GSEB Solutions Class 11 Sanskrit Chapter 5 भस्मावशेष मदनं चकार

Gujarat Board GSEB Solutions Class 11 Sanskrit Chapter 5 भस्मावशेष मदनं चकार Textbook Exercise Questions and Answers, Notes Pdf.

Gujarat Board Textbook Solutions Class 11 Sanskrit Chapter 5 भस्मावशेष मदनं चकार

GSEB Solutions Class 11 Sanskrit भस्मावशेष मदनं चकार Textbook Questions and Answers

भस्मावशेष मदनं चकार Exercise

1. अधोलिखितेभ्यः विकल्पेभ्यः समुचितम् उत्तरं चिनुत।

પ્રશ્ન 1.
क: देवः पुष्पधन्वा कथ्यते ?
(क) इन्द्रः
(ख) शङ्करः
(ग) विष्णुः
(घ) कामदेवः
उत्तर :
(घ) कामदेवः

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પ્રશ્ન 2.
भगवान् शङ्करः कीदृशः ?
(क) द्विनेत्रः
(ख) अयुग्मनेत्रः
(ग) बहुनेत्रः
(घ) सहस्राक्षः
उत्तर :
(ख) अयुग्मनेत्रः

પ્રશ્ન 3.
अम्बुराशि: इति शब्दस्य का पर्याय: ?
(क) समुद्रः
(ख) नभः
(ग) तपोवनम्
(घ) पर्वतः
उत्तर :
(क) समुद्रः

પ્રશ્ન 4.
प्रभो, क्रोधं संहर इति देवानां गिरः कुत्र चरन्ति ?
(क) स्वर्गे
(ख) समुद्रे
(ग) आकाशे
(घ) अरण्ये
उत्तर :
(ग) आकाशे

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2. संस्कृतभाषया उत्तरत।

પ્રશ્ન 1.
गौरी गिरिशाय किम् उपनिन्ये ?
उत्तर :
गौरी गिरिशाय पुष्करबीजमालाम् उपनिन्ये।

પ્રશ્ન 2.
पुष्पधन्वा किं नाम बाणं समधत्त ?
उत्तर :
पुष्पधन्वा सम्मोहनं नाम बाणं समधत्त।

પ્રશ્ન 3.
हर: कुत्र विलोचनानि व्यापारयामास ?
उत्तर :
हरः उमामु विलोचनानि व्यापारयामास।

પ્રશ્ન 4.
शैलसुता कीदृशैः अङ्गः भावं विवृण्वती अभवत् ?
उत्तर :
शैलसुता स्फुरद्बालकदम्बकल्पैः अङ्गः भावं विवृण्वती अभवत्।

પ્રશ્ન 5.
शङ्करस्य तृतीयात् अक्ष्णः सहसा किं निष्पपात ?
उत्तर :
शङ्करस्य तृतीयात् अक्ष्णः कृशानुः निष्पपात।

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પ્રશ્ન 6.
का मदनं भस्मावशेषं चकार ?
उत्तर :
शिव: मदनं भस्मावशेषं चकार।

3. Answer in mother-tongue:

Question 1.
What did Parvati offer Shiva who was practicing penance ? How?
उत्तर :
तपस्वी शिव को पार्वती ने अपने ताम्र-कान्ति-सदृश कर से सूर्य की किरणों से सूखे हुए मन्दाकिनी के कमल-गट्टों की माला अर्पण की।

Question 2.
What was the effect on Shiva of the Sammohan arrow shot at him by Kamdeva.
उत्तर :
कामदेव के बाण से भगवान शिव का धैर्य कुछ क्षण के लिए विचलित हो गया तथा उन्होंने पार्वती के बिम्ब-फल के समान कान्तिमान अधरोष्ठ से युक्त मुखमण्डल पर दृष्टि-निक्षेप किया।

Question 3.
Controlling his sensual agitation what did he concentrate on?
उत्तर :
इन्द्रियक्षोभ को वश करके शंकर ने स्वचित्त – विकार के कारण को देखने की इच्छा से दिशाओं के अन्त भाग में सर्वत्र देखा।

Question 4.
How was Kamdeva when Shankara saw him?
उत्तर :
शंकर ने मुट्ठी बाँधे हुए, झुके हुए – स्कन्ध प्रदेशवाले, मुडे हुए बाँए पैरवाले सुन्दर धनुष को चक्रवत् गोलाकार करनेवाले तथा प्रहार करने हेतु सन्नद्ध कामदेव को देखा।

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Question 5.
What did gods living in the sky start telling Shankara?
उत्तर :
भगवान शंकर के तृतीय नेत्र से अग्नि के उत्पन्न होते ही आकाश-मण्डल से देवताओं ने शंकर से कहा, ‘हे प्रभो, क्रोध को शान्त करो, शान्त करो।’

4. Explain with reference to context :

1. धनुष्यमोघं समधत्त बाणम्।
उत्तर :
सन्दर्भ : यह पंक्ति पाठ्यपुस्तक के भस्मावशेष मदनं चकार’ नामक पद्य-पाठ से ली गई है। पद्य-पाठ का अंश प्रसिद्ध पंचमहाकाव्यों में से कुमारसंभव – महाकाव्य से उद्धृत किया गया है। महाकवि कालिदास-कृत इस महाकाव्य में यहाँ मदन-दहन के प्रसंग का वर्णन किया गया है। भगवान शिव – एवं पार्वती का परिणय – प्रसंग इस महाकाव्य का मुख्य प्रतिपाद्य विषय है।

महाकाव्य के नायक-नायिका विश्व के माता-पिता भगवान शिव एवं पार्वती है। तारकासुर नामक दैत्य के त्रास से मुक्त होने के लिए अनिवार्य शिव-पार्वती के परिणय – के प्रसंग में ध्यानस्थ शिव का तप भंग करने के कारण शिव के द्वारा कामदेव को भस्म करने की घटना का यहाँ वर्णन किया गया है।

अनुवाद : धनुष पर अमोघ बाण चढ़ाया।

व्याख्या : कामदेव को दहन करने की घटना के प्रसंग में यहाँ वर्णन किया गया है कि शिव का ध्यान भंग कर तथा पार्वती के साथ विवाह करने का महत्त्वपूर्ण कार्य देवताओं ने कामदेव को दिया। देवों द्वारा प्रदत्त कार्य को पूर्ण करने हेतु कामदेव सन्नद्ध होते हैं।

कामदेव के सहायतार्थ वसंत ऋतु का आगमन होता है। तथा भगवान शिव की परिचर्या में संलग्न पार्वती जैसे ही भगवान शिव को कमलगट्टे की माला अर्पण करती है तथा भक्त-वत्सल शिव जैसे उसे ग्रहण करने लगते हैं ठीक उसी समय की प्रतीक्षा में रत कामदेव अपना सम्मोहन नामक अमोघ बाण धनुष पर चढ़ाते है।

सम्मोहन नामक बाण से आहत व्यक्ति मोहित हो जाता है। कामदेव यहाँ शिव के ध्यान को पार्वती की ओर मोहित करने हेतु संमोहन नामक शर का सन्धान करते हैं।

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2. व्यापारयामास विलोचनानि।।
उत्तर :
अनुवाद : शिव ने दृष्टि डाली।

सन्दर्भ : पूर्व प्रश्न में वर्णित सन्दर्भ का अवलोकन कीजिए।

व्याख्या : कामदेव के दहन करने की घटना का वर्णन करते हुए यहाँ यह वर्णन किया गया है कि देव-कार्य को पूर्ण करने हेतु .. तथा ताडकासुर के त्रास से मुक्त होने के उत्तरदायित्व का निर्वहन करते हुए कामदेव भगवान शिव पर अपना सम्मोहन नामक अमोघ बाण प्रत्यंचा पर चढ़ाते हैं।

कामदेव के द्वारा सम्मोहन नामक शर-संधान करने पर भगवान शिव का धैर्य कुछ क्षण के लिए विचलित हो गया। तथा उन्होंने बिम्ब-फल के समान रक्तिम अधरोष्ठवाले पार्वती के मुखमण्डल पर दृष्टि-निक्षेप किया।

उन्होंने पार्वती के मुख दृष्टि डाली। यहाँ कामदेव के द्वारा चढ़ाए गए बाण के फलस्वरूप शिव स्थिति का वर्णन किया गया है।

3. दिशामुपान्तेषु ससर्ज दृष्टिम्।।
उत्तर :
सन्दर्भ : प्रश्न संख्या 1 के अनुसार

अनुवाद : दिशाओं के अन्त भाग में देखा।

व्याख्या : देवकार्य को सम्पन्न करने हेतु जब भगवान शिव के ध्यान को पार्वती की ओर आकृष्ट करने हेतु कामदेव ने सम्मोहन नामक बाण को प्रत्यंचा पर चढ़ाया तब भगवान शिव का ध्यान किञ्चित क्षुब्ध हो गया। इन्द्रिय क्षोभ को बलपूर्वक नियन्त्रित करके अपने चित्त की विकृति के कारण को देखने की इच्छा से भगवान शिव ने दिशाओं के अन्त भाग में दृष्टि निक्षेप किया। अपने चित्त के विकार के कारण की दिदृक्षाः से भगवान शिव ने सर्वत्र देखा।

પ્રશ્ન 4.
भस्मावशेष मदनं चकार।
उत्तर :
सन्दर्भ : प्रश्न के अनुसार

अनुवाद : कामदेव को भस्मसात् कर दिया।

व्याख्या : ताडकासुर नामक दानव के त्रास से मुक्त होने के लिए आवश्यक शिव – पार्वती के परिणय के कार्य को सिद्ध करने हेतु शिव के ध्यान को पार्वती की ओर आकृष्ट करने का दायित्व देव-गणों ने कामदेव को दिया। सुरगण – प्रदत्त कार्य को पूर्ण करने हेतु कामदेव ने शिव पर संमोहन नामक शर का सन्धान किया। शिव ने बलपूर्वक स्वयं को कामदेव के बाण के वश से मुक्त कर चित्त-विकृति के कारण-रुप कामदेव पर दृष्टि डाली।

कामदेव को देखते ही भगवान शिव अत्यन्त क्रोधित हो गए तथा उनके तृतीय नेत्र से अग्नि की भयंकर ज्वालाएँ निकलने लगीं, एवं देवगण गगनमंडल से क्रोध को शान्त करने की प्रार्थना करने लगे। जब तक देव-गणों की वाणी नभमंडल में गूंजती तब तक तो भगवान शिव के तृतीय नेत्र की अग्नि-ज्वालाओं से कामदेव भस्मीभूत हो गए।

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5. Write a critical note on:

પ્રશ્ન 1.
Event of burning Madan i.e., Madandahan
उत्तर:
मदन-दहन का प्रसंग :
कालिदासकृत ‘कुमारसंभवम्’ महाकाव्य में भगवान शिव-पार्वती के परिणय-पूर्व का एक प्रसंग है काम-देव का दहन। ताडकासुर नामक दानव से मुक्ति हेतु ब्रह्माजी द्वारा यह उपाय दर्शाया गया कि शिव-पार्वती के पुत्र का सेनापति के रूप में ताडकासुर से युद्ध कर उसका वध किया जाए।

लेकिन इस कार्य के पूर्ण करने हेतु शिव एवं पार्वती विवाह अत्यंत आवश्यक था। ध्यानमग्न शिव का ध्यान भग्न करने का दुस्साहस किसी में नहीं था। यह कार्य करने का सामर्थ्य एकमात्र कामदेव में था। समस्त देवों ने शिव-पार्वती के पाणिग्रहण का दायित्व कामदेव को दिया। भगवान शिव के ध्यानभंग के परिणामस्वरूप शिव की क्रोधाग्नि से परिचित होते हुए भी देव-कार्य को पूर्ण करने हेतु कामदेव यह कार्य अपने हाथ में लेते हैं।

हिमालय पर ध्यानस्थ शिव की परिचर्या में लीन पार्वती शिव को कमलगट्टे की माला पहिनाती है। प्रियजन वत्सल भगवान शिव जैसे ही पार्वती के हाथ से यह माला स्वीकारने के लिए संज्ज होते है उसी क्षण की प्रतिक्षा कर रहे कामदेव अपने धनुष की प्रत्यंचा पर अमोघ संमोहन नामक बाण साधते हैं।

कामदेव के द्वारा प्रयुक्त बाण के प्रभाव से भगवान शिव का धैर्य कुछ क्षण के लिए विचलित हो गया। वे बिम्ब-फल के समान ओष्ठप्रान्त से युक्त पार्वती के मुखारविन्द पर मोहित हो कर उसका दर्शन करने लगे। उसी क्षण शिव इन्द्रिय क्षोभ के कारण को सर्वत्र देखने लगे। उस समय मुट्ठी बाँधे हुए, प्रहार करने को उद्यत कामदेव को भगवान शिव ने देख लिया। कामदेव को देखते ही शिवजी के क्रोध से उनका मुख देखने असह्य हो रहा था।

उनकी भौंहें वक्र हो चुकी थी। उनकी तपश्चर्या को भग्न करनेवाले कामदेव को देखते ही भगवान शिव के तृतीय नेत्र से अग्नि की ज्वालाएँ प्रकट होने लगी। गगन-मण्डल में देव-गणों की वाणी गूंजनी लगी ‘हे प्रभो’ क्रोध को शान्त करो – शान्त करो’ लेकिन देखते ही देखते भगवान शिव के तृतीय नेत्र से उद्भूत अग्नि ज्वालाओं ने कामदेव को भस्मसात् कर दिया।

इस प्रकार देव-गणों एवं कामदेव की पत्नी रति के विलाप एवं प्रार्थना पर भगवान शिव ने कामदेव पुनः जीवित कर प्राणियों के मन में जन्म लेने का वरदान दिया। इस प्रकार कामदेव का एक नाम अंग नहीं होने के कारण अनंग है तथा मन से उत्पन्न होने के कारण कामदेव को मनोज भी कहा जाता है।

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પ્રશ્ન 2.
Act of Kamdeva
उत्तर:
कामदेव का कार्य :
कामदेव अत्यंत दुष्कर कार्य करने के लिए तत्पर होते है। ताडकासुर दैत्य से मुक्ति पाने हेतु शिव-पुत्र का उसके साथ युद्ध कर उसका वध करना अनिवार्य है। अतः इस कार्य के लिए शिव एवं पार्वती का पाणिग्रहण अत्यन्त आवश्यक था। किन्तु ध्यानस्थ शिव के ध्यान को भंग करने का दुस्साहस कर पाना किसी के भी लिए संभव नहीं था। शिव की क्रोधाग्नि से सभी परिचित थे।

तथापि दैत्य के त्रास से मुक्ति के लिए देव-कार्य को पूर्ण करने हेतु काम-देव यह कार्य करने हेतु तत्पर होते हैं। कामदेव के पास संसार चक्र को गतिमान रखने हेतु पाँच बाण है – उन्मादन, तापन, शोषण, स्तंभन एवं संमोहन। भगवान शिव को पार्वती के प्रति आसक्त करने हेतु कामदेव अपने अमोघ संमोहन नामक शर का संधान करते हैं।

भगवान शिव का धैर्य कुछ क्षणों के लिए चलायमान हो जाता हैं किन्तु शीघ्र ही उसे नियन्त्रित कर चित्त-विकार के कारण रूप कामदेव को भस्मीभूत कर देते हैं। परंतु यदि कामदेव न हों तो संसार के प्राणियों की उत्पत्ति-स्थिति आदि का क्रम बाधित हो जाएगा।

अत: सृष्टि के इस क्रम की निरन्तरता के लिए शिव कामदेव को अंगरहित रहकर प्राणी-मात्र के मन में उत्पन्न होने का वरदान देकर पुनर्जीवित करते है। अतः कामदेव को मनोज तथा अनंग भी कहा जाता है। इस प्रकार कामदेव का कार्य सृष्टि-क्रम के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।

अत: शिव ने उन्हें पुनः जीवित किया।

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6. Write an analytical note on:

1. अयुग्मनेत्र :
अयुग्मनेत्र का अर्थ है शिव। यहाँ अयुग्म शब्द का अर्थ है विषम। एक, तीन आदि विषय संख्याएँ है तथा दो, चार, छः आदि युग्म अर्थात् सम संख्याएँ हैं। भगवान शिव के तीन नेत्र हैं। तीन विषम अर्थात् अयुग्म संख्या होने के कारण शिव को अयुग्म नेत्र कहा जाता है। अतः एव शिव को त्रिनयन – त्रिलोचन – त्रिनेत्र भी कहा जाता है।

2. पुष्पधन्वा :
पुष्प है धनुष जिसका उसे पुष्पधन्वा अर्थात् कामदेव कहा जाता है। कामदेव के पास पुष्प के पाँच बाण है। पुष्प को धनुष बनाकर कामदेव बाण छोड़ते हैं। कामदेव के पाँच बाण हैं – अरविन्द, अशोक, नवमल्लिका एवं नीलोत्पल। कामदेव इन पाँच पुष्पबाणों का प्रयोग करते हैं।

पुष्प के इन बाणों से आहत व्यक्ति का जीवन-यापन करना अत्यंत दुष्कर हो जाता है। साथ ही कामदेव के पाँच बाणों के रूप में उन्मादन, तापन, शोषण, स्तंभन एवं संमोहन का भी वर्णन है। बाणों के नामकरण के अनुसार इन बाणों से आहत व्यक्ति की स्थिति भी तदनुसार ही होती है।

उन्मादन नामक बाण से आहत व्यक्ति उन्मादी हो जाता है। तापन नामक बाण से देह-यष्टि-तप्त हो जाती है। शोषण नामक बाण से घायल व्यक्ति सूखने लगता है। स्तंभन नामक बाण से व्यक्ति स्तब्ध हो जाता है। किंकर्तव्य विमूढ़ होकर विचरण करता है।

संमोहन नामक बाण से आहत व्यक्ति मोहित हो जाता है। यहाँ कामदेव शिव का ध्यान पार्वती की ओर आकृष्ट करने हेतु उन्हें मोहित करने हेतु संमोहन नामक बाण का संधान करते हैं। इस प्रकार पुष्पों का बाण होने के कारण कामदेव को ‘पुष्पशर’ भी कहा जाता है।

3. संमोहन :
संसार के सृष्टि-क्रम की निरन्तरता के लिए कामदेव अपने पञ्च पुष्प-बाणों का प्रयोग करते हैं। उन्मादन, तापन, शोषण, स्तंभन एवं संमोहन नामक पाँच बाणों से प्रभावित नर एवं मादा के संयोग से सृष्टि के क्रम की निरन्तरता अबाधित रूप से चलती रहेगी।

इन पंच बाणों में से कामदेव अपने अमोघ बाण संमोहन का प्रयोग शिव के लिए करते हैं। इस बाण के प्रभाव से व्यक्ति मोहित हो जाता है। उसी व्यक्ति को अपने समीप अत्र-तत्र-सर्वत्र होने की कल्पना में मग्न रहता है। इस बाण के प्रभाव से व्यक्ति जिस पर मोहित होता है, उसे सर्वगुण सम्पन्न मानता है।

उसमें कोई दोष दिखाई नहीं देता, यहाँ तक कि वह जिस पर मोहित होता है उसके दोष भी सद्गुण के रूप में दिखाई देते हैं। इस प्रकार संमोहन नामक बाण से आहत व्यक्ति सम्पूर्णतया रूप-गुण में मंत्र-मुग्ध हो जाता है तथा अन्धा होकर अपने प्रियतम के इशारों पर नर वानरवत् नृत्य करने लगता है।

उसी रूप में खोकर उसी रूप-रंग-गुण में अपने अस्तित्व की अनुभूति करते हुए केवल उस प्रिय जन की प्रसन्ना ही अपने जीवन का परं लक्ष्य मान लेता है।

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4. उमा :
पार्वती का एक नाम है उमा। भगवती पार्वती के विविध नाम है। इन नामों का रहस्य जानने योग्य है। पर्वत की पुत्री होने के कारण पार्वती कहा जाता है। उसी पर्वत के पर्याय शब्द हैं गिरि एवं शैल आदि है। अत: पार्वती के नाम गिरिजा, गिरिनन्दिनी, शैलजा, शैलपुत्री, शैल-सुता आदि नाम प्रसिद्ध हैं।

पिता दक्ष के यज्ञ में वे सती हो गईं। अत: उन्हें सती के नाम से संबोधित किया जाता है। भिन्न कारणों से पार्वती के विविध नामों का उल्लेख मिलता है। पूर्व जन्म में दक्ष की पुत्री के रूप में जन्म लेने के पश्चात् सती होकर पर्वत-पुत्री – पार्वती के रूप में यह नाम सुप्रसिद्ध हो गया।

इसी प्रकार पार्वती का एक नाम उमा है। महाकवि कालिदास के द्वारा वर्णित कुमारसंभवम् महाकाव्य के अनुसार उमा शब्द की व्याख्या है –

उमेति मात्रा तपसो निषिद्धा।
पश्चादुमाख्यां सुमुखी जगाम।।

अर्थात् हे पुत्री मा अर्थात् नहीं (ऐसा कठिन तप न करो) यह कहकर तपश्चर्या से उन्हें (रोका) निषिद्ध किया अत: पार्वती का नाम उमा के रूप में प्रसिद्ध हुआ है। इस प्रकार संस्कृत भाषा में प्रत्येक शब्द की एक निश्चित व्युत्पत्ति है एवं प्रत्येक वर्ण एवं शब्द सार्थक है। उसके पीछे कारण अन्तर्निहित होता है।

Sanskrit Digest Std 11 GSEB वेदामृतम् Additional Questions and Answers

भस्मावशेष मदनं चकार स्वाध्याय

1. अधोलिखितेभ्य: विकल्पेभ्य: समुचितम् उत्तरं चिनुत।

પ્રશ્ન 1.
गिरिशाय पुष्करबीजमालां कः उपनिन्ये ?
(क) मदनः
(ख) शिवः
(ग) गौरी
(घ) वाणी
उत्तर :
(ग) गौरी

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પ્રશ્ન 2.
सम्मोहनम् नाम बाणम् कः समधत्त।
(क) शिवः
(ख) मदनः
(ग) अनलः
(घ) शैलसुता
उत्तर :
(क) शिवः

પ્રશ્ન 3.
शिवः कं भस्मावशेषं चकार ?
(क) मदनम्
(ख) पार्वतीम्
(ग) अम्बुराशिम्
(घ) बह्निम्
उत्तर :
(क) मदनम्

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પ્રશ્ન 4.
कस्याक्ष्णः कृशानुः निष्पपात ?
(क) मदनस्य
(ख) शिवस्य
(ग) पार्वत्याः
(घ) वरुणदेवस्य
उत्तर :
(ख) शिवस्य

પ્રશ્ન 5.
उमामुखे विलोचनानि कः व्यापारयामास ?
(क) हरः
(ख) आत्मयोनिः
(ग) कृशानुः
(घ) शैलजा
उत्तर :
(क) हरः

2. संस्कृतभाषया उत्तरत।

પ્રશ્ન 1.
गौरी कस्मै मन्दाकिनी पुष्करबीजमालाम् उपनिन्ये ?
उत्तर :
गौरी गिरिशाय मन्दाकिनी पुष्करबीजमालाम् उपनिन्ये।

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પ્રશ્ન 2.
कामदेवः कीदृशं बाणं समधत्त ?
उत्तर :
कामदेवः सम्मोहनं नाम अमोघं बाणं समधत्त।

પ્રશ્ન 3.
क: दिशाम् उपान्तेषु दृष्टिं ससर्ज ?
उत्तर :
अयुग्मनेत्रः शिवः दिशाम् उपान्तेषु दृष्टिं ससर्ज।

3. मातृभाषा में उत्तर दीजिए।

પ્રશ્ન 1.
कामदेव को देखने पर शिव ने क्या किया ?
उत्तर :
तपश्चर्या पर आक्रमण करनेवाले कामदेव को देखकर शिव अत्यन्त क्रोधित हो गए, भौंहें क्रोध से वक्र हो गई, क्रोधाविष्ट मुख देखने में असह्य हो रहा था तथा तृतीय नेत्र से ऊँची उठती हुई ज्वालाओं से युक्त अग्नि उत्पन्न हुई।

भस्मावशेष मदनं चकार Summary in Hindi

भस्मावशेष मदनं चकार (कामदेव भस्मसात् हो गए)

सन्दर्भ : यह पाठ संस्कृत साहित्य के महाकवि कालिदास विरचित कुमारसंभव से उद्धृत किया गया है। संस्कृत-साहित्य के पाँच महाकाव्यों में से कुमारसंभव एक प्रसिद्ध महाकाव्य है। इस महाकाव्य के नायक-नायिका इस विश्व के माता-पिता भगवती पार्वती एवं भगवान शिव है।

भगवान शिव एवं पार्वती के विवाह का निरूपण इस महाकाव्य कुमारसंभव का मुख्य प्रतिपाद्य विषय है। प्रस्तुत पाठ में वर्णित आठ पद्य कुमारसंभव के तृतीय सर्ग से लिए गए हैं जिसमें मदन-दहन की सुप्रसिद्ध घटना का वर्णन किया गया है।

ताडकासुर नामक दैत्य देवों को भयंकर त्रास देता था। इस दैत्य के त्रास से मुक्त होने के लिए देवगण ब्रह्माजी के पास गए एवं त्रास के निवारण का उपाय पूछा। ब्रह्माजी ने देवताओं से कहा कि शिव एवं पार्वती का पुत्र सेनापति बनकर ताडकासुर से युद्ध करे तथा उस युद्ध में ताडकासुर का वध हो, तब ही उस असुर के त्रास से मुक्ति मिल सकती है।

इस कार्य की सिद्धि हेतु प्रथम तो शिव एवं पार्वती का विवाह हो यह आवश्यक था। अतः इस कार्य को सिद्ध करने का दायित्व देवताओं ने कामदेव को दिया।

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भगवान शिव हिमालय पर तपश्चर्या में लीन थे। पार्वती उनकी परिचर्या में संलग्न थी। यहाँ कामदेव आते हैं तथा प्रदत्त कार्य को सिद्ध करने हेतु सन्नद्ध होते हैं। कामदेव के सहयोगार्थ वसन्त ऋतु उपस्थित होती है। असमय वसन्त-ऋतु का आगमन होता है। वसन्त-ऋतु के प्रभावक वातावरण में पार्वती भगवान शिव को कमलगट्टे की माला पहिनाती है।

इस अवसर हेतु प्रतीक्षारत कामदेव सक्रिय होकर संमोहक नामक बाण को धनुष की प्रत्यंचा पर चढ़ाकर साधते हैं। भगवान शिव किंचित् विचलित होते हैं। परंतु अनुक्षण संयम धारण कर लेते हैं। कामदेव की इस कुचेष्टा से भगवान शिव क्रोधित होते हैं तथा अपना तृतीय नेत्र को खोलकर क्षणभर में कामदेव को भस्मसात् कर देते हैं। कालिदासकृत कामदेव-दहन की घटना का सरस वर्णन निम्न आठ पद्यों में उपजाति छन्द में यहाँ प्रस्तुत किया गया है।

अन्वय, शब्दार्थ एवं अनुवाद

1. अन्वय : – अथ गौरी तपस्विने गिरिशाय ताम्ररुचा करेण भानुमत: मयूखैः विशोषितां मन्दाकिनी- पुष्कर-बीज-मालाम् उपनिन्ये।

शब्दार्थ : गौरी = पार्वती, शैलजा, उमा, शैलसुता, शैलपुत्री, गिरिजा, गिरिनन्दिनी आदि पार्वती के पर्याय शब्द हैं। गिरिशाय = शंकर के (शंकर के लिए)। पर्याय शब्द → शिवः, हरः, त्रिलोचन:, शङ्करः, भवः, रूद्रः आदि। ताम्ररुचा = ताँबे के समान कान्ति से युक्त, तांबे जैसी लालिमावाली, ताम्रस्य रुच् इव रुच् यस्य सः, तेन-बहुव्रीहि समास, ताम्ररुच् – पुं. तृतीया विभक्ति एकवचनम्। भानुमतः = सूर्य की। मयूखैः = किरणों से, पर्याय शब्द → अंशुः, रश्मिः, करः। विशोषिताम् = सुखी हुई। मन्दाकिनी – पुष्कर – बीज – मालाम् = मन्दाकिनी – गंगा नदी के कमलों के बीजों (कमलगट्टों) की माला को, मन्दाकिन्याः पुष्कराणि इति = षष्ठी तत्पुरुष समास, मन्दाकिन्या: पुष्कराणां बीजानि इति – षष्ठी तत्पुरुष समास, मन्दाकिनी-पुष्कर – बीजानाम् माला – इति मन्दाकिनीपुष्कर बीजमालाताम् षष्ठी तत्पुरुष समास। उपनिन्ये = अर्पण की, पहिनाई – उप-उपसर्ग + नी धातु, परस्मैपद, भूतकाल, अन्य पुरुष, एकवचन।

अनुवाद : गौरी ने तपस्वी शंकर को ताम्रसदृश कान्ति युक्त हाथ से सूर्य की किरणों से सूखे हुए मन्दाकिनी के कमलगट्टों की माला अर्पण की।

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2. अन्वय : त्रिलोचनः प्रणयिप्रियत्वात् तां प्रतिग्रहीतुम् उपचक्रमे च। पुष्पधन्वा च धनुषि सम्मोहनं नाम अमोघं बाणं समधत्त।

शब्दार्थ : त्रिलोचनः = तीन नेत्रोंवाले – शंकर, त्रीणि लोचनानि यस्य सः – बहुव्रीहि समास। प्रणयिप्रियत्वात् = भक्तजन के प्रति प्रेमवश अथवा प्रिय व्यक्ति के प्रति प्रेम होने से। प्रतिग्रहीतुम् = स्वीकार करने हेतु – प्रति उपसर्ग + ग्रह धातु + तुमुन् – हेत्वर्थक कृदन्त। उपचक्रमे = आरंभ किया – उप – उपसर्ग + क्रम् धातु + परोक्ष भूतकाल, अन्य पुरुष, एकवचन। पुष्पधन्वा = कामदेव के द्वारा – पुष्पम् धनुः यस्य सः – बहुव्रीहि समास, (पुष्प है धनुष जिसका वह – कामदेव)। धनुषि = धनुष पर, धनुस् (नपु.) सप्तमी विभक्ति, एकवचनम्। सम्मोहनम् = सम्मोहन नामक कामदेव का बाण। अमोघम = कभी भी निष्फल न जानेवाले (बाण को या अस्त्र को), समधत्त = साधा, संधान किया, चढ़ाया – सम् उपसर्ग + धा धातु, ह्यस्तन भूतकाल, अन्य पुरुष, एकवचन।

अनुवाद : भक्तों के प्रति प्रेम होने के कारण (भगवान) शंकर ने (जैसे ही) उसे (माला को) स्वीकारना आरंभ किया (वैसे ही) कामदेव ने धनुष पर संमोहन नामक अमोघ बाण का संधान किया।

3. अन्वय : चन्द्रोदयारम्भे अम्बुराशि: इव किञ्चित् परिलुप्त धैर्यः हर: तु बिम्बफलाधरोष्ठे उमामुख्ने विलोचनानि व्यापारयामास।

शब्दार्थ : चन्द्रोदयारम्भे = चन्द्र का उदय आरम्भ होने पर, चन्द्रस्य उदयः – षष्ठी तत्पुरुष समास, चन्द्रोदयस्य आरम्भः, तस्मिन् – षष्ठी – तत्पुरुष समास। अम्बुराशि: = समुद्र – अम्बूनाम् राशि: – षष्ठी तत्पुरुष समास। परिलुप्त धैर्यः = विलुप्त हो चुका है धैर्य जिसका वह भगवान शिव – परिलुप्तम् धैर्यम् यस्य सः – बहुव्रीहि समास। बिम्बफलाधरोष्ठे = बिम्ब-फल के समान अधरोष्ठवाली (पार्वती के मुख पर)। व्यापारयामास = घुमाई या डाली।

अनुवाद : चन्द्रोदय के आरम्भ पर समुद्र की भाँति कुछ क्षण के लिए धैर्य से विचलित शिव ने बिम्ब-फल के समान ओष्ठवाली पार्वती के मुखमंडल पर दृष्टि निक्षेप किया।

4. अन्वय : शैलसुता अपि स्फुरद्वाल – कदम्ब – कल्पैः अङ्गः भावं-विवृण्वती साचीकृता चारुतरेण पर्यस्त – विलोचनेन मुख्न तस्थौ ?

शब्दार्थ : स्फुरबालकदम्बकल्पैः = खिलते हुए सुकोमल कदम्ब के पुष्प के समान (रोमांचित) बालश्चासौ कदम्बः, बालकदम्ब: – कर्मधारय समास, स्फुरन् चासौ बालकदम्बः – कर्मधारय समास, स्फुरद् बालकदम्ब + कल्प तद्धित प्रत्यय, कल्प – यह एक तद्धित प्रत्यय है तथा यह …….. उसके समान – अर्थ प्रकट करता है। यथा – पुत्रकल्प अर्थात् पुत्र के समान। विवृण्वती = वर्णन या प्रकट करती हुई – वि उपसर्ग + वृ धातु + शतृ प्रत्यय = अत् – स्त्रीलिंग (वर्तमान कृदन्त)। साचीकृता = एक ओर मुडी या घूमी हुई, चारुतरेण = और अधिक सौन्दर्य से। पर्यस्तविलोचनेन = चंचल नयनवाले (मुख) से – पर्यस्ते लोचने यस्य तत्, तेन – बहुव्रीहि समास। तस्थौ = खड़ी रही।

अनुवाद : पार्वती भी प्रस्फुटित होते हुए सुकुमार कदम्ब के सुमनों के समान (रोमांचित) अंगों से मनोभावों को प्रकट करते हुए एक ओर मुडी हुई और अधिक सौन्दर्यपूर्ण नेत्रोंवाले मुख से खड़ी रही।

GSEB Solutions Class 11 Sanskrit Chapter 5 भस्मावशेष मदनं चकार

5. अन्वय : अथ अयुग्मनेत्र: वशित्वात् इन्द्रियक्षोभं बलवत् निगृह्य स्वचेतोविकृते: हेतुं दिदृक्षुः दिशाम् उपान्तेषु दृष्टिं ससर्ज।

शब्दार्थ : अयुग्मनेत्रः = शिव – न युग्मम् – नञ् तत्पुरुष समास, अयुग्मं नेत्रं यस्य सः – बहुव्रीहि समास। अयुग्म अर्थात् विषम संख्या, अर्थात् तीन नेत्रोंवाले भगवान शिव। वशित्वात् = वश करनेवाला होने के कारण। इन्द्रियक्षोभं = इन्द्रियों के क्षोभ या चांचल्य को – इन्द्रियाणाम् क्षोभः, तम् – षष्ठी तत्पुरुष समास। बलवत् = बलपूर्वक – बलम् अस्य अस्ति इति बलवत्। निगृह्य = नियन्त्रित करके। नि उपसर्ग + गृह धातु + क्त्वा प्रत्यय – संबन्धक भूत कृदन्त। हेतुम् = कारण को। स्वचेतो विकृते: = स्वयं के चित्त के विकार का। दिदृक्षुः = द्श् धातु + सन् – दिदृक्षा + उ = इच्छादर्शक विशेषण, देखने की इच्छा अर्थात् दिदृक्षा, दर्शनेच्छावाला – दिदृक्षुः। दिशाम् = दिशाओं के। उपान्तेषु = अंत भागों में। ससर्ज = उत्पन्न की, सृज् धातु, परोक्ष भूतकाल, अन्यपुरुष, एकवचन।

अनुवाद : (संमोहन नामक बाण के) वश से इन्द्रिय – क्षोभ को बलपूर्वक नियन्त्रित करके अपने चित्त की विकृत्ति के कारण को देखनेवाले शिव ने दिशाओं के अन्त भाग में देखा।।

6. अन्वय : स: दक्षिणापाङ्गनिविष्टमुष्टिं नतांसम् आकुञ्चितसव्यपादम् चक्रीकृत् – चारुचापम् आत्मयोनिम् प्रहर्तुम् अभ्युद्यतम् ददर्श।

शब्दार्थ : दक्षिणापाङ्गनिविष्टमुष्टिम् = दक्षिण (दाहिने) नेत्र के अन्त भाग (छोर) तक मुट्ठी बन्द किए हुए को दक्षिणापाङ्गं यावत् निविष्टा मुष्टिः येन, तम् – बहुव्रीहि समास। नतांसम् = झुके हुए कन्धेवाले को – नतः अंस: यस्य सः, तम् – बहुव्रीहि समास। आकुञ्चितसव्यपादम् = मुडे हुए (बाँए) वाम पैरवाले (कामदेव को) को – आकुञ्चितः सव्यः पादः यस्य सः – बहुव्रीहि समास। चक्रीकृत-चारुचापम् = सुन्दर धनुष को वृत्त रूप में (चक्रवत्) परिवर्तित करनेवाले (कामदेव) को। आत्मयोनिम् = कामदेव को – आत्मा एवं योनिः यस्य सः – बहुव्रीहि समास। प्रहर्तुम् = प्रहार करने के लिए। अभ्युद्यतम् = उद्यत (सज्ज) हो चुके (कामदेव) को। ददर्श = देखा – दृश् धातु – परोक्ष भूतकाल, अन्यपुरुष – एकवचनम्।

अनुवाद : उन्होंने दक्षिण (दाहिने) नेत्र के अन्तिम छोर तक मुट्ठी बाँधे हुए, झुके हुए स्कन्ध प्रदेशवाले, मुडे हुए वाम-पादवाले, सुन्दर धनुष को वृत्तमय करने वाले प्रहार करने हेतु उद्यत कामदेव को देखा।।

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7. अन्वय : तपः परामर्शविवृद्धमन्योः भ्रूभङ्गदुष्प्रेक्ष्य मुखस्य तस्य तृतीयात् अक्ष्णः स्फुरन् उदर्चिः कृशानुः सहसा निष्पपात किल।

शब्दार्थ : तपः परामर्शविवृद्धमन्योः = तप पर किए गए आक्रमण से जिनका क्रोध अभिवर्धित हो चुका था वह भगवान शिव। तमस: परामर्श: = षष्ठी तत्पुरुष समास, तपः परामर्शेन विवृद्धः मन्युः यस्य सः – बहुव्रीहि समास।

भूभङ्ग – दुष्प्रेक्ष्य-मुखस्य = भ्रू (भोंह) भंग के कारण जिनका मुख देखना असह्य हो गया था उन्हें (शिव को)। स्फुरन् = स्फुरित होते हुए। अक्ष्णः = नेत्र से। उदर्चिः = ऊँची उठती हुई ज्वालाओंवाली। कृशानुः = अग्नि। किल = वास्तव में निश्चित रूप से, निश्चयार्थक अव्यय। निष्पपात = निकला, प्रकट हुआ।

अनुवाद : तपश्चर्या पर किए गए आक्रमण से अत्यधिक क्रोधातुर एवं भ्रूभंग के कारण जिनका मुख-दर्शन असह्य हो रहा था उन शिव के तृतीय-नेत्र से सहसा ऊँची उठती हुई ज्वालाओं वाली अग्नि प्रकट हुई।

8. अन्वय : हे प्रभो ! क्रोधं संहर संहर इति मरुतां गिरः खे यावत् चरन्ति, तावत् भवनेत्र – जन्मा स: वह्निः मदनं भस्मावशेष चकार।

शब्दार्थ : संहर = शमन करो, नष्ट करो। मरुताम् = देवताओं की। गिरः = वाणी, वाक् – गिर् – स्त्रीलिंग, प्रथमा विभक्ति, बहुवचन। स्ने = आकाश में। चरन्ति = विचरण करने लगी, फैलने लगी। वह्निः = अग्निः, पावकः, अनल: आदि पर्याय – शब्द हैं। भवनेत्रजन्मा = भव अर्थात् शिव, शिव के नेत्र से जन्म लेनेवाली अग्नि। भस्मावशेष = भस्म ही जिसका एकमात्र अवशेष रह गया था अर्थात् – भस्मसात् या भस्मीभूत। चकार = कर दिया।

अनुवाद : जब तक गगन मण्डल में देवताओं की वाणी – हे प्रभो क्रोध को शान्त करो, शान्त करो – विचरण करने लगी तब तक भगवान शिव के नेत्र से प्रकट अग्नि ने कामदेव को भस्मीभूत कर दिया।

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