GSEB Solutions Class 11 Hindi Chapter 7 परशुराम-लक्ष्मण संवाद

Gujarat Board GSEB Hindi Textbook Std 11 Solutions Chapter 7 परशुराम-लक्ष्मण संवाद Textbook Exercise Important Questions and Answers, Notes Pdf.

GSEB Std 11 Hindi Textbook Solutions Chapter 7 परशुराम-लक्ष्मण संवाद

GSEB Std 11 Hindi Digest परशुराम-लक्ष्मण संवाद Textbook Questions and Answers

स्वाध्याय

1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दिए गए विकल्पों से चुनकर लिखिए :

प्रश्न 1.
शिवजी के धनुष को किसने तोड़ा था ?
(क) लक्ष्मणजी ने
(ख) श्रीरामजी ने
(ग) भरतजी ने
(घ) शत्रुघ्नजी ने
उत्तर :
शिवजी के धनुष को श्रीरामजी ने तोड़ा था।

प्रश्न 2.
‘आप बिना कारण ही क्रोध क्यों कर रहे हैं’ यह वाक्य कौन बोलता है ?
(क) भरत
(ख) श्रीराम
(ग)लक्ष्मण
(घ) सीताजी
उत्तर :
‘आप बिना कारण ही क्रोध क्यों कर रहे हैं’ यह वाक्य लक्ष्मण बोलता है।

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प्रश्न 3.
‘मेरा फरसा बड़ा भयानक है यह गर्भ के बच्चों का भी नाश करनेवाला है’ यह वाक्य कौन बोलता है?
(क) श्रीराम
(ख) परशुराम
(ग)लक्ष्मण
(घ) सीताजी
उत्तर :
‘मेरा फरसा बड़ा भयानक है, यह गर्भ के बच्चों का भी नाश करनेवाला है’ यह वाक्य परशुराम बोलते हैं।

प्रश्न 4.
परशुराम लक्ष्मणजी को कैसा बालक कहते है?
(क) कम बुद्धिवाला
(ख) कुबुद्धि और कुटिल
(ग) सुबुद्धि-सुशील
(घ) सुबुद्धिवाला
उत्तर :
परशुराम लक्ष्मणजी को कुबुद्धि और कुटिल बालक कहते हैं।

2. एक-एक वाक्य में उत्तर दीजिए :

प्रश्न 1.
शिवजी का धनुष तोड़नेवाले को परशुराम किसके समान अपना शत्रु कहते हैं ?
उत्तर :
शिवजी का धनुष तोड़नेवाले को परशुराम सहस्रबाहु के समान अपना शत्रु कहते हैं।

प्रश्न 2.
परशुराम का व्यक्तित्व कैसा है?
उत्तर :
परशुराम का व्यक्तित्व अत्यंत डरावना है।

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प्रश्न 3.
सहस्रबाहु की भुजाओं को काटनेवाले अस्त्र का नाम क्या था ?
उत्तर :
सहस्रबाहु की भुजाओं को काटनेवाले अस्त्र का नाम परशु (फरसा) था।

प्रश्न 4.
परशुराम के क्रोधरूपी अग्नि को बढ़ते देखकर कौन शीतल वचन बोलता हैं ?
उत्तर :
परशुराम के क्रोधरूपी अग्नि को बढ़ते देखकर रामचंद्रजी शीतल वचन बोलते हैं। वे परशुरामजी से कहते हैं, “हे नाथ, शंकरजी का धनुष तोड़नेवाला आपका ही कोई दास (सेवक) होगा।”

3. दो-दो वाक्यों में उत्तर दीजिए :

प्रश्न 1.
परशुराम का फरसा कैसा है और वह किसका नाश करनेवाला है?
उत्तर :
परशुराम का फरसा बहुत विकराल है। वह गर्भ के बच्चों का भी नाश करनेवाला है।

प्रश्न 2.
श्रीरामजी परशुराम को कैसा मुनि बताते हैं?
उत्तर :
(टिप्पणी : इस प्रश्न का उत्तर पद्यांश में नहीं है।)

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प्रश्न 3.
लक्ष्मणजी के कठोर बचन सुनकर परशुरामजी अपने हाथ क्या उठा लेते हैं ?
उत्तर :
लक्ष्मणजी के कठोर वचन सुनकर परशुराम अपने हाथ में अपना फरसा उठा लेते हैं।

4. पाँच-छ: पंक्तियों में उत्तर लिखिए:

प्रश्न 1.
परशुरामजी का क्रोध शांत करने के लिए श्रीरामजी ने क्या कहा ?
उत्तर :
अपने प्रिय शिवधनुष को टूटा हुआ देखकर परशुरामजी के क्रोध की सीमा न रही। वे शिवधनुष तोड़नेवाले को अपना परम शत्रु मानकर उसे कठोर दंड देने के लिए तत्पर थे। उन्होंने श्रीराम से उसका नाम पूछा। श्रीराम ने कहा – आप इतने क्रोधित क्यों हो रहे हैं? शंकरजी का धनुष तोड़नेवाला आपका कोई दास ही होगा। आपका क्या आदेश है? आप मुझसे क्यों नहीं कहते? उस दास पर इतना क्रोध करने की क्या आवश्यकता?

प्रश्न 2.
परशुरामजी का क्रोध देखकर लक्ष्मणजी क्या कहते हैं ?
उत्तर :
परशुरामजी का क्रोध देखकर लक्ष्मणजी कहते हैं कि आप बार-बार अपना फरसा दिखाकर हमें क्यों डरा रहे हैं? क्या आप फूक मारकर पहाड़ उड़ाना चाहते हैं? यहाँ कोई कुम्हड़े का नाजुक फल नहीं है जो तर्जनी दिखाने से कुम्हला जाएगा। मुझे भी आप पर बहुत क्रोध आ रहा है, लेकिन आप भृगुपुत्र हैं, ब्राह्मण हैं। इसलिए मैंने अपना क्रोध रोक रखा है। हमारे कुल में देवता, ब्राह्मण, संत और गाय – इन पर हथियार नहीं उठाया जाता। इन्हें मारने से पाप लगता है और अपयश मिलता है। इसलिए आप हमें मारेंगे तो भी हम आपके चरण पकड़ेंगे। पर इतना जरूर कहूंगा कि आपको ये हथियार धारण करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि आपके शब्द ही करोड़ों वज्र के समान हैं।

5. मानक हिन्दी रूप लिखिए:

प्रश्न 1.

  1. संभु
  2. छति
  3. कोही
  4. पहारू
  5. गाई
  6. गारी
  7. सोभा

उत्तर :

  1. संभु – शंभु
  2. छति – क्षति
  3. कोही – क्रोधी
  4. पहारू – पहाड़
  5. गाई – गाय
  6. गारी – गाली
  7. सोभा – शोभा

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6. निम्नलिखित चौपाई का भावार्थ समझाइए :

प्रश्न 1.
‘भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सहउँ रिस रोकी। सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरे कुल इन्ह पर न सुराई ।’
उत्तर :
परशुरामजी क्रोध में लक्ष्मणजी से अपने फरसे और अपने भुजबल के प्रताप के बारे में बहुत बखान करते हैं और कहते हैं कि वे (लक्ष्मण) अपने माता-पिता को शोक करने के लिए विवश न करें। इस पर लक्ष्मणजी परशुराम को जवाब देते हैं कि हे मुनि, आपको भृगुवंशी समझकर और आपका यज्ञोपवीत देखकर (अर्थात् आपको ब्राह्मण जानकर) मैंने अपने क्रोध पर काबू कर रखा है और आप जो कुछ कहते जा रहे हैं, उसे सह रहा हूँ। हमारे कुल में देवता, ब्राह्मण, भगवान के भक्त और गाय पर वीरता नहीं दिखाई जाती।

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निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर पाँच-छ: वाक्यों में लिखिए :

प्रश्न 1.
परशुरामजी को लक्ष्मण पर क्रोध क्यों आया ?
उत्तर :
लक्ष्मण ने परशुरामजी से कहा कि बचपन में हमने खेलखेल में बहुत से धनुष तोड़े। तब तो आपको कभी इतना क्रोध नहीं आया। फिर इस धनुष में ऐसी कौन-सी बात है जो आप आपे से बाहर हो रहे हैं। धनुष तो सब एक जैसे ही होते हैं। राम ने इस पुराने धनुष को तोड़ दिया तो इसमें क्या बड़ा नुकसान हो गया? फिर राम ने उसे तोड़ा ही नहीं, वह तो उनके छूते ही टूट गया। शिव-धनुष को साधारण धनुष बताने के कारण परशुराम को लक्ष्मण पर क्रोध आया।

प्रश्न 2.
परशुरामजी ने मुनि विश्वामित्र से क्या कहा?
उत्तर :
परशुरामजी ने मुनि विश्वामित्र से कहा कि यह बालक (लक्ष्मण) मंद बुद्धि का है। इस दुष्ट के सिर पर मृत्यु नाच रही है। यह अपने कुल का नाश करनेवाला है। यह सूर्यवंश और चंद्रवंश दोनों को कलंकित करनेवाला है। यह बिलकुल निरंकुश हैं। निश्चय ही यह नासमझ है। मैं जोर देकर कह रहा हूँ कि अगर यह नहीं माना तो अगले क्षण में यह काल के मुंह में चला जाएगा और इसका दोषी मैं नहीं हूँगा। अगर आप इसे बचाना चाहते हैं तो मेरे बल, प्रताप और क्रोध के बारे में बताकर इसे रोकिए।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-एक वाक्य में लिखिए :

प्रश्न 1.
लक्ष्मण ने शिवधनुष को किसके समान बताया?
उत्तर :
लक्ष्मण ने शिवधनुष को उस धनुष के समान बताया जिसे । बच्चे खेलते हैं।

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प्रश्न 2.
लक्ष्मण ने राम को निरपराधी क्यों बताया?
उत्तर :
लक्ष्मण ने राम को निरपराधी बताया क्योंकि शिवधनुष बिना उनके तोडे केवल उनके छूने से ही टूट गया था।

प्रश्न 3.
कुम्हड़े की बतिया की क्या विशेषता बताई जाती है?
उत्तर :
कुम्हड़े की बतिया की यह विशेषता बताई जाती है कि वह तर्जनी उँगली दिखाने पर मुरझा जाती है।

समानार्थी शब्द लिखिए :

  • दास = सेवक
  • रिपु = शत्रु
  • ममता = मोह, प्रेम
  • सकल = सारा
  • नयन = नेत्र
  • भूप = राजा
  • मृदु = कोमल
  • हरिजन = ईश्वरभक्त
  • गिरा = वाणी
  • कायर = भीरु, डरपोक
  • अभिमान = घमंड
  • भानु = सूर्य

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विरुद्धार्थी शब्द लिखिए :

  • दास × स्वामी
  • अरि × मित्र
  • अपमान × सम्मान
  • सम × विषम
  • मृदु × कठोर
  • कायर × वीर
  • देव × दानव
  • सुर × असुर

शब्दों के मानक शब्द रूप लिखिए :

  • परसु – परशु
  • लखन – लक्ष्मण
  • बिस्व – विश्व
  • इहाँ – यहाँ
  • कीरति – कीर्ति
  • बंस – वंश
  • सुजसु – सुयश
  • सूर – शूर

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शब्दों में से प्रत्यय अलग कीजिए :

  • संबंधित – इत
  • लडाई – ई
  • विदित – इत
  • दोही – ई
  • घातक – क
  • अपमान – मान
  • बहादूरी – ई
  • प्रचारित – इत
  • भृगुवंशी – ई

शब्दों में से उपसर्ग अलग कीजिए :

  • सुकीर्ति – सु
  • दुसद – दु
  • सुयश – सु
  • अकारण – अ
  • कुबुद्धि – कु
  • प्रताप – प्र
  • विनम्र – वि
  • दुबार – दु
  • विख्यात – वि
  • महामुनि – महा
  • अभिमान – अभि

परशुराम-लक्ष्मण संवाद Summary in Gujarati

ભાવાત્મક અનુવાદ :

શ્રીરામચંદ્ર પરશુરામજીને કહ્યું, “હે નાથ! શંકરજીનું ધનુષ્ય તોડનાર આપનો કોઈ એક દાસ (સેવક) જ હશે. આપનો શો આદેશ છે? આપ મને શા માટે કહેતા નથી?” આ સાંભળી ક્રોધી મુનિ ગુસ્સે થઈને બોલ્યા .

પરશુરામજીએ કહ્યું “સેવક તો તેને કહેવાય જે સેવા કરે. શત્રુનું કામ કરીને તો લડાઈ જ કરવી જોઈએ. હે રામ! સાંભળો – જેણે શંકરજીનું આ ધનુષ્ય તોડ્યું છે, તે સહસ્ત્રબાહુની જેમ મારો શત્રુ છે.”

“(જેણે આ ધનુષ્ય તોડ્યું હોય) તે આ સમાજ છોડીને અલગ થઈ જાય; નહિ તો સમગ્ર રાજાગણ મૃત્યુ પામશે.” મુનિ પરશુરામજીનાં વચન સાંભળીને લક્ષ્મણે સ્મિત કર્યું. તેમણે પરશુરામજીની અવગણના કરતાં કહ્યું

“હે ગોસ્વામી, બાળપણમાં અમે અનેક ધનુષડી તોડી હતી, પરંતુ આપે કદી આ પ્રમાણે ક્રોધ કર્યો નહોતો. ભલા, આ ધનુષ્ય માટે આપને આટલી બધી મમતા શા માટે છે?” લક્ષ્મણનાં આ વચન સાંભળીને ભૃગુવંશની ધજા સ્વરૂપ પરશુરામજીએ કુદ્ધ થઈને કહ્યું

“અરે રાજકુમાર, સમયવશ તને બોલવાનું કંઈ ભાન નથી. શંકરજીનું આ ધનુષ્ય સમગ્ર સંસારમાં પ્રસિદ્ધ છે. આ ધનુષ્યને તું ધનુષડી સમાન માને છે!”

લક્ષ્મણે હસીને કહ્યું, “હે દેવ, સાંભળો. અમારી દષ્ટિએ તો બધાં ધનુષ્ય એકસમાન જ છે. જૂના ધનુષ્યને તોડવામાં શું નુકસાન અને શો ફાયદો? શ્રીરામચંદ્રજીએ આ ધનુષ્યને નવા ધનુષ્યના રૂપમાં ભ્રમવશ જોયું હતું.’

“દેવ ! આ ધનુષ્ય તો સ્પર્શ કરતાં જ તૂટી ગયું હતું. એમાં રધુનાથજીનો કોઈ દોષ નથી. હે મુનિ, આપ અકારણ ક્રોધ શા માટે કરો છો?” આ સાંભળીને પરશુરામજીએ પોતાની ફરશી તરફ જોઈને કહ્યું, “અરે દુષ્ટ તેં મારા સ્વભાવ વિશે સાંભળ્યું નથી?”

પરશુરામે લક્ષ્મણને કહ્યું, “બાળક માનીને હું તારો વધ કરતો નથી. હે મૂર્ખ, શું તું મને સાધારણ મુનિ સમજી રહ્યો છે. હું બાળ-બ્રહ્મચારી અને અતિશય ક્રોધી છું. ક્ષત્રિયકુળના શત્રુના રૂપમાં હું સમસ્ત સંસારમાં પ્રસિદ્ધ છું.”

પરશુરામ કહે છે, “મેં પોતાના બાહુબળથી મેં પૃથ્વીને રાજાઓથી રહિત કરી દીધી હતી. અનેક વખત આ પૃથ્વી બ્રાહ્મણોને આપી દીધી હતી. હે રાજકુમાર! સહસબાહુની ભુજાઓને કાપી નાખવા મારી આ ફરશી (કુહાડીના ઘાટનું એક હથિયાર) જો.”

“હે રાજકુમાર, તું તારાં માતા-પિતાને શોકગ્રસ્ત થવા માટે ફરજ ન પાડ, મારી ફરશી ખૂબ વિકરાળ છે. એ ગર્ભનાં બાળકોનો પણ નાશ કરી નાખે છે.”

લક્ષ્મણજીએ હસીને વિનમ્રભાવે કહ્યું, “અરે, મુનીશ્વર આપ સ્વયંને ખૂબ મોટા યોદ્ધા માનો છો. વારે વારે મને ફરશી દેખાડો છો. આપ ફૂંક મારીને પહાડ ઉડાડવા ઇચ્છો છો.”

“અહીં કોઈ કુમઠડાનું કાચું ફળ નથી, જે તર્જની આંગળીને જોઈને મરી જાય. ફરશી અને ધનુષ્યબાણ જોઈને મેં કંઈક અભિમાન સાથે કહ્યું હતું.”

લક્ષ્મણજી કહે છે, “આપને ભૂગુજીના પુત્ર સમજીને અને આપનું યજ્ઞોપવીત જોઈને આપ જે કંઈ કહી રહ્યા છો, તે પોતાના ક્રોધ પર કાબૂ રાખીને સહન કરી રહ્યો છું. દેવતા, બ્રાહ્મણ, ભગવાનના ભક્ત અને ગાય પર અમારા કુળમાં વીરતા દર્શાવવામાં આવતી નથી.”

“કારણ કે એમનો વધ કરવાથી પાપ લાગે છે અને એમનો પરાજય થતાં અપયશ મળે છે. એટલે આપ મને મારો તોપણ મારે આપનાં ચરણોમાં પડવું જોઈએ, આપનું એક-એક વચન કરોડો વજ સમાન છે. ધનુષ્યબાણ અને ફરશી તો આપ વ્યર્થ જ ધારણ કરો છો.”

“ધનુષ્યબાણ અને ફરશીને જોઈને મેં કાંઈ અનુચિત કહ્યું હોય, તો હે ધીર મહામુનિ, મને ક્ષમા કરજો.” લક્ષ્મણજીની આ વાત સાંભળીને ભૃગુવંશના મણિ પરશુરામજીએ ક્રોધિત થઈને કહ્યું

પરશુરામજીએ કહ્યું, “હે વિધ્વામિત્ર, સાંભળો આ બાળક અત્યંત કુબુદ્ધિવાળો અને કુટિલ છે. કાળને વશ થઈને આ પોતાના કુળનો ઘાતક બની રહ્યો છે. આ સૂર્યવંશરૂપી પૂર્ણ ચંદ્રનું કલંક છે. આ તદન ઉદંડ, મૂર્ખ અને નિડર છે.”

“હવે ઘડીભરમાં આ કાળનો કોળિયો બની જશે. હું પોકારીને કહી રહ્યો છું કે પછી મને દોષ આપશો નહિ. જો તમે આને બિચાવવા ઇચ્છતા હો તો અમારા પ્રતાપ, બળ અને ક્રોધ દર્શાવીને, એને સમજાવીને ના પાડી દો.”

લમણજીએ કહ્યું, “હે મુનિ, આપના સુયશના આપ કરતાં વધારે વખાણ કોણ કરી શકે? આપે તો સ્વયે પોતાના મુખે આપની કરણીનાં વખાણ અનેક વાર અને અનેક રીતે કર્યો છે.”

લક્ષ્મણજી કહે છે કે “જો આટલાથી પણ આપને સંતોષ ન થયો હોય તો કોઈ બીજું કહી દો – આપનો ક્રોધ રોકીને અસહ્ય દુઃખ સહન કરશો નહિ. આપ વીરતાનું વ્રત ધારણ કરનારા, ધીરજવાળા અને સાંભરહિત છો. આ ગાળ દેતાં શોભતા નથી.”

“શૂરવીર તો યુદ્ધમાં બહાદુરીનું કામ કરે છે. પોતાની બાબતમાં કંઈ કહીને પોતાનો પ્રચાર કરતા નથી. શત્રુને યુદ્ધમાં હાજર જોઈને કાયર જ પોતાના પરાક્રમનાં બણગાં ફૂંકે છે.”

“દેવ! આ ધનુષ્ય તો સ્પર્શ કરતાં જ તૂટી ગયું હતું. એમાં રધુનાથજીનો કોઈ દોષ નથી. હે મુનિ, આપ અકારણ ક્રોધ શા માટે કરો છો?” આ સાંભળીને પરશુરામજીએ પોતાની ફરશી તરફ જોઈને કહ્યું, “અરે દુષ્ટ તેં મારા સ્વભાવ વિશે સાંભળ્યું નથી?”

પરશુરામે લક્ષ્મણને કહ્યું, “બાળક માનીને હું તારો વધ કરતો નથી. હે મૂર્ખ, શું તું મને સાધારણ મુનિ સમજી રહ્યો છે. હું બાળ-બ્રહ્મચારી અને અતિશય ક્રોધી છું. ક્ષત્રિયકુળના શત્રુના રૂપમાં હું સમસ્ત સંસારમાં પ્રસિદ્ધ છું.”

પરશુરામ કહે છે, “મેં પોતાના બાહુબળથી મેં પૃથ્વીને રાજાઓથી રહિત કરી દીધી હતી. અનેક વખત આ પૃથ્વી બ્રાહ્મણોને આપી દીધી હતી. હે રાજકુમાર! સહસબાહુની ભુજાઓને કાપી નાખવા મારી આ ફરશી (કુહાડીના ઘાટનું એક હથિયાર) જો.”

“હે રાજકુમાર, તું તારાં માતા-પિતાને શોકગ્રસ્ત થવા માટે ફરજ ન પાડ. મારી ફરશી ખૂબ વિકરાળ છે. એ ગર્ભનાં બાળકોનો પણ નાશ કરી નાખે છે.”

લક્ષ્મણજીએ હસીને વિનમ્રભાવે કહ્યું, “અરે, મુનીશ્વર આપ સ્વયંને ખૂબ મોટા યોદ્ધા માનો છો. વારે વારે મને ફરશી દેખાડો છો. આપ ફૂંક મારીને પહાડ ઉડાડવા ઇચ્છો છો.”

“અહીં કોઈ કુમહડાનું કાચું ફળ નથી, જે તર્જની આંગળીને જોઈને મરી જાય. ફરશી અને ધનુષ્યબાણ જોઈને મેં કંઈક અભિમાન સાથે કહ્યું હતું.’

લક્ષ્મણજી કહે છે, “આપને “ગુજીના પુત્ર સમજીને અને આપનું યજ્ઞોપવીત જોઈને આપ જે કંઈ કહી રહ્યા છો, તે પોતાના ક્રોધ પર કાબૂ રાખીને સહન કરી રહ્યો છું. દેવતા, બ્રાહ્મણ, ભગવાનના ભક્ત અને ગાય પર અમારા કુળમાં વીરતા દર્શાવવામાં આવતી નથી.”

“કારણ કે એમનો વધ કરવાથી પાપ લાગે છે અને એમનો પરાજય થતાં અપયશ મળે છે. એટલે આપ મને મારો તોપણ મારે આપનાં ચરણોમાં પડવું જોઈએ. આપનું એક-એક વચન કરોડો વજ સમાન છે. ધનુષ્યબાણ અને ફરશી તો આપ વ્યર્થ જ ધારણ કરો છો.”

“ધનુષ્યબાણ અને ફરશીને જોઈને મેં કાંઈ અનુચિત કહ્યું હોય, તો તે ધીર મહામુનિ, મને ક્ષમા કરજો.” લક્ષ્મણજીની આ વાત સાંભળીને ભૃગુવંશના મણિ પરશુરામજીએ ક્રોધિત થઈને કહ્યું

પરશુરામજીએ કહ્યું, “હે વિધ્વામિત્ર, સાંભળો આ બાળક અત્યંત કુબુદ્ધિવાળો અને કુટિલ છે. કાળને વશ થઈને આ પોતાના કુળનો ઘાતક બની રહ્યો છે. આ સૂર્યવંશરૂપી પૂર્ણ ચંદ્રનું કલંક છે. આ તદન ઉદ્દંડ, મુર્ખ અને નિડર છે.”

“હવે ઘડીભરમાં આ કાળનો કોળિયો બની જશે. હું પોકારીને કહી રહ્યો છું કે પછી મને દોષ આપશો નહિ. જો તમે આને બચાવવા ઇચ્છતા હો તો અમારા પ્રતાપ, બળ અને ક્રોધ દર્શાવીને, એને સમજાવીને ના પાડી દો.”

લમણજીએ કહ્યું, “હે મુનિ, આપના સુયશના આપ કરતાં વધારે વખાણ કોણ કરી શકે? આપે તો સ્વયે પોતાના મુખે આપની કરણીનાં વખાણ અનેક વાર અને અનેક રીતે કર્યો છે.”

લક્ષ્મણજી કહે છે કે “જો આટલાથી પણ આપને સંતોષ ન થયો હોય તો કોઈ બીજું કહી દો – આપનો ક્રોધ રોકીને અસહ્ય દુઃખ સહન કરશો નહિ. આપ વીરતાનું વ્રત ધારણ કરનારા, ધીરજવાળા અને ક્ષોભરહિત છો. આ ગાળ દેતાં શોભતા નથી.”

“શૂરવીર તો યુદ્ધમાં બહાદુરીનું કામ કરે છે. પોતાની બાબતમાં કંઈ કહીને પોતાનો પ્રચાર કરતા નથી. શત્રુને યુદ્ધમાં હાજર જોઈને કાયર જ પોતાના પરાક્રમનાં બણગાં ફૂંકે છે.”

परशुराम-लक्ष्मण संवाद Summary in Hindi

विषय-प्रवेश :

परशुराम-लक्ष्मण संवाद तुलसीदास कृत ‘रामचरितमानस’ के बालकांड से लिया गया है। सीता-स्वयंवर के अवसर पर रामचंद्र ने शंकरजी का धनुष तोड़ा था। इस घटना से परशुराम के क्रोध की सीमा नहीं रही। वे राम से कहते हैं कि जिसने इस धनुष को तोड़ा है, वह मेरा दुश्मन है। वह समाज से बाहर आ जाए, वरना सभी राजा मारे जाएंगे। इस पर लक्ष्मण परशुराम से खरी-खरी बातें करते हैं। इस पद्यांश में परशुराम-लक्ष्मण संवाद से संबंधित चौपाइयाँ, दोहे दिए गए हैं।

GSEB Solutions Class 11 Hindi Chapter 7 परशुराम-लक्ष्मण संवाद

महाकाव्यांश (चौपाइयों) का सरल अर्थ :

नाथ शंभुधनु ……. मुनि कोही।

श्री रामचंद्र ने परशुरामजी से कहा, “हे नाथ! शंकरजी का धनुष तोड़नेवाला आपका कोई एक दास (सेवक) ही होगा। आपका क्या आदेश है? आप मुझसे क्यों नहीं कहते?” यह सुनकर क्रोधी मुनि रुष्ट होकर बोले

सेवकु सो जो ….. रिपु मोरा।

परशुराम ने कहा, “सेवक तो वह है, जो सेवा का काम करे। शत्रु का काम करके तो लड़ाई ही करनी चाहिए। हे राम! सुनो, जिसने शंकरजी का यह धनुष तोड़ा है, वह सहस्रबाहु के समान मेरा शत्रु है।”

सो बिलगाउ …….. अपमाने।

“(जिसने यह धनुष तोड़ा हो) वह इस समाज से बाहर आ जाए। नहीं तो सभी राजागण मारे जाएंगे।” मुनि परशुराम के ये वचन सुनकर लक्ष्मण मुस्काए। उन्होंने परशुरामजी का अपमान करते हुए कहा

बहु धनुहीं …….. भृगुकुलकेतू।

“हे गोस्वामी। बचपन में हमने अनेक धनुहियाँ तोड़ी थीं, पर आपने कभी इस तरह क्रोध नहीं किया था। इस धनुष पर आपको इतनी ममता भला क्यों है?” लक्ष्मण के ये वचन सुनकर भृगुवंश की ध्वजा स्वरूप परशुरामजी ने कुपित होकर कहा

दो.-रे नप बालक काल…….. सकल संसार।

“अरे राजपुत्र, काल के वश होने से तुझे बोलते समय कुछ होश नहीं है। शंकरजी का यह धनुष सारे संसार में विख्यात है। इस धनुष को तुम धनुही के समान मानते हो।”

लखन कहा ……. नयन के भोरे।

लक्ष्मनजी ने हंसकर कहा, “हे देव! सुनिए। हमारी समझ से तो सभी धनुष एक-से ही हैं। पुराने धनुष को तोड़ने में क्या हानि या क्या लाभ? श्री रामचंद्रजी ने इस धनुष को भ्रम में नए धनुष के रूप में देखा था।

छुअत टूट ……… सुभाउ न मोरा।

“देव! यह धनुष तो छूते ही टूट गया था। इसमें रघुनाथजी का कोई दोष नहीं है। हे मुनि आप अकारण गुस्सा क्यों होते हैं!” यह सुनकर परशुराम ने अपने फरसे की ओर देखकर कहा, “अरे दुष्ट तूने मेरे स्वभाव के बारे में सुना नहीं है।”

बालकु बोलि….. छत्रियकुल द्रोही।

परशुराम ने लक्ष्मण से कहा, “बालक मानकर मैं तुम्हारा वध नहीं कर रहा हूँ। हे मूर्ख, क्या तू मुझे निरा मुनि समझ रहा है? मैं बालब्रह्मचारी और अत्यंत क्रोधी हूँ। क्षत्रिय कुल के शत्रु के रूप में तो मैं सारे संसार में विख्यात हूं।”

भुजबल भूमि …. महीपकुमारा।

परशुराम कहते हैं, “अपनी भुजाओं के बल से मैंने पृथ्वी को राजाओं से रहित कर दिया और अनेक बार उस पृथ्वी को ब्राह्मणों को दे डाला। हे राजकुमार! सहस्रबाहु की भुजाओं को काटनेवाले मेरे इस फरसे को देखो!”

दो०- मातु पितहि …….. अति घोर।

“हे राजा के बालक। तू अपने माता-पिता को शोक करने के लिए बाध्य मत कर! मेरा फरसा बहुत विकराल है। यह गर्भ के बच्चों को भी नष्ट कर डालता है।”

बिहसि लखनु ……. फूकि पहारू।

लक्ष्मणजी ने हंसकर विनम्र भाव से कहा, “अरे, मुनीश्वर आप अपने आप को बहुत बड़ा योद्धा समझते हैं। बार-बार मुझे कुल्हाड़ी दिखा रहे हैं। आप फूंक मारकर पहाड़ उड़ाना चाहते हैं।”

इहाँ कुम्हड़ ……. अभिमाना।

“यहाँ कोई कुम्हड़े का छोटा कच्चा फल (बतिया) नहीं है, जो तर्जनी उँगली को देखकर मर जाएगा। कुल्हाड़ी और धनुषबाण देखकर ही मैंने कुछ अभिमान सहित कहा था।”

भगुसुत समुझि …… पर न सुराई।

लक्ष्मणजी कहते हैं, “आपको भृगु का पुत्र समझकर और आपका यज्ञोपवीत देखकर मैं आप जो कुछ कहते जा रहे हैं, उसे अपने क्रोध पर नियंत्रण रखकर सहता जा रहा हूँ। देवता, ब्राह्मण भगवान के भक्त और गाय – इन पर हमारे कुल में वीरता नहीं दिखाई जाती।”

बधे पापु ……. बान कुठारा।

“क्योंकि इनका वध करने से पाप लगता है और इनसे हार जाने पर अपयश होता है। इसलिए आप मुझे मारें, तो भी मुझे आपके पैर पड़ना चाहिए। आपका एक-एक वचन करोड़ों वज के समान है। धनुषबाण और फरसा तो आप व्यर्थ ही धारण करते हैं।”

दो-जो बिलोकि …….. गिरा गभीर।

“इन्हें (धनुषबाण और फरसे को) देखकर मैंने कुछ अनुचित कहा हो, तो उसे, हे धीर महामुनि! क्षमा कीजिए।” लक्ष्मणजी की यह बात सुनकर भृगुवंशमनि परशुरामजी ने क्रोध में भरे हुए कहा

कौसिक सुनहु …….. अबुध असंकू।

परशुराम ने कहा, “हे विश्वामित्र! सुनिए! यह बालक बहुत कुबुद्धि और कुटिल है। काल के वश होकर यह अपने कुल का घातक बन रहा है। यह सूर्यवंशरूपी पूर्ण चंद्र का कलंक है। यह एकदम उइंड, मूर्ख और निडर है।”

काल कवलु …… रोषु हमारा।

“अभी क्षणभर में यह काल का ग्रास बन जाएगा। मैं पुकारकर कहे देता हूँ कि फिर मुझे दोष मत देना। यदि तुम इसे बचाना चाहते हो, तो हमारा प्रताप, बल और क्रोध बतलाकर इसे समझाकर मना कर दो।”

लखन कहेउ …….. भाँति बहु बरनी।

लक्ष्मणजी ने कहा, “हे मुनि आपका सुयश, आपसे अधिक दूसरा कौन बखान कर सकता है। आपने स्वयं अपने मुंह से अपनी करनी का बखान अनेक बार अनेक प्रकार से किया है।

नहिं संतोषु …… पावहु सोभा।

लक्ष्मणजी कहते हैं कि यदि इतने पर भी आपको संतोष न हुआ हो, तो फिर कुछ और कह डालिए। अपना क्रोध रोककर असहा दुःख मत सहिए। आप वीरता का व्रत धारण करनेवाले, धैर्यवान और क्षोभ रहित हैं। आप गाली देते हुए शोभा नहीं पाते हैं।

दोο – सूर समर ……. कथहिं प्रतापु।

“शूरवीर तो युद्ध में करनी (बहादुरी का कार्य) करते हैं। वे अपने बारे में कुछ कहकर अपने को प्रचारित नहीं करते। शत्रु को युद्ध में मौजूद देखकर कायर ही अपने प्रताप की डौंग हाँका करते हैं।”

GSEB Solutions Class 11 Hindi Chapter 7 परशुराम-लक्ष्मण संवाद

परशुराम-लक्ष्मण संवाद शब्दार्थ :

  • संभुधनु – शंकरजी का धनुष।
  • भजनिहारा – तोड़नेवाला।
  • केउ – कोई।
  • दास – सामान्य जन, सेवक।
  • आयस – आदेश।
  • किन – क्यों।
  • रिसाइ – क्रोध से।
  • अरि – दुश्मन।
  • लराई – लड़ाई।
  • तोरा – तोड़ा है।
  • रिपु – दुश्मन।
  • बिलगाउ – अलग हो जाए।
  • बिहाइ – छोड़कर।
  • जैहहि – जाएंगे।
  • लखन – लक्ष्मण।
  • परसु – फरसा।
  • अपमाने – अपमान करते हुए।
  • धनुहीं – छोटा धनुष।
  • लरिकाई – बचपन में।
  • असि – ऐसा।
  • हेतू – कारण से।
  • भगुकुल केतू – भृगु के कुल के शीर्ष व्यक्ति।
  • काल बस – मृत्यु के वशीभूत होना।
  • संभार – संभालकर।
  • तिपुरारि – महादेव, शंकर।
  • बिदित – जाना हुआ।
  • छति – हानि।
  • जून – पुराना।
  • दोसू – दोष।
  • बिनु काज – निरर्थक।
  • सठ – दुष्ट।
  • सुभाउ – स्वभाव।
  • बोलि – समझकर, मानकर।
  • बधउँ नहिं – वध नहीं करता हूँ।
  • मोही – मुझे।
  • द्रोही – दुश्मन।
  • भूप – राजा।
  • भुजबल – भुजाओं की शक्ति से।
  • महिदेवन्ह – पृथ्वी के देवताओं ने (ब्राह्मणों ने)। महीसकिसोर – राजा का पुत्र।
  • बानी – वाणी।
  • भटमानी – अहंकारी, वीर।
  • कुठारू – कुल्हाड़ी।
  • पहारू – पहाड़।
  • कुम्हड़ – कुम्हड़ा।
  • बतिया – नाजुक फल।
  • तरजनी – अंगूठे और मध्यमा के बीच की उँगली।
  • सरासन – धनुषबाण।
  • जनेउ – जनेऊ।
  • बिलोकी – देखकर।
  • महिसुर – ब्राह्मण।
  • हरिजन – भगवान के भक्त।
  • गाई – गाय। पापु – पाप।
  • कुलिस – वज़, कुठार।
  • कुठारा – गहरी चोट।
  • छमहुँ – क्षमा करें।
  • धीर – धीरज रखनेवाले।
  • गिरौं- वाणी, बोली।
  • कुल घालकु – अपने कुल के लिए घातक।
  • कलंकू – कलंक जैसा।
  • निपट – बिलकुल।
  • अबुध – बेवकूफ।
  • असंकू – निडर, ढीठ।
  • काल कवलु – काल का आहार होना, मृत्यु को प्राप्त होना।
  • खोरि – दोष।
  • प्रतापु – प्रताप।
  • सुजसु – सुकीर्ति।
  • दुसह दुख – जो दुःख सहा न जा सके।
  • सहहू – सहन कर रहा हूँ।
  • गारी – गाली।
  • वीरवती – वीरता को धारण करनेवाले।

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