GSEB Class 11 Hindi Vyakaran साहित्य और उसके प्रकार (1st Language)

Gujarat Board GSEB Solutions Class 11 Hindi Vyakaran साहित्य और उसके प्रकार (1st Language) Questions and Answers, Notes Pdf.

GSEB Std 11 Hindi Vyakaran साहित्य और उसके प्रकार (1st Language)

अति संक्षिप्त उत्तर दीजिए :

प्रश्न 1.
‘वाचामेव प्रसादेन लोक-यात्रा प्रवर्तते’ – यह विधान किसका है और इसका क्या अर्थ है?
उत्तर :
‘वाचामेव प्रसादेन लोक-यात्रा प्रवर्तते’ का अर्थ है कि वाणी के वरदान के कारण ही मनुष्य सब प्राणियों में श्रेष्ठ है। यह विधान संस्कृत कवि ‘दण्डी’ का है।

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प्रश्न 2.
‘काव्य’ क्या है?
उत्तर :
वाणी का सशक्त भावावेशमय शब्द-विधान ही काव्य है।

प्रश्न 3.
‘काव्य’ चिरंतनकाल से मानव को आनंद कैसे देता आया है?
उत्तर :
काव्य सुर-ताल का आश्रय लेकर चिरंतनकाल से मानव-मन और जीवन को आनंद प्रदान करता आया है।

प्रश्न 4.
‘साहित्य’ को ‘समाज का दर्पण’ क्यों कहते हैं?
उत्तर :
साहित्य’ को ‘समाज का दर्पण’ इसीलिए माना जाता है क्योंकि उसमें तत्कालीन समाज या मानव-जीवन की विविधता देखने को मिलती है, वह साहित्य में प्रतिबिम्बित होती है।

प्रश्न 5.
ऐन्द्रिय माध्यम के आधार पर साहित्य के दो प्रमुख भेद कौन-से किए गए हैं? परिचय दीजिए।
उत्तर :
ऐन्द्रिय माध्यम के आधार पर साहित्य के दो प्रमुख भेद हैं – ‘श्रव्य काव्य’ तथा ‘दृश्य काव्य’। अपने भेदोपभेदों के साथ ‘नाटक’ एक मात्र ‘दृश्य काव्य’ है, जबकि श्रव्य काव्य में गद्य, पद्य तथा चम्पू (गद्य-पद्य मिश्रित) का समावेश होता है।

प्रश्न 6.
पद्य के भेदोपभेदों को संक्षेप में बतलाइए।
उत्तर :
पद्य के दो मुख्य भेद हैं – प्रबंध काव्य तथा मुक्तक काव्य। प्रबंध काव्य को ‘महाकाव्य’ तथा ‘खण्डकाव्य’ नामक दो उपविभागों में बाँटा गया है, जबकि ‘मुक्तक काव्य’ को गीत, ग़ज़ल, प्रगीत, नवगीत, लंबी कविता आदि उपविभागों में बाँटा जाता है।

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प्रश्न 7.
समीक्षाशास्त्र का अध्ययन क्यों जरूरी है?
उत्तर :
साहित्य का स्वरूप जटिल होता है, उसके निहितार्थ ग्रहण कर पाना कठिन होता है; समीक्षाशास्त्र इस जटिलता और कठिनाई को दूर करने में सहायक होता है, इसीलिए समीक्षाशास्त्र का अध्ययन जरूरी है।

प्रश्न 8.
गद्य की प्रमुख विधाएँ कौन-कौन सी हैं?
उत्तर :
नाटक, उपन्यास, कहानी, निबंध, समालोचना, रेखाचित्र आत्मकथा, जीवनी, संस्मरण, रिपोर्ताज, पत्र, डायरी तथा साक्षात्कार आदि गद्य की प्रमुख विधाएँ हैं।

प्रश्न 9.
‘साहित्य’ का क्या अर्थ है?
उत्तर :
साहित्य यानी ‘सहितस्य’ ‘हितयुक्त’ एवं ‘सार्थक शब्द तथा अर्थ के साथ प्रकट होना ही साहित्य है।

प्रश्न 10.
साहित्य का मूल प्रयोजन क्या है?
उत्तर :
रसास्वाद द्वारा आनंद की अनुभूति कराना ही साहित्य का मूल प्रयोजन है।

प्रश्न 11.
साहित्य के अन्य प्रयोजन कौन-कौन से हो सकते हैं?
उत्तर :
आनंदानुभूति कराने के अलावा ‘यश’, ‘धन’, ‘व्यवहार ज्ञान’, ‘आत्मसुख’ या ‘स्वान्तः सुख’ भी साहित्य के प्रयोजन हो सकते है।

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प्रश्न 12.
साहित्यशास्त्र की क्या उपयोगिता है?
उत्तर :
साहित्यशास्त्र पाठक को साहित्य का आस्वाद करने तथा उसका निहितार्थ ग्रहण करने में मदद करता है। साथ ही नए रचनाकारों के लिए पथप्रदर्शक भी बन सकता है।

श्रव्य काव्य
पद्य : महाकाव्य, खंडकाव्य, प्रबंध तथा मुक्तक काव्य

महाकाव्य

प्रश्न 1.
महाकाव्य किसे कहते हैं?
उत्तर :
‘महाकाव्य’ में ‘महा’ का अर्थ ही है विराट। निस्संदेह महाकाव्य का प्रतिपाद्य किसी विराट पुरुष का विराट चित्रण करना है। महाकाव्य में किसी पुराण पुरुषोत्तम या महापुरुष के जीवन एवं उसके युग का निःशेष एवं सर्वांगीण वर्णन किया जाता है।

अंग्रेजी में महाकाव्य के लिए एपिक (Epic) शब्द का प्रयोग होता है। महाकाव्य निश्चय ही किसी भी राष्ट्र की सांस्कृतिक अस्मिता एवं उसकी महिमा व गरिमा के परिचायक होते हैं।

उदाहरणार्थ –
(अ) संस्कृत के महाकाव्य : रामायण, रघुवंश, शिशुपालवध, किरातार्जुनीय
(ब) हिन्दी के महाकाव्य : रामचरित मानस, साकेत, कामायनी, प्रियप्रवास, लोकायतन।
(क) पाश्चात्य महाकाव्य : इलियड, ओडेसी, पेराडाइस लॉस्ट

प्रश्न 2.
महाकाव्य के प्रमुख लक्षणों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
यों तो काव्य-शास्त्र के मर्मज्ञ प्राचीन आचार्यों ने महाकाव्य के अनेक लक्षणों की विस्तारपूर्वक चर्चा की है, किन्तु ‘वस्तुनेतारसस्तेषां भेदका’ के अनुसार महाकाव्य के प्रमुख तीन लक्षण हैं :

  • कथावस्तु,
  • नायक और
  • रस।

कालांतर में इन लक्षणों में निरंतर वृद्धि होती गई। कुछ महत्त्वपूर्ण लक्षण निम्नलिखित हैं –

(1) कथावस्तु-संगठन : महाकाव्य की कथावस्तु किसी महापुरुष की विस्तृत जीवन-गाथा पर आधारित होती है। कथावस्तु का संगठन नाटक की संधियों के नियमानुसार कम से कम आठ सर्गों (अध्यायों) में विभक्त होना चाहिए। कथा का आरंभ ‘आशीर्नमस्क्रि या वस्तुनिर्देशों वापि तन्मुखम्’ अर्थात् आशीर्वचन, वस्तुनिर्देश या नमस्कार से होना चाहिए। इसी को मंगलाचरण भी कहते हैं।

2. महाकाव्य का नायक (प्रमुख पुरुष पात्र) कोई देवता, उच्च वंश में उत्पन्न क्षत्रिय नरेश होना चाहिए। क्वचित् एकाधिक नृप भी नायक हो सकते हैं। नायक सद्गुण संपन्न होना चाहिए। वह धीरोदात्त प्रकृति का होना चाहिए। उसे सदवृत्तियों के विकास और दुर्वृत्तियों के विनाश में सक्षम होना आवश्यक है।

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3. रस : यों तो महाकाव्य में सभी रसों का वर्णन आवश्यक है किन्त श्रंगार. वीर और शांत इन तीन में से किसी एक रस की प्रधानता होनी चाहिए। अन्य रसों का अंग रूप में चित्रण भी अभीष्ट माना गया है। इस प्रकार महाकाव्य में जीवन का गंभीर और व्यापक चित्रण अनिवार्य है।

(4) छंद-विधान : महाकाव्य में छन्द-वैविध्य भी एक अनिवार्य लक्षण है; किन्तु प्रत्येक सर्ग में एक ही छंद का प्रयोग करना चाहिए। हाँ, सर्ग के अन्त में छंद-परिवर्तन और अगले सर्ग की कथा का सूक्ष्म-निर्देश भी अपेक्षित माना गया है।

(5) वर्णन : महाकाव्य में विविधता और यथार्थता दोनों का होना आवश्यक है; अतः उसमें जीवन के सभी दृश्यों, प्रकृति के सभी रूपों और मन के सभी भावों का वर्णन होना चाहिए। महाकाव्य में दुर्जनों की निंदा और सज्जनों की प्रशंसा भी होनी चाहिए। असत् पर विजय के द्वारा सद्भावना एवं मानवता का विकास दिखाना महाकाव्य का अभीष्ट लक्षण है।।

(6) नामकरण : महाकाव्य का शीर्षक या नामकरण नायक, नायिका, कथा की प्रमुख घटना अथवा मुख्य उद्देश्य के आधार पर ही होना चाहिए।

7. उद्देश्य : महाकाव्य का उद्देश्य पुरुषार्थ चतुष्टय अर्थात् धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की उपलब्धि है। महाकाव्य के नायक का जीवन लक्ष्य परोपकार होता है जिसकी रक्षा के लिए आजीवन प्रयत्नशील रहकर वह सिद्धि एवं समृद्धि प्राप्त करता है। इन उद्देश्यों, की सिद्धि के लिए संघर्ष, साधना, चरित्र-विकास और उदात्त गुणों की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 3.
प्रबन्ध काव्य और मुक्तक काव्य के अन्तर को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
पद्यबद्ध कविता के दो प्रमुख भेद किये गए हैं :

  • प्रबंध काव्य और
  • मुक्तक काव्य।

प्रबन्ध काव्य : प्रबन्ध काव्य में एक सुदृढ़ कथानक होता है और छंद कथासूत्र की व्यवस्था के अनुसार पिरोए रहते हैं। उसके छंद के क्रम को बदला नहीं जा सकता। प्रबन्ध काव्य का संगठन कथानक द्वारा किया जाता है। कथानक किसी महापुरुष के संपूर्ण जीवनवृत्त को लेकर चलता है और क्वचित् उसके जीवन के किसी एक खण्ड या उज्ज्वलतम पक्ष पर ही आधारित होता है।

मुक्तक काव्य : जब कोई रचना किसी एक भाव, विचार या घटना को लेकर आकार ग्रहण करती है, तो वह मुक्तक काव्य के अन्तर्गत आती है। चूँकि मुक्तक काव्य में किसी व्यक्तिविशेष की कथा का वर्णन नहीं होता अत: उसका प्रत्येक छंद पूर्वापर संदर्भ की शर्त से मुक्त होता है।

पृथ्वीराज रासो, रामचरितमानस, पद्मावत, कामायनी, जयद्रथवध, कुरुक्षेत्र, रश्मिरथी आदि हिन्दी के प्रबंध काव्य हैं तो विनयपत्रिका, बिहारी सतसई, आँसू, साए में धूप आदि मुक्तक काव्य ग्रंथ के उदाहरण हैं।

खंडकाव्य

प्रश्न 1.
खंडकाव्य महाकाव्य से किस तरह भिन्न होता है?
उत्तर :
खंडकाव्य एक तरह से महाकाव्य का ही लघु रूप है, इसे लघुप्रबंध भी कहा जा सकता है। महाकाव्य के अधिकांश लक्षण खंडकाव्य में देखे जा सकते हैं, आकार की लघुता के साथ। खंडकाव्य में कथा-विस्तार महाकाव्य की तुलना में बहुत कम होता है।

सर्ग संख्या सीमित होती है और चरित्र भी कम होते हैं; फिर भी उसकी प्रभावकता तथा शैलीगत गरिमा जरा भी कम नहीं होती। ‘रश्मिरथी’ (दिनकर), ‘जयद्रथवध’, ‘यशोधरा’ (मैथिलीशरण गुप्त), ‘कनुप्रिया’ (धर्मवीर भारती), ‘तुलसीदास’ (निराला) आदि प्रमुख हिन्दी खंडकाव्य हैं।

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मुक्तक काव्य

प्रश्न 1.
शास्त्रीय दृष्टि से ‘मुक्तक’ किसे कहते हैं?
उत्तर :
काव्यशास्त्र के अनुसार ‘मुक्तक से आशय ऐसी रचना से ही है जो स्व-अर्थ के प्रकाशन में समर्थ और पूर्वापर क्रम से निरपेक्ष हो तथा जिसके अर्थ की अन्विति और रसास्वाद के लिए अन्य पदों का संबल न ग्रहण करना पड़े।’

प्रश्न 2.
‘मुक्तक’ के मुख्य लक्षण बतलाइए।
उत्तर :
मुक्तक स्वतः पूर्ण और स्वतंत्र रचना है। यह पूर्वापर संबंध से मुक्त होता है। यह अर्थव्यंजक, रसानुभूति कराने में सक्षम होता है। संक्षिप्तता, संकेतात्मकता मुक्तक का प्रमुख गुण है।।

प्रश्न 3.
गेयता के आधार पर मुक्तक को किन दो विभागों में बाँटा जाता है?
उत्तर :
गेयता के आधार पर मुक्तक के दो भेद किए गए हैं :

  • गेय मुक्तक तथा
  • अगेय मुक्तक।

प्रश्न 4.
गीत किसे कहते हैं? उसके प्रमुख लक्षण बताइए।
उत्तर :
भावपूर्ण संक्षिप्त गेय मुक्तक को गीत कहा जाता है। संक्षिप्तता, गेयता, भावमयता, वैयक्तिकता तथा मार्मिकता आदि गीत के प्रमुख तत्त्व हैं।

प्रश्न 5.
प्रगीत (गीति) और गीत में क्या अंतर है?
उत्तर :
प्रगीत लयबद्ध पद्य रचना है। वैसे तो प्रगीत में गीत के सारे लक्षण समाहित हैं, सिवा गेयता और संक्षिप्तता के। प्रगीत छंदबद्ध या छंदमुक्त हो सकता है। भावों की तीव्रता दोनों में अपेक्षित रहती है।

निम्नलिखित प्रश्नों के संक्षेप में उत्तर दीजिए :

प्रश्न 1.
विषय-रचना की दृष्टि से मुक्तक के कितने प्रकार होते हैं? कौन-कौन से?
उत्तर :
विषय-रचना की दृष्टि से मुक्तकों के मोटे तौर पर निम्नलिखित चार भेद किये जाते हैं :

  • प्रशीत मुक्तक या गेय मुक्तक,
  • पाठ्यमुक्तक,
  • विचार मुक्तक और
  • प्रबन्धात्मक प्रगीत मुक्तक।

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प्रश्न 2.
गीति काव्य किसे कहते हैं?
उत्तर :
प्रगीत मुक्तक को ही गीति काव्य कहा जाता है। इसमें कवि की निजी अनुभूतियों का स्वतः स्फूर्त उच्छसन (Spontanious over flow) रहता है किन्तु एक कुशल रचनाकार अपनी वैयक्तिक अनुभूतियों को भी सामाजिक बना देता है। उसके अपने सुखदुःख सार्वकालिक एवं सार्वजनीन बन जाते हैं।

संक्षेप में गीति काव्य एक ऐसी संगीतमय अभिव्यक्ति है जिसके शब्दों पर भावों का पूर्ण आधिपत्य रहता है तथा उनकी लय स्वतंत्र और प्रभावशाली होती है।

प्रश्न 3.
गीतिकाव्य के कौन-कौन-से तत्त्व माने गए हैं?
उत्तर :
गीतिकाव्य के निम्नलिखित तत्त्व माने गए हैं :
(अ) भावतत्त्व : यह तो गीतिकाव्य की आत्मा है जो गीति के रूप प्रकट होकर क्रमशः उत्कटता को प्राप्त होता है।

(ब) वैयक्तिकता : कवि की वैयक्तिक अनुभूति जब सामान्यीकृत होकर व्यक्त होती है तो वह सामाजिक हो जाती है और तब वह कवि की वह वैयक्तिकता सार्वजनीन हो जाती है।

(क) संक्षिप्तता : गीतिकाव्य में व्यक्त एक ही भावना तब अत्यंत प्रभावक हो उठती है जब उसमें संक्षिप्तता और सुसंबद्धता का गुण होता है। गेयता : सुख-दुःख की भाव-धारा जब स्वतः स्फूर्त हो जाती है तो उसकी चाल में लय और ताल स्वतः प्रविष्ट हो जाते हैं। यही लय-ताल और स्वर-संधान गेयता का आधार बन जाते हैं।

(इ) अनुकूल भाषा : गीतिकाव्य में व्यक्त भावानुरूप भाषा उसका सौंदर्य बढ़ा देती है। प्रेम आदि मृदु भावों की अभिव्यक्ति के लिए कोमलकांत पदावली और रौद्र-वीर आदि भावों के लिए ओजस्वी पदावली अनुरूप होती है।

प्रश्न 4.
गीतिकाव्य के प्रकारों का मात्र नामोल्लेख कीजिए :
उत्तर :
गीतिकाव्य के प्रकार निम्नलिखित हैं :
(अ) भारतीय काव्यशास्त्र के अनुसार : प्रकृति गीत, रहस्यवादी गीत, प्रेमगीत, राष्ट्रीय गीत और संवेदनात्मक गीत आदि।

(ब) पाश्चात्य काव्यशास्त्र के अनुसार : सॉनेट, ओड, एलिजी, सेटायर और रिफ्लेक्टिव, ये पाँच भेद हैं।

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लम्बी कविता

प्रश्न 1.
लंबी कविता से आप क्या समझते हैं?
उत्तर :
लम्बी कविता आज खंडकाव्य का स्थानापन्न रूप बन चुकी है। यह पाँच-छ: पृष्ठों से लेकर 60-70 पृष्ठ तक की हो सकती है। यह प्राय: मुक्त छंद में लिखी जाती है। यह वर्णनात्मक, विवरणनात्मक, भावप्रधान हो सकती है। तनाव और नाट्यात्मक इसके उपकारक तत्त्व हैं। निराला की ‘राम की शक्तिपूजा’, मुक्तिबोध की ‘अंधेरे में’ ‘अज्ञेय’ की ‘असाध्य वीणा’ तथा सुलतान अहमद की ‘दीवार के इधर-उधर’ लम्बी कविता की प्रमुख उदाहरण हैं।

ग़ज़ल

प्रश्न 1.
‘ग़ज़ल’ की व्युत्पत्ति और परिभाषा स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
ग़ज़ल की परंपरा फारसी से उर्दू में, उर्दू से हिन्दी एवं अन्य भारतीय भाषाओं में आई है। फारसी में ग़ज़ल का शब्दार्थ है।

‘स्त्रियों से बातचीत करना’। इससे एक बात निश्चित है कि ग़ज़ल का प्रमुख विषय प्रेम और श्रृंगार रहा है। ग़ज़ल के हर शेर में प्रेम, सौंदर्य, यौवन, मदिरा, मधुशाला, मधुबाला आदि से सम्बन्धित नए-नए और भिन्न-भिन्न चित्र होते हैं। एक मत यह भी है कि प्राचीन काल में शराब और शवाब में जिंदगी गुजारने वाले एक अरबस्तानी आदमी का नाम ग़ज़ल था, जो हुस्न-इश्क का दीवाना था।

अतः उसी के नाम पर इस काव्य-विधा का नाम ग़ज़ल पड़ गया। प्रो. ख्वाजा अहमद फारुक के मतानुसार हिरन का पर्यायवाची शब्द है गज़ाला। तीर चुभने पर जैसी छटपटाहट, पीड़ा और वेदना का एहसास गज़ाला को होती है, वैसी पीड़ा और वेदना इस काव्य-विधा में भी पाई जाती है। कहीं दर्दे जिगर है तो कहीं ग़मे-जुदाई की तड़पन। इसीलिए इस काव्य-विधा को ग़ज़ल कहा गया।

प्रश्न 2.
छंद-विधान की दृष्टि से ग़ज़ल का स्वरूप स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
रदीफ और काफियों से सुसज्जित एक ही वज़न और बहर (लय) में लिखे गए दो-दो पंक्तियों की एकाधिक शेरोंवाली काव्य रचना ग़ज़ल कहलाती है। शेर की हर पंक्ति को मिसरा कहते हैं। पहले मिसरे को अब्बल मिसरा और दूसरे को सानी मिसरा कहते हैं। ग़ज़ल का पहला शेर मतला और अंतिम शेर मकता कहलाता है। मक़ते में शायर अपने उपनाम का उल्लेख करते हैं।

मतले के दोनों मिसरों में और फिर प्रत्येक शेर के दूसरे मिसरे में क्रमश: काफिया और रदीफ का निर्वाह अनिवार्य होता है। रदीफ अर्थात् एक ही शब्द या शब्दावली जो शेर के हर दूसरे मिसरे में अन्त प्रयुक्त होती है। रदीफ के पूर्व काफिया अर्थात् तुकान्त शब्द का प्रयोग होता है।

काफिया भिन्नार्थबोधक शब्द होते या हो सकते हैं, किन्तु हाँ, उनकी तुकों में साम्य आवश्यक है। वे ग़ज़ले, जिनमें केवल काफिये होते हैं रदीफ नहीं होती, गैरमुरद्दफ ग़ज़लें कहलाती हैं।

एक जमाना था जब ग़ज़लों के विषय निश्चित हुआ करते थे तसव्वुफ (भक्ति-भावना), हुस्नोइश्क (सौंदर्य और प्रेम) तथा साकी, शराब और मयखाना (मदिरालय) आदि; किन्तु ज़माना बदलने के साथ आज ग़ज़ल के प्रतिपाद्य विषयों में वैविध्य और विस्तार भी आ गया है।

आज धर्म, राजनीति, समाज और आम आदमी की समस्याओं और वेदना-संवेदनाओं को भी ग़ज़ल का प्रतिपाद्य बनाया गया है।

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प्रश्न 3.
ग़ज़ल में मतला और मक़ता क्या होता है?
उत्तर :
ग़ज़ल का पहला शेर मतला कहलाता है जिसके दोनों मिसरों (पंक्तियों) में काफिया और रदीफ का निर्वाह किया जाता है और ग़ज़ल का अंतिम शेर मकता कहलाता है, जिसमें कवि या शायर प्रायः अपने उपनाम (तखल्लुस) का प्रयोग करते हैं।

प्रश्न 4.
हिन्दी ग़ज़ल और उर्दू ग़ज़ल में क्या साम्य-वैषम्य है?
उत्तर :
हिन्दी ग़ज़ल भाव और शिल्प की दृष्टि से उर्दू ग़ज़ल से काफी साम्य रखती है। फारसी से आई हुई काव्य-विधा होने के कारण हिन्दी ग़ज़ल उर्दू ग़ज़ल के कथ्य और शिल्प से प्रभावित होने पर भी अपेक्षाकृत अधिक स्वतंत्र और अनौपचारिक हो गई है। हिन्दी ग़ज़ल राजदरबारों से हटकर आम आदमियों के बीच आकर खड़ी है। उसमें समसामयिक समस्याओं की तीव्र और मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति मिलती है।

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