Gujarat Board GSEB Std 10 Hindi Textbook Solutions Kritika Chapter 5 मैं क्यों लिखता हूँ ? Textbook Exercise Important Questions and Answers, Notes Pdf.
GSEB Std 10 Hindi Textbook Solutions Kritika Chapter 5 मैं क्यों लिखता हूँ ?
निम्नलिखित गद्यांशों को पढ़कर प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
1. लिखकर ही लेख्नक उस आभ्यंतर विवशता को पहचानता है जिसके कारण उसने लिखा-और लिखकर ही वह उससे मुक्त हो जाता है । मैं भी उसे आंतरिक विवशता से मुक्ति पाने के लिए, तटस्थ होकर उसे देखने और पहचान लेने के लिए लिनता हूँ । मेरा विश्वास है कि सभी कृतिकार-क्योंकि सभी लेख्नक कृतिकार नहीं होते; न उनका सब लेखन ही कृति होता है – सभी कृतिकार इसीलिए लिखते हैं ।
यह ठीक है कि कुछ ख्याति मिल जाने के बाद कुछ बाहर की विवशता से भी लिना जाता है – संपादकों के आग्रह से, प्रकाशक के तकाजे से, आर्थिक आवश्यकता से । पर एक तो कृतिकार हमेशा अपने सम्मुन ईमानदारी से यह भेद बनाए रखता है कि कौन-सी कृति भीतरी प्रेरणा का फल है, कौन-सा लेखन बाहरी दबाव का, दुसरे यह भी होता है कि बाहर का दबाय वास्तव में दबाव नहीं रहता, यह मानो भीतरी उन्मेष का निमित्त बन जाता है ।
प्रश्न 1.
लेख्नक कब मुक्त हो सकता है ?
उत्तर :
लेखक लिखकर अपने भीतर की विवशता को पहचानता है । उसके लिखने के बाद ही वह मुक्त हो सकता है ।
प्रश्न 2.
लेखक क्यों लिखते हैं ?
उत्तर :
लेखक आंतरिक विवशता से मुक्ति पाने के लिए, तटस्थ होकर उसे देखने और पहचान लेने के लिए लिखते हैं ।
प्रश्न 3.
कृतिकार के विषय में लेखक के क्या विचार हैं ?
उत्तर :
कृतिकार के विषय में लेखक के यह विचार हैं कि सभी लेखक कृतिकार नहीं होते, और न उन सब लेखन कृति होता है ।
प्रश्न 4.
लेखक किन-किन कारणों से लिखते हैं ?
उत्तर :
कुछ लेखक ख्याति पाने के लिए, कुछ बाहर की विवशता से कुछ संपादकों के आग्रह से, प्रकाशक के तकाजे से तथा आर्थिक
आवश्यकता के कारण लिखते हैं ।
2. यहाँ पर कृतिकार के स्वभाव और आत्मानुशासन का महत्त्व बहुत होता है । कुछ ऐसे आलसी जीव होते हैं कि बिना इस बाहरी दबाय के लिख ही नहीं पाते-इसी के सहारे उनके भीतर की विवशता स्पष्ट होती है – यह कुछ वैसा ही जैसे प्रातःकाल नींद खुल जाने पर कोई बिछौने पर तब तक पड़ा रहे जब तक घड़ी का एलार्म न बज जाए ।
इस प्रकार वास्तव में कृतिकार बाहर के दबाव के प्रति समर्पित नहीं हो जाता है, उसे केवल एक सहायक यंत्र की तरह काम में लाता है जिससे भौतिक यथार्थ के साथ उसका संबंध बना रहे । मुझे इस सहारे की जरूरत नहीं पड़ती लेकिन कभी उससे बाधा भी नहीं होती । उठनेवाली तुलना को बनाए रयूँ तो कहूँ कि सबेरे उठ जाता हूँ अपने आप ही, पर अलार्म भी बज जाए तो कोई हानि नहीं मानता ।
प्रश्न 1.
लिखने के लिए रचनाकार के स्वभाव की क्या विशिष्टता होनी चाहिए ?
उत्तर :
रचनाकार को आत्मानुशासन रखना चाहिए । यूँ ही किसी लोभ या दबाव में नहीं लिखना चाहिए ।
प्रश्न 2.
लेखक के अनुसार कृतिकार को कैसा होना चाहिए ?
उत्तर :
लेखक के अनुसार कृतिकार का स्वभाव कर्मठ व आत्मानुशासनवाला होना चाहिए । उसे बाहरी दबाव में नहीं बल्कि आत्मानुशासन में रहकर लिखना चाहिए ।
प्रश्न 3.
कृतिकार बाहर के दबाव के प्रति समर्पित क्यों नहीं हो पाता ?
उत्तर :
कृतिकार बाहरी दबाव में आकार जो लेख लिखता है उसमें खाना पूर्ति ही हो पाती है, वह दिल से नहीं लिख्ख पाता । लेखन को मात्र यह सहायक यंत्र की तरह काम में लाता है जिससे भौतिक यथार्थ के साथ उसका संबंध बना रहे । इसलिए कृतिकार बाहर के दबाव के प्रति समर्पित नहीं हो पाता ।
प्रश्न 4.
लेखक किसे हानि नहीं मानते ?
उत्तर :
लेखक सवेरे उठ जाते हैं अपने आप ही किन्तु कभी यदि एलार्म बज जाय तो वे इसे हानि नहीं मानते ।
3. मैं विज्ञान का विद्यार्थी रहा हूँ, मेरी नियमित शिक्षा उसी विषय में हुई । अणु क्या होता है, कैसे हम रेडियम-धर्मी तत्त्वों का अध्ययन करते हुए विज्ञान की उस सीढ़ी तक पहुँचे जहाँ अणु का भेदन संभव हुआ, रेडियम-धर्मिता के क्या प्रभाव होते हैं – इन सबका पुस्तकीय या सैद्धांतिक ज्ञान तो मुझे था । फिर जब वह हिरोशिमा में अणु-बम गिरा, तब उसके समाचार मैंने पड़े और उसके परवर्ती प्रभावों का भी विवरण पढ़ता रहा ।
इस प्रकार उसके प्रभावों का ऐतिहासिक प्रमाण भी सामने आ गया । विज्ञान के इस दुरुपयोग के प्रति बुद्धि का विद्रोह स्वाभाविक था, मैंने लेख आदि में कुछ लिख्या भी पर अनुभूति के स्तर पर जो विवशता होती है वह बौद्धिक पकड़ से आगे की बात है और उसकी तर्क संगति भी अपनी अलग होती है । इसलिए कविता मैंने इस विषय में नहीं लिखी ।
यों युद्धकाल में भारत की पूर्वीय सीमा पर देखा था कि कैसे सैनिक ब्रह्मापुत्र में बम फेंककर हजारों मछलियाँ मार देते थे । जबकि उन्हें आवश्यकता थोड़ी-सी होती थी, और जीव के इस अपव्यय से जो व्यथा भीतर उमड़ी थी, उससे एक सीमा तक अणु-बम द्वारा व्यर्थ जीय-नाश का अनुभव तो कर ही सका था ।
प्रश्न 1.
लेख्नक की शिक्षा किस विषय में हुई है ?
उत्तर :
लेखक की शिक्षा विज्ञान के विषय में हुई है, वे विज्ञान के विद्यार्थी रहे हैं ।
प्रश्न 2.
लेखक को किन चीजों का पुस्तकीय या सैद्धान्तिक ज्ञान था ?
उत्तर :
लेखक को अणु, रेडियमधर्मी तत्त्व, अणु का भेदन, रेडियम धर्मिता के प्रभाव आदि का पुस्तकीय या सैद्धान्तिक ज्ञान था ।
प्रश्न 3.
हिरोशिमा पर लेखक ने तत्काल कविता क्यों नहीं लिखी ?
उत्तर :
लेखक के अनुसार अनुभूति के स्तर पर जो विवशता होती है वह बौद्धिक पकड़ से आगे की बात है और उसकी तर्क संगति भी अपनी अलग होती है । इसलिए लेखक ने हिरोशिमा पर कविता नहीं लिखी ।
प्रश्न 4.
जीव-नाश का अनुभव लेखक ने कैसे किया ?
उत्तर :
लेखक के अनुसार युद्धकाल में भारत की पूर्वी सीमा पर देखा था कि सैनिक ब्रह्मपुत्र में बम फेंककर हजारों मछलियों मार देते थे । जबकि उन्हें आवश्यकता थोड़ी-सी होती थी और जीव के इस अपव्यय से जो व्यथा भीतर उमड़ी थी, उससे लेखक ने एक सीमा तक अणु-बम द्वारा जीव-नाश का अनुभव किया था ।
जापान जाने का अवसर मिला, तब हिरोशिमा भी गया और वह अस्पताल भी देखा जहाँ रेडियम-पदार्थ से आहत लोग वर्षों से कष्ट पा रहे थे । इस प्रकार प्रत्यक्ष अनुभव भी हुआ – पर अनुभव से अनुभूति गहरी चीज है, कम-से-कम कृतिकार के लिए । अनुभव तो घटित का होता है, पर अनुभूति संवेदना और कल्पना के सहारे उस सत्य को आत्मसात् कर लेती है जो वास्तव में कृतिकार के साथ घटित नहीं हुआ है ।
जो आँखों के सामने नहीं आया, जो घटित के अनुभव में नहीं आया, यही आत्मा के सामने ज्वलंत प्रकाश में आ जाता है, तब वह अनुभूति-प्रत्यक्ष हो जाता है । तो हिरोशिमा में सब देखकर भी तत्काल कुछ लिखा नहीं, क्योंकि इसी अनुभूति की प्रत्यक्ष कसर थी ।
प्रश्न 1.
लेखक ने जापान में क्या देखा ? ।
उत्तर :
लेखक जापान में हिरोशिमा गए जहाँ उन्होंने वहाँ के अस्पताल में देखा कि अणु-बम के गिरने पर रेडियोधर्मी पदार्थ से आहत लोग वर्षों से कष्ट भोग रहे थे ।
प्रश्न 2.
लेखक के अनुसार अनुभव और अनुभूति में क्या अंतर है ?
उत्तर :
लेखक के अनुसार अनुभव तो घटित का होता है, पर अनुभूति संवेदना और कल्पना के सहारे उस सत्य को आत्मसात् कर लेती है जो वास्तव में कृतिकार के साथ घटित नहीं हुआ है ।
प्रश्न 3.
लेखक के अनुसार अनुभूति प्रत्यक्ष कब हो जाता है ?
उत्तर :
लेखक के अनुसार जो आँखों के सामने नहीं आया, जो घटित के अनुभव में नहीं आया, वही आत्मा के सामने ज्वलंत प्रकाश में आ जाता है, तब वह अनुभूति प्रत्यक्ष हो जाता है ।
प्रश्न 4.
लेखक ने हिरोशिमा में तत्काल क्यों नहीं लिखा ?
उत्तर :
लेखक ने हिरोशिमा में सब देखकर भी तत्काल कुछ इसलिए नहीं लिखा क्योंकि उनमें अनुभूति की प्रत्यक्षता बाकी थी ।
5. उस छाया को देखकर जैसे एक थप्पड़-सा लगा । अयाक् इतिहास जैसे भीतर कहीं सहसा एक जलते हुए सूर्य-सा उग आया और डूब गया । मैं कहूँ कि उस क्षण में अणु-विस्फोट मेरे अनुभूति-प्रत्यक्ष में आ गया – एक अर्थ में मैं स्वयं हिरोशिमा के विस्फोट का भोक्ता बन गया । इसी में से वह विवशता जागी ।
भीतर की आकुलता बुद्धि के क्षेत्र से बढ़कर संवेदना के क्षेत्र में आ गई… फिर धीरे-धीरे मैं उससे अपने को अलग कर सका और अचानक एक दिन मैंने हिरोशिमा पर कविता लिखी-जापान में नहीं, भारत लौटकर, यह कविता अच्छी है या बुरी; इससे मुझे मतलब नहीं है । मेरे निकट वह सच है, क्योंकि यह अनुभूति-प्रसूत है, यही मेरे निकट महत्त्व की बात है ।
प्रश्न 1.
छाया को देखकर लेखक को क्या अनुभूति हुई ?
उत्तर :
छाया को देखकर लेखक को लगा जैसे उन्हें एक थप्पड़-सा लगा हो । अवाक इतिहास जैसे भीतर कहीं एक जलते हुए सूर्य सा उग आया और डूब गया ।
प्रश्न 2.
लेखक स्वयं हिरोशिमा के विस्फोट का भोक्ता कैसे बन गए ?
उत्तर :
लेखक ने जब छाया को देखा तो उस क्षण अणु-विस्फोट उनके अनुभूति-प्रत्यक्ष में आ गया – एक अर्थ में वे स्वयं उस समय हिरोशिमा के विस्फोट का भोक्ता बन गए । इस तरह अनुभूति की प्रत्यक्षता के कारण लेखक हिरोशिमा विस्फोट के भोक्ता बन गए ।
प्रश्न 3.
लेखक ने हिरोशिमा पर कविता कब और कैसे लिखी ?
उत्तर :
लेखक ने हिरोशिमा पर कविता जापान में नहीं, भारत लौटकर रेलगाड़ी में बैठे-बैठे लिखी । अनुभूति की प्रत्यक्षता के कारण उनमें विवशता जागी । भीतर की आकुलता बुद्धि के क्षेत्र से बढ़कर संवेदना के क्षेत्र में आ गई – फिर ये धीरे-धीरे अपने को अलग कर सके और फिर वे एक दिन हिरोशिमा पर कविता लिख पाए थे ।
प्रश्न 4.
लेखक के लिए क्या महत्त्वपूर्ण है ?
उत्तर :
हिरोशिमा पर लिखी कविता अच्छी है या बुरी, इससे लेखक को कोई मतलब नहीं । लेखक के लिए यह सच है, क्योंकि यह अनुभूति-प्रसूत है, यह लेखक के लिए महत्त्वपूर्ण है।