GSEB Solutions Class 10 Hindi Kritika Chapter 1 माता का अँचल

Gujarat Board GSEB Std 10 Hindi Textbook Solutions Kritika Chapter 1 माता का अँचल Textbook Exercise Important Questions and Answers, Notes Pdf.

GSEB Std 10 Hindi Textbook Solutions Kritika Chapter 1 माता का अँचल

निम्नलिखित गद्यांशों को पढ़कर प्रश्नों के उत्तर लिखिए

1. हमारे पिता तड़के उठकर, निबट-नहाकर पूजा करने बैठ जाते थे। हम बचपन से ही उनके अंग लग गए थे। माता स केवल दूध पीने तक का नाता था। इसलिए पिता के साथ ही हम भी बाहर की बैठक में ही सोया करते। वह अपने साथ ही हमें भी उठाते और साथ ही नहला-धुलाकर पूजा पर बिठा लेते।

हम भभूत का तिलक लगा देने के लिए उनको दिक करने लगते थे। कुछ हँसकर, कुछ झुंझलाकर और कुछ डाँटकर यह हमारे चौड़े लिलार में त्रिपुंड कर देते थे। हमारे लिलार में भभूत खूब खुलती थी। सिर में लंबी-लंबी जटाएँ थीं। भभूत रमाने से हम खासे ‘बम-भोला’ बन जाते थे। पिता जी हमें बड़े प्यार से ‘भोलानाथ’ कहकर पुकारा करते। पर असल में हमारा नाम था ‘तारकेश्वरनाथ’।

हम भी उनका ‘बाबू जी’ कहकर पुकारा करते और माता को ‘मइयाँ’। जब बाबू जी रामायण का पाठ करते तब हम उनकी बगल में बैठे-बैठे आइने में अपना मुँह निहारा करते थे। जब वह हमारी ओर देखते तब हम कुछ लजाकर और मुसकराकर आइना नीचे रख देते थे। यह भी मुसकरा पड़ते थे।

प्रश्न 1.
प्रातःकाल उठने के बाद लेखक के पिता क्या करते थे ?
उत्तर :
प्रातःकाल उठने के बाद लेखक के पिता नहा-धोकर पूजा करने बैठ जाते थे। वे लेखक को भी उठा देते थे।

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प्रश्न 2.
लेखक बमभोला कैसे बन जाते थे ?
उत्तर :
सुबह स्नानादि के बाद लेखक अपने पिता के साथ पूजा करने बैठ जाते, उस समय उनके पिता उनके मस्तक पर भभूत का बड़ा-सा टीका लगा देते थे। सिर पर लंबी जटाएँ थीं और मस्तक पर भभूत रमाने के कारण वे ‘बम-भोला’ बन जाते थे।

प्रश्न 3.
लेखक का मूल नाम क्या था ? व पिताजी उन्हें क्या कहकर बुलाते थे ?
उत्तर :
लेखक का मूल नाम तारकेश्वर था। उनके पिताजी उन्हें भोलानाथ कहकर बुलाते थे।

प्रश्न 4.
लेखक के पिताजी कब मुस्करा पड़ते थे ?।
उत्तर :
रामायण का पाठ करते समय लेखक अपने पिता के बगल में बैठकर आईने में अपना मुँह निहारा करते थे। लेखक के पिता जब उनकी इस हरकत को देख्न लेते थे तब वे शर्माकर आईना नीचे रख देते थे। तब यह देखकर लेखक के पिता मुस्कुरा पड़ते थे।

2. उनके साथ हँसते-हँसते जब हम घर आते तब उनके साथ ही हम भी चौके पर खाने बैठते थे। वह हमें अपने ही हाथ से, फूल के एक कटोरे में गोरस और भात सानकर खिलाते थे। जब हम खाकर अफर जाते तब मइयाँ थोडा और खिलाने के लिए हठ करती थी। यह बाबू जी से कहने लगती-आप तो चार-चार दाने के कौर बच्चे के मुँह में देते जाते हैं। इससे वह थोड़ा खाने पर भी समझ लेता है कि हम बहुत खा गए; आप खिलाने का ढंग नहीं जानते-बच्चे को भर-मुँह कौर खिलाना चाहिए।

जब खाएगा बड़े-बड़े कौर, तब पाएगा दनिया में ठीर। – देखिए, मैं खिलाती हूँ। मरदुए क्या जाने कि बच्चों को कैसे खिलाना चाहिए, और महतारी के हाथ से खाने पर बच्चों का पेट भी भरता है। यह कह यह थाली में दही-भात सानती और अलग-अलग तोता, मैना, कबूतर, हंस, मोर आदि के बनावटी नाम से कौर बनाकर यह कहते हुए खिलाती जाती कि जल्दी खा लो, नहीं तो उड़ जाएँगे; पर हम उन्हें इतनी जल्दी उड़ा जाते थे कि उड़ने का मौका ही नहीं मिलता था।

प्रश्न 1.
लेखक और उनके पिताजी चौके पर क्या करते थे ?
उत्तर :
लेखक और उनके पिताजी चौके पर बैठकर भोजन करते थे। लेखक के पिता अपने हाथ से उन्हें दूध-भात खिलाते थे।

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प्रश्न 2.
लेखक की माँ किस बात के लिए हठ करती थीं ?
उत्तर :
लेखक जब भर-पेट खाना खा लेते थे तब उनकी माँ और अधिक खाना खाने के लिए हठ करती थीं।

प्रश्न 3.
लेखक की माँ के अनुसार बच्चों को कैसे खाना खिलाना चाहिए ?
उत्तर :
लेखक की माँ के अनुसार बच्चों को कौर भरमुँह खिलाना चाहिए। छोटे कौर खिलाने पर बच्चा थोड़ा खाने पर भी समड़ा लेता है कि वह बहुत खा लिया है।

प्रश्न 4.
लेखक को खाना खिलाने के लिए उनकी माँ कौन-सी युक्ति अजमाती थीं ?
उत्तर :
लेखक की माँ उन्हें खाना खिलाने के लिए दही-भात सानकर अलग-अलग कौर बना देती थीं फिर उन कौरों के अलग अलग नाम – तोता, मैना, कबूतर, हंस, मोर आदि बनावटी नाम से कौर बनाकर यह कहते हुए खिलाती जाती थीं कि जल्दी खा लो, नहीं तो उड़ जाएँगे। और लेखक उड़ने से पहले जल्दी से कौर खा लेते थे। लेखक की माँ यह युक्ति अजमाती थीं।

3. बाबू जी जिस छोटी चौकी पर बैठकर नहाते थे, वही रंगमंच बनती। उसी पर सरकंडे के खंभों पर कागज का चंदाआ तानकर, मिठाइयों की दुकान लगाई जाती। उसमें चिलम के खोंचे पर कपड़े के थालों में ढेले के लड्डु, पत्तों की पूरी-कचौरियाँ, गीली मिट्टी की जलेब्रियाँ, फूटे घड़े के टुकड़ों के बताशे आदि मिठाइयाँ सजाई जाती। ठीकरों के बटखरे और जस्ते के छाटछोटे टुकड़ों के पैसे बनते। हमीं लोग खरीदार और हमीं लोग दुकानदार।

बाबू जी भी दो-चार गोरखपुरिए पैसे खरीद लेते थे। थोड़ी देर में मिठाई की दुकान बढ़ाकर हम लोग घरौंदा बनाते थे। धूल की मेड़ दीवार बनती और तिनकों का छप्पर। दातून के खंभे, दियासलाई की पेटियों के किवाड़, घड़े के मुँहड़े की चूल्हा-चक्की, दीए की कड़ाही और बाबू जी की पूजा वाली आचमनी कलछी बनती थी। पानी के घी, धूल के पिसान और बालू की चीनी से हम लोग ज्योनार तैयार करते थे।

हमी लोग ज्योनार करते और हमीं लोगों की ज्योनार बैठती थी। जब पंगत बैठ जाती थी तब बाबू जी भी धीरे-से आकर, पाँत के अंत में, जीमने के लिए बैठ जाते थे। उनको बैठते देखते ही हम लोग हँसकर और घरौंदा बिगाड़कर भाग चलते थे। वह भी हँसते-हँसते लोट-पोट हो जाते और कहने लगते-फिर कब भोज होगा भोलानाथ ?

प्रश्न 1.
मिठाइयों की दुकान कहाँ लगाई जाती थी ?
उत्तर :
लेखक के पिताजी जिस छोटी चौकी पर नहाते थे, उसी पर सरकंडे के खंभों पर कागज का छोटा शामियाना तान दिया जाता था। उसी पर मिठाइयों की दुकान लगाई जाती थी।

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प्रश्न 2.
दुकान में किसकी बनी मिठाइयाँ सजाई जाती थीं ?
उत्तर :
दुकान में ढेले के लड्डू, पत्तों की पूरी – कचौरियाँ, गीली मिट्टी की जलेबियाँ, फूटे घड़े के टुकड़ों के बताशे आदि मिठाइयों के रूप में सजाए जाती थे।

प्रश्न 3.
लेखक और उनके साथी धरौंदा कैसे बनाते थे ?
उत्तर :
लेखक और उनके साथी धूल की मेड़ से दीवार बनाते थे, उसके ऊपर तिनकों का छप्पर तानते थे। दातून के खंभे बनाते थे, दियासलाई की डिब्बियों के कियाड़, घड़े के मुँहड़े की चूल्हा-चक्की, दीये की कड़ाही, पूजा की आचमनी से कलछी बनाकर धरौंदा बनाया करते थे।

प्रश्न 4.
लेखक के पिता हँसते हँसते लोट-पोट क्यों हो जाते थे ?
उत्तर :
लेखक व उसके साथी ज्योनार खाने के लिए पंगत में बैठते थे, तब पंगत के अंत में उनके पिता भी भोजन करने बैट जात थे। पिता को देखते ही सभी हँसकर धरौंदा बिगाड़कर भाग जाते थे, तब उनके पिता हँसते हँसते लोट-पोट हो जाते थे।

4. बरख्खा बंद होते ही बाग में बहुत-से बिच्छू नजर आए। हम लोग डरकर भाग चले। हम लोगों में बैजू बड़ा ढीठ था। संयोग की बात, बीच में मूसन तिवारी मिल गए। बेचारे बूढ़े आदमी को सूझता कम था। बैजू उनको चिढ़ाकर बोला – बुढ़वा बेईमान माँगे करैला का चोखा। हम लोगों ने भी, बैजू के सुर-में-सुर मिलाकर यही चिल्लाना शुरू किया। मूसन तिवारी ने बेतहाशा खदेड़ा।

4. हम लोग तो बस अपने-अपने घर की ओर आँधी हो चले। जब हम लोग न मिल सके तब तिवारी जी सीधे पाठशाला में चले गए। वहाँ से हमको और बैजू को पकड़ लाने के लिए चार लड़के ‘गिरफ्तारी वारंट’ लेकर छूटे। इधर ज्यों ही हम लोग घर पहुँचे, त्यों ही गुरु जी के सिपाही हम लोगों पर टूट पड़े। बैजू तो नौ-दो ग्यारह हो गया; हम पकड़े गए।

फिर तो गुरु जी ने हमारी खूब खबर ली। बाबू जी ने यह हाल सुना। वह दौड़े हुए पाठशाला में आए। गोद में उठाकर हमें पुचकारने और फुसलाने लगे। पर हम दुलारने से चुप होनेवाले लड़के नहीं थे। रोते-रोते उनका कंधा आँसुओं से तर कर दिया। यह गुरु जी की चिरौरी करके हमें घर ले चले। रास्ते में फिर हमारे साथी लड़कों का झुंड मिला। ये जोर से नाचते और गाते थे।

प्रश्न 1.
लेखक और उनके साथी डरकर क्यों भाग गए ?
उत्तर :
लेखक और उनके साथी बाग में थे। वहाँ बारिश बंद होने के बाद बहुत से बिच्छु नजर आए। इसलिए लेखक और उनके साथी बिच्छु से डर कर भाग गए।

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प्रश्न 2.
मूसन तिवारी जी पाठशाला क्यों गए ?
उत्तर :
मूसन तिवारी जी को लेखक के मित्रों ने चिढ़ाया था। वे बेतहाशा बालकों के पीछे भागे। जब वे बच्चे घर पर न मिले तो वे उन बच्चों की शिकायत करने के लिए पाठशाला गए।

प्रश्न 3.
लेखक घर पर पहुँचे तो वहाँ क्या हुआ ?
उत्तर :
लेखक घर पहुँचे तो गुरुजी द्वारा भेजे गए सिपाही उन्हें पकड़ने के लिए उन पर टूट पड़े। बैजू तो भाग गया। किन्तु लेखक, पकड़ में आ गए। उन्हें गुरुजी के सामने ले जाया गया, जहाँ उन्हें खूब डाँट पड़ी।

प्रश्न 4.
लेखक के पिताजी पाठशाला क्यों गए ?
उत्तर :
लेख्यक के पिताजी को जब लेखक के पकड़े जाने की घटना के विषय में पता चला तो वे तुरंत दौड़ते हुए पाठशाला गए। और लेखक को दुलारने और पुचकारने लगे।

5. एक टीले पर जाकर हम लोग चूहों के बिल में पानी उलीचने लगे। नीचे से ऊपर पानी फेंकना था। हम सब थक गए। तब तक गणेश जी के चूहे की रक्षा के लिए शिव जी का साँप निकल आया। रोते-चिल्लाते हम लोग बेतहाशा भाग चले ! कोई औंधा गिरा, कोई अंटाचिट। किसी का सिर फूटा, किसी के दाँत टूटे। सभी गिरते-पड़ते भागे।

हमारी सारी देह लहूलुहान हो गई। पैरों के तलवे काँटों से छलनी हो गए। हम एक सुर से दौड़े हुए आए और घर में घुस गए। उस समय बाबू जी बैठक के ओसारे में बैठकर हुक्का गुड़गुड़ा रहे थे। उन्होंने हमें बहुत पुकारा पर उनकी अनसुनी करके हम दौड़ते हुए मइयाँ के पास ही चले गए। जाकर उसी की गोद में शरण ली।

प्रश्न 1.
लेखक और उनके साथी चूहे के बिल में क्या कर रहे थे ?
उत्तर :
लेखक और उनके साथी चूहा पकड़ने के लिए चूहे के बिल में से पानी उलीच रहे थे अर्थात् पानी निकाल रहे थे।

प्रश्न 2.
लेखक और उनके साथी बेतहाशा क्यों भागे ?
उत्तर :
लेखक और उनके साथी चूहे के बिल में से पानी निकाल रहे थे तब चूहे के बिल से साँप निकल आया। उसे देखकर सभी लड़के डर गए। इसलिए वे और उनके साथी बेतहाशा भागे।

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प्रश्न 3.
साँप को देखकर लेखक और उनके साथियों की क्या दशा हुई ?
उत्तर :
साँप को देखते ही लेखक और उनके साथियों की हालत खराब हो गई। भागते हुए उस समय कोई औंधा गिरा, कोई अंटाचिट। किसी का सिर फूटा, किसी के दाँत टूटे। लेखक और उनके साथियों की देह लहूलुहान हो गई। पैरों के तलवे काँटों से छलनी हो गए।

प्रश्न 4.
लेखक ने माँ की गोद में शरण क्यों ली ?
उत्तर :
लेखक साँप को देखकर भयभीत हो गए थे। वे गिरते पड़ते किसी तरह घर पहुँचे। पिता के बुलाने पर भी वे उनके पास नहीं गए। बच्चा इस अवस्था में माँ की आँचल में ही अपने को सुरक्षित महसूस करता है। इसलिए लेखक ने माँ की गोद में शरण ली।

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