GSEB Class 9 Hindi Vyakaran अलंकार (1st Language)

Gujarat Board GSEB Solutions Class 9 Hindi Vyakaran अलंकार (1st Language) Questions and Answers, Notes Pdf.

GSEB Std 9 Hindi Vyakaran अलंकार (1st Language)

अलंकार का सामान्य अर्थ है – आभूषण या गहना। जिस प्रकार नारी की शोभा आभूषणों से बढ़ती है ठीक उसी प्रकार काव्य में प्रयुक्त शब्द और अर्थ की शोभा उनके अलंकारों से बढ़ती है। काव्य के शब्दों, अर्थों की शोभा बढ़ानेवाले धर्मों को अलंकार कहते हैं। अलंकार के दो प्रकार हैं –

  1. शब्दालंकार
  2. अर्थालंकार

GSEB Class 9 Hindi Vyakaran अलंकार (1st Language)

1. शब्दालंकार :

जब काव्य में शब्दों के कारण चमत्कार या सौन्दर्य उत्पन्न हो तथा उन्हें अपने स्थान से हटा देने पर सौन्दर्य नष्ट हो जाये तो उसे शब्दालंकार कहा जाता है। शब्दालंकार के कई प्रकार हैं; जैसे – अनुप्रास, यमक, श्लेष आदि।

(1) अनुप्रास :
वर्णों की आवृति को अनुप्रास अलंकार कहा जाता है। आवृति अर्थात् एक ही वर्ण का एक से अधिक बार आना ‘कठिन कलाह आई है करत करत अभ्यास’ में ‘क’ वर्ण की आवृति से अनुप्रास अलंकार है।

(2) यमक अलंकार :
जब काव्य में एक ही शब्द एक से अधिक बार आए लेकिन उनके अर्थ अलग-अलग हों तो वहाँ यमक अलंकार होता है। जैसे –

कनक-कनक ते सौगुनी, मादकता अधिकाय।
या पाये बौराय जग, वा खाये बौराय।।

यहाँ कनक शब्द दो बार आया है। पहले कनक का अर्थ सोना तथा दूसरे कनक का अर्थ धतूरा है।

(3) श्लेष अलंकार :
श्लेष अर्थात् चिपका हुआ। जहाँ एक शब्द का एक से अधिक अर्थ प्राप्त हो वहाँ श्लेष अलंकार होता है, जैसे –

चिरजीवौ जोरी जुरै, क्यों न सनेह गंभीर।
को घटि ये वृषभानुजा, वे हलधर के वीर।।

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यहाँ वृषभानुजा तथा हलधर शब्दों के एक से अधिक अर्थ हैं। वृषभानु + जा – वृषभानु की पुत्री राधा, वृषभ की बहन गाय। हलधर के वीर – बलदेव के भाई कृष्ण (वृषभ + अनुजा) बैल के भाई।

(4) वक्रोक्ति अलंकार :
वक्र + उक्ति अर्थात् टेढ़ा कथन। जहाँ वक्ता के कथन का भिन्न अर्थ लिया जाए वहाँ वक्रोक्ति अलंकार होता है। उदाहरण :

भूषन भारि सँभारि है, क्यों इहिं तन सुकुमार।
सूधे पाइ न धर परै, सोभा ही कै भार।।

शोभा के भार के मारे पैर सीधे नहीं पड़ रहे हों तो आभूषणों का बोझ कैसे संभलेगा। (काकु वक्रोक्ति)

2. अर्थालंकार :

जहाँ अर्थ के कारण काव्य में चमत्कार पैदा हो, वहाँ अर्थालंकार होता है। अर्थालंकार के कुछ प्रमुख प्रकार इस प्रकार हैं –

उपमा अलंकार :
उपमा का अर्थ है – तुलना। जहाँ समान गुण, धर्म प्रभाव के आधार पर उपमेय से उपमान की या प्रस्तुत से अप्रस्तुत की तुलना की जाए वहाँ उपमा अलंकार होता है। उपमा अलंकार के चार तत्त्व हैं – उपमेय, उपमान, साधारण धर्म और वाचक शब्द।

उपमेय :
जो वस्तु उपमा या तुलना के योग्य हो वह उपमेय है। कवि के लिए उपमेय का वर्णन सबसे पहले अपेक्षित होता है।। इसलिए इसे प्रस्तुत भी कहा जाता है। जैसे – ‘पीपर पान सरिस मन डोला।’ इसमें ‘मन’ उपमेय है।

उपमान :
जिस वस्तु के साथ उपमेय की तुलना की जाए, उसे उपमान कहते हैं। कवि के लिए उपमान उपमेय के बाद अपेक्षित होता है, इसीलिए उसे अप्रस्तुत कहा जाता है। उपर्युक्त उदाहरण में ‘पीपर पान’ उपमान है, क्योंकि मन (उपमेय) से उसकी तुलना की गई है।

साधारण धर्म :
उपमेय और उपमान में स्थित समान गुणधर्म को ‘साधारण धर्म’ कहा जाता है। यहाँ डोलना (चंचलता) साधारण धर्म है।

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वाचक शब्द :
जिस विशेष शब्द से उपमेय और उपमान में स्थित समान गुण-धर्म को प्रकट किया जाता है उसे वाचक शब्द कहते है। यहाँ सरिस (जैसा) वाचक शब्द है। विशेषः तुल्य, सम, सा, से, सी, जैसा, ज्यों ये उपमा के वाचक शब्द हैं। जब उपमा में ये चारों तत्त्व स्थित होते हैं तब ‘पूर्णोपमा अलंकार’ और जब उनमें से एक या एकाधिक कम होता है तब वह ‘लुप्तोतमा अलंकार’ कहा जाता है। प्राचीन और आधुनिक सभी कवियों का यह बहुत प्रिय अलंकार है। जैसे, ‘पानी केरा बुदबुदा अस मानस की जात।’ इसमें साधारण धर्म (नश्वरता) का लोप होने से लुप्तोतमा है।

(2) रूपक अलंकार :
रूपक का अर्थ है – आरोपित करना। जहाँ उपमेय और उपमान भिन्न हों, पर समान गुणधर्म के कारण उनके बीच किसी प्रकार का भेद न किया जाए अर्थात् जहाँ उपमेय पर उपमान को बिना किसी भेदभाव के आरोपित किया जाए वहाँ ‘रूपक’ अलंकार होता है।।

उदाहरण – मैया मैं तो चन्द्र खिलौना लैहों। (चंद्र रूपी खिलौना)

(3) उत्प्रेक्षा अलंकार :
जहाँ समानता के कारण उपमेय में उपमान की संभावना या कल्पना कर ली जाए वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। मनु, मानहु, मानो, जनु, जानहु, जानो ऐसे, जैसे आदि इस अलंकार के वाचक शब्द हैं।

उदाहरण –
उदित कुमुदिनीनाथ हुए प्राची में ऐसे।
सुधा कलश रत्नाकर से उठता हो जैसे।।

यहाँ कुमुदिनीनाथ (चन्द्रमा) प्रस्तुत की अप्रस्तुत (सुधा-कलश) में उत्प्रेक्षा की गई है।

(4) विभावना अलंकार :
जहाँ कारण के बिना ही कार्य होने का वर्णन होता है, वहाँ विभावना अलंकार होता है।

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उदाहरण –
निन्दक नियरे राख्रिए, आँगन कुटी छवाय।
बिन पानी साबण बिना, निर्मल करे सुभाय।।

यहाँ पानी और साबुन के बिना ही कार्य सम्पन्न हो रहा है।

(5) असंगति अलंकार :
कारण और कार्य में संगति न होने पर असंगति अलंकार होता है। उदाहरण – हृदय धाव मेरे वीर रघुवीरै।।

(6) अतिशयोक्ति :
जहाँ किसी बात को अत्यधिक बढ़ा-चढ़ाकर कहा जाए वहाँ अतिशयोक्ति अलंकार होता है।

उदाहरण –
हनुमान की पूँछ में, लगन न पाई आग।
लंका सिगरी जल गई, गए निशाचर भाग।।

यहाँ हनुमान की पूँछ में आग लगने से पूर्व ही लंका का जल जाना बताया गया है, इसलिए यहाँ अतिशयोक्ति अलंकार है।

अन्योक्ति :
जब काव्य में किसी अप्रस्तुत (अन्य) के बहाने दूसरे को कुछ कहा जाए, जिससे चमत्कार या सौंदर्य उत्पन्न हो, वहाँ अन्योक्ति नामक अलंकार होता है;

जैसे –
माली आवत देखकर, कलयिन करी पुकारि।
फूली-फूली चुन लिए, काल्हि हमारी बारि।।

यहाँ माली, कलियों और फूल के बहाने काल, युवा पुरुषों और वृद्धों के बारे में कहा गया है।

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(8) मानवीकरण :
जब प्रकृति पर मानवीय क्रिया कलापों का आरोपण किया जाता है, तब वहाँ मानवीकरण अलंकार होता है; जैसे –

सिंधु सेज पर धरा वधू अब, तनिक सकुचती बैठी-सी।
प्रलय निशा की हलचल स्मृति में, मान किए-सी ऐंठी-सी।

महा प्रलय के बाद पृथ्वी का समुद्र की सतह से ऊपर आने को सेज पर बैठी मानिनी बहू बतलाया गया है। भारतीय काव्यशास्त्र में इसका समावेश रूपक में था। यह अंग्रेजी के अलंकार Personification का हिन्दी रूप है।

विशेष – गुजरात राज्य के हाईस्कूल के पाठ्यक्रम में इतने अलंकार निर्धारित हैं। इनके अतिरिक्त कुछ प्रमुख अलंकार नीचे दिये गए हैं।

उल्लेख अलंकार :
जब एक व्यक्ति या वस्तु का अनेक प्रकार से वर्णन किया जाता है, उसे उल्लेख अलंकार कहते हैं।

उदा.
तू रूप है पवन में, सौंदर्य है सुमन में।
तू प्राण है पवन में, विस्तार है गगन में।।

दृष्टांत अलंकार – जहाँ उदाहरण देकर किसी कही हुई वस्तु का निश्चय कराया जाता हैं, वहाँ दृष्टांत अलंकार होता है।

उदा.
जो रहीम उत्तम प्रकृति का करि सकत कुसंग।
चंदन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग।।

भ्रांतिमान अलंकार : जहाँ सादृश्य के आधार पर किसी वस्तु को कुछ और समझकर उसका चमत्कारपूर्ण वर्णन किया जाय, वहाँ भ्रांतिमान अलंकार होता है।

उदाहरण :
नाक का मोती अधर की कांति से,
बीज दाडिम का समझकर भ्रांति से,
देखकर उनको हुआ शुक मौन है,
सोचता है – अन्य शुक यह कौन है ?

संदेह अलंकार :
जब प्रस्तुत वस्तु में अप्रस्तुत वस्तु का संकेत हो, तो उसे संदेह अलंकार कहते हैं।

उदाहरण :
सारी बीच नारी है कि नारी बीच सारी है।
नारी ही की सारी है या सारी ही की नारी है।

विरोधाभास अलंकार :
जहाँ विरोध न होते हुए भी विरोध का आभास लगे वहाँ विरोधाभास अलंकार होता है।

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उदाहरण :
या अनुरानी चित्त की गति समुझे नहिं कोय।
ज्यों-ज्यों बूड़े श्यामरंग त्यों-त्यों उज्जव होय।।

9. कबीर – साखियाँ – पद

(1) मानसरोवर सुभर जल मानसरोवर – मनरूपी सरोवर – रूपक अलंकार
(2) मुक्ताफल मुक्ता चुगै यमक अलंकार
(3) हंसाकेलि कराहिं ‘क’ की आवृत्ति – अनुप्रास अलंकार
(4) हस्ति चढ़ियो ज्ञान के ज्ञान रूपी हाथी – रूपक अलंकार
(5) सोई संत सजान। ‘स’ की आवृत्ति – अनुप्रास अलंकार
(6) स्वान रूप संसार है। ‘स’ की आवृत्ति – अनुप्रास, स्वानरूपी संसार – रूपक
(7) ऊँचे कुल का जनमिया, करनी ऊँच न होइ।
सुबरन कलश सुरा भरा, साधू निंदत सोइ।।
दृष्टांत अलंकार
(8) ना काबे कैलास में अनुप्रास
(9) ना तो कौनो क्रिया करम में अनुप्रास
(10) सब स्वाँसों की स्वाँस में अनुप्रास
(11) संतो भाई भाई ज्ञान की आँधी रे। रूपक
(12) भ्रम की टाटी सबै उड़ानी रूपक
(13) मोह बलिंडा टूटा रूपक
(14) कूड़ कपट काया का निकस्या अनुप्रास
(15) हस्ति चढ़िए ज्ञान कौ, सहज दुलीचा डारि।
श्वान रुप संसार है, मूंकन दे झन मारि।।
हस्ति-श्वान के दृष्टान्त के कारण-दृष्टान्त अलंकार
रूपक

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10. ललद्यद – वाख

  1. करें देव भवसागर पार – भव (संसार) रूपी सागर – रूपक अलंकार
  2. पानी टपके कच्चे सकोरे, व्यर्थ प्रयास हो रहे मेरे कच्चे मिट्टी के सकोरे मैं जैसे टपका हुआ पानी व्यर्थ हो जाता है उसी तरह मेरे प्रयास भी व्यर्थ हो रहे हैं। – उपमा अलंकार
  3. सुषम-सेतु – सुषुम्ना रूपी सेतु – रूपक अलंकार, ‘स’ की आवृत्ति अनुप्रास

11. रसखान – सवैये

  1. गोकुल गाँव के ग्वारन – ‘ग’ की आवृत्ति – अनुप्रास अलंकार
  2. कालिंदी कूल कदंब की डारन – ‘क’ की आवृत्ति – अनुप्रास अलंकार
  3. कोटिक ये कलधौत के धाम – ‘क’ की आवृत्ति – अनुप्रास अलंकार
  4. ब्रज के बन बाग तड़ाग निहारौं – ‘ब’ की आवृत्ति – अनुप्रास अलंकार
  5. या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी
    मुरलीधर के अधारन (ओठों पर) धरी मुरली के (मैं) अधर पर न धरूँगी ‘अधरान’ – अधरों पर, अधरा न – अधर पर नहीं। ये दो अर्थ निकलने से श्लेष अलंकार
  6. काल्हि कोऊ कितनो समझै हैं – ‘क’ की आवृत्ति – अनुप्रास अलंकार।

12. माखनलाल चतुर्वेदी – कैदी और कोकिला

  1. हिमालय निराश कर चला – निर्जीव हिमालय पर सजीवता का आरोप – मानवीकरण
  2. वेदना बोझवाली-सी – बोझवाली जैसी वेदना – उपमालंकार
  3. मृदुल वैभव की रखवाली-सी (जैसी) – उपमालंकार
  4. मधुर विद्रोह-बीज – विद्रोहरूपी बीज – रूपक अलंकार
  5. काली लहर कल्पना काली तथा मेरी काल कोठरी काली – दोनों में ‘क’ की आवृत्ति – अनुप्रास अलंकार
  6. काले संकट-सागर – संकट रूपी सागर – रूपक अलंकार
  7. अपनी कृति से कहो और क्या कर दूं ? – ‘क’ की आवृत्ति – अनुप्रास अलंकार

13. सुमित्रानंदन पंत – ग्रामश्री

  1. चाँदनी की-सी उजली जाली – उपमा अलंकार
  2. हिल हरित रूधिर है रहा झलक – अनुप्रास अलंकार
  3. लो हरित धरा से झाँक रही
    नीलम की कलि, तीसी नीली !
    ‘नीली तीसी’ के झाँकने में – मानवीकरण अलंकार
  4. हँस रही सखियाँ मटर खड़ी, – मटर पर हँसने का आरोप – मानवीकरण अलंकार
  5. मखमली पेटियों-सी लटकी झिम्मियाँ – उपमा अलंकार
  6. फूले फिटते हैं फूल स्वयं
    उड़-उड़ वृत्तों से वृत्तों पर !
    फूल मानों वृत्तों से वृत्तों पर उड़ते फिर रहे हैं – उत्प्रेक्षा अलंकार
  7. स्वर्ग रजत मंजरियों-से (जैसे) – उपमा अलंकार
  8. जंगल में झरबेरी झूली – अनुप्रास अलंकार
  9. बालू के साँपों-से अंकित – साँपों जैसे – उपमा अलंकार
  10. अँगुली की कंघी से बगुले कलंगी संवारते हैं कोई – रूपक अलंकार
  11. हँसमुख हरियाली हिम-आतप – अनुप्रास अलंकार
  12. तारक स्वप्नों में – से खोए – मानवीकरण अलंकार
  13. मरकत डिब्बे-सा खुला ग्राम – उपमा अलंकार

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14. केदारनाथ अग्रवाल – चंद्र गहना से लौटती बेर

  1. यह हरा ठिगना चना,
    बाँधे मुरैठा शीश पर – मानवीकरण अलंकार
  2. नील फूले फूल को सिर पर चढ़ाकर – अनुप्रास अलंकार (फ, र की आवृत्ति)
  3. और सरसो की न पूछो
    हो गई सबसे सयानी,
    हाथ पीले कर लिए हैं। – मानवीकरण अलंकार
  4. प्रकृति का अनुराग-अंचल हिल रहा है – अनुराग रूपी अंचल – रूपक अलंकार
  5. एक चाँदी का बड़ा-सा गोल खंभा – उपमा अलंकार
  6. हैं कई पत्थर किनारे/पी रहे चुपचाप पानी – मानवीकरण अलंकार
  7. ध्यान – निद्रा त्यागता है – रूपक अलंकार
  8. काँटेदार कुरुप खड़े हैं – अनुप्रास अलंकार
  9. जहाँ जुगल जोड़ी रहती है – अनुप्रास अलंकार

15. सर्वेश्वर दयाल सक्सेना – मेघ आए

  1. मेघ आए बन-ठन के सँवर के – आगे-आगे नाचती-गाती बयार चली, – मानवीकरण अलंकार
  2. पाहुन ज्यों आए हों गाँव में शहर के – उत्प्रेक्षा अलंकार
  3. पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाए, – मानवीकरण अलंकार
  4. धूल भागी घाघरा उठाए – मानवीकरण अलंकार
  5. बांकी चितवन उठा, नदी ठिठकी, चूंघट सरके – मानवीकरण अलंकार
  6. बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर जुहार की – मानवीकरण अलंकार
  7. क्षितिज अटारी गहराई दामिनि दमकी – रुपक और अनुप्रास
  8. मिलन के अश्रु ढरके – मानवीकरण अलंकार

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16. चंद्रकांत देवताले – यमराज की दिशा

  1. मैं दक्षिण में दूर-दूर तक गया – अनुप्रास अलंकार

17. राजेश जोशी – बच्चे काम पर जा रहे हैं

  1. क्या काले पहाड़ के नीचे दब गए हैं सारे खिलौने – अनुप्रास अलंकार
  2. बच्चे बहुत छोटे-छोटे बच्चे – अनुप्रास अलंकार

अलंकारों के कुछ प्रचलित उदाहरण –
अनुप्रास अलंकार

  1. तहनि तनूजा तरु तमाल तरुवर बहु छाए (‘त’ की आवृत्ति)
  2. चारुचंद्र की चंचल किरणें, खेल रही हैं जल-थल में (च, ल की आवृत्ति)

यमक अलंकार

  1. माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर।
    कर का मनका डारि दे, मन का मनका फेर।
    (मनका – माला का दाना, मन का – हृदय का)
  2. जे तीन बेर खाती थीं वे तीन बेर खाती हैं।
    (तीन बेर – तीन बार, तीन बेर – बेर के तीन दाने)

श्लेष अलंकार

  1. चरन धरत चिंता करत फिर चितवत चहुँ ओर।
    सुबरन को ढूँढ़त फिरत, कवि व्यभिचारी, चोर।

सुबरन के तीन अर्थ हैं –

  1. कवि के लिए अच्छे शब्द (सुवर्ण)
  2. व्यभिचारी के लिए – सुंदर रूप-रंग (सुवर्ण)
  3. चोर के लिए – स्वर्ण (सोना) (सुवर्ण)

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(2) रहिम पानी राखिए, बिनु पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरे, मोती, मानुस, चून।।

(पानी – मोती के लिए अर्थ – चमक, मानुस (मनुष्य) के लिए अर्थ इज्जत, मान और चून (चूना) के लिए अर्थ पानी)

वक्रोक्ति अलंकार
(1) को तुम ? हैं घनश्याम हम, तो बरसो कित जाय।
(कृष्ण ने राधा से दरवाजा खोलने को कहा। राधा ने पूछा – ‘आप कौन ?’ कृष्ण ने उत्तर दिया – ‘मैं घनश्याम हूँ। (घनश्याम – कृष्ण) राधा ने घनश्याम का अर्थ घन-श्याम (काले बादल) लिया और कहा – ‘तो कहीं जाकर बरसो।’)

(2) मैं सुकुमारि नाथ बन जोगू।
तुम्हहिं उचित तप, मो कहँ भोग। (श्रीराम द्वारा सीताजी के वन जाने से रोकने के लिए यह कहा गया कि सीता आपका शरीर कोमल है। आपका वन में चलना उचित नहीं। तब सीताजी कहती हैं – ‘हाँ ! मैं सुकुमारी हूँ और आप वन जाने योग्य है !’ अर्थात् आप भी तो सुकुमार हैं, आप कहाँ वन जाने योग्य है ?)

उपमा अलंकार

  1. पीपर पात सरिस मन डोला (पीपल – उपमान, मन – उपमेय, सरिस (जैसा) वाचक शब्द तथा डोलना (हिलना) साधारण धर्म)
  2. हरिपद कोमल कमल से (हरिपद – उपमेय, कोमल – साधारण धर्म, से – वाचक शब्द, कमल – उपमान)

रूपक अलंकार

  1. मैया मैं तो चन्द्र-खिलौना लैहों। (चंद्र-खिलौना) – चंद्ररूपी खिलौना
  2. चरण-कमल बंदौं हरि राई। (चरण-कमल)

उत्प्रेक्षा अलंकार
(1) सोहत ओढ़े पीतपट, स्याम सलोने गात।
मनहुँ नीलमनि शैल पर, आतप पर्यो प्रभात।।
(कृष्ण का श्याम शरीर – नीलमणि पर्वत, पीताम्बर – प्रभात की धूप के रुप में कल्पित है।)

(2) हरिमुख मानो मधुर मयंक।
अतिशयोक्ति अलंकार

  1. देख लो साकेत नगरी है यही,
    स्वर्ग से मिलने गगन में जा रही। (साकेत की ऊँचाई का अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन)
  2. भूप सहस दस एक हि बारा, लगे उठावन टरत न टारा)
    (भूपों की संख्या का अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन)

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अन्योक्ति अलंकार

  1. जिन दिन देखे वे कुसुम, गई सुबीति बहार।
    अब अलि रही गुलाब में, अपत कँटीली डार।।
  2. स्वारथ सुकृत न श्रम वृपा, देख विहंग विचारि।
    बाज पराए पानि पर, तू पंछी जिन मारि।।

मानवीकरण अलंकार।

  1. अंबर पनघट में डुबो रही तारा-घट उषा नागरी।
  2. मेघमय आसमान से उतर रही
    संध्या सुंदरी
    परी-सी धीरे-धीरे।

स्वयं हल करें

1. निम्नलिखित काव्य पंक्तियों में कौन-से अलंकार हैं, दिए गए विकल्पों में से चुनकर उसका नाम लिखिए।

प्रश्न 1.
संसार की समरस्थली में धीरता धारण करो।
(क) उपमा
(ख) रूपक
(ग) अनुप्रास
(घ) मानवीकरण।
उत्तर :
(ग) अनुप्रास

प्रश्न 2.
तो पर वारौ उरबसी, सुनि राधिके सुजान।
तू मोहन के उर बसी, ह्वै उरबसी समान।
(क) यमक
(ख) उत्प्रेक्षा
(ग) उपमा
(घ) अनुप्रास
उत्तर :
(क) यमक

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प्रश्न 3.
वे न इहाँ नागर बड़े जिन आदर तौं आव।
फूलौ अनफूलौ भयो, गँवई गाँव गुलाब।।
(क) अन्योक्ति
(ख) संदेह
(ग) भ्रांतिमान
(घ) उपमा
उत्तर :
(क) अन्योक्ति

प्रश्न 4.
उषा सुनहले तीर बरसती, जय लक्ष्मी-सी उदित हुई।
(क) रूपक
(ख) उपमा
(ग) अतिशयोक्ति
(घ) मानवीकरण
उत्तर :
(ख) उपमा

प्रश्न 5.
पड़ी अचानक नदी अपार, घोड़ा कैसे उतरे पार ? राणा ने सोचा इस पार, तब तक चेतक था उस पार।
(क) रूपक
(ख) अतिशयोक्ति
(ग) उपमा
(घ) उत्प्रेक्षा
उत्तर :
(ख) अतिशयोक्ति

प्रश्न 6.
उदित उदयगिरि मंच पर रघुवर बाल-पतंग
(क) उपमा
(ख) उत्प्रेक्षा
(ग) रूपक
(घ) भ्रांतिमान
उत्तर :
(ग) रूपक

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प्रश्न 7.
वह दीपशिखा-सी शांत भाव में लीन।
(क) उपमा
(ख) उत्प्रेक्षा
(ग) भ्रांतिमान
(घ) रूपक
उत्तर :
(क) उपमा

प्रश्न 8.
लट लटकनि मनो मत्त मधुप गन मादक मधुहि पिये।
(क) अनुप्रास; उपमा
(ख) अनुप्रास, उत्प्रेक्षा
(ग) अनुप्रास, रूपक
(घ) अनुप्रास, संदेह
उत्तर :
(ख) अनुप्रास, उत्प्रेक्षा

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