GSEB Solutions Class 10 Hindi Chapter 1 प्रभुजी तुम चंदन हम पानी

Gujarat Board GSEB Std 10 Hindi Textbook Solutions Chapter 1 प्रभुजी तुम चंदन हम पानी Textbook Exercise Important Questions and Answers, Notes Pdf.

GSEB Std 10 Hindi Textbook Solutions Chapter 1 प्रभुजी तुम चंदन हम पानी

GSEB Class 10 Hindi Solutions प्रभुजी तुम चंदन हम पानी Textbook Questions and Answers

स्वाध्याय

1. निम्नलिखित प्रश्नों के एक-एक वाक्य में उत्तर लिखिए :

प्रश्न 1.
प्रभु चंदन है, तो भक्त क्या है?
उत्तर :
प्रभु चंदन है, तो भक्त पानी है।

प्रश्न 2.
भक्त बाती बनकर क्या चाहता है?
उत्तर :
भक्त बाती बनकर जलना चाहता है।

प्रश्न 3.
सोने का महत्त्व कब बढ़ता है?
उत्तर :
जब सोने संग सुहागा मिलता है, तब सोने का महत्त्व बढ़ता है।

2. निम्नलिखित प्रश्न के दो-तीन वाक्यों में उत्तर लिखिए :

प्रश्न 1.
भक्त किन-किन उदाहरणों द्वारा समझाता है कि मैं प्रभु के निकट हूँ – अपने शब्दों में लिखिए ।
उत्तर :
भक्त अपने आपको प्रभु के निकट होने की बात समझाने के लिए विभिन्न प्रतीकों का सहारा लेता है। इन उदाहरणों में चंदन-पानी, घन-मोर, दीपक-बाती, मोती-धागा तथा स्वामी-दास का समावेश है।

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3. उचित जोड़े बनाइए :

प्रश्न 1.

‘अ’ ‘ब’
चंदन मोरा
घन बन ज्योति
दीपक पानी
सोना रैदासा
भक्त सुहगा

उत्तर :

‘अ’ ‘ब’
चंदन पानी
घन बन मोरा
दीपक ज्योति
सोना सुहगा
भक्त रैदासा

Hindi Digest Std 10 GSEB प्रभुजी तुम चंदन हम पानी Important Questions and Answers

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर चार-पांच वाक्यों में लिखिए :

प्रश्न 1.
संत रैदासजी ने स्वयं को क्या-क्या कहकर संबोधित किया है?
उत्तर :
निष्ठावान भक्त समर्पित भावना से अपने आराध्य देव से जुड़ा रहने में अपनी भक्ति की सार्थकता मानता है। संत रैदास ऐसे ही भक्त हैं। वे अपने आपको पानी बताते हैं, जो प्रभु रूपी चंदन के साथ मिलकर सुगंधित हो जाता है। वे अपने आपको मोर कहते हैं, जो बादल को देखकर मस्ती से नाचने लगता है। वे उस चातक पक्षी की तरह है, जो चंद्रमा को सदा देखता रहता है। वे उस बाती के समान हैं, जो दीपक में जलती रहती है। वे अपने आपको उस धागे के रूप में देखते हैं, जो मोती में पिरोया जाता है। संत रैदास खुद को सोने जैसी मूल्यवान धातु में मिलनेवाला सुहागा मानते हैं। वे अपने आपको मालिक का गुलाम यानी प्रभु का एक तुच्छ सेवक मानते हैं।

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प्रश्न 2.
संत रैदास भगवान को किन-किन नामों से संबोधित करते है?
उत्तर :
संत रैदास भगवान को विभिन्न नामों से संबोधित करते हैं। वे भगवान को चंदन के नाम से संबोधित करते हैं, जिसके साथ रहकर पानी भी सुगंधित हो जाता है। वे ईश्वर को बादल कहते है, जिसे देखकर मोर मस्ती में आकर नाचने लगता है। वे भगवान को चंद्रमा कहते हैं, जिसे देखकर चातक पक्षी अघाता नहीं है। वे ईश्वर को दीपक की उपमा देते हैं। वे भगवान को मोती, सोना तथा स्वामी आदि कहते हैं।

प्रश्न 3.
संत रैदास ने भगवान के प्रति अपना भक्तिभाव किन-किन रूपों में व्यक्त किया है?
उत्तर :
संत रैदास भगवान के एकनिष्ठ भक्त हैं। वे अपने आपको भगवान से विभिन्न रूपों में जोड़े रहना चाहते हैं। वे कहते हैं कि यदि प्रभु चंदन हैं, तो वे पानी है जिसका उपयोग चंदन घिसते समय किया जाता है। भगवान यदि बादल हैं, तो वे मोर हैं, जो बादल को देखकर मस्ती में आकर नाचने लगता है। प्रभु चंद्रमा हैं, तो रैदास चातक है, जिसका मन चंद्रमा को देखकर नहीं भरता। यदि प्रभु दीपक हैं, तो वे उसकी चाती हैं, जो अपने आपको जलाती रहती है। भगवान मोती हैं, तो संत रैदास वह धागा हैं, जिसमें मोती पिरोया जाता है। प्रभु सोना हैं, तो रैदास सुहागा हैं। यदि भगवान स्वामी हैं, तो रैदास उनके दास बनने में अपने आपको धन्य मानते हैं।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो-तीन वाक्यों में लिखिए :

प्रश्न 1.
चंदन और पानी के द्वारा भक्त और भगवान की निकटता कैसे बताई गई है?
उत्तर :
चंदन की लकड़ी पानी के साथ घिसने पर लुगदी का रूप ले लेती है। इससे चंदन और पानी दोनों एकरूप हो जाते हैं। फिर उन्हें अलग नहीं किया जा सकता। इस तरह चंदन और पानी के द्वारा भक्त और भगवान की निकटता बताई गई है।

प्रश्न 3.
मोती और धागे के द्वारा संत रैदास क्या कहना चाहते हैं?
उत्तर :
मोती और धागा दो अलग-अलग वस्तुएँ हैं। लेकिन मोती जब धागे में पिरोया जाता है, तो दोनों एकाकार हो जाते हैं। संत रैदास मोती और धागे के माध्यम से कहना चाहते हैं कि उनकी भक्ति आत्मा और परमात्मा यानी भक्त और भगवान के एकाकार हो १ जाने की है।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-एक वाक्य में लिखिए :

प्रश्न 1.
चातक पक्षी किसे देखता रहता है?
उत्तर :
चातक पक्षी चंद्रमा को देखता रहता है।

प्रश्न 2.
भक्त प्रभु के निकट होने की बात समझाने के लिए किसका सहारा लेते हैं?
उत्तर :
भक्त प्रभु के निकट होने की बात समझाने के लिए विभिन्न प्रतीकों का सहारा लेते हैं।

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प्रश्न 3.
चंदन और पानी के उदाहरण द्वारा भक्त और भगवान के बीच का कौन-सा भाव बताया गया है?
उत्तर :
चंदन और पानी का उदाहरण द्वारा भक्त और भगवान के बीच का निकटता का भाव बताया गया है।

प्रश्न 4.
मोती और धागा किस भाव का प्रतीक है?
उत्तर :
मोती और धागा एकाकार का प्रतीक है।

सही वाक्यांश चुनकर निम्नलिखित विधान पूर्ण कीजिए :

प्रश्न 1.
संत रैदास कहते हैं कि हे प्रभु, आपके प्रति मेरा समर्पणभाव …
(अ) चंदन के साथ पानी जैसा है।
(ब) मोती और धागे जैसा है।
(क) सोने पर सुहागे जैसा है।
उत्तर :
संत रैदास कहते हैं कि हे प्रभु, आपके प्रति मेरा समर्पणभाव : चंदन के साथ पानी जैसा है।

प्रश्न 2.
सोने के साथ सुहागे का …
(अ) स्थायी संबंध होता है।
(ब) अपनापन होता है।
(क) अटूट बंधन होता है।
उत्तर :
सोने के साथ सुहागे का स्थायी संबंध होता है।

सही विकल्प चुनकर रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए :

प्रश्न 1.

  1. भक्त धागा है, तो प्रभु ………… है। (हीरा, मोती)
  2. रैदास प्रभु को स्वामी मानकर खुद को ………… मानते है। (सिपाही, दास)
  3. प्रभु चंदन है, तो भक्त ……….. है। (पानी, अमृत)
  4. जब …….. मिलता है तब सोने का महत्त्व बढ़ जाता है। (हीरा, सुहागा)
  5. प्रभु बादल है, तो भक्त ………… है। (बीजली, मोर)

उत्तर :

  1. मोती
  2. दास
  3. पानी
  4. सुहागा
  5. मोर

निम्नलिखित प्रश्नों के नीचे दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प चुनकर उत्तर लिखिए :

प्रश्न 1.
प्रभुजी तुम चंदन हम ….।
A. बाती
B. सुवास
C. पानी
D. वंदन
उत्तर :
C. पानी

प्रश्न 2.
जा कि जोति बरे ….।
A. दिन-राती
B. दीन-राती
C. हमेशा
D. मालिक
उत्तर :
A. दिन-राती

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प्रश्न 3.
प्रभुजी तुम स्वामी हम ….।
A. मोर
B. दासा
C. भक्त
D. राजा :
उत्तर :
B. दासा

प्रश्न 4.
मोती और धागा ………. का प्रतीक है।
A. सुविचार
B. एकाकार
C. निराकार
D. अहंकार
उत्तर :
B. एकाकार

प्रश्न 5.
प्रभु दीपक है, तो भक्त ………. है।
A. तेल
B. प्रकाश
C. बाती
D. अंधेरा
उत्तर :
C. बाती

प्रश्न 6.
आत्मा-परमात्मा की अद्वैतता की बात …… काव्य में की गई है।
A. कुत्ते की सीख
B. साधूपदेश
C. तोता और इन्द्र
D. प्रभुजी तुम चंदन हम पानी
उत्तर :
D. प्रभुजी तुम चंदन हम पानी

व्याकरण

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के पर्यायवाची शब्द लिखिए :

  1. पानी
  2. चंदन
  3. बास
  4. चितवत्
  5. स्वामी

उत्तर :

  1. पानी – जल
  2. चंदन – गंधराज, मलबज
  3. बास – बू
  4. चितवत् – देखना
  5. स्वामी- राजा

प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों के विरोधी शब्द लिखिए :

  1. मित्र × ……………..
  2. स्वामी × ……………..
  3. मालिक × ……………..
  4. अंधेरा × ……………..
  5. आकाश × ……………..

उत्तर :

  1. मित्र × शत्रु
  2. स्वामी × दास
  3. मालिक × सेवक
  4. अंधेरा × उजाला
  5. आकाश × पाताल

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प्रभुजी तुम चंदन हम पानी Summary in Hindi

विषय-प्रवेश :

संत रैदास महान भक्त कवि थे। उनके पदों में ईश्वर के प्रति एकनिष्ठ भक्तिभाव के दर्शन होते हैं। उन्होंने अपने पदों में भगवान के प्रति अपने अटूट संबंधों की पुष्टि की है। प्रस्तुत पदों में उनका दास्य-भाव प्रकट हुआ है। इन पदों में उन्होंने चंदन-पानी, बादल-मोर, चाँद-चकोर, दीपक-बाती, मोती-धागा, सोना-सुहागा तथा स्वामी-दास जैसे प्रतीकों के माध्यम से अपनी निश्छल भक्ति-भावना व्यक्त की है।

कविता का सार :

  • चंदन और पानी : संत रैदास की भक्ति समर्पितभाव की है। प्रभु चंदन हैं, तो वे स्वयं को पानी कहते हैं।
  • बादल और मोर : प्रभु बादल हैं, तो संत रैदास बादल को देखकर मस्ती से नाचनेवाले मोर पक्षी हैं।
  • दीपक और बाती : यदि प्रभु दीपक हैं, तो संत रैदास अपने आपको उस दीपक में जलानेवाली बाती कहते हैं।
  • प्रभु मोती, तो रैदास धागा : मोती और धागे का अटूट संबंध होता है। प्रभु मोती हैं, तो रैदास अपने आपको मोती-माला का धागा कहते हैं।
  • सोना और सुहागा : सोने और सुहागे का स्थायी संबंध होता है। संत रैदास का प्रभु से इसी प्रकार का आत्मीय संबंध है।।
  • स्वामी और गुलाम : स्वामी यानी प्रभु के सेवक बनकर रहने में रैदास अपना सौभाग्य मानते हैं।

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कविता का सरल अर्थ :

प्रभुजी तुम ……. बास समानी।

संत रैदास कहते हैं कि हे प्रभु, आपके प्रति मेरा समर्पणभाव चंदन के साथ पानी जैसा है। चंदन के साथ घिसने पर पानी में भी चंदन की सुगंध व्याप्त हो जाती है। हे प्रभु, आप चंदन हैं, तो मैं पानी हूँ। आपकी सुगंध भक्तिभाव के माध्यम से मेरे संपूर्ण शरीर के अंग-अंग में व्याप्त हो गई है।

प्रभुजी तुम ……. चंद चकोरा।

संत रैदास कहते हैं कि हे प्रभु, आप मेरे लिए बादल जैसे हैं और मैं अपने आपको जंगल का मोर मानता हूँ। जैसे वर्षाऋतु में कालेकाले बादलों को देखकर मोर मगन होकर नाचने लगता है, उसी तरह मैं आपको निहारकर मदमस्त हो जाता हूँ। हे प्रभु, जैसे चातक पक्षी चंद्रमा को देखता रहता है, उसी प्रकार में भी सदा आपकी भक्ति में सदा डूबा रहता हूँ।

प्रभुजी तुम ……. दिन-राती।

संत रैदास कहते हैं कि हे प्रभु, मेरी भक्ति दीपक में जलनेवाली बाती की तरह है। जिस प्रकार दीपक की बाती अपने आपको जलाकर दीपक के साथ बने रहने में सुख का अनुभव करती है, उसी प्रकार मैं भी अपना अस्तित्व खोकर केवल आपकी भक्ति का अभिलाषी हूँ।

प्रभुजी तुम …….. मिलत सुहागा।

संत रैदास कहते हैं कि हे प्रभु, आप मेरे लिए सुंदर और चमकदार मोती की भांति हैं और मैं अपने आपको वह धागा मानता हूँ, जिसमें मोती पिरोए जाते हैं। वे कहते हैं कि जिस प्रकार मोतियों की माला का धागा मोतियों से जुड़ा रहता है, उसी तरह वे भी अपनी भक्ति के द्वारा भगवान से घनिष्ठ रूप से जुड़े रहना चाहते हैं। वे ईश्वर से अपने जुड़ाव को सोने और सुहागे के मेल की संज्ञा देते हैं।

प्रभुजी …….. करै रैदासा।

संत रैदास कहते हैं कि हे प्रभु, आप हमारे मालिक हैं और मैं आपका समर्पित सेवक हूँ। वे कहते हैं कि हे प्रभु, मेरी भक्ति तो इसी प्रकार की है।

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ગુજરાતી ભાવાર્થ

સંત રૈદાસ કહે છે કે હે પ્રભુ, આપના પ્રત્યે મારો સમર્પન્નભાવ ચંદનની સાથે પાણી સમાન છે. ચંદનની સાથે ઘસવાથી પાણીમાં પણ ચંદનની સુગંધ વ્યાપી જાય છે. હે પ્રભુ, આપ ચંદન છો, તો નું પાણી છું. આપની સુગંધ ભક્તિભાવના માધ્યમથી મારા આખા શરીરના અંગેઅંગમાં વ્યાપ્ત થઈ ગઈ છે.

સંત રૈદાસ કહે છે કે હે પ્રભુ, આપ મારા માટે વાદળ સમાન છો અને હું પોતાને જંગલનો મોર માનું છું. જેવી રીતે વર્ષાઋતુમાં કાળાં કાળાં વાદળ જોઈને મોર મગ્ન થઈ નૃત્ય કરવા લાગે છે, એવી રીતે હું પણ આપને જોઈને મદમસ્ત થઈ જાઉં છું. હે પ્રભુ, જેવી રીતે ચાતક પછી ચંદ્રને જોતું રહે છે, એવી રીતે હું પણ સદા આપની ભક્તિમાં હંમેશાં તલ્લીન રહું છું.

સંત રઘસ કહે છે કે હે પ્રભુ, મારી ભક્તિ દીપકમાં બળતી વાટે સમાન છે. જેવી રીતે દીપકની વાટે પોતાને બાળીને દીપકની સાથે સતત રહેવામાં સુખનો અનુભવ કરે છે, એવી રીતે હું પણ મારું અસ્તિત્વ ખોઈને કેવળ આપની ભક્તિની અભિલાષા કરું છું.

સંત રૈદાસ કહે છે કે હે પ્રભુ, આપ મારે માટે સુંદર અને ચમકતા મોતી સમાન છો અને હું સ્વયને તે ઘેરો માનું છું, જેમાં મોતી પરોવવામાં આવે છે. તેઓ કહે છે કે જેવી રીતે મોતીઓની માળાનો દોરો મોતીઓ સાથે જોડાયેલો રહે છે, તેવી રીતે તેઓ પણ પોતાની ભક્તિ દ્વારા ભગવાનથી ઘનિષ્ઠ રૂપમાં જોડાયેલા રહેવા ઇચ્છે છે. તેઓ ઈશ્વર સાથેના પોતાના સંબંધને સૌના અને ટકણખારના મેળનું નામ આપે છે.

સંત રૈદાસ કહે છે કે હે પ્રભુ, આપ અમારા માલિક છો અને હું આપને સમર્પિત સેવક છું. તેઓ કહે છે કે હે પ્રભુ, મારી ભક્તિ તો આ પ્રકારની છે.

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प्रभुजी तुम चंदन हम पानी शब्दार्थ :

  1. जाकी-जिसकी।
  2. अंग-अंग – शरीर के सभी अंग।
  3. बास – सुगंध।
  4. समानी – भर गई है, व्याप्त हो गई है।
  5. घन – बादल।
  6. बन – जंगल।
  7. मोरा – मोर।
  8. चित्तवत – देखता है, निहारता है।
  9. चंद – चांद।
  10. चकोरा – चकोर पक्षी।
  11. बाती – बत्ती (दीपक की)।
  12. जोति – ज्योति।
  13. बर – जलती रहती है।
  14. सोनहिं – सोने में।
  15. सुहागा – क्षार द्रव्य, जो सोने को गलाने के काम आता है।
  16. स्वामी – मालिक।
  17. दासा – गुलाम, सेवक।
  18. कर – करता है।

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