Gujarat Board GSEB Solutions Class 11 Sanskrit Chapter 20 अग्याणाम् शतमुद्दिष्टम् Textbook Exercise Questions and Answers, Notes Pdf.
Gujarat Board Textbook Solutions Class 11 Sanskrit Chapter 20 अग्याणाम् शतमुद्दिष्टम्
GSEB Solutions Class 11 Sanskrit अग्याणाम् शतमुद्दिष्टम् Textbook Questions and Answers
अग्याणाम् शतमुद्दिष्टम् Exercise
1. अधोलिखितानां प्रश्नानां समुचितम् उत्तरं चित्वा लिखत :
પ્રશ્ન 1.
शूकधान्यानाम् किं श्रेष्ठं भवति?
(क) गोधूमाः
(ख) लोहितशालयः
(ग) तिला:
(घ) मुद्गाः
उत्तर :
(ख) लोहितशालयः
પ્રશ્ન 2.
क्षीराणां किं क्षीरं श्रेष्ठं वर्तते?
(क) गोक्षीरम्
(ख) अजाक्षीरम्
(ग) महिषीक्षीरम्
(घ) उष्ट्रक्षीरम्
उत्तर :
(क) गोक्षीरम्
પ્રશ્ન 3.
दुर्गन्धहरं किं भवति?
(क) कुङ्कुमम्
(ख) सिन्दूरम्
(ग) चन्दनम्
(घ) मदनफलम्
उत्तर :
(ग) चन्दनम्
પ્રશ્ન 4.
कालभोजनं केषाम् श्रेष्ठम् अस्ति?
(क) आरोग्यकराणाम्
(ख) तृप्तिकराणाम्
(ग) शान्तिकराणाम्
(घ) तन्द्राकराणाम्
उत्तर :
(क) आरोग्यकराणाम्
પ્રશ્ન 5.
लौल्यं केषाम् अग्यम् अस्ति?
(क) भयकराणाम्
(ख) तन्द्राकराणाम्
(ग) क्लेशकराणाम्
(घ) दौर्बल्यकराणाम्
उत्तर :
(ग) क्लेशकराणाम्
2. एकवाक्येन उत्तरं लिखत :
પ્રશ્ન 1.
कीदृशं जलं श्रेष्ठ भवति?
उत्तर :
आन्तरिक्षं जलं श्रेष्ठं भवति।
પ્રશ્ન 2.
मदनफलं किं किं करोति?
उत्तर :
मदनफलं वमनास्थापनम् अनुस्थापनं च करोति।
પ્રશ્ન 3.
श्लेमण: पित्तस्य च प्रशमनं किं वस्तु करोति?
उत्तर :
मधु श्लेष्मण: पित्तस्य च प्रशमनं करोति।
પ્રશ્ન 4.
वेगसन्धानं नाम किमस्ति?
उत्तर :
वेगसन्धानं नाम प्राकृतिकावेगानाम् अवरोधः अर्थात् अनारोग्यकारी क्रिया अस्ति।
પ્રશ્ન 5.
भयकराणाम् अग्नम् किम् अस्ति?
उत्तर :
भयकराणाम् असमर्थता अग्यम् अस्ति।
3. प्रदत्तैः पदैः रिक्तस्थानानि पूरयत :
- ……………………………….. शूकधान्यानाम्। (मुद्राः, शालयः, सैन्धवम्, सर्पिः)
- जीवनीयानाम् ……………………………….. श्रेष्ठं भवति। (क्षीरम्, मधु, सर्पिः, जलम्)
- तद्विद्यसम्भाषा ……………………………….. श्रेष्ठा। (सर्पिषाम्, वृत्तिकराणाम्, आश्वासकराणाम्, बुद्धिवर्धनानाम्)
- प्रीणनानाम् ……………………………….. श्रेष्ठम् अस्ति। (हर्षः, लौल्यम्, अतिस्वप्नः, एकरसाभ्यासः)
- असमर्थता ……………………………….. श्रेष्ठा। (दौर्बल्यकराणाम्, क्लेशकराणाम्, भयकराणाम्, अनुष्ठेयानाम्)
उत्तर:
- शालयः
- क्षीरम्
- बुद्धिवर्धनानाम्
- हर्षः
- भयकराणाम्
4. Answer the following questions in your mother-tongue:
Question 1.
Which food grain out of different food grains is the best?
उत्तर :
शूक धान्यों में लाल रंग के चावल एवं शमी धान्यों में मूंग श्रेष्ठ हैं।
Question 2.
What can tranquilise /cure (समन) bile (पित्त)?
उत्तर :
पित्त का शमन घी के द्वारा होता है।
Question 3.
In what different issues sandal tree is the best?
उत्तर :
चन्दन की श्रेष्ठता दुर्गन्ध को दूर करनेवाले एवं दाहजन्य पीड़ा का शमन करनेवाले लेपनों में उत्कृष्टतम है।
Question 4.
What is the meaning of (सर्वरस) all tastes? Which different tastes are included in that?
उत्तर :
सर्वरस का तात्पर्य है सर्वविध रस। भोजन में प्रयुक्त सभी छः रस। भोजन में छः प्रकार के रस होते हैं – कटु – तीखा, तिक्त – कडवा, कषाय – कसैला, मधु – मीठा, अम्ल – खट्टा एवं लवण – नमकीन। सम्यक् स्वास्थ्य की कामना करनेवाले व्यक्ति को यहाँ वर्णित सभी षट् रसों का सेवन करना चाहिए।
Question 5.
Which is the principal matter that results in ill health?
उत्तर :
अनारोग्यकर विषयों में वेगसन्धान मुख्य है। वेगसन्धान का आशय है – प्राकृतिक आवेगों को रोकना।
5. Write short note on:
Question 1.
Charaksanhita
उत्तर :
चरक संहिता :
आयुर्वेद के प्राचीनतम विश्व विख्यात ग्रन्थों में चरक संहिता एक सुप्रसिद्ध ग्रन्थ है। ईसवी की प्रथम शताब्दी में इस ग्रन्थ की रचना की गई है। इस ग्रन्थ के कर्ता आयुर्वेद के प्रखर विद्वान महान आचार्य चरक हैं। यह भी माना जाता है कि औषधविज्ञान के प्रवर्तक आचार्य चरक हैं तथा वर्तमान में आयुर्वेद में वर्णित सभी विषयों का उल्लेख आचार्य चरक ने अपने ग्रन्थ में किया है।
अतः यह भी कहा जाता है कि सम्पूर्ण आयुर्वेद साहित्य आचार्य चरक का उच्छिष्ट है। चरक संहिता कायचिकित्सा का मुख्य ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ में सूत्रस्थान, निदान स्थान, विमान स्थान, शारीर स्थान, इन्द्रिय स्थान, चिकित्सा स्थान, कल्प स्थान और सिद्धि स्थान – ये आठ प्रकरण है।
इन सभी प्रकरणों में कुल मिलाकर एकसौ बीस (120) अध्याय है। इस ग्रन्थ में बारह हजार श्लोक हैं। आचार्य चरक के द्वारा प्राय: दो हजार औषध-योगों का विस्तृत व्याख्यान किया गया है।
इस व्याख्यान में ज्वर-रक्तपित्त, उन्माद, अतिसार, प्रमेह, उदर एवं हृदय आदि अनेक रोगों के निवारक एवं विनाशक औषधियों का उल्लेख है।
Question 2.
Adhyavasaya
उत्तर :
अध्यवसाय :
मानव यदि कर्म करता है, तो उसे निश्चित रूप से फल की प्राप्ति होगी। यह एक सर्वसम्मत सिद्धांत है। कर्म करने हेतु अनेक प्रकार के साधन-सामग्री की अपेक्षा होती है। अनेकविध साधन-सामग्रियों के प्रयोग से मानव कर्म करता है। मानव यह भी जानता है कि कर्म करते समय प्रयुक्त साधन-सामग्री के कारण फल की मात्रा (घटती-बढ़ती) न्यूनाधिक होती है।
इस परिस्थिति में किसी के मन में यदि यह प्रश्न हो कि सर्वाधिक फल प्राप्ति का मुख्य परिबल साधन क्या है?इस प्रश्न के उत्तर में यह समझाने का प्रयत्न किया गया है कि वह अध्यवसाय है, अर्थात् कोई कार्य निश्चित रूप से पूर्ण करना ही है।
इस प्रकार का यह दृढ़-निश्चय ही सर्वाधिक फलदायक साधनों में श्रेष्ठतम है। अर्थात् दृढ़निश्चय के साथ कार्य में प्रवृत्त होना चाहिए।
Question 3.
Sampratipatti
उत्तर :
संप्रतिपत्ति :
प्रकृति ने मानव को अनेक उपहार प्रदान किए हैं उनमें से एक उपहार काल के रूप में है। प्रायः प्रत्येक मानव को समय का ज्ञान है तथा किस समय कौन-सा कार्य किया जाए, यह भी वह जानता है। इस प्रकार मानव को समय एवं समय के प्रयोजन – दोनों का ज्ञान है।
इस ज्ञान के आधार पर मानव प्रत्येक काल में विभिन्न कार्य सम्पन्न करता है। मानव द्वारा किए जानेवाले इन सभी कार्यों में अग्रगण्य कार्य अर्थात् सर्वप्रथम किया जानेवाला कार्य सर्वप्रथम है। इस प्रश्न के मानव मन में उत्पन्न होने पर समाधान के रूप में समझाने का प्रयत्न किया गया है कि काल-ज्ञान के सर्व प्रयोजनों में उत्तम प्रयोजन संप्रतिपत्ति अर्थात् उचित समय पर कार्य करना है।
तात्पर्य यह है कि मानव यदि समयानुसार कार्य करे तो श्रेयस्कर है परंतु यदि मानव समयानुसार कार्य न करे अथवा समय के व्यतीत होने के पश्चात् कार्य करे या तदर्थ अत्यधिक समय का व्यय करे, तो वह प्रयत्न व्यर्थ ही है।
इस प्रकार किए गए कार्य को अग्रस्थान या प्रथम स्थान पर नहीं रखा जा सकता है। समयानुसार पूर्ण होनेवाले कार्य को ही अग्रगण्य अथवा प्रथम स्थान पर रखा जा सकता है।
Question 4.
Qualities of food
उत्तर :
आहारगुण :
आहार अर्थात् भोज्य पदार्थ। मानव जो पदार्थ भोजन के रूप में ग्रहण करता है, वह आहार है। आहार गुणों में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है तृप्ति। हम जिन पदार्थों को आहार के रूप में ग्रहण करते हैं उसके विभिन्न गुणों में प्रमुख गुण है सन्तुष्टि।
भोजन के उपरान्त यदि संतोष न हो तो उस भोज्य पदार्थ की गुणवत्ता निरर्थक हो जाती है। अतः समस्त पोषक तत्त्वों से युक्त एवं सर्वोत्कृष्ट गुणवत्ता से युक्त आहार का लाभ भी तभी प्राप्त होता है जब उससे सन्तुष्टि हो। अतः हिन्दी की यह प्रसिद्ध पंक्ति इस सन्दर्भ में भी उपयुक्त है –
‘जब आवै सन्तोष धन, सब धन धूरि समान।।’
6. Explain with reference to context :
1. व्यायाम: स्थैर्यकरणाम् –
अनुवाद : (देह को) स्थिरता प्रदान करनेवाले तत्त्वों में व्यायाम सर्वश्रेष्ठ है।
सन्दर्भ : यह पंक्ति पाठ्यपुस्तक के अग्याणां शतमुद्दिष्टम् नामक पाठ से ली गई है। इस पाठ की विषय-वस्तु आचार्य चरक विरचित चरकसंहिता नामक ग्रन्थ के सूत्रस्थान के पच्चीसवें अध्याय से उद्धृत की गई है। इस अध्याय में अग्निवेश एवं भगवान आत्रेय का संवाद वर्णित है जहाँ भगवान आत्रेय अपने शिष्य अग्निवेश को सौ विषय-वस्तुओं में से कुछ प्रमुख अग्रस्थ विषयों का रेखांकन यहाँ किया गया है।
इस पाठ में सौ विषयों में से मात्र चौंतीस विषयों का चयन किया है। उपर्युक्त पंक्ति के माध्यम से भगवान आत्रेय अग्निवेश से कहते हैं कि देह को स्थिरता प्रदान करनेवाले तत्त्वों में अनेक पदार्थ हैं किन्तु उन सभी पदार्थों में श्रेष्ठतम तत्त्व है व्यायाम।
व्यायाम से देह को जो स्थिरता प्राप्त होती है वह किसी भी अन्य पदार्थ से संभव नहीं है। अतः स्वस्थ रहने हेतु मानव को नित्य व्यायाम करना चाहिए।
2. कालभोजनम् आरोग्यकराणाम् –
अनुवाद : देह को आरोग्य (स्वास्थ्य के लिए हितकर) प्रदान करनेवाले तत्त्वों में समय पर भोजन करना प्रमुख है।
सन्दर्भ : यह पंक्ति पाठ्यपुस्तक के ‘अग्याणां शतमुद्दिष्टम्’ नामक पाठ से ली गई है। यह पाठ चरकसंहिता के पच्चीसवे अध्याय से उद्धृत किया गया है। इस अध्याय में भगवान आत्रेय एवं अग्निवेश का संवाद है। देह के लिए कल्याणकारी विविध सौ विषयों में प्रथम-क्रमस्थ अर्थात् श्रेष्ठतम् का उल्लेख किया है।
व्याख्या : अग्निवेश की जिज्ञासा का शमन करते हुए भगवान् आत्रेय कहते हैं देह को आरोग्य प्रदान करनेवाले (स्वास्थ्यकारी) तत्त्वों में सर्वाधिक है महत्त्वपूर्ण समय पर भोजन करना है। आहार तन को ऊर्जा प्रदान करता है किन्तु यदि यह आहार समय पर न लिया जाए तो यह तन व्याधियों से ग्रस्त हो सकता है। अतः इस तन के लिए हितकर अनेक पदार्थों में महत्त्वपूर्ण है समयानुसार भोजन करना।
अत: आयुर्वेद की यह पंक्ति सर्वविदित है – ‘शतं विहाय भोक्तव्यम्।’ अर्थात् समय पर सौ कार्यों को छोड़कर भी व्यक्ति को सर्वप्रथम भोजन करना चाहिए।
3. तृप्ति: आहारगुणानाम् –
अनुवाद : आहार के अनेक गुणों में तृप्ति सर्वोत्तम गुण है।
सन्दर्भ : यह पंक्ति पाठ्यपुस्तक के ‘अग्याणां शतमुद्दिष्टम्’ नामक पाठ से ली गई है। इस पाठ की विषय-वस्तु चरकसंहिता नामक ग्रन्थ के पच्चीसवे अध्याय से ली गई है। इस अध्याय में अग्निवेश एवं भगवान् आत्रेय का संवाद वर्णित है।
अग्निवेश के प्रश्नों का उत्तर देते हुए आत्रेय कहते हैं कि आहार के अनेक गुणों में सर्वोत्तम गुण है तृप्ति। सर्वविध पौष्टिक तत्त्वों से युक्त तथा उच्चतम गुणवत्ता-युक्त आहार का सेवन भी स्वास्थ्य के लिए तब तक लाभदायक सिद्ध नहीं हो सकता है जब तक कि उस आहार से सन्तुष्टि का अनुभव न हो।
यहाँ इस कथन से यह आशय है कि आहार के सेवन से प्राप्त संतुष्टि आहार में विद्यमान अन्य समस्त गुणों से अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है।।
4. आयुर्वेदः अमृतानाम् –
अनुवाद : (पृथ्वी पर विद्यमान) अमृतों में आयुर्वेद सर्वोत्तम अमृत है।
सन्दर्भ : यह पंक्ति पाठ्यपुस्तक के ‘अग्याणां शतमुद्दिष्टम्’ नामक पाठ से ली गई है। इस पाठ का अंश चरकसंहिता नामक आयुर्वेद के सुप्रसिद्ध ग्रन्थ के पच्चीसवे अध्याय से लिया गया। इस अध्याय में भगवान आत्रेय एवं अग्निवेश का संवाद वर्णित अपने शिष्य अग्निवेश की शंकाओं का समाधान करते हुए आचार्य आत्रेय कहते हैं कि, पृथ्वी पर विद्यमान अमृत स्वरूपिणी सभी चिकित्सा पद्धतियों में से आयुर्वेद सर्वोत्तम अमृत है।
सर्वविध जीवनी शक्तियों के साथ साथ स्वस्थ रहते हुए दीर्घायुप्रद समस्त औषधियों का वर्णन आयुर्वेद में किया गया है। आयुर्वेद में वर्णित अमृतमयी औषधियों के कारण ही आयुर्वेद को पंचमवेद के रूप में भी स्वीकार किया गया है।
‘आयुर्वेदः पञ्चमो वेदः’ की उक्ति भारतीय जन मानस में सुप्रसिद्ध है। इस प्रकार आचार्य आत्रेय के द्वारा इस पंक्ति के माध्यम से आयुर्वेद के महत्त्व को प्रतिपादित करते हुए उसका सम्यक् अध्ययन करने हेतु मार्गदर्शन प्रदान किया गया है।
Sanskrit Digest Std 11 GSEB अग्याणाम् शतमुद्दिष्टम् Additional Questions and Answers
अग्याणाम् शतमुद्दिष्टम् स्वाध्याय
1. अधोलिखितानां प्रश्नानां समुचितम् उत्तरं चित्वा लिखत।
પ્રશ્ન 1.
शमीधान्यानाम् किं श्रेष्ठम् ?
(क) मुद्गाः
(ख) शालयः
(ग) सैन्धवम्
(घ) हर्षः
उत्तर :
(क) मुद्गाः
પ્રશ્ન 2.
उदकानाम् किं श्रेष्ठम्?
(क) लौल्यम्
(ख) हर्षः
(ग) आन्तरिक्षम्
(घ) चन्दनम्
उत्तर :
(ग) आन्तरिक्षम्
પ્રશ્ન 3.
स्थावरजातानां स्नेहानाम् किम् श्रेष्ठम्?
(क) तिलतैलम्
(ख) सर्वपतैलम्
(ग) सूर्यमुखीतैलम्
(घ) कुन्दतैलम्
उत्तर :
(क) तिलतैलम्
પ્રશ્ન 4.
स्थैर्यकराणाम् किं श्रेष्ठम्?
(क) सर्पिः
(ख) एकरसाभ्यास:
(ग) व्यायामः
(घ) वेगसन्धानम्।
उत्तर :
(ग) व्यायामः
2. एकवाक्येन उत्तरं लिखत।
પ્રશ્ન 1.
लकराणां श्रेष्ठं किम्?
उत्तर :
बलकराणां श्रेष्ठं सर्वरसाभ्यास:।
પ્રશ્ન 2.
सुखानाम् अग्यम् किम्?
उत्तर :
सुखानाम् अग्यम् सर्वसंन्यासः अस्ति।
3. प्रदत्तै: पदैः रिक्तस्थानानि पूरयत।
1. ……………………………… अनुष्ठेयानाम् श्रेष्ठम्। (लौल्यम्, विषादः, क्षीरं, सद्ववचनम्)
2. ……………………………… रसायनानाम् श्रेष्ठः। (क्षीरघृताभ्यासः, आयुर्वेदः, शालयः, हर्षः)
उत्तर:
1. सद्धचनम्
2. क्षीरधृताभ्यासः।
4. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर मातृभाषा में लिखिए।
પ્રશ્ન 1.
रोगवर्धक एवं श्रमहारी तत्त्वों में कौन-कौन से विषय मुख्य है?
उत्तर :
रोगवर्धक विषयों में विषाद एवं श्रमहारी तत्त्वों में स्नान मुख्य है।
પ્રશ્ન 2.
दुर्बलता प्रदान करनेवाले एवं देह को स्थिरता प्रदान करनेवाले तत्त्वों में श्रेष्ठ क्या है?
उत्तर :
दुर्बलता प्रदान करनेवाले तत्त्वों में भोजन के एक ही रस का सेवन करना मुख्य है तथा देह को स्थिरता प्रदान करनेवाले विषयों में व्यायाम करना श्रेष्ठतम है।
5. विवरणात्मक टिप्पणी लिखिए।
1. मधु, सर्पिः तैलम्: –
आयुर्वेद शास्त्र की मान्यतानुसार मानव शरीर में वात, पित्त एवं कफ ये तीन धातुएँ विद्यमान होती है। जब तक ये तीन धातुएँ समान मात्रा में विद्यमान होती हैं तब तक मानव शरीर स्वस्थ रहता है। इन तीनों में से जब किसी भी दोष की मात्रा असमान होती है तब मानव देह रोगी होता है।
मानव देह में वात-पित्त एवं कफ को सम रखने हेतु क्रमशः तैलम् (तिल के तेल की मालिश), मधु (शहद का सेवन) एवं सर्पिः (घी) का उपयोग करने का सूचन किया गया है। इस प्रकार आयुर्वेद – शास्त्र की दृष्टि से उपर्युक्त तीनों पदार्थ मानव-मात्र के लिए सदा हितकारी रहे हैं, वर्तमान में हैं तथा भविष्यकाल में भी रहेंगे। सदचनमनुष्ठेयानाम् : मानव के सामने किए जानेवाले कार्य अर्थात् अनुष्ठान अनेक हैं।
इन सभी अनुष्ठानों में से सर्वश्रेष्ठ अनुष्ठान कौन-सा हो सकता है?यह एक जिज्ञासा है। इस जिज्ञासा को प्रकट करनेवाले अग्निवेश नामक शिष्य को भगवान आत्रेय उत्तर देते हुए कहते हैं कि सत्पुरुषों द्वारा उपदिष्ट वचनानुसार अनुष्ठान करना या वर्तेन करना ही श्रेष्ठतम अनुष्ठान है।
सामान्य जन – कृत – प्रेरणानुसार किए जानेवाले कार्य अनेक हो सकते हैं परंतु श्रेष्ठतम् सत्पुरुषोपदिष्ट वचनानुसार किया जानेवाला कार्य ही होता है। अतः इस मानव को सद्वचनानुसार कार्य करना चाहिए। असद् वचनानुसार कार्य नहीं करना चाहिए।
अग्याणाम् शतमुद्दिष्टम् Summary in Hindi
(प्रस्तावना : यह गद्यांश चरकसंहिता (रचनाकाल ई.स. की प्रथम शताब्दी) के सूत्र-स्थान के पच्चीसवें अध्याय में से उद्धृत किया गया है। इस अध्याय में अग्निवेश एवं भगवान आत्रेय का संवाद है। प्रस्तुत संवाद में शीर्षस्थ विषयवस्तु का उपदेश किया गया है।
विश्व में अनंत पदार्थ हैं तथा अनंत क्रियाएँ हैं। उनमें से विविध क्षेत्रों में कुल एक सौ विषयों पर ध्यान केन्द्रित किया है तथा इन सौ विषयों से भी कुछ प्रमुख अग्रस्थ विषयों का रेखांकन यहाँ किया गया है। शत विषय-वस्तुओं में से भिन्न-भिन्न प्रकार के मात्र चौंतीस विषयों का चयन करके सम्पादित कर उन्हें यहाँ प्रस्तुत किया गया है।
जीवन के सकुशल निर्वहनार्थ दैनिक व्यवहारों में आहार की भूमिका महत्त्वपूर्ण है। इस प्रकार के आहार में मुख्य रूप से अन्न पदार्थ, रोगादि से शरीर के संरक्षक तत्त्वों से मधु, सर्पि (घी) आदि औषधीय तत्त्व, मानवीय प्रतिभा के विकास में उपयोगी एवं अवरोधक तत्त्वों का समावेश किया जा सके इस प्रकार के गुण-दोषों में प्रमुख तंद्रा – क्लेश आदि को जन्म देनेवाले विषयों में प्रीणन (प्रसन्नता) स्नान सदृश् जो विषय मुख्य है, उनका उपदेश किया गया है। यदि मानव एक बार मुख्य विषय या तत्त्वों को जान लेता है तो ग्रहण करने योग्य विषयों को ग्रहण कर सकता है तथा त्याज्य विषयों को परित्याग कर सकता है।)
शब्दार्थ
चरक संहितायाम् = चरक संहिता नामक ग्रन्थ में। सूत्रस्थाने = चरकसंहिता नामक ग्रन्थ में वर्णित – सूत्र – स्थान नामक प्रकरण में। आत्रेयः = अत्रि ऋषि के पुत्र – आयुर्वेद के ज्ञाता एक ऋषि। अग्निवेशाय = अग्निवेश नामक ऋषि को जो आत्रेय के शिष्य थे एवं आयुर्वेद के अध्येता थे। अग्ग्राणाम् = अग्रस्थ विषयों में से – प्रथम स्थान पर रहे विषयों में से – इस समग्र पाठ में षष्ठी विभक्ति का प्रयोग निर्धारण करने के अर्थ में किया गया है।
अनेक वस्तुओं में से किसी एक वस्तु का निर्धारण करते समय जिस वस्तु को निर्धारित किया जाए उस वस्तु में षष्ठी विभक्ति का प्रयोग अथवा सप्तमी विभक्ति का प्रयोग किया गया है। अत: षष्ठी विभक्ति में प्रयुक्त पद का हिन्दी अनुवाद करते समय ‘में से’ यह अर्थ ग्राह्य होता है।
यथा – शूक धान्यानाम् – शूक अर्थात् बालवाले धान्यों में से। शतम् – एक सौ। उपदिशति = उपदेश करता है – उप + दिश् – वर्तमान काल, अन्य पुरुष, एकवचन। उद्दिष्टम् = उपदेश किया था, सिखाया था – उद् + दिश् + क्त – कर्मणि भूतकृदन्त। किञ्चित् = थोडा / संगृह्यते = संग्रहित किया जा रहा है – सम् + गृह – कर्मणि – वर्तमान काल, अन्य पुरुष, एकवचन। तद्यथा = उदाहरणतया। लोहितशालयः = लाल रंग के चावल – लोहिता चासौ शालिः – कर्मधारय समास। शूक धान्यानाम् = बालवाले धान्यों में से – शूकस्य धान्यम् – षष्ठी तत्पुरुष समास। मुद्गा: = मूंग।
शमीधान्यानाम् = फलियोंवाले अनाज में से – शम्या: – धान्यम् – षष्ठी तत्पुरुष समास। आन्तरिक्षम् = अन्तरिक्ष में से आया हुआ – (जल) अन्तरिक्षात् आगतम् (जलम्) (पंचमी तत्पुरुष)। उदकानाम् = विविध प्रकार के जल में से। सैन्धवम् = सैंधा नमक, सैंधव। लवणानाम् = अनेक प्रकार के नमक में से। गव्यम् = गय का विकार – सर्पि – घी का विशेषण। सर्पिसाम् = अनेक प्रकार के घी में से। गोक्षीरम् = गाय का दूध – गवां क्षीरम् = षष्ठी तत्पुरुष समास। क्षीराणाम् = अनेक प्रकार के दूध में से। तिलतैलम् = तिल का तेल – तिलानाम् तैलम् – षष्ठी तत्पुरुष समास।
स्थावरजातानाम् – वृक्ष में से उत्पन्न अनेक वस्तुओं में से। स्नेहानाम् = अनेक प्रकार के तेल में से। वृत्तिकराणाम् = शरीर को स्थायी बनानेवाले अनेक पदार्थों में से। वृत्ति करोति इति वृत्तिं करः, तेषाम् – उपपद तत्पुरुष समास।। आश्वासकराणाम् = आश्वासन, शांति प्रदान करनेवाले पदार्थों में से – आश्वासं करोति इति आश्वासकरः – उपपद तत्पुरुष समास। जीवनीयानाम् = देह को जीवनी शक्ति प्रदान करनेवाले, अनेक पदार्थों में से – जीव – अनीयर् – विध्यर्थ कृदन्त। मधु = शहद। श्मलेष्मपित्तप्रशमनानाम् = श्लेष्म – कफ एवं पित्त का शमन करनेवाले अनेक पदार्थों में से – श्लेष्म च पित्तः च इति श्लेष्मपितौ – इतरेतर द्वन्द्व समास।
श्लेष्मपित्तयोः प्रशमनम् – तेषाम् – षष्ठी तत्पुरुष समास। वातश्लेष्मप्रशमनानाम् = वात एवं कफ का शमन करनेवाले अनेक पदार्थों में से – वातः च श्लेष्म च वातश्लेष्माणौ – इतरेतर द्वन्द्व समास। वातश्लेष्मयोः प्रशमनम् – तेषाम् = षष्ठी तत्पुरुष समास। स्थैर्यकराणाम् = शरीर को स्थिरता प्रदान करनेवाले तत्त्वों या विषयों में से। मदनफलम् = नफल। वमनास्थापनानुवासनोपयोगिनाम् = वमना स्थापन अर्थात् ऋक्षबस्ती (उल्टी करना) तथा अनुवासन अर्थात् स्निग्ध बस्ती कर्म में उपयोगी पदार्थों में – वमनस्य आस्थापनम् – षष्ठी तत्पुरुष समास – वमनास्थापनम् अनुवासनम् च – वमनास्थापनानुवासने – इतरेतर द्वन्द्व समास। वमनास्थापनानुवासनयोः उपयोगिनः – तेषाम् – षष्ठी तत्पुरुष समास।
क्षीरघृताभ्यास: = दूध एवं घी निरन्तर खाने की आदत – क्षीरं च घृतं च – इतरेतर द्वन्द्व समास, क्षीरघृतयोः अभ्यासः – षष्ठी तत्पुरुष समास। रसायनानाम् = सर्वविध रसायनों में। दुर्गन्ध हरदाह निर्वापणलेपानाम् = दुर्गन्ध को दूर करनेवाले दाह – गर्मी को दूर करनेवाले लेपनों में – दुर्गन्धं हरति इति दुर्गन्ध हरः – उपपद तत्पुरुष समास – दाहस्य निर्वावणम् – षष्ठी तत्पुरुष समास, दुर्गन्ध हरस्य च दाहनिर्वापणस्य च लेपः तेषाम् – इतरेतर द्वन्द्व समास। कालभोजनम् = समय पर किया जानेवाला भोजन – काले भोजनम् – सप्तमी तत्पुरुष समास। आरोग्यकराणाम् = आरोग्यकर स्वास्थ्य के लिए हितकारी वस्तुओं में। आरोग्यं करोति तेषाम् – उपपद तत्पुरुष समास।
आहारगुणानाम् = आहार के गुणों में – आहाराणां गुणा: तेषाम् – षष्ठी तत्पुरुष समास। वेगसन्धानम् = प्राकृतिक आवेगों को रोकना – वेगस्य संधानम् – षष्ठी तत्पुरुष समास। अनारोग्यकराणाम् = अनारोग्यकर, अस्वस्थ करनेवाले अनेक विषयों में – न आरोग्यकरम्, तेषाम् – नञ् तत्पुरुष समास। विषादः = दुःख। रोगवर्धनानाम् = रोग-वर्धक अनेक पदार्थों में – रोगस्य वर्धनम्, तेषाम् – षष्ठी तत्पुरुष, समास। श्रमहराणाम् = श्रमहारी – श्रमहर्ता पदार्थों में – श्रमं हरति, तेषाम् – उपपद तत्पुरुष समास। प्रीणनानाम् = प्रसन्न करनेवाले अनेक विषयों में। अति स्वप्नः = अत्यधिक निद्रा।
तन्द्राकराणाम् = आलस्य करनेवाले पदार्थों में – तन्द्रां करोति तेषाम् – उपपद तत्पुरुष समास। सर्वरसाभ्यास: = सर्वविध रसों (को खाने) का अभ्यास – भोजन के संदर्भ में छः रस होते हैं – कटु – तीखा, अम्ल – खट्टा, मधु – मीठा, लवण – खारा (नमकीन), तिक्त – कडवा एवं कषाय – कसैला। बलकराणाम् – बल प्रदान करनेवाले अनेक पदार्थों में। बलं करोति, तेषाम् – उपपद तत्पुरुष समास। एकरसाभ्यास: = एक ही रस (को सतत खाना) की आदत-एकस्य रसस्य अभ्यासः – षष्ठी तत्पुरुष समास। दौर्बल्यकराणाम् = दुर्बलता लानेवाले अनेक पदार्थों में – दुर्बलस्य भावः इति दौर्बल्यम् दौर्बल्यम् करोति तेषाम् – उपपद तत्पुरुष समास। लौल्यम् = लोलाया: भावः – तद्धित प्रत्यय – लोलुपता, चंचलता।
क्लेशकराणाम् = क्लेश, दुःख देनेवाले पदार्थों में – क्लेशं करोति, तेषाम् – उपपद तत्पुरुष समास। सम्प्रतिपत्तिः = उचित समय पर कार्य करना – समय रहते कार्य सम्पन्न करना। कालज्ञानप्रयोजनानाम् = काल-ज्ञान के अनेक प्रयोजनों में – कालस्य ज्ञानम् – कालज्ञानम् – षष्ठी तत्पुरुष समास – कालज्ञानं प्रयोजनं येषाम्, तेषाम् – बहुव्रीहि समास। अध्यवसाय: = दृढ़निश्चय के साथ कार्य करने की वृत्ति। फलातिपत्तिहेतूनाम् = अत्यधिक फल की प्राप्तिवाले अनेक कारणों में – फलस्य अतिपत्तिः – षष्ठी तत्पुरुष समास। फलातिपत्तीनां हेतवः तेषाम् – षष्ठी तत्पुरुष समास।
असमर्थता = सामर्थ्य का अभाव, काम न कर सकने की वृत्ति – समर्थस्य भावः – समर्थता तद्धित प्रत्यय, न समर्थता = नञ् तत्पुरुष समास। भयकारणात् = भयोत्पादक अनेक विषयों में – भयं करोति येषाम् – उपपद तत्पुरुष समास। तद्भिद्यसम्भाषा = तत्तद् विद्या के ज्ञाता विद्वज्जनों के संवाद-वार्तालाप-तस्य विद्यः – तद्विद्यः – षष्ठी तत्पुरुष समास, तद्विद्यस्य सम्भाषा 4- – षष्ठी तत्पुरुष समास। बुद्धिवर्धनानाम् = ज्ञानवर्धक अनेक उपायों में – बुद्धेः वर्धनम्, तेषाम् – षष्ठी तत्पुरुष समास। आयुर्वेद = आयुर्वेद, चिकित्साशास्त्र। अमृतानाम् = पृथ्वी पर उपलब्ध अनेक अमृतों में।
सद्भचनम् = सज्जनों के द्वारा कहे हुए वचन – सतां वचनम् – षष्ठी तत्पुरुष समास। अनुष्ठेयानाम् = अनेक करणीय कार्यों में। सर्वसंन्यास: – सर्वविध विषयों में से संन्यास – सर्वस्मात् संन्यास: – षष्ठी तत्पुरुष समास – सर्व बंधनों का त्याग।
अनुवाद :
चरक संहिता में सूत्र स्थान में पच्चीसवे अध्याय में भगवान आत्रेय अग्निवेश को अग्रस्थ वस्तुओं में से सौ उपदेश देते है। वहाँ सौ उपदेशों में से कुछ यहाँ संग्रह किए जा रहे हैं – जैसे :
शूक (बालवाले) धान्यों में लाल रंग के चावल, शमी (फलियोंवाले) धान्यों में मूंग, विविध प्रकार के जल में अन्तरिक्ष का (वृष्टि का) जल, विभिन्न प्रकार के नमक में सैंधा नमक, विभिन्न प्रकार के घी में गाय का घी, विविध प्रकार के दूध में गाय का दूध, वृक्ष से उत्पन्न विविध प्रकार के तेल में तिल का तेल, शरीर को स्थायी बनानेवाले अनेक पदार्थों में से श्रेष्ठ अन्न, शांति प्रदान करनेवाले पदार्थों में जल, देह को जीवनी शक्ति प्रदान करनेवाले अनेक द्रव्यों में दूध, कफ एवं पित्त का शमन करनेवाले पदार्थों में मधु (शहद), वात-पित्त का शमन करनेवाले पदार्थों में घी, वात-कफ का शमन करनेवाले पदार्थों में तेल, तन को स्थिरता प्रदान करनेवाले तत्त्वों में व्यायाम, वमना स्थापन अर्थात् ऋक्षबस्ती (उल्टी करना) तथा अनुवासन अर्थात् स्निग्धबस्ती कर्म में उपयोगी पदार्थों में मैनफल (मदनफल), सर्वविध रसायनों में दूध एवं घी निरन्तर खाने की आदत, दुर्गंध को दूर करनेवाले एवं दाह-गर्मी को दूर करनेवाले लेपनों में चन्दन, स्वास्थ्य के लिए हितकारी वस्तुओं में समय पर किया जानेवाला भोजन, आहार के गुणों में तृप्ति, अस्वस्थ करनेवाले अनेक विषयों में प्राकृतिक आवेगों को रोकना, रोग-वर्धक अनेक पदार्थों में विषाद, श्रमहर्ता पदार्थों में स्नान, प्रसन्न करनेवाले अनेक विषयों में हर्ष, आलस्यकारी तत्त्वों में अत्यधिक निद्रा, बलप्रदान करनेवाले अनेक द्रव्यों में सर्वविध रसों का सेवन करना, दुर्बल करनेवाले अनेक विषयों में एक (ही) रस का सेवन करना, दुःख देनेवाले अनेक पदार्थों में लोलुपता, काल-ज्ञान के अनेक प्रयोजनों में उचित समय पर कार्य करना, अत्यधिक फल की प्राप्तिवाले अनेक कारणों में दृढ़ निश्चय के साथ कार्य करने की प्रवृत्ति – भयोत्पादक अनेक विषयों में सामर्थ्य का अभाव, ज्ञान-वर्धक अनेक उपायों में तत्तद् विद्या के ज्ञाता विद्वज्जनों के साथ संवाद-वार्तालाप, अमृतों (अमृत-तत्त्वों) में आयुर्वेद, करणीय कार्यों में सज्जनों के द्वारा कहे गए वचन, सर्वविध सुखों में सर्व-बन्धनों का त्याग – (अपेक्षित है, श्रेष्ठतम है।)