Gujarat Board GSEB Std 12 Hindi Textbook Solutions Chapter 13 महाप्रस्थान Textbook Exercise Important Questions and Answers, Notes Pdf.
GSEB Std 12 Hindi Textbook Solutions Chapter 13 महाप्रस्थान
GSEB Std 12 Hindi Digest महाप्रस्थान Textbook Questions and Answers
स्वाध्याय
1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर उनके नीचे दिए गए विकल्पों से सही विकल्प चुनकर लिखिए :
प्रश्न 1.
युधिष्ठिर ने मात्र शास्त्र-व्यवस्था के कारण ही क्या नहीं स्वीकारा?
(क) वानप्रस्थ
(ख) गृहस्थ
(ग) संन्यास
(घ) वृद्धत्व
उत्तर :
(क) वानप्रस्थ
प्रश्न 2.
निम्न में से किसकी सीमाएँ निश्चित हैं?
(क) युद्ध की
(ख) साम्राज्य की
(ग) सम्बन्ध की
(घ) सभी की
उत्तर :
(घ) सभी की
प्रश्न 3.
दुर्ग, प्रासाद, और स्मृतिभवन में किसकी प्रशस्तियाँ गूंजती रहती हैं?
(क) विचारहारा की
(ख) चारण की
(ग) सजन की
(घ) एक भी नहीं
उत्तर :
(ख) चारण की
प्रश्न 4.
युद्ध और आतंक किसके पर्याय हैं?
(क) वितृष्णा के
(ख) आतंक के
(ग) सामाजिकता के
(घ) मानसकिता के
उत्तर :
(ग) सामाजिकता के
2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-एक वाक्य में लिखिए :
प्रश्न 1.
आर्य शास्त्रव्यवस्था में मनुष्य जीवन के कितने आश्रम बताये गए हैं?
उत्तर :
आर्य शास्त्र व्यवस्था में मनुष्य जीवन के चार आश्रम बताए गए हैं- ब्रह्मचर्याश्रम (विद्यार्थी), गृहस्थाश्रम, वानप्रस्थ आश्रम और संन्यासाश्रम।
प्रश्न 2.
शिलालेख पर क्या लिखा जाता है?
उत्तर :
शिलालेख पर झूठा इतिहास लिखा जाता है।
प्रश्न 3.
जड़ किसका प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता?
उत्तर :
जड़ चेतन का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता।
प्रश्न 4.
श्रेष्ठ योद्धा के रूप में कौन जाना जाता है ?
उत्तर :
श्रेष्ठ योद्धा के रूप में अर्जुन जाने जाते हैं।
3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो-दो वाक्यों में लिखिए :
प्रश्न 1.
सत्य की प्राप्ति के बारे में युधिष्ठिर के विचार बताइए।
उत्तर :
सत्य की प्राप्ति के बारे में युधिष्ठिर ने कहा है कि सत्य की प्राप्ति दूसरे से प्रश्न करके नहीं होती। सत्य की प्राप्ति के लिए स्वयं से ही जिज्ञासा करनी होती है।
प्रश्न 2.
युधिष्ठिर ने वस्तुओं से हीन होने का क्या अर्थ बताया है ?
उत्तर :
युधिष्ठिर ने वस्तुओं के प्रति मनुष्य की आसक्ति को उसके व्यक्तित्व विकास में बाधक माना है। उन्होंने कहा है कि मनुष्य के वस्तुओं से हीन (रहित) होने का अर्थ है, व्यक्तित्व की दृष्टि से उसका सम्पन्न होते जाना।
प्रश्न 3.
युधिष्ठिर के मतानुसार अमानवीय कृत्यों का ऐतिहासिक निष्कर्ष क्या निकलेगा?
उत्तर :
युधिष्ठिर कहते हैं कि युद्ध और आतंक अमानवीय कृत्य हैं। उनके मतानुसार अमानवीय कृत्यों का ऐतिहासिक निष्कर्ष यह निकलेगा कि अर्जुन से श्रेष्ठ कोई योद्धा नहीं और युधिष्ठिर ही एकमात्र चक्रवर्ती सम्राट हैं।
4. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर पाँच-छ पंक्तियों में लिखिए :
प्रश्न 1.
सफलता और अमरत्व के बारे में युधिष्ठिर के विचार सविस्तार बताइए।
उत्तर :
युधिष्ठिर कहते हैं कि मनुष्य युद्ध, राज्य, साम्राज्य, सम्पदा तथा संबंध आदि कुचक्रों को अपने चारों ओर बुनकर अपनेआप को सफल मानने लगता है। वह इस सफलता के घेरे में अपनेआप को कैद कर लेता है। इतना ही नहीं, वस्तुओं और सफलताओं के माध्यम से मनुष्य अमरता प्राप्त करना चाहता है। पर दुर्ग, प्रासाद, स्मृति भवन, चारण-प्रशस्ति तथा झूठे प्रशंसावाले ऐतिहासिक शिलालेखों से कोई भी व्यक्ति अमर नहीं हो सकता।
प्रश्न 2.
युद्ध के परिणाम से जन्म लेनेवाली स्थिति पर अपने विचार स्पष्ट करें।
उत्तर :
किसी समस्या के समाधान के लिए युद्ध अंतिम अस्त्र माना जाता है। युद्ध से किसी समस्या का समाधान हो या न हो, पर उसका परिणाम भयानक होता है। युद्ध में अनेक सैनिक और नागरिक मारे जाते हैं। इसके परिणाम स्वरूप अनेक स्त्रियाँ विधवा हो जाती हैं। परिवार के परिवार उजड़ जाते हैं। अनेक बच्चे अनाथ हो जाते हैं। समाज में तरह-तरह की बुराइयां प्रवेश कर जाती हैं। उनका भयानक परिणाम होता है। इसके अलावा जीवनावश्यक वस्तुओं की कमी का सामना करना पड़ता है। युद्ध से देश की अर्थव्यवस्था चरमरा जाती है।
प्रश्न 3.
“जड़, जड़ का ही प्रतिनिधित्व कर सकता है चेतन का नहीं” – विमर्श समझाइए ।
उत्तर :
जड़ और चेतन में जमीन आसमान का अंतर है। जड़ किसी का प्रतीक हो सकता है, पर वह चेतन कभी नहीं हो सकता। उदाहरण के लिए कोई आदमी और उसका सुंदर चित्र लें। आदमी चेतन है और आदमी का चित्र जड़ है। चित्र कितना भी सुंदर क्यों न हो, उससे उस व्यक्ति का कितना भी लगाव क्यों न हो, पर वह चित्र आदमी नहीं हो सकता। वह केवल जड़ का ही प्रतिनिधित्व करेगा, चेतन का नहीं। इसी तरह राज्य, साम्राज्य, संपदा, दुर्ग, प्रासाद, स्मृति भवन आदि भी जड़ हैं। ये चेतन नहीं हो सकते। अत: जड़ का अभिमान व्यर्थ है।
GSEB Solutions Class 12 Hindi महाप्रस्थान Important Questions and Answers
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो-दो वाक्यों में लिखिए :
प्रश्न 1.
महाप्रस्थान’ खण्ड-काव्य का विषय क्या है?
उत्तर :
‘महाप्रस्थान’ काव्य पांडवों के ‘स्वर्गारोहण’ विषय पर आधारित है। प्रस्तुत काव्य में कवि युधिष्ठिर के माध्यम से अर्जुन को सत्य की प्राप्ति, राज्य परित्याग का कारण, राज्य-व्यवस्था की अखुट शक्ति से उत्पन्न संकट, व्यक्तित्व की रक्षा, युद्ध के परिणाम से उत्पन्न होनेवाली समस्याओं तथा अन्य बातों का बोध कराते हैं।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-एक वाक्य में लिखिए :
प्रश्न 1.
एकमात्र चक्रवर्ती सम्राट कौन है?
उत्तर :
एकमात्र चक्रवर्ती सम्राट युधिष्ठिर हैं।
प्रश्न 2.
सत्य की प्राप्ति के लिए क्या करना होता है?
उत्तर :
सत्य की प्राप्ति के लिए स्वयं से जिज्ञासा करनी होती है।
प्रश्न 3.
अर्जुन से किन लोगों के बारे में सोचने के लिए कहा गया है?
उत्तर :
अर्जुन से उन विचारहारावाले लोगों के बारे में सोचने के लिए कहा गया है, जो सदा अपमानित होते रहते हैं।
प्रश्न 4.
समाज में वर्णसंकरता कब बढ़ जाती है?
उत्तर :
युद्ध के उपरांत समाज में वर्णसंकरता बढ़ जाती है।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दिए गए विकल्पों में से चुनकर लिखिए :
प्रश्न 1.
वस्तुओं से हीन होते जाने का अर्थ है …..
A. व्यक्तित्व से सम्पन्न होते जाना
B. युद्ध और आतंक
C. समाज में संकीर्णता बढ़ जाना
D. अमानवीय हो जाना
उत्तर :
A. व्यक्तित्व से सम्पन्न होते जाना
प्रश्न 2.
‘महाप्रस्थान’ काव्य का प्रकार कौन-सा है?
A. खण्ड-काव्यांश
B. महाकाव्य
C. मुक्तक काव्य
D. संवेदना काव्य
उत्तर :
A. खण्ड-काव्यांश
व्याकरण
निम्नलिखित शब्दों के पर्यायवाची (समानार्थी) शब्द लिखिए :
- निष्कर्ष = सारांश
- संपदा = संपत्ति
- कुचक्र = षड़यंत्र
- दुर्ग = किला
- प्रासाद = महल
- विवशता = लाचारी
- अभ्यस्त = आदी, प्रवीण
- बाध्य = विवश
- अनाथ = असहाय
- उत्तरदायी = जिम्मेदार
- आतंक = भय
निम्नलिखित शब्दों के विलोम (विरुद्धार्थी) शब्द लिखिए :
- व्यवस्था × अव्यवस्था
- सत्य × असत्य
- प्रश्न × उत्तर
- सफलता × असफलता
- अपमानित × सम्मानित
- स्वत्व × परायापन
- अभ्यस्त × अनभ्यस्त
- विधवा × सधवा
- कठोर × कोमल
- आदिम × अर्वाचीन
- युद्ध × शांति
- श्रेष्ठ × निकृष्ट
- मानवता × दानवता
- गहरा × उपला
निम्नलिखित तद्भव शब्दों के तत्सम रूप लिखिए :
- आम – आम्र
- तुरत – त्वरित
- चोंच – चंचु
- कागज – कागद
- पलंग – पर्यक
निम्नलिखित शब्दों में से प्रत्यय अलग कीजिए :
- व्यक्तित्व = व्यक्ति + त्व (प्रत्यय)
- अमरता = अमर + ता (प्रत्यय)
- विवशता = विवश + ता (प्रत्यय)
- वर्णसंकरता = वर्णसंकर + ता (प्रत्यय)
- अपमानित = अपमान + इत (प्रत्यय)
- स्वत्व = स्व + त्व (प्रत्यय)
- दिशाहीन = दिशा + हीन (प्रत्यय)
- कुष्ठता = कृष्ठ + ता (प्रत्यय)
- अमानवीय = अमानव + ईय (प्रत्यय)
- दीप्तित = दीप्त + इत (प्रत्यय)
- उत्तरदायी = उत्तर + दायी (प्रत्यय)
- नारीत्व = नारी + त्व (प्रत्यय)
- कवित्व = कवि + त्व (प्रत्यय)
निम्नलिखित शब्दों में से उपसर्ग अलग कीजिए :
- परित्याग = परि (उपसर्ग) + त्याग
- निष्कर्ष = निस् (नि:) (उपसर्ग) + कर्ष
- महाप्रस्थान = महा (उपसर्ग) + प्रस्थान
- कुचक्र = कु (उपसर्ग) + चक्र
- परिवृत्त = परि (उपसर्ग) + वृत्त
- विवश = वि (उपसर्ग) + वश
- अपमान = अप (उपसर्ग) + मान
- अपहरण = अप (उपसर्ग) + हरण
- विधवा = वि (उपसर्ग) + धवा
- अनाथ = अ (उपसर्ग) + नाथ
- सुदूर = सु (उपसर्ग) + दूर
- अमानवीय = अ (उपसर्ग) + मानवीय
निम्नलिखित वाक्यों में से विशेषण पहचानिए :
प्रश्न 1.
- अर्जुन श्रेष्ठ योद्धा है।
- युधिष्ठिर भारत का चक्रवर्ती सम्राट था।
- ताजमहल ऐतिहासिक इमारत है।
उत्तर :
- श्रेष्ठ
- चक्रवर्ती
- ऐतिहासिक
निम्नलिखित शब्दसमूहों के लिए एक-एक शब्द लिखिए :
- जानने की इच्छा – जिज्ञासा
- संपूर्ण त्याग – परित्याग
- वह व्यवस्था जिसमें मनुष्य के वन में जाकर रहने का विधान है – वानप्रस्थ
- पत्थर पर खुदा हुआ प्राचीन लेख – शिलालेख
- जिसका अपमान किया गया हो – अपमानित
- जिनकी भावनाओं का कोई महत्त्व न हो – विचारहारा
- बलपूर्वक हरण करना या ले जाना – अपहरण
- युद्ध में स्थिर रहनेवाला – युधिष्ठिर
- जिसका कोई उद्देश्य न हो – निरुद्देश्य, दिशाहीन
- जो दायें और बाएँ दोनों हाथों से बाण चलाने में समर्थ हो – सव्यसाची
- दो भिन्न जातियों के स्त्री-पुरुष द्वारा संतान होने की स्थिति – वर्णसंकरता
- भवन आदि बनाने से पहले नींव में पत्थर रखने की क्रिया – शिलान्यास
निम्नलिखित अशुद्ध वाक्यों को शुद्ध करके फिर से लिखिए :
प्रश्न 1.
- मैं तुम्हारे सहारे से हूँ।
- मेरा भविष्य अच्छा था।
- हम लोग उनको मिलने गये।
- सभापति का चुनाव में मैं था।
- मेरा प्राण निकल गया।
उत्तर :
- मैं तुम्हारे सहारे पर हूँ।
- मेरा भविष्य अच्छा है।
- हम लोग उनसे मिलने गये।
- मैं सभापति के चुनाव में था।
- मेरे प्राण निकल गये।
निम्नलिखित कहावतों का अर्थ लिखिए :
जैसी करनी वैसी भरनी अथवा कर भला होगा भला
अर्थ : कर्म के अनुसार फल मिलना।
साँच को आंच नहीं
अर्थ : सत्य का आचरण करनेवाले को कोई भय नहीं होता।
महाप्रस्थान Summary in Hindi
विषय-प्रवेश :
‘महाप्रस्थान’ काव्य पांडवों के ‘स्वर्गारोहण’ विषय पर आधारित है। प्रस्तुत काव्य में कवि नरेश मेहता युधिष्ठिर के द्वारा अर्जुन को सत्य की प्राप्ति, राज्य परित्याग का कारण, राज्य-व्यवस्था की अखूट शक्ति से उत्पन्न संकट, व्यक्तित्व की रक्षा, युद्ध के परिणाम स्वरूप उत्पन्न होनेवाली विभिन्न जटिल समस्याओं तथा अन्य बातों का बोध कराते हैं।
कविता का सरल अर्थ :
युधिष्ठिर : प्रश्न और …… कैसा निष्कर्ष।।
युधिष्ठिर अर्जुन से कहते हैं – प्रश्न और किसी चीज के बारे में जानने की इच्छा यानी जिज्ञासा का अंतर तुम समझते हो पार्थं? फिर वे स्वयं बताते हैं कि सत्य की जानकारी दूसरे से प्रश्न करके नहीं की जा सकती। खुद से इसे जानने की कोशिश करनी चाहिए। वे कहते हैं, चाहे सुख का समय रहा हो या दुःख का, मुझे सदा जिज्ञासा हुई है। मैंने राज्य का त्याग कर दिया, इससे तुम लोगों को बुरा अवश्य लगा होगा। वे कहते हैं कि मैंने राज्य को त्यागकर केवल शास्त्र-व्यवस्था के कारण ही वानप्रस्थ आश्रम स्वीकार नहीं किया था। बल्कि यह निर्णय मैंने बहुत सोच-विचारकर लिया था।
अर्जुन पूछते हैं – कौन-सा निर्णय!
युधिष्ठिर : वस्तुओं …… संकल्प कहते हो?
युधिष्ठिर कहते हैं कि वस्तुओं से रहित होना ही व्यक्तित्व से सम्पन्न होने की निशानी है। हे पार्थ! युद्ध, राज्य, सामाज्य, सम्पत्ति, सम्बन्ध आदि सबकी सीमाएं हैं। ये सारी चीजें षड़यंत्र हैं। इन्हें कोई व्यक्ति अपने चारों ओर गूंथ लेता है। इसके बाद वह फिर कभी इस सफलता रूपी घेरे से बाहर नहीं निकलना चाहता। इसके बाद एक दिन ऐसा आता है, जब वह इन वस्तुओं और सफलताओं के नाम से हो जाना जाने लगता है। और पार्थ! वस्तुओं और सफलताओं के बल पर अमर हो जाने को ही तो तुम पुरुषार्थ और पक्का इरादा कहते हो!
ये दुर्ग, प्रासाद …… पर पार्थ!
पार्थ! ये किले, ये विशाल भवन, किसी की याद में बनाए गए ये महल, चारणों द्वारा किए गए स्तुतिगान और झूठे इतिहासवाले शिलालेख क्या व्यक्ति को अमर बना सकते हैं? हे पार्थ! जो जड़ है, जिसमें चेतना नहीं है, वह जड़ का ही प्रतिनिधित्व कर सकता है। वह प्राणयुक्त अर्थात् चेतन का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता। पार्थ! तुम्हें बार-बार यह सोचकर कष्ट होता है कि तुम्हें अपमान सहना पड़ा है। तुम्हारे अपनेपन पर प्रहार किया गया है। न्याय पाने के लिए तुम्हें संघर्ष करना पड़ा है। इन चीजों से तुम्हें कष्ट होता है। पर हे पार्थ!
कभी उन ……… बाध्य हो जाते हैं।
हे अर्जुन, तुम उन सामान्य लोगों के बारे में तो सोचो, जिन्हें विचार करने लायक ही नहीं छोड़ा गया है, जिन्हें सदा अपमान सहते रहना पड़ता है, जिनके अपनेपन को छीन लेनेवाले हमारे जगमगाते हुए साम्राज्य हैं। ये साधारण लोग अन्याय सहने के अभ्यस्त हो गए हैं। इन्हें यह पता नहीं है कि न्याय नाम की भी कोई चीज होती है। प्रत्येक युद्ध के पश्चात एक राज्य का निर्माण होता है, पर इस युद्ध में अनेक लोग मारे जाते हैं, जिससे अनेक स्त्रियाँ विधवा हो जाती हैं और अनेक बच्चे अनाथ हो जाते हैं। वे बेचारे जीवन के संघर्ष में दर-दर की ठोकरें खाने के लिए विवश हो जाते हैं।
सव्यसाची ……. कौन उत्तरदायी होगा?
युधिष्ठिर ने अर्जुन से कहा कि हे सव्यसाची ! तुम्हारे कृष्ण ने ही यह बात कही थी कि जब कोई युद्ध होता है, तो उसके बाद समाज में विकृति आती है, वर्णसंकरता की वृद्धि होती है। हे अर्जुन! क्या तुम उस दिन की कल्पना कर सकते हो, जब युद्ध के परिणाम स्वरूप इस धरती पर चारों ओर कुल-गोत्र का नामोनिशान मिट जाएगा और सर्वत्र वर्णसंकरता का बोलबाला होगा। हे पार्थ, सोचो, उस समय इस ऐतिहासिक विद्रूपता का जिम्मेदार कौन होगा? कौन होगा इस स्थिति का जिम्मेदार!
आज, नहीं तो कल ……… राजकोष बढ़ाया।
हे अर्जुन, आनेवाले दिनों में ये राज्य राजा से भी ज्यादा निष्ठुर हो जाएंगे। और ज्यों-ज्यों समय बीतता जाएगा दूर भविष्य में राज्य की व्यवस्थाएं राज्य से भी ज्यादा अमानवीय हो जाएंगी (अत्याचार बढ़ जाएगा)। युद्ध और आतंक राज्य-व्यवस्थाओं के मूलभूत स्तंभ हैं। इनका जन्म मनुष्य की प्राचीन प्रवृत्तियों से हुआ है। एक दिन ऐसा आएगा, जब युद्ध और आतंक को ही सामाजिकता माना जाने लगेगा। अर्जुन, हमने कौरवों से युद्ध करके उन्हें हराया और तुमने आतंक के द्वारा पांडवों के साम्राज्य के खजाने में वृद्धि की।
पार्थ, हमारे …….. अधिक गहरा है।
युधिष्ठिर अर्जुन से कहते हैं कि हे अर्जुन! हमने जो अमानुषिक कार्य किए, उनके ऐतिहासिक निचोड़ ये निकले कि अर्जुन से श्रेष्ठ कोई वीर नहीं है और युधिष्ठिर ही एकमात्र चक्रवर्ती सम्राट हैं। हे अर्जुन, मनुष्यता अंधकार के गर्त में जा रही है। अर्जुन, तुम्हें इस बात का अंदाजा नहीं है कि संकट और गहरा हो गया है।
महाप्रस्थान शब्दार्थ :
- जिज्ञासा – कोई बात जानने की इच्छा।
- पार्थ – अर्जुन।
- परित्याग – त्याग देना।
- शास्त्र-व्यवस्था – शास्त्र के अनुसार व्यवस्था।
- वानप्रस्थ – वह व्यवस्था जिसमें मनुष्य के वन में जाकर रहने का विधान है।
- निष्कर्ष – सारांश, निचोड़।
- हीन – रहित।
- व्यक्तित्व – व्यक्ति का गुण या भाव।
- साम्राज्य – वह बड़ा राज्य, जो एक सम्राट के शासन में हो।
- सम्पदा – संपत्ति, धन-दौलत।
- कुचक – षड़यंत्र, छल-प्रपंच, चाल, साजिश।
- बुनना – (यहाँ अर्थ) घेरा बना लेना।
- परिवृत्त – घेरा। पर्याय – प्रकार, ढंग।
- अमरता – चिर जीवन।
- पुरुषार्थ – पुरुष के प्रयत्न का कार्य।
- संकल्प – पक्का इरादा। दुर्ग-गढ़, कोट, किला।
- प्रासाद – महल, विशाल भवन।
- स्मृति-भवन – यादगार भवन, किसी की याद में बना भवन।
- चारण-प्रशस्तियाँ – चारणों के द्वारा किया गया स्तुतिगान।
- शिलालेख – पत्थर पर खुदा हुआ प्राचीन लेख।
- जड़ – चेतना रहित, निश्चेष्ट।
- चेतन – प्राणयुक्त।
- विवशता – लाचारी, असहाय अवस्था।
- अपमानित – जिसका अपमान किया गया हो, तिरस्कृत। स्वत्व-अपनापन।
- संघर्ष – होड़, द्वेष।
- विचारहारा – जिनकी भावनाओं का कोई महत्त्व न हो।
- अपहरण – छीनकर या बलपूर्वक ले लेना।
- दीप्तित – चमकदार, शोभायुक्त।
- अभ्यस्त – आदी, जिनको आदत हो गई हो।
- विधवा – वह स्त्री, जिसका पति मर चुका हो।
- अनाथ – असहाय।
- जीवन-संघर्ष – जीवित रहने के लिए किया जानेवाला संघर्ष।
- दिशाहीन – जिसका कोई उद्देश्य न हो।
- बाध्य – विवश।
- सव्यसाची – जो बाएं हाथ से भी बाण चलाने में समर्थ हो, अर्जुन।
- उपरांत – पश्चात।
- कुल-गोत्र हीन – जिसका कुल-गोत्र न हो।
- वर्णसंकरता – दो भिन्न जातियों के स्त्री-पुरुष द्वारा संतान होने की स्थिति।
- विचरण – घूमना-फिरना।
- कुष्ठता – कोड़ की स्थिति।
- उत्तरदायी – जिम्मेदार।
- सुदूर – बहुत दूर।
- अमानवीय – जो मनुष्य के लिए न हो।
- शिलान्यास – भवन आदि बनाने से पहले नींव में पत्थर .. रखने की क्रिया।
- आतंक – भय।
- राजकोष – राजा का खजाना।