GSEB Class 11 Hindi Vyakaran गद्य : उपन्यास, कहानी, नाटक, निबंध (1st Language)

Gujarat Board GSEB Solutions Class 11 Hindi Vyakaran गद्य : उपन्यास, कहानी, नाटक, निबंध (1st Language) Questions and Answers, Notes Pdf.

GSEB Std 11 Hindi Vyakaran गद्य : उपन्यास, कहानी, नाटक, निबंध (1st Language)

उपन्यास

प्रश्न 1.
उपन्यास के सम्बन्ध में प्रेमचंदजी के विचार लिखिए।
उत्तर :
हिन्दी के युगांतरकारी उपन्यासकार प्रेमचंदजी के उपन्यास विषयक विचार चिन्तनीय हैं। वे लिखते हैं “मैं उपन्यास को मानव चरित्र का चित्र समझता हूँ। मानव-चरित्र पर प्रकाश डालना और उसके रहस्यों को खोलना उपन्यास का मूलतत्त्व है। चरित्र सम्बन्धी समानता और विभिन्नता-अभिन्नत्व में भिन्नत्व और विभिन्नत्व में अभिन्नत्व दिखाना उपन्यास का मूल कर्तव्य है।”

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प्रश्न 2.
उपन्यास के कितने तत्त्व होते हैं? कौन-कौन-से?
उत्तर :
आलोचकों ने उपन्यास के छ: तत्त्व माने हैं, वे इस प्रकार हैं :

  • कथावस्तु,
  • पात्र,
  • कथोपकथन,
  • देश-काल – वातावरण (परिवेश),
  • भाषा-शैली और
  • उद्देश्य।

प्रश्न 3.
उपन्यास में ‘कथावस्तु’ का महत्त्व समझाइए।
उत्तर :
उपन्यास की क्रमबद्ध घटनाओं को ही कथावस्तु कहा जाता है। कथावस्तु सुसम्बन्ध और सुसंयोजित होनी चाहिए। उपन्यास की कथावस्तु की सार्थकता उसके पात्रों के अन्तः सम्बन्ध को उजागर करने में है। मूल कथा के साथ कुछ अवांतर कथाएँ होती हैं जिनसे कथा-विकास में सहायता मिलती है।

अवांतर कथाएँ मूलकथा से इस प्रकार घुली-मिली रहती हैं कि अलगाव नजर नहीं आता। फैंटेसी (काल्पनिक कथावस्तु) की रचना भी उपन्यासकार करता है किन्तु उसमें यथार्थ का रंग भरने पर ही उसका कौशल प्रकट होता है।

प्रश्न 4.
उपन्यास के पात्रों की क्या लाक्षणिकताएँ होनी चाहिए?
उत्तर :
उपन्यास के पात्र किसी सिद्धान्त के जड़ प्रतीक नहीं होने चाहिए। उनमें सजीवता और स्वाभाविकता अपेक्षित है। उपन्यास की पात्र-सृष्टि का आधार मानवजीवन सम्बन्धी कोई ठोस अनुभव होना चाहिए।

प्रश्न 5.
उपन्यास के कथोपकथनों (संवादों) के विषय में प्रेमचंद का क्या मत है?
उत्तर :
प्रेमचंदजी स्वयं एक प्रतिष्ठित एवं युगप्रवर्तक उपन्यासकार हैं। संवादों के बारे में उनका मत है कि उपन्यास के संवाद या कथोपकथन रस्मी नहीं होने चाहिए। वे प्रभावशाली तभी बनते हैं जब वे पात्रों के जीवंत क्रिया-कलापों से जुड़े हुए हों।

प्रश्न 6.
उपन्यास में देशकाल और वातावरण का क्या महत्त्व है?
उत्तर :
उपन्यास में लेखक अपने समय और समाज का दिग्दर्शन जितनी निष्ठा-ईमानदारी से रूपायित करेगा, उसका उपन्यास उतना ही मूल्यवान और महत्त्वपूर्ण होगा। एक कुशल उपन्यासकार अपने परिवेश और युग की सतही वस्तुओं की गणना नहीं करता, अपितु वह युगीन यथार्थ की भावभूमि पर अपने उपन्यास को प्रतिष्ठित करता है।

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प्रश्न 7.
उपन्यास की भाषा-शैली कैसी होनी चाहिए?
उत्तर :
भाषा किसी भी कथा-कृति में अत्यंत महत्त्वपूर्ण अंग है। भाषा के दो रूप है – साहित्यिक रूप और बोलचाल का रूप। भाषा पूरे उपन्यास को प्राणवान तभी बनाती है जब लेखक उक्त दोनों भाषा-रूपों के बीच का भेद समाप्त कर देता है। कहा गया है – शैली ही मनुष्य का स्वरूप है।

उपन्यास की शैली का आधार भी उपन्यासकार का व्यक्तित्व होता है। वैसे उपन्यास की अनेक शैलियाँ प्रचलित हैं – वर्णनात्मक, नाट्यात्मक, डायरी शैली और पत्रात्मक आदि।

प्रश्न 8.
उपन्यास का उद्देश्य कैसा होना चाहिए?
उत्तर :
वास्तव में आज दो तरह के उपन्यास देखने को मिलते हैं – लोकप्रिय – बिकनेवाले और टिकनेवाले (साहित्यिक)। बिकनेवाले या बिकाऊ उपन्यास वे हैं जिनका उद्देश्य एकदम सतही मनोरंजन के द्वारा अर्थोपार्जन करना होता है और टिकनेवाले उपन्यास वे है जिनका अपना उद्देश्य सामाजिक उत्कर्ष होता है। ऐसे लेखक अपने उपन्यासों के माध्यम से युगजीवन को उद्घाटित करके मानवीय संदेश देना चाहते हैं।

सच पूछिए तो ऐसे उपन्यास अपने युग के ऐतिहासिक दस्तावेज होते हैं। ऐसे उपन्यास ही अमर हो पाते है। जैसे – गोदान (प्रेमचंद), दिव्या (यशपाल), बाणभट्ट की आत्मकथा (हजारीप्रसाद द्विवेदी), रागदरबारी (श्रीलाल शुक्ल), जल टूटता हुआ (रामदरश मिश्र), मैला आँचल (फणीश्वरनाथ रेणु), आधा गाँव (राही मासूम रज़ा) इत्यादि सोद्देश्य उपन्यास हैं।

कहानी

1. निम्नलिखित प्रश्नों के संक्षेप में उत्तर दीजिए :

प्रश्न 1.
कहानी के प्राचीन भारतीय ग्रंथों के नाम दीजिए।
उत्तर :
कहानी सम्बन्धी प्राचीन ग्रंथों के नाम इस प्रकार हैं –

  • वृहत्कथा,
  • कथासरित्सागर,
  • पंचतंत्र,
  • हितोपदेश।

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वास्तव में कहानी के ये ग्रंथ प्राचीन होकर भी चिरनवीन हैं।

प्रश्न 2.
आधुनिक कहानी के कितने तत्त्व होते हैं? कौन-कौन-से?
उत्तर :
कल्पना और निरे उपदेश से हटकर आधुनिक जन-जीवन से जुड़नेवाली और उसकी दैनंदिन समस्याओं को उद्घाटित करनेवाली आधुनिक कहानी का आरंभ 1900 ई. से होता है। आधुनिक कहानी के सात तत्त्व माने गए हैं, जो निम्नलिखित हैं –

  • कथानक या कथावस्तु,
  • चरित्र-चित्रण,
  • देश-काल या वातावरण (परिवेश),
  • संवाद या कथोपकथन,
  • शीर्षक,
  • भाषा-शैली और
  • उद्देश्य।

प्रश्न 3.
‘जो स्थान शरीर में हड्डियों के ढाँचे का है वही स्थान कहानी में कथावस्तु का है।’ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
हड्डियों के ढाँचे के अभाव में जैसे शरीर की कल्पना असंभव है, वैसे ही कथावस्तु के बिना कहानी का अस्तित्व भी असंभव है। एक जमाने में कथावस्तु का विरोध किया गया था किन्तु यह विरोध लम्बे समय तक नहीं चल सका। कथानक के चारों ओर कहानी का ताना-बाना बुना जाता है।

कथावस्तु मात्र घटना समूह का नाम नहीं है, अपितु उसमें एक भावस्थिति या घटना की प्रतिक्रिया भी हो सकती है। कथानक के आधार पर कहानी घटनाप्रधान, सामाजिक, ऐतिहासिक या पौराणिक भी हो सकती हैं।

प्रश्न 4.
‘चरित्र कहानी को जीवंत बनाते हैं’ प्रमाणित कीजिए।
उत्तर :
कथानक में चेतना फूंकने का काम चरित्रों का है। चरित्र कथानक को आगे बढ़ाते हैं। निबंध में तो लेखक को अपनी बात स्वयं कहने की स्वतंत्रता होती है किन्तु कहानी में लेखक अपनी बात अपने पात्रों या चरित्रों के माध्यम से प्रस्तुत करता है।

कई बार पात्र मानव-चरित्र होते हैं तो कई बार मानवेतर पशु-पक्षी; पर केन्द्र में तो मनुष्य ही रहता है। चरित्र-चित्रण के माध्यम से लेखक पात्रों के स्वभाव, वेश, उनके रहन-सहन आदि पर प्रकाश डालता है।

कहानीकार अपने चरित्रों को समाज से ही चुनता है, किन्तु अपनी सूझ-बूझ के अनुसार उनमें रंग भरता है। इसी का नाम है चरित्र-चित्रण।

प्रश्न 5.
कहानी में देश-काल वातावरण का क्या महत्त्व है?
उत्तर :
देश-काल या वातावरण में कथानक की भौगोलिक तथा ऐतिहासिक पृष्ठभूमि एवं संदर्भो की बात आती है। चरित्रों को विश्वसनीय बनाने हेतु उनका सृजन और विकास उनके अपने देश-काल और वातावरण के अनुरूप होता है।

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प्रश्न 6.
कहानी में संवाद की क्या उपयोगिता है?
उत्तर :
यों तो संवाद या कथोपकथन नाटक का प्राण है, कहानी में संवाद अनिवार्य नहीं हैं; किन्तु संवादों से कहानी में नाटकीयता और गति आती है और परिणामस्वरूप कहानी में एक नवीन चेतना का संचार होता है वह ओर भी दिलचस्प हो जाती है। संवादों के अभाव में कहानी सपाट और उबाऊ हो जाती है।

प्रश्न 7.
कहानी का शीर्षक कैसा होना चाहिए?
उत्तर :
शीर्षक कहानी का अथवा कहानी के मूल कथ्य को उद्घाटित करता है। वास्तव में शीर्षक ही कहानी की पहचान है। जैसे सिर से आदमी की पहचान होती है वैसे ही शीर्षक से कहानी की पहचान होती है। कहानी का शीर्षक संक्षिप्त और प्रभावशाली होना चाहिए। वह कहानी की प्रमुख घटना, चरित्र या केन्द्रीय भाव पर ही निर्धारित होता है। कहानी का शीर्षक आकर्षक होना चाहिए ताकि पाठक कहानी पढ़ने के लिए उत्सुक हो उठे।

प्रश्न 8.
कहानी में भाषा-शैली की क्या उपादेयता है?
उत्तर :
कहानी में भाषा-शैली कथानक व चरित्रों के अनुरूप होती है। तात्पर्य यह कि प्रत्येक अपने धर्म, अपनी कौम या जाति, अपनी योग्यता, अपनी औक़ात और अपने क्षेत्र (शहर या गाँव) के अनुरूप भाषा का प्रयोग करेगा।

प्रश्न 9.
कहानी में उद्देश्य से आप क्या समझते हैं?
उत्तर :
आजकल प्राचीन कहानियों की भाँति उद्देश्य स्पष्ट नहीं किया जाता, वरन् कहानी में प्रच्छन्न रहता है या व्यंजित। हाँ पंचतंत्र, हितोपदेश आदि प्राचीन कथाओं का उद्देश्य उपदेश के रूप में खुलकर व्यक्त होता था, किन्तु आजकल कहानीकार अपनी कहानी के उद्देश्य का केवल संकेतमात्र ही करते हैं।

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निबन्ध

1. निम्नलिखित प्रश्नों के संक्षेप में उत्तर दीजिए :

प्रश्न 1.
ललित निबन्ध किसे कहते हैं?
उत्तर :
ललित निबंध आत्माभिव्यक्ति का एक महत्त्वपूर्ण साहित्यिक माध्यम है। ललित निबन्धों में लालित्य का भाव प्रमुख है। गद्य यदि कवियों की कसौटी है, तो निबंध-लेखन गद्यकारों की कसौटी है। निबंधकार अपनी बात या विचार को कितने प्रभावपूर्ण ढंग से प्रस्तुत करता है यह उसकी अपनी भाषा-शैली पर निर्भर है।

प्रश्न 2.
निबंध के तत्त्व कौन-कौन-से हैं?
उत्तर :
निबंध के तत्त्व इस प्रकार हैं :-
(अ) विषय-प्रतिपादन
(ब) भाषा
(क) शैली और
(ड) लेखक का व्यक्तित्व।

प्रश्न 3.
निबंध में भाषा का क्या महत्त्व है?
उत्तर :
निबन्ध में भाषा का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। निबन्धकार का भाषाधिकार उसके विषय-प्रतिपादन को सुदृढ़ बनाता है। निबन्ध की भाषा सरल-सुबोध, जटिल या क्लिष्ट भी होती है, किन्तु निबन्धकार के भावों को आर-पार समझानेवाली होती है। निबन्ध की भाषा संस्कृतनिष्ठ और क्वचित् बोलचाल की आमफहम हिन्दी भी हो सकती है। लेखक की पहचान उसकी भाषा से होती है, लेखक जिस प्रदेश का होता है, उसकी गंध उसकी भाषा में मिली रहती है।

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प्रश्न 4.
निबन्ध में शैली का महत्त्व समझाइए।
उत्तर :
शैली के अन्तर्गत लेखक की भाषा और विषय-प्रतिपादन का ढंग समाविष्ट है। लेखक के व्यक्तित्व के अनुरूप उसकी शैली समास शैली, तरंग शैली, निगमन या आगमन शैली हो सकती है। किसी सूत्र को समझाना निगमन शैली है और व्याख्या को सूत्र बद्ध करना आगमन शैली है। संस्कृतनिष्ठ सामासिक शब्द व लम्बे वाक्य समास शैली है तथा छोटे-छोटे वाक्य-खण्डों से बनी प्रवाहपूर्ण शैली तरंग शैली कहलाती है।

प्रश्न 5.
निबन्ध में लेखक के व्यक्तित्व की व्यंजना कैसे होती है?
उत्तर :
निबन्धकार का व्यक्तित्व विषय-चयन से लेकर उसकी प्रतिपादन-शैली तक सर्वत्र व्याप्त रहता है। निबन्ध पढ़ते समय हमें इसका अनुभव होता है। किसी भी निबंध को पढ़ते ही हमें ज्ञान हो जाता है कि निबंधकार कवि है, चित्रकार हैं, इतिहासकार है, संगीतकार है या फिर वैज्ञानिक अथवा दार्शनिक है। इस प्रकार वातावरण में हवा की भाँति निबन्धकार का व्यक्तित्व उसके निबंध में उसके अविभाज्य अंग की भाँति व्याप्त रहता है।

रेखाचित्र

1. निम्नलिखित प्रश्नों के संक्षिप्त में उत्तर दीजिए :

प्रश्न 1.
रेखाचित्र किसे कहते हैं?
उत्तर :
जब लेखक शब्दों के द्वारा किसी व्यक्ति, वस्तु या दृश्य का चित्र अंकित करता है, तो उसे रेखाचित्र कहते हैं।

प्रश्न 2.
रेखाचित्र के प्रमुख तत्त्व कौन से हैं?
उत्तर :
यथार्थ की प्रधानता और लेखक का वस्तु/व्यक्ति से रागात्मक संबंध रेखाचित्र के मुख्य तत्त्व हैं। रेखाचित्र के लिए लेखक की चित्रात्मक सूझ भी आवश्यक है।

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प्रश्न 3.
रेखाचित्र के मुख्य प्रकारों के नाम बताइए।
उत्तर :
रेखाचित्र के मुख्य प्रकार निम्नलिखित हैं :

  • (1) मनोवैज्ञानिक रेखाचित्र,
  • (2) ऐतिहासिक रेखाचित्र,
  • (3) घटनाप्रधान रेखाचित्र,
  • (4) परिवेशप्रधान रेखाचित्र
  • (5) व्यंग्यप्रधान रेखाचित्र
  • (6) आत्मपरक या व्यक्तिप्रधान रेखाचित्र।

प्रश्न 4.
हिन्दी में रेखाचित्र लिखनेवाले प्रमुख रचनाकारों के नाम बताइए।
उत्तर :
श्री रामवृक्ष ‘बेनीपुरी’, महादेवी वर्मा, जयनाथ नलिन, बेढब बनारसी, श्रीराम शर्मा तथा कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ आदि प्रमुख हिन्दी रेखाचित्र लिखनेवाले प्रमुख लेखक हैं।

संस्मरण

1. संक्षिप्त उत्तर दीजिए :

प्रश्न 1.
संस्मरण किसे कहते हैं?
उत्तर :
किसी स्मरणीय घटना या महान् व्यक्ति की यादों को लेकर किया गया शब्द-चित्र संस्मरण है। यह आत्मपरक गद्य विधा है।

प्रश्न 2.
संस्मरण की प्रमुख विशेषताएँ कौन-कौन-सी हैं?
उत्तर :
अनुभूत संवेदना, व्यक्ति, वस्तु या घटना का आत्मीयतापूर्वक स्मरण, स्मृति का भावपूर्ण रोचक प्रसंग में रूपांतरण संस्मरण की प्रमुख विशेषताएँ है। व्यक्ति – संस्मरण प्राय: महान् व्यक्ति की मृत्यु के पश्चात् लिने जाते हैं। शैली की दृष्टि से चित्रमयता संस्करण को उत्कृष्ट बनाती है।

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प्रश्न 3.
संस्मरण के मुख्य प्रकार कौन-कौन से हैं?
उत्तर :
संस्मरण मुख्यतः ‘श्रद्धांजलि’, ‘पत्रात्मक’, ‘डायरी अंकित’, ‘जीवनी स्वरूप’, ‘यात्राविषयक’ तथा ‘आत्मकथनात्मक’ प्रकार के हो? सकते हैं।

जीवनी और आत्मकथा

1. संक्षिप्त उत्तर दीजिए :

प्रश्न 1.
जीवनी और आत्मकथा में मुख्य अंतर क्या है?
उत्तर :
आत्मकथा में स्वयं लेखक अपने बारे में लिखता है जब कि जीवनी में कोई लेखक किसी महान व्यक्ति के पूरे जीवन का आरंभ से अंत तक विवरणात्मक चित्रण करता है।।

प्रश्न 2.
जीवनी लेखक को किन बातों का ध्यान रखना होता है?
उत्तर :
जीवनी लेखक को लिखने से पहले अपने नायक (व्यक्ति) के जीवन की संपूर्ण जानकारी विभिन्न माध्यमों से प्राप्त करनी चाहिए। प्राप्त तथ्यों की सत्यता की जाँच नायक के परिवार, मित्र, पत्र या डायरी आदि से करना चाहिए। जीवनी में अनुमान या कल्पना का समावेश नहीं होना चाहिए। तटस्थता, सत्य, निष्ठा, ईमानदारी जीवनी लेखक के लिए आवश्यक हैं।

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प्रश्न 3.
‘आत्मकथा’ और ‘जीवनी’ में शैलीगत भेद क्या है?
उत्तर :
‘आत्मकथा’ और ‘जीवनी’ में शैलीगत मुख्य अंतर यह है कि ‘आत्मकथा’ सदैव लेखक द्वारा उत्तम पुरुष शैली में लिखी जाती है, जब कि ‘जीवनी’ अन्य पुरुष शैली में।

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