Gujarat Board GSEB Hindi Textbook Std 9 Solutions Kshitij Chapter 9 सानियाँ एवं सबद Textbook Exercise Important Questions and Answers, Notes Pdf.
GSEB Std 9 Hindi Textbook Solutions Kshitij Chapter 9 सानियाँ एवं सबद
Std 9 GSEB Hindi Solutions सानियाँ एवं सबद Textbook Questions and Answers
प्रश्न-अभ्यास
सखियाँ
प्रश्न 1.
मानसरोवर’ से कवि का क्या आशय है ?
उत्तर :
‘मानसरोवर’ से कवि का आशय हृदयरूपी पवित्र सरोवर से है, जो हमारे मन में है।
प्रश्न 2.
कवि ने सच्चे प्रेमी की क्या कसौटी बताई है ?
उत्तर :
कवि सच्चे प्रेमी की कसौटी बताते हुए कहते हैं कि उससे मिलने पर मन की विषरूपी सारी बुराइयाँ नष्ट हो जाती है और सद्भावनाएँ जाग्रत हो जाती हैं।
प्रश्न 3.
तीसरे दोहे में कवि ने किस प्रकार के ज्ञान को महत्त्व दिया है ?
उत्तर :
तीसरे दोहे में कवि ने सच्चे ज्ञान की प्राप्ति को महत्त्व दिया है। जिसे प्राप्त करने के बाद विनम्रता आ जाती है। लोगों की निंदा का असर नहीं होता है।
प्रश्न 4.
इस संसार में सच्चा संत कौन कहलाता है ?
उत्तर :
इस संसार में सच्चा संत वही है जो मोह-माया की भावना से दूर है और साम्प्रदायिक झगड़े में न पड़कर निश्चल भाव से प्रभु-भक्ति करता है।
प्रश्न 5.
अंतिम दो दोहों के माध्यम से कबीर ने किस तरह की संकीर्णताओं की ओर संकेत किया है ?
उत्तर :
अंतिम दो दोहों के माध्यम से कबीर ने निम्नलिखित संकीर्णताओं की ओर संकेत किया है –
- अपने धर्म को श्रेष्ठ मानना और दूसरे के धर्म की निन्दा करना। राम-रहीम के चक्कर में पाड़कर राप्ये ईमार को न पहचानना।
- कर्म की महत्ता को न समझाकर ऊँचे कुल के अहंकार में जीना।।
प्रश्न 6.
किसी भी व्यक्ति की पहचान उसके कुल से होती है या उसके कर्मों से ? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर :
संसार में जो भी महापुरुष हुए हैं यदि उन्हें आज हम याद करते हैं तो उनके उच्च कर्मों की वजह से, इसलिए नहीं कि उनका जन्म उच्च कुल में हुआ था। यदि महानता का मापदंड उच्च कुल ही होता तो सभी उच्च कुल में जन्म लेनेवाले सभी महान बन गए होते परन्तु ऐसा नहीं है। कबीर, सूर, तुलसी जैसे लोग सामान्य परिवार में हुए थे, जिनका अचपन कष्टगय था। फिर भी ये अपने श्रेष्ठ कर्मों के आधार पर संसार में प्रसिद्ध हुए। अतः यह सत्य है कि व्यक्ति की पहचान उसके कुल से नहीं बल्कि उसके कर्म से होती है।
प्रश्न 7.
काव्यसौन्दर्य स्पष्ट कीजिए –
हस्ती चढ़िए ज्ञान को, सहज दुलीचा डारि।
स्वान रूप संसार है, भूखन दे झन मारि।।
उत्तर :
प्रस्तुत दोहे में ज्ञान को हाथी और संसार को कुत्ते के साथ जोड़कर ज्ञान का महत्त्व प्रतिपादित किया गया है। कबीर कहते हैं कि मनुष्य को ज्ञानरूपी हाथी की सवारी सहजतारूपी कालीन डालकर करना चाहिए, यदि कुत्ता सपी संसार उसकी निंदा करता है तो उसे उसकी परवाह नहीं करनी चाहिए। यहाँ रूपक अलंकार का प्रयोग किया गया है। यह दोहा छंद है। इसमें ‘हस्ती, ‘स्वान’, ‘ज्ञान’ जैसे तत्सम शब्दों का प्रयोग किया गया है। दोहे की भाषा सधुक्कड़ी है। यहाँ सहज ज्ञान को महत्त्व दिया गया है।
सबद
प्रश्न 8.
मनुष्य ईश्वर को कहाँ-कहाँ ढूँढ़ता फिरता है ?
उत्तर :
मनुष्य ईश्वर को मंदिर, मस्जिद, काबा, काशी, कैलाश आदि तीर्थों तथा योग, वैराग्य तथा अनेक अन्य धार्मिक क्रियाओं में ढूँढ़ता फिरता है।
प्रश्न 9.
कबीर ने ईश्वर-प्राप्ति के लिए किन प्रचलित विश्वासों का खंडन किया है ?
उत्तर :
कबीर ने ईश्वर-प्राप्ति के लिए निम्नलिखित प्रचलित विश्वासों का खंडन किया है –
- मनुष्य मंदिर में पूजा-अर्चना करके और मस्जिद में नमाज पढ़कर ईश्वर को प्राप्त करना चाहता है, किन्तु ईश्वर की प्राप्ति नहीं होती है।
- मनुष्य काबा, काशी, कैलास जैसे तीर्थस्थलों की यात्रा करके ईश्वर को पाना चाहता है, परन्तु ईश्वर वहाँ भी नहीं मिलते
- मनुष्य योग-साधना से या वैरागी बनकर ईश्वर प्राप्ति का प्रयास करता है, फिर भी ईश्वर नहीं मिलते।
- कर्मकांड से भी मनुष्य को ईश्वर प्राप्त नहीं होते हैं।
प्रश्न 10.
कबीर ने ईश्वर को ‘सब स्वाँसों की स्वाँस में’ क्यों कहा है ?
उत्तर :
ईश्वर सभी प्राणियों में है। वह जब तक है तब ही जीव का अस्तित्व है इसीलिए कबीर ने ईश्वर को ‘सब स्वाँसों की स्वॉस’ कहा है।
प्रश्न 11.
कबीर ने ज्ञान के आगमन की तुलना सामान्य हवा से न करके आँधी से क्यों की है ?
उत्तर :
कबीर ने ज्ञान के आगमन की तुलना सामान्य हवा से न कर आँधी से की है क्योंकि सामान्य हया में वह शक्ति नहीं होती है जो स्थितियों में परिवर्तन कर दे परन्तु आँधी अपने साथ तमाम छोटी-बड़ी वस्तुओं को उड़ा ले जाती है। इसी प्रकार जब ज्ञान की आँधी चलती है तो मनुष्य के मन की अज्ञानता और बुराइयों को अपने साथ उड़ा ले जाती है अर्थात् उसका मन माया मोह, स्वार्थ जैसी तमाम बुराइयों से मुक्त हो जाता है और उसका मन प्रभु-भक्ति में लीन हो जाता है।
प्रश्न 12.
ज्ञान की आँधी का भक्त के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर :
ज्ञान की आँधी का भक्त के जीवन पर यह प्रभाव पड़ता है कि उसके मन का भ्रम दूर हो जाता है, अज्ञानता नष्ट हो जाती है। यह सांसारिक मोहमाया से मुक्त होकर प्रभु-भक्ति में लीन हो जाता है।
प्रश्न 13.
भाव स्पष्ट कीजिए।
क. हिति चित्त की है चूंनी गिरानी, मोह बलिंडा तूटा।
ख. आँधी पीछे जो जल बूठा, प्रेम हरिजन भींनाँ।
उत्तर :
क. यहाँ ज्ञान की आँधी के फलस्वरूप मनुष्य के मन का भ्रम और अज्ञान का पर्दा हट गया, जिससे मनुष्य के स्वार्थरूपी दोनों खंभे टूट गए तथा मोहरूपी बल्ली भी गिर गई। इससे उसका कामनारूपी छप्पर टूटकर बिखर गया। उसके मन की बुराइयाँ नष्ट हो गई और मन स्वच्छ हो गया।
ख. ज्ञानरूपी आँधी के बाद भक्तिरूपी ज्ञान की वर्षा से मन प्रेमरूपी जल से भीग गया और भक्त आनंदित हो उठा अर्थात् ज्ञान प्राप्ति के पश्चात् मन पवित्र हो जाता है।
रचना और अभिव्यक्ति
प्रश्न 14.
संकलित साखियों और पदों के आधार पर कबीर के धार्मिक और सांप्रदायिक सद्भाव संबंधी विचारों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
विद्यार्थी स्वयं करें।
भाषा-अध्ययन
प्रश्न 15.
निम्नलिखित शब्दों के तत्सम रुप लिखिए।
पखापखी, अनत, जोग, जगति, बैराग, निरपख
उत्तर :
- शब्द – तत्सम रूप
- पखापखी – पक्ष-विपक्ष
- अनत – अन्यत्र
- जोग – योग
- जुगति – युक्ति
- बैराग – वैराग्य
- निरपख – निष्पक्ष
GSEB Solutions Class 9 Hindi सानियाँ एवं सबद Important Questions and Answers
अतिरिक्त प्रश्न
प्रश्न 1.
‘प्रेमी मिले न कोय’ – कबीर ऐसा क्यों कहते हैं ?
उत्तर :
‘प्रेमी मिले न कोय’ कबीर ऐसा इसलिए कहते हैं कि संसार में सच्चे प्रभु-भक्त बहुत कम हैं, ज्यादातर लोग भक्ति का आईबर करते हैं।
प्रश्न 2.
मानसरोवर के लबालब भरे जल में कौन, क्या कर रहा है ?
उत्तर :
मानसरोवर के लबालब भरे जल में हंस क्रीडा कर रहे हैं।
प्रश्न 3.
कबीर ने किसकी परवाह किए बिना प्रभु-भक्ति की प्रेरणा दी है ?
उत्तर :
कबीर ने संसार की परवाह किए बिना प्रभु-भक्ति करने की प्रेरणा दी है।
प्रश्न 4.
‘निरपन’ का क्या अर्थ है ?
उत्तर :
‘निरपख’ अर्थात् निष्पक्ष।
प्रश्न 5.
कबीर ने परमात्मा का निवास कहाँ बताया है ?
उत्तर :
कबीर ने परमात्मा का निवास मनुष्य की हर साँस में बताया है।
प्रश्न 6.
‘काबा फिरि कासी भया’ से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
‘काबा फिरि कासी भया’ से यह तात्पर्य है कि मनुष्य के मन में राम-रहीम का भेदभाव नहीं रह गया।
प्रश्न 7.
‘सब स्वाँसों की स्वाँस में’ अलंकार पहचानिए।
उत्तर :
‘सब स्वाँसों की स्वाँस में’ पंक्ति में अनुप्रास अलंकार है।
भावार्थ और अर्थबोधन संबंधी प्रश्न
1. मानसरोवर सुभर जल, हंसा केलि कराहिं।
मुकताफल मुकता चुर्गं, अब उड़ि अनत न जाहिं ।।1।।
भावार्थ : मानसरोवर स्वच्छ जल से अच्छी तरह भरा हुआ है। उसमें हंस क्रीडा करते हुए मोतियों को चुग रहे हैं। वे इस आनंददायक जगह को छोड़कर कहीं और नहीं जाना चाहते हैं। तात्पर्य यह कि जीवात्मा प्रभुभक्ति में जब लीन हो जाती है, तो उस सुख को छोड़कर उसे कहीं और सुख नहीं मिलता है।
प्रश्न 1.
मानसरोवर में क्या भरा हुआ है ?
उत्तर :
मानसरोवर में स्वच्छ जल भरा हुआ है।
प्रश्न 2.
हंस अन्यत्र क्यों नहीं जाना चाहते हैं ?
उत्तर :
हंस मानसरोवर में क्रीड़ा करते हुए मोतियों को चुग रहे हैं इसलिए वे अन्यत्र कहीं नहीं जाना चाहते हैं।
प्रश्न 3.
मानसरोवर किसका प्रतीक है ? उसकी क्या विशेषता है ?
उत्तर :
मानसरोवर मनुष्य के मनरूपी सरोवर का प्रतीक है। मनरुपी सरोवर में प्रभु-भक्ति और आनंद का स्वच्छ जल भरा हुआ है, जहाँ से हंसंरूपी जीवात्मा भक्तिरूपी मोती चुग रहे हैं और कहीं नहीं जाना चाहती है।
प्रश्न 4.
हंस क्या कर रहे हैं ? वे कहीं और क्यों नहीं जाना चाह रहे हैं ?
उत्तर :
हंस मानसरोवर के स्वच्छ जल में क्रीड़ा कर रहे हैं। वे मोतियों को चुग रहे हैं। यह सुख उन्हें और कहीं नहीं मिल सकता है, क्योंकि मानसरोवर के अतिरिक्त किसी अन्य सरोवर में मोती नहीं होता है।
प्रश्न 5.
हंसा केलि कराहिं।’ में कौन-सा अलंकार है ?
उत्तर :
‘हंसा केलि कराहिं।’ में ‘क’ वर्ण की आवृत्ति होने से अनुप्रास अलंकार है।
2. प्रेमी ढूँढत मैं फिरौं, प्रेमी मिले न कोइ।
प्रेमी की प्रेमी मिलै, सब विष अमृत होइ ।।2।।
भावार्थ : कबीर कहते हैं कि मैं प्रेमी अर्थात् प्रभु-भक्त को ढूँढ़ रहा था, परन्तु अपने अहंकार के कारण गुझे कोई प्रभु-भक्त नहीं मिला। लेकिन जब एक प्रभु-भक्त से दूसरा प्रभु-भक्त मिलता है तो हृदय में रही सारी विषरूपी बुराइयाँ अमृतरूपी अच्छाइयों में बदल जाती हैं।
प्रश्न 1.
‘प्रेमी’ किसे कहा गया है ?
उत्तर :
प्रभु-भक्त को प्रेमी कहा गया है।
प्रश्न 2.
कवि किसे ढूँढ रहा है ? वह सफल क्यों नहीं हो रहा है ?
उत्तर :
कवि प्रभु-भक्त को ढूँढ़ रहा है। सच्चे प्रभु-भक्त बहुत कम हैं, ज्यादातर लोग भक्ति का दिखावा करते हैं इसीलिए वह अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो पा रहा है।
प्रश्न 3.
प्रेमी से प्रेमी मिलने पर क्या असर होता है ?
उत्तर :
प्रेमी अर्थात् सच्चा प्रभु-भक्त। जब दो सच्चे प्रभु-भक्त एक-दूसरे से मिलते हैं तो उनके हृदय में रही सारी खुराइयाँ दूर हो जाती हैं और उन बुराइयों का स्थान अच्छाइयाँ ले लेती हैं।
प्रश्न 4.
‘प्रेमी ढूँढ़त मैं फिरौं’ पंक्ति में कौन-सा अलंकार है ?
उत्तर :
‘प्रेमी ढूँढ़त मैं फिरौं’ में श्लेष अलंकार है। यहाँ ‘प्रेमी’ शब्द के दो अर्थ हैं – प्रेम करनेवाला और सच्चा प्रभु-भक्त।
3. हस्ती चढ़िए ज्ञान को, सहज दुलीचा डारि।
स्वान रूप संसार है, पूँकन दे झख मारि ।।3।।
भावार्थ : कबीर कहते हैं कि तुम ज्ञानरूपी हाथी पर सहजरूपी कालीन बिछाकर अपने मार्ग पर निश्चित होकर चलते रहो। यह संसार कुत्ते के समान है जो हाथी को चलते देखकर अकारण भौंकता रहता है। कहने का आशय है कि ज्ञान-प्राप्ति में लीन साधक को देखकर संसार के लोग उसकी निंदा करते रहते हैं, परन्तु उसे संसारवालों की निंदा की परवाह नहीं करनी चाहिए।
प्रश्न 1.
संसार को किस तरह बताया गया है ?
उत्तर :
संसार को कुत्ते के समान बताया गया है, जो अकारण किसी की निंदा करता रहता है।
प्रश्न 2.
ज्ञान-प्राप्ति के मार्ग में कबीर ने किसे आवश्यक माना है ?
उत्तर :
ज्ञान-प्राप्ति के मार्ग में कबीर ने सहजता को आवश्यक माना है।
प्रश्न 3.
अंतिम पंक्ति में कबीर क्या कहते हैं ?
उत्तर :
अंतिम पंक्ति में कबीर कहते हैं कि साधक को लोगों की निंदा की परवाह किए बिना ज्ञान-प्राप्ति के मार्ग पर आगे बढ़ते रहना चाहिए।
प्रश्न 4.
कबीर ने ज्ञान-प्राप्ति का क्या उपाय बताया है ?
उत्तर :
कबीर ज्ञान-प्राप्ति का उपाय बताते हुए कहते हैं कि साधक को ज्ञानरूपी हाथी की सवारी सहजता रूपी कालीन बिछाकर करनी चाहिए। कभी किसी की निंदा की परवाह नहीं करना चाहिए।
प्रश्न 5.
दो तत्सम शब्द ढूँढकर लिखिए।
उत्तर :
तत्सम शब्द – (1) हस्ती (2) ज्ञान
4. पखापखी के कारनँ, सब जग रहा भुलान।
निरपन होइ के हरि भजै, सोई संत सुजान ।।4।।
भावार्थ : पक्ष और विपक्ष के चक्कर में पड़कर लोग जाति, धर्म और संप्रदाय में बँट गए हैं। वे अपने पक्ष को श्रेष्ठ मानते हैं और दूसरे की निंदा करते हैं। इसी सांसारिक पचड़े में पड़कर वे अपने जीवन के असली उद्देश्य से भटक गए हैं। कबीर कहते हैं कि जो धर्म-संप्रदाय के चक्कर में पड़े बिना प्रभु-भक्ति करते हैं, वास्तव में वे संत हैं, ज्ञानी हैं।
प्रश्न 1.
पनापनी के कारण संसार की क्या स्थिति हो गई है ?
उत्तर :
पखापरनी के कारण संसार जाति, धर्म और संप्रदाय में बँट गया है। लोग अपने मूल उद्देश्य को भटक गए हैं। वे अपने पक्ष को श्रेष्ठ मानते हैं और दूसरे की निंदा करते हैं।
प्रश्न 2.
निष्पक्ष होकर हरि भक्ति कौन करता है ?
उत्तर :
निष्पक्ष होकर हरि भक्ति वे करते हैं जो सच्चे ज्ञानी हैं।
प्रश्न 3.
प्रस्तुत दोहे का केन्द्रीय भाव बताइए।
उत्तर :
प्रस्तुत दोहे के माध्यम से कबीर कहना चाहते हैं कि मनुष्य को पक्ष-विपक्ष के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए अर्थात् हिन्दू-मुसलमान के चक्कर में न पड़कर प्रभु-भक्ति करनी चाहिए।
प्रश्न 4.
‘सोई संत सुजान’ पंक्ति में कौन-सा अलंकार है ?
उत्तर :
‘सोई संत सुजान’ में अनुप्रास अलंकार है।
प्रश्न 5.
‘पखापनी’ और ‘निरपन’ शब्दों का शुद्ध रूप लिखिए।
उत्तर :
पखापनी – पक्ष-विपक्ष
निरपख – निष्पक्ष
5. हिंदू मूआ राम कहि, मुसलमान ख़ुदाइ।
कहै कबीर सो जीवता, जो दुहुँ के निकटि न जाइ ।।5।।
भावार्थ : कबीर निराकार ब्रह्म के उपासक हैं। वे उसकी उपासना की सीख देते हुए कहते हैं कि हिन्दू राम की और मुसलमान खुदा की उपासना करते हुए मर मिटते हैं। जबकि राम और खुदा तो एक ही हैं। अंत में वे कहते हैं कि जो इन दोनों के चक्कर में न पड़कर प्रभु-भक्ति करता है, वही इस संसार में सही अर्थ में जीवन जीता है।
प्रश्न 1.
हिन्दू और मुसलमान प्रभु को किन नामों से पुकारते हैं ?
उत्तर :
हिन्दू अपने प्रभु को ‘राम’ और मुसलमान ‘खुदा’ के नाम से पुकारते हैं।
प्रश्न 2.
कबीर किसके जीवन को सार्थक मानते हैं ?
उत्तर :
कबीर उस व्यक्ति के जीवन को सार्थक मानते हैं जो राम-रहीम के चक्कर में नहीं पड़ता है। स्वयं को किसी धर्म-संप्रदाय के बंधन में नहीं बाँधता, बल्कि सच्चे ईश्वर (निराकार ब्रह्म) की उपासना करता है।
प्रश्न 3.
साखी में ‘दुहूँ’ शब्द का प्रयोग किसके लिए किया है ?
उत्तर :
साखी में ‘दुहूँ’ शब्द राम और खुदा के लिए प्रयोग किया गया है।
प्रश्न 4.
प्रस्तुत सारनी की प्रासंगिकता बताइए।
उत्तर :
प्रस्तुत सानी आज भी एकदम प्रासंगिक है। सारा समाज धर्म संप्रदाय में बँटा हुआ है। मनुष्य किसी न किसी संप्रदाय से – जुड़कर धार्मिक कट्टरता का शिकार बन जाता है।
6. काबा फिरि कासी भया, रामहिं भया रहीम।
मोट चून मैदा भया, बैठि कबीरा जीम ।।6।।
भावार्थ : कबीर चाहते है कि जब तक मुझे ज्ञान नहीं था, तब तक मैं अज्ञानियों की तरह धर्म-जाति आदि के भेद से ग्रसित था। ज्ञान-प्राप्ति के बाद मैं राम-रहीम, हिन्दु-मुसलमान के भेद से ऊपर उठ गया हूँ। अब मेरे लिए काबा और काशी में कोई अंतर नहीं रह गया। मन की बुराइयों के कारण जिसे मोटा आटा समझता था, अब वह मैदा हो गया है, जिसे में आराम से खा रहा हूँ अर्थात् अब उनके मन में किसी प्रकार का भेद नहीं रह गया है।
प्रश्न 1.
‘काबा फिर कासी भया’ का आशय बताइए।
उत्तर :
‘काबा फिर कासी भया’ का आशय यह है कि मन में किसी प्रकार का भेदभाव नहीं रह गया।
प्रश्न 2.
‘रामहिं भया रहीम’ का भाव क्या है ?
उत्तर :
‘रामहि भया रहीम’ का भाव यह है कि मेरी धर्माधता मिट गई है। अब मेरे लिए राम-रहीम एक ही हैं।
प्रश्न 3.
कबीर के मन से धार्मिक भेदभाव मिटने से क्या परिवर्तन हुआ ?
उत्तर :
कबीर के मन से धार्मिक भेदभाव मिट जाने के बाद उनकी धर्मांधता समाप्त हो गई। अब उनके लिए राम-रहीम, काबा काशी में कोई अंतर नहीं रह गया। वे बड़ी सहजता के साथ जीवन जी रहे हैं।
प्रश्न 4.
कबीर ने दोहे के माध्यम से क्या संदेश दिया है ?
उत्तर :
कबीर का संदेश है कि हमें कट्टर या धर्माध नहीं होना चाहिए। राम-रहीम में कोई भेद नहीं है।
7. ऊँचे कुल का जनमिया, जे करनी ऊँच न होई।
सुबरन कलस सुरा भरा, साधू निंदा सोइ ।।7।।
भावार्थ : कबीर कहते हैं कि ऊँचे कुल में जन्म लेने से कोई ऊँचा नहीं कहलाता। ऊँचा अर्थात् बड़ा बनने के लिए उसे अच्छे कर्म करने ही पड़ते हैं। उसमें कुल की कोई भूमिका नहीं होती है। दृष्टांत देते हुए वे कहते हैं कि जिस प्रकार शराब यदि सोने के पात्र में भरी हो तो सज्जनों के लिए पेय नहीं बन जाती है। सज्जन उसकी निन्दा ही करते हैं। ठीक उसी तरह ऊँचे कुल में जन्म लेकर यदि व्यक्ति नीच कर्म करता है तो वह निन्दा का ही पात्र है।
प्रश्न 1.
कवि ने किसे ऊँचा कहा है ?
उत्तर :
अच्छा कर्म करनेवाले को कवि ने ऊँचा कहा है।
प्रश्न 2.
सोने का पात्र कब निन्दनीय हो जाता है ?
उत्तर :
सोने के पात्र में जब शराब भर दी जाती है तब वह निन्दनीय हो जाता है।
प्रश्न 3.
ऊँचे कुल से कवि का क्या आशय है ?
उत्तर :
ऊँचे कुल से कवि का आशय है – सुख-समृद्धि से भरपूर सज्जन परिवार, जिसकी समाज में प्रतिष्ठा हो।
प्रश्न 4.
दोहे में किसे महत्त्वपूर्ण बताया गया है ?
उत्तर :
दोहे में अच्छे कर्म को महत्त्वपूर्ण बताया गया है।
प्रश्न 5.
सज्जन किसकी निन्दा करते हैं ?
उत्तर :
ऊँचे कुल में जन्म लेकर उच्च कर्म न करनेवालों की सज्जन निन्दा करते हैं।
प्रश्न 6.
‘सुबरन कलस सुरा भरा, साधू निंदा सोई’ पंक्ति में कौन-सा अलंकार है ?
उत्तर :
‘सुबरन कलस सुरा भरा, साधू निंदा सोइ’ पंक्ति में अनुप्रास अलंकार है।
सबद (पद)
1. मोकों कहाँ ढूँढे बंदे, मैं तो तेरे पास में।
ना मैं देवल ना मैं मसजिद, ना काबे कैलास में।
ना तो कौने क्रिया-कर्म में, नहीं योग बैराग में।
खोजी होय तो तुरते मिलिहौं, पल भर की तालास में।
कहैं कबीर सुनौ भई साधो, सब स्वाँसों की स्वाँस में।।
भावार्थ : मनुष्य ईश्वर को पाने के लिए तरह-तरह के क्रिया-कर्म करता है, परन्तु उसे ईश्वर के दर्शन नहीं होते हैं। कबीर के अनुसार स्वयं निराकार ब्रह्म मनुष्य से कहते हैं कि हे मनुष्य ! तुम मुझे ढूँढ़ने के लिए कहाँ-कहाँ भटक रहे हो। मैं किसी मंदिरमस्जिद में तुम्हें नहीं मिलूँगा, और न किसी तीर्थस्थान पर। मैं किसी बाह्याडंबर से भी नहीं मिल सकता। योगी और बैरागी बनकर भी तुम मुझे नहीं पा सकते हो। जो मुझे सच्चे मन से खोजता है, उसे मैं तुरंत मिल जाता हूँ क्योंकि मैं तो प्रत्येक प्राणी की हर साँस में बसा हूँ। अतः अन्यत्र भटकने के बदले अपने मन में खोजो।
प्रश्न 1.
क्रिया-कर्म से कबीर का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
क्रिया-कर्म से तात्पर्य पूजा, जप, तप, हवन या अन्य किसी भी प्रकार के कर्मकांड से है।
प्रश्न 2.
मनुष्य जीवनभर ईश्वर को कहाँ ढूँढता रहता है ?
उत्तर :
मनुष्य जीवनभर ईश्वर को मंदिर, मस्जिद गुरुद्वारे जैसे धार्मिक स्थलों तथा काबा-काशी-कैलाश जैसे तीर्थस्थलों में ढूँढ़ता रहता है। वह कभी योग-साधना जैसी क्रियाएँ करता है तो कभी वैराग्य धारण करके ईश्वर को खोजता है।
प्रश्न 3.
ईश्वर को पलभर में कौन प्राप्त कर सकता है ?
उत्तर :
खोजी व्यक्ति अर्थात् जो सच्चे मन से प्रभुभक्ति करता है, वह ईश्वर को पलभर में ही प्राप्त कर सकता है।
प्रश्न 4.
कबीर ने किन बातों पर विशेष बल दिया है ?
उत्तर :
कबीर ने ईश्वर को अपने भीतर ही खोजने पर बल दिया है। उनका कहना है कि ईश्वर को मंदिर, मस्जिद या तीर्थस्थलों पर नहीं पाया जा सकता है।
2. संतों भाई आई ग्याँन की आँधी रे।
भ्रम की टाटी सबै उडाँनी, माया रहै न बाँधी।।
हिति चित्त की दै यूँनी गिराँनी, मोह बलिंडा तूटा।
त्रिस्नों छाँनि परि घर ऊपरि, कुबधि का भाँडाँ फूटा।।
जोग जुगति करि संतौं बाँधी, निरचू चुवै व पाँणी।
कूड़ कपट काया का निकस्या, हरि की गति जब जाँणी।।
आँधी पीछे जो जल चूठा, प्रेम हरि जन भींनौं।
कहै कबीर भाँन के प्रगटे उदित भया तम खीनों।।
भावार्थ : कबीर ज्ञान का महत्त्व बताते हुए कहते हैं कि हे संतों ! ज्ञान की आँधी आई है। उसके प्रभाव से भ्रम की टाटी उड़ गई है। अब वह माया की रस्सी से बँधा नहीं है। स्वार्थरूपी दोनों खंभे और मोह की बल्लियाँ टूट गई हैं। तृष्णा का छप्पर ऊपर गिर जाने से घर में रहे कुबुद्धि के सभी बर्तन टूट गए हैं। संतों ने योग-साधना के उपाय से एक ऐसा मजबूत छप्पर बनाया है, जिससे थोड़ा भी पानी नहीं टपकता है। संतों ने जब ईश्वर का मर्म जान लिया तो उनके शरीर से समस्त विकार नष्ट हो गए। इस ज्ञान रूपी आँधी के पश्चात् जो प्रभु के प्रेम की वर्षा हुई है उसमें सभी भीग गए हैं। ज्ञान के सूर्योदय से मन का अंधकार नष्ट हो गया है।
प्रश्न 1.
कबीर ने कैसी आँधी आने की बात कही है ?
उत्तर :
कबीर ने ज्ञान की आँधी आने की बात कही है।
प्रश्न 2.
शरीर का कूड़ कपट किसे कहा गया है ?
उत्तर :
शरीर का कूड़ कपट मोह-माया, लालच, छलकपट, कुबुद्धि और सांसारिक विषय-वासनाओं को कहा गया है।
प्रश्न 3.
साधारण आँधी और ज्ञान की आँधी के विषय में कबीर ने क्या कहा है ?
उत्तर :
साधारण आँधी के आने पर छप्पर गिर जाते हैं, उसमें रखे हुए बर्तन टूट जाते है। ज्ञान की आँधी आने पर मन के स्वार्थ का खंभा तथा मोहमाया का छप्पर गिर जाता है, उसमें रहे विकार, छलकपट, लालच और विषय-वासनाएँ नष्ट हो जाती हैं।
प्रश्न 4.
हरि की गति जान लेने से क्या परिवर्तन आया ?
उत्तर :
हरि की गति जान लेने के पश्चात् प्रभु-भक्ति की प्रेमवर्षा में कवि का मन भीग गया और ज्ञान क उदय होने से मन का अंधकार नष्ट हो गया।
प्रश्न 5.
‘कूड कपट काया निकस्या’ में कौन-सा अलंकार है ?
उत्तर :
‘कूड कपट काया निकस्या’ में अनुप्रास अलंकार है।
कविता
आ रही रवि की सवारी
नव किरण का रथ सजा है,
कलि-कुसुम से पथ सजा है,
बादलों से अनुचरों ने स्वर्ण की पोशाकधारी।
आ रही रवि की सवारी।
विहग बंदी और चारण
गा रहे हैं कीर्ति गायन
छोड़कर मैदान भागी तारकों की फौज सारी।
आ रही रवि की सवारी।
चाहता, उछलूँ विजय कह
पर ठिठकता देखकर यह
रात का राजा खड़ा है, राह में बनकर भिखारी।
आ रही रवि की सवारी।
उपर्युक्त कविता के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
प्रश्न 1.
सूर्य किस पर सवार होकर आ रहा है ?
उत्तर :
सूर्य किरणों के रथ पर सवार होकर आ रहा है ।।
प्रश्न 2.
सूर्य के स्वागत में बादल किस तरह खड़े नजर आ रहे हैं ?
उत्तर :
सूर्य के स्वागत में बादल रंगीन पोशाक पहनकर खड़े नजर आ रहे हैं ।
प्रश्न 3.
सूर्यरूपी राजा की प्रशंसा में कौन-कौन कीर्तिगीत गा रहे हैं ?
उत्तर :
सूर्यरुपी राजा की प्रसंशा में पक्षी रूपी चारण और बंदीगण कीर्तिगीत गा रहे हैं ।
प्रश्न 4.
राह में भिखारी बनकर कौन खड़ा है ?
उत्तर :
राह में चन्द्रमा भिखारी बनकर खड़ा है ।
प्रश्न 5.
‘रात का राजा खड़ा है, राह में बनकर भिखारी’ में कौन-सा अलंकार है ?
उत्तर :
‘रात का राजा खड़ा है, राह में बनकर भिखारी’ में अनुप्रास अलंकार है ।
सानियाँ एवं सबद Summary in Hindi
कबीर के जन्म-मृत्यु और माता-पिता को लेकर अनेक किंवदंतियाँ हैं। किन्तु यह निर्विवाद है कि नीरू-नीमा नामक जुलाहा दंपति ‘ ने इनका पालन-पोषण किया था। कबीर अपने पदों में अपने आपको जुलाहा ही कहते हैं। ये रामानंद के शिष्य थे। लेकिन रामानंद के राम कबीर के राम नहीं हैं।
कबीर भक्तिकाल की निर्गुण परंपरा के कवि हैं। उनकी वाणी का संग्रह ‘बीजक’ के नाम से प्रसिद्ध है। इसके तीन भाग हैं – 1. रमैनी, 2. सबद, 3. साखी। रमैनी और सबद में गेय पद हैं और साखी में दोहे संकलित हैं। कबीर की कुछ रचनाएँ ‘गुरु ग्रंथ साहब’ में भी संकलित हैं।
कबीर अपने अनुभव और विवेक पर भरोसा करते थे। शास्त्र में लिखी हुई बातों को आँख बंद करके स्वीकार कर लेना उनके स्वभाव के विरुद्ध था। इन्होंने अपने युग में ईश्वर के नाम पर चलनेवाले हर तरह के पाखंड, भेदभाव और कर्मकांड का खंडन किया। वे राम और रहीम की एकता में विश्वास रखते थे।
ईश्वर-प्रेम, ज्ञान तथा वैराग्य, गुरुभक्ति, सत्संग और साधु-महिमा के साथ आत्मबोध और जगतबोध की अभिव्यक्ति उनके काव्य में हुई है। भाषा पर इनका जबरदस्त अधिकार था। इनकी भाषा में कई प्रांतों के शब्दों का चित्रण होने से उसे पंचमेल खिचड़ी भी कहा जाता है तो कई विद्वान इनकी भाषा को सधुक्कड़ी भाषा भी कहते हैं।
कविता-परिचय :
‘साखियाँ एवं सबद’ नामक प्रस्तुत पाठ में कुल सात साखियाँ और दो सबद हैं। सानियों में प्रेम का महत्त्य, संत के लक्षण, ज्ञान की महिमा, बाह्याडंबरों का विरोध आदि भावों का उल्लेख है। इसके अतिरिक्त पहले शब्द में बाह्याडंबरों का विरोध एवं अपने भीतर ही ईश्वर की व्याप्ति का संकेत है। दूसरे सबद में ज्ञान की आँधी के रूपक के सहारे ज्ञान के महत्त्व का वर्णन है। कबीर का मानना है कि ज्ञान की सहायता से मनुष्य अपनी दुर्बलताओं से मुक्त होता है।
शब्दार्थ-टिप्पण
- सुभर – अच्छी तरह भरा हुआ
- केलि – क्रीड़ा
- मुकताफल – मोती
- कराहीं – करना
- उड़ि – उड़कर
- अनत – अन्यत्र
- कहीं और, फिरौं – घूमता हूँ
- हस्ती – हाथी
- दलीचा – कालीन
- स्वान – कुत्ता
- झख्न मारना – समय बरबाद करना
- पनापनी – पक्ष-विपक्ष
- कारने – कारण
- भुलान – भूला हुआ
- निरपन – निष्पक्ष
- सुजान – चतुर
- मुआ – मर गया
- सो – वही
- जीवता – जीता है
- दुहुँ – दोनों
- निकटि – निकट
- पास, काबा – मुसलमानों का पवित्र तीर्थस्थल
- कासी – हिन्दुओं का पवित्र तीर्थस्थल
- मोट – मोटा
- चून – आटा
- जीम – भोजन करना
- कुल – खानदान
- जनमिया – जन्म लेकर
- करनी – कर्म
- सुबरन – सोने का
- कलस – घड़ा,
- सुरा – मदिरा, शराब,
- मोको – मुझको
- देवल – मंदिर
- तुरतै – तुरंत
- टाटी – परदे के लिए लगाए गए घास, फूस और बाँस आदि की फट्टियों का पल्ला
- उड़ॉनी – उड़ गई
- हिति – स्वार्थ
- चित्त – मन
- धूनी – स्तंभ, टेक
- बलिंडा – छप्पर की मजबूत मोटी लकड़ी, बल्ली
- त्रिस्नाँ – तृष्णा
- छाँनि – छप्पर
- कुबधि – कुबुद्धि
- भाँडौं फूटा – भेद खुला
- जोग – योग साधना
- जुगति – उपाय
- निरचू – थोड़ा भी
- चुये – टपकना
- बूठा – बरसा
- भीनों – भीग गया
- भाँन – भानु, सूर्य
- तम – अंधकार
- खीनों – क्षीण हुआ