाधनों के साथ ही कृषक के श्रम के महत्त्व को भी प्रतिपादित किया गया है।

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प्रश्न 19.
फसल कविता में कवि का क्या संदेश है ?
उत्तर :
फसल कविता में कवि ने यह बताया है कि फसल प्राकृतिक संसाधनों तथा कृषक के श्रम के सुविचारित संयुक्त प्रयास की ही देन है। इनमें से किसी भी एक के अभाव में उत्पादन संभव नहीं है। सभी की अपनी-अपनी उपादेयता है। हमें उनमें से किसी की भी अनदेखी न करके उनके संरक्षण का प्रयास करना चाहिए।

यह दंतुरित मुसकान, फसल Summary in Hindi

कवि-परिचय :

नागार्जुन का मूल नाम वैद्यनाथ मिश्र था। उनका जन्म बिहार के दरभंगा जिले के सतलखा गाँव में सन् 1911 में हुआ। उनकी आरंभिक शिक्षा संस्कृत पाठशाला में हुई, फिर अध्ययन के लिए काशी और कोलकाता गए। 1936 में वे श्रीलंका गए और वहीं पर बौद्ध धर्म में दीक्षित हुए। दो वर्ष के प्रवास के बाद वे भारत लौटे । घुमकड़ और अक्खड़ स्वभाव के नागार्जुन ने अनेक बार संपूर्ण भारत की यात्रा की । उनका देहांत सन् 1998 में दिल्ली में हुआ।

राजनैतिक सक्रियता के कारण उन्होंने किसान आंदोलन, संपूर्ण क्रांति जैसे आंदोलनों में भाग लिया, अनेक बार जेल गए। हिंदी तथा मैथिली में समान रूप से लिखनेवाले नागार्जुन ने बांग्ला तथा संस्कृत में भी कविताएँ लिखी । मातृभाषा मैथिली में वे ‘यात्री’ नाम से प्रतिष्ठित है।

लोकजीवन से नागार्जुन का गहरा सरोकार था। वे अपने समय की समाज विरोधी शक्तियों, समाज की पतनशील स्थितियों, राजनीति स्वार्थ – भ्रष्टाचार तथा शोषितो-बंचितों के प्रति विशेष रूप से सजग थे। उनकी कविता की भाषा ठेठ बोलचाल से लेकर संस्कृत तत्सम पदावली युक्त है। उनकी भाषा विषयानुरूप है। समसामयिक बोध के साथ गहराई से जुड़े नागार्जुन लोक तथा भद्र समाज दोनों में समानरूप से लोकप्रिय रहे। उनकी कविताओं में व्यंग्य का स्वर मुखर है।

इसी कारण उनकी आंदोलन-धर्मी कविताएं पर्याप्त लोकप्रिय हुई। छंदबद्ध तथा छंदमुक्त दोनों तरह की कविताएँ नागार्जुन ने लिखी हैं। । हिन्दी साहित्य में कविता तथा उपन्यास के क्षेत्र में उनका विशिष्ट योगदान है। उनकी प्रमुख काव्य कृतियाँ हैं – भस्माकर (खंडकाव्य), युगधारा, सतरंगे पंखोंवाली, प्यासी पथराई आखें, तुमने कहा था, हजार-हजार बाहोंवाली, पुरानी जूतियों का कोरस, आखिर ऐसा क्या कह दिया मैंने तथा मैं मिलटरी का बूढा घोडा इत्यादि ।

बलचनमा, रतौनाथ की चाची, वरुण के बेट, बाबा बटेसरनाथ तथा दुःखमोचन इनके उपन्यास है। पत्रहीन नग्न गाछ (मैथिली) के लिए इन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला था। हिंदी अकादमी, दिल्ली का ‘शिखर सम्मान’, उत्तर प्रदेश का भारत-भारती पुरस्कार तथा | बिहार का राजेन्द्र पुरस्कार भी उल्लेखनीय हैं। इनका समग्र साहित्य नागार्जुन रचनावली (सात खंड़ों में) शीर्षक से प्रकाशित है।

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कविता का सार (भाव)

यह दंतुरित मुसकान :

कवि ने शिशु की मुसकान के प्रभाव का वर्णन करते हुए कहा है कि वह मुसकान मृतक को भी जिंदा कर देगी। तुम्हारा धूलधूसरित शरीर ऐसा लगता है मानो कीचड़ से निकलकर कमल झोंपड़ी में खिल गया, कठोर पत्थर तुम्हारे स्पर्श से पिघलकर जल बन गया है। तुम्हारे स्पर्श से बास या बबूल के पेड़ से भी शेफालिका के फूल झड़ने लगते हैं।

कवि शिशु के प्रति आभार व्यक्त करता है तथा माता को धन्य कहता है। स्वयं को प्रवासी होने के कारण अपरिचित, इतर तथा अन्य कहता है। शिशु की कनखियों से देखने का प्रयास तथा आँख मिलने पर मुस्कुरा उठना मोहक लगता है, जिससे कवि (पिता) के हृदय में वात्सल्य उमड़ पड़ता है।

तुम्हारी यह दंतुरित मुसकान
मृतक में भी डाल देगी जान
धूल-धूसरित तुम्हारे ये गात….
छोड़कर तालाब मेरी झोंपड़ी मे खिल रहे जलजात
परस पाकर तुम्हारा ही प्राण
पिघलकर जल बन गया होगा कठिन पाषाण
छू गया तुमसे कि झरने लग पड़े शेफालिका के फूल
बास थाकि बबूल ?

भावार्थ:

शिशु की दंतुरित मुस्कान से कवि इतना अधिक प्रभावित होता है कि उसे वह मृतक में भी जान डाल देनेवाली लगती है यानी सबको खुश कर देगी। शिशु का धूल-धूसरित शरीर कवि को ऐसा लगता है जैसे कोई कमल सरोवर से निकलकर झोपड़ी में खिला हो । अपनी प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कवि कहता है कि निश्चय ही तुम्हारे स्पर्श से पिघल कठोर पाषाण जल बना गया होगा। दयाहीन हृदय भी तुम्हारे स्पर्श से पिघल जाएगा। तुम्हारे स्पर्श में जो कुछ भी आएगा वह चाहे बबूल हो या बाँस उससे भी कोमल फूल झरने लगेंगे यानी कितना भी नीरस व्यक्ति भी तुम्हारी मुसकान देखेगा तो उसके मुंह
से कोमल शब्दों के फूल झरने लगेंगे।

तुम मुझे पाए नहीं पहचान?
देखते ही रहोगे अनिमेष!
थक गए हो?
आँख लूँ मैं फेर?
क्या हुआ यदि हो सके परिचित न पहली बार?
यदि तुम्हारी माँ न माध्यम बनी होती आज
मैं न सकता देख,
मैं न पाता जान
तुम्हारी यह दंतुरित मुसकान
धन्य तुम, माँ भी तुम्हारी धन्य !

भावार्थ :

शिशु की दंतुरित मुसकान पर मुग्ध होकर कवि उसकी जनेता के प्रति भी आभार व्यक्त करता है। तुम जो अपलक दृष्टि से मुझे पहचानने का प्रयास कर रहे हो। इस प्रयास में तुम थक गए लगते हो, अत: मैं अपनी दृष्टि उधर से हटा लेता हूँ। कोई बात नहीं जो तुम पहली बार में पहचान न पाए। तुम्हारी माँ यदि माध्यम न बनती तो मैं न तो तुम्हारी मुसकान देख पाता न ही उसकी मधुरता का अनुभव कर पाता । तुम और तुम्हारी जननी दोनों दोनों धन्य हो, पर मैं तो तुम्हारे लिए पराया हूँ, अन्य हूँ, इतर हूँ।

चिर प्रवासी मैं इतर, मैं अन्य !
इस अतिथि से प्रिय तुम्हारा क्या रहा संपर्क
उँगलियाँ माँ की कराती रही हैं मधुपर्क
देखते तुम इधर कनखी मार
और होती जब कि आखें चार
तब तुम्हारी दंतुरित मुसकान
मुझे लगती बड़ी ही छविमान !

भावार्थ :

कवि शिशु से कहता है कि मैं तो चिर प्रवासी हूँ अत: तुम्हारे लिए तो अतिथि ही हूँ। मेरा तुमसे कोई संपर्क नहीं है। तुम्हारी माँ ही अपनी ऊंगलियों से तुम्हें शहद आदि चटाती रही, अत: तुम उसे ही पहचानते हो। जब तुम मेरी तरफ कनखियों से देखते हो और मुझसे तुम्हारी आखे मिलती हैं, तब तुम्हारी दंतुरित मुसकान मुझे बहुत भली लगती है, सुंदर लगती है।

‘फसल’ कविता का सार (भाव):

‘फसल’ कविता में कवि ने ‘फसल क्या है ?’ प्रश्न का उत्तर देते हुए फसल का परिचय दिया है। अनेकों नदियों के जल, करोड़ों हाथों की मेहनत, तरह-तरह की मिट्टी का गुणधर्म, सूर्य किरणों का रूपांतर तथा हवा की थिरकन का संकोच है। अर्थात् फसल जल, मिट्टी, हवा, ताप तथा श्रम के संयोजन का सुखद परिणाम है।

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शब्दार्थ-टिप्पण

  • जादू – चमत्कारिक प्रभाव
  • गरिमा – गौरव, महत्त्व
  • संदली – चंदनी, चंदन के रंग – गंधवाली
  • रूपांतर – परिवर्तन
  • थिरकन – लहलहाना

एक के नहीं,
दो के नहीं,
ढेर सारी नदियों के पानी का जादू :
एक की नहीं,
दो की नहीं,
लाख-लाख कोटि-कोटि हाथों के स्पर्श की गरिमा :
एक की नहीं,
दो की नहीं,
हजार-हजार खेतों की मिट्टी का गुणधर्म :
फसल क्या है?

भावार्थ :

कवि कह रहा है कि फसल ढेर सारी नदियों के जल के चमत्कारिक प्रभाव, लाखों-करोड़ों लोगों के हाथों के श्रम की गरिमा तथा हजारों-हजार खेतों की मिट्टी का गुणधर्म है। अर्थात् फसल नदियों के जल, खेतों की मिट्टी तथा किसानों के हाथों की महेनत का नतीजा है। इनके सम्मिलित संयोजन का प्रतिफल है – फसल।

फसल क्या है?
और तो कुछ नहीं है वह
नदियों के पानी का जादू है वह
हाथों के स्पर्श की महिमा है
भूरी-काली-संदली मिट्टी का गुण धर्म है,
रूपांतर है सूरज की किरणों का
सिमटा हुआ संकोच है हवा की थिरकन का!

भावार्थ :

कवि कहता है कि फसल का तैयार होना खेतों की मिट्टी के गुणधर्म, नदियों के पानी, किसान-मजदूरों के श्रम, सूर्य किरणों के ताप तथा हवा की थिरकन का योग हैं। मिट्टी के कणों में विद्यमान काली, भूरी, संदली मिट्टी का गुणधर्म फसल में आता है। सूर्यप्रकाश की ऊर्जा तथा हवा का वनस्पति द्वारा एक विशिष्ट रूपांतरण है – फसल ।

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शब्दार्थ-टिप्पण :

  • दंतरित – शिशु के नए-नए निकले दूध के दाँत
  • मृतक मुरदा – मरा हुआ
  • जान – प्राण धूलि धूल (मिट्टी के रजकण)
  • धूसर – सना हुआ
  • जलजात – कमल
  • परस – स्पर्श, छूना
  • पाषाण – पत्थर
  • अनिमेष – अपलक, बिना पलक झपकाए
  • संपर्क – संबंध, साथ
  • मधुपर्क – पंचामृत-दूध-दही-घी-शहद और गंगाजल को मिलाकर बनाया गया पेय
  • कनखी मार – तिरछी नजर से देखना
  • आखें चार – (आँखे चार होना) आंखे मिलना
  • छविमान – सुंदर
  • प्रवासी – पात्री
  • शेफालिका – नीलसिंधुवार, निर्गुडी (पौधा)

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