GSEB Solutions Class 12 Hindi Chapter 2 नमक का दारोगा

   

Gujarat Board GSEB Std 12 Hindi Textbook Solutions Chapter 2 नमक का दारोगा Textbook Exercise Important Questions and Answers, Notes Pdf.

GSEB Std 12 Hindi Textbook Solutions Chapter 2 नमक का दारोगा

GSEB Std 12 Hindi Digest नमक का दारोगा Textbook Questions and Answers

स्वाध्याय

1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दिए गए विकल्पों में से चुनकर लिखिए :

प्रश्न 1.
नमक विभाग के दरोगा पद पर किसकी नियुक्ति हुई थी?
(क) पण्डित अलोपीदीन
(ख) वंशीधर
(ग) बदलू सिंह
(घ) वृद्ध मुंशीजी
उत्तर :
(ख) वंशीधर

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प्रश्न 2.
नमक की गाड़ियाँ किसकी थी?
(क) मुन्शी वंशीधर की
(ख) पण्डित जगप्रसाद की
(ग) पंडित अलोपोदीन की
(घ) बदलू सिंह
उत्तर :
(ग) पंडित अलोपोदीन की

प्रश्न 3.
पण्डित अलोपीदीन को किस पर अखंड विश्वास था?
(क) शिवजी पर
(ख) रामजी पर
(ग) लक्ष्मीजी पर
(घ) वकील
उत्तर :
(ग) लक्ष्मीजी पर

प्रश्न 4.
वंशीधर को पण्डित अलोपीदीन ने कौन-से पद पर नियुक्त किया?
(क) स्थायी मैनेजर
(ख) दारोगा
(ग) जज
(घ) हनुमानजी पर
उत्तर :
(क) स्थायी मैनेजर

2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-एक वाक्य में लिखिए:

प्रश्न 1.
वंशीधर किस विभाग के दारोगा थे?
उत्तर :
वंशीधर नमक विभाग के दारोगा थे।

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प्रश्न 2.
वंशीधर ने पुल पर क्या देखा?
उत्तर :
वंशीधर ने देखा कि गाड़ियों की एक लंबी कतार पुल के पार जा रही है।

प्रश्न 3.
पण्डित अलोपीदीन को किसने हिरासत में लिया?
उत्तर :
दारोगा वंशीधर के आदेश पर जमादार बदलू सिंह ने पंडित अलोपीदीन को हिरासत में लिया।

प्रश्न 4.
मुकद्दमे में किसकी जीत हुई?
उत्तर :
मुकदमे में पंडित अलोपीदीन की जीत हुई।

प्रश्न 5.
वंशीधर की माता की कौन-सी कामना मिट्टी में मिल गई?
उत्तर :
वंशीधर की माता की जगन्नाथ और रामेश्वर यात्रा की कामनाएँ मिट्टीमें मिल गईं।

3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो-तीन वाक्यों में लिखिए:

प्रश्न 1.
वृद्ध गुंगीनी बपों फूते न रागाये?
उत्तर :
मुंशीजी के पुत्र अच्छे शकुन से घर से चले थे। जातेही-जाते नमक के दारोगा पद पर उनकी नियुक्ति हो गई। अच्छा वेतन और अच्छी ऊपरी आय। वृद्ध मुंशीजी को जब यह सुखद संवाद मिला, तो वे फले न समाए।

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प्रश्न 2.
वंशीधर रात को जमुना नदी पर क्यों गए?
उत्तर :
वंशीधर का आफिस जमुना नदी से एक मील की दूरी पर था। रात में वंशीधर सो रहे थे। नदी पर गाड़ियों की गड़गड़ाहट और मल्लाहों का कोलाहल सुनकर वे उठ बैठे। उन्हें लगा कि इतनी रात गए गाड़ियां क्यों नदी के पार जा रही हैं। अवश्य कुछ गोलमाल है। सच्चाई जानने के लिए वंशीधर रात को जमुना नदी पर पहुंच गए।

प्रश्न 3.
पण्डित अलोपीदीन को क्यों हिरासत में लिया गया?
उत्तर :
नमक के दारोगा वंशीधर ने पंडित अलोपीदीन की नमक की गाड़ियों को नदी के पार जाते हुए पकड़ा था और उन्हें रोक दिया था। पंडित अलोपीदीन ने उससे पैसे लेकर मामले को रफा-दफा करने का आग्रह किया। पर वंशीधर किसी भी कीमत पर उन छोड़ने को राजी नहीं हुआ और उसके आदेश से उन्हें हिरासत में ले लिया गया।

प्रश्न 4.
वंशीधर की अदालत में क्यों हार हुई?
उत्तर :
अदालत में अधिकारी वर्ग से लेकर छोटे-से-छोटा कर्मचारी पंडित अलोपीदीन के भक्त थे। सबको ताज्जुब हो रहा था कि वे कानून के पंजे में आए कैसे? अदालत में तुरंत वकीलों की सेना तैयार हो गई। वंशीधर के गवाह लोभ से डौवांडोल थे। सभी कर्मचारी अलोपीदीन का पक्षपात कर रहे थे। डिप्टी मैजिस्ट्रेट ने अपनी तजवीज में पंडित अलोपीदीन के विरुद्ध दिए गए प्रमाण को निर्मूल और भ्रामक करार दे दिया। इसलिए वंशीधर की हार हो गई।

4. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर पाँच-छ वाक्य में दीजिए।

प्रश्न 1.
पण्डित अलोपीदीन के व्यक्तित्व का परिचय दीजिए।
उत्तर :
पंडित अलोपीदीन अपने इलाके के सबसे प्रतिष्ठित जमींदार थे। उनका लंबा-चौड़ा व्यापार था। वे बड़े चलते-पुरजे आदमी थे। अफसरों, अधिकारियों से लेकर हर छोटे-बड़े आदमी पर उनका एहसान था। अपने सजीले रथ पर सवार होकर चलना उनका शौक था। उनका लक्ष्मीजी पर अखंड विश्वास था। वे संसार ही नहीं स्वर्ग पर भी लक्ष्मी का राज्य होने की बात कहते थे। वे न्याय और नीति सबको लक्ष्मीजी के खिलौने मानते थे। लक्ष्मी के सामने वे सरकार और सरकारी आदेश को कोई महत्व नहीं देते। वे अपने प्रभाव के बल पर अदालत का न्याय भी अपने पक्ष में करवा सकते थे और कार्य सिद्ध होने पर स्वजन-बान्धवों को रुपये लुटाना उनका शौक था।

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प्रश्न 2.
पण्डित अलोपीदीन ने वंसीधर को जायदाद का स्थायी मैनेजर क्यों नियुक्त किया?
उत्तर :
पंडित अलोपीदीन का लक्ष्मीजी पर अखंड विश्वास था। ये लक्ष्मी के बल पर कोई भी काम करवा लेने में विश्वास रखते थे। उनका कहना था कि न्याय और नीति सब लक्ष्मीजी के खिलोने हैं। उनकी इस मान्यता को तोड़ा था मुंशी वंशीधर ने। पंडित अलोपीदीन ने अपनी नमक से भरी गाड़ियों को छोड़ने के लिए वंशीधर से चालीस हजार रुपये तक के घूस का प्रस्ताव किया, पर वंशीधर ने एक सच्चे और कर्तव्यपरायण अधिकारी की तरह उनके प्रस्ताव को ठुकराकर पंडित अलोपीदीन को हिरासत में ले लिया।

पंडित अलोपीदीन को पहेली बार ऐसा आदमी मिला था, जिसने धर्म को पैसों से अधिक अहमियत दी थी। पंडित अलोपीदीन को सच्चे आदमी की पहचान थी और उन्हें अपनी जायदाद की व्यवस्था करने के लिए वंशीधर एक उपयुक्त व्यक्ति लगा। इसलिए उन्होंने वंशीधर को अपनी जायदाद का स्थायी मैनेजर नियुक्त किया।

5. आशय स्पष्ट कीजिए:

प्रश्न 1.
न्याय और नीति सब लक्ष्मी के ही खिलौने हैं।
उत्तर :
किसी भी काम को नौति-सिद्धांत के अंतर्गत करने की व्यवस्था होती है। नियम-कानून के विरुद्ध कोई काम करने को अपराध माना जाता है और उसके लिए दंड की व्यवस्था होती है। पर कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो अधिकारियों को पैसे खिलाकर उनसे गलत-सही हर प्रकार का काम करवा लेते हैं। वे यह समझने लगते हैं कि न्याय और नीति उनके हाथ के खिलौने हैं और पैसों के बल पर उन्हें जब चाहें तब खरीदा जा सकता है। पंडित अलोपीदीन की यही मान्यता है।

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प्रश्न 2.
धर्म ने धन को पैरों तले कुचल डाला।
उत्तर :
पंडित अलोपीदीन को लक्ष्मीजी पर अखंड विश्वास था। उनको विश्वास था कि पैसे के बल पर कोई भी गैरकानूनी काम करवाया जा सकता है। इसलिए जब दारोगा वंशीधर ने उनकी गाड़ियां रोक ली, तो उन्होंने वंशीधर के सामने पैसे लेकर गाड़ियों को छोड़ देने का प्रस्ताव रखा। पर दरोगा ने पैसे लेने से साफ मना कर दिया और पंडित अलोपीदीन को हिरासत में ले लेने का आदेश दे दिया। उस समय पंडित अलोपीदीन को महसूस हुआ, जैसे धर्म ने धन को पैरों तले रौंद डाला हो।

6. निम्नलिखित कथनों की पूर्ति के लिए दिए गये विकल्पों में से उचित विकल्प चुनकर वाक्य पूर्ण कीजिए।

प्रश्न 1.
वंशीधर के अनुभवी पिता ने कहा….
(क) ऊपरी आमदनी ईश्वर देता है। इसी से बरकत होती है।
(ख) वेतन सरकार देती है और ऊपरी आमदनी धनवान देते हैं।
(ग) ऊपरी आमदनी कभी मत लेना।
(घ) वेतन के साथ ऊपरी आमदनी भी लेना।
उत्तर :
वंशीधर के अनुभवी पिता ने कहा, ऊपरी आमदनी ईश्वर देता है। उसी से बरकत होती है।

प्रश्न 2.
पण्डित आलोपीदीन को वंशीधर उत्तर देता है – ……
(क) पैसे से निपटारा हो जाएगा।
(ख) चालीस हजार नहीं, चालीस लाख पर भी असम्भव है।
(ग) पचास हजार तक सम्भव है।
(घ) ईश्वर के लिए मुझे माफ कर दीजिए।
उत्तर :
पंडित अलोपीदीन को वंशीधर उत्तर देता है, चालीस हजार नहीं; चालीस लाख पर भी असम्भव है।

प्रश्न 3.
पं. अलोपीदीन हंसकर बोले……
(क) ऐसी सन्तान को और क्या कहूँ?
(ख) हमारा भाग्य हुआ।
(ग) मुझे इस समग एक भगोग्ग मनुष्य की ही जरूरत है।
(घ) मैं आपका दास हूँ।
उत्तर :
पंडित अलोपौदीन हंसकर बोले, मुझे इस समय एक अयोग्य मनुष्य की ही जरूरत है।

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निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर सविस्तार (पाँच-छ: वाक्यों में) लिखिए :

प्रश्न 1.
रोजगार पर जाते समय बंशीधर के पिता ने उन्हें क्या – सीख दी?
उत्तर :
वंशीधर के पिता एक अनुभवी व्यक्ति थे। उन्होंने पहले तो – पुत्र का ध्यान उसके कर्तव्यों की ओर दिलाया और फिर उसे नौकरी में सफलता का मंत्र दिया। उन्होंने वंशीधर को समझाया कि नौकरी में ओहदे का महत्त्व नहीं है। यह तो पीर के मजार के समान है। निगाह चढ़ावे और चादर पर रहनी चाहिए। नौकरी ऐसौ करना जिसमें ऊपरी आय की गुंजाइश हो।

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मासिक वेतन तो पूर्णमासी के चाँद की तरह घटते-घटते गायब हो जाता है। ऊपरी आय बहता हुआ स्रोत है, जिसका प्रवाह कभी कम नहीं होता और सदा प्यास बुझाता रहता है। वेतन मनुष्य देता है इसलिए उसमें बढ़ोत्तरी नहीं होती। इसके विपरीत ऊपरी आय ईश्वर देता है। इसलिए उसमें बरकत होती है। मनष्य में विवेक का बड़ा महत्त्व है। अवसर के अनुसार आदमी से व्यवहार करना चाहिए। गरजवाले के साथ कठोर बनने से लाभ होता है जबकि बेगरज के साथ होशियारी से काम लेना चाहिए। इस प्रकार रोजगार पर जाते समय वंशीधर को पिता ने दुनियादारी की महत्त्वपूर्ण सीख दी।

प्रश्न 2.
दारोगा के रूप में मुंशी वंशीधर ने अपनी कर्तव्यनिष्ठा का परिचय किस प्रकार दिया?
उत्तर :
गाडीवानों ने पंडित अलोपीदीन को दारोगा द्वारा उनकी गाड़ियां रोक दी जाने की सूचना दी। पंडित अलोपीदीन को लक्ष्मीजी पर अखंड विश्वास था। घाट पर पहुंचकर उन्होंने बड़ी नम्रतापूर्वक दारोगा से गाड़ी रोकी जाने का कारण पूछा। दारोगा वंशीधर ने कहा कि सरकारी हुक्म के अनुसार गाड़ियाँ रोकी गई हैं। तब पंडित अलोपीदीन दारोगा वंशीधर को अपने ऐश्वर्य की मोहिनी से प्रभावित करने का प्रयास करने लगे। इससे अप्रभावित रहकर वंशीधर ने अलोपीदीन को हिरासत में लेने का आदेश दिया।

बात बनती न देखकर पंडित अलोपीदीन ने धन की सांख्यिक शक्ति का सहारा लिया। उन्होंने एक हजार से लेकर चालीस हजार तक की रिश्वत का सुनहरा जाल फेंका परंतु दारोगा वंशीधर अपने सच्चे मार्ग से नहीं डिगे। ईमान पर डिगे रहकर उन्होंने अलोपीदीन को हिरासत में ले लिया। इस प्रकार दारोगा वंशीधर ने अपनी कर्तव्यनिष्ठा का अद्भुत परिचय दिया।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो-तीन वाक्यों में लिखिए :

प्रश्न 1.
पंडित अलोपीदीन कौन थे?
उत्तर :
पंडित अलोपीदीन अपने इलाके के सबसे प्रतिष्ठित जमीदार थे। उनका लंबा-चौड़ा व्यापार था। अफसरों, अधिकारियों से लेकर हर छोटे-बड़े आदमी पर उनका एहसान था।

व्याकरण

निम्नलिखित शब्दों के पर्यायवाची (समानार्थी) शब्द लिखिए :

  1. निषेध = प्रतिबंध, मनाई, रोक
  2. सूत्रपात = आरंभ
  3. स = रिश्वत
  4. प्राबल्य = अदम्यता
  5. बरकत = वृद्धि
  6. वृत्तांत = विवरण
  7. ऋण = कर्ज
  8. ओहदा = पद
  9. मजार = दरगाह, कब
  10. लुप्त = गायब
  11. स्रोत = सोता, झरना
  12. शूल = काटा
  13. मोहित = मुग्ध, आकर्षित
  14. कोलाहल = शोर
  15. भ्रम = मिथ्या, भूल
  16. सन्नाटा = शांति
  17. इलाका = क्षेत्र
  18. यथार्थ = सत्य
  19. निश्चिंतता = बेफिक़ी
  20. लिहाफ = रजाई
  21. ऐश्वर्य = ठाट-बाट
  22. नमकहराम = धोखेबाज
  23. हिरासत = गिरफ्तारी
  24. स्तंभित = चकित
  25. दस्तावेज = सनद
  26. साहूकार = महाजन
  27. कदाचित = शायद
  28. उद्दण्ड = निडर, अक्खड़
  29. अल्हड़ = मस्त, लापरवाह
  30. अलौकिक = असंसारिक
  31. डॉवाडोल = अस्थिर
  32. पक्षपात = तरफदारी
  33. व्यंग्य = ताना
  34. मुअत्तली = पदच्युत
  35. परवाना = आज्ञापत्र
  36. अगवानी = स्वागत
  37. लल्लो-चप्पो = चिकनी-चुपड़ी
  38. त्रुटि = भूल, गलती
  39. मर्मज्ञ = रहस्यज्ञ

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निम्नलिखित शब्दों के विलोम (विरुद्धार्थी) शब्द लिखिए :

  1. दुर्दशा × सुदशा
  2. भूणी × उऋण
  3. मालिक × नौकर
  4. आय × व्यय
  5. विद्वान × मूर्ख
  6. आज्ञाकारी × अवज्ञाकारी
  7. वृद्ध × युवक
  8. आशीर्वाद × शाप
  9. शकुन × अपशकुन
  10. पुष्ट × अपुष्ट
  11. मेहमान × यजमान
  12. नमकहराम × नमकहलाल
  13. निरादर × आदर
  14. उदंड × सुशील
  15. दुर्लभ × सुलभ
  16. बुद्धिहीन × बुद्धिमान
  17. वाचालता × अवाचालता
  18. अलौकिक × लौकिक
  19. आत्मवलंबन × परावलंबन
  20. निर्मूल × समूल
  21. कीर्ति × अपकीर्ति
  22. कपूत × सपूत
  23. कृतज्ञता × कृतघ्न
  24. गुलाम × बादशाह, मालिक
  25. सत्कार × दुत्कार
  26. क्षमा × दण्ड
  27. सद्भाव × दुर्भाव
  28. विनय × अविनय
  29. स्थायो × अस्थायी
  30. उदारता × कृपणता
  31. प्रशंसा × निंदा
  32. उच्च × निम्न
  33. सज्जन × दुर्जन
  34. संकुचित × विस्तृत

निम्नलिखित तद्भव शब्दों के तत्सम रूप लिखिए :

  • कपूत – कुपुत्र
  • नींद – निद्रा
  • जीभ – जिहवा
  • कालिख – कालिमा

निम्नलिखित शब्दों में से प्रत्यय अलग कीजिए :

  • अनुभवी = अनुभव + ई (प्रत्यय)
  • आवश्यकता = आवश्यक + ता (प्रत्यय)
  • कमाई = कमाना + आई (प्रत्यय)

निम्नलिखित शब्दों में से उपसर्ग अलग कीजिए :

  • निरादर = निस् (उपसर्ग) + आदर
  • अलौकिक = अ (उपसर्ग) + लौकिक
  • सद्भाव = सत् (उपसर्ग) + भाव

निम्नलिखित वाक्यों में से विशेषण पहचानिए :

प्रश्न 1.

  1. वंशीधर आज्ञाकारी पुत्र था।
  2. हम सरकारी हुकम को नहीं जानते।

उत्तर :

  1. आज्ञाकारी – गुणवाचक विशेषण
  2. सरकारी – गुणवाचक विशेषण

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निम्नलिखित शब्दसमूहों के लिए एक-एक शब्द लिखिए :

  • मुसलमानों का धर्मगुरु – पीर
  • जिसके खंड न किए जा सके – अखंड
  • पान की गिलोरो – बीड़ा
  • अपराधी को पहनाई जानेवाली लोहे की जंजीर – हथकड़ी
  • कान के पास कही जानेवाली बात – कानाफूसी
  • हमेशा अन्न बाँटने का नियम – सदावत
  • ईश्वर द्वारा दिया हुआ – ईश्वरप्रदत्त
  • आदि से अंत तक का हाल – वृत्तांत
  • व्याज के साथ चुकाने के लिए लिया गया धन – ऋण
  • शुभ समय – शकुन
  • जिसे गरज न हो – बेगरज
  • सबसे ऊँचा – सर्वोच्च
  • सबके द्वारा सम्मानित – सर्वसम्मानित
  • फारसी बोलनेवाला – फारसीदों
  • नई वैज्ञानिक खोज – आविष्कार
  • पूरे चाँद की रात – पूर्णमासी
  • आज्ञा माननेवाला – आज्ञाचारी
  • पथ दिखानेवाला – पथदर्शक
  • अपने आप पर आधार रखना – आत्मावलंबन
  • जो बोल न सकता हो – गूंगा
  • जिसे कोई चिंता न हो – निश्चित
  • स्वामी या पालक के साथ छल करनेवाला – नमकहराम
  • आदर न करना – निरादर

निम्नलिखित अशुद्ध वाक्यों को शुद्ध करके फिर से लिखिए।

प्रश्न 1.

  1. यह मेरा जन्मभर का कमाई है।
  2. पड़ोसियों के हृदय में शूल उठने लगा।
  3. न्याय और नीति सब लक्ष्मी का ही खिलौना है।
  4. मैं तो आपका सेवा में स्वयं ही आ रहा था।
  5. तुम इने हिरासत में ले लो मैं हुकम देता हूँ।
  6. पंडितजी को पहली बार ऐसा कठोर बातें सुनना पड़ा।
  7. दुनिया सोता था, पर दुनिया की जीभ जागता था।
  8. पंडीत अलोपीदीन इस अगाध वन का सिंह था।

उत्तर :

  1. यह मेरी जन्मभर की कमाई है।
  2. पड़ोसियों के हृदय में शूल उठने लगे।
  3. न्याय और नीति सब लक्ष्मी के ही खिलौने हैं।
  4. मैं तो आपकी सेवा में स्वयं ही आ रहा था।
  5. तुम इन्हें हिरासत में ले लो, मैं हुक्म देता हूँ।
  6. पंडितजी को पहली बार ऐसी कठोर बातें सुननी पड़ी।
  7. दुनिया सोती थी, पर दुनिया की जीभ जागती थी।
  8. पंडित अलोपीदीन इस अगाध बन के सिंह थे।

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निम्नलिखित मुहावरों के अर्थ लिखकर वाक्यों में प्रयोग कीजिए :

पौ बारह होना – सब तरफ से लाभ ही लाभ होना
वाक्य : रामलाल को वनरक्षक की नौकरी क्या मिली, जंगल की संपत्ति बेचकर उसके तो पौ बारह हो गए।

कगार पर का वक्ष होना – मृत्यु के निकट होना
वाक्य : विश्वनाथ ने बेटे से कहा, “अब तुम अपनी घर-गृहस्थी देखो, मेरा क्या, में तो अब कगार का वृक्ष मात्र हूँ।”

फूला न समाना – बहुत प्रसन्न होना
वाक्य : बेटे की पदोन्नति का पत्र पाकर श्यामसुंदर फूले न समाए।

चलता पुर्जा होना – चालाक व्यक्ति होना
वाक्य : जतिन टेखने में भोलाभाला लगता है. पर है वह चलता परजा।

कौडियों पर ईमान बेचना – थोड़े पैसों में बिक जाना
वाक्य : देशद्रोहियों का क्या है, वे तो कौड़ियों पर अपना ईमान बेचते रहते हैं।

इज्जत धूल में मिलना – दूसरों की नज़र में गिर जाना
वाक्य :
परीक्षा में विद्यार्थियों को खुले आम नकल कराते हुए पकड़े जाने पर शिक्षक महोदय की इज्जत धूल में मिल गई।

नींव हिला देना – जड़ या आधार कमजोर करना
वाक्य : गांधीजी ने सत्याग्रह के बल पर अंग्रेजी साम्राज्य की नींव हिला दी थी।

मिट्टी में मिल जाना – बरबाद हो जाना
वाक्य : इनकम टैक्स विभाग का छापा पड़ने पर सेठजी की गलत ढंग से की गई सारी कमाई मिट्टी में मिल गई।

मन का मैल मिटना – किसी के प्रति मन में बनी गलत धारणा मिटना
वाक्य : जब मुनीमजी ने सेठजी के सामने एक-एक पैसे का हिसाब रख दिया, तो मुनीमजी के प्रति सेठजी के मन का मैल मिट गया।

निगाह में बाँध लेना – सदा याद रखना
वाक्य : किसान ने कृषिअधिकारी द्वारा गेहूं की अच्छी उपज करने के बारे में बताई गई बातें निगाह में बाँध ली।

हृदय में शूल उठना – ईर्ष्या होना
वाक्य : गरीबी में दिन काट रहे रमण बाबू के बेटे की एक विदेशी कंपनी में अच्छे वेतन पर नौकरी लग जाने पर पड़ोसियों के हृदय में शूल उठने लगे।

नमक का दारोगा Summary in Hindi

विषय-प्रवेश :

प्रेमचंद की कहानियों में समाज में व्याप्त कुरीतियों एवं सरकारी महकमों में व्याप्त भ्रष्टाचार का हूबहू रूप देखने को मिलता है। प्रस्तुत कहानी में उन्होंने तत्कालीन समाज की यथार्थ स्थिति का चित्रण किया है। कहानी में पंडित अलोपीदीन धन के बल पर जहाँ हर प्रकार के गैरकानूनी काम करवा लेने में विश्वास रखते हैं और अदालत के अधिकारी उनके प्रभाव में गलत-सही हर प्रकार का फैसला उन्हीं के पक्ष में करते हैं, वहीं दारोगा वंशीधर अपनी ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा का परिचय देते हुए पंडित अलोपोदीन जैसे प्रभावशाली व्यक्ति को हिरासत में लेकर उन पर मुकदमा चलवाने की हिम्मत करता है। अंत में पंडित अलोपीदीन वंशीधर की ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा के आगे नत-मस्तक हो जाते हैं और उसे अपनी संपत्ति का स्थायी मैनेजर नियुक्त कर देते हैं।

GSEB Solutions Class 12 Hindi Chapter 2 नमक का दारोगा

पाठ का सार :

नमक का नया विभाग : उस समय प्राकृतिक नमक का व्यवहार करने पर अंकुश लग गया था। इसलिए व्यापारीगण चोरी-छिपे नमक का व्यापार करते थे। नमक का नया विभाग खुल गया था। घूस देकर काम हो रहा था और अधिकारियों की जेबें भर रही थीं।

नमक का दारोगा : इस विभाग के दारोगा का पद इतना आमदनी देनेवाला हो गया कि इस पद को पाने के लिए वकीलों तक का जी ललचाता था।

मुंशी वंशीधर : उसी समय मुंशी वंशीधर भी रोजगार पाने की इच्छा से घर से निकले थे। उनके पिता ने उन्हें समझाया कि नौकरी ऐसी करना, जिसमें ऊपरी आमदनी हो, क्योंकि ऐसी नौकरी में ही बरकत होती है।

वंशीधर बने नमक का दरोगा : वंशीधर अच्छे शकुन से घर से निकले थे। उन्हें नमक विभाग में दारोगा की नौकरी मिल गई। वेतन अच्छा और ऊपरी आमदनी तो अंधाधुंध। इससे वृद्ध पिता की खुशी का ठिकाना न रहा।

बात एक रात की : एक रात को दारोगा वंशीधर गहरी नींद में सोए थे। अचानक उन्हें गाड़ियों की गड़गड़ और मल्लाहों का शोर सुनाई दिया। वे तुरंत वरदी पहनकर और अपनी पिस्तौल लेकर आवाज़ की जगह जा पहुंचे। उन्होंने देखा कि गाड़ियों की लंबी कतार यमुना नदी पर नावों से बने पुल से होकर दूसरी ओर जा रही है।

पंडित अलोपीदीन का नाम : पूछ-परख से पता चला कि ये गाड़ियाँ पंडित अलोपीदीन की है और उन पर लदा नमक कानपुर भेजा जा रहा है। अलोपीदौन इलाके के प्रतिष्ठित जमींदार थे और उनका लाखों का लेनदेन था। वे बड़े चलता-पुरजा आदमी थे। दारोगा वंशीधर ने नमक की सारी गाड़ियाँ रोक दी।

अलोपीदीन का सिद्धांत : पंडित अलोपीदीन को सूचना मिली तो उन्होंने इसे सामान्य ढंग से लिया। उनका सिद्धांत था, सारी समस्याएं लक्ष्मी के बल पर हल की जा सकती हैं। वे मौके पर पहुंचकर दारोगा वंशीधर को अपने ऐश्वर्य की मोहिनी से प्रभावित करने का प्रयास करने लगे। वंशीधर पर इसका कोई असर नहीं हुआ और वह उन्हें हिरासत में लेने का आदेश दे देता है।

घूस देने का प्रयास : बात बनती न देखकर पंडित अलोपीदीन दारोगा वंशीधर को अपने मुख्तार से एक हजार रुपये देने का आदेश देते हैं। इस पर दारोगा ने कहा कि एक हजार क्या, एक लाख देकर भी आप मुझे सच्चे मार्ग से नहीं डिगा सकते।

बढ़ती रकम : पंडित अलोपीदीन एक से पांच, पांच से दस, दस से पंद्रह, पंद्रह से बीस और अंत में चालीस हजार रुपये देने की पेशकश करते हैं, पर दारोगा वंशीधर टस-से-मस नहीं हुआ। अंत में वंशीधर ने अलोपीदीन को हिरासत में ले लेता है।

अदालत में पेशी : अदालत में अधिकारी से लेकर अर्दली तक अलोपीदीन के भक्त थे। सबको ताज्जुब था कि वे कानून के पंजे में कैसे आ गए। वकीलों की एक सेना तैयार हो गई और डिप्टी मैजिस्ट्रेट ने लिखा कि मुकदमे में पंडित अलोपीदीन के विरुद्ध दिए गए प्रमाण निर्मूल और भ्रमात्मक हैं। यह बात कल्पना से बाहर है कि उन्होंने थोड़े लाभ के लिए ऐसा दुस्साहस किया हो।

धन से वैर का परिणाम : वंशीधर ने धन से वैर मोल लिया था। एक सप्ताह बाद उन्हें मुजत्तली का परवाना मिल गया। उनके बूढ़े पिता पछताकर हाथ मलने लगे। वंशीधर की माता की जगन्नाथ और रामेश्वर की यात्रा की कामना मिट्टी में मिल गई।

वंशीधर को ईमानदारी का इनाम : पंडित अलोपीदीन का ज़िंदगी में पहली बार सच्चे आदमी से सामना पड़ा था। वे कुछ दिनों बाद वंशीधर के घर गए। उन्होंने वंशीधर से कहा, “मेरा हजारों उच्च पदाधिकारियों से काम पड़ा है। सबको मैंने धन का गुलाम बनाकर छोड़ दिया, किन्तु मुझे परास्त किया तो आपने।” उन्होंने वंशीधर के सामने स्टैंप लगा पत्र रख दिया और उनसे उस पर दस्तखत कर देने के लिए कहा। वंशीधर ने पत्र पढ़ा। पंडित अलोपीदीन ने उन्हें अपनी सारी जायदाद का स्थायी मैनेजर नियुक्त किया था। छः हजार मासिक वेतन, रोज का खर्च, बंगला, सवारी के लिए घोड़ा, नौकर-चाकर मुफ्त!

वंशीधर की कृतज्ञता : वंशीधर को पंडित अलोपीदीन से इतने अच्छे व्यवहार की उम्मीद न थी। उनकी आँखें खुशी और श्रद्धा से डबडबा आई।

GSEB Solutions Class 12 Hindi Chapter 2 नमक का दारोगा

नमक का दारोगा शब्दार्थ :

  • ईश्वरदत्त – ईश्वर द्वारा दी हुई।
  • छल-प्रपंच – छलकपट।
  • सूत्रपात – किसी कार्य का प्रारंभ होना।
  • सर्वसम्मानित – सबसे प्रतिष्ठित।
  • प्राबल्य – प्रबलता।
  • वृत्तान्त – विवरण, हाल।
  • ओहदे – किसी विभाग में कर्मचारी का पद।
  • चढ़ावे – देवता पर चढ़ाई जानेवाली सामग्रियाँ।
  • लुप्त – गायब।
  • बरकत – वृद्धि, बढ़ती।
  • गरज – आवश्यकता।
  • धैर्य – धीरज।
  • पथप्रदर्शक – मार्ग दिखानेवाली।
  • शकुन – सगुन, शुभ मुहूर्त या लक्षण।
  • प्रतिष्ठित – सम्मानित।
  • मोहित – मुग्ध, आसक्त।
  • तर्क – दलील।
  • पुष्ट – पक्का।
  • तमंचा – पिस्तौल।
  • अखंड – दृढ़, पूरा।
  • उमंग – उल्लास।
  • चालान – अपराधी को पकड़कर न्याय के लिए भेजा जाना।
  • स्तंभित – चकित।
  • उहंड – अक्खड़, उद्धत।
  • अल्हड़ – दुनियादारी न जाननेवाला, भोला आदमी।
  • दीनभाव – नम होने का भाव।
  • ऐश्वर्य – धनसम्पत्ति।
  • सांख्यिक – आंकड़ों का समूह।
  • देव-दुर्लभ – देवताओं के लिए दुर्लभ।
  • अलौकिक – अद्भुत, अपूर्व।
  • अविचलित – स्थिर।
  • रोजनामचा – दैनिकी।
  • अगाध – अथाह, अपार।
  • अमले – किसी संस्था के अधिकारियों का दल।
  • अरदली – अधिकारियों के चपरासी।
  • विस्मित – चकित, अचम्भित।
  • अनन्य – अभिन्न, एकनिष्ठ।
  • वाचालता – वाकपटुता।
  • डांवाडोल – अस्थिर।
  • तजबीज – फैसला, राय।
  • निर्मूल – निराधार।
  • भ्रमात्मक – भ्रम पैदा करनेवाले।
  • नमकहलाली – स्वामिभक्ति ।
  • गर्वाग्नि – गर्व रूपी आग।
  • प्रज्ज्वलित – जलाना।
  • मुअत्तली – जाँच के लिए पद से हटाए जाने की क्रिया।
  • परवाना – आज्ञापत्र।
  • कार्यपरायणता – कर्तव्य के प्रति आसक्ति।
  • भग्नहदय – निराश।
  • कुडबुडाना – मन में कुढ़ना।
    अकारथ – व्यर्थ।
  • दुरवस्था – बुरी हालत।
  • विकट – भयानक।
  • पछहिये – पश्चिम दिशा के अच्छी नस्ल के।
  • दंडवत – जमीन पर लेटकर।
  • लल्लो – चप्पो-चिकनी-चुपड़ी।
  • कपूत – बुरा लड़का।
  • वात्सल्यपूर्ण – स्नेहपूर्ण।
  • कुलतिलक – कुल का तिलक।
  • धर्मपरायण – धर्म में आसक्ति रखनेवाला।
  • अर्पण – निछावर।
  • स्वाभिमान – अपनी प्रतिष्ठा का अभिमान।
  • विनीत – विनम्र।
  • कृतज्ञता – एहसान मानने का भाव।
  • नियत – निश्चित।
  • कम्पित – कॉपता हुआ।
  • मर्मज्ञ – मन की बात का जानकार।
  • विद्वता – बुद्धि, ज्ञान।
  • बेमुरौवत – सौजन्यता, उदारता।
  • धर्मनिष्ठ – जो धर्म में आस्था रखता हो।

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