GSEB Solutions Class 11 Hindi Aaroh Chapter 19 सबसे खतरनाक

Gujarat Board GSEB Std 11 Hindi Textbook Solutions Aaroh Chapter 19 सबसे खतरनाक Textbook Exercise Important Questions and Answers, Notes Pdf.

GSEB Std 11 Hindi Textbook Solutions Aaroh Chapter 19 सबसे खतरनाक

GSEB Class 11 Hindi Solutions सबसे खतरनाक Textbook Questions and Answers

अभ्यास

कविता के साथ :

प्रश्न 1.
कवि ने किस आशय से मेहनत की लूट, पुलिस की मार, गद्दारी-लोभ को सबसे खतरनाक नहीं माना है ?
उत्तर :
मेहनत की लूट, पुलिस की मार, गद्दारी-लोभ जैसी स्थितियाँ समाज के लिए खतरनाक बातें हैं, किंतु कवि ने इन्हें सबसे खतरनाक नहीं माना है, क्योंकि इस लूट की कसक और आघात को भुलाया जा सकता है, इसका प्रभाव भी बहुत दूरगामी नहीं होता है, सीमित होता है । साथ ही इसके खामियाजे की पूर्ति की जा सकती है ।

इनसे टकराया जा सकता है, इनके खिलाफ लड़ा जा सकता है, आवाज़ उठाई जा सकती है । अन्याय के प्रतिरोध की शक्ति और चेतना पूर्णतः मर नहीं जाती । इन गंभीर स्थितियों को सायास बदला जा सकता है । अतः ये स्थितियाँ खतरनाक हैं, बुरी हैं, मगर इनसे भी अधिक खतरनाक स्थितियाँ और भी हैं ।

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प्रश्न 2.
सबसे खतरनाक’ शब्द के बार-बार दोहराए जाने से कविता में क्या असर पैदा हुआ ?
उत्तर :
कवि पाश ने ‘सबसे खतरनाक’ शब्द को बार-बार दोहराया है – सायास दोहराया है, क्योंकि कवि अपने समय की सबसे खतरनाक स्थितियों (जिसमें जीना दुभर हो जाये) की ओर हमारा ध्यानाकर्षित करना चाहता है । यह बताना चाहता है कि आज समाज में कुछ ऐसी परिस्थितियाँ उपस्थित हो चुकी हैं, जिन्हें नियंत्रण में रखना मुश्किल है ।

ये स्थितियाँ समाज में भय, आंतक, हिंसा, अविश्वास, अराजकता और असुरक्षा का माहौल पैदा कर रही हैं । ये स्थितियाँ व्यक्ति की चेतना और पिरोध की धार को भोथरी बना रही हैं, समाज को निष्प्राण और निर्माल्य बना रही हैं । ऐसी स्थितियाँ हमारे समाज के लिए निश्चित रूप से चिंता का विषय है, सोचनीय मसला जिस पर गंभीरतापूर्वक सोचने-विचारने की आवश्यकता है । इस प्रकार ‘सबसे खतरनाक’ शब्द के बार-बार प्रयोग से कवि की कथनशैली और कार्य (उद्देश्य) दोनों चोटदार हो गये हैं ।

प्रश्न 3.
कवि ने कविता में कई बातों को ‘बुरा है’ न कहकर ‘बुरा तो है’ कहा है । ‘तो’ के प्रयोग से कथन की भंगिमा में क्या बदलाव आया है – स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर :
कवि ने कविता में कई बातों को ‘बुरा है’ न कहकर ‘बुरा तो है’ कहा है, जैसे कि –
“सही होते हुए भी दब जाना ‘बुरा तो है’
किसी जुगनू की लौ में पढ़ना बुरा तो है
मुट्ठियाँ भींचकर बस वक्त निकाल लेना बुरा तो है ।”

यहाँ ‘तो’ शब्द का भारपूर्वक प्रयोग हुआ है । ऐसा करने से बात पूरी तरह खत्म नहीं हो जाती मगर उसमें किसी तरह की गुंजाईश अभी शेष है – ऐसा भाव निकलता है । प्रस्तुत कविता के संदर्भ में देखें तो कवि ने कुछ ऐसी स्थितियों हमारे सामने रखी हैं जो समाज के लिए बुरी है, खतरनाक है । तो शब्द के प्रयोग से यह ध्वनि निकलती है कि इतनी बुरी या इतनी खतरनाक नहीं है कि जिन्हें नियंत्रित न किया जा सके, जिनमें बदलाव न किया जा सके । ‘तो’ शब्द का प्रयोग पाठकों में जिज्ञासा उत्पन्न करता है और अंततः जिज्ञासा का शमन करता है ।

प्रश्न 4.
‘मुर्दा शांति से भर जाना और हमारे सपनों का मर जाना’ – इनको सबसे खतरनाक माना गया है । आपकी दृष्टि में इन बातों में परस्पर क्या संगति है और ये क्यों सबसे खतरनाक है ?
उत्तर :
‘मुर्दा शांति से भर जाना और हमारे सपनों का मर जाना’ – दोनों ही सबसे खतरनाक स्थितियाँ हैं । ‘मुर्दा शांति से भर जाना’ अर्थात् कैसी भी स्थिति में न बोल पाने और न सोच पाने की स्थिति । अन्याय, अत्याचार का विरोध न कर पाने की स्थिति, मुक्ति पाने की बेचैनी या छटपटाहट से शून्य हो जाना, मौन धारण करके सबकुछ सहन करने को विवश हो जाना – यानि जिन्दा लाशयत हो जाना ।

सामाजिक अन्याय खिलाफ प्रतिरोध की शक्ति का मर जाना सबसे खतरनाक है। ‘सपनों का मर जाना’ – अर्थात् अपनी छोटी-छोटी उम्मीदों का मर जाना । ये उम्मीदें जिन्हें पूरी करने के लिए यह प्रयास करता है, पाता है, खुश होता है, विकसित होता, समाज में अपना स्थान-वजूद बनाता है और जीवन गुजार देता है । ऐसी उम्मीदों का मर जाना अर्थात् बदलाव की भूमिका तैयार न करके यथास्थिति को स्वीकार कर लेना ।

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प्रश्न 5.
सबसे खतरनाक वह घड़ी होती है । अपनी कलाई पर चलती हुई भी जो । आपकी निगाह में रुकी होती है । इन पंक्तियों में ‘घड़ी’ शब्द की व्यंजना से अवगत कराइए ।
उत्तर :
उक्त पंक्तियों में कवि ने ‘घड़ी’ शब्द का श्लेषात्मक प्रयोग किया है । ‘घड़ी’ शब्द एक ओर समय बतानेवाली घड़ी नामक वस्तु का बोधक है, वहीं दूसरी ओर त्रसित मनुष्य की संभित त्रासद जीवन स्थितियों (समय) का भी बोधक है । इसमें बदलते हुए समय और स्थिति के अनुसार खुद को न बदल पाने का रंज है, दंश है । हाथ की कलाई पर बँधी चलती हुई घड़ी भी कवि को सकी हुई दिखना – मनुष्य की विकल्पहीन, स्थिर और दारुण जीवन-स्थितियों की परिचायक है । ‘धड़ी’ शब्द जीवन की यांत्रिकता का भी परिचायक है ।

प्रश्न 6.
वह चाँद सबसे खतरनाक क्यों होता है, जो हर हत्याकांड के बाद आपकी आँखों में मिर्ची की तरह नहीं गढ़ता है ?
उत्तर :
सामान्य तौर से चाँद खतरनाक नहीं होता – वह सुन्दरता और शीतलता का प्रतीक है मगर हत्याकांड के बाद भी चाँद किसी व्यक्ति को पूर्ववत् (सामान्य) ही लगे, या यों कहिए कि ऐसी स्थिति में भी वह खुशियाँ मनाये, किसी को कोई फर्क ही न पड़े,’ चाँद उनकी आँखों में मिर्ची की तरह न गड़े, उनमें विरोध, प्रतिकार, आक्रोश ही न जगे तो ऐसी संवेदन शून्यता खतरनाक है।

कविता के आस-पास :

प्रश्न 1.
कवि ने ‘मेहनत की लूट सबसे खतरनाक नहीं होती’ से कविता का आरंभ करके फिर इसी से अंत क्यों किया होगा ? ।
उत्तर :
कयि ने अपनी बात को प्रभावी ढंग से कहने के लिए बीच-बीच में ‘बुरा तो है, खतरनाक नहीं है जैसे वाक्यांश रख्ने हैं, जो दो स्थितियों के बीच के अंतर को स्पष्ट करते हैं । ‘बुरा तो है’ में यह भाव छिपा है कि इससे भी बुरा और बहुत कुछ है, या इसमें सुधार हो सकता है । ऐसे ही ‘खतरनाक नहीं है’ – में यह भाव छिपा है, कि इससे भी खतरनाक स्थितियाँ और भी हैं जिन पर गंभीरता से चिंतन करने और उनसे निपटने की आवश्यकता है । इसी आशय से कवि ने मेहनत की लूट सबसे खतरनाक नहीं होती है’ – से कविता का आरंभ किया है तथा अंत भी उसी पर किया है ।

प्रश्न 2.
कवि द्वारा उल्लिखित बातों के अतिरिक्त समाज में अन्य किन बातों को आप खतरनाक मानते हैं ?
उत्तर :
कवि द्वारा उल्लिखित बातों के अतिरिकत हम समाज में निम्नलिखित बातों को खतरनाक समझते हैं –

  • अपने दायित्वों से दूर भागना ।
  • बड़े-बुजुर्गों का सम्मान न करना ।
  • राष्ट्रीय धरोहरों एवं सपत्ति को नुकसान पहुँचाना ।
  • पर्यावरण का जतन न करना ।
  • लिंग, जाति, धर्म, रंग, संप्रदाय आदि के आधार पर भेदभाव करना ।
  • नारी का अपमान और शोषण करना ।
  • किसी भी व्यक्ति का शारीरिक, मानसिक, आर्थिक शोषण करना ।
  • हिंसा, आंतकवाद
  • अपने निहित स्वार्थवश राजनीतिक दल बदलना ।
  • संवेदनहीनता ।

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प्रश्न 3.
समाज में मौजूद खतरनाक बातों को समाप्त करने के लिए आपके क्या सझाव हैं ?
उत्तर :
समाज में मौजूद खतरनाक बातों को समाप्त करने के लिए हमारे निम्नलिखित सुझाय हैं –

  • खतरनाक स्थितियों के पनपने के मूल कारणों को समझना ।
  • उन्हें दूर करने के उचित कदम उठाना ।
  • लोगों में जागरूकता बढ़ाना ।
  • अन्याय, अत्याचार के खिलाफ प्रतिरोध की आवाज बुलंद करना ।
  • क्रूर, नृशंस, बर्बर लोगों से निपटने के लिए पुलिस एवं न्यायतंत्र को निर्भीक बनाना ।
  • मानवीय संवेदनशीलता को बनाये रखना ।
  • स्वस्थ वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देना ।
  • लोकतांत्रिक मूल्यों में आस्था रख्नना ।

Hindi Digest Std 11 GSEB सबसे खतरनाक Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘किसी जुगनू की लौ में पढ़ना बुरा तो है’ – का आशय स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर :
“किसी जुगनू की लौ में पढ़ना’ अर्थात् अभावग्रस्त स्थितियों में, साधनहीनता में गुजारा करना, अपने बुनियादी अधिकारों – रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, स्वास्थ्य, पानी, बिजली, रोजगारी आदि की मांग भी न करना । सब-कुछ सहन कर जाना अच्छी बात नहीं है, बुरी बात है, मगर कुछ बातें ऐसी हैं, जो इससे भी बुरी और इससे भी खतरनाक है ।

प्रश्न 2.
‘मुर्दा धूप का कोई टुकड़ा’ – में निहित व्यंग्य स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर :
यहाँ ‘धूप’ गर्माहट, तीखी प्रतिक्रिया का प्रतीक है, मगर ‘मुर्दा धूप’ ठंड़ेपन प्रतिक्रियाहीनता का प्रतीक है । शांति और अहिंसा के नाम पर मनुष्य के द्वारा आदर्शपरक बातें करना आतंक और हिंसा को बढ़ावा देना है ।

योग्य विकल्प चुनकर रिक्तस्थानों की पूर्ति कीजिए ।

प्रश्न 1.

  1. कवि पाश का मूल नाम ………….. था । (अवतारसिंह, कुलदीपसिंह, करतारसिंह, कृपालसिंह)
  2. पाश का जन्म सन् ……. में हुआ था । (1940, 1945, 1950, 1955)
  3. पाश की मृत्यु सन् …………….. में हुई । (1972, 1980, 1988, 1989)
  4. कवि पाश मूल रूप से …………. भाषा में लिखा है । (गुजराती, पंजाबी, मराठी, हिन्दी)
  5. ‘सहमी-सी’ चुप्पी पंक्ति में ……….. अलंकार है । (उपमा, उत्प्रेक्षा, रूपक, अनुप्रास)
  6. ‘मुर्दा शांति’ का आशय है …………. । (मर जाना, मार देना, सो जाना, प्रतिरोध न करना)
  7. ‘जमी बर्फ का निहितार्थ है……………. (बर्फ, पानी, संवेदनहीनता, ठंडी)
  8. ‘चाँद’ ……………. का प्रतिक है । (सौंदर्य, स्त्री, कटुता, मिर्ची)
  9. कवि उस रात को खतरनाक मानता है, जो ………….. लोगों की आत्मारूपी आसमान पर अंधकार के समान छा जाती है । (मृत, ग्रामीण, जीवित, शहरी)

उत्तर :

  1. अवतारसिंह
  2. 1950
  3. 1988
  4. पंजाबी
  5. उपमा
  6. प्रतिरोध न करना
  7. संवेदनहीनता
  8. सौंदर्य
  9. जीवित

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अपठित पद्य

नीचे दी गई कविता पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए ।

ग्राम, नगर या कुछ लोगों का
नाम नहीं होता है देश ।
संसद, सड़कों, आयोगों का
नाम नहीं होता है देश ।
देश नहीं होता है केवल
सीमाओं से घिरा मकान ।
देश नहीं होता है कोई
सजी हुई ऊँची दुकान ।
देश नहीं क्लब जिसमें बैठे
करते रहें सदा हम मौज ।
देश नहीं होता बंदूकें देश
नहीं होता है फौज ।
जहाँ प्रेम के दीपक जलते
वहीं हुआ करता है देश ।
जहाँ इरादे नहीं बदलते,
वहीं हुआ करता है देश ।
सज्जन सीना ताने चलते,
वहीं हुआ करता है देश ।
देश वहीं होता जो सचमुच,
आगे बढ़ता कदम-कदम !
धर्म, जाति, सीमाएँ जिसका,
ऊँचा रखते हैं परचम ।
पहले हम खुद को पहचानें,
फिर पहचानें अपना देश
एक दमकता सत्य बनेगा,
वहीं रहेगा सपना देश ।

– शेरजंग गर्ग

प्रश्न 1.
कवि किन-किन चीजों को देश नहीं मानता हैं ?
उत्तर :
कवि केवल गाँव, नहर, संसद, सड़कों, सजी ऊँची दुकान, क्लब, सीमाओं से घिरी भूमि, बंदूकों तथा फौज को देश नहीं मानता

प्रश्न 2.
‘सज्जन सीना ताने चलते’ का क्या आशय है ?
उत्तर :
‘सज्जन सीना ताने चलते’ कहने से कवि का यह आशय हो सकता है कि देश यह स्थान है जिसमें सज्जन व्यक्ति निर्भय होकर आत्मसम्मान से रह सकता है ।

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प्रश्न 3.
‘परचम’ शब्द का समानार्थी लिखिए ।
उत्तर :
परचम का समानार्थी – झंडा, ध्वज ।

प्रश्न 4.
कवि हमें क्या सीख देता है ?
उत्तर :
कवि का कहना है कि पहले हम स्वयं को पहचाने, फिर अपने देश को तभी हमारा एक दमकते स्वप्न देश का निर्माण होगा ।

प्रश्न 5.
इस कविता का उचित शीर्षक दीजिए ।
उत्तर :
इस कविता का उचित शीर्षक ‘देश’ हो सकता है ।

सबसे खतरनाक Summary in Hindi

कवि परिचय :

आठवें दशक में उभरे पंजाबी के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कवि पाश का मूल नाम अवतारसिंह संधू है । पाश का जन्म 9 सितंबर, सन् 1950 में तलवंडी सलेम नामक गाँव, तहसील नकोदर, जिला जालंधर (पंजाब) में हुआ था । पाश की प्रमुख रचनाएँ हैं –

काव्य संग्रह : लौहकथा (1970) पंजाबी
उड्डदे बाजाँ मगर (1974) पंजाबी
साड़े समिया विच (1978) पंजाबी
लड़ांगे साथी (1988) पंजाबी

हिन्दी में अनूदित : बीच का रास्ता नहीं होता
समय ओ भाई समय
लहू है कि तब भी गाता है

कवि पाश ने अपनी पहली कविता 15 वर्ष की उम्र में लिखी जिसका प्रकाशन 1967 में हुआ । क्रांतिकारी कवि पाश का निधन 38 वर्ष की अल्पायु में ही सन् 1988 में हुआ ।

पाश की शिक्षा अनियमित ढंग से स्नातक तक हुई । फिर गाँव में स्कूल खोला । बाद में ‘सिआड़’ (1972-73), ‘हेम ज्योति’ (1974-75) और हस्तलिखित ‘हाक’ (1982) नामक पत्रिकाओं का संपादन किया । सन् 1985 में अमेरिका चले गये । वहाँ ‘एंटी-47’ (1986-87) का संपादन करते हुए खालिस्तानी आंदोलन के विरुद्ध जोरदार प्रचार अभियान चलाया ।

1978 में उनका विवाह हुआ और 1980 में एक बेटी का जन्म हुआ । 1969 में नक्सलवादी राजनीति से जुड़े । 1988 में गाँव में ही अपने एक अंतरंग मित्र हंसराज के साथ खालिस्तानी आंतकवादियों की गोलियों का शिकार हो गये । इस खतरनाक समझे जानेवाले कवि को अपनी नियति का पूरापूरा अहसास था ।

तभी तो ‘कलाम मिर्जा’ शीर्षक कविता में कवि ने स्पष्ट किया था – “और सुना है मेरा कल भी इतिहास के आनेवाले पन्ने पर अंकित है ।” पाश को पंजाबी का ‘लोर्का’ कहा जाता है । स्पेन के जनकवि लोर्का की हत्या भी ऐसे ही देश विरोधी लोगों के द्वारा हुई थी। पाश की कविता राजनीति की कोरी बहस नहीं है बल्कि संघर्षों के बीच पलते हुए कवि का अनुभव तमाम प्रकार के आडम्बरों से दूर, दूर ही नहीं बल्कि हर तरह के आडम्बरों के लिए चुनौती था ।

खरापन और स्पष्टवादिता उनकी कविता का कारण है । इनकी कविता की एक ओर विशेषता है लोकसंस्कृति और परंपरा का गहरा बोध । तमाम प्रकार की विसंगतियों, विषमताओं और विडम्बनाओं के प्रति सीधी प्रतिक्रिया, साथ ही कवि आक्रोश की तीव्रता भी महसूस की जा सकती है ।

प्रस्तुत कविता ‘सबसे खतरनाक’ में कवि ने शोषकों के काले कारनामों, पुलिस तंत्र में फैले भ्रष्टाचार, गद्दारों को स्वार्थपरता, बुद्धिजीवियों का मौन आदि को खतरनाक बताने के साथ ही साथ इन असह्य विपरीत स्थितियों को बदलने की, मिटा देने की इच्छा के मर जाने को और सुनहरे भविष्य के सपनों के मर जाने को और भी ज्यादा खतरनाक मानता है ।

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काव्य का सारांश :

अवतारसिंह संधू ‘पाश’ की यह कविता वर्तमान विश्व की विद्रूपताओं को रेखांकित करती है । यह दुनिया पहले से कहीं बाधक क्रूर तथा नृशंस हो गई है । यह स्थिति खौफ़नाक अवश्य है किन्तु इससे कहीं ज्यादा खौफ़नाक है स्थितियों के प्रति हमारी तटस्थता, उसे बदलने के लिए जूझने के क्षीण पड़ते जाते हमारे संकल्प । कवि जड़ स्थितियों को बदलने की प्यास के मर जाने तथा भविष्य के सपनों के गुम हो जाने को कवि सबसे खतरनाक स्थिति मानता है ।

कविता का भावार्थ :

“मेहनत की लूट सबसे खतरनाक नहीं होती
पुलिस की मार सबसे खतरनाक नहीं होती
गद्दारी-लोभ की मुट्ठी सबसे खतरनाक नहीं होती
बैठे-बिठाए पकड़े जाना बुरा तो है
सहमी-सी चुप में जकड़े जाना बुरा तो है
पर सबसे खतरनाक नहीं होता।
कपट के शोर में
सही होते हुए भी दब जाना बुरा तो है
किसी जुगनू की लौ में पढ़ना बुरा तो है
मुट्ठियाँ भींचकर बस वक्त निकाल लेना बुरा तो है
सबसे खतरनाक नहीं होता ।”

यह कविता मूल रूप से पंजाबी भाषा में लिखी गई है, जिसका हिन्दी में अनुवाद डॉ. चमनलाल ने किया है । प्रस्तुत काव्यांश में कवि पाश ने देश और दुनिया में बढ़ती जा रही क्रूर, भयावह, असहनीय, त्रासद स्थितियों की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करने का प्रयत्न किया है । साथ ही इन विकट और खौफनाक स्थितियों से दो-दो हाथ होने के लिए क्षीण होता जा रहा जनाक्रोश, कुछ भी न कर पाने की विवशता और छटपटाहट की आवेशपूर्ण अभिव्यक्ति को बखूबी उभारा है ।

से भयावह माहौल को अपनी गहनता के साथ व्यक्त करने के लिए कवि ने कुछ खतरनाक स्थितियों को हमारे समक्ष रखा है, जो अपने आप में वाकई खतरनाक हैं, मगर कवि उन्हें सबसे खतरनाक नहीं कहता, जैसे कि मेहनत की लूट । श्रमिकों को उसके बदन से पसीना सूखने से पहले ही उसका पारिश्रमिक (मजदूरे) दे देना चाहिए ।

मगर कुछ लोग हैं कि उनकी मेहनत की ही लूट’ कर देते हैं । कवि की दृष्टि में मेहनत की लूट कम खतरनाक है, क्योंकि उसे फिर कमाकर अर्जित की जा सकती है । कवि पुलिस की मार को भी सबसे खतरनाक नहीं कहता, जबकि स्वयं कवि पाश ने बार-बार जेल और पुलिस की यातनाएँ सही है । पुलिस के साथ लुका-छिपी के खेल में भी कवि को कम यातनाएँ नहीं सहनी पड़ी है । इसीलिए अपनी एक कविता में तो कवि पुलिस से ही सवाल करता है –

“अरे पुलिसिए बता, मैं तुझे भी
इतना खतरनाक दिखता हूँ ?”

पाश उन गिने-चुने कवियों में से हैं, जिन्हें लोहे का स्वाद पता है । अपनी ‘लोहा’ शीर्षक कविता इसका स्पष्ट बयान है –

“तुम लोहे की कार में घूमते हो
मेरे पास लोहे की बंदूक है ।
मैंने लोहा खाया है।
तुम लोहे की बात करते हो ।”

फिर भी कवि को पुलिस की मार उन नृशंस हत्यारों से कम खतरनाक लगती है । किसी से गद्दारी करना, अपने निहित स्वार्थ के कारण बंद मुट्ठी में रिश्वत लेना या देना भी सबसे खतरनाक नहीं हैं । कुछ किये-कराये बिना ही, बिना अपराध पकड़े जाने का दर्द और दंश बुरा है और बेकसूर होते हुए भी अन्याय को भयवश सहन कर लेना तो और भी बुरा है, मगर सबसे खतरनाक नहीं।

इससे भी आगे कुछ और खतरनाक स्थितियों के बारे में बतलाते हुए कवि कहता है कि चारों ओर व्याप्त छल-कपट और प्रपंच के दौर में सही-सच्चे होते हुए भी दब जाना, प्रतिरोध न करना, अपनी सच्चाई को प्रमाणित करने के लिए अड़े न रहना बुरी बात है । किसी जुगनू की लौ में पढ़ना अर्थात् अभावग्रस्त स्थितियों में साधनहीनता में गुजारा करना, अपने बुनियादी अधिकारों – रोटीकपड़ा-मकान, शिक्षा-स्वास्थ्य, पानी-बिजली-रोजगारी आदि की मांग भी न करना बुरी बात है, मगर सबसे खतरनाक नहीं है । ऐसी स्थितियों के प्रतिरोध में उभरे आक्रोश (मुट्ठियाँ भींचकर) को भीतर-ही भीतर दबा देना खतरनाक है, मगर सबसे खतरनाक नहीं । तो फिर –

“सबसे खतरनाक होता है
मुर्दा शांति से भर जाना
न होना तड़प का सब सहन कर जाना
घर से निकलना काम पर
और काम से लौटकर घर आना
सबसे खतरनाक होता है
हमारे सपनों का मर जाना ।”

कविता के इस पड़ाव पर आकर कवि देश और दुनिया की खतरनाक नहीं, वरन् सबसे खतरनाक परिस्थितियों से रूबरू करवाया है । जैसे कि मुर्दा शांति से भर जाना अर्थात् कैसी भी स्थिति में न बोल पाने और न सोच पाने की स्थिति । या यों कहिए कि जिन्दा शववत हो जाना । अन्याय, अत्याचार का विरोध न कर पाने की स्थिति ।

ऐसी स्थिति से मुक्ति पाने की बेचैनी, प्रभास या छटपटाहट से शून्य हो जाना बस ! मौन धारण करके सबकुछ सहन करने के लिए विवश हो जाना, एक अपरिवर्तनीय एकरस जीवनक्रम में चलते हुए घर से निकलकर काम पर और काम से छूटकर घर पर आना अर्थात् यांत्रिक जीवन जीने की लाचारी जिसमें न आनंद है न उल्लास । इच्छा के विरुद्ध किये जाना, जिये जाना ।

कवि के मतानुसार ऐसी विकल्पहीन स्थिति में जीना सबसे खतरनाक है और सबसे खतरनाक है सपनों का मर जाना अर्थात् अपनी छोटी-छोटी उम्मीदों का मर जाना । वे ख्याहिशें जिन्हें पाने या पूरी करने की तमन्ना में वह जीवन गुजार देता है । दुष्यंतकुमार के शब्दों को उधार लें तो –

‘खुदा नहीं, न सही, आदमी का ख्वाब सही,
कोई हसीन नज़ारा तो नज़र के लिए ।’

यही बात पाश अपने अंदाज में कहता हैं कि हकीकत की दुनिया में न सही मगर दिल को बहलाने के लिए भी आदमी के सपने मर जाए ऐसी स्थितियाँ किसी भी समाज या देश के लिए बेहद खतरनाक है ।

“सबसे खतरनाक वह घड़ी होती है
आपकी कलाई पर चलती हुई भी जो
आपकी निगाह में रुकी होती है
सबसे खतरनाक वह आँख्न होती है
जो सब कुछ देखती हुई भी जमी बर्फ होती है
जिसकी नज़र दुनिया को मुहब्बत से चूमना भूल जाती है
जो चीज़ों से उठती अंधेपन की भाप पर ठुलक जाती है
जो रोज़मर्रा के क्रम को पीती हुई
एक लक्ष्यहीन दुहराव के उलटफेर में खो जाती है ।”

आगे कवि ‘घड़ी’ शब्द का श्लेषात्मक प्रयोग करता है । यहाँ ‘घड़ी’ शब्द एक ओर समय बतानेवाली घड़ी नामक वस्तु का बोधक है, वहीं दूसरी ओर त्रसित मनुष्य की स्थंभित जीवन स्थितियों का भी परिचायक है । इसमें बदलते हुए समय और स्थिति के अनुसार खुद को स्थितियों को न बदल पाने का रंज है, दंश है ।

हाथ की कलाई पर बँधी चलती हुई घड़ी भी कवि को रूकी हुई दिखना – मनुष्य की विकल्पहीन, स्थिर और दारुण जीवन-स्थितियों की परिचायक है, जो सबसे खतरनाक स्थिति है । सबसे खतरनाक वह आँख होती है जो अन्याय, अत्याचार को देखकर भी उसकी प्रतिक्रिया रूप तननेवाली भृकुटि या आँखें लाल होने (आक्रोश, प्रतिरोध है, अर्थात् वह इस जगत में ऐसी क्रूर, नृशंस और कुटिसत स्थितियों से गुजरा होता है कि उसके हृदयगत मानवीय भावों पर कुठाराघात होता है । प्रेम-सौंदर्य की भावना मर-सी जाती है ।

वह दुनिया को नफरत की नजरों से देखने लगता है । इतना ही नहीं स्वार्थ या लोभवश वह किसी भी वस्तु को येन-केन प्रकारेण प्राप्त करने के लिए कुछ भी कर गुजरने (विवेक का अंधापन) को उद्यत हो जाता किंकर्तव्यविमूढ़ और अमानवीय होता है । इसमें दुहराव भी जारी रहता है अर्थात् बार-बार होता है । ऐसी स्थितियों में जीनेवाला व्यक्ति और स्थितियाँ दोनों खतरनाक है ।

“सबसे खतरनाक वह चाँद होता है
जो हर हत्याकांड के बाद
वीरान हुए आँगनों में चढ़ता है ।
पर आपकी आँखों को मिर्चों की तरह नहीं गड़ता है
सबसे खतरनाक वह गीत होता है
आपके कानों तक पहुँचने के लिए
जो मरसिए पढ़ता है
आतंकित लोगों के दरवाजों पर
जो गुंड़े की तरह अकड़ता है ।”

दरअसल चाँद शीतलता, सुखदता और सुंदरता का प्रतीक है । मगर कवि उस चाँद को सबसे खतरनाक बताता है, जो उन घरों की छत पर उग आया है । जहाँ नृशंस और क्रूर हत्याकांड हुआ है, जिन आँगनों में मातम छाया हुआ है, जहाँ एक खौफनाक खामोशी छायी हुई है । उस चाँद और उसकी चाँदनी को देखकर लोगों को कोई फर्क ही न पड़े, चाँद उनकी आँखों में मिर्ची की तरह न गड़े, अर्थात् प्रतिकार, विरोध, विद्रोह, आक्रोश ही न जगे तो यह सबसे खतरनाक स्थिति है ।

क्योंकि चाँद और चाँदनी उन, लोगों के लिए सौंदर्य का प्रतीक हो सकता है, जिनके पेट भरे हों, उन्हें पूनम के चाँद में सुन्दर नायिका का मुख दिखे तो कोई आश्चर्य की बात नहीं, मगर भूखे इंसान को तो पूनम के चाँद में रोटी ही दिखाई देनी चाहिए । चाँद की चाँदनी उन लोगों को शीतलता प्रदान करे तो कोई आश्चर्य की बात नहीं कि जो सुखी संपन्न है मगर फटेहाल, अर्धनग्न या नग्न अवस्था में जीने को विवश लोगों के लिए चाहिए ।

विद्रोह की सशक्त भूमिका अपनानी चाहिए । कवि उस गीत को सबसे खतरनाक बतलाता है जो मनुष्य को दिल दहला देनेवाले गहन रुदन में धकेल देता है जिसे देखकर पत्थर दिल भी पिघल जाता है । निःसंदेह ऐसा गीत मरसिया (मृत्यु गीत/शोक गीत) ही हो सकता है । ये गीत किसी की मृत्यु पर ही गाये जाते हैं जो वातावरण को अधिक गमगीन बना देते हैं, ऐसे समय में स्मशानी खामोशी छा जाती है ।

डरे सहमे हुए लोग और भी भयभीत हो जाते हैं मानों ये गीत उन्हें डरे, सहमे, निरीह, निर्दोष लोगों को उनके घर पर आकर गुंड़ों की तरह धमकाते तथा अकड़ते प्रतीत होते है । अर्थात् लोगों के द्वारा विरोध न करते हुए आंतक को सहते जाना सबसे खतरनाक है ।

“सबसे खतरनाक वह रात होती है
जो जिंदा रूह के आसमानों पर ढलती है
जिसमें सिर्फ उल्लू बोलते और हुआँ-हुआँ करते गीदड़
हमेशा के अँधेरे बंद दरवाजों-चौगाठों पर चिपक जाते हैं
सबसे खतरनाक वह दिशा होती है
जिसमें आत्मा का सूरज डूब जाए
और उसकी मुर्दा धूप का कोई टुकड़ा
आपके जिस्म के पूरब में चुभ जाए ।”

कवि के अनुसार वह रात सबसे खतरनाक है जो जिंदा लोगों की आत्मारूपी आसमान पर या चेतनारूपी आसमान पर घोर अंधकार की भाँति छा जाती है । ऐसी रात कि जिसमें सिर्फ उल्लू बोलते हैं और हुआँ-दुआँ करते गीदड़ बोलते हैं । यहाँ ‘उल्लू’ और ‘गीदड़’ क्रूर हत्यारों और आततायियों के प्रतीक हैं । ऐसे उल्लू और गीदड़ हमेशा के अँधेरे बंद दरवाजों पर चिपक जाते हैं ।

अर्थात् चारों ओर ऐसे उल्लू और गीदड़ों का बोलबाला बढ़ जाय और जनता में प्रतिकार करने की शक्ति ही न रहे, सब कुछ सहन करने को विवश हो जाए ऐसी स्थिति बेहद खतरनाक है । आगे कयि सबसे खतरनाक उस दिशा को कहता है जिसमें आत्मा का सूरज डूब जाए । ‘आत्मा का सूरज का डूबने का आशय है आदमी अपनी इच्छा अनुसार कुछ भी न कर सके ।

असत्य, अन्याय और अत्याचार का विरोध तक न कर सके । इससे भी आगे बढ़कर कहें तो निरन्तर ऐसी अंधकारमय स्थितियों में जीते हुए भी इसका विरोध करने के बदले अपनी नियति ही समझ बैठें । ऐसी स्थिति सबसे खतरनाक है । ऐसी स्थिति में सूरज की धूप का कोई टुकड़ा लोगों में आशा नहीं जगा सकता । जिनमें प्रतिरोध की चेतना और शक्ति मर ही गई हो ऐसे लोगों को तो यह धूप और भी जलाती है, चुभती है ।

मेहनत की लूट सबसे खतरनाक नहीं होती
पुलिस की मार सबसे खतरनाक नहीं होती
गद्दारी-लोभ की मुट्ठी सबसे खतरनाक नहीं होती ।

कवि ने इन्हीं पंक्तियों से कविता की शुरुआत की थी और इन्हीं पंक्तियों से अंत भी किया है, क्योंकि वह इस बात की ओर इशारा करना चाहता है कि समाज में बहुत सी ऐसी बातें हैं जो समाज के लिए खतरनाक हैं, घातक है, मगर इन्हें नियंत्रण में रखा जा सकता है या इनमें सुधार किया जा सकता है । वहीं दूसरी ओर समाज में कुछ ऐसी परिस्थितियाँ उपस्थित हो चुकी हैं कि जो सबसे खतरनाक हैं । उन्हें नियंत्रित या काबू में नहीं रखा जा सकता । जो समाज में आंतक, भय, हिंसा, अराजकता, अविश्वास और असुरक्षा का माहौल पैदा कर रही हैं । ऐसी स्थितियाँ निश्चित रूप से चिंता का विषय हैं, सोचनीय बात है । इन बातों पर हमें गंभीरतापूर्वक सोचने-विचारने की आवश्यकता है।

GSEB Solutions Class 11 Hindi Aaroh Chapter 19 सबसे खतरनाक

शब्दार्थ :

  • गद्दारी – व्यक्ति, देश या शासन से द्रोह या धोखा
  • तड़प – बेचैनी
  • मरसिया – करुण रस की कविता जो किसी व्यक्ति की मृत्यु पर लिखी जाती है ।
  • रूह – आत्मा
  • लोभ – लालच
  • जकड़े जाना – पकड़े जाना
  • मुट्ठियाँ भींचकर – गुस्से को दबाकर
  • मुद्रा – शांति, निष्क्रियता, प्रतिरोध विहीनता की स्थिति, मृत
  • सपनों का मरना – इच्छाओं का नष्ट हो जाना
  • जमी बर्फ – संवेदनशून्यता
  • उलटफेर – चक्कर
  • हत्याकांड – हत्या की घटना
  • बैठे-बिठाए – अनायास, अकारण
  • वीरान – उजड़ा हुआ, सुनसान
  • जिस्म – शरीर
  • चौगाठों – चौखटों
  • सहमी – डरी
  • लौ – रोशनी
  • वक्त – समय
  • तड़प – बेचैन
  • निगाह – दृष्टि
  • रोजमर्रा – दैनिक कार्य
  • दुहराव – दोहराना
  • गड़ता – चुभना

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